इस दुनियां मे सबके अपने अपने फ़ंडे हैं, तथ्य तो हमेशा ही एक रहता है पर उसे समझने की अपनी अपनी अक्ल है. सवाल इस तरह से भी हल किये जा सकते हैं. बात देखने मे तो हंसी मजाक की ही लगती है पर सोचेंगे तो बडी गहरी है. हर आदमी अपने मे संपुर्ण ज्ञानी बना हुआ है. इस दुनियां मे सवाल और जवाब दोनों ही बेतुके से लगते हैं. कही कोई संबंध नही है..फ़िर भी सवाल हल हो जाते हैं.
ताऊ जब स्कूल मे पढता था तब अंगरेजी पढाने वाले मास्साब ने आते ही सवाल किया कि मैं घर से स्कूल के लिये ८ बजे चला था और स्कूल मे ९ बजे पहुंचा तो बताओ मेरी उम्र कितनी है?
अब सब छात्र तो हैरान रह गये कि आज शायद मास्साब दिन मे ही भांग वांग चढा कर आये हैं? कहीं कोई तारतम्य ही नही है. पर इस दुनियां मे ऐसे सवाल हैं तो उनके हल भी मौजूद ही हैं. और ऐसे सवालों पर भला ताऊ कैसे चुप रह सकता है?
अब ताऊ ने तुरंत जवाब दिया : मास्साब , आप ८ बजे चलकर ९ बजे स्कूल पहुंचे हैं तो आपकी उम्र ४२ साल होनी चाहिये.
मास्साब तो हैरान रह गये ऐसे प्रतिभावान छात्र से मिलकर..बोले -- वाह ताऊ..तुमने कौन से फ़ार्मुले से मेरी सही सही उम्र का पता लगा लिया? जरा मुझे भी तो समझाओ?
ताऊ बोला : जी मास्साब...मेरा एक चचेरा भाई है. और उसकी उम्र २१ साल है. और वो आधा पागल है. जैसे सवाल वैसे ही जवाब.
आज के अंक मे "सलाह उडनतश्तरी की" मे समीर जी ने फ़िर आज बहुत ही ज्ञानदायक सलाह दी है.
और हमेशा की तरह "मेरा पन्ना" में सु. अल्पना वर्मा ने गोवा के बारे मे निहायत ही खूबसूरत और उपयोगी जानकारी दी है.
"दुनिया मेरी नजर से" में आशीष खंडेलवाल एक मनोरंजक जानकारी दे रहे हैं.
और "मेरी कलम से" में सु सीमा जी ने विश्वास और भरोसे को कायम रखने का फ़ार्मुला एक बहुत ही छोटी और खूबसूरत कहानी से बताया है.
अबकी बार "हमारा अनोखा भारत" मे सु. विनीता यशश्वी आपको कुमाऊं के लोकगीतों से सराबोर कर रही हैं. और हीरामन जी अबकी बार दो टिपणीयां उनकी पसंद की छांट कर लाये हैं. एक श्री काजल कुमार जी की और दूसरी श्री शाश्त्री जी की.
और पत्रिका के अंत मे हमेशा की तरह आगामी गुरुवार को प्रकाशित होने वाले परिचयनामा का ट्रेलर देखिये.
आपके सहयोग और स्नेह के लिये आपका आभार. आपका सप्ताह शुभ और मंगलमय हो.
