आज हम आपको मिलवा रहे हैं श्री हिमांशु से. जो अपने शानदार लेखन की वजह से युं तो किसी परिचय के मोहताज नही हैं पर ताऊ ने उनसे एक अंतरंग बातचीत मे उनके जीवन से संबंधित घटनाओं को जाना और अब आपको भी उनसे रुबरु करवाते हैं. उन दोनों के मध्य हुई बातचीत आपके लिये ऐसे की ऐसे ही प्रस्तुत है.
ताऊ : आप कहां के रहने वाले हैं?
हिमांशु : : उत्तर प्रदेश का एक छोटा जिला है बनारस के पास, चन्दौली । इसी जिले के एक कस्बे सकलडीहा में रहता हूँ ।
ताऊ : आप मूलत: भी यहीं के रहने वाले हैं?
हिमांशु : हां ताऊजी, मैं मूलतः रहने वाला भी चन्दौली जिले का ही हूँ, पर वह स्थान सकलडीहा से लगभग ३० किमी पश्चिम में है । पिता जी सकलडीहा में सन १९७३ में अंग्रेजी के प्राध्यापक हुए, तब से नियमित सकलडीहा में ही रहना हुआ ।
ताऊ : यानि आपका जन्मस्थान भी यही है?
हिमांशु : जी आप ठीक कह रहे हैं. मेरा तो जन्म भी यहीं हुआ ।
ताऊ : कुछ आपकी पढाई के बारे में बताईये.
हिमांशु : ताऊजी , इण्टर तक पढ़ाई भी यहीं सकलडीहा में ही हुई । स्नातक, स्नातकोत्तर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से किया । बाद में हिन्दी से स्नातकोत्तर पॉण्डिचेरी वि०वि० से दूरस्थ शिक्षा से करने के बाद 'NET' परीक्षा उत्तीर्ण की ।
ताऊ : आप करते क्या हैं?
हिमांशु : अभी स्थानीय सकलडीहा पी०जी० कॉलेज में हिन्दी पढ़ाता हूँ ।
ताऊ : हमने सुना है कि किसी लडकी ने आपका नाम ले दिया और उसका बाप आपके घर आ धमका?
हिमांशु : मैं घबरा गया था ।
ताऊ : फ़िर आगे क्या हुआ?
हिमांशु : बडी अजीब सी घटना है । एक लड़की थी हमारे कस्बे में । मेरी जान पहचान नहीं थी उससे । एक दिन सुबह-सुबह उसका पिता मेरे घर आया । उन्होंने कहा कि उनकी बेटी ने आज बीमारी में थोड़ी देर पहले चेतना आने पर मेरा नाम लिया था, इसलिये मैं उसके पास चलूँ जिससे शायद दो तीन दिनों से चेतना शून्य उनकी बेटी को कुछ राहत मिले ।
ताऊ : फ़िर क्या उसे आराम हुआ?
हिमांशु : हां उनके दुबारा कहने पर उनके घर पहुँचा । सम्पूर्ण चेतना में थी वह । फिर उसने अपनी परेशानियाँ मुझसे कहनी शुरु कीं, मैं सुनता गया और उसे ढाँढस देता रहा.
ताऊ : ढाढस देता रहा..इसका क्या मतलब? आप तो कह रहे हैं कि आप पुर्व परिचित नही थे?
हिंमाशु : हां ताऊ जी, पर सब कुछ ऐसे घट रहा था जैसे मैं पूर्व-परिचित हूँ । कुछ दिनों में वह ठीक हो गयी । आज तक मेरा उसका मित्रवत सम्बन्ध कायम है । वह सुबह आज तक न भूलने वाली सुबह बन गयी मेरे लिये । आखिर उस सुबह ने ही मुझे एक सलोनी बहन और खूबसूरत दोस्त से मिला दिया था ।
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
हिमांशु : : कवितायें लिखना -पढ़ना, गजलें सुनना (खासकर जगजीत सिंह की )। शौक तो नहीं, पर किसी को जानबूझकर नाराज करने का प्रयत्न और फिर उससे मान जाने की मनुहार करना अच्छा लगता है ।
ताऊ : सख्त ना पसंद क्या है?
