पिछले सप्ताह श्री अनूप शुक्ल "फ़ुरसतिया" जी ने अपने ब्लाग लेखन के ५ साल पूरे किये. उनको ताऊ साप्ताहिक पत्रिका की तरफ़ से हार्दिक बधाईयां. सचमुच एक बहुत बडी उपलब्धि है. जिस तरह का परिपक्व लेखन वो निरंतरता पुर्वक करते है वो अपने आप मे उनकी लेखनी का मुरीद बनने पर मजबूर करता है. फ़ुरसतिया जी का ब्लाग एक मात्र ऐसा ब्लाग है जहां ताऊ फ़ुरसत मिलते ही उनकी पिछली पोस्टों को पढने मे अपना समय गुजारना पसंद करता है. बहुत कुछ सीखने को मिलता है उनसे. आप भी उनकी पिछली पोस्टों को खंगालिये. अनमोल खजाना है वहां.
ताऊ के पसंदीदा ब्लागर श्री अनूप शुक्ल "फ़ुरसतिया"
पांच साल इसलिये यहां उप्लब्धि कहलायेगी कि पांच साल यहां टिकना ही मुश्किल है. उनके साथ के कितने लोग हैं अब यहां? होने को और भी बहुत से लोग पांच साल पूरे कर रहे होंगे पर जिस तरह की निरंतरता फ़ुरसतिया जी के लेखन मे हैं, और जिस तरह का हौसला उन्होने दूसरे ब्लागर्स को दिया है, यह एक बहुत बडी बात है.
आज वो ब्लाग जगत के चमकते सितारे हैं जो अपने साथ दूसरों को भी सितारे जैसा चमकने का हौंसला देते है. ईश्वर उन्हे कामयाबी दे और वो अपनी हर मुहीम मे कामयाब हों. और हिंदी ब्लाग जगत उनके मार्गदर्शन मे फ़ले फ़ूले.
हमारे परम मित्र श्री अरविंद मिश्रा जी ने "ताऊ की शोले" को लेकर फ़िर से टंकी पर चढने उतरने की याद लोगों को दिला दी. अब ताऊ की शोले मे तो वही टंकी पर चढेगा जिसे आप लोग चाहेंगे. तो आप अपनी अमूल्य राय अवश्य बतायें कि आप किसे टंकी पर चढा हुआ देखना चाहते हैं? देखते हैं आपका अनुमान कहां तक स्क्रिप्ट से मेल खाता है?
और एक खुश खबर यह है कि "ताऊ की शोले" में संगीत निर्देशन का जिम्मा अब संभालेगे श्री दिलीप कवठेकर जी. उनके निर्देशन मे गीत रिकार्डिंग का काम शुरु हो गया है. आप सबका असीम आशिर्वाद हमको मिला है उसके लिये हम आपके आभारी हैं.
पिछले सप्ताह श्री राज भाटिया जी की तबियत थोडी खराब होगई थी. कल उनसे काफ़ी देर बात हुई, वो अब स्वस्थ हैं किसी तरह की चिंता की बात नही है. थोडी कमजोरी है जो जल्द ही दूर हो जायेगी.
उनको माताजी के जाने का थोडा सदमा सा लगा है. यह तो ऐसा सदमा है जिसका भर पाना असंभव है. पर यह दुनिया दारी के विधान हैं जो अपने हिसाब से चलते हैं. आप सबकी शुभकामनाओं के लिये उन्होने आभार व्यक्त किया है. जल्दी ही वो पुर्ववत नियमित हो जायेंगे.
आपका यह सप्ताह शुभ हो.
