कुछ यूँ हुआ
ड्राईंगरुम की दिवार पर
टकी हुई राईफ़ल
खिडकी के रास्ते
एक परिंदे ने कोतुहल से
उसे देखा
फ़िर ना जाने कुछ यूँ हुआ
वो डरते डरते आकर
उस राईफ़ल की नली पर बैठ गया
मैने देखा
कुछ देर मे ही अनेक
परिंदे आ आ कर उस राईफ़ल पर बैठ गये
मुझे ऐसे लगा जैसे यह राईफ़ल
इन परिंदों का मौतनामा ना होकर
कोई घना छायादार दरख्त हो.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
ड्राईंगरुम की दिवार पर
टकी हुई राईफ़ल
खिडकी के रास्ते
एक परिंदे ने कोतुहल से
उसे देखा
फ़िर ना जाने कुछ यूँ हुआ
वो डरते डरते आकर
उस राईफ़ल की नली पर बैठ गया
मैने देखा
कुछ देर मे ही अनेक
परिंदे आ आ कर उस राईफ़ल पर बैठ गये
मुझे ऐसे लगा जैसे यह राईफ़ल
इन परिंदों का मौतनामा ना होकर
कोई घना छायादार दरख्त हो.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
परिचयनामा मे मिलिये श्री योगेश समदर्शी से
पढिये ताऊ के साथ एक दिलचस्प मुलाकात का ब्योरा और सुनिये उनकी कविता :
उग आई आंगन कई, मोटी सी दीवार
कितना निष्ठुर हो गया, आपस में परिवार चिडिया सब चुप हो गई, कग्गे भये निराश अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास गुरुवार २५ जून २००९ शाम ३:३३ PM |
Waah !!! ise kahte hain sakaratmak chintan....Bahut badhiya...
ReplyDeleteक्या बात है... सभी साथ मिले तो डर भाग गया...
ReplyDeleteताऊ बहुत शानदार रचना. बधाई
ReplyDeleteइन परिंदों का मौतनामा ना होकर
ReplyDeleteकोई घना छायादार दरख्त हो.
उम्दा कविता.
योगेश जी के ईंटर्व्यु का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteबहुत बढिया भाव व्यक्त किये हैं.
ReplyDeleteबहुत बढिया भाव व्यक्त किये हैं.
ReplyDeleteजरूर बिहार पुलिस की राइफल होगी..जंग लगी..बचाई सी..लुटी पिटी..उससे क्या ख़ाक डरती चिडिया..वो तो है ही मजे करने के लिए ..बिहार पुलिस के जवान भी उसे लाठी की तरह ही इस्तेमाल करते हैं..उस राइफल से गोली भी निकलती न तो चिडिया दाना समझ कर खा जाती..
ReplyDeleteअंतिम कविता भी बढ़िया लगी....योगेश समदर्शी से दूरदर्शी मुलाकात को हम प्रियदर्शी हो कर बैठे हैं..कितना दर्शी दर्शी हो गया मन..धन्य हो,,
ताऊ ..बिल्लन कठे से ...इत्ती गर्मी में वा कु रु हफ्ज़ा पिलाया कर...
बहुत सकारात्मक बात देखी आपने इस राईफ़ल और परिंदो मे?
ReplyDeleteबहुत बधाई
बहुत सकारात्मक बात देखी आपने इस राईफ़ल और परिंदो मे?
ReplyDeleteबहुत बधाई
लाजवाब भाव व्यक्त किये हैं आपने.
ReplyDeleteताऊ लगता है पक्के कवि बन गये हो. बहुत सटीखता से देखी यह बात. बहुत जोरदार कल्पनाशीलता है आपमे तो. शुभकामनाएं
ReplyDeleteताऊ लगता है पक्के कवि बन गये हो. बहुत सटीखता से देखी यह बात. बहुत जोरदार कल्पनाशीलता है आपमे तो. शुभकामनाएं
ReplyDeleteताउ जी अपके होते बंदूक की क्या मजाल कि वो चल जाये इसी लिये तो वो डरे नहीं बधाई
ReplyDeleteताउ जी अपके होते बंदूक की क्या मजाल कि वो चल जाये इसी लिये तो वो डरे नहीं बधाई
ReplyDeleteइन जांबाज परिंदों की तरह हर इंसान हिम्मतवाला हो तो क्या बात है!