हिमांशु : घृणा, किसी भी रूप में किसी से भी । एक और नापसंद- किसी के द्वारा किसी भी व्यक्तित्व का निरादर है । 'रिचर' की बात हमेशा मन में रहती है - "Individuality is every where to be spared and respected as the root of every thing good."
ताऊ : पसंद क्या है?
हिमांशु : : जाहिर है प्रेम ! प्रेम ही तो जोड़ता है, संयुक्त करता है ।
ताऊ : कोई ऐसी बात जो आप पाठको से कहना चाहें.
हिमांशु : : कुछ और क्या ? बस इतना ही कि बहुत आनन्द है इस संसार में बहुत सौन्दर्य है, काश, हमारे पास देखने वाली आँखें और ग्रहण करने वाला हृदय हो !
ताऊ : हमने सुना है कि आपको किसी लडकी ने पीट दिया था और आपकी अंगुली भी तोड दी थी?
हिमांशु : अरे ताऊ जी, आपकी जासूसी करने वाली आदत नही गई.
ताऊ : जासुसी नही, हम तो बस पूछ रहे हैं कि ये बात सही है या लोग बाग युं ही मजे लेते हैं आपके?
हिमांशु : बात तो ताऊजी ये बिल्कुल सही है. हुआ ये कि मैं तीसरी कक्षा में किसी तरह पढ़ने गया. बडी मुश्किल से और वो भी बाबूजी की काफी जद्दोजहद के बाद ।
ताऊ : जी , हम सुन रहे हैं आगे बताईये.
हिमांशु : बताना क्या है? बस तीसरा ही दिन था । कक्षा की मॉनिटर एक लड़की ने बात-बेबात पीट दिया । दाहिने हाँथ की एक उँगली टूट गयी ।
ताऊ : अच्छा ये बात थी. फ़िर भी आप की अक्ल ठीकाने लग गई होगी? और पढना शुरु कर दिये होंगे?
हिमांशु : ना ताऊजी. फ़िर मैं उस स्कूल मे नही पढा. मैंने फिर वो स्कूल ही छोड़ दिया ।
ताऊ : उस लडकी की शक्ल अब भी याद होगी?
हिमांशु : जी ताऊ जी. अब भी वो घटना और वो लडकी भी याद है ।
ताऊ : फ़िर आपकी पढाई कब शुरु हुई?
हिमांशु : बाद में छठी कक्षा से विधिवत पढ़ाई शुरु हुई ।
ताऊ : आप चंदौली के कौन से गांव के रहने वाले हैं? और वहां की कोई विशेष बात ?
हिमांशु : ताऊ जी, मूलतः तो गाँव से ही हूँ । चन्दौली जिले का ही एक गाँव - भटपुरवा । चन्द्रप्रभा नदी के किनारे । कहते हैं जहाँ भट अर्थात विद्वान रहते हों उस स्थान का नाम भटपुरवा है । यह एक छोटा सा गाँव है जहाँ आज भी कुल मिलाकर लगभग पचास घर होंगे । केवल ब्राहमणों और हरिजनों की बस्ती ।
ताऊ : आपको संयुक्त परिवार मे रहना कैसा लगता है?
हिमांशु : हां हमारा संयुक्त परिवार ही है । और एक छत के नीचे सहभाव के साथ रहना बेहतर है । हर एक की खुशी अपनी, हर एक का दुख अपना ।
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
हिमांशु : भावजगत के स्वातंत्र्य को अभिव्यक्ति देता यह माध्यम निश्चय ही उज्ज्वल भविष्य के प्रति उन्मुख है । अत्यन्त मनोहारी है इस चिट्ठाजगत का भविष्य जहाँ साहित्य की सीमाओं से परे सर्जित सहित्य अपनी पूरी स्वाभाविकता में व्यक्त हो रहा होगा ।
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग कर रहे मे हैं? आपके अनुभव बताईये? आपका ब्लागिंग मे आना कैसे हुआ?
हिमांशु : सितम्बर २००८ से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ । इस भाव से ही कि " न बचा बचा के तू रख इसे / तेरा आइना है वो आइना / कि शिकस्ता हो तो अजीजतर / है निगाहे आइना साज में ।"
ताऊ : ब्लागिंग मे कोई लेके आया या स्वत: ही? मेरा मतलब कि क्या किसी से प्रभावित होकर आये?
