ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अंक -37

प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के 37 वें अंक मे हार्दिक स्वागत है.

अक्सर पहेलियों को कुछ लोग बच्चों का खेल समझते हैं. और बडी धीर गंभीर मुद्रा अख्तियार किये रहते हैं. जैसे कि पहेली मे भाग लेते कोई देख लेगा तो कोई उनके बारे में गलत धारणा बना लेगा.

और कुछ लोग पहेली में भाग लेते हुये ऐसी हरकतें करते हैं जैसे कि यह उनके जीवन मरण का प्रश्न हो? हमारी समझ से दोनों ही गलत हैं. यह जो दूसरे प्रकार के लोग हैं वो भी असली मजा नही ले पाते. पहेली एक टानिक की तरह काम करती है. लेकिन उपरोक्त दोनो प्रकार के लोग असली बात से चूक जाते हैं. आप पहेली को खेल भावना से लें, दूसरों का भी उतना ही सम्मान करें जितना आप चाहते हैं.

नीचे हम विकीपिडिया से एक उद्धरण कोट कर रहे हैं, जो विकी पिडिया से लिया है और उसी का लिंक भी दे रहे हैं. हमारा निवेदन है कि आप अवश्य उसको पढे और देखे कि खेल खेल में इसका क्या प्रभाव पडता है.

पहेली व्यक्ति के चातुरता को चुनौती देने वाले सवाल होते है। जिस तरह से गणित के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, उसी तरह से पहेलियों को भी नज़रअन्दाज नहीं किया जा सकता। पहेलियां आदि काल से व्यक्तित्व का हिस्सा रहीं हैं और रहेंगी। वे न केवल मनोरंजन करती हैं पर दिमाग को चुस्त एवं तरो-ताजा भी रखती हैं।

मार्टिन गार्डनर ने अपनी एक किताब की भूमिका मे पहेलियों के महत्व को इस प्रकार से समझाया है,........

तो शांति और शूकून के साथ पहेलियों में खेल भावना से भाग लेते रहें और अपने दिमाग की क्षमता को पैना करते रहे. हम जल्द ही एक विस्तृत लेख इस विषय पर लिखेंगे.

आपका यह सप्ताह शुभ हो.


-ताऊ रामपुरिया
(मुख्य संपादक)

"सलाह उड़नतश्तरी की" -समीर लाल

जिन्दगी में जब किसी मुद्दे पर अनिश्चितता के बादल घेर लें और तुम्हें समझ न आये कि दो रास्तों में से किस रास्ते का चुनाव करें तो ऐसे में एक सिक्का हवा में उछालो. वो इसलिए नहीं कि सिक्के के गिरने पर जो पहलु सामने दिखेगा , वह तुम्हारा जबाब होगा बल्कि इसलिये कि जब तक वो सिक्का हवा में रहेगा तुम जान जाओगे कि तुम्हारा दिल क्या चाहता है. बस, वही रास्ता लेना.
इस तरह का सुवचन कहीं पढ़ रहा था अंग्रेजी में.

यूँ तो दिमाग से लिए गये फैसले ही जीवन की सफलता का राज हैं किन्तु कई बार दिमाग विरोधाभासी परिस्थितियों में फंस जाता है, तब दिल की बात सुनने में कोई बुराई नहीं.

अक्सर हम लेखन में इस तरह की परिस्थितियों में आ जाते हैं कि सोचने लगते हैं, इसे लिखे या न लिखें. क्या असर होगा इसका? कोई बुरा तो नहीं मान जायेगा? किसी को चोट तो नहीं पहुँचेगी इससे? हम दुविधा में पड़े किसी भी निर्णय तक नहीं पहुँच पाते ऐसे में इस तरह का उपाय कारगर सिद्ध हो सकता है.
मुझे लगा कि यह बात आप सब से बांटना चाहिये सो कह दी.

बाकी अगले सप्ताह, तब तक:


अनजान राहें.........

राह पकड मैं चल रहा था, मंज़िल थी बस ध्यान मे

देखा तब दो राह को बनते, उस पर्ण वन उद्यान मे.

एक मैं और सीमा मेरी है, दोनो पर क्या चल पाऊँगा

उस पथ की आशा है मुझको , मंज़िल जिस पर पा जाऊँगा.

एक वो जो अल्लहड बाला सी, बना ना सकी कोई पहचान

दूजी राह कि जिस पर थे अंकित, असंख्य कदमों के निशां.

मैने चुनी वो राह जिस पर, घाँस उगी थी हरी हरी

शायद अब तक कम ही होंगे, जिसने इसकी थाह धरी.

सोचता था फ़िर कभी, यह दूसरी मै राह लूँगा

अंर्तमन मे जानता था, कहाँ कभी ये अंज़ाम दूँगा.

चल पडा बिन पद चिन्ह की, उस राह का दामन मैं थाम

शायद वो ही फ़ैसला था, जिससे पाया अभिनव मुकाम.

--The Road Not Taken-Robert Frost का हिन्दी नज़रिया एवं रुपांतरण: समीर लाल


"मेरा पन्ना" -अल्पना वर्मा


केवल १ ,९८८ ,६३६ [२००१ की गणना के अनुसार]की जनसंख्या वाले पहाड़ी राज्य जिसकी राजधानी कोहिमा है ,आज चलते हैं उस राज्य की तरफ जिसका नाम है नागालैंड.इसे पूरब का स्विजरलैंड भी कहते हैं.

पूर्व में म्‍यांमार, उत्‍तर में अरूणाचल प्रदेश, पश्चिम में असम और दक्षिण में मणिपुर से घिरा हुआ नागालैंड 1 दिसंबर, 1963 को भारतीय संघ का 16 वां राज्‍य बना था.

इस राज्य में ११ जिले हैं.नागालैंड की प्रमुख जनजातियां है: अंगामी, आओ, चाखेसांग, चांग, खिआमनीउंगन, कुकी, कोन्‍याक, लोथा, फौम, पोचुरी, रेंग्‍मा, संगताम, सुमी, यिमसचुंगरू और ज़ेलिआंग.

'नगा 'भाषा एक जनजाति से दूसरी जनजाति और कभी-कभी तो एक गांव से दूसरे गांव में भी अलग हो जाती है इसीलिये इन्‍हें तिब्‍बत बर्मा भाषा परिवार में वर्गीकृत किया गया है. नागा लोग भारतीय-मंगोल वर्ग लोगों में से है.मुख्यत १६ जनजाति के लोग हैं .इन लोगों में संगीत का विशेष महत्व है.

बारहवीं-तेरहवीं शताब्‍दी में इन लोगों के असम के अहोम लोगों संपर्क होने से भी इन लोगों के रहन-सहन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा.

उन्‍नीसवीं शताब्‍दी में अंग्रेजों के आने पर यह क्षेत्र ब्रिटिश प्रशासन के अधीन आया.आजादी के बाद, 1957 में यह क्षेत्र केंद्रशासित प्रदेश बना .उस समय असम के राज्‍यपाल इसका प्रशासन देखते थे.यह नागा हिल्‍स तुएनसांग क्षेत्र कहलाया जाने लगा . लेकिन स्थानीय जनता में जब असंतोष पनपने लगा तब 1961 में इसका नाम बदलकर ‘नागालैंड ’ रखा गया और भारतीय संघ के १६ वें राज्‍य के रूप में विधिवत उद्घाटन 1 दिसंबर, 1963 को हुआ.

लगभग 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है.यह गौर करने लायक बात है कि १९८१ के सर्वेक्षण के अनुसार यहाँ शत प्रतिशत गावों में बिजली पहंचा दी गयी है और 900 से अधिक गांवों को सड़कों से जोड़ा गया है.

कब जाएँ? - पूरे साल आप कभी भी जाएँ. सारा साल मौसम सुहाना रहता है. दिसम्बर में एक खाब होर्निबल पर्व मनाया जाता है, जिस में राज्य कि सभी जनजातियाँ भाग लेती हैं. दूर दूर से इस उत्सव को देखने लोग यहाँ आते हैं.

कैसे जाएँ? - नागालैंड में दीमापुर एकमात्र ऐसा स्‍थान है, जहां रेल और विमान सेवाएं उपलब्‍ध हैं.

