आज आपको मिलवाते हैं योगेश समदर्शी से जिनके ब्लाग हैं शब्द सृजन और समाधान. इस होनहार युवक से मिलकर लगा कि इस शख्स मे बहुत कुछ करने का जज्बा है. पर जैसा कि होता है हालात और परिस्थितियां इंसान को अपने साथ साथ बहाये लिये चलती हैं. आईये इनसे हुई ताऊ की बातचीत से आपको रुबरु करवाते हैं.
श्री योगेश समदर्शी, तवी नदी किनारे
ताऊ : आप कहां के रहने वाले हैं?
योगेश समदर्शी : मैं मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के कलंजारी गाँव का मूला निवासी हूँ, वहीँ मेरा जन्म हुआ.
ताऊ : आपके नाम के साथ ये समदर्शी क्या है?
योगेश समदर्शी : ताऊ जी , मेरा नाम तो योगेश कुमार ही है, पर जब सामजिक जीवन में था तो मित्रों की सलाह पर यह उपनाम रखा था "समदर्शी". अतः कुछ लोग और अधिकतम लेखन आदि मे मैं योगेश समदर्शी नाम का ही उपयोग करता हूँ.
ताऊ : आप कब तक गांव मे रहे ? और क्या अब भी गांव की याद आती है?
योगेश समदर्शी : ताऊजी, मेरे पिता सेना में थे अतः उनके साथ १९९० में गाँव से बाहर निकला. और तब से गाँव छूट गया. अब चाह कर भी गाँव नहीं जा पाता.. बस गाँव की धरती के कण कण की यादों को दिल में रख कर जी रहा हूँ और उसी गाँव पर कभी कभी कुछा कविता जैसा लिख भी लेता हूँ जिन्हें आप मेरे ब्लॉग पर देख सकते हैं.
ताऊ : फ़िलहाल आप कहां रहते हैं और क्या करते हैं?
योगेश समदर्शी : फिलहाल मैं गाजियाबाद में रहता हूँ. और इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर इन्फोग्रफेर के पद पर कार्य करता हूँ.
ताऊ : योगेश, आपमें एक देश प्रेम का जज्बा दिखाई देता है. इसकी शुरुआत कैसे हुई?
योगेश समदर्शी : ताऊजी जब मैं पोर्ट ब्लेयर में ९ वीं क्लास मे पढता था. और मेरा स्कूल सेल्युलर जेल से मात्र २ किलोमीटर की दूरी पर था. तब मैं इस सेल्युलर जेल को देखने गया, तो समझिये की मेरा ह्रदय परिवर्तन हो गया.
ताऊ : यह अचानक हुआ?
योगेश समदर्शी : पता नही क्या हुआ? मैं सावरकर की कोठारी मैं खडा हो कर फूट फूट कर रोया. और फिर नियमित वहां जाने लगा. उपलब्ध साहित्य पढ़ा, अपने उत्तरप्रदेश के स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां पढ़ी और तब से मेरे बाल मन मैं देश भक्ति का पौधा पता नहीं कैसे पल्लवित हो गया.
ताऊ : फ़िर कब तक वहां आना जाना होता रहा?
योगेश समदर्शी : जब तक वहां रहा बाद मे जब पिताजी का तबादला हो गया और हम पुनः मेन लैंड में आ गए,
ताऊ : फ़िर आपकी पढाई लिखाई कहां हुई?
योगेश समदर्शी : उसके बाद मैं दिल्ली मैं पढ़ने लगा, और स्कूल के बच्चों को लेकर मैं सांस्कृतिक गतिविधियों मैं काफी हिस्सेदारी निभाता था.
ताऊ : मतलब यह भी आपका पुराना शौक था?
योगेश समदर्शी : हां यह कीडा मुझे गाँव से ही था बचपन में गाँव की रामलीला किया करता था.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने स्कूल जीवन मे बहुत से नाटक और नुक्कड नाटक किये थे?
योगेश समदर्शी : हां, इसके लिये जब मैं दिल्ली मे पढते हुये जब मैं १२ वीं क्लास में आया तो मैं देश प्रेम की भावना से प्रेरित हो कर और शफदर हाशमी के नुक्कड नाटको की बाते सुनी और जन नाट्यमंच के नाटक देख कर प्रेरणा प्राप्त की.
ताऊ : फ़िर आपने नाटक करने कब शुरु किये?
योगेश समदर्शी : हमारे क्लास के बच्चों को लेकर यानि १२ वीं कक्षा के अपने साथियों को साथ इक्कठा कर पहला नाटक खेला जिसका नाम था राम रहीम.
ताऊ : हमने सुना है कि इस नाटक को लिखा भी आपने ही था?
योगेश समदर्शी : हां यह यह नाटक बाबरी मस्जिद दंगों के बाद खेला गया जो हिन्दू मुस्लिम एकता पर आधारित थे और इस नाटक को मैंने ही लिखा था. नुक्क्ड नाटक की स्टाइल का यहाँ नाटक सबसे पहले हमने अपने स्कूल मैं खेला जहाँ इसकी काफी तारीफ हुए.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने एक नाट्य संस्था का गठन भी किया था?
योगेश समदर्शी : हां ताऊजी, इस नाटक की सफलता से उत्साहित होकर मैंने अपने साथियों को जोड़ा कर एक संस्था का निर्माण किया. जिसका नाम रखा " भारतीय नवयुवक एकता संगठन" .
ताऊ : यह कब की बात है?
योगेश समदर्शी : यह १९९५ की बात है. हम साथियों ने बहुत मेहनत से इस संगठन को खडा करने का प्रयास किया.
ताऊ : कौन कौन थे आपके साथी उस समय के?
योगेश समदर्शी : मेरे उस वक्त के साथियों मैं राजेश सागर, पंकज चौधरी, संतोष मिश्र, धरमेंदर मौर्या, मुकेश कल्पशी, आशीष, अनिल गुप्ता और सचिन शर्मा, रजनीश पूनिया, सहित कई और साथी शामिल थे जिनका नाम मुझे अभी याद नहीं आ रहा है.
ताऊ : इसमे आपने किस तरह के नाटक किये?
योगेश समदर्शी : इनके साथ मिलकर हमने गाजियाबाद के आसपास काफी नुक्कड नाटक किये, दहेज़ के खिलाफ, प्लेग से बचाव और पोलियों अभियान के नाटक इसमें मुख्य थे.
ताऊ : आपकी नाट्य संस्था का क्या हुआ..
योगेश समदर्शी : जी जब हम मित्रों ने बारहवीं पास कर ली तो सब अपने अपने कालेज चले गये उसके बाद मेरे नाट्य ग्रुप के साथी बिछड गए और मैंने एक प्रसिद्ध सुविख्यात नाटककार को अपना नाटक का गुरु बना लिया और उनके साथ लगभग १० - १५ नाटकों में अच्छी में भूमिकाएँ की, यह नाटक संस्था राजिंदर नगर, साहिबाबाद में आज भी चल रही है. साधना नाट्य कला केंद्र के नाम से.
स्वर्गीय श्री ललित मोहन थापल्याल जी
ताऊ : इस संस्था के संस्थापक कौन थे?
योगेश समदर्शी : इसके संस्थापक और मेरे नाटक के गुरु जी थे स्वर्गीय श्री ललित मोहन थापल्याल जी, जिनका नाटक "चिमटे वाले बाबा" साहित्य कला अकादमी से पुरुष्कृत नाटक था, और पन्ने की अंगूठी नामक नाटक NSD के प्रसिद्ध निर्देशक द्वारा भी खेला जा चुका है.
ताऊ : सुना है की शादी के बाद भी आप गुरु जी के साथ जुड़े रहे और आपके साथ साथ आपकी धर्म पत्नी ने भी ललित मोहन जी के साथ नाटकों मैं काम किया.
योगेश समदर्शी :जी मेरी पत्नी ने भी वहां मेरे साथ नाटक कला का प्रशिक्षण लिया और हम दोनों ने मिल कर नाटकों में काम किया शरतचंद चटोपाध्याय की कहानी "ब्राहमण की बेटी" में मैंने और मेरी पत्नी दोनों ने अभिनय किया जिसका नाट्य रूपांतरण और निर्देशन गुरु जी ने किया था ... यह नाटक श्रीराम सेंटर मंडी हाउस में मचित हुआ था.
ताऊ : सामजिक कार्य करते हुए सुना है आप ने बड़े बड़े समाजसेवियों के सानिध्य मैं काम किया था?