हिंमाशु : ताऊ जी, मैं रवीश जी की ब्लॉग वार्ता पढ़ता था हिन्दुस्तान में । देखता था इस व्लॉग जगत का सौन्दर्य । आँखें मुचमुचाता था, कि कहीं और भी कुछ अभिव्यक्त हो रहा है जो मूल्यवान है । सो पहले पहले तो गुदगुदाया रवीश जी ने ही ।
ताऊ : फ़िर बाद में?
हिमांशु : बस बाद मे चिट्ठा बन गया, तो मुग्धता ने आ घेरा । भला हो "अरविन्द' जी का कि उनकी थपथपाहट से चिट्ठाकारी को क्वचिदन्यतोअपि समझता यह मन ठहर गया यहाँ । 'रचनाकार' को सबसे पहले फॉलो किया । जाहिर है इस अकेले चिट्ठे ने शुरु में मुझे आगे बढ़ने की राह दी ।
ताऊ : आप खुद का लेखन किस दिशा मे पाते हैं?
हिमांशु : : " खुद में महसूस हो रहा है जो
खुद से बाहर तलाश है उसकी ।"
अपनी महसूसियत को पहचानने की कोशिश में ही लिख गया सब कुछ - कविता हो या गद्य ।
खुद से बाहर तलाश है उसकी ।"
अपनी महसूसियत को पहचानने की कोशिश में ही लिख गया सब कुछ - कविता हो या गद्य ।
ताऊ : क्या आप राजनिती मे रुची रखते हैं?
हिमांशु : थोड़ी-थोड़ी । यदि द्विवेदी जी की तरह किसी ने जनतन्तर कथा शुरु में सुना दी होती, तो रुचि अपने आप हो जाती । राजनीति सम्बन्धित प्रविष्टि का इससे सुन्दर,प्रभावी और मनोहारी रूप आप नहीं देख सकते । मैं सम्मोहित हूँ ।
ताऊ : आपकी पहली ही संतान पिछले माह ही आई है छुटकी? कैसा अनुभव लग रहा है पिता बनने पर?
हिमांशु : हां, ये छुटकी पिछले ही महीने तो आयी है जीवन में । अभी तो निरख ही रहा हूँ उसे । और क्या कहुं? बस भाव विभोर हुं.
ताऊ : आपकी जीवन संगिनी के बारे मे क्या कहना चाहेंगे? कैसी हैं वो?
हिमांशु : बस एकदम प्यारी-सी ।
ताऊ : वो क्या करती हैं?
हिमांशु : वो पढ़ाती हैं कस्बे से थोड़ी ही दूर प्राइमरी स्कूल में । उन्हीं बच्चों-सा समझती हैं मुझे भी । मैं भी सोचता हूँ - मैं बच्चा ही अच्छा ।
ताऊ : हमारे पाठको से क्या कहना चाहेंगे?
हिमांशु : : अपने जैसे लोगों से ही कहूँगा :
"मत रुको कि तुम्हारे श्रम से कोई खुशी फलेगी
तुम्हीं रुक जाओगे तो दुनिया कैसे चलेगी !"
ताऊ : आप ताऊ पहेली के बारे मे क्या कहना चाहेंगे?
हिमांशु : ताऊ पहेली के बारे में कहना कम, समझना ज्यादा है । ताऊ पहेली अग्रधर्मा है । लीक बनाती है । इस पहेली ने ही ब्लॉग जगत को पहेली मय कर दिया है । अपने ढंग की पहली पहेली है यह । यह लोकप्रियता का मानदंड खड़ा करती है और रोचकता तो इसका प्रस्थान बिन्दु ही है । एक और बात जो इसे विशिष्ट बनाती है, वह है प्रतिबद्धता ।
ताऊ : अक्सर लोग पूछते हैं ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगे?
हिमांशु : ताऊ कौन? प्रश्न के उत्तर में उतना आनन्द नहीं बल्कि इसका सम्पूर्ण आनन्द तो मात्र प्रश्न किये जाने में है; उत्सुकता की जो अंतहीन कड़ियाँ हैं, उनको प्रश्न-प्रहारों से झनझनाने में ही है । "एक सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" (अर्थात उसी एक को विद्वान अनेक नामों से पुकारते हैं )- को अकेला नाम क्या दूँ ? ताऊ-पन का आत्मबोध ही ताऊ का परिचय है ।
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आपके क्या विचार हैं?