ज़रूरी सूचना - [एक बार फिर राज्य के पर्यटन विभाग से निश्चित करें]---इस राज्य में प्रवेश के लिए विदेशियों को आर ऐ पी.[प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट ] /पाप और नागरिकों को -इन्नर लाइन permit-की आवश्यकता होगी. एक छोटा सा शुल्क दे कर भारतियों को यह इन्नर लाइन परमिट कोलकाता, दीमापुर, गौहाटी और दिल्ली से मिल जाता है.

बिना परमिट के जाने पर राज्य के प्रवेश द्वार[चेक पोस्ट] पर चेकिंग के समय ही बस से उतार दिया जाता है.परमिट के अलावा अगर आप के पास कोई ख़ास पहचान पत्र है तब भी आप प्रवेश पा सकते हैं.[यात्रा प्लान करते समय नियमो की जांच अवश्य कर लें]. delhi में ऑफिस-
Deputy Resident Commissioner, Nagaland House, New Delhi
Phone No. : +91-11-23012296 / 23793673
यह भी सच है कि यहाँ की सुरक्षा स्थित की भी जाने से पहले जांच कर लेनी चाहिये क्योंकि नागालैंड में मैदानी लोग या फिर गैर नागाओं में असुरक्षा की भावना दिखती है वह उनके प्रवास तक बरकरार रहती है.इस का कारण यहाँ भूमिगत संगठनों का सरकार के समांतर सरकार चलाना है.और बेशक ,इस अलगाववादी राजनीति से नागालैंड राज्य को नुक्सान ही हुआ है. सीजफायर के बावजूद आज भी नागालैण्ड में आप को असुरक्षा महसूस हो सकती है,ऐसा वहां से आये पर्यटक कहते हैं.शाम पांच बजे तक बाज़ार बंद हो जाते हैं.

-बाज़ार की बात याद आते ही मुझे यहाँ के बाज़ारों की कुछ ख़ास बातें बताना जरुरी लग रहा है..जो मैदानी इलाकों से आये लोगों के लिए [ख़ासकर मेरे जैसे शाकाहारियों के लिए अनोखी सी लगे.कोहिमा के सब्जी बाज़ार में आप को रंग बिरंगे कीडे मकोडे ,घोंघा आदि बिकते मिल जायेंगे..और तो और पानी की थैलियों में भरे जिंदा मेंढक बिकते दिखेंगे.

कुत्ते का मांस बड़े शोक से यहाँ के लोग खाते हैं. इस के अलावा सुअर, गाय, मुर्गा, बकरा, मछली भी इन्हें बहुत प्रिय है. सब्जियों में साग, पत्ते, नागा बैगन, बीन, पत्ता गोभी आदि खाते हैं.

पेयजल की बहुत दिक्कत है.पीने का पानी सरकार देती तो है मगर फिर भी कमी ही है. यहाँ तक कि ये लोग बरसात में chhat से टपकने वाले पानी तक को एकत्र कर के रखते हैं.

पान और कच्ची सुपारी यहाँ के लोग बड़े शौक से खाते हैं वह चाहे महिला हो या पुरुष .हाँ..एक और ज़रूरी बात...नागालैंड dry area है! मतलब यहाँ मद्यपान निषेध है.

हिंदी यहाँ के लोग समझ लेते हैं..थोडी बहुत बोल भी लेते हैं इस लिए भाषा की दिक्कत नहीं आएगी.
दीमापुर, राज्य का एक मात्र शहर है जो रेल, सड़क और हवाई मार्ग से देश के अन्य क्षेत्रों से जुड़ा है, इस कारण इसे राज्य का द्वार भी कहते हैं.

देखने की जगहें-

१-दीमापुर २-किफिरे ३-कोहिमा ४-लोंग्लेंग ५-मोकोकचुंग ६-मों 7-परें ८-फेक
९-तुएंसंग १०-वोखा ११-जुन्हेबोतो

अगर नागालैंड की वास्तविक संस्कृति देखनी हो तो ''टूरिस्ट विलेज`` में zarur जाना चाहिये

'कोहिमा वार सिमेटरी'
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जो जगह पहेली में 'कोहिमा वार सिमेटरी' दिखाई गयी थी वह कोहिमा शहर में है.
कोहिमा एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहीं सब से ऊंची गर्रिसन पहाड़ी पर द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानी सेना से युद्ध के दौरान शहीद हुए देशी और विदेशी अफसरों और जवानों की याद में कोहिमा में''वार सिमेटरी`` बना है .यह एक विश्व प्रसिद्द जगह है.

1944 में चार अप्रैल से 22 जून तक हुए युद्ध में जहां चार हजार भारतीय और ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे, वहीं सात हजार से ज्यादा जापानियों की जानें गई थी. बाद में अर्ल माउंटबेटन ने इस युद्ध को इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध और बर्मा अभियान के लिए निर्णायक क्षण कहा था. यह युद्ध 64 दिनों तक चला था और इसमें जिला आयुक्त के बंगले के टेनिस मैदान में भी हिंसक संघर्ष हुआ था। कोहिमा का युद्ध दो चरणों में हुआ था. पहले चरण में चार अप्रैल से 16 अप्रैल तक जापान ने कोहिमा पर्वतशिखर पर कब्जा करने का प्रयास किया गया , दूसरे चरण में 18 अप्रैल से 22 जून तक ब्रिटिश और भारतीयों ने जापानियों के कब्जे को समाप्त करने के लिए जवाबी हमले किए, युद्ध 22 जून को समाप्त हुआ.



बहुत ही सुन्दर तरीके बनाया गया यह क्षेत्र और यहाँ हर कब्र पर शहीद सैनिक के बारे में जानकारी अंकित है. यहाँ प्रवेश करते ही 'दूसरे ब्रिटिश divison ' के एक अफसर की कब्र पर लिखा है :-

“ When You Go Home, Tell Them Of Us And Say,

For Their Tomorrow, We Gave Our Today ”

कुल १४२० शहीदों की कब्रें /यादगार पत्थर इस सेमेट्री में लगे हैं.९१७ हिन्दू और सिखों को उनके रीती के अनुसार डाह संस्कार करने के बाद उनकी याद में भी पत्थर लगाये हुए हैं.

सब से कम उम्र का किशोर शहीद सैनिक पंजाब का 'गुलाब' था जिसकी उम्र मरते समय मात्र १६ साल थी!
किसी ने सच कहा है..किसी भी राष्ट्र को उसके शहीदों को कभी नहीं भूलना चाहिये. उन सभी अमर जवानों को श्रद्धांजलि के साथ विदा लेती हूँ..अगली बार एक नयी जगह की जानकारी के साथ फिर मिलेंगे.


“ दुनिया मेरी नजर से” -आशीष खण्डेलवाल

आइए आपको दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर से मिलवाएं

गूगल सर्च इंजन को कष्ट देते हुए आज यह जानने की कोशिश की गई कि दुनिया का सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर कौन है। नतीजा दिलचस्प रहा और दिल को सुकून देने वाला भी। दिलचस्प इसलिए क्योंकि वरिष्ठतम चिट्ठाकार की उम्र 96 साल है और दिल को सुकून देने वाला इसलिए, क्योंकि ये महाशय भारतीय मूल के हैं। दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर हैं, रेंडिल बूटीसिंह औऱ वे अमेरिका के फ्लोरिडा में रहते हैं।

हाल ही उनके ब्लॉग को lifebeginsat80.com वेबसाइट की ओर से ग्रेपाउ पुरस्कार के नवाज़ा गया है। ब्रिटिश गुएना में 1, दिसंबर 1912 को जन्मे बूटीसिंग काफी अर्से से ब्लॉगिंग कर रहे हैं। उनके सात बच्चे, 19 पोते-पोतियां और 18 प्रपौत्र-प्रपोत्रियां हैं। इतनी उम्र के बावजूद भी वे ब्लॉग पर पोस्ट को लिखने से लेकर पब्लिश करने का काम स्वयं ही करते हैं।

बूटीसिंह का ब्लॉग


बूटिसिंह की जानकारी यहां से ली जा सकती है और उनके ब्लॉग पर यहां से जाया जा सकता है।

क्या आप जानते हैं कि 109 और 108 साल की दो महिला चिट्ठाकारों का निधन पिछले साल ही हुआ है। इनके बारे में अधिक जानकारी फिर किसी अंक में।

अगले हफ्ते फ़िर मुलाकात होगी.. हैपी ब्लॉगिंग.