ReplyDeleteताऊ जी भी नए प्रतीकों के माध्यम से आज बड़ी बात कह गए...
किसी भी बुराई के खिलाफ खड़े होने की 'एक 'हिम्मत करेगा तभी 'और 'आगे आयेंगे..बस एक जज़्बे की जरुरत है..
ताऊ ध्यान से देख लो बंदुक ही है ना, कही पेड की डाली को बंदुक समझ कर डाकूयो से ना भिड जाना, या फ़िर इन परिंदो ने भांग खा ली होगी.
ReplyDeleteचलिये हमारे ताऊ की कविता बन गई
राम राम जी की
अरे यह दो दो ताऊ केसे हो गये ? फ़िर दुसरे ताऊ के पत्ते पर सिखो का निशान केसे आ रहा है( खंडा सहिब का )
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति और साक्षात्कार का इन्तजार .
ReplyDeleteलिखने का अन्दाज काबिले तारीफ है सीमा जी।
ReplyDeleteआपको बधाई, ताऊ का आभार।
बेहतरीन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteरायफल में पेड़ की लकड़ी जो लगी है.
ReplyDeletetauji dhyaan se dekho.....kahin blogars ki meeting toh nahin chal rahi.........
ReplyDeletemujhe toh lagta hai ab kalam se nahin bandook se likhne ka zamaanaa aa raha hai isiliye lekhak log bhesh badal kar ise kharidne aaye hain
_________ha ha ha ha
जी हाँ सकारात्मक !
ReplyDeleteबेहद शानदार रचना है...
ReplyDeleteएकदम पहेली सी लगती है...
यहाँ पर सोचने की क्षमता की दाद देनी होगी...
मीत
ये परिन्दे हैं कि जासूस...? आखिर इन्हें पता कैसे चला कि दीवार पर टंगी राइफल में गोली नहीं भरी होगी।
ReplyDeleteवैसे परिन्दों को राइफल से डर नहीं लगता है। डरते तो वे इन्सान से होंगे क्योंकि इन्सान ही राइफल का खतरनाक प्रयोग करता है। राइफल बेचारी अकेले क्या कर पाएगी? परिन्दों ने पेड़ की डाल समझ ली तो अच्छा ही किया।
वाह्! ताऊ जी, क्या बात है! बहुत ही शानदार रचना.......
ReplyDeleteपरिंदों ने उस राइफल को चलते देखा ही नहीं है. सुन्दर रचना. आभार
ReplyDeleteशानदार रचना.
ReplyDeleteरायफल बिहार पुलिस की नहीं मुझे तो बंगाल पुलिस की लग रही है उनकी बंदूकों में ही जंग लगा है | कारण : पुलिस और प्रशासन का काम माकपा काडरों ने जो संभाल रखा है |
शायद परिन्दे ये जानते हैं कि राईफल से कोई खतरा नहीं वरन राईफल थामने वाले हाथ व खतरनाक मंसूबों से है.
ReplyDeleteशानदार रचना
बहुत उम्दा.... मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना
मुझे ऐसे लगा जैसे यह राईफ़ल
ReplyDeleteइन परिंदों का मौतनामा ना होकर
कोई घना छायादार दरख्त हो.
सच और सुन्दर!
क्या बात है ताऊ!!! सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का..चिडिया ने कहीं यह तो नहीं सोचा??
ReplyDeleteबहूत संवेदन शील है यह रचना............ काश ये सब सच हो सके
ReplyDeleteमुझे ऐसे लगा जैसे यह राईफ़ल
ReplyDeleteइन परिंदों का मौतनामा ना होकर
कोई घना छायादार दरख्त हो.
Achhi kavita...
निडरता का शांति संदेश है यह
ReplyDeleteआज इसी की जरूरत है देश में।
परिंदे का कौतूहल उसे निर्भय कर गया । कौतूहल की करामात होती ही ऐसी है ।
ReplyDeleteरचना का आभार ।
सुंदर रचना ताऊ...
ReplyDeleteये कहीं प्रकाशित भी हुई है क्या?