एक नन्ही लडकी
मासूम सी हसरत लिए
चांद को निहारा करती थी
दिन बा दिन चांद को पा लेने की
उसकी ख्वाइश बढ़ती गयी
पर क्या चांद किसी को मिला है?
एक रोज पोखर में
चांद चुपचाप कदम बढा
उस लडकी के सामने उतर आया
लडकी खुश हुई, मचली इठलाई
और चांद को पकडने के लिये
पानी मे हाथ डाला
पर क्या चांद किसी को मिला है?
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
बहुत खुब..
ReplyDeleteऔर मजाक में कहें तो
अगर बेचारी फिजा़ को पता होता तो काहे झमके में पड़ती..:)
बहुत सुन्दर कविता है.................
ReplyDeleteअरे हाँ याद आया अभी कल ही तो फिजा के घर पहुंचा है ...अच्छा नहा धो कर आया है.............
बढ़िया लगी कविता।
ReplyDeleteशीर्षक से तो लगा आप मिडिया के दुलारे के बात कर रहे हैं। वो वाला तो फिज़ा को मिला है :)
चाँद की ख्वाहिश एक अनोखी ख्वाहिश है । युगों-युगों से यह खवाहिश भिन्न-भिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती आयी है । कविता के लिये आभार ।
ReplyDeleteएक नेक सलाह : -
ReplyDeleteआपको सलाह दी जाती है कि इस कविता को तुरंत हटालें वर्ना आप पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है.
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ReplyDeleteताऊ बहुत बढिया कविता है पर जरा नेक सलाह पर भी ध्यान दिया जाये.
ReplyDelete@ Anonymous
ReplyDeleteऔर चांद को पकडने के लिये
पानी मे हाथ डाला
पर क्या चांद किसी को मिला है?
भाई मैने इसमे क्या गाली बक दी?
अगर आप अपनी आई.डी. के साथ आकर कमेंट करेंगे और चांद के साथ आपकी रिश्तेदारी प्रूव कर देंगे तो मैं इसको हटा लूंगा और आप खाली पीली वैमनस्य बढाने का काम कर रहे हैं तो करते रहिये..मुझे इन गीदड भभकियों से डर नही लगता है.
रामराम.
चलिए चांद पकड़ने के बहाने
ReplyDeleteहाथ तो धुल गए
बहुत सुन्दर कविता...गर चाँद मिल जाता तो कविता कैसे बनती. चाँद न मिलकर ही अपनी महत्ता बरकरार रखे है.
ReplyDelete------
ताऊ, ये अनाम साहेब काफी विनोदी स्वभाव के लगते हैं.
सुन्दर कविता !!!
ReplyDeleteShirshak dekh hamne bhi samjha ki chaand fiza ki baten hain shayad.
जिसे देखो वही सलाहू का रोल अदा करने लगा है।
ReplyDeleteहम भी सलाह दे दें - आप चांद और उसकी परछाई पर नहीं, गौरैया पर लिखें कविता।
सुन्दर कविता है.
ReplyDeleteजैसा कि हिमांशु जी ने कहा चाँद को पाने की ख्वाहिश तो सदियों से है. मिले या न मिले, ख्वाहिश तो हमेशा ही रहेगी. राजा दशरथ भी अपने पुत्र को बर्तन के पानी में चाँद दिखाकर शांत करते थे. जब सूर्यवंशी का यह हाल था तो हम तो आम लोग हैं.
बेनामी जी की टिप्पणी अशोभनीय है.
चाँद मिल जाता तो कविता कैसे बनती ...:)
ReplyDelete-जो नहीं मिलता उसे ही पाने की चाहता होती है..यह मानव स्वभाव है...भगवान भी माँ से चाँद मांगते थे खेलने के लिए !
ReplyDelete[माननीय ज्ञानदत्त जी की सलाह को दोहराना उचित लगता है.शायद कोई बेनामी यह भी कह दे--कविता सामयिक है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी!
आप की लिखी इस अच्छी सी कविता का देखिये अब कैसे कैसे पोस्ट मार्टम किया जाता है!]
चाँद बड़ा निष्ठूर है, फिजाओं में झलक दिखला कर निकल लेता है. :)
ReplyDeleteकविता सुन्दर है.
वाह, बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
हम कहते हें
ReplyDelete"क्यों ख्वाहिश करते हें
आपको उस चाँद की
जो ख़ुद चौबीसों घंटे
आपके चक्कर काटा करता है।
आपकी रौशनी से दमकता है।
करनी है तो कद्र कीजिये
उस आग के गोले की
जो ख़ुद जलता रहता है
पर आपको जीवन देता है। '
ताऊ की जय हो. क्या सटीक और सामयिक कविता लिखी है. बहुत बधाई यह सुंदर और सामयिक कविता लिखने के लिये.
ReplyDeleteक्या बात है ताऊ? चांद और फ़िजा का खुमार आप पर भी चढ गया? पर कविता सुंदर है. बधाई.