"मेरी कलम से" -Seema Gupta



एक पढ़ा-लिखा बेहद घमंडी व्यक्ति एक नाव में सवार हुआ। अपने अहंकार में चूर वह नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’
नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’
घमंडी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र ऐसे हीँ बेकार गवां दी !’

थोडी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”
नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।
घमंडी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“
मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। अचानक दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।

नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’
घमंडी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’
“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।

नैतिक मूल्य :-

मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।


"हमारा अनोखा भारत" -सुश्री विनीता यशश्वी


रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड की बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थ यात्राओं में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव है। यह समुद्र तल से 610 मी. की उंचाई पर बसा हुआ है। भगवान रुद्रनाथ का मंदिर यहीं अलकनन्दा व मंदाकिनी के संगम में स्थित है। इसके अलावा शिव और शक्ति की संगम स्थली भगवती का मंदिर भी इस स्थान पर ही है।

महाभारत में इस स्थान को रुद्रावत नाम से जाना गया है। केदारखंड में इस स्थान के बारे में लिखा गया है कि - नारदमुनि ने एक पैर में खड़े होकर यहां शिव की तपस्या की थी। उसके बाद शिव ने उन्हें अपने रौद्र रूप के दर्शन दिये थे। शेषनाग के आराध्य देव शिव के इस स्थान पर अनेकों मंदिर हैं। ऐसा माना जाता है कि नागों ने इसी स्थान पर शिव की आराधना की थी और उनसे वरदान मांगा था कि शिव उन्हें अपना आभूषण बनायें।

संगम के लिये रुद्रप्रयाग स्टेशन से कुछ दूरी पर एक पैदल मार्ग जाता है। इस संगम स्थान पर श्रृद्धालु स्थान करते हैं और भगवान रूद्र के दर्शन करते हैं तथा शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। यहां शिवलिंग के अलावा गणेश व पार्वती की मूर्तियां भी हैं।

रूद्रप्रयाग में एक संस्कृत महाविद्यालय भी है जिसे स्वामी सचिदानन्द जी ने बनवाया था। रुद्रप्रयाग के निकट ही एक स्थान है गुलाबराय। यह वह स्थान है जहां जिम कॉर्बेट ने एक खतरनाक नरभक्षी बाघ को मारा था। जिसका उस समय इस इलाके में बहुत ही आतंक था। जिम कॉर्बेट ने अपनी पुस्तक `मैन इटिंग लैपर्ड ऑफ रुद्रप्रयाग´ इसी बाघ के उपर लिखी थी।


रुद्रप्रयाग से 4 किमी. आगे कोटेश्वर महादेव का मंदिर पड़ता है। जिसके दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है। यह मंदिर 20 फीट लम्बी गुफा में है जिसमें पानी प्राकृतिक रूप से टपकता रहता है। इस स्थान में सावन के प्रत्येक सोमवार और शिवरात्री के दिन मेले लगते हैं। इस स्थान से कुछ दूरी पर उमानारायण का मंदिर भी है।


"नारीलोक" -प्रेमलता एम. सेमलानी


बदाम की कतली के साथ बनाए ठण्डा पेय पाईनेपल सुप्रीम
हर दिन मसालेदार खाने से जी उकता गया होगा. आज मेरा भी मन मिठाई खाने और ठण्डा ज्युस पिने को ललचा रहा है.
आगे त्योहार भी आ रहे है. सुना है, मिठाईयो की दुकान मे मिलावटी चीजे बहुत मिलती है. मिठाईयो मे मिलाए जाने वाले "मावा" कैमिकलयुक्त अकृत्रिम रुप से तैयार कर मिठाईयो मे मिलाया जा रहा है.

इस मिलावटी मिठाईयो से हम और हमारे बच्चे घातक बिमारीयो से ग्रसित हो सकते है. कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है. सावधान रहे! और कोशिश करे की शुद्ध स्वादिष्ट, व स्वास्थय के लिए सुरक्षित सभी तरह की मिठाईया घर पर ही बनाए. जो सस्ती के साथ-साथ सुरक्षित भी होगी. तो अब मेहमान नवाजी मे पुरे भारत भर मे मिठाई मे सबसे अधिक पसन्द की जाने वाली "बदाम की कतली" बनाएगे. और साथ मे ही "पाईनेपल सुप्रीम" ठण्डा पेय बनाकर स्वाद लेगे. तो आप सभी तैयार है.

"बदाम की कतली" के साथ बनाए ठण्डा पेय "पाईनेपल सुप्रीम"

बादाम (छिला हुआ पीसा हुआ) 1 किग्राम
चीनी .750 ग्राम
वर्क थोडा सा ( बेहतर होगा आप वर्क ना लागाऎ तो क्यो की स्वास्थ की दृष्टी हानिकारक है.)
चीनी और बदाम मिलाकर गैस पर मन्दी ऑच पर चढाए.
तब तक चलाए जब तक गोली ना बन्धे, हाथ के चिपकना नही चाहिऎ.
उतारकर कर ठण्डा होने दे. ठण्डा होने पर बडी रोटी बेलकर वर्क लगाए.
चाकू से पतग के आकार काटकर सर्व करे, या स्टोर करे.
नोट:- इसे आप लोहे की साफ़ कडाई मे बानाऎ तो ज्यादा अच्छी बनेगी
मघुमेह वालो के लिऎ बनाना हो तो चीनी की जगह suger free gold या suger free natura (कोई भी बाजार मे उपलब्ध शुगर फ़्रि) ले.
काजु कतली बनानी हो तो बदाम की जगह काजु ले.

पाईनेपल सुप्रीम
फ़्रेश या टिन सन्तरे का रस 1/2 कप
फ़्रेश या टिन अनन्नास रस 1-1/2 कप (डेढ कप)
अनन्नास एसेन्स 2 बून्द
वनीला आइसक्रिम 4 टेबल स्पून
बर्फ़ कुटी हुई थोडी सी
सभी चीजो को मिलाकर एक मिनट तक मिक्सी मे चलाए.
गिलास मे डालकर तुरन्त सर्व करे.
जरुर बताऎ की "बदाम की कतली" और "पाईनेपल सुप्रीम" आपको कैसी लगी ?
मै बादाम
बादाम के बारे मे कहा जाता है कि - "मानव की शान ऑख, पक्षी की पॉख और अमीर की नाक "बादाम" है.
प्रकृति ने बदाम को नयन की आकृति देकर इसके गोरव को अधिक ऊचा उठा दिया है. सचमुच बादाम मेवा जगत मे नेत्रोपम है. कागजी बदाम, जो हीरे के समान है. नया खुन बनाती है. मस्तिष्क को अभिनव शक्ती प्रदान करती है. हृदय को बलशाली बनाती है. बदाम को भिगोकर सुबह सुबह दुध के साथ लेने से सत्व पैदा होता है. बच्चो का मस्तिष्क तेज और मजबुत होता है. इसमे विटामीन डी प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है.
चलते चलते आपसे मन की बात

सबसे अनमोल तोहफ़ा अगर
आप किसी
को देते है, तो वह है वक्त
क्योकि आप किसी को अपना
वक्त देते है तो
आप अपनी जिन्दगी का वो पल
देते है जो लोटकर नही आता......

अब मै आपसे इजाजत चाहुगी। अगले सोमवार एक नई रेसिपी के साथ ढेर सारी बाते करने फिर आऊगी।
कहॉ.................................. ?
जी हॉ.................................!
सही फरमाया आपने...................................!
"ताऊ डॉट ईन" पर......................।
नमस्कार!
प्रेमलता एम सेमलानी


सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
"मैं हूं हीरामन"

अरे हीरू…जल्दी देख..जल्दी.. अबे क्यूं चिल्लाये जा रिया हे?

अरे देख वो सेहर आंटी क्या के री हैं?  बोल रई हैंगी कि समीर अंकल मारेंगे?

अरे नही यार…ला जरा मुझे देखने दे…ले द्ख ले भिया….

  Blogger M.A.Sharma "सेहर" said...

क्लू देखकर तो लग रहा है की.... है तो कुमाँऊ के खेत.....अब रानीखेत भी नहीं तो .....शिमला...??
अब में रामप्यारी के दुख से दुखी हूँ न सो दीमाग उधर ज्यादा लगा है....:)
कल समीर जी मारेंगे उसे जिसने ग्लू लगाया ......:)))
सादर !!