हिमांशु : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका एक उत्कृष्टतम प्रस्तुति है । पहेली से इसका जुड़ाव इसे और भी महत्वपूर्ण बना देता है । पाठक तक पहुँचकर उसके भीतर तक अपनी पैठ बना लेना और पैठ भी ऐसी कि दूसरा पैठने न पाये- इस पत्रिका का परिचय है । ताऊ के साथ-साथ अन्य सधे हुए हाँथों से निरन्तर निखर रही है यह पत्रिका । इसका बहुआयामी कलेवर बहुत लुभाता है मुझे । इसकी निरन्तर उत्कृष्टता की शुभकामनायें ।
और अब एक सवाल ताऊ से जवाब ताऊ का : हां कुछ हद तक मनोरंजन के लिये रचे गये पर आप इनकी बात ध्यान से पढेंगे तो तगडी मार करते हैं. सवाल हिमांशु का : कौन-सी मनोभूमि ने इन चरित्रों का निर्माण करने को आपको प्रेरित किया ? जवाब ताऊ का : कोई विशिष्ट मनोभूमी नही बल्कि मैं अपने आपको इनके ज्यादा नजदीक पाता हूं. अरुणाचल के सघन जंगलों मे खूब घूमा हूं तो वन्य जीवन और पशु पक्षियों से ज्यादा लगाव होगया. या यूं कह लिजिये कि मैं अपने आपको इन पशु पक्षियों के माध्यम से भली प्रकार अभिव्यक्त कर लेता हूं. ये मुझे संगी साथी जैसे लगते हैं. |
ताऊ : भाई हिमांशुजी, हमने सुना है कि आप कविताओं मे भी आपको महारत हासिल है? हम चाहेंगे कि हमारे पाठकों को अब अंत में आप अपनी कोई कविता सुनायें.
हिमांशु : ताऊ जी , बस सब ईश्वर की और आप लोगों की कृपा है. अब आप कह ही रहे हैं तो यह कविता सुनिये.
दुर्घटना
एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
यह सम्भावी था क्योंकि
इसे लिखा था एक आज के कवि ने
जो आज का होकर भी
कल ही का था
और जिसे रोका था
उसकी बुद्धि ने बार-बार
परन्तु हृदय के हाथों होकर लाचार
राजी हो गया था वह
कृति को यात्रा में अकेली छोड़ देने के लिए।
अब अकेली थी इसलिए
एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
चलते समय टोका था कवि ने कृति को
कि अभी छपी नहीं किसी पत्रिका-
समाचार पत्र में तुम्हारी समीक्षा
अजानी हो तुम अभी
तो धकिया दी जाओगी तुम कहीं
कठिन हो जाएगी पहचान भी तुम्हारी
विमोचित भी तो नहीं हुई हो
किसी मंच पर
अत: योग्य कहाँ हो अभी यात्रा के?
पर मानिनी
मान न सकी
एक संभावना, योग्यता, गुण-रूप का
सम्बल समेटे चली
पर धूल-धूसरित होना जैसे उसकी नियति थी
इसलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
उस कृति को यह भी कहाँ पता था
कि इस समाजवाद में जिसमें सबका
कोई न कोई समाज है
व्यक्तिवाद कहाँ है?
तो स्थिति विज्ञेय की है
अज्ञेय की नहीं जो
अकेली होकर भी रहती है विशिष्ट
तो इसलिए उसने बनाया न कोई संगी न साथी
और न किसी समाज
या खेमे से जुड़ी
और ऐसा करते समय
उसने सोचा भी न होगा
कि जो भी होता है समाज से विद्रोही
हो जाती है कोई न कोई
दुर्घटना उसके साथ
संभवत: इसीलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
उसने सोचा होगा
कि अनास्था के तिमिरावरण में भी
आस्था होगी उद्भासित
सत्य और सुन्दर का
स्थापक पूजित होगा कवि
और रचना की योग्यता होगी तुला
स्थापना की, ग्राह्यता की
पर चूँकि इस कठिन समय में
उसने सोचा होगा ऐसा
इसलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
तो यह थी श्री हिमांशु से ताऊ की बातचीत. आपको कैसी लगी? अवश्य बताईयेगा.