-ताऊ रामपुरिया
आज बात करते हैं ईमेल के विषय में. कृपया ईमेल को ईमेल ही रहने दें, ब्रॉडकास्टिंग का माध्यम न बनायें. आपने पोस्ट लिखी, बहुत अच्छा किया. आप उसे पढ़वाना चाहते हैं, यह और भी अच्छी बात है किन्तु इस हेतु ईमेल का इस्तेमाल. इस कार्य हेतु एग्रीगेटरर्स हैं. ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत इस कार्य को पूर्ण सफलता से निष्पादित कर रहे हैं. फिर ईमेल किसलिये? ईमेल निजी वार्तालाप और पत्र व्यवहार के लिए है. ईमेल पता भी निजी ही होता है और आप १०० लोगों को एक साथ ईमेल भेज कर एक तो पते की निजता को भंग कर रहे हैं, दूसरे आप पर विश्वास करके जिसने आपको अपना पता दिया, उसे सार्वजनिक कर आप उसके साथ विश्वासघात भी कर रहे हैं. आश्चर्य तब होता है, जब सीधे मना करने का भी कोई असर नहीं होता. मानो उस ईमेल को वो इग्नोर कर अपना ईमेल ब्रॉडकास्ट पूर्ववत जारी रखते हैं. मुझे लगता है कि जिस तरह किसी भी वस्तु के इस्तेमाल के पूर्व जैसे आप उसके संचालन बारे में सारी जानकारी एकत्रित कर जान लेते हैं वैसे ही ईमेल के सामान्य शिष्टाचार के बारे में भी आपको जानकारी एकत्रित कर उसे आत्मसात करना चाहिये. कहीं ऐसा न हो कि आपकी हरकत से तंग आ कोई आपको ब्लॉक कर दे और फिर आप जब जरुरी कार्य हेतु निजी पत्र भी भेजना चाहें तो वो उस तक न प्राप्त हो. तो अंत में: हमने देखे हैं हजारों पते ब्लॉक होते हुए... ईमेल को ईमेल ही रहने दो, कोई और नाम न दो.. बाकी अगले सप्ताह!! -समीर लाल "समीर" |
सिद्धिविनायक मंदिर -मुम्बई आप सभी को गणेश चतुर्थी की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें. 'जय गणेश लम्बोदर: वक्रतुण्ड विध्नेश।देवों में सर्वप्रथम पूज्य देव गणेश के विभिन्न अवतार और अनेक रूप हैं. विवरणगणेश पुराण में और विशद वर्णन मुदगल पुराण में मिलता है. गणेश के चार अवतारों की कथा उल्लेखनीय हैं:- १-आदिकाल में दशभुजी आदिगणेशका अवतार ब्रह्मा की सृष्टि की श्रीवृध्दि के लिए हुआ था. २-सतयुग में मिथिला के राजा चक्रपाणि के दुरदम्य पुत्र सिन्धु के वध लिए षट्भुजी गणेश काअवतार हुआ. ३-त्रेता युग में ब्रह्मा जी की जम्हाई से उत्पन्न दैत्य सिन्दूर का वध करने के लिए शिवपुत्र चतुभुर्जी गणेश का अवतार हुआ. ४-द्वापर में कलिमल के विनाश एवं वेद प्रचार हेतु द्विभुजी गणेश का धूम्रकेतु अवतार हुआ. पाराशर मुनि की पत्नी वत्सला ने गजानन की पूजा कर गणपति को पुत्र रूप में प्राप्त किया जो धूम्रकेतु, शूपकर्ण, सुमुख आदि नामों से जाने गये. -परशुराम द्वारा दांत तोड़ दिये जाने पर एकदन्त रूप कहलाये . गौरी सुत गजानन के आठ रूप हैं जो विघ्न नाशक और शुभंकर हैं. 'वेद' मुनि व्यास जी ने बोले मगर लिखने वाले धूम्रकेतु गणेश जी थे.कहते हैं,यही गणेश अन्तरिक्ष युध्द के समय आकाश में धूम्र रूप में छायेंगे और कलियुग का अन्त कर सतयुग का आरंभ करेंगे. आईये गणेश जी के इस रूप सिद्धिविनायक के बारे में जाने.यूँ तो हमने गणेश जी कि तस्वीरों में उनकी सूँड बायीं तरह मुडी देखी है.जिन मूर्तियों में सूंड दायीं तरफ मुडी हो वह सिदधि विनायक कहलाते हैं. यह रूप सर्वाधिक लोकप्रिय है.और जहाँ ये मूर्तियाँ स्थापित हैं वे मंदिर सिद्धिविनायक मंदिर कहलाये जाते हैं.ऐसी मान्यता है भगवान् शिव की तरह गणेश जी का यह रूप जितनी जल्दी भक्तों से प्रसन्न हो जाता है और मन्नतें पूरी करते हैं मगर क्रोधित भी यह उतनी ही जल्दी हो जाता है.सिद्धि विनायक की दूसरी खासियत यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है. चतुर्भुजी विग्रह क्या है-- इस में उनके ऊपरी दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक (लड्डुओं) भरा कटोरा है. गणपति के दोनों ओर उनकी दोनो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक है. माथे पर अपने पिता शिव के समान एक तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है. सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचा होता है और यह दो फीट चौड़े एक ही काले शिलाखंड से बना होता है.