आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
बिहार का ऐतिहासिक नाम मगध है,बिहार का नाम 'बौद्ध विहारों'शब्द का विकृत रूप माना जाता है,इस की राजधानी पटना है जिसका पुराना नाम पाटलीपुत्र था.इस के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखन्ड है.इस राज्य की अधिकारिक साईट के अनुसार बिहार में ३८ जिले हैं.गंगा नदी यहाँ से गुजरती है.इस साईट में दिए विवरण के आधार पर भगवान राम की पत्नी देवी सीता यहीं की राजकुमारी थीं.सीतामढी के नाम से यहाँ एक जगह भी है.मह्रिषी वाल्मीकि भी यहीं हुए थे और वाल्मीकिनगर के नाम से वह जगह प्रसिद्द है. इतिहास- प्राचीन काल में मगध का साम्राज्य देश के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था । यहां से मौर्य वंश, गुप्त वंश तथा अन्य कई राजवंशो ने देश के अधिकतर हिस्सों पर राज किया ।छठी और पांचवीं सदी इसापूर्व में यहां बौद्ध तथा जैन धर्मों का उद्भव हुआ । अशोक ने, बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसने अपने पुत्र महेन्द्र को बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा । उसने उसे पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) के एक घाट से विदा किया जिसे महेन्द्र के नाम पर में अब भी महेन्द्रू घाट कहते हैं । बाद में बौद्ध धर्म चीन तथा उसके रास्ते जापान तक पहुंच गया . बारहवीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आधिपत्य जमा लिया। अकबर ने बिहार पर कब्जा करके बिहार का बंगाल में विलय कर दिया। इसके बाद बिहार की सत्ता की बागडोर बंगाल के नवाबों के हाथ में चली गई। 1912 में बंगाल विभाजन के फलस्वरूप बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया । 1935 में उड़ीसा इससे अलग कर दिया गया .स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ और सन् 2000 में झारखंड राज्य इससे अलग कर दिया गया. --------------------------- भारत देश में किसी समय शिक्षा के प्रमुख केन्द्रों में से एक माने जाने वाला राज्य आज देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है.स्वंत्रता के पश्चात शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति तथा अकर्मण्यता के प्रवेश करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है,यूँ तो हाल ही में यहाँ एक भारतीय प्रोद्योगिक संस्थान और पटना में एक राष्ट्रिय प्रोद्योगिक संस्थान खोला गया है . बिहार में ऐतिहासिक और पोराणिक महत्व की इतनी जगहें हैं अगर इन्हें ठीक से प्रमोट किया जाये और यहाँ इन्हें देखने दिखाने की समुचित व्यवस्था हो तो बिहार भारत के प्रमुख पसंदीदा प्रयटक स्थलों में से एक हो जायेगा. आज आप को एक ऐसे दर्शनीय जगह लिए चलते हैं जिसके बारे में बहुत लोग जानते हैं.- नालंदा विश्वविद्यालय - बिहार में एक जिला है नालंदा...संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है "ज्ञान देने वाला" (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना). यह स्थान पटना से ९० किलोमीटर और गया से ६२ किलोमीटर दूर है. यहीं है हमारे देश की एक अमूल्य धरोहर-- नालंदा विश्वविद्यालय सात शाताब्दियों तक एशिया के बौद्धिक जीवन का अंग था। यह विश्व के इतिहास में दर्ज पहले महान विश्वविद्यालयों में से एक था.विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालय के अवशेषों को आप बिहार के नालंदा जिले में देख सकते हैं.इसकी खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। भारतके इतिहास में जिसे 'गुप्तकाल' या 'सुवर्णयुग' के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। उस समय मगध स्थित नालंदा विश्वविद्याल ज्ञानदान का प्रमुख और प्रसिद्ध केंद्र था। कहते हैं कि इस की स्थापना ४७० ई./४५० ई.[?] में गुप्त साम्राज्य के राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्व के प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था जहां १०,००० छात्र और २,००० शिक्षक रहते थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य का एक शानदार नमूना था। आज भी इसके अवशेषों के बीच से होकर गुजरने पर आप इसके गौरवशाली अतीत को अनुभव कर सकते हैं। यहां कुल आठ परिसर और दस मन्दिर थे। इसके अलावा कई पूजाघर, झीलें, उद्यान और नौ मंजिल का एक विशाल पुस्तकालय भी था। नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय बौद्ध ग्रन्थों का विश्व में सबसे बड़ा संग्रह था।इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का समर्थन मिला। महान शासक हर्षवर्द्धन ने भी इस विश्वविद्यालय को दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों का भी इसे संरक्षण मिला। केवल यहां के स्थानीय शासक वंशों ने ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी इसे दान मिला था। नालंदा विश्वविद्यालय में विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शन, तथा हिन्दु और बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। चौथी से सातवीं ईसवी सदी के बीच नालंदा का उत्कर्ष हुआ। नालंदा को राजाश्रय प्राप्त था। शकादित्य, बुद्धगुप्त, तथागत गुप्त, बालादित्य, वज्र और हर्ष ने यहाँ भवन बनवाये थे। हर्ष ने तो यहा भवन की प्राचीर और साधाराम बनवाया था। यहां अध्ययन करने के लिए चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, इंडोनेशिया, इरान और तुर्की आदि देशो से विद्यार्थी आते थे। बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार नालंदा आए और लंबे समय तक ठहरे। जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर क निर्वाण भी नालंदा में ही पावापुरी नामक स्थान पर हुआ। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन्सांग ने भी ईस्वी सन् ६२९ से ६४५ तक यहां अध्ययन किया था तथा अपनी यात्रा वृतान्तों में उसने इसका विस्तृत वर्णन किया है। सन् ६७२ ईस्वी में चीनी इत्सिंग ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की। महान चीनी यात्री हुयेनसांग और इत्सिंग ने नालंदा के विषय में काफी कुछ कहा है--- "उस जमाने में विश्व के कई जगहों, सुमात्रा, चीन, थाइलैंड कोरिया, श्रीलंका आदि जगहों से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे पर इस विश्वविद्यालय की नामांकन प्रक्रिया बहुत मुश्किल थी… विद्यार्थियों को तीन कठीन परीक्षा स्तरों से होकर गुजरना पड़ता था जो शायद विश्व की पहली ऐसी प्रणाली थी। कहा जाता है कि नालंदा विश्वविध्यालय में चालीस हजार पांडुलिपियों सहित अन्य हजारों दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें थी | खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- 'आर्यभट्ट सिद्धांत'। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे -: 1. रत्न सागर 2. विढ्ध्यासागर 3. ग्रंथागार ! ११९३ में तुर्क मुस्लिम सेनापति बख्तियार खिलज़ी ने बिहार पर आक्रमण किया। जब वह नालंदा पहुंचा तो उसने नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षकों से पूछा कि यहां पवित्र ग्रन्थ कुरान है या नहीं। जवाब नहीं में मिलने पर उसने नालंदा विश्वविद्यालय को तहस नहस कर दिया और पुस्तकालय में आग लगा दी। कहते हैं यह ६ माह तक जलती रही और आक्रांता इस अग्नि में नहाने का पानी गर्म करते थे. ईरानी विद्वान मिन्हाज लिखता है कि कई विद्वान शिक्षकों को ज़िन्दा जला दिया गया और कईयों के सर काट लिये गए। इस घटना को कई विद्वानों द्वारा बौद्ध धर्म के पतन के एक कारण के रूप में देखा जाता है। कई विद्वान यह भी कहते हैं कि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नष्ट हो जाने से भारत आने वाले समय में विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे क्षेत्रों मे पिछड़ गया। अवशेष क्या कहते हैं- 14 हेक्टेयर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के अवशेष देखने से मालूम होता है कि यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है.सभी भवनों का निर्माण लाल पत्थरों से हुआ था.वर्तमान में दो मंजिला इमारत देखी जा सकती हैं.प्रार्थना भवन में भगवन बुद्ध कि भग्नावस्था में मूर्ति भी देखी जा सकती है.मुख्य पहेली के चित्र में आप ने मंदिर-२ की दीवार देखी थी.कई स्तूप और उनपर भगवन बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं.
१-नालन्दा पुरातत्वीय संग्रहालय- २-नव नालन्दा महाविहार यह एक नया शिक्षा संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा अनुसंधान होता है। ३-ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल यह नवर्निमित भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुओं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकता है। इस जगह के आस पास भी घूमीये--: १-गाँव सिलाव में प्रसिद्द मिठाई खाजा जरुर खाएं.
