तीन बुलाये तेरह आये दे दाल में पानी

असल में बच्चों के संस्कार और अच्छी बुरी आदतों को तय करने मे सबसे ज्यादा घर का माहोल ही जिम्मेदार है. बच्चे सबसे ज्यादा अपने माता-पिता का ही अनुसरण करते हैं. पिछले सप्ताह एक बहुत ही मजेदार घटना हुई जो कि बिल्कुल सच्ची है. घटना जितनी मजेदार लगती है उससे कहीं ज्यादा हमको सोचने पर विवश करती है.

हमारे एक मित्र हैं..नाम? रहने दिजिये, नाम में क्या रखा है? कभी मौका मिला तो आपको रुबरु ही मिलवा देंगे. हम दशहरा मिलन के लिये उनके घर गये थे. बात चीत शुरु हुई तो उन्होने अपनी पीडा हमको कह सुनाई. अब उनकी पीडा यह थी कि पहले वो कभी कभार दो घूंट सोमपान कर लिया करते थे पर आजकल चार घूंट (पैग) के बाद भी सुरुर नही आता.

हमने कहा - तुम्हारा माथा खराब है ऐसा नही हो सकता और इस उम्र मे इतना अधिक सुरापान अच्छा भी नही है. वो जब बोले कि नही मैं सच कह रहा हूं ताऊ. तब हमने दिमाग दौडाया. यह तो पक्का था कि कुछ गड्बड जरुर है पर हमारे यहां और सब चीजों मे मिलावट हो सकती है पर इस तरह की मिलावट असंभव है कि नशा ही नही आये. बल्कि यहां तो तेज नशे के नाम पर सुरा को जहरीला बनाने मे भी नही हिचकते.

इतनी देर मे उनका नौकर रामसिंह चाय लेकर आगया.... रामसिंह हमारे मित्र का काफ़ी पुराना और विश्वासपात्र नौकर है. उसने नमस्ते की..हमने उसके हालचाल पूछे..... और उससे यूं ही पूछ बैठे कि रामसिंह ये क्या चक्कर है?

रामसिंह शायद सेठजी की नशा नही होने वाली बात सुन चुका था..सो उसकी भाव भंगिमा देखने लायक थी. हमने उसको परेशान देख कर पूछा कि रामसिंह सही सही बताओ...

रामसिंह बोला - ताऊजी, आप भी कैसी बाते करते हो? पीते सेठजी हैं और आप पूछ मुझसे रहे हैं.


तब हमने कहा कि - रामसिंह तुम्हारे सेठजी को तो तुम जानते ही हो? वो पुलिस भी बुला सकते हैं..अत: सही सही बताओ कि सेठजी को नशा क्युं नही आता?

पुलिस का नाम सुनकर रामसिंह सकपकाया और बोल पडा - "३ बुलाये १३ आये दे दाल मे पानी".

हमने पूछा - रामसिंह पहेलियां मत बुझाओ..वो हमारा काम है. सीधी तरह से सच सच बताओ.

वो बोला - ताऊजी, अब मैं बताऊंगा तो भी मैं ही फ़सूंगा और नही बताऊंगा तो भी. यानि चाहे खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे..पर मेरी कोई गलती नही है.


हमने कहा - रामसिंह बिल्कुल सही सही बताओ..तुमको कोई कुछ नही कहेगा.

रामसिंह बोला - ताऊजी अब मैं क्या बताऊ कि सेठजी बोतल घर लाकर रखते हैं और पीछे से बबलू भैया ( सेठजी के १५ वर्षिय सपूत) और उनके दोस्त उसमे से खींच जाते हैं और लेवल मिलाने के लिये उतना ही पानी मिला देते हैं.अब सेठजी को खाली पानी से नशा कैसे होगा?

रामसिंह की बाते सुनकर हंसी भी आई. और हम यह सोचने पर मजबूर भी हुये कि इसमे बबलू की कितनी गलती है और सेठजी की कितनी? जिस किसी के साथ भी ऐसा कुछ हो रहा हो तो ध्यान देने वाली बात है, क्योंकि अब बबलू बडा हो रहा है.