इनका यह रूप अनुपम है. भारत में कई जगह सिध्दिविनायक के मंदिर हैं लेकिन जो मंदिर मुम्बई[महाराष्ट्र ]में है उसकी महिमा अपरम्पार है.ज्ञात हो कि इस मंदिर की न तो महाराष्ट्र के 'अष्टविनायकों ’ में गिनती होती है और न ही 'सिद्ध टेक ’ से इसका कोई संबंध है!जैसा कि महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सिद्ध टेक के गणपति भी सिद्धिविनायक के नाम से जाने जाते हैं और उनकी गिनती अष्टविनायकों में की जाती है.केवल महाराष्ट्र में ही भगवान गणेश के आठ सिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं. माना यही जाता है कि दाहिनी ओर मुड़ी गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं,और यहाँ [मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में] गणेश जी की जो मूर्ती है, वह दाईं ओर मुड़े सूड़ वाली है, इस तरह तो यह मंदिर भी सिद्ध पीठ है. भले ही यह अष्ट विनायकों में शामिल नहीं है मगर इस मंदिर में होने वाली गणेश पूजा का बहुत अधिक महत्व है ! इस का अंदाजा यहाँ हर मंगलवार को आई भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है.इसके अलावा यहाँ हर धरम के लोग पूजा अर्चना और दर्शन करने आते हैं.आये दिन यहाँ आने वाले विशेष व्यक्तियाँ [सेलेब्रिटियों]के कारण भी यह मंदिर सुर्खियों में रहता है. यह मंदिर मुम्बई के प्रभा देवी क्षेत्र में स्थित है.सरकारी दस्तावेजों के अनुसार इस मंदिर का १९ नवंबर १८०१ में पहली बार निर्माण हुआ था[लेकिन बहुत से लोग इसे संवत् १६९२ में बना मानते हैं.पुराना मंदिर ३.६० x ३.६० मीटर वर्ग के क्षेत्रफल में बना हुआ था.इसका निर्माण स्वर्गीय श्री लाक्स्मन विधु पाटिल ने करवाया जिसके लिए आर्थिक मदद स्वर्गीय श्रीमती द्विबाई पाटिल ने दी थी वे माटुंगा क्षेत्र से अगरी समाज की बहुत ही सम्पन्न महिला थीं.वह निसंतान थीं.एक दिन पूजा करते समय इस मंदिर के निर्माण का विचार उनके दिमाग में आया. उन्होंने मन ही मन भगवान् गणपति से अनुमति मांगी.और इस तरह मंदिर का निर्माण शुरू हुआ.भगवान गणेश जी कि यह प्रतिमा एक काले पत्थर से काट कर बनवाई गयी . १९५२ के बाद से यहाँ भक्तजनों कि संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई.१९५२ में ही सड़क कि खुदाई के समय पाई गयी हम्नुमान जी की एक मूर्ति को यहाँ लाया गाया था.जिसकी पूजा अर्चना हर शनिवार को होती है.हर मंगलवार यहाँ डेढ़ से दो लाख तक भक्तजन आते हैं[ऐसा अनुमान है] मंदिर के ऊपर गुम्बद पर एक कलश स्थापित है. यह मंदिर पांच मंजिलों वाला है,यहां प्रवचन ग्रह, गणेश संग्रहालय व गणेश विद्यापीठ , अस्पताल भी है.मंदिर के रसोईघर से एक लिफ्ट सीधे गर्भग्रह में आती है यहीं से पुजारी गणपति बाप्पा के लिए निर्मित प्रसाद व मोदक लाते हैं. १९९१ में महाराष्ट्र सरकार ने इस मंदिर के भव्य निर्माण के लिए २० हजार वर्गफीट की जमीन प्रदान की थी. इस मंदिर के पुनर्निर्माण के समय यहाँ का गर्भगृह इस प्रकार बनवाया गया कि अधिक से अधिक भक्त गणपति का सभामंडप से सीधे दर्शन कर सकें.अष्टभुजी गर्भग्रह तकरीबन १० फीट चौड़ा और १३ फीट ऊंचा है. गर्भग्रह के चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चांदी का बना सुंदर मंडप है, जिसमें श्री सिद्धि विनायक विराजते हैं. गर्भग्रह में भक्तों के जाने के लिए तीन दरवाजे हैं, जिन पर अष्टविनायक, अष्टलक्ष्मी और दशावतार की आकृतियां चित्रित हैं.इनके अलावा पहली मंजिल से भी दर्शन की सुविधा है. हर साल गणपति पूजा महोत्सव यहां भाद्रपद की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक विशेष समारोह किस उल्लास और आनंद पूर्वक मनाया जाता है इस से तो कोई भी अनभिज्ञ नहीं है. |
