एक कहावत आपने सुनी होगी कि "नेता बनने के लिये सीने में आग, पैर में चक्कर और मुंह में शक्कर" का होना आवश्यक शर्त है पर यहां नेता बनने का कोई शौक भी नहीं है पर पैर का चक्कर मिटता नहीं है.
अभी दिसंबर में दिल्ली सम्मेलन में हो आये थे फ़िर चेन्नई जाने का प्रोग्राम चीनियों के फ़ैलाये रोग की मेहरवानी से कैंसिल हो गया था तो लगा था कि अब पांव का चक्कर खत्म हो गया दिखता है. पर भला इतनी आसानी से घुमक्कडी कहां पीछा छोडती है?
फ़रवरी के आखिरी दिनों में वत्स जी का फ़ोन आया और बोले - ताऊ 5 मार्च से 8 मार्च 2022 तक पटना सम्मेलन रखा है वहां पहुंच जाना. हमने बताया कि अभी ओमीक्रोन से उठे हैं और हाथ की कलाई के लिगामैंट टूट गये हैं हम नहीं आ पायेंगे. पर वो वत्स जी ही क्या जो इतनी आसानी से पीछा छोड दें..... बोले... ताऊ ओमीक्रोन आपका क्या बिगाड लेगा वो खुद डरता है आपसे..... बस टिकट मैंने करवा दी है... आ ही जाना.
अब सोच रहे थे कि ताई को कैसे बतायें....? ये तो वत्स जी ने मुश्किल में डाल दिया. ताई ने तो दिल्ली से आने के बाद ही घर से निकलने पर एडवांस में लोक डाऊन लगा दिया था. तभी मधु जी का फ़ोन आ गया और बोली कि आप पटना आ रहे हो ना? हमने अपनी मजबूरियां गिनाई तो वो बोली कि आप चिंता मत करिये बस जैसे तैसे अपने आपको हवाई जहाज में डाल लिजीयेगा फ़िर पटना में तो हम सब संभाल लेंगे.
अब क्या करते.... ताई को कैसे बतायें कि हमको पटना जाना है? हमने उसे कुछ भूमिका बनाते हुये गोलगोल बातें करना शुरू की तो वो आंखे दिखाती हुई बोली.... ज्यादा बकवास मत करो, मैं तुम्हारी रग रग पहचानती हूं... उसका हाथ लठ्ठ तक पहुंचता उसके पहले ही हमने उचक कर लठ्ठ को दूर फ़ेंक दिया और कहा कि - इसमे मेरी कोई गलती नहीं है और मैं तो जाना ही नहीं चाहता था... वो वत्स जी नहीं मान रहे. तब वो डपट कर बोली - वत्स जी का नाम क्यों लेते हो? मैं तुम्हारी सब बातें सुनती हूं... तुम ही उचकाते हो सबको.... घर में तो जैसे तुम्हारे पांव जलते हैं?
हम शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन दबाये चुपचाप सुनते रहे, बस तसल्ली इस बात की थी कि लठ्ठ उसके पास था नहीं और हम ठहरे चिकने घडे.... उसकी बातों का आज तक कोई असर नहीं हुआ तो अब क्या होने वाला था?
इस तरह दिन भर कुछ वो सुनाती रही और हमारे कानों पर कोई जूं भी नहीं रेंगी.... जूं होगी तब ना रेंगेगी? आखिर वो बोली - अभी तो हो आवो पर अगली बार के लिये ध्यान रखना. हमने कहा - बिल्कुल नहीं जायेंगे.
मार्च के महिने में मौसम में वैसे ही फ़गुनाहट शुरू हो ही जाती है और आपमें से अधिकतर जानते होंगे कि हरियाणा में होली पर पत्नियां भी पति को कोडे मारकर होली खेलती हैं. पर हमारी पत्नि कुछ डबल हरियाणवी है सो साल भर लठ्ठ मार होली खेलती है हमारे साथ. वैसे ईमानदारी की बात यह है कि दिन में दस बीस लठ्ठ और गालियां खाये बिना हमारी रोटियां भी हजम नहीं होती.
तो साहब 5 मार्च को एयरपोर्ट जाने के लिये घर से बाहर निकले कि हमारे सामने रहने वाले शर्मा जी जो कि इंडिगो में पायलेट हैं वो ड्रेस्ड-अप होकर खडे थे उनको लेने आने वाली कंपनी की कार के इंतजार में..... हमको बैग हाथ में देखकर बोले ताऊ किधर की तैयारी है? हमने बताया कि जायेंगे तो पटना पर फ़िलहाल दिल्ली जायेंगे.....