-ताऊ रामपुरिया
(मुख्य संपादक)
विवाद और विमर्श में अंतर करना सीखो. विवाद की स्थिति में अगर कुछ जोड़ना ही है तो एक सार्थक प्रयास ऐसा करो ताकि विवाद किसी निष्कर्ष पर पहुँच कर शांत हो जाये अन्यथा विवादों से दूरी रखना ही लम्बी दौड़ के लिए श्रेयकर लगता है. विवादों को उकसाने का कार्य या आग में और घी डालने का वेवजह प्रयास एक बार को तो आपको सुर्खियों में ला सकता है किन्तु इसकी आयु अति सीमित होती है. विमर्श से कुछ सीखने का प्रयास हो. यदि आपके पास विमर्श को एक दिशा देने के लिए कोई ठोस और तथ्यपूर्ण जानकारी हो, तभी उसे सबके सामने लायें अन्यथा आप बेवजह विमर्श को दिग्भ्रमित करेंगे और उसकी साथर्कता को खत्म या कम करेंगे. नज़र हमेशा खुली रखें. एक नजर जरुर देखें कि कौन क्या लिख रहा है और उसका नज़रिया क्या है. सभी के पास कुछ न कुछ अच्छा बाँटने लायक एवं सीखने योग्य कुछ न कुछ जरुर होता है, बस खुले मन से और खुली नजर से उसे देखें. बात न पचती हो तो आगे निकल जायें बिना कुछ कहे जब तक कि आपके पास उस आलेख को बेहतर बनाने के लिए कुछ ठोस बात न हो. मैं समर्थन करता हूँ, बात पूरी करता है क्यूँकि आप उस आलेख में कहे को ही मान्य मान रहे हैं. जबकि इसके विपरीत सिर्फ इतना कह देने से कि मैं नहीं मानता, बात पूरी नहीं होती. आपको वजह भी बतानी चाहिये कि क्यूँ आप उसकी बात सही नहीं मान रहे हैं. आज बस इतना ही. चलते चलते: हम अपने कामों से काम रखते हैं हम अपने दिल में जुबान रखते हैं.. चाँद तारों की बात हमसे न करना.. हम हथेली में आसमान रखते हैं. -समीर लाल 'समीर |
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित राज्य गोवा का नाम जब भी सुनते हैं तो वहां के मनोरम समुद्र तट का ध्यान हो आता है. देशी-विदेशी सेलानियों में बेहद लोकप्रिय पर्यटन स्थल. गोवा में सिर्फ समुद्री तट नहीं हैं और भी बहुत कुछ ऐसा है जो पुरातत्व और इतिहास की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है. यूँ तो आप को गोवा के बारे में बहुत सारी जानकारी अंतरजाल पर मिल जायेगी. यहाँ मेरा प्रयास है कि आप को संक्षेप में अधिक से अधिक जानकारी दे सकूँ. पहेली में मुख्य तस्वीर जिस जगह की दिखाई गयी थी वह थी--अर्वालम गुफाएं. गोवा को ३० मई १९८७ इसे भारत के २५वे राज्य का दर्जा दिया गया. वर्तमान में प्रशासनिक दृष्टि से गोआ को उत्तरी गोआ और दक्षिणी गोआ में बांटा गया है. उत्तरी गोआ का मुख्यालय पणजी है जबकि दक्षिणी गोआ का मुख्यालय मडगांव में है जानते हैं गोवा का प्राचीन इतिहास -: महाभारत में जिस गोपराष्ट्र [ गायों को चराने वाला क्षेत्र ]का उल्लेख मिलता है वही तो है गोवा! दक्षिण कोंकण क्षेत्र का उल्लेख गोवाराष्ट्र के रूप में पाया जाता है. संस्कृत के कुछ अन्य पुराने स्त्रोतों में गोआ को गोपकपुरी और गोपकपट्टनकहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा हरिवंशम और स्कंद पुराण में मिलता है. गोवा को बाद में कहीं कहीं गोअंचलभी कहा गया है. जनश्रुति के अनुसार गोआ जिसमें कोंकण क्षेत्र भी शामिल है (और जिसका विस्तार गुजरात से केरल तक बताया जाता है) की रचना भगवान परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि परशुराम ने एक यज्ञ के दौरान अपने वाणो की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया था और लोगों का कहना है कि इसी वजह से आज भी गोआ में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि हैं. उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है।