वायु मार्ग - यहाँ से ८९ किलोमीटर दूर नजदीकी हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है। रेल मार्ग - नालन्दा में स्टेशन है. लेकिन यहां का प्रमुख रेलवे स्टेश्ान राजगीर है। राजगीर जाने वाली सभी ट्रेने नालंदा होकर जाती है। सड़क मार्ग - नालंदा सड़क मार्ग द्वारा राजगीर (12 किमी), बोध-गया (110 किमी), गया (95 किमी), पटना (90 किमी), पावापुरी (26 किमी) तथा बिहार शरीफ (13 किमी) से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. ----------------------------------------------------------------------------------------------- चलते चलते --ख़बरों में-- क्योंकि शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान के प्रचीनतम केंद्र तथा विश्वविद्यालय के रूप में विश्वव्यापी ख्याति अर्जित करने वाले नालंदा के पुरावशेषों को यूनेस्को विश्व धरोहर बनाया जा सकता है. खबरों में तो है कि इस संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई ने यूनेस्को को अपनी सिफारिश भेज दी है. यूँ तो नालंदा पुरावशेष प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल और पुरावशेष अधिनियम 1958 के तहत संरक्षित स्थल घोषित किया गया है. इस स्थान को नष्ट होने से बचाने के लिए मूल सामग्रियों के उपयोग से इसकी मरम्मत कराई गई है और इस दौरान इसके मूल स्वरूप को बरकरार रखा गया.यूनेस्को के एक अधिकारी ने कहा कि नालंदा के पुरावशेष तथा दक्षिण पूर्वी एशिया में स्थित बौद्घ स्थलों में काफी समानताएं हैं. नालंदा स्थित मंदिर संख्या तीन का निर्माण पंचरत्न स्थापत्य कला से किया गया है. यह दक्षिण पूर्व एशिया के कई स्थलों के अलावा कंबोडिया के अंकोरवाट से मिलती जुलती है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा नालंदा पुरावशेषों और तक्षशिला में भी काफी समानताएं हैं. -हाल ही में पर्यटनमंत्रालय केअतुल्य भारत अभियान के साथ मिल कर एनडीटीवी द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के तहत सूर्य मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, खजुराहो, लाल किला, जैसलमेर दुर्ग, नालंदा विश्वविद्यालय और धौलावीर जैसे स्थलों को भारत के सात आश्चर्य के रूप में चुना गया है जो एक अच्छी खबर है. -यह सभी जानते हैं कि पांचवीं सदी के विश्व प्रसिध्द नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है. नया नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने के लिए भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ.ऐ.पी.जी.कलाम ने पहल की और अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उन्होंने दूसरे देशों से भी मदद स्वीकार की है. बिहार सरकार ने पहले ही जमीन मुहैया करा दिया है।वह शुरुआती निवेश भी कर रही है। बिहार और केंद्र सरकार से कुछ शुरुआती कोष भी मिलने वाले है।खबर यह भी है कि ईस्ट एशिया समिट के 16 देश विश्वविद्यालय की स्थापना में आर्थिक सहायता दे रहे हैं. इस मुद्दे पर एक समिति के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करने वाले नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्यसेन ने कहा, ''यह संभवत: एक राष्ट्रीय के बजाय अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय होगा जो प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की जगह स्थापित होगा।''उन्होंने कहा कि नालंदा हमारी सभ्यता का प्रतीक है और नालंदा का पुर्निर्माण एशिया के पुनर्जागरण के लिए महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय में वर्ष 2010 तक शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो जाएगी. |