 Blogger दीपक "तिवारी साहब" said...

अरे रामप्यारी..इतने पैसे का क्या करेगी? गरीब कर्मचारियों को उनका हक दे दिया कर. अब कैमरे के पीछे भी तू ही काम कर लेगी तो तेरी नाक पर तो पत्थर पडने ही हैं.

 Blogger ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey said...

जगह तो नहीं मालुम पा गीत याद आ गया - हरी भरी वसुन्धरा पे नीला नीला ये गगन!

चल भिया निकल ले…अपने को नही पिटना..

हां यार..क्या पता इस रामप्यारी की नाक पर ये सिक्का कौन चिपका गया?

कहीं अपने माथे आ गई तो….चल उड जल्दी से……



ट्रेलर : - पढिये : सुश्री लवली कुमारी से ताऊ की एक सौजन्य भेंट का ब्यौरा!
"ट्रेलर"


गुरुवार शाम को ३: ३३ पर ताऊ की सौजन्य भेंट का ब्यौरा : सुश्री लवली कुमारी से...पढना ना भुलियेगा.

ताऊ : कोई ऐसी बात जो आप हमारे पाठको से कहना चाहें?

लवली जी : जरुर क्योंकि यहाँ सारे पाठक हिंदी ब्लोगर भी है मैं कहना चाहूंगी, अगर आप अपनी विचारधारा को सही समझते हैं और सामने वाले को गलत .. तब भी प्रतिद्वंदी के सामने तकपूर्ण ढंग से अपनी बात रखे, कुतर्कों और पूर्वाग्रहों से बचें.

ताऊ : अच्छा हमने सुना है कि एक बार आपने भूत बनकर किसी को बहुत बुरी तरह डरा दिया था?

लवली जी :???????????????

याद रखिये गुरुवार शाम ३ : ३३ ताऊ डाट इन पर




अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.

संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी

ताऊ पहेली -37 की विजेता सुश्री सीमा गुप्ता

प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम !
कल की ताऊ पहेली - 37 का सही उत्तर है "वार सिमेट्री कोहिमा" नागालैंड. जिसके बारे मे कल ताऊ साप्ताहिक पत्रिका में विस्तार से बता रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा. .

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 कोहिमा वार सिमेट्री

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बांस के पाईप में पीने का पानी ले जाते हुये नागा औरतें.

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 एक  नागा घर 



अब बात करते हैं ताऊ पहेली - ३५ के परिणामों की और विजेताओं की.
 
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 प्रथम विजेता : अंक १०१

सुश्री सीमा गुप्ता

Meet sketch

 द्वितिय विजेता : अंक १००

श्री मीत

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 तृतिय विजेता : अंक ९९

श्री प्रकाश गोविंद


आईये अब क्रमश: आज के अन्य माननिय विजेताओं से आपको मिलवाते हैं.

रंजन

अंक ९८

Blogger संजय तिवारी ’संजू’

अंक ९७

Blogger अविनाश वाचस्पति

अंक ५०

Blogger HEY PRABHU YEH TERA PATH अंक ५०


इसके अलावा निम्न महानुभावों ने भी इस पहेली अंक मे शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया. जिसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं.

सुश्री , M.A.Sharma"सेहर"श्री दिनेशराय द्विवेदी, श्री काजलकुमार, सुश्री वाणीगीत, श्री सुशीलकुमार छौंक्कर,
श्री सोनु, श्री रतन सिंह शेखावत, श्री दीपक तिवारी साहब, श्री संजय बेंगाणी, श्री अनिल पूसदकर, सुश्री विधु,
डा, रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक", श्री ज्ञानदत्त पांडे, श्री मकरंद, श्री भानाराम जाट, श्री राज भाटिया, सुश्री प्रेमलता पांडे, श्री अभिषेक ओझा, सुश्री महक और सुश्री हरकीरत हकीर

आपका सबका तहेदिल से शुक्रिया.


हाय…गुड मोर्निंग एवरी बडी…आई एम राम..की प्यारी… रामप्यारी.

हां तो अब जिन्होने सही जवाब दिये उन सबको दिये गये हैं ३० नम्बर…अगर भूल चूक हो तो खबर कर दिजियेगा..सही कर दिये जायेंगे.



सही जवाब तो आपको मेरी उपर की फ़ोटो देखकर पता चल ही गया होगा? पता नही कैसे ये मक्खी आकर मेरी नाक पर बैठ गई और यह कहावत गलत हो गई कि रामप्यारी तो नाक पर मक्खी भी नही बैठने देती.

हां तो सबसे पहले सही जवाब दिया दिलिप कवठेकर अंकल ने, फ़िर वो संजय बेंगाणी अंकल ने भी सही ताड लिया कि यह मक्खी ही है. फ़िर मीत अंकल तो क्युं कम रहने वाले थे. उनको भी सिक्के के पीछे मक्खी दिखाई दे गई.

फ़िर संजय तिवारी संजू अंकल और प.डी.के.शर्मा"वत्स" अंकल को भी मक्खी दिखाई दी और फ़िर प्रीती बर्थ्वाल आंटी को तो दिख ही गई मेरे नाक पर बैठी हुई मक्खी.

आप सबको हार्दिक धन्यवाद और साथ में तीस तीस नम्बर भी.

अब रामप्यारी की तरफ़ से रामराम…अगले शनीवार फ़िर से यही मिलेंगें. वैसे आजकल शाम ६ बजे मैं ताऊजी डाट काम पर रोज ही मिल जाती हूं. ..और हां आपका कल से शुरु होने वाला सप्ताह शुभ हो.
अच्छा अब नमस्ते. कल सोमवार को ताऊ साप्ताहिक पत्रिका मे आपसे पुन: भेंट होगी.
सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद.
ताऊ पहेली – 37 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया.


संपादक मंडल :-

मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तंभकार : प्रेमलता एम. सेमलानी ( नारीलोक)

ताऊ पहेली -37

प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम.

ताऊ पहेली अंक 37 में मैं ताऊ रामपुरिया, सह आयोजक सु. अल्पना वर्मा के साथ आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. क्ल्यु हमेशा की तरह रामप्यारी के ब्लाग से मिलेंगे. रामप्यारी के ब्लाग पर पहला क्ल्यु 11:30 बजे और दुसरा 2:30 बजे मिलेगा. रामप्यारी का जवाब अलग टिपणी में देवें. तो आईये अब आज की पहेली की तरफ़ चलते हैं.

बताईये यह कौन सी जगह है?


अब रामप्यारी का विशेष बोनस सवाल : - ३० अंक के लिये.


मिस. रामप्यारी के सवाल के प्रतिभागियों को हीरामन का नमस्कार.

आप सोच रहे होंगे कि ये रामप्यारी मैम की जगह हीरामन टिपण्णी खोजू कहां से टपक पडा? तो आप चिंतित ना हों. मैं सिर्फ़ आज ही यहां सवाल पूछने आया हूं.

कारण आज मैम बहुत व्यस्त हैं. उनकी कर्मचारियों से समझौता वार्ता चल रही है. पूरा किस्सा कुछ इस प्रकार है.

कल रामप्यारी मैम की फ़िल्म "ताऊ की शोले" की शूटिंग मे कुछ तकनीकी कर्मचारियों ने वेतन भत्तों को लेकर हडताल और आंदोलन की राह पकड ली. ताऊ की शोले के सेट पर कल तोडफ़ोड और आगजनी की घटना भी हुई.जिस पर तुरंत समय रहते काबू पा लिया गया.

आप जानते हैं कि रामप्यारी मैम को यह सब बर्दाश्त नही है सो उन्होने तुरंत प्रभाव से दस तकनीकी कर्मचारियों को गेट आऊट कर दिया और खुद ही कैमरा संभालते हुये बाद के एपिसोड शूट किये.

एक दृष्य मे जब जय ने सिक्का ऊछाला तो वो सिक्का रामप्यारी मैम की नाक और कैमरे के बीच आ गया. उसी समय स्टील फ़ोटोफ़्राफ़र ने नीचे वाला फ़ोटो खींच लिया. आप नीचे का चित्र देखें. और दिये गये आप्शंस में से चुनकर यह बतायें कि रामप्यारी मैम ने आखें इस तरह क्युं कर ली? यानि कारण क्या था?