योगेश समदर्शी : जी यह मेरा सोभाग्य ही है की मैं अपने उस बालकपन मैं ही इन जैसे बड़े और सुविख्यात समाजसेवियों के सानिध्य में काम कर सका.. उनमे से प्रमुख हैं सुंदर लाल बहुगुणा जी, मेधा पाटकर जी, स्वर्गीय समाजवादी चिन्तक और नेता किशन पटनायक जी, बी डी शर्मा जी, बनवारी लाल शर्मा जी, प्रसिद्ध लेखिका आशारानी वोहरा जी, योगेंदर यादव जी, प्रो अरुण कुमार जैसे अन्य अनेक समाजसेवियों के साथ काम किया था.
ताऊ : सुना है बिना आपसे पूर्व परिचय के आपकी लिखी केवल एक चिठ्ठी से सुन्दरलाल बहुगुणा जी गाजियाबाद में आपके प्रोग्राम में हिस्सा लेने आ पहुंचे थे, और आप उन्हें रिक्शा मैं बैठा कर कार्यक्रम स्थल पर ले गए?
योगेश समदर्शी : वाह ताऊ जी आप तो पूरी जासूसी के साथ आये हैं? आपने बिलकुल सही सुना है, मैंने गाजियाबाद के ऍम ऍम एच कालेज में एक कार्यक्रम किया था उसमे मैंने मित्रों के साथ बैठे बैठे कह दिया की हम इस कार्यक्रम मैं सुन्दरलाल बहुगुणा जी को बुलाएँगे ... साथी बोले की क्या आप उन्हें जानते हैं जो वोह आपके प्रोग्राम मैं आ जायेंगे तो मैंने कहाँ नहीं जानता तो नहीं हूँ पर मैं उन्हें पत्र लिखूंगा और मुझे भरोसा है की वोह जरूर आयेंगे.
श्री सुन्दरलाल बहुगुणा
ताऊ : क्या फ़िर वो आये?
योगेश समदर्शी : बिल्कुल, मैंने एक भावुक पत्र लिखा और उसे पोस्ट कर दिया, पत्र पोस्ट करने के ठीक ४ दिन बाद मुझे बहुगुणा जी का फ़ोन आ गया .. उस वक्त मेरे पास मोबाइल तो होता नहीं था,, मेरे एक बुजुर्ग मित्र थे साहित्यकार ईश्वरदत्त वर्मा जी, में रोजाना उन्हें साहित्य पढ़ कर सुनाया करता था,, वह नजर कमजोर होने के कारण पढ़ नहीं सकते थे और कान से कम सुनते थे में उन्हें साहित्य पढ़ कर सुनाया करता था.
ताऊ : सुनाया करता था? मतलब?
योगेश समदर्शी : जी बिल्कुल यह मेरी ड्य़ुटी होती थी और वो मुझे इस काम के लिए १० रूपये प्रति घंटा का वेतन भी देते थे, तो उन्ही का फ़ोन नंबर मैंने पत्र में लिखा था और वहाँ मेरी उपलब्धता का टाइम भी लिखा था, तो वहीँ पर बहुगुणा जी का फ़ोन आया और उन्होंने कहा की मैं आपके प्रोग्राम में आ रहा हूँ फलां गाडी से आऊंगा सवेरे गाजियाबाद उतरूंगा ६ बजे, आप स्टेशन पर मुझे लेने आ जाना.
ताऊ : वाह फ़िर आगे क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : ताऊ आप यकीन नहीं मानेंगे किसी को उम्मीद नहीं थी की मेरे बुलावे पर बहुगुणा जी आ रहे हैं. कार्यक्रम का स्तर भी बहुत बड़ा नहीं था,, प्रेस को हमने सूचित तो किया था पर प्रेस को भी यकीन नहीं था.. कालेज के प्रिंसिपल तक को यकीन नहीं था की इस खादीधारी युवक के बुलावे पर इतनी बड़ी पर्सनैलिटी कैसे आ सकती है. तय दिन मैं उन्हें लेने स्टेशन पर पहुँच गया.
ताऊ : मतलब बिना कार वगैरह लिये ही?
योगेश समदर्शी : अब उस वक्त मेरे पास न तो कोई वाहन था और न ही मैं अपने मित्रों से सहायता ले पाया की कोई कार ले कर आ जाए और उन्हें ले आये फिर मैंने एक रिक्शा में उन्हें बैठाया और कार्यक्रम स्थल पर ले गया... उन्होंने मुझे काफी प्यार दिया और काफी हिम्मत भी बंधाई.. बाद में सभी चकित हो गए , प्रेस भी तुंरत कार्यक्रम मैं पहुँच गई... यह घटना मेरे जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं मैं से एक है..
ताऊ : फ़िर आपके जीवन मे परिवर्तन कैसे आया?
योगेश समदर्शी : इसी दौरान मेरी मुलाकात दिल्ली के एक समाजसेवी अजय भैया से हुई जहाँ से मेरी जीवन धारा बदल गई. इन्होने मुझे आजादी बचाओं आन्दोलन के मित्रों से भेंट कराइ जो उस समय देश में स्वदेशी के लिए संघर्ष कर रहे थे, और दिल्ली मैं अश्लीलता के खिलाफ अभियान चला रहे थे, मैं उनके सानिध्य मैं आ कर ऐसा महसूस करने लगा की मैं इसी काम के लिए बना हूँ.
ताऊ : तो क्या आप फ़िर उन्ही के साथ जुट गये?
योगेश समदर्शी : हां, उस आन्दोलन का एक एक साथी मुझे भगतसिंह दिखता था, बिलकुल वही जज्बा. वही हौंसला, वही तेवर, वही देश भक्ति और मैंने फैसला कर लिया की अब मेरा जीवन देश के लिए है. यह पहला बाल मन का फैसला था, पर था सच्चा.
ताऊ : हमने सुना कि आपने इसके बाद पढाई भी छोड दी?
योगेश समदर्शी : जी, मैंने १२ वीं के बाद पढाई छोड़ दी और मैं आजादी बचाओ आन्दोलन में जुट गया... इसी बीच जब मैं इस काम मैं काफी इन्वाल्व हो गया और मुझे ३ / ४ साल हो गए तो मैं आन्दोलन की कुछ बातों से थोडा क्षुब्ध सा हो गया. और अपनी राह खुद तलाश करने के लिए अकेला ही एक पदयात्रा पर चल पडा.
ताऊ : यह कब की बात है और कहां की पदयात्रा?
योगेश समदर्शी : मुजफर नगर से यह यात्रा शुरू की और मैं आसाम तक जाना चाहता था. मेरे इस फैसले से खुश हो कर एक मित्र यशवीर ने भी मेरा साथ देने की सोची ओर वो भी मेरे साथ हो लिया. यह १९९७ की बात है जब देश आजादी की ५० वीं वर्ष गाँठ मन रहा था.
ताऊ : इसका उद्देष्य क्या था?
योगेश समदर्शी : मैंने उस वक्त अपनी इस पदयात्रा का उदेष्य चेतना रखा आजादी के प्रति चेतना और नारा लिया " ये जश्ने आजादी झूंठा है" यात्रा के दौरान गाँव गाँव अलख जागते हुए रास्ते मैं पडने वाले स्कूल और कालिजों मैं अपनी बात रखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे.
ताऊ : हमने सुना है कि वहां कुछ लफ़डा हो गया था?
योगेश समदर्शी : नही ऐसा लफ़डा तो कुछ नही हुआ था. वहां पानीपत के आर्य कालेज मे मैने असेम्बली मे भाषण दिया तो वहां पर एक लडका कुछ ज्यादा ही प्रभावित होगया और बोला कि मैं तो आपके साथ ही चलूंगा. मैने कहा कि रहने दे भाई, तू अभी पढाई कर.
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : बस वो तो अड गया, माना ही नहीं, तब मैने कहा कि चल तेरे घर ले चल और हमको खाना खिलवा. वो उसके घर लेगया और उसकी मम्मी को खाना बनाने का बोला. हमको भूख बहुत लगी थी और हम खाना बनने का ईंतजार कर रहे थे कि इतने मे उस लडके के पिताजी आगये.
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : होना क्या था? हमने उनको नमस्ते की. और वो आश्चर्यचकित कि ये कौन महानुभाव बैठे हैं? उस वक्त मैं केवल खादी का एक बनियान और तहमंद पहनता था और दाढी बढ़ी हुई थी बिलकुल कोई संयाशी जैसी वेशभूषा होती थी.