बस भाई इब आज की रामराम.

इब खूंटे पै पढो:-


एक दिन आशीष खंडेलवाल जी ने समीरलाल जी को फ़ोन लगाया और पूछा कि आप ये इतनी सारी पहेलियां कैसे जीत लेते हो? समीरजी ने जवाब दिया कि मैं रामप्यारी का खयाल रखता हूं और रामप्यारी मेरा खयाल रखती है.

बात आशीष जी की समझ मे आगई और उन्होने रामप्यारी के लिये मुंबई से एक खिलौना रेलगाड़ी खरीद कर भिजवाई. खिलौना पाकर रामप्यारी बडी खुश हुई और वो उस रेलगाडी को लेकर अपने कमरे मे चली गई.

ताई कुछ देर बाद जब रामप्यारी के कमरे में गयी तो देखा कि रामप्यारी उस खिलौना रेलगाड़ी से खेल रही है ..और जोर जोर से आवाज लगा रही है - ... जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, और जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए. जल्दी फ़टाफ़ट...इब यो रेलगाड़ी दो मिनट से ज्यादा इत नहीं रुकेगी ......

रामप्यारी जैसी छोटी बच्ची के मुंह से यह भाषा सुनकर ताई को गुस्सा आगया और उसने रामप्यारी के कान तले यानि कनपटी पर दो इनिशियल एडवांटेज (तमाचे) लगाए और फिर कभी इस तरह से न बोलने की चेतावनी दी.. और ताऊ को बुलाकर रामप्यारी की शिकायत कर दी.

ताऊ ने रामप्यारी को डांट लगाई और बोला - मैं दो घंटे के लिए बाजार जा रहा हूं। तब तक तुम सिर्फ पढ़ोगी, समझी ना. एंड नो बदमाशी....और रामप्यारी बेचारी चुपचाप पढने बैठ गई.

ताऊ जब बाजार से लौटकर आया तो देखा कि रामप्यारी तो किसी शरीफ़ बच्ची की तरह पढने मे लगी हुई है तो ताऊ का दिल पसीज गया और उसने रामप्यारी को खिलौना रेलगाडी से खेलने की इजाजत देदी.

अबकी बार रामप्यारी कुछ यूं आवाजे लगा कर खेल रही थी - जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए । रेलगाड़ी पहले ही एक उल्लू के पट्ठे की वजह से दो घंटे लेट हो चुकी है .....

"कल परिचयनामा मे मिलिये"

कल गुरुवार १ अक्टूबर को शाम ३:३३ बजे परिचयनामा मे मिलिये सुश्री प्रेमलता पांडे से.

ताऊ - आप शिक्षण से ताल्लुक रखती हैं...आप आज के समय में विशेषकर पालकों से क्या कहना चाहेंगी?

प्रेमलता जी - पालकों! बच्चों को अपना खिलौना न समझें वे भी जानदार और दिमागदार है। बालकों! - माता-पिता और बड़ों का आदर और सेवा करें यही आराधन है और पूजा है। अनुभव से सीखा ज्ञान शुद्ध होता है।

आज तू तेल बेच, मैं शक्कर बेचूंगा !

ताऊ को रामप्यारी फ़िल्म्स की ताऊ की शोले में सांभा का रोल मिला था. उसके बदले मे मेहनताना भी अच्छा मिल रहा था. पता नही क्या पंगे हुये कि रामप्यारी मैम ने अचानक फ़िल्म बंद करदी और सब बेकार होगये . गब्बर कनाडा निकल लिया, पर सांभा सबसे ज्यादा तकलीफ़ मे आगया..बेरोजगारी से बडी तकलीफ़ और क्या हो सकती है?

ताऊ फ़िर पहुंच लिया पहले की तरह राज भाटिया जी के पास. राज भाटिया जी बोले - ताऊ तेरे को नगद रुपये पिस्से तो मैं एक कौडी भी नही दूंगा पर तू और मैं एक ही गाम के हैं सो क्या करूं..मुझे तेरी मदद तो करनी ही पडेगी.