अन्य नामों में गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन, औरगोमंत प्रमुख हैं. टोलेमी ने गोआ का उल्लेख इसवी सन 200 के आस-पास गोउबा के रूप में किया है,ऐसा भी इतिहास कहता है कि अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से अपने यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है और इस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोआ रखा वास्तव में वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोवा-वेल्हा है. बाद मे उस पूरे क्षेत्र को गोआ कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया. दिसम्बर १९६१ में भारतीय फौजों ने इसे आजाद कराया था. अरब सागर के तट पर बसा यह स्थान एक और महारष्ट्र दूसरी और से कर्नाटका से लगा हुआ है. यहाँ रहने वाले गोवन लोग अपने स्वछन्द विचारों ,हंसमुख स्वभाव के कारण दूसरो के साथ बहुत जल्दी घुल मिल जाते हैं. अब तक कई देशों के लोगों से मिलने के बाद मेरे व्यक्तिगत अनुभव में गोवन और श्रीलंकन नागरिक सब से अधिक मिलनसार और हंसमुख स्वभाव वाले हैं. गोवा में पर्यटन स्थल- १-समुद्री तट- दक्षिण में मजोर्दा , बेताल्बतिम , कालवा , बेनौलिम , वरचा , कावेलोस्सिम और पालोलेम -और पूर्वोत्तर में अरम्बोल , मंद्रेम , मोर्जिम , वगाटर , अंजुना , बागा , कालान्गुते , सिंकुएरिम , मिरामार प्रमुख तट हैं. 2-बोंडला अभ्यारण्य, कावल वन्य प्राणी अभ्यारय, कोटिजाओ वन्यप्राणी अभ्यारण्य,भगवान महावीर वन्य पशु रक्षित वन,सलीम अली पक्षी रक्षित केंद्र भी जरुर देखने जाएँ. 3-मंदिरों में- ५०० साल पुराना मंदिर 'श्री भगवती', कामाक्षी, कालिकादेवी , श्री दामोदर मंदिर, पांडुरंग मंदिर, महालसा मंदिर,१३वि शताब्दी का महादेव मंदिर, महालक्ष्मी, गणेश, मल्लिकार्जुन, श्री मंगेश मंदिर, रामनाथ का मंदिर, शांता दुर्गा मंदिर, गोपाल-गणेश का मंदिर आदि कई मंदिरों में एक पांचवी सदी में बना ब्रम्हा मंदिर भी उल्लेखनीय है . प्रत्येक मंदिर स्वच्छ सुंदर तालाब , दीप स्तंभ, और आकर्षक परिसरों से युक्त हैं. शांता दुर्गा गोवा निवासियों की ख़ास देवी हैं, कहते हैं कि बंगाल की क्षुब्धा दुर्गा गोवा में आकर शांत हो गईं और शांता दुर्गा के नाम से पूजी जाने लगीं. शांता दुर्गा का मंदिर पोंडा से ही तीन कि.मी. दूर कवले गाँव में है. 4-मस्जिद-सांगेगाँव की जामा मस्जिद और पोंडागाँव की १५ वि शताब्दी में बीजापुर के आदिलशाह द्वारा बनवाई साफा मस्जिद भी बहुत बड़ी और लोकप्रिय स्थलों में से एक है. 5- किलों में- भाग्वाद का किला , रेयश मागुश का किला ,तेरे खोल का किला,कामसुख का किला दर्शनीय हैं. 6-पुराने गोवा की तरफ आप जाएँ तो आप को बहुत से चर्च देखने को मिलेंगे यह स्थान एक हेरिटेज साईट है. पुराने गोवा के गिरजाघर सोलहवीं शताब्दी में निर्मित हुए हैं,पणजी-पोंडा मुख्य मार्ग पर एक ओर पुर्तगाल के महान कवि तुईशद कामोंइश का विशाल पुतला खड़ा है, तो दूसरी ओर महात्मा गांधी की भव्य प्रतिमा देखते ही बनती है. प्राचीन और विशाल पुर्तगाली कला का प्रभाव लिए इनकी शिल्पकला मनमोह लेती है. प्रमुख गिरिजाघरों में से एक हैं -बासिसलका बॉम जीसस गिरजाघर जहाँ विख्यात संत फ्रांसिस जेवियर का शव ४०० साल से सुरक्षित रखा हुआ है.साल में एक बार इसे जनता के दर्शनार्थ रखा जाता है. दूसरा प्रमुख चर्च है-सा कैथेड्राल चर्च--यहाँ का आकर्षण सोने की बनी बहुत बड़ी घंटी है. इस के अलावा-संत फ्रांसिस आसिसी चर्च भी बहुत खूबसूरत है. संत काटेजान चर्च के प्रवेशद्वार को कहा जाता है कि आदिलशाह के शासनकाल में क़िले का दरवाज़ा था. इन सभी के अतिरिक्त भी कई प्राचीन चर्च हैं जो आप को वहां देखने को मिलेंगे . 