ताउ : हां तो आगे क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : उस लडके के पिताजी सीधे अंदर चले गये. शायद उन्होने लडके से पूछा होगा कि ये लोग कौन हैं? और उसके बाद अन्दर से तेज तेज आवाजें आयीं.
ताऊ : अब तो सस्पेंस बढ गया है आपकी कहानी में?
योगेश समदर्शी : हम स्थिति भांप गए. मेरे मित्र ने कहा की चलो यार उठो और चलो यहाँ से कहीं पिट न जाएँ तो मैंने कहाँ नहीं खाना बन रहा है. खा कर ही जायेंगे.
ताऊ : ओह..तो क्या आपको वहां खाना खिलाया गया?
योगेश समदर्शी : हां हमें खाना खिलाया गया और उसके पिता जी ने कहा की अब आपने खाना खा लिया है अब आप जाइए, हमने कहा कि अपने बेटे से तो मिलवाइए जो हमें यहाँ लाया था तो बोले की उसे मैंने किसी काम से कहीं भेजा है वो अभी आपके सामने नहीं आ सकता. अब आप जाइए. यह बात मुझे आज तक नहीं भूलती, यहां चाहते तो सब हैं की भगत सिंह फिर पैदा हों देश मैं लेकिन अपने नही बल्कि पडौस में. ठीक यही व्यवहार मेरे माता पिता का मेरे प्रति भी था.
ताऊ : वो कैसे?
योगेश समदर्शी : उस पूरे दौर मे मैं अपने घर मैं हमेशा विरोध और विवाद का कारण बना रहा. खैर मैंने परिवार के दबाव मैं आ कर वो यात्रा भी दिल्ली तक पहुँच कर ही रद्द कर दी और अपने रास्ते भी बदल लिए.
ताऊ : तो आपका वो मिशन ठप्प हो गया?
योगेश समदर्शी : हां मैं देश का काम उस तरह नहीं कर पाया जिस तरह से मैं करना चाहता था लेकिन नैतिक रूप से और सिद्धांत रूप से मैं आज भी उसी विचार को अपने भीतर पका रहा हूँ. मैने आजीवन के लिए कुछ व्रत लिए और अपने उस जीवन की उसे उपलब्धि समझा.
ताऊ : क्या व्रत लिये?
योगेश समदर्शी : यही कि आजीवन शाकाहारी बना रहूँगा, नशा नहीं करूंगा, परस्त्री गमन नहीं करूंगा और देश के अहित में कभी कुछ नहीं करूंगा..
श्रीमती गीता और श्री योगेश समदर्शी
ताऊ : वाह जी ये तो आपने बडे ही सुंदर व्रत लिये. खैर आपने शादी कब की?
योगेश समदर्शी : हमने १९९८ में शादी की और तब से अकेले दम पर बिना परिवार के आर्थिक सहयोग के, अपनी गृहस्थी और रोजगार अब जमा लिया है.
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
योगेश समदर्शी : वैसे तो सब बता ही चुका हूं पर फिलहाल मेरे शौकों मैं सात्विक चर्चा, धार्मिक चर्चा , अच्छा साहित्य पढ़ना, कविताएँ लिखना, नाटक देखना और मौका लगे तो अभिनय करना, मेनें एक सीरियल मैं अभिनय भी किया है जो डीडी न्यूज पर प्रसारित हुआ था. और भाषण देना, यदि मौका मिल जाय तो..
ताऊ : आपको सख्त ना पसंद क्या है?
योगेश समदर्शी : दूसरों का फायदा उठाने वाले चालाक लोग, देशद्रोही, मेहनत से जी चुराने वाले, मुफ्तखोरी करने वाले लोग.
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
योगेश समदर्शी : हर वो चीज जो धरती पर जीवन को सुखद और सुन्दर बनाने में लगी है. खास कर प्रकर्ति.
ताऊ : हमारे पाठकों से कुछ कहना चाहेंगे?
योगेश समदर्शी :बस यही कहना चाहता हूँ की हम जितने सहज पैदा हुये थे उतने ही सहज हो जाएँ, कभी किसी का बुरा ना सोचे, और हमारा जो हो उसे सह पाने की शक्ति अपने भीतर ही पैदा करें... शायद यही प्रकृति हमसे चाहती है..
बिटिया प्राची अपनी मम्मी के साथ
ताऊ : आपके परिवार मे कौन कौन हैं?
योगेश समदर्शी : मैं अपनी पत्नी और दस वर्ष की बेटी के साथ रहता हूँ. परिवार से मेरी शादी से पहले भी कम बनती थी और उन्ही की मर्जी से उन्ही के द्बारा तय की गई शादी करने के बाद भी नहीं बन पाई. शादी के एक वर्ष के भीतर ही मुझे आर्थिक रूप से बेदखल कर दिया गया और मैंने अपने बलबूते अपना एक घोंसला बना लिया है. दाल रोटी चल रही है. परिवार के प्रति मेरे मन मैं सद्भाव हैं. पर संपर्क कम हैं...
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
योगेश समदर्शी : ब्लोगिंग भविष्य में साहित्य लेखन का मुख्य श्रोत बनेगा. जिसमे लोग अपने दिल की बात बिना किसी आडम्बर के लिख सकेंगे और यही समाज को सही रास्ते पर ले जाएगा जिस समाज मैं परस्पर संवाद होता है वहा समाज विकसित हुए बिना नहीं रह सकता.
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
योगेश समदर्शी : मुझे लगभग ३ वर्ष हो गए हैं
ताऊ : आपका लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
योगेश समदर्शी : मैं तो तब लिखता हूँ जब पेट में खूब मरोड़ पैदा हो जाती है.. अपने लेखन को किसी दिशा पर मैं नहीं देखता बस अभिव्यक्ति का माध्यम समझता हूँ जब कुछ कहना चाहता हूँ कह देता हूँ
ताऊ : क्या राजनिती मे आपकी रुचि है?
योगेश समदर्शी : हाँ राजनिति मे मेरी रूचि है. और मैं राष्ट्रवादी तानाशाह की राजनीति को सही मानता हूँ.. लोकतंत्र से मैं खुश नहीं हूँ..
बिटिया प्राची
ताऊ : आपकी बेटी प्राची के बारे मे कुछ बतायेंगे?
योगेश समदर्शी : मेरी एक ही बच्ची है, प्राची नाम है उसका. वह १० वर्ष की है, ५वीं मैं पढती है, कत्थक सीख रही है. काफी प्रतिभावान है. मैं उससे बहुत प्रफुल्लित होता हूँ. और संतुष्ट भी.
ताऊ : आपकी जीवन संगिनी के बारे मे भी कुछ बतायें?
योगेश समदर्शी : मेरी जीवन संगिनी मेरी आदर्श है, जब मैं डगमगाता हूँ वो मुझे सीधा कर देती हैं. मेरी कटु आलोचक हैं, और प्रशंषक और सहयोगी भी. मेरे हर समय में उसने मेरा हर तरह से साथ दिया है. जब मैं बदहाली की जिन्दगी जी रहा था तब भी वो मेरे साथ थी. अंधप्रशंषक नहीं है. काफी सोच समझ कर अपने फैसले करती हैं. मैंने उनसे काफी कुछ सीखा है और पाया भी है.
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे?
योगेश समदर्शी : ताऊ पहेली ब्लोगरों के लिए लत है. जिसके मुह एक बार लग जाती है वो इससे दूर नहीं जाता बल्कि कम्प्यूटर के निकट आ जाता है. सवेरे आठ बजे कंप्युटर के पास जा धमकता है हर शनिवार को. यहाँ दो काम होते है एक तो रोमांच होता है, खेल जैसा मजा आता है और दूसरा देश दुनिया की जानकारी मिलती है. एक पंथ दो काज हो जाते हैं यहाँ तो. यह एक उम्दा और दूरगामी परिणाम देने वाली शुरूआत है. इस तरह की पहेली की शुरूआत करके ताऊ ने लोगों को इन्टरनेट के माध्यम से शिक्षित करने का जो अभियान चलाया है वोह काबिले तारीफ है. इस पहेली के संचालक साधुवाद के हकदार हैं.
ताऊ : अक्सर लोग पूछते हैं...ताऊ कौन? आप क्या कहेंगे?