कुछ हिन्दी चिट्ठों पर भ्रमण करते वक्त अक्सर लंबी-लंबी ब्लॉग पोस्ट भी मिल जाती है। ऐसे में अचरज होता है कि जब पाठकों के लिए इसे पढ़ पाना ही मुश्किल होता है तो ब्लॉग लेखक ने उस पोस्ट को लिखा कैसे होगा। शनिवार को मेरे मन में यही जिज्ञासा जागी कि एक बहुत लंबी ब्लॉग पोस्ट को ढूंढ़ा जाए। मैंने थोड़ा सा गूगल को कष्ट दिया और पाया कि हिन्दी चिट्ठाकारी से ज्यादा लंबी प्रविष्ठियां अंग्रेजी चिट्ठों पर मौजूद है। इसी तलाश के दौरान मेरी स्क्रीन पर Living the Dream: A Coincidence Diary ब्लॉग खुला। इस ब्लॉग की पोस्ट Part Two: The Narrative, Epilogues and Appendices पर जब मेरी नजर पड़ी तो मैं दंग रह गया। इस अकेली पोस्ट की सामग्री को जब मैंने 12 प्वाइंट साइज के साथ एमएस वर्ड पर पेस्ट किया तो इसने वहां 111 पेज बनाए और इसमें 37874 शब्दों की मौजूदगी दिखाई। इस उपलब्धि के चलते मैं तो इसे सबसे लंबी ब्लॉग पोस्ट की उपाधि दे रहा हूं। अगर आपको इससे लंबी कोई पोस्ट दिखे तो कृपया बताइएगा। यह उपाधि उसी वक्त यहां से सरकाकर उस पोस्ट को दे दी जाएगी। अगले हफ्ते आपसे फिर मुलाकात होगी.. तब के लिए हैपी ब्लॉगिंग. |
लकड़हारा एक दिन एक लकड़हारा अपने पोते को ओक के पेड़ के चयन के अनुभव के लिए जंगल में ले गया, जो बाद में नाव बिल्डरों को बेचने के काम आयेगे. जैसे जैसे वो साथ चलने लगे , लकड़हारा अपने पोते को समझाने लगा कि हर एक पेड़ के उद्देश्य अपनी प्राकृतिक अवस्था में निहित है: कुछ काष्ठफलक के लिए सीधे हैं, कुछ एक नाव की पसलियों के लिए उचित है, और कुछ मस्तूल के लिए लंबा है. इसलिए वो हर एक पेड़ के विवरण के लिए ध्यान दे, और इन विशेषताओं को पहचानने में अनुभव के साथ, किसी दिन वह भी जंगल के लकड़हारा बन सकता है अपने पोते कहा था. किसी दिन वह भी जंगल में लकडहारा बन सकता है अपने पोते के साथ. तभी पोते ने एक पुराने ओक वृक्ष को देखा, जो शायद कभी भी काटा नहीं गया था, क्योंकि यह नाव बनाने के लिए बेकार था क्योंकि उसके तने छोटे और टेढे मेढे थे, पोते ने दादा से कहा हम इस ओक के वृक्ष को काट लेते हैं कम से कम ये हमारे आग जलाने के काम तो आएगा वरना तो ये बेकार ही है. दादा ने कहा अभी हमे अपना समय नाव बनाने के काम आने वाले वृक्ष को काटने में लगाना है, बाद में लोटते समय हम यहाँ दुबारा आ सकते हैं. एक विशाल पेड़ काटने के कुछ ही घंटों के बाद, पोता थक गया और दादा से बोला क्या वो कुछ देर ठंडी छाया में आराम के लिए काम बंद कर सकता है? इस पर लकड़हारा अपने पोते को उसी पुराने ओक के वृक्ष के नीचे ले आया , जहाँ उन्होंने उस पेड़ के मुडे अंगों के नीचे ठंडी छाया में विश्राम किया. थोड़ी देर आराम करने के बाद लकड़हारा ने अपने पोते को समझाया जंगल को और सारी दुनिया को समझने के लिए चौकस नजरो और जागरूकता की आवश्यकता है. कुछ चीजे सहज, लम्बे , सीधे पेड़ की तरह स्पष्ट हैं; अन्य चीजें कम स्पष्ट हैं, और करीब से ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे एक नज़र मे ये टेढे मेढे तने वाला ओक का वृक्ष पहली नज़र में बेकार लगा था मगर जब तुम काम से थक कर चूर हो गये तब इसकी घनी छाया में तुम्हे आराम और सुकून मिला. लकड़हारे ने फिर कहा तुम्हे हर दिन सावधानी से सीखने के लिए ध्यान देने की जरूरत है की भगवान् ने हर एक चीज़ का सृजन क्यों किया है .जैसे तुमने इतनी जल्दी इस ओक के वृक्ष को बेकार समझ कर आग जलाने को काटने का निर्णय ले लिया. जबकि इसने हमे अपनी छाया तले आराम और सुख दिया. इसलिए बेटे जो पहली बार में दिखाई देता है वो वैसा नहीं होता इसलिए धीरज रखते हए ध्यान देते हुए सही और गलत की खोज और पहचान करो. |
