उस जमाने मे अनाज दलहन का थोक व्यापार करने वाले व्यापारी अपने जानकार नुमाईंदे को इनकी खरीदी करने उन मंडियों मे भेजते थे जहां इनकी उत्पादकता होती है. उस साल मे उत्तरप्रदेश मे तूवर (अरहर) की जबरदस्त फ़सल हुई थी. और सारे हिंदुस्थान के थोक व्यापारी या उनके प्रतिनिधी यू.पी. की अनाज मंडियों मे तूवर खरीद कर रहे थे.
हम भी वहां गोंडा, बहराईच, बलरामपुर की मंडियों मे थे. हमारे साथ बंगलोर के एक बडे व्यापारी के नुमाईंदे शकूर मियां भी थे. जाहिर है उन दिनों मे सूचना का जबरदस्त अभाव था. सो बडे व्यापारियों की देखा देखी ही काम चलता था. हम भी शकूर मियां की चिलम भरते रहते थे और कारण साफ़ था कि वो एक बडी फ़र्म के प्रतिनिधी थे सो तेजी मंदी की खबर उनसे बडी सटीक मिलती थी.
उन दिनों मे टेलीफ़ोन तो बहुत मुश्किल से मिलता था. सारा काम टेलीग्राम और पोस्टकार्ड के द्वारा ही चलता था. अब टेलीग्राम मे भी बडी मजेदार भूले हो जाया करती थी. एक दिन सुबह सुबह शकूर मियां को उनके सेठ का टेलीग्राम मिला और टेलीग्राम पढते ही शकुर मियां तो लाल पीले हो उठे. हमने उनसे पूछा कि - शकूर साहब क्या बात है? कुछ माल वाल खराब चला गया ..या सेठ ने कुछ कह दिया...या तूवर मे मंदी की वजह से परेशान हो? बात क्या है?
शकूर मियां ने टेलीग्राम हमारे हाथ मे पकडाते हुये कहा - लो ताऊ..पढो तुम खुद ही...इस स्साले सेठ की तो ऐसी की तैसी...स्साले को अभी जवाब का टेलीग्राम करता हूं.
शकूर मियां तो हमारे रोकने से भी नही रुके...और हमने उनका पकडाया हुआ टेलीग्राम पढा. उसमे लिखा था...अबे शूकर, मत खरीद तूवर, अब हमारे को लगा कि शकूर मियां का गुस्सा होना जायज है. उस जमाने मे टेलीग्राम के प्रति शब्द आठ आने लगते थे सो सब कुछ शार्ट्कट ही लिखा जाता था.
हमने सोचा कि दसौंध के लालच मे शकूरमियां ने कुछ ज्यादा खरीद कर ली होगी और बाजार कुछ मंदी में आगया था..रेल्वे ने सारे वागन एक रेक मे ही गंतव्य तक पहुंचा दिये थे सो हुंडी बिल्टियां छुडवाना मुश्किल हो रहा था. अत: माल को खप जाने और भुगतान की व्यवस्था सुधरने तक खरीद करने को मना किया होगा. पर शूकर (सूअर) कह कर संबोधित करना कुछ जमा नही.
थोडी देर बाद ही शकूर मियां वापस आते दिखे. हमने आते ही उनसे कहा - भाईजान, आपके सेठ ने ये अच्छा नही किया. सेठ कोई इस तरह गाली गलोज थोडे कर सकता है? शकूर मियां बोले - ताऊ, तुम देखते जावो. जब सेठ को मेरा टेलीग्राम मिलेगा तब उसको समझ आयेगा कि शकूर मियां से पाला पडा है.
हमने पूछा कि शकूर साहब, आपने ऐसा क्या जवाब लिख दिया टेलीग्राम में?
शकूर मियां बोले - ताऊ, मैने लिख दिया है कि- "तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
जब ये टेलीग्राम की भाषा को शकूर मियां ने लयबद्ध होकर पढा तो हमारे दिमाग की घंटी टनटना उठी. हम समझ गये कि ये सारी गल्ती की जड टेलीग्राम भेजने मे हुई जरासी भूल का है. इसमे सेठ की कोई गल्ती नही है.
हुआ यो था कि शकूर मियां द्वारा ज्यादा माल खरीद लेने की वजह से सेठ को वहां से पेमेंट भेजने में दिक्कत आ रही थी, अत: सेठ ने शकूर मियां को टेलीग्राम मे लिखा था कि "अबे शकूर मत खरीद तूवर" और टेलीग्राम मे "ऊ" की मात्रा "क" की बजाये "श" पर लग गई. और शकूर की जगह लिखा गया शूकर..और शकूर मियां ने इसे समझा सूअर...और सेठ को लिख दिया ये छंद "तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
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मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताऊजी डाट काम
"शकूर मियां द्वारा ज्यादा माल खरीद लेने की वजह से सेठ को वहां से पेमेंट भेजने में दिक्कत आ रही थी, अत: सेठ ने शकूर मियां को टेलीग्राम मे लिखा था कि "अबे शकूर मत खरीद तूवर" और टेलीग्राम मे "ऊ" की मात्रा "क" की बजाये "श" पर लग गई. और शकूर की जगह लिखा गया शूकर..और शकूर मियां ने इसे समझा सूअर...और सेठ को लिख दिया ये छंद "तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
ReplyDeleteताऊ!
