" कलयुगी श्रवण "
वृद्धाश्रम मे शाम के सत्संग मे
श्रवण कुमार की कथा सुनाई गयी
श्रवण के करुण अंत ने
सभी बूढे आश्रम वासियों का
दिल दिमाग दहला दिया
एक वृद्ध दम्पति अपने कमरे मे लौट कर
निढाल होके बिस्तर पर लेट गया
आँखों मे नमी और शून्य चेहरा
एक अजीब सा मौन छा गया.
आखिर वृद सज्जन ने मौन तोडा
और पूछा, क्या सोच रही हो?
मौन क्यों हो? कुछ बोलो ना.
क्या अपने श्रवण की यादों मे खो गई?
वृद्धा बोली - शुभ शुभ बोलो जी
हमारे श्रवण को क्या हुआ है
वो तो बहुत सुख मे है.
ऊंचा अफ़सर, अंगरेजी बोलने वाली बहु
गाडी, मकान, धन दौलत
सब तो है हमारे श्रवण के पास
वृद्ध बोला - तो अब और कितना सुख चाहिये?
हमे इस जीवन को विदा देने के लिये?
श्रवण कुमार की कथा सुनाई गयी
श्रवण के करुण अंत ने
सभी बूढे आश्रम वासियों का
दिल दिमाग दहला दिया
एक वृद्ध दम्पति अपने कमरे मे लौट कर
निढाल होके बिस्तर पर लेट गया
आँखों मे नमी और शून्य चेहरा
एक अजीब सा मौन छा गया.
आखिर वृद सज्जन ने मौन तोडा
और पूछा, क्या सोच रही हो?
मौन क्यों हो? कुछ बोलो ना.
क्या अपने श्रवण की यादों मे खो गई?
वृद्धा बोली - शुभ शुभ बोलो जी
हमारे श्रवण को क्या हुआ है
वो तो बहुत सुख मे है.
ऊंचा अफ़सर, अंगरेजी बोलने वाली बहु
गाडी, मकान, धन दौलत
सब तो है हमारे श्रवण के पास
वृद्ध बोला - तो अब और कितना सुख चाहिये?
हमे इस जीवन को विदा देने के लिये?
परसों गुरुवार को पढिये डा. रुपचन्द्र शाश्त्री “ मयंक” से ताऊ की अंतरंग
बातचीत
गुरुवार 4 जून 2009 को सुबह 5:55 AM पर
|
सुश्री सीमा गुप्ता जी को उनकी व्यंग्य रचना
ReplyDelete" कलयुगी श्रवण " के निए बधाई।
ताऊ को धन्यवाद।
ताऊ आज तो कविता के बहाने बहुत ही संवेदनशील मुद्दा उठा दिया है ! हमारे देश में वृद्धाआश्रम की संख्या बहुत कम है और आने वाले समय में इनकी जरुरत बहुत बढ़ जायेगी |
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया है! आजकल तो बच्चे अपने माँ पिताजी को अकेला छोर देते हैं! बुडापे में बच्चों के लिए तो माँ पिताजी बोझ बन जाते हैं पर ये बात क्यूँ भूल जाते हैं बच्चे की एक दिन उनका भी समय आयेगा तब एहसास होगा !
माता पिता के आशीर्वाद से ही सारे सुख मिलते हैँ
ReplyDelete-- लावण्या
श्रवण.. कहाँ है वो.. कोई बुलाये जरा..
ReplyDeleteराम राम
सही चित्र उकेरती हुई रचना .
ReplyDeleteसुबह-सुबह इतनी मार्मिक कविता पढ़ ली है....दिन भर की उदासी?
ReplyDeleteबदलते समाज की तस्वीर है आप की कविता.
ReplyDeleteयही हाल है आज कल,
इस लिए हर किसी को अपनी वृद्धावस्था में अकेले रहने के लिएपहले से ही आर्थिक ,शारीरिक ,-दिल-और दिमागी तौर पर तैयार रहना चाहिये.
दिल चीरती हुई रचना...कैसे कैसे श्रवण कुमार हैं अब..
ReplyDeleteनीरज
यह तो युगो से चला आ रहा है, वरना श्रवण कुमार को महत्त्व ही कहाँ मिलता. अतः केवल इस युग को कोसना गलत होगा.
ReplyDeleteसंवेदना जगाती कविता है.
आज के सामाजिक हालात का स्पष्ट चित्र उकेरती हुई रचना........सुश्री सीमा जी सहित आपका भी बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और सटीक बात.
ReplyDeleteआज के आधुनिक समाज, आज के वातावरण पर लिखी अच्छी रचना है............ सोचने को विवश करती है
ReplyDeleteअति दुखद बात है पर आजकल यह बहुतायत से होने लगा है. हमारे यहां भी जब से एकल परिवारों का चलन फ़ैशन बना है तब से यह समस्या खडी हो गई है.