यह सम्भावी था क्योंकि
इसे लिखा था एक आज के कवि ने
जो आज का होकर भी
कल ही का था
और जिसे रोका था
उसकी बुद्धि ने बार-बार
परन्तु हृदय के हाथों होकर लाचार
राजी हो गया था वह
कृति को यात्रा में अकेली छोड़ देने के लिए।
अब अकेली थी इसलिए
एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
चलते समय टोका था कवि ने कृति को
कि अभी छपी नहीं किसी पत्रिका-
समाचार पत्र में तुम्हारी समीक्षा
अजानी हो तुम अभी
तो धकिया दी जाओगी तुम कहीं
कठिन हो जाएगी पहचान भी तुम्हारी
विमोचित भी तो नहीं हुई हो
किसी मंच पर
अत: योग्य कहाँ हो अभी यात्रा के?
पर मानिनी
मान न सकी
एक संभावना, योग्यता, गुण-रूप का
सम्बल समेटे चली
पर धूल-धूसरित होना जैसे उसकी नियति थी
इसलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
उस कृति को यह भी कहाँ पता था
कि इस समाजवाद में जिसमें सबका
कोई न कोई समाज है
व्यक्तिवाद कहाँ है?
तो स्थिति विज्ञेय की है
अज्ञेय की नहीं जो
अकेली होकर भी रहती है विशिष्ट
तो इसलिए उसने बनाया न कोई संगी न साथी
और न किसी समाज
या खेमे से जुड़ी
और ऐसा करते समय
उसने सोचा भी न होगा
कि जो भी होता है समाज से विद्रोही
हो जाती है कोई न कोई
दुर्घटना उसके साथ
संभवत: इसीलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
उसने सोचा होगा
कि अनास्था के तिमिरावरण में भी
आस्था होगी उद्भासित
सत्य और सुन्दर का
स्थापक पूजित होगा कवि
और रचना की योग्यता होगी तुला
स्थापना की, ग्राह्यता की
पर चूँकि इस कठिन समय में
उसने सोचा होगा ऐसा
इसलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
तो यह थी श्री हिमांशु से ताऊ की बातचीत. आपको कैसी लगी? अवश्य बताईयेगा.
प्रश्न यहाँ बेहतर लगे अच्छा लगा जबाब।
ReplyDeleteहिमांशु के संग में ताऊ लाजबाब।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ताऊ हिमांशु जी से मिलवाने के लिए आभार !
ReplyDeleteताउजी .. सवालों से बेहतर जवाब लगे ..और कविता ..दुर्घटना.. उससे से भी बेहतर .. बिलकुल दिल के करीब!!
ReplyDeleteहम तो ताऊ के बारे में कुछ जानने की आस भी लगा बैठे थे!!
ताऊ आपका बहुत आभार एक कवि हृदय व्यक्ति से मिलवाने के लिये
ReplyDeleteआप हर सप्ताह ही एक नई सखशियत से मिलवाते हो यह बहुत अच्छा काम करते हो.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर सवाल और जवाब. आभार आप दोनों का.
ReplyDeleteबहुत बढिया लगा हिमांशुजी के बारे मे जानकर. छुटकी बहुत प्यारी लगी. प्यार.
ReplyDeleteबहुत उम्दा रहा यह साक्षात्कार. धन्यवाद आपको.
ReplyDeleteबहुत उम्दा रहा यह साक्षात्कार. धन्यवाद आपको.
ReplyDeleteहिमांशुजी से मिलवाकर बढिया किया ताऊ. इस तरह से आपस मे पहचान बढती ही जारही है.आपका यह मिशन कामयाब हो. बहुत सुंदर इंटर्व्यु.
ReplyDeleteसुन्दर! वो कक्षा ३ वाली कन्या का कुछ अता-पता मिलता जो मानीटर थी हिमांशु की तो मजे आते!
ReplyDeletebahut sundar aur umda.
ReplyDeleteहिमांशु जी से मिलना सुखद रहा और उतना ही सुखद उनकी कविता से मिलना भी।
ReplyDeleteहिमांशु के लेखन का शब्द संयोजन मुग्ध करता है। यहाँ इस साक्षात्कार में भी उन की रचनाओं का यह गुण उपस्थित है।
ReplyDeleteके ताऊ या शरीफां ब्लोग्गरान नु पकड़ लेवे है...बेचारों हिमांशु जी..सारी पोल पट्टी खोल दे तन्ने ....भाई मन्ने तो छुटकी सबसे पसंद आयी... होर थारे इन्तर्वु लेने का अंदाज भी घणा ही चोखा लगा...