आज तो मजेदार पोस्ट लगाई है।
पढ़ कर मजा आ गया।
बहुत बधाई।
मजेदार.. जय हो..
ReplyDeleteतुअर ही तुअर.
"तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
ReplyDeleteजय हो ताऊजी की. आज आया असली मजा. हंस हंस कर बुरा होगया .
"तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
ReplyDeleteजय हो ताऊजी की. आज आया असली मजा. हंस हंस कर बुरा होगया .
वाकई जबरदस्त हास्य. बहुत गजब का किस्सा रहा ये तो.
ReplyDeleteमजेदार किस्सा सुनाया आपने. गूगल ट्रान्सलिट्रेशन ने तो कई बार अनजाने ही मुसीबत में डाल दिया है.
ReplyDeletegazab !
ReplyDeleteताऊ आज तो घणै ई चाल्हे काट दिये. असली किस्सेबाजी इबकै सुनाई.
ReplyDelete"तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
ReplyDeletejabardast taauji.
"तू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
ReplyDeletejabardast taauji.
आज आपको एक सच्ची घटना सुनाते हैं. घटना १९७२-७३ की है. तूवर दाल आज कल १०० रुपये किलो है और उस समय १ रुपये से सवा रुपये किलो थी.
ReplyDeleteयह भी सच है या चुटकला? किस्सा तो गजब का है.
आज आपको एक सच्ची घटना सुनाते हैं. घटना १९७२-७३ की है. तूवर दाल आज कल १०० रुपये किलो है और उस समय १ रुपये से सवा रुपये किलो थी.
ReplyDeleteयह भी सच है या चुटकला? किस्सा तो गजब का है.
bahut badhiya taauji
ReplyDeleteशकूर मियां ने टेलीग्राम हमारे हाथ मे पकडाते हुये कहा - लो ताऊ..पढो तुम खुद ही...इस स्साले सेठ की तो ऐसी की तैसी...स्साले को अभी जवाब का टेलीग्राम करता हूं.
ReplyDeleteसही मे सेठ की तो ऐसी तैसी कर डाली शकुर मियां ने.:)
शकूर मियां ने टेलीग्राम हमारे हाथ मे पकडाते हुये कहा - लो ताऊ..पढो तुम खुद ही...इस स्साले सेठ की तो ऐसी की तैसी...स्साले को अभी जवाब का टेलीग्राम करता हूं.
ReplyDeleteसही मे सेठ की तो ऐसी तैसी कर डाली शकुर मियां ने.:)
सही कहा ताऊ आपने।
ReplyDeleteनुख़्ते के हेर-फेर से खुदा जुदा हो जाता है।
हा हा!
ReplyDeleteटेलीग्राम के जमाने में ऐसी भीषण घटनायें आम थीं. :)
मजेदार.
मजेदार किस्सा ...... शायद इसलिए ही तो कहते है की 'नुक़ते के हेर फेर से खुदा भी जुदा हो जाता है'
ReplyDeleteशकूर जी ने वसीयत न लिखी कि आगे सात पुश्त तक शकूर नाम न रखा जाये! :)
ReplyDeleteताऊ जी, इसका मतलब गूगल ट्रांसिलेटर की प्रोब्लम आप लोग भी महसूस कर रहे है, मैं तो सोचता था कि शायद हिंदी लिखने के लिए इसे इस्तेमाल करते बक्त मेरे ही कम्पूटर में कोई गडबडी आ गई है जिसकी वजह से यह अर्थ का अनर्थ ट्रांसलेशन कर दे रहा है ! इस गूगल ट्रांसिलेटर के मालिक का कोई इ-मेल अता-पता आपके पास हो तो बताये, शकूर मिंया की तरह एक टेलीग्राम मैं भी इसे भेजना चाहता हूँ !
ReplyDeleteवहा ताऊ! क्या बात है। अजब भी गजब भी।
ReplyDeleteअति सुन्दर
आभार
दिल्ली में एसा ही हुआ था कि... एक बार संसद की कार्यवाही की समीक्षा रेडियो पर जानी थी. स्टेनो ने टाइप किया "मूत्रालय में बैठक हुई"...ज़ाहिर है "मंत्रालय" टाइप किया जाना था...समय रहते भूल पकड़े जाने से कई नौकरियां बच गईं.