आपको तो सिर्फ़ इस चित्र को देखकर निम्न मे से सही उत्तर का चुनाव करना है.

A. शूटिंग मे दृश्य को एकटक देखने से रामप्यारी की आंखों की पुतलियां रुक गई?
B. रामप्यारी ने खट्टी इमली की गोली मुंह मे रख ली? जिससे ऐसा हो गया?
C. रामप्यारी के नाक पर कोई उडती हुई मक्खी आकर बैठ गई?
D. हडताली कर्मचारियों ने रामप्यारी की नाक पर चोट पहुंचाई?
E. या इस सिक्के की वजह से रामप्यारी मैम ने डरकर आंखें तिरछी करली?
F. अन्य कोई कारण? आप बताईये.

सिक्का हटाने के बाद की तस्वीर जवाबी पोस्ट के साथ कल दिखाई जायेगी.

नोट : आज रामप्यारी के सवाल की कोई भी टिपणी यानि सही/गलत रोकी नही जायेगी. यानि सब तुरंत प्रकाशित होंगी.

तो फ़टाफ़ट जवाब दिजिये. सवाल है तीस नम्बर का. सब नियम वैसे के वैसे हैं. इस सवाल का जवाब अलग टिपणी से देना है.


अब हीरामन की नमस्ते!

इस अंक के आयोजक हैं ताऊ रामपुरिया और सु,अल्पना वर्मा



नोट : यह पहेली प्रतियोगिता पुर्णत:मनोरंजन, शिक्षा और ज्ञानवर्धन के लिये है. इसमे किसी भी तरह के नगद या अन्य तरह के पुरुस्कार नही दिये जाते हैं. सिर्फ़ सोहाद्र और उत्साह वर्धन के लिये प्रमाणपत्र एवम उपाधियां दी जाती हैं.किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजकों और ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा.

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मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग

 

नोट : – ताऊजी डाट काम  पर हर शाम 6:00 बजे नई पहेली प्रकाशित होती हैं. यहा से जाये।

सुलग रहा आसमान


सुलग रहा आसमान


रुखी, तपती हुई दुपहरी
चले धूल भरी काली आंधी
चहूं और धूल कण बिखरे
सूखे दिन, और अलसाई रातें
कुछ हताशा कुछ निरशा ,
क्यूँ ये पीडा , कब तक तपना

बावरा मन समझ ना पाए
कब अमृतमयी वर्षा आ बरसे
अभी तो सर पर सुलग रहा
मटमैला ..लाल तपता आसमान
दरवाजों को भडभडाती आंधी
कब आये स्नेहभरी हरयाली
झूम के गाये कोयल काली
इस एक आस में नयन ये तरसे


(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)

परिचयनामा : श्री अविनाश वाचस्पति

आईये आज के परिचयनामा में हम आपको मिलवाते हैं एक ऐसे शख्स से..जिसको आप नहीं जानते हों? ऐसा तो हो नही सकता. आपको जहां भी कहीं छंदमयी टिप्‍पणियां दिखें...अजी दिखें क्या बल्कि हर जगह बिखरी पडी मिलेंगीं. समझ लीजिये उसी शख्सियत का नाम है श्री अविनाश वाचस्पति. इनसे हमको हर सवाल का जवाब मिला पर हर जवाब में एक प्रतिप्रश्न अवश्य मुंह बाये खडा था. आप भी पढिये इस सारी गुफ़्तगू को, जो कि ताऊ स्टूडियो मे सम्पन्न हुई.
श्री अविनाश वाचस्पति का इंटर्व्यु लेते हुये ताऊ

ताऊ : अविनाश जी कुछ अपने बारे में बताईये?
अविनाश जी : ताऊजी सीधे से कहिए न कि अपना गुणगान करना है।
ताऊ : जी ठीक है..ऐसा ही समझ लीजिये.
अविनाश जी : हूं..तो... झूठा करना है या सच्‍चा करना है?
ताऊ : जैसा आप चाहें? यह आपको मौका दिया जाता है.
अविनाश जी : ठीक है जब आप मौका ही दे रहे हैं तो भरपूर करना है। वैसे मैं भारत से ही हूं।
ताऊ : श्रीमान जी, वैसे मैं भारत से ही हूं..का क्या मतलब?
अविनाश जी : अब इंटरनेट क्रांति के बाद यह कहूं कि इंटरनेटीय गांव से हूं तो अधिक उपयुक्‍त रहेगा ना।
ताऊ : आप करते क्या हैं?
अविनाश जी : करता वही हूं जो हर इंसान करता है। इसके अतिरिक्‍त अपना और परिवार का पेट भरने के लिए सरकारी नौकरी कर रहा हूं और दिमाग चलाने के लिए पाठन और लेखन में सक्रिय हूं।
ताऊ : आप किस तरह का लेखन करते हैं?
अविनाश जी : लेखन में कल्‍पना और सच दोनों। किसी से भी पक्षपात करना मुझे नहीं सुहाता है। कल्‍पना करने के लिए कविता है और सच्‍चाई कहने के लिए व्‍यंग्‍य। इसके अतिरिक्‍त भी अब कल्‍पना और सच्‍चाई का मिश्रित रूप ब्‍लॉग पोस्‍टों की टिप्‍पणियों के तौर पर प्रतिफलित होता है।