इस स्तंभ के अंतर्गत मैं हर सप्ताह आपसे एक छोटी सी बात करने का प्रयास करुँगा. आज की बात शुरु करते है, ब्लॉग सफल बनाने के उपायों में से पहले उपाय के साथ. मूल मंत्र: जितना लिखना चाहते हो, उससे कम से कम दस गुना पढ़ो अन्य लोगों को. व्याख्या: यह सिर्फ मैं ही नहीं कहता, यह कई गुणीजन कहते हैं. उनमें से कई तो कहते कहते गुजर गये मगर आप हैं कि मानने को ही तैयार ही नहीं. अधिक पढ़ने से आपकी सोच का दायरा विस्तृत होता है और दूसरों के विचार जानने का मौका मिलता है. अक्सर अच्छे लेखकों की लेखनी इतना प्रभावित करती है कि आपके लेखन में भी उसकी झलक मिलने लगती है. वैसे दूसरे अच्छे लेखकों को पढ़कर खुद ही जान जाओगे कि आपके लेखन में कहाँ खामियाँ हैं और कितने गहरे पानी में खड़े हो. खुद जानो वो बेहतर..हम कहें कि बेकार लिखा है, सुधारो- तो खराब लगेगा. सलाह मात्र है वरना कूप मंडूक के समान लिखे तो जा ही रहे हो. ब्लॉग पर कोई रोक टोक तो है नहीं. ’अच्छे लेखन से ज्यादा अच्छे लेखन का प्रयास और अच्छे लेखन के लिए प्रतिबद्धता ही सफलता की कुँजी है.’ और अंत में: भले ही दरवाजे पर बाज खड़ा कर दो, पहरा जितना चाहे उतना कड़ा कर दो, अब मैं तेरी रिहाई का तलबगार नहीं, कर सको तो मेरा पिंजड़ा बड़ा कर दो अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं. |
बरसात का मौसम बस आने को ही है. आईये वर्षा को बुलाने की कुछ विचित्र प्रथाओं के बारे में जानें. कोरिया मे जब काफ़ी समय तक वर्षा नही होती तो वहां के लोग मेंढक और मछली के आकार की बडी बडी पतंगे आसमान मे उडाते हैं. मछली और मेंढक वहां पर वर्षा के देवता माने जाते हैं. उनकी मान्यता है कि देवता मछली और मेंढक को पास मे पाकर खुश हो जाते हैं और फ़लस्वरुप तेज वर्षा करते हैं. फ़िजी के लोगों का मानना है कि जब कबूतर लौटते हैं तब सचमुच वर्षा होने लगती है. इसीलिये वहां के लोग उंचे पहाडों पर चढकर सफ़ेद कबूतर ऊडाते हैं और उनसे वर्षा लेकर लौटने का आग्रह किया जाता है. मिस्र मे छोटी बालिकाएं हाथों मे फ़ूल रखकर नदी किनारे तक जाती हैं . उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से बादल प्रशन्न होकर वर्षा करते हैं . स्काटलैंड वासी इस काम के लिये मुर्गों की लदाई करवाते हैं और उनका मानना है कि जितने मुर्गे ज्यादा लडेंगे उतनी ही तेज वर्षा होगी. आस्ट्रिलिया के आदिवासी पहाडों पर चढकर तीर आसमान की तरफ़ छोडते हैं. उनका मानना है कि उनके द्वारा छोडे गये तीर बादल को फ़ोड देते हैं और वर्षा होती है. आपका सप्ताह शुभ हो. अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं. |
जीवन मे विनम्रता बहुत जरुरी गुण है. आईये महाभारत की एक कहानी से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं. महाभारत का युद्ध अपने अंतिम चरण मे पहुंच चुका था. भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे हुये सुर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा में अपने जीवन की शेष घडियां गिन रहे थे.
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खतड़ुवा कुमाउंनी परम्परा में पर्यावरण को हमेशा ही अव्वल दर्जा दिया जाता रहा है। कुमाऊँ के बहुत सारे पर्व ऐसे हैं जो पर्यावरण से संबंधित हैं। उनमें से ही एक त्यौहार है खतड़ुवा। इसे मनाने के तरीके पर नजर डालें तो लगता है कि प्राचीन समय में भी पर्यावरण को लेकर कितनी जागरूकता हमारे पूर्वजों के बीच रही होगी जो अब अज्ञानतावश थोड़ी विलुप्त सी होती जा रही है। खतड़ुवा को अश्विन मास की प्रथम गते को मनाया जाता है। इस दिन से वर्षा ऋतु की समाप्ति और जाड़ों का आगमन शुरू हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन से खतड़ी यानि रजाई ओढ़ने की शुरूआत भी हो जाती है। इसे मनाने के लिये कोई विशेष पूजा पाठ नहीं किये जाते हैं। शाम के समय बच्चे लोग मिल कर गायों के आने वाले रास्ते में खतड़ुवे का पुतला बनाते हैं। जिसके लिये सूखी और अनुपयोगी घास और लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। घरों के अनुपयोगी सामानों का भी इसमें इस्तेमाल किया जाता है। सायं काल में छोटे बच्चे अपने हाथों में फूलों की डालियां और बड़े लोग मशाल लेकर इस खतड़ुवे की तरफ जाते हैं। बच्चे एक गाना भी गाते हैं - चल खतडुवा धारे-धार, गौ की जीत खतडुवा की हार।