ReplyDeletebahut samayik
ReplyDeletebahut samayik
ReplyDeleteसही बात है चांद किसी को भी नही मिला फ़िर फ़िजा को कहां से मिलेगा? चांद को पाने की ख्वाहिश ही बेमानी है.
ReplyDeleteबहुत खूब........
ReplyDeleteसुन्दर कविता के लिए आपका तथा सुश्री सीमा गुप्ता जी का आभार।
एक खूबसूरत को उजागर कर दिया आपने शब्दों के माध्यम से....
ReplyDeleteमीत
ताऊ जी अपने आशीष भतीजे की मदद से इसे पकडिये न कुछ ip अड्रेस वाले टूल से...
ReplyDeleteमीत
ताऊ जी मेरी सलाह है कि बेनामी टिप्पणियों को जवाब देकर बेवजह उनकी अहमियत न बढायें !
ReplyDeleteमहोदय को मालूम नहीं कि सदियों से कवियों का चाँद पे कापीराईट है !
इतनी भावमयी कविता की वाट लगाने की कोशिश की जा रही है !
करे तो कोई कानूनी कार्यवाही ........
रातों-रात यह ब्लॉग दुनिया भर में सुपर हिट हो जाएगा !
आज की आवाज
वाह ताऊ छा गये आप तो. आपको तो आशुकवि की संज्ञा देनी चाहिये. अभी चांद नहा धोकर फ़िजा के पास पहुंचा ही था कि आपने उसकी कविता रचदी.
ReplyDeleteशायद यह पहली कविता होगी चांद और फ़िजा पर. बधाई इस रिकार्ड बनाने पर. और फ़िजा की पोखर मे से चांद निकालते हुये तस्वीर भी बडी सुंदर लगाई है.
बधाई.
सुंदर रचना. बेहद सुंदर भाव लिये हुये. बहुत सही कहा है चाहने पर भी चांद किसे मिल पायाहै? बधाई.
ReplyDeleteTaau.. aapne ek kahani shuru ki thi.. abhi tak usi ke intzar me hun..
ReplyDeleteVo sher vali.. :)
ताऊ जी।
ReplyDeleteबाल मन ऐसा ही निश्छल होता है।
सुन्दर कविता के लिए
सीमा जी को बधाई।
आपको धन्यवाद।
इतनी अच्छी रचना पर ये बेनामीजी ! उफ़ !
ReplyDeleteसुँदर कविता के साथ सुँदर चित्र है
ReplyDelete- लावण्या
एक शेर पढ़ा था कभी, अर्ज कर देता हूं-
ReplyDeleteआएगा कदमबोसी को चांद ये मेरा जिम्मा
आप अंगुश्तेहिनाई से ईशारा तो कीजिए
चांद मिले या ना मिले, मिलने की उम्मीद का जिंदा रहना जरूरी है।
......बहुत अच्छी कविता ताऊ जी !!
ReplyDelete(रिक्तस्थान मे कम्युनल या सेक्युलर आप अपनी मर्जी से लगा ले )
वैसे चांद तो एक ख्वाब ही है और ख्वाब आंखो मे ही अच्छे लगते है....हकिकत मे नही !!
अच्छी रचना के लिए सुश्री सीमा जी को और प्रस्तुतिकरण के लिए आपको बधाई .
ReplyDeleteताऊ आप की कविता तो बहुत प्यारी लगी , लेकिन यह बेनामी जनाब को क्या तकलीफ़ हो गई, शायद इनकी किसी दुखती रग पर रामप्यारी ने अपना प्यारा प्यारा पंजा मार दिया.
ReplyDeleteराम राम जी की
सबसे मजेदार ये लगा "चलिए चांद पकड़ने के बहाने
ReplyDeleteहाथ तो धुल गए"
.... सुन्दर कविता.
कल चाँद को देखा उसके टी शर्ट पर 99 लिखा था....यानि कि अभी भी चाँद के एक पर्सेंट इधर-उधर लुढकने का चाँस है :)
ReplyDeleteसुन्दर्।
ReplyDeleteचाँद भी क्या खूब है ....सूरज की गर्मी को समाहित कर कैसी शीतलता बिखेरता है ...चाँद को छूने की ख्वाहिश वाजिब है ...किसे नहीं होती ??
ReplyDeleteअरे वाह आप चाँद पर भी लिखते है
ReplyDeleteसुन्दर कविता............ इस रचना में गहरी सोच है....... भोली भली आशा भी है इसमें.......लाजवाब
ReplyDeletesundar rachna....
ReplyDeleteताऊ महाबाबा श्री जी 1000000000000000000000000000000000000000000000000008
ReplyDeleteभाई कुंआरे पुसादकर जी बड़े परेशान है उनका जल्दी विवाह करवा दे .....रायपुर के आसपास ही शादी तै करवा दे हम सभी ब्लॉगर आभारी रहेगें
बाबाजी आपकी जय हो कल्याण हो
पर क्या चांद किसी को मिला है?
ReplyDeleteachchi kavitaa
Sunder aur pyari kavita...
ReplyDeleteअहा
ReplyDeleteसुंदर !