योगेश समदर्शी : बुढापे की तरफ जाता हुआ एक ऐसा इंसान जो दुनिया देख चुका है और काफी कुछ झेल सह कर अब दुनिया को कुछ अच्छा सन्देश देना चाहता है. कहना चाहता है की हंस खेल कर जीवन जियो, पहेलियों को सुलझाना सीखों क्योंकि जीवन एक पहेली है.. यदि इसे खेल समझ कर सुलझाओगे तो मजा आएगा और सवाल समझ कर चिंतित होवोगे तो उलझ कर दम तोड़ दोगे और जीवन खराब हो जाएगा... ताऊ चाहे कोई भी हो पर उसकी दुनिया में भरपूर जीवन्तता देखता हूँ.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बरे मे क्या कहना चाहेंगे?
योगेश समदर्शी : यह पत्रिका ब्लोगरों की दुनिया की हंस और धर्मयुग बनने जा रही है. हर किसी को जिसने इसे एक बार पढ़ लिया हर सोमवार को इन्तजार रहता है. मैं इस पत्रिका के दीर्घजीवी होने की कामना करता हूँ.
ताऊ : आप कविताएं बहुत अच्छी लिखते हैं और सुना है गाते भी उतनी ही अच्छी हैं. हमारे पाठकों को एक कविता सुनायेंगे तो हमें बहुत अच्छा लगेगा.
योगेश समदर्शी : ताऊ जी, आप यह कविता सुनिये :-
बरगद मिला उदास
अब एक सवाल ताऊ से :
योगेश समदर्शी : ताऊ एक बात बताओ की दुनिया मैं आपको सबसे प्यारा क्या है. और सबसे जयादा घृणा योग्य क्या है आपकी नजर में?
ताऊ : काफ़ी दार्शनिक सवाल है आपका. असल में हम जिससे प्यार करते हैं उससे ही घृणा भी करने लगते हैं. फ़िर वापस प्यार पर आ जाते हैं. असल मे ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इसलिये दोनो ही स्थितियों से बचना चाहिये. यह मध्य की स्थिति ही परम आनंद की स्थिति है और भगवान बुद्ध की सारी शिक्षा ही इसी मध्य मार्ग की है.
तो ये थे हमारे आज के मेहमान योगेश समदर्शी. आपको कैसा लगा इनसे मिलना. अवश्य बताईयेगा.
ताऊ : आप कहां के रहने वाले हैं?
योगेश समदर्शी : मैं मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के कलंजारी गाँव का मूला निवासी हूँ, वहीँ मेरा जन्म हुआ.
ताऊ : आपके नाम के साथ ये समदर्शी क्या है?
योगेश समदर्शी : ताऊ जी , मेरा नाम तो योगेश कुमार ही है, पर जब सामजिक जीवन में था तो मित्रों की सलाह पर यह उपनाम रखा था "समदर्शी". अतः कुछ लोग और अधिकतम लेखन आदि मे मैं योगेश समदर्शी नाम का ही उपयोग करता हूँ.
ताऊ : आप कब तक गांव मे रहे ? और क्या अब भी गांव की याद आती है?
योगेश समदर्शी : ताऊजी, मेरे पिता सेना में थे अतः उनके साथ १९९० में गाँव से बाहर निकला. और तब से गाँव छूट गया. अब चाह कर भी गाँव नहीं जा पाता.. बस गाँव की धरती के कण कण की यादों को दिल में रख कर जी रहा हूँ और उसी गाँव पर कभी कभी कुछा कविता जैसा लिख भी लेता हूँ जिन्हें आप मेरे ब्लॉग पर देख सकते हैं.
ताऊ : फ़िलहाल आप कहां रहते हैं और क्या करते हैं?
योगेश समदर्शी : फिलहाल मैं गाजियाबाद में रहता हूँ. और इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर इन्फोग्रफेर के पद पर कार्य करता हूँ.
ताऊ : योगेश, आपमें एक देश प्रेम का जज्बा दिखाई देता है. इसकी शुरुआत कैसे हुई?
योगेश समदर्शी : ताऊजी जब मैं पोर्ट ब्लेयर में ९ वीं क्लास मे पढता था. और मेरा स्कूल सेल्युलर जेल से मात्र २ किलोमीटर की दूरी पर था. तब मैं इस सेल्युलर जेल को देखने गया, तो समझिये की मेरा ह्रदय परिवर्तन हो गया.
ताऊ : यह अचानक हुआ?
योगेश समदर्शी : पता नही क्या हुआ? मैं सावरकर की कोठारी मैं खडा हो कर फूट फूट कर रोया. और फिर नियमित वहां जाने लगा. उपलब्ध साहित्य पढ़ा, अपने उत्तरप्रदेश के स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां पढ़ी और तब से मेरे बाल मन मैं देश भक्ति का पौधा पता नहीं कैसे पल्लवित हो गया.
ताऊ : फ़िर कब तक वहां आना जाना होता रहा?
योगेश समदर्शी : जब तक वहां रहा बाद मे जब पिताजी का तबादला हो गया और हम पुनः मेन लैंड में आ गए,
ताऊ : फ़िर आपकी पढाई लिखाई कहां हुई?
योगेश समदर्शी : उसके बाद मैं दिल्ली मैं पढ़ने लगा, और स्कूल के बच्चों को लेकर मैं सांस्कृतिक गतिविधियों मैं काफी हिस्सेदारी निभाता था.
ताऊ : मतलब यह भी आपका पुराना शौक था?
योगेश समदर्शी : हां यह कीडा मुझे गाँव से ही था बचपन में गाँव की रामलीला किया करता था.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने स्कूल जीवन मे बहुत से नाटक और नुक्कड नाटक किये थे?
योगेश समदर्शी : हां, इसके लिये जब मैं दिल्ली मे पढते हुये जब मैं १२ वीं क्लास में आया तो मैं देश प्रेम की भावना से प्रेरित हो कर और शफदर हाशमी के नुक्कड नाटको की बाते सुनी और जन नाट्यमंच के नाटक देख कर प्रेरणा प्राप्त की.
ताऊ : फ़िर आपने नाटक करने कब शुरु किये?
योगेश समदर्शी : हमारे क्लास के बच्चों को लेकर यानि १२ वीं कक्षा के अपने साथियों को साथ इक्कठा कर पहला नाटक खेला जिसका नाम था राम रहीम.
ताऊ : हमने सुना है कि इस नाटक को लिखा भी आपने ही था?
योगेश समदर्शी : हां यह यह नाटक बाबरी मस्जिद दंगों के बाद खेला गया जो हिन्दू मुस्लिम एकता पर आधारित थे और इस नाटक को मैंने ही लिखा था. नुक्क्ड नाटक की स्टाइल का यहाँ नाटक सबसे पहले हमने अपने स्कूल मैं खेला जहाँ इसकी काफी तारीफ हुए.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने एक नाट्य संस्था का गठन भी किया था?
योगेश समदर्शी : हां ताऊजी, इस नाटक की सफलता से उत्साहित होकर मैंने अपने साथियों को जोड़ा कर एक संस्था का निर्माण किया. जिसका नाम रखा " भारतीय नवयुवक एकता संगठन" .
ताऊ : यह कब की बात है?
योगेश समदर्शी : यह १९९५ की बात है. हम साथियों ने बहुत मेहनत से इस संगठन को खडा करने का प्रयास किया.
ताऊ : कौन कौन थे आपके साथी उस समय के?
योगेश समदर्शी : मेरे उस वक्त के साथियों मैं राजेश सागर, पंकज चौधरी, संतोष मिश्र, धरमेंदर मौर्या, मुकेश कल्पशी, आशीष, अनिल गुप्ता और सचिन शर्मा, रजनीश पूनिया, सहित कई और साथी शामिल थे जिनका नाम मुझे अभी याद नहीं आ रहा है.
ताऊ : इसमे आपने किस तरह के नाटक किये?
योगेश समदर्शी : इनके साथ मिलकर हमने गाजियाबाद के आसपास काफी नुक्कड नाटक किये, दहेज़ के खिलाफ, प्लेग से बचाव और पोलियों अभियान के नाटक इसमें मुख्य थे.
ताऊ : आपकी नाट्य संस्था का क्या हुआ..