भाटिया जी ने तरस खाकर ताऊ को एक किराने की दूकान "ताऊ लूट खसोट स्टोर" खुलवा दिया. वहीं पर पहले से रतन सिंह शेखावत ने एक किराने की दूकान खोल रखी थी. सो उनको जैसे ही मालूम पडा उन्होने कंपिटशन में शक्कर के भाव ३० रुपये किलो से घटाकर २५ रुपये किलो कर दिये. जिससे ताऊ अपनी दूकान बंद करके भाग जाय.



ताऊ ने शेखावत जी को समझाया कि देखो आजकल जमाना कंपीटीशन का नही है बल्कि मिल्जुलकर डकैती मेरा मतलब दूकानदारी करने का है. मै ताऊ मेनेजमैंट युनिवर्सिटी का पास आऊट हूं. मेरी सलाह से दूकानदारी करोगे तो बहुत जल्दी दूकान की जगह शो रूम खडा कर लोगे.

शेखावत जी बोले - ताऊ इसमे मिलजुलकर भी क्या होगा?

ताऊ बोला - वो मेरे उपर छोडिये...एक दिन आप शक्कर बेचिये और मैं तेल बेचूं...?? और अपनी स्कीम समझा दी.

अब शेखावत जी ने अपनी दूकान पर बोर्ड लगा दिया कि हमारे यहां शक्कर २० रुपये किलो मिलती है. और ताऊ ने
अपने यहां बोर्ड पर लिख दिया की सोयाबीन का तेल ३० रु, किलो मिलता है.

अब शक्कर का २० रुपये किलो का भाव देखते ही सब गाहक शेखावत जी की दूकान पर टूट पडे...शेखावत जी ने ग्राहकों को कह दिया कि मेरे पास तो शक्कर का स्टाक खत्म हो गया. अब कल आयेगी. ज्यादा जरुरी हो तो
सामने ताऊ की दूकान से ले लो.

अब जिनको जरुरी मे शक्कर चाहिये थी वो ताऊ की दूकान पर आये ..और पूछने लगे - ताऊ शक्कर क्या भाव?
ताऊ बोला - भाई घणी सस्ती करदी आज तो शक्कर..सिर्फ़ ४० रुपिये की एक किलो.



ग्राहक नाराज होकर बोले - ताऊ ये तो लूट है...शेखावत जी के यहां देखिये ..शक्कर २० रुपिये किलो का भाव बोर्ड पर लिखा है.

ताऊ बोला - अरे बावलीबूचों..जब मेरी शक्कर खत्म हो जायेगी तब मैं भी २० रुपिये किलो का ही भाव बोर्ड पर लिखूंगा..पर अभी लेनी हो तो ४० रुपिये किलो लो वर्ना अपना रास्ता नापो.

अब ग्राहक मजबूरी मे क्या करते..बेचारों ने ४० रु. किलो में शक्कर खरीद ली. और ताऊ के बोर्ड पर सोयाबीन तेल का भाव ३० रु. किलो देखकर तेल भी मांगने लगे.

ताऊ बोला - भाईयो, तेल तो बस अभी अभी खत्म हुआ है . अब कल आजायेगा कल लेजाना. और ज्यादा ही जरुरी हो तो सामने शेखावत जी की दूकान से लेले.

अब ग्राहक तेल के लिये शेखावत जी की दूकान पर पहुंच गये. और तेल का भाव पूछा.

शेखावत जी बोले- भाई तेल ६५ रु.किलो का भाव है.

ग्राहक बोला - सामने ताऊ ने तो देखो ३० रुपये किलो मे बेचने का बोर्ड लगा रखा है.

शेखावत जी बोले - भाई आज ताऊ का तेल खत्म है और मेरी शक्कर खत्म है सो अब तेल तो ६५ रु. किलो ही लेना पडेगा.