7-दूध सागर जल प्रपात,सांखली गाँव में हरवलें जल प्रपात , मायम झील मनोरम स्थल हैं. 8-एक रिकॉर्ड के अनुसार गोवा में लगभग २५ मानव निर्मित गुफाएं अब तक खोजी गयीं हैं. प्राकृतिक गुफाओं में 'वेरना गुफा 'सब से बड़ी है जिस में करीब १२०० लोगों को एकत्र किया जा सकता है. अर्वालम की [मानव निर्मित]गुफाएं - ये गुफाएं उत्तरी गोवा में Bicholim से 9 किलोमीटर दूर स्थित हैं. गुफाओं के बाहर लगे पुरातत्व विभाग के सूचना पट के अनुसार ये गुफाएं ६-७ वि सदी में बनाई हुई लगती हैं. भारतीय पुरातत्व विभाग की दी जानकारी के अनुसार यहाँ दो मुख्य गुफाएं और एक आवासीय स्थल पाए गए हैं. अर्वालम गुफा के काम्प्लेक्स में में ५ कक्ष हैं [हर कक्ष में एक शिवलिंग है.] और बीच के कक्ष में बने शिवलिंग की बहुत मान्यता है. बाकि चार शिवलिंगों की रचना बहुत कुछ एल्लोरा और elphanta की गुफाओं में मिले शिवलिंगों जैसी है. इन पर संस्कृत और ब्राह्मी में लिखा हुआ है जो बताते हैं कि ये ७वि सदी के शुरू के काल में निर्मित हुए. ऐसा कहा जाता है कि पांडव अपने अज्ञात वास के दौरान इन गुफाओं में ठहरे थे .कुछ इन्हें बोद्धों द्वारा बनाया भी मानते हैं .बहुत सी जगह इन गुफाओं को पांडवों की गुफा भी कहा गया है.मगर अधिकारिक नाम अर्वालम गुफाएं ही है. घने जंगलों के बीच बनी इस गुफा के पांचों दरवाजों पर पुरातत्व विभाग ने Fence लगायी हुई है . दिन के समय भी यह जगह थोडा भय देती है क्योंकि भालू ,चीते आदि जानवरों के आस पास हो सकने की चेतावनी भी दी जाती है. यहीं पास में अर्वालम जल प्रपात भी है. इस जल प्रपात के पास रुद्रेश्वर मंदिर भी है. कैसे जाएँ-- गोवा जाने के लिए सभी मुख्य शहरों से रेल,सड़क,वायु मार्ग से सुविधाएँ उपलब्ध हैं.मुंबई से गोआ के लिए प्रतिदिन बसें चलती हैं. |
ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के अंक 22 में हमने आपको बंगलूरू के खाजा शरीफ के बारे में बताया था, जो अपनी पत्नी की याद में 20 करोड़ रुपए खर्च कर ताजमहल जैसा स्मारक बना रहे हैं। आज जानकारी ब्रिटेन के एक शख्स की, जो ताजमहल की कहानी पढ़कर इतनी अभिभूत हुआ कि उसने अपनी पत्नी की याद में माचिस की तीलियों से ताजमहल की प्रतिकृति बना डाली- ब्रिटेन के एक पेंशनर को शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने खुद एक और ताजमहल तैयार करने की ठान ली। लेकिन वे यह ताजमहल संगमरमर नहीं बल्कि माचिस की तीलियों से तैयार करना चाहते थे। वे ताज का शिल्प देखने के बाद काम में जुट गए और आठ महीने के अथक प्रयास में दस हजार तीलियों की मदद से यह कृति तैयार करने में कामयाब रहे। सत्तर वर्षीय रोन सेवोरी कहते हैं कि इस कृति को देखते ही उन्हें अपनी पत्नी एन की यादें ताजा हो जाती हैं। वे एक दिन पुस्तक में शाहजहां की कथा पढ़ रहे थे और तभी उन्हें भी एन की याद में एक ताजमहल बनाने का ख्याल आया। रोन कहते हैं कि वे करोड़ों रुपए खर्च कर भी एन को इससे अच्छी श्रद्धाजंलि नहीं दे सकते थे। अगले हफ्ते फिर मिलेंगे .. नमस्कार |