योगेश समदर्शी : जी जब हम मित्रों ने बारहवीं पास कर ली तो सब अपने अपने कालेज चले गये उसके बाद मेरे नाट्य ग्रुप के साथी बिछड गए और मैंने एक प्रसिद्ध सुविख्यात नाटककार को अपना नाटक का गुरु बना लिया और उनके साथ लगभग १० - १५ नाटकों में अच्छी में भूमिकाएँ की, यह नाटक संस्था राजिंदर नगर, साहिबाबाद में आज भी चल रही है. साधना नाट्य कला केंद्र के नाम से.
ताऊ : इस संस्था के संस्थापक कौन थे?
योगेश समदर्शी : इसके संस्थापक और मेरे नाटक के गुरु जी थे स्वर्गीय श्री ललित मोहन थापल्याल जी, जिनका नाटक "चिमटे वाले बाबा" साहित्य कला अकादमी से पुरुष्कृत नाटक था, और पन्ने की अंगूठी नामक नाटक NSD के प्रसिद्ध निर्देशक द्वारा भी खेला जा चुका है.
ताऊ : सुना है की शादी के बाद भी आप गुरु जी के साथ जुड़े रहे और आपके साथ साथ आपकी धर्म पत्नी ने भी ललित मोहन जी के साथ नाटकों मैं काम किया.
योगेश समदर्शी :जी मेरी पत्नी ने भी वहां मेरे साथ नाटक कला का प्रशिक्षण लिया और हम दोनों ने मिल कर नाटकों में काम किया शरतचंद चटोपाध्याय की कहानी "ब्राहमण की बेटी" में मैंने और मेरी पत्नी दोनों ने अभिनय किया जिसका नाट्य रूपांतरण और निर्देशन गुरु जी ने किया था ... यह नाटक श्रीराम सेंटर मंडी हाउस में मचित हुआ था.
ताऊ : सामजिक कार्य करते हुए सुना है आप ने बड़े बड़े समाजसेवियों के सानिध्य मैं काम किया था?
योगेश समदर्शी : जी यह मेरा सोभाग्य ही है की मैं अपने उस बालकपन मैं ही इन जैसे बड़े और सुविख्यात समाजसेवियों के सानिध्य में काम कर सका.. उनमे से प्रमुख हैं सुंदर लाल बहुगुणा जी, मेधा पाटकर जी, स्वर्गीय समाजवादी चिन्तक और नेता किशन पटनायक जी, बी डी शर्मा जी, बनवारी लाल शर्मा जी, प्रसिद्ध लेखिका आशारानी वोहरा जी, योगेंदर यादव जी, प्रो अरुण कुमार जैसे अन्य अनेक समाजसेवियों के साथ काम किया था.
ताऊ : सुना है बिना आपसे पूर्व परिचय के आपकी लिखी केवल एक चिठ्ठी से सुन्दरलाल बहुगुणा जी गाजियाबाद में आपके प्रोग्राम में हिस्सा लेने आ पहुंचे थे, और आप उन्हें रिक्शा मैं बैठा कर कार्यक्रम स्थल पर ले गए?
योगेश समदर्शी : वाह ताऊ जी आप तो पूरी जासूसी के साथ आये हैं? आपने बिलकुल सही सुना है, मैंने गाजियाबाद के ऍम ऍम एच कालेज में एक कार्यक्रम किया था उसमे मैंने मित्रों के साथ बैठे बैठे कह दिया की हम इस कार्यक्रम मैं सुन्दरलाल बहुगुणा जी को बुलाएँगे ... साथी बोले की क्या आप उन्हें जानते हैं जो वोह आपके प्रोग्राम मैं आ जायेंगे तो मैंने कहाँ नहीं जानता तो नहीं हूँ पर मैं उन्हें पत्र लिखूंगा और मुझे भरोसा है की वोह जरूर आयेंगे.
ताऊ : क्या फ़िर वो आये?
योगेश समदर्शी : बिल्कुल, मैंने एक भावुक पत्र लिखा और उसे पोस्ट कर दिया, पत्र पोस्ट करने के ठीक ४ दिन बाद मुझे बहुगुणा जी का फ़ोन आ गया .. उस वक्त मेरे पास मोबाइल तो होता नहीं था,, मेरे एक बुजुर्ग मित्र थे साहित्यकार ईश्वरदत्त वर्मा जी, में रोजाना उन्हें साहित्य पढ़ कर सुनाया करता था,, वह नजर कमजोर होने के कारण पढ़ नहीं सकते थे और कान से कम सुनते थे में उन्हें साहित्य पढ़ कर सुनाया करता था.
ताऊ : सुनाया करता था? मतलब?
योगेश समदर्शी : जी बिल्कुल यह मेरी ड्य़ुटी होती थी और वो मुझे इस काम के लिए १० रूपये प्रति घंटा का वेतन भी देते थे, तो उन्ही का फ़ोन नंबर मैंने पत्र में लिखा था और वहाँ मेरी उपलब्धता का टाइम भी लिखा था, तो वहीँ पर बहुगुणा जी का फ़ोन आया और उन्होंने कहा की मैं आपके प्रोग्राम में आ रहा हूँ फलां गाडी से आऊंगा सवेरे गाजियाबाद उतरूंगा ६ बजे, आप स्टेशन पर मुझे लेने आ जाना.
ताऊ : वाह फ़िर आगे क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : ताऊ आप यकीन नहीं मानेंगे किसी को उम्मीद नहीं थी की मेरे बुलावे पर बहुगुणा जी आ रहे हैं. कार्यक्रम का स्तर भी बहुत बड़ा नहीं था,, प्रेस को हमने सूचित तो किया था पर प्रेस को भी यकीन नहीं था.. कालेज के प्रिंसिपल तक को यकीन नहीं था की इस खादीधारी युवक के बुलावे पर इतनी बड़ी पर्सनैलिटी कैसे आ सकती है. तय दिन मैं उन्हें लेने स्टेशन पर पहुँच गया.
ताऊ : मतलब बिना कार वगैरह लिये ही?
योगेश समदर्शी : अब उस वक्त मेरे पास न तो कोई वाहन था और न ही मैं अपने मित्रों से सहायता ले पाया की कोई कार ले कर आ जाए और उन्हें ले आये फिर मैंने एक रिक्शा में उन्हें बैठाया और कार्यक्रम स्थल पर ले गया... उन्होंने मुझे काफी प्यार दिया और काफी हिम्मत भी बंधाई.. बाद में सभी चकित हो गए , प्रेस भी तुंरत कार्यक्रम मैं पहुँच गई... यह घटना मेरे जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं मैं से एक है..
ताऊ : फ़िर आपके जीवन मे परिवर्तन कैसे आया?
योगेश समदर्शी : इसी दौरान मेरी मुलाकात दिल्ली के एक समाजसेवी अजय भैया से हुई जहाँ से मेरी जीवन धारा बदल गई. इन्होने मुझे आजादी बचाओं आन्दोलन के मित्रों से भेंट कराइ जो उस समय देश में स्वदेशी के लिए संघर्ष कर रहे थे, और दिल्ली मैं अश्लीलता के खिलाफ अभियान चला रहे थे, मैं उनके सानिध्य मैं आ कर ऐसा महसूस करने लगा की मैं इसी काम के लिए बना हूँ.
ताऊ : तो क्या आप फ़िर उन्ही के साथ जुट गये?
योगेश समदर्शी : हां, उस आन्दोलन का एक एक साथी मुझे भगतसिंह दिखता था, बिलकुल वही जज्बा. वही हौंसला, वही तेवर, वही देश भक्ति और मैंने फैसला कर लिया की अब मेरा जीवन देश के लिए है. यह पहला बाल मन का फैसला था, पर था सच्चा.
ताऊ : हमने सुना कि आपने इसके बाद पढाई भी छोड दी?
योगेश समदर्शी : जी, मैंने १२ वीं के बाद पढाई छोड़ दी और मैं आजादी बचाओ आन्दोलन में जुट गया... इसी बीच जब मैं इस काम मैं काफी इन्वाल्व हो गया और मुझे ३ / ४ साल हो गए तो मैं आन्दोलन की कुछ बातों से थोडा क्षुब्ध सा हो गया. और अपनी राह खुद तलाश करने के लिए अकेला ही एक पदयात्रा पर चल पडा.
ताऊ : यह कब की बात है और कहां की पदयात्रा?
योगेश समदर्शी : मुजफर नगर से यह यात्रा शुरू की और मैं आसाम तक जाना चाहता था. मेरे इस फैसले से खुश हो कर एक मित्र यशवीर ने भी मेरा साथ देने की सोची ओर वो भी मेरे साथ हो लिया. यह १९९७ की बात है जब देश आजादी की ५० वीं वर्ष गाँठ मन रहा था.