ReplyDeleteताऊ इब ये क्यूँ न बताते की कौन हो भाई...कदी रामप्यारी ने ही कोई क्लू दे dee न तो हो जावेगी मुसीबत..अच्छा ताऊ ..राम राम.
हिमांशु जी से इतनी अच्छी वार्ता कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद ताऊ!
ReplyDeleteउनके ब्लॉग पर आना-जाना हुआ था तभी समझ आ गया था की बहुत संस्कारी और भले व्यक्ति हैं. आज उनकी बातें और विचार पढ़कर दिल को बहुत खुशी हुई.
चि. छुटकी बिटीया को ढेरोँ आशिष - काव्य पाठ बढिया लगा और हीमाँशु भाई से परिचय भी ताऊ जी ने एकदम बढिया करवाया
ReplyDelete- लावण्या
tau maza aagaya ...maza k aagaya....aanand aagaya .........
ReplyDeleteek saaf sutharee baat cheet k zariye aapne hyimaanshuji k vyaktitava aur krititava ko
jaanne aur samajhne ka sundar avsar diya
O TAU JI TUSEE GREAT HO
अच्छा लगा सरल और कवि हृदय हिमांशु जी के बारे मे जानकर्।वे हमारे ब्लागजगत के मज़बूत स्तंभ है।
ReplyDeleteहिमांशू से उनके ब्लोग के जरिए परिचय तो था है अब इस अंतरंग बातचीत से उनके बारे में अधिक जानकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteहिमांशु जी को और अधिक जान पाए, आपके माध्यम से. हमें तो वे गूढ़ चिन्तक लगे. .
ReplyDeleteहिमांशु जी की छुटकी बहुत प्यारी है.उस से मिल कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDelete-साक्षात्कार बहुत ही बढ़िया रहा..सुलझे हुए जवाबों से और निखर गया.
-उनकी आवाज़ में प्रस्तुत कविता ने माहौल कवितामय कर दिया.
लो जी आज भी कोई ना बता सका कि ताऊ कोण है? हिमाशुं जी से मिलकर अच्छा लगा. सरल स्वभाव के व्यक्ति लगे. हमारी बहुत बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रहा हिमांशु जी के बारे में जानना .छुटकी बहुत ही क्यूट है ..:)
ReplyDeleteहिमांशु जी को उनकी कविताओं की वजह से तो जानते ही हैं लेकिन ताऊ जी की मार्फ़त हिमांशु जी का परिचयनामा बहुत अच्छा लगा. बिटिया बहुत प्यारी है. उसको हमारा भी आर्शीवाद.
ReplyDeleteआ, ताउजी
ReplyDeleteकुछ दिनो से मुम्बई मे नही था इसलिए ताऊ पत्रिका से वन्चीत रहा।
कल आकर महाबाबा ताऊआनंद के प्रवचन को पढा मजा आ गया। आप के दिमाग कि तो दाद ही देनी पडेगी ताऊजी-
हिमांशुजी से आपकी बातचित अच्छी लगी। आप सभी को शुभकामनाऐ-
इतनी जानकारी के बाद लगता है की हम भी अब हिमांशु जी के परिचित ही
ReplyDeleteहिमाशुं और छुटकी से मिल अच्छा लगा.. बहुत प्रभावशाली व्यक्तिव के धनी है हिमांशु.. उन्हे शुभकामनाऐं..
ReplyDeleteये मुलाकात अच्छी है....
ReplyDeleteमीत
हिमांशु जी का साक्षात्कार बढ़िया रहा....
ReplyDeleteलेकिन इनकी प्यारी सी बिटिया के साथ उसकी मम्मी का चित्र क्यों नही दिखाया।
जाल-जगत पर एक और महान ब्लॉगर को प्रकाशित करने के लिए ताऊ का आभार
एवं हिमांशु जी को बधाई।
सब से पहले तो छुटकी बिटिया को प्यार, बाकी भई ताऊ आज का परिचय बहुत सुंदर लगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
Himanshu ji ko para to kai baar hai par aaj unke baare mai jaan ke achha laga...