एक छोटी लड़की और उसके पिता एक संकरा सा पुल पार कर रहे थे. पिता को अपनी बेटी की चिंता थी सो बोले नन्ही जान तुम मेरा हाथ पकड़ लो , ताकि तुम नदी में न गिर जाओ. इस पर उस छोटी सी लड़की, ने कहा , "नहीं, पिताजी. आप मेरा हाथ पकड़ लो.." उसके पिता ने उसकी बात सुन कर अपनी उलझन दूर करने को पूछा "क्या फर्क पड़ता है?" मै तुम्हारा हाथ पकडू या तुम मेरा पकडो? "वहाँ एक बहुत बड़ा अंतर है," छोटी लड़की ने जवाब दिया. अगर मैं आपका हाथ पकड़ती हूँ , और अगर कुछ हो जाता है तो सम्भावना है की मै आपका हाथ छोड़ दूँ और पुल से नीचे गिर जाऊँ. लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़, मुझे यकीन है कुछ भी अनहोनी हो जाये आप किसी भी हालत में मेरा हाथ नहीं छोडेंगे. कहानी का नैतिक मूल्य किसी भी रिश्ते में विश्वास की सीमा इसके बांधने मे, बल्कि इसके बंधन में है. इसलिए ऐसे इंसान का हाथ थाम लो जो तुम्हे प्यार करता हो, बजाये इस उम्मीद के की वो आकर तुम्हारा हाथ थामे. यह संदेश बहुत छोटा सही ..... लेकिन भावनाओं का एक बहुत बडा सागर वहन करता है |
उत्तराखंड की लोक संस्कृति में संगीत का एक अहम स्थान रहा है। यहां के लोक गीत, लोक गाथायें, वाद्य, नृत्य इत्यादि यहां के जीवन का अभिन्न अंग हैं। इन लोक गीत को जब यहां के परम्परागत वाद्यों हुड़का, बादी, औजी, मिरासी, डौर-थाली आदि के तान के साथ जब गाया जाता है तो अद्भुद समां बंध जाता है। यह लोकगीत जीवन के हर पहलू से जुड़े हुए हैं इसी आधार पर इनको कुछ भागों में विभाजित किया जा सकता है जैसे - संस्कार गीत, धार्मिक गीत, ऋतु गीत इत्यादि। इन्हीं में से एक हैं संस्कार गीत। संस्कार गीतों में प्रमुख हैं शकुनाखर। इन गीतों को प्रत्येक शुभ कार्य जैसे - विवाह, जन्मोत्सवों, जनेउ तथा अन्य प्रकार के सभी शुभ कार्यों से पहले गाया जाता है। शकुनाखर का तात्पर्य होता है 'शगुन के अक्षर'। इन्हें गाने वाली ज्यादातर महिलायें ही होती हैं। इन शकुनाखरों में से कुछ इस प्रकार हैं शकुना दे शकुना दे काज ए अति नीको सो, रंगीलो, आंचलो कमलो का फूल सोई फूल मोलावन्त व गणेश, रामीचन्द्र, लछीमन, जीवा जनम आधा अमरू होय। सोई पाटो पैरी रैणा, सिद्धि बुद्धि सीता देवी बहुराणी, आयुवन्ती पुत्रवंती होय। अर्थात : शकुन के अक्षरों से शुभ कार्य की शुरूआत हो, इस रंगीले कपड़े के आंचल में कमल का फूल है, जिसके फलस्वरूप गणेश, राम, लक्ष्मण आदि अमरता की प्रतीक हैं। वही पट नई दुल्हन तुमने भी धारण किया है अत: तुम सीता की तरह सिद्धि बुद्धि आयुष्मती एवं पुत्रवती होओ। इसी प्रकार जब प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती है तो उससे पहले मांगल गीत गाये जाते हैं जैसे - जो जस देने कुर्म देवता, जो जस देने धरती माता। जो जस देने खोली का गणेश, जो जस देने मोरी को नारैण जो जस देने भूमि को भुग्याल, जो जस देने पंचनाम देवता जो जस देने पितर देवता तुमारी भाती मा यो कारिज वीर्यो, यो कारिज सुफल फल्यान अर्थात : हे कुर्म देवता, धरती माता, गणेश देवता, नारायण देव, भूमि के दवेता, भुग्याल एवं पंचदेव, हे सभी पितृदेव, यह कार्य आपको ही समर्पित है आप ही इस कार्य को सफल करें। इसी प्रकार अग्नि एवं गणपति के लिये भी गीत गाये जाते हैं। यह गीत यहां की जीवनधारा में रचे बसे हुए हैं जिन्हें आज भी इनके मूल रूप में ही गाया जाता है। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
अरे हीरू….. हां ..हां…बोल पीरू…क्या होगया? अरे यार मुझे नही हुआ है..ये देख जरा काजलकुमार अंकल को क्या होगया है? अबे बता तो सही…..अब मैं क्या बताऊं? तू खुद ही इनकी टिपणी पढ ले ना..
अरे हां यार ..अंकल तो पता नही कहां कहां से ऐसी मजेदार बाते खोज कर ले आते हैं? अब और कोई भी है आज मजेदार टिपणी कि चले अब पिक्चर देखने?
अरे यार एक मिनट..जरा एक मिनट ठहर..ये देख जरा..शाश्त्री अंकल को क्या हो गया?