ताऊ : इसका उद्देष्य क्या था?
योगेश समदर्शी : मैंने उस वक्त अपनी इस पदयात्रा का उदेष्य चेतना रखा आजादी के प्रति चेतना और नारा लिया " ये जश्ने आजादी झूंठा है" यात्रा के दौरान गाँव गाँव अलख जागते हुए रास्ते मैं पडने वाले स्कूल और कालिजों मैं अपनी बात रखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे.
ताऊ : हमने सुना है कि वहां कुछ लफ़डा हो गया था?
योगेश समदर्शी : नही ऐसा लफ़डा तो कुछ नही हुआ था. वहां पानीपत के आर्य कालेज मे मैने असेम्बली मे भाषण दिया तो वहां पर एक लडका कुछ ज्यादा ही प्रभावित होगया और बोला कि मैं तो आपके साथ ही चलूंगा. मैने कहा कि रहने दे भाई, तू अभी पढाई कर.
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : बस वो तो अड गया, माना ही नहीं, तब मैने कहा कि चल तेरे घर ले चल और हमको खाना खिलवा. वो उसके घर लेगया और उसकी मम्मी को खाना बनाने का बोला. हमको भूख बहुत लगी थी और हम खाना बनने का ईंतजार कर रहे थे कि इतने मे उस लडके के पिताजी आगये.
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : होना क्या था? हमने उनको नमस्ते की. और वो आश्चर्यचकित कि ये कौन महानुभाव बैठे हैं? उस वक्त मैं केवल खादी का एक बनियान और तहमंद पहनता था और दाढी बढ़ी हुई थी बिलकुल कोई संयाशी जैसी वेशभूषा होती थी.
ताउ : हां तो आगे क्या हुआ?
योगेश समदर्शी : उस लडके के पिताजी सीधे अंदर चले गये. शायद उन्होने लडके से पूछा होगा कि ये लोग कौन हैं? और उसके बाद अन्दर से तेज तेज आवाजें आयीं.
ताऊ : अब तो सस्पेंस बढ गया है आपकी कहानी में?
योगेश समदर्शी : हम स्थिति भांप गए. मेरे मित्र ने कहा की चलो यार उठो और चलो यहाँ से कहीं पिट न जाएँ तो मैंने कहाँ नहीं खाना बन रहा है. खा कर ही जायेंगे.
ताऊ : ओह..तो क्या आपको वहां खाना खिलाया गया?
योगेश समदर्शी : हां हमें खाना खिलाया गया और उसके पिता जी ने कहा की अब आपने खाना खा लिया है अब आप जाइए, हमने कहा कि अपने बेटे से तो मिलवाइए जो हमें यहाँ लाया था तो बोले की उसे मैंने किसी काम से कहीं भेजा है वो अभी आपके सामने नहीं आ सकता. अब आप जाइए. यह बात मुझे आज तक नहीं भूलती, यहां चाहते तो सब हैं की भगत सिंह फिर पैदा हों देश मैं लेकिन अपने नही बल्कि पडौस में. ठीक यही व्यवहार मेरे माता पिता का मेरे प्रति भी था.
ताऊ : वो कैसे?
योगेश समदर्शी : उस पूरे दौर मे मैं अपने घर मैं हमेशा विरोध और विवाद का कारण बना रहा. खैर मैंने परिवार के दबाव मैं आ कर वो यात्रा भी दिल्ली तक पहुँच कर ही रद्द कर दी और अपने रास्ते भी बदल लिए.
ताऊ : तो आपका वो मिशन ठप्प हो गया?
योगेश समदर्शी : हां मैं देश का काम उस तरह नहीं कर पाया जिस तरह से मैं करना चाहता था लेकिन नैतिक रूप से और सिद्धांत रूप से मैं आज भी उसी विचार को अपने भीतर पका रहा हूँ. मैने आजीवन के लिए कुछ व्रत लिए और अपने उस जीवन की उसे उपलब्धि समझा.
ताऊ : क्या व्रत लिये?
योगेश समदर्शी : यही कि आजीवन शाकाहारी बना रहूँगा, नशा नहीं करूंगा, परस्त्री गमन नहीं करूंगा और देश के अहित में कभी कुछ नहीं करूंगा..
ताऊ : वाह जी ये तो आपने बडे ही सुंदर व्रत लिये. खैर आपने शादी कब की?
योगेश समदर्शी : हमने १९९८ में शादी की और तब से अकेले दम पर बिना परिवार के आर्थिक सहयोग के, अपनी गृहस्थी और रोजगार अब जमा लिया है.
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
योगेश समदर्शी : वैसे तो सब बता ही चुका हूं पर फिलहाल मेरे शौकों मैं सात्विक चर्चा, धार्मिक चर्चा , अच्छा साहित्य पढ़ना, कविताएँ लिखना, नाटक देखना और मौका लगे तो अभिनय करना, मेनें एक सीरियल मैं अभिनय भी किया है जो डीडी न्यूज पर प्रसारित हुआ था. और भाषण देना, यदि मौका मिल जाय तो..
ताऊ : आपको सख्त ना पसंद क्या है?
योगेश समदर्शी : दूसरों का फायदा उठाने वाले चालाक लोग, देशद्रोही, मेहनत से जी चुराने वाले, मुफ्तखोरी करने वाले लोग.
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
योगेश समदर्शी : हर वो चीज जो धरती पर जीवन को सुखद और सुन्दर बनाने में लगी है. खास कर प्रकर्ति.
ताऊ : हमारे पाठकों से कुछ कहना चाहेंगे?
योगेश समदर्शी :बस यही कहना चाहता हूँ की हम जितने सहज पैदा हुये थे उतने ही सहज हो जाएँ, कभी किसी का बुरा ना सोचे, और हमारा जो हो उसे सह पाने की शक्ति अपने भीतर ही पैदा करें... शायद यही प्रकृति हमसे चाहती है..
ताऊ : आपके परिवार मे कौन कौन हैं?
योगेश समदर्शी : मैं अपनी पत्नी और दस वर्ष की बेटी के साथ रहता हूँ. परिवार से मेरी शादी से पहले भी कम बनती थी और उन्ही की मर्जी से उन्ही के द्बारा तय की गई शादी करने के बाद भी नहीं बन पाई. शादी के एक वर्ष के भीतर ही मुझे आर्थिक रूप से बेदखल कर दिया गया और मैंने अपने बलबूते अपना एक घोंसला बना लिया है. दाल रोटी चल रही है. परिवार के प्रति मेरे मन मैं सद्भाव हैं. पर संपर्क कम हैं...
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
योगेश समदर्शी : ब्लोगिंग भविष्य में साहित्य लेखन का मुख्य श्रोत बनेगा. जिसमे लोग अपने दिल की बात बिना किसी आडम्बर के लिख सकेंगे और यही समाज को सही रास्ते पर ले जाएगा जिस समाज मैं परस्पर संवाद होता है वहा समाज विकसित हुए बिना नहीं रह सकता.
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
योगेश समदर्शी : मुझे लगभग ३ वर्ष हो गए हैं
ताऊ : आपका लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
योगेश समदर्शी : मैं तो तब लिखता हूँ जब पेट में खूब मरोड़ पैदा हो जाती है.. अपने लेखन को किसी दिशा पर मैं नहीं देखता बस अभिव्यक्ति का माध्यम समझता हूँ जब कुछ कहना चाहता हूँ कह देता हूँ
ताऊ : क्या राजनिती मे आपकी रुचि है?
योगेश समदर्शी : हाँ राजनिति मे मेरी रूचि है. और मैं राष्ट्रवादी तानाशाह की राजनीति को सही मानता हूँ.. लोकतंत्र से मैं खुश नहीं हूँ..
ताऊ : आपकी बेटी प्राची के बारे मे कुछ बतायेंगे?
योगेश समदर्शी : मेरी एक ही बच्ची है, प्राची नाम है उसका. वह १० वर्ष की है, ५वीं मैं पढती है, कत्थक सीख रही है. काफी प्रतिभावान है. मैं उससे बहुत प्रफुल्लित होता हूँ. और संतुष्ट भी.
ताऊ : आपकी जीवन संगिनी के बारे मे भी कुछ बतायें?