बागेश्वर बागेश्वर कुमाऊँ का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह नीलेश्वर और भीलेश्वर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सरयू गोमती व विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर बसा है। पुराने समय से ही बागेश्वर को व्यापारिक मंडी के रूप में जाना जाता है। बागेश्वर में प्रतिवर्ष के बागनाथ मंदिर में ही प्रतिवर्ष विश्वप्रसिद्ध उत्तरायणी मेला भी लगता है। प्राचीन समय में दारमा, व्यास, मुनस्यारी के निवासी भोटियों और साथ ही मैदान के व्यापारी भी इस मेले में आते थे। भेटिया जाति के लोग ऊन से बने वस्त्रों और जड़ी-बूटियों को बेचते थे और उसके बदले में अनाज व नमक इत्यादि जरूरत का सामान यहां से ले जाया करते थे। इसी कारण वर्तमान में नुमाइश मैदान कहे जाने वाले स्थान को पहले दारमा पड़ाव व स्वास्थ्य केन्द्र वाले स्थान को भोटिया पड़ाव कहा जाता था। बागेश्वर के संगम पर हमेशा ही स्नान पर्व चलते रहता है। अयोध्या में बहने वाली सरयू और बागेश्वर की सरयू नदी एक ही मानी जाती है। सरमूल से निकलकर बागेश्वर से बहते हुए पिथौरागढ़ तक इसे सरयू उसके आगे टनकपुर तक इसे रामगंगा तथा टनकपुर से आगे इसे शारदा नाम से जाना जाता है। तथा अयोध्या में इसे पुन: सरयू नाम से पुकारा जाता है। बागेश्वर का जिग्र स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी किया गया है। इसके अनुसार बागेश्वर की उत्पत्ति आठवीं सदी के आस-पास की मानी जाती है। और यहां के बागनाथ मंदिर की स्थापना को तेरहवीं शताब्दी का बताया जाता है। 1955 तक बागेश्वर ग्राम सभा में आता था। 1955 में इसे टाउन ऐरिया माना गया। सन् 62 में इसे नोटिफाइड ऐरिया व 1968 में नगरपालिका के रूप में पहचान मिली। 1997 में इसे जनपद बना दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है। कुली बेगार आंदोलन की शुरुआत बागेश्वर से ही हुई थी। बागेश्वर अपने विभिन्न ग्लेशियरों के लिये भी विश्व में अलग स्थान रखता है। इन ग्लेशियरों के नाम है- सुंदरढु्रगा, कफनी और पिण्डारी ग्लेशियर -विनीता |
कुरमुरे उपमा अब तक हमने कुछ अधिक समय लगने वाले खाना बनाने के तरीक़ो के बारे मे जाना. अल्पनाजी वर्मा के विशेष दिशा निर्देशो को पालन करते हुए, हम आज से कुछ ऐसे नाश्तों को बनाने की विधि जानेगे जो चुटकी बजाते ही गरमा गरम तैयार हो जाऍ। यह रेसिपि भाईयो के लिए बडी ही कारगर साबित होगी. क्यो कि भाभीजी गर्मी की छूट्टियों मे पीहर चली जाऐ, तब आपको आफिस जाने मे देरी ना हो जाए इस डर की वजह से फटाफट घर से निकल पडते है, या जब तक भाभीजी मायके से लोट ना आऐ तब तक आप रोज-रोज होटल का नास्ता-खाना खाते है। जिससे पैसे के साथ-साथ स्वास्थ्य की भी हानि होती है। अत सभी भाई इस को सीख ले। मेरे पति को भी मैने यह इन्सटन्ट बनने वाले नास्ते सिखाऐ थे, उन्होने कुछ रेसिपि तो मेरे किचन के दिवार पर ही लिख दी। आप ऐसा मत करना नही तो...........? कुरमुरे उपमा Puffed Rice Upama 3 व्यक्तियो के लिये सामग्री कुरमूरे 350 ग्राम लाल टमाटर 1 प्याज 1 हरी मिर्च 1 दालिया पाउडर 50 ग्राम मुगफली के दाने थोडे से लालमिर्च पाउडर धनिया पत्ते हल्दी जीरा नमक स्वाद अनुसार बनाने की विधी बर्तन मे कुरमूरे को साफ कर दस मिनट पानी मे भिगो दे। दस मिनट बाद ''कुरमूरो'' को अच्छी तरह से नितार कर इसमे थोडी सी हल्दी, दालिया पाउडर,लालमिर्चपाउडर, और नमक डालकर, हाथ से या चम्मच से मिला कर अलग से रख दे। अब एक कढाई ले । उसमे तेल गर्म करे। राई जीरा का छोक दे। इसमे कटे हुऍ प्याज, टमाटर और हरी मिर्च के टुकडे डाले, अब इसमे मुगफली के दाने डाले। अब मसाला मिलाकर रखे कुरमूरो को भी कढाई मे डाल दे। एक मिनट तक पकने दे। बीच-बीच मे चम्मच से हिलाए। अब तैयार गरमा-गरम ''कुरमूरे उपमा'' मे धनिया पत्ती को काट उपर से सजाए। नोट- भाईयो! मसालो मे कुछ समान(जैसे दालिया पाउडर ) किचन मे आपको नही मिल रहे हो तो भी चिन्ता की बात नही, जो है उसी मे काम चला ले।) जीवन-विज्ञान आज मै कुछ अलग तरह की बात करने जा रही हू. कुछ दिन पुर्व मैने अपनी ''ज्ञान-शाला'' के विधार्थियो को ''जीवन-विज्ञान'' की सरल बाते बताई. एक ऎसे विज्ञान की जो जीवन मे मन से ''स्वस्थ'' और ''सपन्न परिवार'' की कोई कल्पना की गई है। तो इन बातो को जीवन मे अपना कर यह सपना भी