ReplyDeletebahut hi arthpurn kavita.
ReplyDeleteबेहद उद्वेलित करती रचना.
ReplyDeleteबहुत अफ़्सोस जनक बात है. हम किधर जा रहे हैं? ये हमारी तो सभ्यता नही है. दुखद बात है.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ये रचना...
ReplyDeleteमीत
बिल्कुल दुखती रग है आज हमारे समाज की.
ReplyDeleteआज के कलयुगी श्रवणों को सोचना चाहिये कि कल वो भी वृद्धाश्रम मे होंगे.
ReplyDeleteबड़ी दयनीय स्थिति है जी आजकल के वृद्धों की. पत्नियों को चाहिए कि कुछ संवेदनशील बनें.और अपने पति को अपने माँ बाप से विमुख न करें. हमें मालूम है कि इस बात पर भी बहुत शोर मचाया जाएगा.
ReplyDeleteसीमा जी आपके शब्दों का बाण सीधा दिल को बेंधता हुआ पार हो गया बहुत ही अच्छी रचना के लिए आपको और ताऊ को बधाई
ReplyDeleteकलयुगी श्रवण ही चाहे हो लेकिन मां बाप फ़िर भी उस नलायक को प्यार ही करते है, कभी उस का बुरा नही सोचते,बहुत ही सुंदर रचना. रधे श्याम
ReplyDeleteमाँ बाप आखिर माँ बाप ही रहते हैं..
ReplyDeleteचाहे बच्चे कैसे भी रहें.
धन्य हैं वो.
और ऐसे श्रवन भूल जाते हैं,
कि कभी वो भी इस दौर से गुजरेंगे...
~जयंत
बिल्कुल कटु सत्य बयां करती रचना.
ReplyDeleteअरे ताऊजी आज क्या और कहाँ बात पहुँचा दी भाई। बहुत बहुत संजीदा बात। दिल को छू लेने वाली। सीमाजी का हमारी ओर से भी आभार। फिर मिलेंगे।
ReplyDeleteअच्छी रचना। वैसे आजकल श्रवण कहाँ है।
ReplyDeleteहमारा दुःख यही है कि हमने श्रवण पैदा न किए। इस में नयी पीढ़ी का क्या दोष? हमारी उन से आकांक्षाएँ जैसी रहीं वैसा उन ने बन के दिखा दिया। उपनिषद कहते हैं संन्तान माता-पिता का पुनर्जन्म होती है, पर हम ने ऐसा कब समझा?
ReplyDeleteWah...
ReplyDeletesamyik bhav bodh..
वृद्धा बोली - शुभ शुभ बोलो जी
ReplyDeleteहमारे श्रवण को क्या हुआ है
वो तो बहुत सुख मे है.
ऊंचा अफ़सर, अंगरेजी बोलने वाली बहु
गाडी, मकान, धन दौलत
सब तो है हमारे श्रवण के
aaj ke Sharwan ki achhi tasvir banayi hai apne Seema ji...
तब के श्रवण कुमार के माता पिता भी पुत्र की याद में मरे और अब के भी... कितना फर्क है दोनों में !
ReplyDeleteबहुत बढिया कविता प्रेषित की है।बधाई।
ReplyDeleteमन में एक टीस उठाती कविता !
ReplyDeleteहर बेटा चाहे राम न हो , हर माँ कौशल्या होती है .
sb ugliya baraba nhi hoti .sabhi klygi shrvan nhi hote .
ReplyDeletevrdhashramo ki sankhya abhi apne desh me kam hai .iska karn hai abhi bhi mata pita ke prti bachhe apna krtvy ache se nibahte hai .
सार्थक कविता.....वृद्ध माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री करने वाली संतानों से मैं एक कहानी के माध्यम से रूबरू होना चाहूंगा......
ReplyDeleteजापानी कहानी है, ठीक से याद नहीं पर भाव समझिएगा...जापान में बहुत समय पहले वृद्ध माँ-बाप को पीठ पर लादकर एक पहाड़ी पर छोड़ने का रिवाज था. साथ ही उनके खाने के लिए मिट्टी के बर्तन रख देते थे. शायद कभी-कभी ही मिलने जाते थे उन वृद्ध माँ-बाप से. एक ऐसे ही परिवार में जब बेटे ने पिताजी को इस तरह छोड़ा तो उसका बेटा यानी वृद्ध का पौत्र मिट्टी के बर्तन जमा करने लगा. उसके पिता ने पूछा तो वह बोला पिताजी, जब आप भी दादाजी की तरह बूढ़े हो जाओगे तब मैं आपको इन बर्तनों में खाना दूंगा....यह देखकर उसके पिता को अपनी भूल का एहसास हुआ..
ठीक यही बात आप पर भी लागू हो सकती है....कैसा लगेगा आपको??
साभार
हमसफ़र यादों का.......