अरे यार जल्दी बता..यार..पिक्चर शुरु हो जायेगी..फ़िर देखने मे मजा नही आयेगा.. अरे देख देख..जरा शाश्त्री अंकल मलेरिया से कांप रहे हैं और पता नही क्या…चिट्ठा बेचने की बात कर रहे हैं? देख..जरा..देख..आंटी को भी डरा रहे हैं.
देखूं जरा..जरा क्या बीमारी है?
चल यार हीरू..जल्दी चल..पिक्चर शुरु हो जायेगी..
हां हां..यार पीरू चल जल्दी निकल ले..अगर कहीं रामप्यारी को पता लग गया कि हम पिक्चर देखने जा रहे हैं तो वो भी पीछे पड जायेगी..
हां यार चल….. |
ट्रेलर : - पढिये : डा. मनोज मिश्र से अंतरंग बातचीत
ट्रेलर
ताऊ की एक अंतरंग मुलाकात डा. मनोज मिश्र से. ताऊ : चलिये डाक्टर साहब, आप भी क्या याद रखेंगे, हम आपको याद दिलाते हैं. हमने सुना है है कि आप एक बार भूत बन गये थे? डा. मनोज मिश्र : अरे ताऊ जी, ये आपको किसने बता दिया? ताऊ : आज की इस राजनिती के बारे मे आपका क्या सोच है? डा. मनोज मिश्र : ताऊ जी, कोइ बहुत उत्साह जनक माहोल तो नही है. हम जिस प्रदेश में हैं वहाँ राजनीति में फिलहाल ऐसा अनुकरणीय कुछ नहीं हो रहा है कि जिसकी चर्चा की जाय .फिलहाल तो येन -केन -प्रकारेण कुर्सी हथियाओ, यही मूल मंत्र बन गया है राजनीति का .
और भी बहुत कुछ अंतरंग बातें…..पहली बार..खुद डा. मनोज मिश्र (मा पलायनम) की जबानी…इंतजार की घडियां खत्म…..आते गुरुवार १८ जून को मिलिये हमारे चहेते मेहमान से. |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
पत्रिका क्या है ताऊ ये तो जानकारी का खजाना है...कितनी ही झोली भर लो ख़तम ही ना होता...आप हमारा ज्ञान बढा रहे हो
ReplyDeleteउसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद...इतने पढ़े लिखे लोग आपके साथ जुड़े हैं की क्या बताएं...
नीरज
सीमा जी की कहानी का जवाब नहीं होता...
ReplyDeleteसुंदर....
मीत
ताऊ..
ReplyDeleteआज हम क्या कमेंट करते.. आपने पहले ही कमेंट की summary पेश कर दी..
"आज के अंक मे "सलाह उडनतश्तरी की" मे समीर जी ने फ़िर आज बहुत ही ज्ञानदायक सलाह दी है.
और हमेशा की तरह "मेरा पन्ना" में सु. अल्पना वर्मा ने गोवा के बारे मे निहायत ही खूबसूरत और उपयोगी जानकारी दी है.
"दुनिया मेरी नजर से" में आशीष खंडेलवाल एक मनोरंजक जानकारी दे रहे हैं.
और "मेरी कलम से" में सु सीमा जी ने विश्वास और भरोसे को कायम रखने का फ़ार्मुला एक बहुत ही छोटी और खूबसूरत कहानी से बताया है.
अबकी बार "हमारा अनोखा भारत" मे सु. विनीता यशश्वी आपको कुमाऊं के लोकगीतों से सराबोर कर रही हैं."
अब आप बताओ आपने हमारे कहने के लिये क्या छोड़ा..
फिर भी हम कह देते हैं..
१. समीर भाई ने बहुत सामयिक बात की है.."सभी के पास कुछ न कुछ अच्छा बाँटने लायक एवं सीखने योग्य कुछ न कुछ जरुर होता है, बस खुले मन से और खुली नजर से उसे देखें.’
२. "महाभारत में जिस गोपराष्ट्र [ गायों को चराने वाला क्षेत्र ]का उल्लेख मिलता है वही तो है गोवा!" ये तो बिल्कुल नई ताजा जानकारी है.. हम तो ये सोचे कि गोआ लोग बियर पीने ही जाते हैं..
३. आशिष जी.. माचिस की तिलियों से ताज बनाया.. ्बहुत मेहनत की है.. हमारे लिये भी कोई आइडिया दे दो भाई..:)
४. वि्निता जी का शुक्रिया....(गीत में थोड़ा हाथ तंग ्हैं.. ज्यादा नहीं कह पायेगें..)