साकार कर सकते है. देखे, जीवन-विज्ञान कोर्स मे कैसे ''किचन'' एवम ''खान-पान'' को मनुष्य के स्वस्थ- जीवन को अहम भागीदार बनाया है. * खान-पान मे अनुशासन रखे. * अपने खान-पान मे सयम रखे. * जरुरत से ज्यादा नही खाये. * जितनी भुख हो उतना खाए. * अपने खाने मे सादगी और स्वच्छता बनाऎ रखे. * तली हुई चीजो का सेवन कम करे. * अपने खाने मे हरी सब्जियो और सलादो का प्रयोग करे. * पेट को साफ़ रखने के लिए दही और मठ्ठे का प्रयोग करे. * बाहर बनी चीजो से ज्यादा घर बनी चीजो का प्रयोग करे. * ज्यादा मसाले वाले खाने से दुर रहे. * खाना खाते समय पानी नही पिये,और खाना खाने के बाद ४५ मिनट तक पानी का सेवन नही करे. * दोपहर का खाना खाते ही थोडी देर विश्राम ले. रात के खाने के बाद आधा-एक घन्टा टहलने जरुर निकले. * महीने मे एक उपवास रखे तो पुरा शरीर हल्का हो जाऎगा. * रात का खाना सुर्यास्त से पहले खाए या खाने के और सोने के बीच चार घण्टे का अन्तराल रखे. * एक ही समय पर नियमित नास्ता एवम खाना खाए. * खाने मे उपर से नमक ना डाले. * निवाले को 32 बार चबा कर खाऎ. * खाना खाते समय बोले नही. अपनी पानी का गिलास स्वय भरकर बैठे, खाना झुटा नही डाले. चलते चलते क्षमा सच्चे अर्थो मे आज जैनो का पर्व ''संवत्सरी'' है। जिसे हम क्षमा दिवस-मैत्री दिवस के रुप मे मनाते है। हाथ जोड तन मन वाणी से, सब जीवो से क्षमा मांगती। जाने हो चाहे अनजाने, अपराधो की क्षमा चाहती॥ जीव मात्र के अन्तर्तल से, फुटे क्षमा भाव का झरना। वैर नही बस मैत्री भाव हो, सीखे हिलमिल कर रहना॥ क्षमा वंदनीय, क्षमा जिंदगी , क्षमा साधना,क्षमा प्रार्थना। ताऊ डॉट ईन के पाठको को मेरा शतश: वन्दन, आपमे गुंजित क्षमा भावना॥ क्षमायाचना दिवस पर आप सभी से मिच्छामी- दुक्कडम- खमत खामणा एवम भगवान श्री गणेशजी के आगमन पर हार्दीक बधाई के साथ अगले सोमवार तक मुझे आज्ञा दे । प्रेमलता एम सेमलानी |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरू पेलवान…आज इत्ती लेट क्यूं आ रिये हो पेलवान? अरे पीरू..मैं जिस इमली के पेड की कोटर मे रहता हूं ना..आज उसमे किसी ने नकली फ़ूल लगा दिये रंग बिरंगे उस्ताद जी..गणेश उत्सव की वजह से.. तो इससे तू क्युं लेट हुआ? हिंया टिपणी छांटने मे मजगपच्ची मैं इकेला ही करे जा रिया हूं? अरे यार पीरू भाई तम तो खामखा नाराज हो रिये हो..अरे वहां जनता ने जब इस तरह इमली के पेड पर रंगबिरंगे फ़ूल देखे तो ट्रेफ़िक जाम कर दिया. अबे तो इसमे जाम करने की कौन सी बात आ गई? अरे देखो खां..तुम दिमाग खराब तो मती करो हमारा..अरे जनता ने चमत्कार समझ के भीड लगा दी थी और क्या? अच्छा अच्छा..नाराज मत हो पेलवान..माफ़ी मांग लेते हैं..चल टिपणी बता तू तो आज की … ले पढले पेलवान खुद ही… वो कवठेकर अंकल के घर में एक शेरनी बैठी हैगी.. अरे नही यार...ला जल्दी पढने दे मुझे..
अच्छा पेलवान चल अब गणेशजी की मुर्ति ले आते हैं..फ़िर उनकी स्थापना करते हैं…और फ़िर लड्डुओं का भोग लगाते हैं. अरे हां यार मैं तो लड्डुओं को भूल ही गया था..अब तो दस दिन अपनी भी मस्ती..जय गणेश देवा.. आप सबको भी गणेश चतुर्थी की घणी रामराम…गणेश जी आपके सब काम पूरे करें..सब मंगल हो… |
ट्रेलर : - पढिये :श्री अविनाश वाचस्पति से ताऊ की खास बातचीत
"ट्रेलर" गुरुवार शाम को ३: ३३ पर ताऊ की खास बात चीत : श्री अविनाश वाचस्पति से...पढना ना भुलियेगा. ताऊ : अविनाश जी कुछ अपने बारे में बताईये? अविनाश जी : ताऊजी सीधे से कहिए न कि अपना गुणगान करना है। ताऊ : जी ठीक है..ऐसा ही समझ लीजिये. अविनाश जी : हूं..तो... झूठा करना है या सच्चा करना है? ताऊ : जैसा आप चाहें? यह आपको मौका दिया जाता है. अविनाश जी : .............. याद रखिये गुरुवार शाम ३ : ३३ ताऊ डाट इन पर |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
ताऊ जी फ़ुरसतिया जी को हमारी तरफ से शुभकामनाये ५ साल पूरे करने के लिए .
ReplyDeleteब्लोगिंग में भाई .