इस मशाल को पहले घर के प्रत्येक कोने में घुमाया जाता है ताकि बुरी शक्तियां नष्ट हो जायें। गायों को इस दिन खूब हरी घास खाने के लिये दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद से फिर धीरे-धीरे हरी घास में कमी होने लगेगी। खतड़ुवे वाले स्थान पर पहुंच कर सभी मशालें खतड़ुवे के उपर फेंक दी जाती है। जब खतड़ुवा पूरी तरह से जल जाता है तो बची हुई राख और कोयलों को हरी लकड़ी के डंडे से पीटते है। जो की बुरी शक्तियों को पूरी तरह से नष्ट करने का प्रतीक माना जाता है। सभी लोग एक -एक बार इस आग को लांघते जरूर हैं। इस समय ककड़ी को पटक कर तोड़ते है जिसमें से एक टुकड़ा आग में डाला जाता है और बची हुई ककड़ी को सभी लोगों में बांट दिया जाता है।ऐसी मान्यता है कि इस आग में जल कर सभी बुरी शक्तियों का अंत हो जाता है। इसके जलने के बाद जो राख बचती है उससे सभी लोग अपने घर लेकर जाते हैं और परिवार के सदस्यों समेत जानवरों को भी टीका किया जाता है और इस राख को बगीचों में भी डाला जाता है ताकि सब्जियां खराब न हों। ऐसा माना जाता है कि इस धुंए से रोग किटाणु सब खत्म हो जाते हैं। और पशु दूध ज्यादा देते हैं। गांवों में तो यह परम्परा आज भी जीवित है पर शहरी इलाकों में इस परम्परा को लोप होता जा रहा है। जो कि खेद का विषय है। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
"हीरु और पीरू" भाईयों और बहनों आप सबको हीरामन “हीरू” और पीटर “पीरू” की नमस्ते. अरे पीरू यार देख..जरा जल्दी देख..क्या गिर गया? अरे हीरू..ये तो लगता है कि पीसा की मीनार ही गिर गयी. तो यार पीरू ये गिराई किसने? अब तू खुद ही पढले ना.
अरे हीरू..देख ..देख..वकील साहब ने मुर्तिचोरों का अड्डा पकड लिया. हां यार पीरू ये वकील साहब बिल्कुल सही कह रहे हैं. तो आज की द्वितिय मनोरंजक टिपणी विजेता का खिताब जाता है.
अरे पीरू आज की तीसरी मनोरंजक टिपणी किसकी है? अरे ठहर यार हीरू ...जरा पढने दे. अरे यार मिल गई..मिल गई...तीसरी मनोरंजक टिपणी मिल गई. देखो ये क्या भूतों की बात हो रही है?
अब हीरामन और पीटर को इजाजत दिजिये अगले सप्ताह आपसे फ़िर मुलाकात होगी |
ट्रेलर : - पढिये : डा. रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक" से ताऊ की अंतरंग बातचीत के कुछ अंश
ताऊ : ओहो..बडा बुरा हुआ. आगे क्या हुआ फ़िर? डा. शाश्त्री जी :....... ताऊ : आप बुजुर्ग हैं. आपके पास जीवन का एक अनुभव है. आप हमारे पाठको को कुछ विशेष बात कहना चाहेंगे? डा. शाश्त्री जी : परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। और अंत मे एक सवाल ताऊ से:- डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, मैं आपसे भी एक सवाल पूछना चाहता हूँ। आपके मन में रामप्यारी का आइडिया कहाँ से आया है? ताऊ : ??? और भी बहुत कुछ अंतरंग बातें…..पहली बार..खुद डा. शाश्त्री की जबानी…इंतजार की घडियां खत्म…..आते गुरुवार ४ जून को मिलिये हमारे चहेते मेहमान डा. रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक" से |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
ताऊ-पहेली की सिल्वर जुबली आ रही है, जानकर अच्छा लगा। भग्वान करे ये गोल्डेन और प्लेटिनम जुबली भी मनाये। समीर जी के जुड़ने से पत्रिका की गुड़वत्ता और बढ़ गई है।
ReplyDeleteताऊ आज का अंक तो भरपूर ज्ञान वर्धक रहा ! सभी ज्ञान दाताओं का आभार !
ReplyDeleteताऊ जी,
ReplyDeleteपत्रिका ब्लोग जगत के लिये
एक नया आयाम लेकर
प्रगति पथ पर अग्रसर है
अब उडन तश्तरी फेम समीर भाई
इसे नई ऊँचाई पर उडा ले जायेँगे ये विश्वास है -
सभी के प्रयास सुँदर लगे -
शुभकामना सहित,
- लावण्या
aabhaar jankaree ke lie..