राम राम!!
बहुत सुंदर अंक हर बार की तरह
ReplyDeleteसभी आर्टिकल एक से बढकर एक हैं.
ReplyDeleteआज भी पूरे निखार के साथ है आपकी पत्रिका. सभी को बधाई.
ReplyDeleteताऊ कैसे अरेंज करते हो इतना सब? बहुत सुंदरता लिये हुये है यह अंक भी.
ReplyDeletetaau bahut badhia
ReplyDeletetaau bahut badhia
ReplyDeletebahut jabardast ank hai taau
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारीयुक्त पत्रिका, गोवा के बारे मे विशेष रुप से नई बाअते मालूम पडी.
ReplyDeleteउड़न तश्तरी की बात पर ध्यान दिया जाय.
ReplyDeleteपत्रिका का यह अंक भी ज्ञानवर्धक अंक है...
ReplyDeleteसमीर जी की यह सलाह भी बहुत ही महत्वपूर्ण है.
काजल जी की टिप्पणी से भी सीखा कि ऐसे जंगले दिखें तो समझ लें की इमारत पर पुरातत्व विभाग का कब्ज़ा है.
आभार
बहुत आकर्षक है पत्रिका का यह अंक. एक एक सामग्री जैसे जानकारी का खजाना है... आपको इतना अच्चा पत्रिका का अंक तैयार करने के लिए ढेर सारी बधाई .....
ReplyDeleteजितना मनोरंजन, उससे भी ज्यादा जानकारी है इस पत्रिका में. गोवा की इन गुफाओं के बारे में पहली बार पता चला और गोवा के पौराणिक नाम के बारे में भी.
ReplyDeleteशुक्रिया ताऊ.
हमेशा की तरह यह अंक भी ज्ञान वर्धक | ताऊ सहित सभी ज्ञान दाताओं का आभार |
ReplyDeleteपत्रिका का ये अंक भी हर अंक की तरह मज़ेदार है।
ReplyDeleteहर बार की तरह ज्ञानवर्धक व रोचक । मनोज मिश्र जी का परिचयनामा प्रतीक्षित । धन्यवाद ।
ReplyDeleteताऊ राम राम........... ये कोई पत्रिका नहीं.........हीरों का खजाना है.......... लाजवाब, मजेदार, समीर भाई, अल्पना जी, सीमा जी और सब का शुक्रिया ...........
ReplyDeleteसमीर जी की बात को हृदयंगम करना होगा क्योंकि उनकी हथेली में सचमुच ही आसमान है. अर्वलम गुफाओं के बारे में हमें सचमुच पता नहीं था. अल्पना जी ने बहुत ही सुन्दर तरीके से इन गुफाओं के बारे में और गोवा के कुछ नायब जानकारियां प्रदान की हैं. संत काटेजान चर्च के प्रवेशद्वार की जानकारी भी नयी थी. आशीष जी ने तीलियों से ताजमहल की बात बताई.सीमा जी स्वस्थ होकर लौटी हैं इसलिए हाथ थामे रखने की बात बताई. इस कहानी को हमने महीनों पहले अपने ब्लॉग पर भी डाला था. विनीता जी से शिकायत है. यदि ये लोकगीत ऑडियो फॉर्मेट में उपलब्ध करातीं या डाउनलोड लिंक देतीं तो मजा आ जाता.सबका आभार.
ReplyDeleteअरे ताऊ यह तो बहुत ही ज्ञानवर्धक अंक है, भाई धन्यवाद, आप का ओर आप की सारी टीम का, ओर इस प्यारी प्यारी रामप्यारी जी का भी
ReplyDeleteआपका हर अंक नवीनता लिए है ,बधाई .
ReplyDeleteताऊ जी, आपने तो लोगों को इस पत्रिका का आदी(नशेडी)बना दिया है। मुझे तो भविष्य के आसार भी पूरी तरह से स्पष्ट नजर आ रहे है. क्छेक समय बाद जरूर ये पत्रिका मासिक/त्रैमासिक/वार्षिक सदस्यता शुल्क देकर ही पढने को मिला करेगी। आपसे एक विनती है कि कृ्प्या हमारे जैसे गरीब पाठकों पर रहम करके शुल्क थोडा कम ही रखना..:)।
ReplyDeleteताऊ पत्रिका पढ़कर बहुत सी अच्छी बातों की जानकारी मिलती है
ReplyDeleteसारे स्तंभकारों को हार्दिक बधाई
- लावण्या
ओह, में तो आज का अंक पढ़ने से रह ही गया था.... आपने सही लिखा "इस दुनियां में सवाल और जवाब दोनों ही बेतुके से लगते हैं. कही कोई संबंध नही है..फ़िर भी सवाल हल हो जाते हैं." :--) इस शनिवार का सवाल भी हल हो ही गया :--)) मास्टर जी के सवाल ही की तरह, हंसते खेलते.