ReplyDeleteमजेदार घटना जी।
ReplyDeleteअरे वाह, ताऊ, मात्रा का क्या खेल दिखाया.
ReplyDeleteताऊ जी,एक कहावत है-नुक्ते के हेर-फ़ेर से खुदा जुदा हुए। आपकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
ReplyDeleteवैसे यह अंग्रेजी भाषा है ही अजीब, लिखवाती कुछ है पढवाती कुछ है।
ReplyDeleteमजेदार किस्सा
ReplyDeleteनिस्संदेह, गजब का लिखा है आपने। गूगल ट्रांशलेसन भी कुछ ऐसा ही आता है। वारेन वुल्फ को ट्रांसलेट करके बताता है वारेन भेंडि़या। मजा आ गया पढ़कर।
ReplyDeleteहा हा हा ताऊ जी आज तो बहुत बढिया किस्सा सुनाया।
ReplyDeleteअक्सर इस प्रकार की छोटी छोटी गलतियाँ बडी भारी समस्या या फिर हास्य का कारण भी बन जाती हैं।
मज़ा आ गया!!
ReplyDeleteहमारे चाचाजी की शादी का भी किस्सा यूं हुआ कि उन दिनों फ़ुलस्टोप को बिंदी से नहीं STOP लिखा जाता था.
तो बारात चले से पहले उनके ससुराल वालों का टेलीग्राम आया-
ALL ARRANGEMENT DONE(STOP)WELCOME
तो हमारे पिताजी के पढे लिखे मौसाजी नें तो हल्ला मचा दिया- कहा , ये शादी रोकने का टेलीग्राम है.यहा< साफ़ लिखा है-स्टॊप!!!
हेर-फ़ेर....वाह ताऊजी क्या मजेदार वाक्या सुनाया आपने!
ReplyDeleteये मोबाईल ने तो टेलीग्राम का मज़ा ही खतम कर दिया है।
ReplyDeleteमजेदार किस्सा...
ReplyDeleteतूवर ही तूवर :)
ReplyDeleteजय हो
वीनस केसरी
हमारे यहाँ एक शायर साहब हैं इसी नाम के। स्थानीय अखबारों ने उन के साथ ऐसा बहुत बार किया है। कुछ कहने के भी नहीं कम से कम खबर तो छाप रहे थे उन की।
ReplyDeletevery humorous indeed! i really liked it .
ReplyDelete@Kaajal u r right it happened once ! how did u come to know about it ?
ReplyDeleteटेलीग्राम गया कि, " इज़ डेलिवरी रेडी ( स्टाप ) सेन्ड परसनली एट अर्लीयेस्ट "
जो भी समझा गया हो.. ज़वाब यह गया कि,
डेलिवरी कैन्सल्ड.. चाइल्ड फ़ालेन टू ग्राउँड ( स्टाप ) नो पसन अली इन आफ़िस ( स्टाप ) नो अड़ी एट ईस्ट
शीर्षक पढ़कर हम तो घबरा ही गए थे ...आज ताऊ गाली गलौज पर क्यों उतर आये हैं..पूरी पोस्ट पढ़ी तो जान में जान आयी ...
ReplyDeleteतुअर की दाल खाना इतना जरुरी तो नहीं है...कुछ दिन मूंग दाल ही खा लीजिये ..!!
गजब गजब -क्या कहने !
ReplyDeleteतू सूअर तेरा बाप सूअर, शकूर तो खरीदेगा तूवर ही तूवर"
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा आज तो हंस हंस कर बुरा हाल हो गया.......बेहद मजेदार...
regards
ताऊ जी गज़ब का लिखा है आपने ! हँसते हँसते पेट दुकने लगा! बड़ा मज़ा आया!
ReplyDeleteसुअरों ने तो सबकी बैंड बजा रखी है
ReplyDeleteहा-हा-हा
ReplyDeleteकुछ ऐसा ही दिल्ली हरियाणा के मुनिमों (Accountants) के साथ भी होता था। पहले सभी बही-खाते मुंडी या कहें मुंडी हिन्दी में (एक लिपि)में लिखे जाते थे। (कुछेक पुरानी फर्मों पर आज भी इसी भाषा में काम होता है। इस भाषा में मात्राओं का अभाव है। इसमें "लालाजी अजमेर गये" और "लालाजी आज मर गये" को बिल्कुल एक ही तरीके से लिखा जाता है।
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हा.. हा... हा.... मजा आ गया पढ़ कर , ताऊ जी !
ReplyDeleteजब सबको ही मजा आया तो हम को भी मजा आना ही था । अब पता चला कि म्हारे ताऊ ने कितने पापड बेल लिये है । इस लिये अब एश की काट रिये है ।
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