अलबेला क े साथ

श्री  अलबेला खत्री और श्री पवन चंदन के साथ

श्‍याम माथुर के साथ सिने पत्रकारिता पुस्‍तक पर प्रथम पुरस्‍कार से सम्‍मानित

श्री  श्याम माथुर के साथ

शेफाली पांडेय के

सु. शेफ़ाली पांडे के साथ



ताऊ : आपके जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना बताईये?
अविनाश जी : जीवन ही अविस्‍मरणीय है तो घटनाएं सभी अविस्‍मरणीय ही होंगी। पर अधिकतर विस्‍मृत हो जाती हैं अविस्‍मरणीय होते हुए भी। क्‍योंकि दिमाग कोई कंप्‍यूटर की हार्ड डिस्‍क थोड़े ही है कि सब सुरक्षित रहेगा।
ताऊ : बात तो सही है. पर फ़िर भी?
अविनाश जी : देखिये ताऊजी, सुरक्षित रहने पर भी कई बार फॉर्मेट करना ही पड़ता है और दिमाग के साथ अपनी सीमाएं हैं, सब याद रखूं तो पागल हो जाऊंगा और मेरी पागल होने अथवा किसी को पागल करने की तनिक सी भी तमन्‍ना नहीं है।
ताऊ : तो फ़िर क्या चाहते हैं?
अविनाश जी : सबसे प्‍यार करना और प्‍यार पाना चाहता हूं और अपने प्रयासों में सफल भी रहता हूं।
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
अविनाश जी : शौकीन तो बहुत ही हूं मैं. अगर खुलकर कह दूं तो बड़े बड़ों को शोक लग जाएगा और मैं सबको अशोकी बनाने में विश्‍वास रखता हूं शोकग्रस्‍त करने में नहीं।
ताऊ : मतलब
अविनाश जी : मतलब साफ़ है इसलिए खुलासा नहीं करना चाहूंगा. मतलब पोल पट्टी तो बांधनी ही चाहिए चाहे अपनी हो या दूसरे की। पोल पट्टी खोलने से दूर ही रहता हूं।
ताऊ : जैसी आपकी मर्जी. कौन सी बात आपको पसंद नही है? यानि नापसंद है.
अविनाश जी : नापसंद करना ही सख्‍त नापसंद है। मुझे सब कुछ पसंद है। इसमें बुरी बातें भी हैं। बुरे कार्य भी हैं। इसका कारण अगर बुरी बातें या बुरे कार्य नहीं होंगे तो अच्‍छी बातों और कार्यों का वजूद ही नहीं रहेगा।
ताऊ : तो फ़िर आपको पसंद क्या है?
अविनाश जी : मुझे पसंद है पसंद मित्रता करना और निभाना। सबसे अधिक पसंद है।
ताऊ : और क्या पसंद है?
अविनाश जी :पसंद तो यह भी है कि चौबीसों घंटे पढ़ता लिखता रहूं और ऐसा संभव नहीं है। सुबह उठते ही अखबार पढ़ना पसंद करता हूं। नियम से 5 हिंदी अखबार तो चाहिए ही, एक दो और बढ़ जाएं तो और अच्‍छा लगता है।
ताऊ : कौन से अखबार पढते हैं? नाम बतायेंगे?
अविनाश जी : दैनिक भास्‍कर, हरिभूमि, जनसत्‍ता, नवभारत टाइम्‍स और सांध्‍य टाइम्‍स (पिछली शाम का जो अगली सुबह मेरे पास आता है).
ताऊ : और कोई विशेष पसंद?
अविनाश जी : अब ब्‍लॉगिंग महापसंदगी है मेरी।
ताऊ : हमारे पाठकों से कुछ कहना चाहेंगे?.
अविनाश जी : पाठकों से अधिकतर लेखक तो यही कहते हैं कि मेरी रचनाएं ही पढ़ो और खूब पढ़ो। पर मैं कहता हूं कि पढ़ो और जो अच्‍छा न लगे वो जरूर बतलाओ। चाहे अच्‍छा लगे वो न बतलाओ। इससे लेखन में सुधार आयेगा और गुणवत्‍ता में भी वृद्धि होगी।
ताऊ : आप सोचते हैं कि कोई ऐसा होगा जो आपको अच्छा नहीं लगे वो बतायेगा?
अविनाश जी : हां ये आपकी बात सही है. अधिकतर पाठक और मित्र भी कि कहीं बुरा न लग जाये इसलिए जो अच्‍छा लगता है वही बताते हैं और बुरे के बारे में जिक्र करने को गोल कर जाते हैं। वैसे इसके अपवाद भी हैं और ऐसे सच्‍चे मुझे सदा लुभाते हैं।
ताऊ : आप काफ़ी सुलझे हुये इंसान हैं. हमारे पाठकों को कोई विशेष टिप देना चाहेंगे?
अविनाश जी : लो जी ताऊ जी, करलो बात, आपके पाठकों को नहीं टिप दूंगा तो किसे दूंगा? आपने मुझे झाड़ पर जो चढ़ा दिया है तारीफ करके। मुझे गुदगुदी हो रही है ( वैसे कान में एक राज की बात बतलाऊं टिप तो वेटरों को दी जाती है। अब पाठकों को टिप दिलवाने पर, जरूर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में नाम शुमार हो जाएगा ताऊ डॉट इन का। )
ताऊ : तो चलिये बताईये.
अविनाश जी : वो खास बात यह है कि आप लेखक हैं अथवा नहीं। परंतु अपने विचारों को भागने दौड़ने मत दें मतलब जब भी आपके मन में विचार आयें तो उन्‍हें लिख लें क्‍योंकि एक बार विचार आये और चले गये तो उनके लौटने की कोई गारंटी नहीं है। इसलिए विचारों को धन समझकर अवश्‍य संजो लेना चाहिए। विचार ही धन है। बिस्‍तर पर तकिये के साथ धर्मपत्‍नी के अलावा एक डायरी, पैन और टॉर्च अवश्‍य साथ रहती है जब भी विचारों का प्रकाश फैला, सचमुच की टॉर्च जलाई और नोट कर लिया। अखबार पढ़ते समय भी पैन और नोटबुक साथ रहती है, पता नहीं कब कौन सा यूनीक विचार कहां से प्रकट हो जाए तो उसे लुप्‍त होने से पहले ही नोटबुक में कैद कर लेता हूं और चाहता हूं सब ऐसा ही करें।
ताऊ : और लेखकों के लिए कुछ टिप उन्‍हें क्‍यों वंचित रखते हैं ?
अविनाश जी : जरूर, और लेखकों के लिए विशेष कि यदि अखबार अथवा पत्रिका जो भी जब भी पढ़ते हैं और उन्‍हें संजो कर रखते हैं कि इसे बाद में पढ़ेंगे तो उसे चिन्हित कर लें और अखबार या पत्रिका के पहले पन्‍ने पर उसका नंबर पैन से अवश्‍य लिख लें जिससे यदि दोबारा पढ़ने का मौका मिले तो यही न तलाशते रहें कि किसलिए इस अखबार को रखा था, कौन सा लेख या खबर पढ़नी थी। इससे समय भी बचता है। वैसे यह प्रबंध का मसला है। सभी को जिंदगी में ऐसे ऐसे सूत्रों को अपनाना चाहिये।

ताऊ : वाह अविनाश जी, आपने यह दोनों ही बहुत ही जोरदार और काम की महत्वपूर्ण बात बताई.
अविनाश जी : अब आप पूछेंगे तो हम तो काम की ही बात बतायेंगे हमेशा की तरह.
ताऊ : आप कहां के रहने वाले हैं?
अविनाश जी : मेरा जन्‍म तो उत्‍तम नगर, नई दिल्‍ली में हुआ है। इसलिए यही कहूंगा कि वही मेरा गांव है और वही मेरा शहर।
ताऊ : वाह बढिया नाम है उत्तमनगर?
अविनाश जी : वैसे उत्‍तम नगर में या कहीं भी आजकल उत्‍तम लोगों का अभाव है या यह कह सकते हैं कि सच्‍चे मन से तलाशें तो उत्‍तम लोग सब जगह हैं, सब जगह मिलते हैं, बस इस खोज को मनमाफिक परिणाम देने के लिए स्‍वयं को भी उत्‍तम होना होगा।
ताऊ : जी सही कह रहे हैं आप. यहां का विकास भी उत्तम ही हुआ है?
अविनाश जी : यहां के बारे में यही कह सकता हूं कि इसका भी उसी तेजी से विकास हुआ है जिस तेजी से बाकी दिल्‍ली का विकास हो रहा है। मेट्रो यहां भी गुजर रही है। भीड़ बढ़ रही है। गुजारा भी हो रहा है और लोग गुजर भी रहे हैं।
ताऊ : यानि आप दिल्ली के ही मूल निवासी हैं?
अविनाश जी : ना ताऊजी. हम आगरा में पैंतखेड़ा गांव के ऐसे निवासी हैं , जहां मैं एक बार भी नहीं गया हूं।
ताऊ : आपका संयुक्त परिवार है या एकल?
अविनाशजी :सेमी संयुक्‍त परिवार है। आजकल वैसे भी सेमी का ही जमाना है। जैसे सेमी वाशिंग मशीन वगैरह।
ताऊ : आपको कौन सा विकल्प ज्यादा फ़ायदे मंद लगता है?
अविनाश जी : ताऊजी , देखिये, संयुक्‍त परिवार के लाभों की तो तुलना ही नहीं की जा सकती है। पर सिर्फ चाहने से क्‍या होता है, एक चाहे, दूसरा न चाहे और दूसरा चाहे तीसरा न चाहे। वैसे सब सदा फायदेमंद की तलाश में ही क्‍यों लगे रहते हैं फायदेदार क्‍यों नहीं तलाशते ? ऐसे ही अक्‍लमंद बनना चाहते हैं अक्‍लतेज कोई नहीं बनना चाहता, ऐसा क्‍यों ताऊ जी ?
ताऊ : हां आपकी यह बात तो सही है.
अविनाश जी : इसलिए होता वही है जो चाहा न जाए। नफे नुकसान तो सभी में हैं। संयुक्‍त परिवार में भी नुकसान हैं और अकेले रहने में भी नुकसान हैं। वो तो जैसा नजरिया होगा और परिस्थितियां होंगी उसी पर सब निर्भर करता है।
ताऊ : आप ब्लॉगिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
अविनाश जी : ब्‍लॉगिंग का भविष्‍य तो गोल्‍डन डायमंड है इसमें कोई शक नहीं है। आपकी बातें बेरोकटोक वहां पर पहुंच रही हैं जहां तक आप सोच भी नहीं पा रहे हैं तो भविष्‍य में खुला खुला ही हुआ।
ताऊ : जी, आगे बोलिये.
अविनाश जी : ब्‍लॉगिंग का खोल और खाल वास्‍तव में लाजवाब है। इसकी खाल में इंसान की खाल से भी अधिक आनंद आता है और इसके खोल में सब कुछ समा जाता है और जो इसके खोल में खो जाता है वो सब कुछ पा लेता है। खाल और खोल की एक बेहतरीन उपलब्धि है ब्‍लॉगिंग। इसे शब्‍दों और विचारों की जॉगिंग ही समझिए। इससे दिमागी स्‍वास्‍थ्‍य बना रहता है।
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं? आपके अनुभव बताईये? आपका ब्लॉगिंग में आना कैसे हुआ?
अविनाश जी : जब हिंदी में ब्‍लॉग शुरू हुए तब पहला ब्‍लॉग बनाया था तेताला। उस पर रोमन हिन्‍दी में लिखा पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। दो चार बार यही लिखा कि कोई मुझे जानता है या पहचान रहा है।
ताऊ : मतलब कोई रिस्पांस नहीं मिला?
अविनाश जी : शायद... तब ब्‍लॉग को कोई पढ़ने वाला ही नहीं था। लिंक पहुंचाने का कोई जरिया नहीं था। ई मेल संपर्क भी इतने नहीं थे।
ताऊ : तो हिंदी के एग्रीगरेटर्स?
अविनाश जी : तब एग्रीगरेटर्स का तो वजूद ही नहीं था।
ताऊ : तो फ़िर उस ब्लॉग का क्या हुआ?
अविनाश जी : ताऊजी, उस ब्‍लॉग का वही हश्र हुआ जो होना चाहिए था। यह शायद 2003 के आसपास की घटना रही होगी। मैं सब भूल गया। वर्ष भी एकाध बरस आगे या पीछे का हो सकता है।