ReplyDeleteमेरे विचार से अल्पना जी की सहनशीलता की परीक्षा ही हो जाती है, सामग्री जुटाते- जुटाते. उनके इस अथक परिश्रम को नमन. बहुत मेहनत और लगन से हमारे लिए इतनी सुंदर ओर सुरुचिपूर्ण जानकारी एकत्रित कर प्रस्तुत करती हैं.
सीमा जी और विनीता जी की प्रतुतियों के लिए भी आभार. इस बार भाई आशीष जी बहुत बढ़िया खबर लाये जिसे मेरे जैसे पाठक सुब्रमनियन जी के ब्लॉग पर देखने से चूक गए थे . समीर जी के बारे में तो कुछ लिखते ही नहीं बनता, वो तो हम सब के बीच एक खुली किताब हैं जिसका शीर्षक तो हास्य व्यंग्य है पर घाव गंभीर छोड़ते हैं, धीरे से.
शास्त्री जी का हिंदी समर्थक नारा अच्छा लगता है, मैंने विण्डो लाइव राईटर के प्रयोग के बारे में पहली बार, शास्त्री जी के यूट्यूब पर मिले विडियो को देखकर ही सोचा था. उनका विशेष आभार. शास्त्री जी वास्तव में ही बहुत शुद्ध और सहजता से हिंदी बोलते हैं. उन्हें सुनना मन को सुहाता है.
और आपको बहुत बहुत साधुवाद, इतने गुणी लोगों को एकसाथ इकठ्ठा कर निरंतर, निर्बाध और सुन्दर प्रस्तुतियां देने के लिए, पहेली तो एक महज एक बहाना रह गयी है अब.
taau thaaree patrikaa kaa to jawaab koi na..par yo billan na kehtee deekh rahi is maa ..kit vyast see vaa....ram ram..
ReplyDeleteसीमा जी कहानी बहुत अच्छी लगी और मनोज मिश्र जी इंटरव्यू शानदार रहा। अभी फिलहाल इतना ही पढा है, बाकी समय मिलने पर ही पढ पाउंगा।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ज्ञानवर्धक पत्रिका प्रकाशन के लिए ताऊ को बधाई।
ReplyDelete@Science Bloggers Association आपने डा. मनोज मिश्र जी का ईंटर्व्यु कहां पढ लिया? ये तो शायद गुरुवार को पब्लिश होगा?:)
ReplyDeletebahut upyogi ank hai. gova ke bare me nai janakari mili
ReplyDeleteबहुरंगी पत्रिका है आपकी. शुभकामनाएं सभी को.
ReplyDeleteपत्रिका तो निसंदेह ही बहुत बेहतरीन है पर इसमे एक कालम रामप्यारी का भी होना चाहिये.
ReplyDeleteमैं पूरे संपादक मंडल से अनुरोध करुंगा और कृपया आप इसे सकारात्मक रुप से लें.
रामप्यारी के स्तंभ बिना ये पत्रिका क्या कुछ अधूरी सी नही लगती? या शायद हमको रामप्यारी की शरारतें और उसका चटर पटर करते रहना ज्यादा लुभाने लगा है.
आप सभी से अनुरोध है कि हमारी बात पर विचार किया जाये.
gyaan badhane ka aabhar ...
ReplyDeletegyaan badhane ka aabhar ...
ReplyDeleteआपको और सम्पादन मंडल को हार्दिक शुभकामना....
ReplyDeleteरोचक और ज्ञानवर्धक.
ReplyDeleteखूब दमक रहा है, ताऊ डॉट इन.
ReplyDeleteबधाई.
उड़न तश्तरी भी साक्षात् उतर रही है आकाश मार्ग से.
आप यह पोस्ट में अलग - अलग रंग वाले जो स्क्रोलिंग पोस्ट लगाए हैं, उनकी विधि बताएँगे क्या मुझे ?
ReplyDeleteपत्रिका का एक और अंक विलंब से पढ़ने आया....रोचकता बढ़ती हुई!
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