ReplyDeleteवाह ताऊ के साथ एक और महा ताऊ !!
ReplyDeleteअब तो सीधे सीधे सिल्वर जुबली का है इन्तेजार!!
हिन्दी चिट्ठाकारों का आर्थिक सर्वेक्षण : परिणामो पर एक नजर
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत खूब! अच्छी जानकारी हुई और काफी ज्ञान भी प्राप्त हुई! धन्यवाद ताऊ !
"जीवन मे कुछ कुंठित और लुंठित लोग भी मिलते हैं. उनका क्या किया जाये?"
ReplyDeleteताऊ का आज का विचार प्रासंगिक है। आपकी चिन्ता वाजिब है। इसका हल भी आपने दे ही दिया हे।
ताऊ।
सिल्वर जुबली की अग्रिम बधाई आज ही दे देता हूँ।
क्या पता उस दिन टाइम पर आपका ब्लॉग खुले या...परेशानी करे।
समीर जी के सम्पादक मंडल में शामिल होने से सीधे सीधे दो फायदे हो गए है, एक तो पत्रिका में ओर भी ज्यादा निखार आ गया है और दूसरे नजर वगैरह लगने का भी कोई डर नहीं रहा..:)
ReplyDeleteताऊ जी, पत्रिका के सिल्वर जुबली अंक की अग्रिम बधाई.......शास्त्री जी के साक्षात्कार की प्रतीक्षा रहेगी.
बहुत ही उपयोगी रोचक जानकारी मिली है .सभी ने बहुत रोचक बढ़िया ढंग से अपनी बात कही है .शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर और और रोचक पत्रिका. एक से बढकर एक स्तम्भ. धन्यवाद.
ReplyDeleteसोमवार के दिन एक कालम रामप्यारी जी का भी होना चाहिये.
ReplyDeleteबहुत सुंदर और और रोचक पत्रिका. एक से बढकर एक स्तम्भ. धन्यवाद.
ReplyDeleteआज की पत्रिका का रूप भी पसंद आया.सभी के लेख पसंद आये.
ReplyDeleteपत्रिका के वरिष्ठ संपादक के रूप में समीर जी का जुड़ना ,हमारा सौभाग्य है.
विनीता जी आप ने इस पर्व के बारे में अच्छी जानकारी दी..लोहडी पर भी आग को कूदने का रिवाज़ है/था.
न केवल यह पर्व बल्कि बहुत से रीति रिवाज़ अब सिर्फ ग्रामीण अंचलों में ही सिमट कर रह गए हैं.
डॉ.मयंक के साक्षात्कार का इंतज़ार रहेगा.रामप्यारी के चरित्र के जन्म की कहानी भी जानने की उत्सुकता है.
अच्छा ज्ञानवर्धन होता है इस पत्रिका द्वारा. ताऊश्री पहेली अवार्ड का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteaaj ka taau vichar pasand aayaa.
ReplyDeleteaaj ka taau vichar pasand aayaa.
ReplyDeleteसमस्त संपादक मंडली का आभार इस ज्ञानार्जन करवाती पत्रिका के लिये.
ReplyDeleteताऊ विचार के लिये ताऊ की जय. कुंठित और लुंठित से लोग बहुत परेशान हैं. अच्छा इलाज बताया अपने. बौत धन्यवाद कहानी कहानी मे इन बेनामियों का इलाज बताया.
ReplyDeleteकई तो बेनामी ब्लाग लिख कर भी दुसरों से कुंठा और लुंठा दोनों रखते हैं.
बहुत आभार इतनी अच्छी जानकारी के लिये.
ReplyDeleteताउजी आपको पहेली की रजत जयंती की घणी सारी बधाई...इब स्वर्ण जयंती अर हीरक जयंती का इंतज़ार है....आपका ब्लॉग तो जानकारी का खजाना होता जा रहा है...एक ही ब्लॉग पर दस ब्लॉग की सी जानकारी मिल जाती है...समीर जी का जुड़ना सोने पे सुहागा है...
ReplyDeleteनीरज
क्या सिल्वर जलेबी आ रही है? जल्दी खिलाओ :)
ReplyDeleteपत्रिका का यह अंक भी जोरदार रहा. समीर जी जुड़ना पत्रिका को और रोचक कर रहा है.
बहुत खूब! अच्छी जानकारी हुई और काफी ज्ञान भी प्राप्त हुई! धन्यवाद ताऊ !
ReplyDeleteपत्रिका का स्वरुप दिन पर दिन निखरता
ReplyDeleteजा रहा है !