समीर जी कि राय सर मत्थे बाकी पत्रिका बहूत खूब !!!
Pankaj
इस पत्रिका को पढने के लिए पूरा एक घंटे का समय चाहिए।
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
ब्लॉगिंग के ५ साल पूरे करने के लिए फ़ुरसतिया जी को शुभकामनाये!
ReplyDeleteइस उत्कृष्ट पोस्ट के लिए ताऊ और पूरी टाम को बधाई।
वाह ताऊ...एक और सन्ग्रहणीय अंक....ताऊ..अविनाश भाई को सच का सामना करा दिया लगता है...इन्तजार कर रहे हैं
ReplyDeleteताऊजी हर बार की तरह बहुत सुन्दर अंक सभी को बहुत बहुत बधाई और फुर्सतिया जी को ब्लाके 5 साल पूरे होने की बधाई
ReplyDeleteशुक्रियाजी, शुक्रिया। ताऊ और आप लोगों जैसे महान पाठक न होते तो पांच साल क्या पांच महीने न पूरे होते।
ReplyDeleteघणी शानदार पत्रिका निकलती है ताऊ जी की। बधाई!
पत्रिका के एक ओर बेहतरीन अंक के सफलतापूर्वक संपादन हेतु समस्त संपादक मंडल को बधाई!!!
ReplyDeleteओर श्री फुरसतिया जी को आगामी पंच/सप्त/दशवर्षीय योजना हेतु शुभकामनाएं!!!
फ़ुरसतिया जी को हार्दिक शुभकामनाएं. एक और सफ़ल अंक के लिये सभी को बधाई.
ReplyDeletebahut badhai sabhi ko. avinashji ke sakshatkar ka intajar rahega.
ReplyDeletebahut badhai sabhi ko. avinashji ke sakshatkar ka intajar rahega.
ReplyDeleteफ़ुरसतिया जी वाकई अनुकरणिय उदाहरण हैं ताऊजी. उनके जैसे कद के ब्लागर गिने चुने ही होंगे. उनको बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआप सभी संपादक मंडल का इस सुंदर अंक के लिये आभार.
फ़ुरसतिया जी वाकई अनुकरणिय उदाहरण हैं ताऊजी. उनके जैसे कद के ब्लागर गिने चुने ही होंगे. उनको बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआप सभी संपादक मंडल का इस सुंदर अंक के लिये आभार.
और ताऊजी, अविनाशजी के साक्षात्कार का बेसब्री से इंतजार करेंगे.
ReplyDeleteईमेल को ईमेल ही रहने दो,
ReplyDeleteकोई और नाम न दो..
समीर जी की राय अति पसंद आई...आशा है लोग ज़रूर अमल करेंगे ......
इक बार फिर आशीष जी का सिक्सर ....बहुत खूब !
धीरज रखते हए ध्यान देते हुए सही और गलत की खोज और पहचान करो...सीमा जी उत्तम !!
विनीता जी की जानकारी का .....विस्तार में बताने पर....बहुत धन्यवाद
क्षमायाचना दिवस की सभी को बधाई
शेर के अलग अलग ठिकाने देखकर स्वाद आया..:))हीरामन भाई
सभी का का बहुत धन्यवाद इस सुन्दर पत्रिका के बनाव श्रंगार के लिए !!
ताऊ जी राम राम !!
बहुत शानदार अंक . सभी को बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत शानदार अंक . सभी को बहुत बधाई।
ReplyDeleteबिल्कुल सही - फुरसतिया शुकुल ही गर्मी में स्वेटर पहन सकते हैं! :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक रहा यह भी. सभी को बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक रहा यह भी. सभी को बधाई.
ReplyDeleteशानदार रहा जी यह अंक भी. सभी ने इतनी अच्छी जानकारी दी है कि बस मुंह से वाह ही निकलती है. आभार.
ReplyDeleteशानदार रहा जी यह अंक भी. सभी ने इतनी अच्छी जानकारी दी है कि बस मुंह से वाह ही निकलती है. आभार.
ReplyDeletebahut badhai taauji, achchhi patrika hai.
ReplyDeleteलाजवाब है जी सारा जोगाड. घणॆ चाल्हे कर राखें सै ताऊ. घणी बधाई सभी को.
ReplyDeleteलाजवाब है जी सारा जोगाड. घणॆ चाल्हे कर राखें सै ताऊ. घणी बधाई सभी को.
ReplyDeleteफ़ुरसतिया जी को घणी बधाई. और हमेशा की तरह एक सुंदर अंक रहा यह भी.
ReplyDeletebadhai sabhi ko. badhiya patrika hai ji.
ReplyDeletebadhai sabhi ko. badhiya patrika hai ji.
ReplyDeletelajawan ank,bahut sunder
ReplyDeleteअविनाश जी का साक्षात्कार का इंतज़ार कर रहे हैं ...