शर्मा जी बोले - कौन सी फ़्लाईट है आपकी? हमने कहा कि इंडिगो की है.... तो वो बोले - चिंता मत करिये... मुझे आज वही फ़्लाईट लेकर दिल्ली जाना है. आप मेरे साथ ही एयरपोर्ट चलिये. इतनी ही देर में उनकी कंपनी की गाडी उनको लेने आ गई और उनके साथ ही हम भी एयरपोर्ट पहुंच गये. वहां शर्मा जी स्टाफ़ एंट्री गेट की तरफ़ बढ गये और बोले ताऊ अब फ़्लाईट पर मिलते हैं.
हमने सोचा - आज तो तीन चार सौ रूपये ऊबर के बच गये और जब फ़्लाईट के कैप्टन भी शर्मा जी ही हैं तो नाश्ता पानी भी फ़्री हो ही जायेगा. तय समय पर बोर्डींग हो गई. हमने बोर्ड करते समय काकपिट में झांक कर देखा तो शर्मा जी कुछ कागज पन्नों पर हिसाब करते हुये कुछ बटन ऊपर नीचे करते नजर आये. अपने को कुछ समझ नहीं आया सो आगे बढकर मधु जी के निर्देशानुसार अपने आपको अपनी सीट पर डाल लिया.
बोर्डिंग कंपलीट हुई तो शर्मा जी ने हवाई जहाज को उडा दिया और दो चार मिनट में तो बादलों के पार हो गये. अब जलपान सेवा का अनाऊंसमैंट हो चुका था. थोडी देर में एक हवाई सुंदरी ने आकर हमारी तरफ़ एक रोस्टेड काजू का डिब्बा बढाया तो हमने कहा कि हमको नहीं चाहिये. तुम लोग बहुत महंगे बेचते हो, सौ ग्राम काजू और दाम डेढ सौ रूपया....?
वो मुस्कुराते हुये बोले - अरे ताऊ यह तो कैप्टेन साहब ने आपको भिजवाया है गिफ़्ट.... हमने कहा फ़िर तो चाहे दो चार और दे दे.... वो मुस्कराते हुये आगे बढ गई और सोच रही होगी कि ये किस बला से पाला पड गया?
हमने डिब्बा खोलकर काजू निपटा दिये, स्वाद जबरदस्त था.... इच्छा हो रही थी कि दो चार डिब्बे और निपटा दें पर इस तरह रमजीपने पर उतरने का दिल नहीं किया. जरासी देर में शर्मा जी काकपिट से निकलते दिखे और सीधे हमारे पास आकर बोले आवो ताऊ खाना खा लेते हैं.... हमने उनके साथ ही फ़्रंट डोर के सामने वाली जगह पर खडे हुये खाना खाया.... बस फ़िर शर्मा जी अंदर गये और हम सीट पर आकर बैठ गये. तभी दिल्ली पहुंच गये. शर्मा जी से विदा ली और सिक्युरीटी चेक करवा कर पटना के लिये बोर्डिंग गेट पर आकर बैठ गये.
इस तरह रात 10 बजे पटना पहुंच गये. वहां पटना का काम सीधा सादा लगा. हवाई जहाज से उतरे तो पैदल ही आगमन द्वार पर पहुंच गये. बस वगैरह का कोई झंझट ही नहीं. कई वर्षों बाद यह अनुभव पटना में ही मिला जो कि सुखद लगा, वर्ना हवाईजहाज से उतरो फ़िर अपने आपको बस में डालो.... यह सब बहुत बोरिंग और ऊबाऊ लगता है.
लगेज बेल्ट से अपना सामान ले ही रहे थे तभी मधु जी का फ़ोन आ गया कि पहुंच गये? हमने कहां हां... अपने आपको हवाईजहाज में डाल लिया था सो पहुंचना तो था ही. उन्होने कहा - ड्राईवर आपका इंतजार कर रहा है बाहर..... तभी ड्राईवर साहब का फ़ोन आ गया और इस तरह हम होटल पहुंच गये जहां सभी ने मजमा लगा रखा था. रात को 2 बजे तक गोष्ठी चलती रही और फ़िर सो गये.
(शेष अगले भाग में)
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर सराहनीय संस्मरण ।
ReplyDeleteरोचक यात्रा विवरण
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