ReplyDeleteबहुत बढिया लगा हिमांशुजी के बारे मे जानकर..
ReplyDeleteहिमांशु जी के बारे में विस्तार से जानने का अवसर मिला...धन्यवाद। बहुत पहले एक दो बार उनके ब्लाग पर जाने का अवसर मिला था, तो तभी से उनकी शुद्ध हिन्दी और शब्द संयोजन के हम तो कायल हैं। किन्तु कविताओं की हमें इतनी समझ है नहीं, इसलिए फिर कभी उनके ब्लाग पर जा नहीं पाए।
ReplyDeleteहिमांसु जी से मिलवाने का शुक्रिया ताऊ. साक्षात्कार बहुत रोचक है, पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. बिटिया बड़ी प्यारी है मेरा ढेर सारा आर्शीवाद.
ReplyDeleteबहुत achaa लगा हिमांशुजी के बारे मे जानकर............. आपका शुक्रिया नए नए लोग milte जाते हैं.......... kaarvan badhta rahta है
ReplyDeleteबातचीत को पढकर अच्छा लगा। प्यारी छुटकी को बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा हिमांशु जी के बारे में जान कर...धरती से जुड़े सीधे सरल परिवार से मिलने का अनुभव अनूठा रहा...इश्वर इस परिवार को हमेशा खुश रक्खे...चुटकी बहुत प्यारी है...सच.
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही रोचक लगी वार्ता और घरेलू भी। ताऊ जी मजा तो आया पर मैंने बहुत कोशिश की कि कविता सुन सकूं पर सुन नहीं पाया।
ReplyDeletehimanshu ji se parichaynama bahut hi achha laga,unka blog padhte hai aksar,aaj kuch mann bhi jaan liya.
ReplyDeleteताऊ जी
ReplyDeleteहिमाशु जी से चर्चा बेहद रोचक और अच्छी लगी बधाई ताऊ जी आपको
tauji aap itni sarlta se sakhatkar lete hai mano ghar me baithkar bate kar rhe ho .bhut hi bdhiya post .
ReplyDeletedhanywad.
parichay karvane ka aabhaar ...
ReplyDeleteहिमांशु जी से इतनी अच्छी वार्ता कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteदिल नही भरा.
ReplyDeleteहिमांशु जी से मिलकर बहुत अछा लगा. आपका धन्यवाद.
ReplyDeleteहिमांशुजी से मिलाना अच्छा लगा ! बहुत अच्छी रही मुलाकात.
ReplyDeleteAnand aa gaya Himanshu ji se baat Cheet padhkar.
ReplyDeleteKavita jitni gambhir hai utani hi gambhir unki awaz.
Abhi Toronto se bahar hun, atah roman me likh raha hun. Montreal me hun. Shaniwaar der raat tak Toronto wapas.
Phir aage likhta hun.
Badhai.
सुहृद हिमांशु में मैं संभावनाओं का असीम सागर लहराते हुए देखता रहता हूँ और मंत्रमुग्ध होता रहता हूँ - अनास्था और अविश्वास के फैलते जाते इक रेगिस्तानी एकाकीपन में यही हिमांशु ही हैं तो जो आश्वस्त करते हैं और मन में स्नेह की ज्योति उद्दीपित किये हुए हैं -मगर कितने आत्म प्रचार से मुक्त हैं -मुझे भी छुटकी के आगमन की जानकारी श्याद नहीं दी उन्होंने जिसे मेरा अनंत स्नेहाशीष ! कविता पढी सुनी -अच्छी है !
ReplyDeleteताऊ तुसी ग्रेट हो !
बहुत ही सुंदर साक्षात्कार .
ReplyDeleteहिमांशु जी से उनकी अद्भुत लेखनी की वजह से जान-पहचान तो पहले से ही हो गयी थी, आज उनको और करीब से जानना दिलचस्प रहा।
ReplyDeleteप्रेम-पत्रों को कविता में ढ़ालकर लिखी गयी उनकी रचनाओं ने मन मोह रखा है हमारा...और ताऊ उन्होंने एक बात जो आपको नहीं बतायी कि वो गाते भी अच्छा हैं।
kya baat hai Himanshu ji Chandoli se hain..Milwane ke liye aabhaar..
ReplyDelete