योगेश समदर्शी : मेरी जीवन संगिनी मेरी आदर्श है, जब मैं डगमगाता हूँ वो मुझे सीधा कर देती हैं. मेरी कटु आलोचक हैं, और प्रशंषक और सहयोगी भी. मेरे हर समय में उसने मेरा हर तरह से साथ दिया है. जब मैं बदहाली की जिन्दगी जी रहा था तब भी वो मेरे साथ थी. अंधप्रशंषक नहीं है. काफी सोच समझ कर अपने फैसले करती हैं. मैंने उनसे काफी कुछ सीखा है और पाया भी है.
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे?
योगेश समदर्शी : ताऊ पहेली ब्लोगरों के लिए लत है. जिसके मुह एक बार लग जाती है वो इससे दूर नहीं जाता बल्कि कम्प्यूटर के निकट आ जाता है. सवेरे आठ बजे कंप्युटर के पास जा धमकता है हर शनिवार को. यहाँ दो काम होते है एक तो रोमांच होता है, खेल जैसा मजा आता है और दूसरा देश दुनिया की जानकारी मिलती है. एक पंथ दो काज हो जाते हैं यहाँ तो. यह एक उम्दा और दूरगामी परिणाम देने वाली शुरूआत है. इस तरह की पहेली की शुरूआत करके ताऊ ने लोगों को इन्टरनेट के माध्यम से शिक्षित करने का जो अभियान चलाया है वोह काबिले तारीफ है. इस पहेली के संचालक साधुवाद के हकदार हैं.
ताऊ : अक्सर लोग पूछते हैं...ताऊ कौन? आप क्या कहेंगे?
योगेश समदर्शी : बुढापे की तरफ जाता हुआ एक ऐसा इंसान जो दुनिया देख चुका है और काफी कुछ झेल सह कर अब दुनिया को कुछ अच्छा सन्देश देना चाहता है. कहना चाहता है की हंस खेल कर जीवन जियो, पहेलियों को सुलझाना सीखों क्योंकि जीवन एक पहेली है.. यदि इसे खेल समझ कर सुलझाओगे तो मजा आएगा और सवाल समझ कर चिंतित होवोगे तो उलझ कर दम तोड़ दोगे और जीवन खराब हो जाएगा... ताऊ चाहे कोई भी हो पर उसकी दुनिया में भरपूर जीवन्तता देखता हूँ.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बरे मे क्या कहना चाहेंगे?
योगेश समदर्शी : यह पत्रिका ब्लोगरों की दुनिया की हंस और धर्मयुग बनने जा रही है. हर किसी को जिसने इसे एक बार पढ़ लिया हर सोमवार को इन्तजार रहता है. मैं इस पत्रिका के दीर्घजीवी होने की कामना करता हूँ.
ताऊ : आप कविताएं बहुत अच्छी लिखते हैं और सुना है गाते भी उतनी ही अच्छी हैं. हमारे पाठकों को एक कविता सुनायेंगे तो हमें बहुत अच्छा लगेगा.
योगेश समदर्शी : ताऊ जी, आप यह कविता सुनिये :-
पत्थर के दिल हो गये, पथरीले आवास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
फसलें सहमी झुलस कर, काट रही थी दिन
और खेत सूने मिले, हल बैलों के बिन
कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
उग आई आंगन कई, मोटी सी दीवार
कितना निष्ठुर हो गया, आपस में परिवार
चिडिया सब चुप हो गई, कग्गे भये निराश
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
रिश्ते बेमानी हुए, सगे सौतेले लोग
स्वास्थ्य से दुश्मनी, घर घर बैटे रोग
दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
अपने तक सीमित हुए, जो थे बडे उदार
कैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
चावल ढाई हो गया, हुक्के सबके पास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
और खेत सूने मिले, हल बैलों के बिन
कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
उग आई आंगन कई, मोटी सी दीवार
कितना निष्ठुर हो गया, आपस में परिवार
चिडिया सब चुप हो गई, कग्गे भये निराश
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
रिश्ते बेमानी हुए, सगे सौतेले लोग
स्वास्थ्य से दुश्मनी, घर घर बैटे रोग
दारू पी कर सभ्यता, खेल रही थी तास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
अपने तक सीमित हुए, जो थे बडे उदार
कैसी शिक्षा पा गये, बदल गया व्यवहार
चावल ढाई हो गया, हुक्के सबके पास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
अब एक सवाल ताऊ से :
योगेश समदर्शी : ताऊ एक बात बताओ की दुनिया मैं आपको सबसे प्यारा क्या है. और सबसे जयादा घृणा योग्य क्या है आपकी नजर में?
ताऊ : काफ़ी दार्शनिक सवाल है आपका. असल में हम जिससे प्यार करते हैं उससे ही घृणा भी करने लगते हैं. फ़िर वापस प्यार पर आ जाते हैं. असल मे ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इसलिये दोनो ही स्थितियों से बचना चाहिये. यह मध्य की स्थिति ही परम आनंद की स्थिति है और भगवान बुद्ध की सारी शिक्षा ही इसी मध्य मार्ग की है.
तो ये थे हमारे आज के मेहमान योगेश समदर्शी. आपको कैसा लगा इनसे मिलना. अवश्य बताईयेगा.
अरे वाह, समदर्शी साहब से तो बडी बडी बातें जानने को मिल गयीं। आभार।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत प्रभावित किया योगेश जी ने.. वाकई सोचते सभी है पर कुछ लोग कर गुजरतें हैं..
ReplyDeleteप्राची बहुत प्यारी है.. उसे ढेर सारा प्यार..
सस्वर कविता पाठ ने बहुत प्रभावित किया. योगेश जी के परिवार से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteसस्वर कविता पाठ ने बहुत प्रभावित किया. योगेश जी के परिवार से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत आभार आपका इस परिचय के लिए. ब्लागजगत से भी एक से बढकर एक हस्तियां जुडी हुई हैं.
ReplyDeleteयह जानकर बहुत खुशी हुई कि आज भी ऐसे जज्बे वाले युवक हैं जो अपनी मंजिल की तरफ़ बढने की कोशीश करते हैं. यह ईंटर्व्यु बहुत प्रभावित कर गया.
ReplyDeleteयोगेश जी को परिवार सहित शुभकामनाएं और ताऊ आपको तो हैं ही.
यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आज भी ऐसे जज्बे वाले युवक हैं जो अपनी मंजिल की तरफ़ बढने की कोशीश करते हैं. यह ईंटर्व्यु बहुत प्रभावित कर गया.
ReplyDeleteयोगेश जी को परिवार सहित शुभकामनाएं और ताऊ आपको तो हैं ही.
यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आज भी ऐसे जज्बे वाले युवक हैं जो अपनी मंजिल की तरफ़ बढने की कोशीश करते हैं. यह ईंटर्व्यु बहुत प्रभावित कर गया.
ReplyDeleteयोगेश जी को परिवार सहित शुभकामनाएं और ताऊ आपको तो हैं ही.
bahut badhiya laga yogesh ji se milkar.
ReplyDeleteताऊ इस कर्मठ कवि हृदय व्यक्ति से मिलकर बहुत बढिया लगा. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteताऊ इस कर्मठ कवि हृदय व्यक्ति से मिलकर बहुत बढिया लगा. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअच्छा लगा इनसे मिलके
ReplyDeleteये नाम के ही नहीं सिर्फ
विचारों से भी समदर्शी हैं
इसलिए सम (पहेली) जाते
हैं जीत दर्शी (देख देख कर)
आते हैं आस्था कुंज पर
नहीं
जाते हमसे मिलकर।
समदर्शी जी अगली बार जब
भी आस्था कुंज आएं तो
हमसे अवश्य मिलें आपका
रहेगा इंतजार।
योगेश जी के बारे में जानकर, कविता सुनकर और ताऊजी का दार्शनिकता से भरा जवाब सुनकर बहुत अच्छा लगा.. आभार
ReplyDeleteयोगेश जी के बारे जानकर बहुत अच्छा लगा | परिचय कराने के लिए ताऊ पत्रिका का आभार |
ReplyDeleteजय राम जी की ताऊ, इब थम इन्टरव्यू भी लेण लाग्या। वाह भई ताऊ तेरे रंग निराले...:)
ReplyDeleteयोगेश जी को तो हम जानते थे, किन्तु आपने उनकी पत्नी व प्यारी प्राची से भी परिचित करवाया...उनके बारे में भी पढ़ा...अच्छा लगा। शुक्रिया।
बहुत अच्छा लगा योगेश जी से मिलना, चलिये खाना तो खिलाया, कही भूखे ही नही निकाल दिया,बात सही कही कि हर कोई चाहता है भगत सिंह पेदा हो, लेकिन .....