ReplyDeleteअनूप शुक्ल जी को पांच वर्ष पूरे करने, आगामी योजनाएं स्वेटर पहन कर बनाने और अविनाश वाचस्पति को पांच वर्ष न पूरे करने और बंद गले का कोट पहन कर शेर के संबंध में अद्भुत टिप्पणी देने के लिए बधाई। इंतजार है अविनाश वाचस्पति के साक्षात्कार का।
ReplyDeleteसोचता हूं मैं भी पहेली में भागा दौड़ा करूं।
फ़ुरसतिया जी को हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआज का अंक भी हमेशा की तरह जबरदस्त!!
अविनाश जी के इन्टरव्यू का इन्तजार!
कैटरीना जी, पत्रिका पढ़ने में समय तो लगता ही है। मुझे विश्वास है कि आप ने सबसे लंबी ब्लॉग पोस्ट
ReplyDeletePart Two: The Narrative, Epilogues and Appendices पढ़ने की जहमत नहीं उठाई होगी। अगर पढ़ लिया है तो सारांश इस पत्रिका के अगले अंक के लिए भेज दें।
अंग्रेजी में ऐसे लम्बे पोस्ट होते हैं और धैर्य से पढ़ने वाले सैकड़ों की संख्या में टिप्पणियाँ भी करते हैं।
वैसे इस पोस्ट पर अब तक केवल 5 असम्बद्ध सी टिप्पणियाँ हैं। धत्त तेरे की, ऐसा अंग्रेजी में ही हो सकता है। अपने शुकुल जी की पोस्टों पर कभी ऐसा हुआ है क्या?
फुरसतिया जी को बधाई और इतने रोचक ज्ञानवर्धक अंक के लिए आपको भी बहुत बहुत आभार एवं बधाई ..!!
ReplyDeleteएक शेर शायरों की
ReplyDeleteगजलों में
भी रहता है
पर वो गजलों का राजा
कहाता है रामप्यारी
और वो जंगल का
नहीं होता राजा
पर
जंगल में मंगल
जरूर कर देता है।
इन पंक्तियों के लेखक से मिलने की मेहनत तो की है ताऊ ने। पर पढ़ेंगे हम खाऊ। हम हैं शब्दों के महाखाऊ। खूब पढ़ते हैं । जी भरके पढ़ते हैं। हम पप्पू नहीं हैं जो पढ़ने से थकते हैं।
कैटरीना जी आप एक घंटा लगाकर तो देखिए, आबाद हो जाएंगी आप खुशहाली से। उम्मीद है पढ़ने के बाद आप अवश्य इस पर और तीस मिनिट लगाकर एक टिप्पणी भी लिखेंगी। हम ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठक आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। निराश मत कीजिएगा।
आदरणीय फ़ुरसतिया जी को हमारी तरफ से शुभकामनाये ५ साल पूरे करने के लिए . पत्रिका से जुड़े अभी सदस्यों का आभार इस बहतरीन प्रस्तुती के लिए....
ReplyDeleteregards
ताऊ पत्रिका तो बड़ी सजीली-रंगीली होती जा रही है...
ReplyDeleteक्या जर्मन आफसेट पर छप रही है?
बोल फुरसतिया महाराज की......जय...
ReplyDeleteनीरज
अहा मज़ा आ गया
ReplyDeleteहमारी प्रतीक्षा हो रही है।
ताऊ की जय जय।
@ अजित वडनेरकर
जर्मन ऑफसेट वाले भी ताऊ के यहां पर ही छपवा कर भिजवाते हैं।
@ अजय कुमार झा
ताऊ का सामना करना, सच का सामना से दुष्कर कार्य है।
@ दीपक तिवारी साहब
सामना से हमने भी कहां किया है मना।
@ विनोद, शेफाली पांडेय, उड़नतश्तरी और सत्यम् (आप शेयर वाले सत्यम् हैं)
वैसे सवाल सारे सही हैं, आप जवाबों की आलोचना करने के लिए स्वतंत्र हैं। आपके भेजे आलू और चनों का इंतजार मुझे रहेगा।
सभी को धन्यवाद और प्रणाम
ReplyDeleteएक बार हमें "शिष्टाचार" नाम से प्रोटोकोल मैनर्ज़ सिखाए गए थे...आज समीर जी क्लास में ब्लाग मैनर्ज़ पढ़ कर भी अच्छा लगा. काश वे लोग भी पढ़ लेते जिनके पास हम निरीह प्राणियों के इमेल पते हैं
ReplyDeleteइस बार भी बहुत सुंदर अंक है . सभी लेखको को बधाई.
ReplyDeleteपत्रिका का यह अंक भी रोचक और ज्ञानवर्धक लगा.
ReplyDeleteदेर से टिप्पणी कर पा रही हूँ..पढ़ तो उसी दिन ली थी..
@प्रेमलता जी शुक्रिया इस स्वादिष्ट कुरकुरे उपमा की विधि बताने के लिए ऐसा ही पोहे भी बनाते हैं..लेकिन कुरकुर के साथ अच्छा नाश्ता बना..आप की मूल्यवान टिप्स के लिए भी शुक्रिया.
-सभी लेखकों का आभार.