पिताजी स्‍व. डॉ. दिनेश चन्‍द्र वाचस्‍प‍

स्‍व. डॉ. दिनेश चन्‍द्र वाचस्‍पति (पिताजी)

दाढ़ी वाले अविनाश

ये हैं दाढी वाले अविनाश, पत्नि सु. सर्वेश के साथ

family (1)

अविनाश वाचस्पति और उनके
परिवार के सदस्य गण



ताऊ : तो यह वर्तमान सफ़र कब शुरु हुआ?
अविनाश जी : फिर एकाएक कादम्बिनी में बालेन्‍दु दाधीच का एक आलेख प्रकाशित हुआ था ब्‍लॉग हो तो बात बने। उसे पढ़ा जो आंखें, दिमाग खुल गया।
ताऊ : अच्छा...फ़िर?
अविनाश जी : तब तक हिन्‍दी में लिखने छपने और सही तरह से दिखने की शुरूआत हो चुकी थी । 400 या 500 हिंदी ब्‍लॉग सक्रिय हो चुके थे। उस आलेख से प्रेरणा पाकर बगीची ब्‍लॉग बनाया।
ताऊ : अच्छा यानि यह दूसरा ब्लॉग बना?
अविनाश जी : हां ...जब ब्‍लॉग बनाया तो डैशबोर्ड में पहुंचने पर तेताला भी दिखलाई दिया। वो भी चलता रहा। काफी पोस्‍टें लगाईं।
ताऊ : तो बाकी ब्लॉग आपने बाद में बनाये?
अविनाश जी : हां...उसके बाद अपने नाम से प्रकाशित व्‍यंग्‍यों के लिए एक ब्‍लॉग बना लिया। फिर समाचारों पर साथ में प्रतिक्रिया देने के लिए झकाझक टाइम्‍स ब्‍लॉग बनाया। फिर एक नुक्‍कड़ बना लिया।
ताऊ : पर नुक्कड़ तो सामूहिक ब्लॉग है ना?
अविनाश जी : हां ..पर बाद में नुक्‍कड़ को सामूहिक ब्‍लॉग का दर्जा दिया गया।
ताऊ : यह प्रयोग कैसा रहा?
अविनाश जी : समय के साथ साथ इसमें काफी नये और प्रतिष्ठित लेखकों को भी जोड़ लिया है। नुक्‍कड़ अच्‍छा दौड रहा है।
ताऊ : हमने सुना है आपने इसी श्रेणी में पिताजी नामक ब्लॉग भी बनाया है?
अविनाश जी : हां , अभी जून महीने में फॉदर्स डे के समाचार और लेख जब अखबारों में पढ़े तो सोचा कि क्‍या पिताजी नामक कोई हिंदी ब्‍लॉग मौजूद है।
ताऊ : अच्छा..
अविनाश जी : गूगल व अन्‍य कई सर्च इंजनों में तलाश किया, जब नहीं मिला। तो पिताजी नाम से ब्‍लॉग बनाया।
ताऊ : कैसा रहा यह प्रयोग?
अविनाश जी : ताऊजी, पहले दिन ही इस ब्‍लॉग से 24 लेखक जुड़े और 14 पोस्‍टें लगीं और सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं मिली तथा पहले ही दिन बनने के दो घंटे के अंदर ही यह ब्‍लॉगवाणी और चिट्ठाजगत से भी जुड़ गया और दिखने लगा।
ताऊ : वाह जी बधाई इस सफ़लता के लिये आपको.
अविनाश जी : ताऊजी, यह सब पिताजी के प्रति हम सबके मन की भावनाओं का ही प्रतिफल है। 20 जून 2009 से शुरू किए गए इस ब्‍लॉग ने एक अच्‍छी पहचान बना ली है।
ताऊ : अपने लेखन के बारे में क्या कहेंगे?
अविनाश जी : समाज की विसंगतियों के विरोध में जागृति लाना ही उद्देश्‍य है मेरे लेखन का। विधा चाहे कविता हो या व्‍यंग्‍य।
ताऊ : अच्छा ये बताईये कि कविता और व्यंग्य में आप कैसे फ़र्क करेंगे?
अविनाश जी : व्यंग्य सच्‍चाई का वाहक होता है। आप सच सच कहते जाइए वही व्‍यंग्‍य हो जाएगा और जितना झूठ कहेंगे सब कविता। कविता यानी कल्‍पना। सच्‍चाई से बचने के लिए झूठ यानी कल्‍पना का ही सहारा लिया जाता है। इनमें अपवाद भी मौजूद होते हैं.
ताऊ : यह कहते हुये आपको कवियों से डर नहीं लगता?:)
अविनाश जी : कवियों से तो तब लगेगा जब मौत से डर लगे। कवि भी अधिक से अधिक मार ही सकते हैं और जब मौत से डर नहीं तो बाकी किसी से काहे का डर। डरना तो उन्‍हें मुझसे चाहिए क्‍योंकि अगर वे मुझे डरायेंगे तो उनका एक श्रोता कम हो जाएगा और एक कवि कम पारि‍श्रमिक लेना तो बर्दाश्‍त कर सकता है परंतु श्रोताओं के नाम पर चींटी या मच्‍छर भी कम नहीं होने चाहिए। वैसे मैंने आजकल हंसाने की मुहिम चला रखी है।
ताऊ : कहां पर ?
अविनाश जी : हंसते रहो हंसाते रहो ब्‍लॉग पर पप्‍पू मुन्‍ना पर लिखी हास्‍य व्‍यंग्‍य कवितायें खूब धमाल मचा रही हैं। पाठक भी जो इन किरदारों से न मिलें हो इनके कारनामों और करतूतों से रूबरू हो सकते हैं।