ReplyDeleteबच्ची प्राची को बहुत भौत प्यार.
धन्यवाद ताऊ जी
बहुत बडिया परिचय रहा सम्दर्शी जी से उनकी कविता ने तो मन मोह लिया बहुत बहुत शुभकामनायें आभार्
ReplyDeleteअच्छा साक्षात्कार! समदर्शी जी आदर्श और यथार्थ के मिश्रण हैं। कुछ कर गुजरने का जज्बा है। देश, कौम और मानवता के लिए। यह जज्बा बना रहे तो इंसान अपनी मंजिल भी पा लेता है। समदर्शी जी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ। वे अपनी मंजिल जरूर पाएँ।
ReplyDeleteबस यही कहना चाहता हूँ की हम जितने सहज पैदा हुये थे उतने ही सहज हो जाएँ,
ReplyDeleteवाह वाह ताऊ मजा आ गया समदर्शी जी से मिल कर...आज देश को ऐसे ही नौजवानों की जरूरत है...उनकी आवाज़ में गया गीत प्रभ शाली है...बिटिया प्राची के लिए इश्वर से कामना करते हैं की उसे एक सुखद जीवन यापन करने का अवसर मिले और समदर्शी जी सपरिवार आनंद से रहें...
नीरज
समदर्शी जी से मिलकर अच्छा लगा. बहुत अच्छा लगा. कर्मठ और साफगो इंसान हैं.
ReplyDeleteवास्तव में ही, सेलुलर जेल की कोठरी में खड़े होकर, ठीक ऐसी ही अनुभूति होती है, जैसा योगेश जी ने कहा.
राजनीतिज्ञों को शपथें दिलाने से अच्छा है कि उन्हें, कम से कम एक दिन उन कोठरियों में अकेले बिताने को कहा जाए...जिनमें हमारी आज़ादी के लिए हजारों सिरफिरों ने सबसे दूर अकेले में, चुपचाप अपनी जिंदगियां बिता दीं, पर उफ़ तक न की...
ऐसे ही, इंसान की कलम से ऐसी सुन्दर, भावुक और सशक्त कविता उपज सकती है.
मैं तो सोचता था कि अब ऐसे लोग नही है इस धरती पर। ना जाने क्यूँ एक जोश सा आ गया। और थोडा भावुक भी हो गया। वैसे योगेश जी सही कहा आपने कि भगत सिहं ...............। अब सोच रहा हूँ मेरी निगाह से कैसे बचे रह गए ये बंधु। अभी जाता हूँ इनके ब्लोग पर। खैर ....। प्राची बेटी को खूब सारा प्यार और आशीर्वाद।
ReplyDeleteधीरे धीरे...ब्लॉग से खूंटे गायब होते जा रहे हैं.... (!)
ReplyDeleteभाई ताऊ, आज तो कतई चाल्ले पाड दिए.
ReplyDeleteये साहब तो अपने मेरठ के देहाती ही निकले. इनके गाँव कलंजरी में तो अपना आना-जाना लगा रहता है.
इरादे तो इनके बड़े ही दृढ थे, लेकिन अभी भी ये इतना पारिवारिक विरोध झेलने के बाद भी अपने मिशन में लगे हुए हैं, इसे क्या कहेंगे? दृढ निश्चय- है ना?
योगेश समदर्शी असाधारण हैं, मेरा सौभाग्य है कि मित्र हैं। योगेश जी से परिचर्चायें जब भी और जितनी भी की हैं वे हमेशा ही सार्थक रही है और एक सकारात्मक उर्जा से समाप्त हुई हैं। उर्जा, योगेश का परिचय है चाहे किसी अभियान के लिये हो, विचार के लिये या वार्तालाप के लिये..
ReplyDeleteबहुत प्रभावित किया योगेश जी ने.. !!
ReplyDeleteयोगेश जी के परिवार से मिलकर बहुत अच्छा लगा!!
योगेश समदर्शी से आपके जरिये मिल कर बहुत अच्छा लगा .बहुत सुलझे और अच्छे इंसान है .इनकी रचना तो लाजवाब है और ताऊ जी आपका अंतिम जबाब तो बेमिसाल है .
ReplyDeleteयोगेश जी के बारे जानकर बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteयोगेशजी से मिल के अच्छा लगा. क्या दिन जीयें हैं योगेशजी ने भी ! जज्बा बना रहे.
ReplyDeleteयोगेश जी से मिलवाने के लिए आभार। कम ही लोग अपनी तरह से जीवन जीने का साहस कर पाते हैं।
ReplyDeleteघुघुती बासूती
योगेश समदर्शी जी जैसे युवा भारत के लिए समस्त मानव जाती के लिए और प्रक्रति के लिए बहुत कूचा करा राहे हैं ये जानकर खुशी हुई
ReplyDeleteउनके समस्त परिवार को शुभकामनाएं
- लावण्या
योगेश जी का परिचय एवम साक्षात्कार पढा। उनकी बहुत सी बाते जीवन उपयोगी लगी। मेरी और से भाई योगेश जी एवम उनके परिवार को मगलकामनाये। एवम प्रस्तुति के माध्यम बने ताऊ एवम ताऊ पत्रिका का आभार।
ReplyDeleteमहावीर बी सेमलानी "भारती"
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
वाह!! योगेश भाई के जीवन के इतने पहलु जानने मिले आपके माध्यम से कि आनन्द ही आ गया.
ReplyDeleteकविता सुनकर भावुक हो उठा, तब कुछ रुक कर वापस आया हूँ टिप्पणी करने.
बहुत सुन्दर!!
समदर्शी जी की अन्तःप्रेरणा ही उनसे इस प्रकार के महत्वपूर्ण और गौरवपूर्ण कार्य करवाती है । मनोदशा के पक्के हैं योगेश जी । इस परिचयनामे का शुक्रिया ।
ReplyDeleteमुलाकात बहुत अच्छी लगी। समदर्शी जी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteयोगेश जी के बारे में जानकर और उनसे परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ! प्राची तो बहुत ही प्यारी है!
ReplyDeleteताऊ सुन्दर भेंट करवाई .
ReplyDeleteआपके नाम से कोई फर्जी ( बिना ब्लॉगर सयिन वाले अंदाज़ में ) दुर्गन्ध फैला रहा है टिप्पनिओं में . कुछ जगह तू तू मैं मैं भी . सावधान और कुछ करें . मेरे नाम के साथ और सुरेश चिपलूनकर के साथ हो चूका है .
योगेश समदर्शी जी के बारे में इतने विस्तार से जानना बहुत ही अच्छा लगा.......उनकी कविता तथा ताऊ जी आपका दार्शनिकता से भरपूर जवाब भी कमाल है।...धन्यवाद
ReplyDeleteबरगद मिला उदास - बहुत अच्छी कविता |
ReplyDeleteफसलें सहमी झुलस कर, काट रही थी दिन
और खेत सूने मिले, हल बैलों के बिन
कुएं खुद ही मर गये झेल झेल कर प्यास
अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास
बधाई
RC
interview ke bahane Yogesh ji ke baare mai kafi kuchh janne ko mil gaya...
ReplyDeleteआदरणीय ताऊ ..
ReplyDeleteसादर नमस्कार..आपके ऐसे ही दुर्लभ प्रयासों ..और विशिष्ठ सोच के कारण आपकी लोकप्रियता ने कुछ जलनशील लोगों को आपका दुश्मन बना दिया...इसका अनुमान मुझे कल हुआ...मगर मुझे ये कहने में कोई हिचक नहीं की आप हिंदी ब्लॉग्गिंग में एक मील का पत्थर साबित हो चुके हो...
आज का साक्षात्कार ...श्री योगेश जी जैसे अनोखे इंसान से मुलाकात..उनका जीवन..सब कुछ कभी ना भूलने वाला जैसा है ..संग्रहणीय ...
समदर्शी साहब से मिल कर अच्छा लंगा।
ReplyDeleteप्राची बिटिया को आशीर्वाद।
आदरणीय सुन्दरलाल बहुगुणा जी की चर्चा प्रासंगिक है।
3 दिन से नेट खराब था। इसलिए देर से आना हुआ।