आदरणीय अल्पना जी की मेहनत स्पष्ट दिखाई दे रही है ! इसमें कोई शक नहीं है कि इस आयोजन की सफलता में अल्पना जी का बहुत बड़ा योगदान है !
अत्यंत उपयोगी जानकारियों, प्रेरणादायक आलेखों के कारण पत्रिका पठनीय एवं संग्रहणीय बनती जा रही है ! ताऊ जी क्यों न पत्रिका का पच्चीस अंकों का संयुक्तांक प्रकाशित किया जाए जो कि बाजार में उपलब्ध हो ! वैसे यह सिर्फ एक राय है !
कुछ दिन पहले एक ब्लॉगर साथी ने अत्यंत सार्थक व महत्वपूर्ण सलाह दी थी : -
neelam
May 29, 2009 8:15 PM
"बहुत दिनों से मेरे मन में एक विचार पनप रहा है कि कितना अच्छा हो अगर ब्लागजगत को एक विशाल ग्रुप या संस्था का रूप प्रदान कर दिया जाए. जिसका प्रत्येक सदस्य अपनी सामर्थ्य अनुसार उसमे कुछ योगदान करे, चाहे धन से अथवा अपने ज्ञान से, जिसका उपयोग जनकल्याण हेतु जैसे गरीबों की सेवा, शिक्षा, चिकित्सा इत्यादि या अन्य किन्ही लोकहितार्थ कार्यों में किया जाए
वत्स जी के इस विचार का मै सम्मान करती हूँ ,और अगर कोई इस दिशा में आगे कदम बढाता है तो उसकी यथासंभव मदद करने के लिए भी तैयार हूँ ,एक संगठित और नियोजित तरीके से बहुत कुछ किया जा सकता है ,अपने देश के लिए.!
फुर्सत तो हमे भी थी देश के लिए ,
मगर जब पेट भर गया तो नींद आ गयी !!"
मैं आयोजकों से एक बात पूछना चाहता हूँ कि क्या हमें वाह ... वाह करने के अलावा भी नीलम जी की बात पर मनन नहीं करना चाहिए !
आशा है आप जवाब देंगे !
आज की आवाज
ये जो चींटी की बात बताई आपने वह लघुकथा हरी मृदुल जी की है शायद ...जिस पर उन्हें कादम्बिनी ने प्रथम पुरस्कार दिया था ....क्या में सही हूँ बताइयेगा ..
ReplyDeleteभाई ताऊ जी
ReplyDeleteआपकी नक़ल ने अपुन की अकाल ठिकाने लगा दी
iss bar format kaafi accha laga, padhne me behad aasani rahi.
ReplyDeleteaur content ki to baat hi kya...bas maza aa gaya. thank you taau
@प्रकाश जी ,
ReplyDelete**पत्रिका को पी डी ऍफ़ में जारी करने की समीर जी की भी सलाह थी मगर २५ संस्करणों को एक साथ निकालने का काम सिर्फ ताऊ जी ही कर सकतेहैं.उनके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी.
**आप ने नीलम जी की सलाह के बारे में हमें अवगत कराया.इस के लिए धन्यवाद.
मेरे विचार में उनकी राय बहुत ही अच्छी है अगर आप देखें तो पूरे ब्लॉग जगत को जोड़ पाना मुश्किल है -
हाँ,
अलग अलग विषय के जानकारों के पहले ही ग्रुप बने हुए हैं जैसे विज्ञान जागरूकता के लिए रजनीश जी का उठाया कदम.अब वह ब्लॉग एक संस्था के रूप में पंजीकृत है. ऐसे ही और भी समूह रूचि अनुसार बने हुए हैं.
उस के अलावा पूरे ब्लॉग जगत को एक समूह बना पाना लगभग असंभव है.जब भी कभी कोई विवाद हो ,बहुत ही साफ़ रूप से तो यहाँ टुकड़े नज़र आते हैं.
-अभी जैसा चल रहा है अगर वैसा भी सद्भाव से चलता रहे तो बेहतर है..
जहाँ भी पैसा जुड़ जाता है..differences आने शुरू हो जाते हैं.
यह मेरे विचार हैं---बाकि गुनिजन कहें.
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-रही बात आप के कल के कमेन्ट की तो जब भी कोई पहेली पूछी जाती है तो सब से पहले उस के चित्र को बड़ा कर के देखें.कुछ क्लु तो वही मिल जाते हैं.
-Also check its background to know where it could be--which region!