ताऊ : क्या राजनीति‍ में आप रुचि‍ रखते हैं?
अविनाश जी : अगर कहूं कि नहीं रखता तो गलत होगा क्‍या पता किसी दिन राजनीति में ही जाना पड़ जाए। पर प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहूंगा.
ताऊ : वाह ! लोग मरे जाते हैं प्रधानमंत्री बनने के लिये..और आपको इससे एलर्जी? ऐसा क्यों?
अविनाश जी :अरे नहीं नहीं ताऊजी, ऐसी कोई बात नहीं है...अगर कोई बनाएगा तो मना भी नहीं करूंगा।
ताऊ : हां ये हुई ना सच्ची बात..
अविनाश जी : देखिये ताऊजी... लेखक को प्रत्‍येक नीति, अनीति में रुचि रखनी चाहिए और मैं भी रखता हूं।
ताऊ : क्या कहना चाहेंगे आज की राजनीति के संदर्भ में?
अविनाश जी : राजनीति का उर्दू समानार्थी शब्‍द सियासत है जबकि आज राजनीति में न सीता है और न सच है फिर भी कहलाती सियासत है। यही आज की राजनीति की विडंबना है।
ताऊ : यानि आप कहना चाहते हैं कि आज की राजनीति में सही लोगों की कमी है?
अविनाश जी : जी, क्यूंकि अगर राजनीति में सही लोग हों तो देश स्‍वर्ग बन जाए और यहां के निवासी स्‍वर्गवासी।
ताऊ : बात तो आपकी सही लगती है.
अविनाश जी : ताऊजी शायद इसीलिए सही लोग भी राजनीति में जाकर सही नहीं रह पाते हैं और जो दो चार रहते भी हैं तो उनके बूते तो कुछ हो नहीं सकता इसलिए देश स्‍वर्ग और यहां के निवासी स्‍वर्गवासी बनने से बचे रहते हैं।
ताऊ : यानि ये आपके पक्के विचार हैं?
अविनाश जी : विचार तो यही हैं पर अगर राजनीति में एक बार घुस गया तो विचार बदल भी सकते हैं। उन पर टिके रहने की कोई गारंटी नहीं है। फैशन के इस युग में गारंटी की किसी को इच्‍छा करनी भी नहीं चाहिये।
ताऊ : मतलब? आप राजनीति में जाकर बदल भी सकते हैं?
अविनाश जी : वैसे कोशिश तो यही करूंगा कि सही ही रहूं और सही ही करने की कोशिश करूं पर अगर गलत वाले हावी हो गए और मेरा बस नहीं चला तो उनकी गलत बस ही मेरे उपर चल जाएगी और उसे मैं और आप क्‍या, कोई भी नहीं रोक सकता है। सब फिल्‍मों में यह देखते ही हैं और फिल्‍में वही दिखलाती हैं जो समाज में है।
ताऊ : कुछ अपने स्वभाव के बारे मे बताईये.
अविनाश जी : स्वभाव सबके अलग अलग होते हैं। अलग अलग व्‍यक्तियों के साथ अलग अलग।
ताऊ : मतलब?
अविनाश जी : मतलब जैसे परिवार के सदस्‍यों के साथ अलग। मित्रों के साथ अलग। सहकर्मियों के साथ अलग। पड़ोसियों के साथ अलग। लेखकों के साथ अलग।
ताऊ : मतलब आप सबके साथ..अलग अलग स्वभाव रखते हैं. यानि सामने वाला जिस हैसियत का हो?
अविनाश जी : अब यह कहूं कि नहीं मैं सबके साथ एक जैसा हूं तो यह सच है कि मैं झूठ कह रहा हूं और जो ऐसा कहता है वो झूठ ही कहता है। मेरे स्‍वभाव के बारे में मेरे से अधिक आप ब्‍लॉग पर एक पोस्‍ट लगाकर सच्‍चाई जान सकते हैं। और सबके साथ एक जैसे मतलब दोस्‍त के गले में भी बाहें, बॉस के गले में भी बाहें, पत्‍नी के गले में भी बाहें, प्रेमिका के गले में भी बाहें, पड़ोसी से गले मिलना तो ठीक है परन्‍तु पड़ोसिन के साथ ??? अब भी कुछ खुलासा करना बाकी रह गया है। मैं कोई मुन्‍नाभाई एम बी बी एस वाला मुन्‍नाभाई तो हूं नहीं जो सब नॉल पा लेंवा जफ्फी। हां, मुन्‍ना मेरा प्‍यार का नाम तो है।



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स्‍व. डॉ. हरिवंश राय बच्‍चन के साथ (१९८२-१९८३)

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 श्रीमती और श्री अविनाश वाचस्पति (फ़ुरसत के पलों में)

अंशुल वाचस्‍पति महेन्‍द्र सिंह धोनी के सा थ

 पुत्र अंशुल वाचस्पति, महेंद्र सिंह धोनी के साथ


ताऊ : आपकी अर्धांगिनी के बारे मे कुछ बताईये?
अविनाश जी : मेरी पत्‍नी भक्‍त हैं।

ताऊ : मतलब?
अविनाश जी : मतलब ये कि वो पूजा पाठ में घनघोर रुचि रखती है। पढ़ती हैं पर लिखने में कोई रुचि नहीं।
ताऊ : क्या आपकी रचनाएं वो पढती हैं?
अविनाश जी : मैं झूठ नहीं कहूंगा कि मेरी सब रचनाएं सबसे पहले वही पढ़ती हैं जबकि सबसे बाद तक भी वे पढ़ लें तो मेरी रचनाओं की खुशकिस्‍मती है।
ताऊ : यानि आपकी सबसे अच्छी पाठक?
अविनाश जी : हां जिस रचना से पारिश्रमिक मिलना हो तो उसे अवश्‍य पढ़ लेती हैं। बाकी इंटरनेट पर या अखबारों में कितना ही कैसा भी कुछ भी छप जाए उससे वे प्रभावित मोहित नहीं होती हैं। अखबारों से जितना मुझे प्‍यार है। वे सिर्फ एक दिन का ही मोह रखती हैं। फिर दोनों का स्‍वभाव एक सा तो हो नहीं सकता।
ताऊ : भाग्य पर यकीन करते हैं?
अविनाश जी : एक हद तक. मैं कहना चाहता हूं कि जो हम चाहते हैं वो नहीं होता है और जो नहीं चाहते हैं वही होता है। मैंने चाहा था कि ताऊ डॉट इन पर 10 हजारवीं टिप्‍पणी विजेता बनूं पर नहीं बना। पर कर्म पर पूरा यकीन है मेरा इसलिए 10 हजार 1वीं टिप्‍पणी कर्म का मीठा फल ही है।
ताऊ : पूजा करते हैं?
अविनाश जी : मेरे लिए लेखन ही पूजा है । यह पूजा मैं अंतिम सांस तक करना चाहता हूं। चाहे पारिश्रमिक मिले अथवा न मिले।
ताऊ : इसके पीछे कोई फ़लस्फ़ा?
अविनाश जी : जब सब यहीं छोडकर जाना है तो किसलिए बटोरें। अपने आज को बेहतर ढ़ंग से क्‍यों न जी लें। जियें भी और सबको जीने दें। दूसरों के जीने पर न चढ़ें।
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे में आप क्या सोचते हैं?
अविनाश जी : ताऊ पहेली ब्‍लॉगिंग की एक सुखद घटना है। इससे ब्‍लॉगिंग के कई आयाम खुले हैं। कितने ही लोग एक दूसरे से जुड़े हैं। एक दूसरे से परिचित हुए हैं। पहेलियों के माध्‍यम से ज्ञानवर्द्धन और टिप्‍पणियों के माध्‍यम से मनोरंजन हो रहा है। बहुमुखी ब्‍लॉग कह सकते हैं ताऊ डॉट इन को।
ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगे?
अविनाश जी : ताऊ एक सच्‍चे इंसान हैं जिन्‍होंने निच्‍छलता से जानवर के चेहरे को वर रखा है। जानवर का चेहरा पहन कर सामने आना इंसान की अच्‍छाईयों को प्रस्‍तुत करने का सच्‍चा माध्‍यम है।
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे में आप क्या सोचते हैं?
अविनाश जी : ऐसा दिन आए कि इसका प्रकाशन भी हो। प्रिंट मीडिया में भी इसकी ख्‍याति हो। जिससे ज्ञान की इस थाती से सब परिचित हों और यह रोज सुबह आने वाली दैनिक पहेली बन जाये। इसमें सचमुच का एक पांच हजार का पुरस्‍कार शुरू हो जाए।
ताऊ : आपकी कोई एक इच्छा?
अविनाश जी : ताऊ पहेली का मालिक मुझे बना दो ताऊजी। पर ताऊगिरी आपकी ही चलती रहे।

अंत में " एक सवाल ताऊ से"
सवाल अविनाश जी का : ताऊ जी मुखौटा हटाकर सामने क्‍यों नहीं आना चाहते हैं? क्‍या वे इतने सुंदर हैं कि सलमान, आमिर, सैफ, शाहरुख या अमिताभ को खतरा हो सकता है या जानवरों की निच्‍छलता से प्रेम।

जवाब ताऊ का: इस सवाल का जवाब हम पारुल जी द्वारा किये गये सवाल के जवाब में विस्तार से दे चुके हैं. यहां दोहराव करना ठीक नही होगा. आप इसके लिये "परिचयनामा : सुश्री पारूल…चाँद पुखराज का" पढ कर जान सकते हैं.

तो ये थे हमारे आज के मेहमान श्री अविनाश वाचस्पति...इनसे मिलकर आपको कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.