-example paheli 24 ---दीवार का चित्र था--जब आप बड़ा कर के देखेंगे--तो बुद्ध भगवान् की विभिन्न मुद्राओं की चित्र दिखेंगे--लाल रंग के पत्थर.और देखने में अवशेष ही लग रहे थे--और अंदाजा जैसा लग रहा था की मंदिर तो नहीं?
तो अब इन सभी अनुमानों को ले कर--गूगल Image में जायेंगे--तो टाइप करीए--ruins,temple,budhd carving,wall,
आप को sahi जगह का चित्र हो सकता है ८०-१००%मिल ही जाये--
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-कोई भी जगह अगर दिखाई जातीहै तो उस जगह का जरुर कुछ न कुछ महत्व होगा तभी उसे मुख्य पहेली चित्र बनाया जाता है.
चाहे वह एक बड़ा पत्थर [पूर्व पहेली]या टॉप या कुण्ड [व्यास कुण्ड ]या ट्रोली [पूर्व पहेली]ही हो!
waise mushkil sahi....magar -कोई पहेली कभी अनबूझी नहीं रही आज तक!
abhaar sahit-
एक और जबरदस्त अंक है............बधाई समीर जी के लेख पर...........अल्पना जी की सुन्दर जानकारी...........और सीमा जी का प्रेरक प्रसंग भी कमाल का है.......... शुक्रिया
ReplyDeleteराम राम ताऊ.. बहुत शानदार अंक .. लगता है जल्द ही आपको अखबार निकालना पडे़गा..
ReplyDeleteआपकी पत्रिका दिन - दूनी -रात -चौगुनी प्रगति कर रही है इसके लिए पूरे सम्पादक मंडल को बहुत -बहुत शुभकामनायें और बधाई .
ReplyDeleteaapka ye ank bahut hi rochak laga....kai nayi baaton ki jankari hui...sahi likha hai ki apni galtiyon ko khud pahchan kar sudhara jaye wah hi accha hai.
ReplyDeleteसिल्वर जुब्ली की अग्रिम बधाई ताऊजी!
ReplyDeleteपुनः जानकारियों भरा अंक । अल्पना जी का स्पष्टीकरण भी बहुत कुछ समझा गया । आभार ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ... दिनों दिन निखार आता जा रहा है इसमें की दो राय नहीं.
ReplyDeletetau thari patrikaa, bhot hee kamaal lagi manne to...yo pahlee to abhi hindi blogging mein ek itihaas rachegee...alpana jee ne ghani chokhee clue de diye...
ReplyDeletetau ki ptrika bhut pasand aai,khaskar alpnaji ka lekh .nalnda ke bare me gyanvardhak jankari .
ReplyDeletepatrika sundar hai.
ReplyDeletehamko to yah dekhkar khushi huyi ki yahan jyada kaam mahilayen hi sambhal rahi hain.
alpana didi
seema didi
vinita didi
pyari si rampyari
NARI EKTA JINDABAD
ham kabhi QUIZ jeet payenge ki nahi ?
Govind Sir aapkee baat mahatvpurn hai. agar aisa ho jaye to ham bhi kisi kee help kar payenge.
ReplyDeletegovind sir aap to hamesha hi koyi na koyi kaam is tarah ka karte rahte hain. aap hi isko start kariye. meri taraf se 501 rupaye (abhi itne hi hain mere paas)
अहा..पत्रिका निखरती जा रही है
ReplyDeleteसमीर जी के आने से तो और भी...और उनकी इन पंक्तियों पर तो बस आहें भर रहे हैं हम
"भले ही दरवाजे पर बाज खड़ा कर दो,
पहरा जितना चाहे उतना कड़ा कर दो,
अब मैं तेरी रिहाई का तलबगार नहीं,
कर सको तो मेरा पिंजड़ा बड़ा कर दो"
वाह!
अरे वाह, अब अपणे ताऊ जी,
ReplyDeleteताऊ डाट इन हो लिये ?
मैगज़ीन बड्डा सोणा बन पड़ा सै !
बधाई लेयो, पँचों !
अरे वाह, सारी बधाई और शुभकामनाऐं मिल गई-पीडीएफ पत्रिका या अन्य कोई फार्मेट के लिए संपादक मंडल का विचार चल रहा है. तनिक इन्तजार किजिये.
ReplyDeleteसभी के सहयोग का बहुत आभार और माननीय वत्स जी तो ठिठोना बनाय कर बैठाल दिये हैं हमको तो खास आभार. :)