बस दोनों की मिली भगत से दोनों का तेल और शक्कर दोनों कि दूकान पर एक साथ कभी नही पाया गया. और दोनों की पांचों ऊंगलियां घी मे और सर कडाही में.

ताऊ पहेली - 41 : विजेता श्री शुभम आर्य

प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 41 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली - 41 का सही उत्तर है दुर्गा मंदिर वाराणसी.

दुर्गा मंदिर वाराणसी


आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं. आईये अब आज के विजेताओं से आपको मिलवाते हैं.

"आज के विजेता गण"

प्रथम विजेता    श्री शुभम आर्य

Blogger     पूरे १०१ अंक बधाई

Bloggerद्वितिय विजेता श्री वरुण जयसवाल

अंक १०० बधाई

Blogger तृतिय विजेता श्री प्रकाश गोविंद  अंक ९९


आईये अब अन्य विजेताओं से आपको मिलवाते हैं. सभी को हार्दिक बधाई.

 

  Blogger seema gupta अंक ९९

  Blogger Murari Pareek  अंक ९८

 Blogger हिमांशु । Himanshu अंक ९७

  Blogger आशीष खण्डेलवाल   अंक ९६

  मीत  अंक ९५
  jitendra  अंक ९४

  Blogger दर्पण साह "दर्शन"  अंक ९३

  पं.डी.के.शर्मा"वत्स"  अंक ९२
  Ekta  अंक ९१
  अन्तर सोहिल अंक ९०
  संजय बेंगाणी  अंक ८९
  दिनेशराय द्विवेदी  अंक ८८
  प्रेमलता पांडे  अंक ८७

  Blogger संजय तिवारी ’संजू’  अंक ८६

  Udan Tashtari  अंक ८५


योगेश समदर्शी अंक ८४

  डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक  अंक ८३

  अभिषेक ओझा  अंक ८२


इसके अलावा निम्न महानुभावों ने भी इस पहेली अंक मे शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया. जिसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं.


इसके अलावा निम्न महानुभावों ने भी इस पहेली अंक मे शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया. जिसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं.

श्री काजल कुमार, श्री रतन सिंह शेखावात, श्री दीपक तिवारी "साहब", श्री सोनू, श्री भानाराम जाट,
सु. सोनिया, श्री मकरंद, श्री सही श्री भैरव, श्री लालों के लाल इंदौरीलाल, श्री हरि, श्री कमल,
श्री पंकज मिश्रा, श्री अनूप शुक्ल, श्री अविनाश वाचस्पति, श्री अनिल पूसदकर,
श्री अजय कुमार झा, सु. निर्मला कपिला, श्री हे प्रभु ये तेरा ये पथ, सु. शालिनी, श्री राजलाल सिंह,
श्री नीरज गोस्वामी, श्री राज भाटिया, सु. अर्शिया, श्री शाश्त्री जे.सी. फ़िलिप, श्री पी.डी,
श्री दिगंबर नासवा और श्री लोकेश.

आप सबका तहेदिल से शुक्रिया.


रामप्यारी के सवाल के विजेताओं से यहा मिलिये.

"रामप्यारी के ३० नंबर के सवाल का जवाब"


हाय…गुड मोर्निंग एवरी बडी…आई एम राम..की प्यारी… रामप्यारी.
हां तो अब जिन्होने सही जवाब दिये उन सबको दिये गये हैं ३० नम्बर…अगर भूल चूक हो तो खबर कर दिजियेगा..सही कर दिये जायेंगे.
मैने श्रीराम चरित मानस मे वर्णित जिन राक्षसियों के बारे में कल पूछा था उसके जवाब मे कल अनेकों टिपणियां आई थी. आप यहां चटका लगाकर कल ताऊ पहेली - 41 की पोस्ट की टिप्पणीयां पढें. आपका ज्ञानवर्धन होगा.

अब सबसे पहले सही जवाब आया शुभम भैया का, फ़िर रविकांत पांडे अंकल का, फ़िर अपने रेडियो वाले मुरारी अंकल का, फ़िर श्री प्रकाश गोविंद का, फ़िर अंतर सोहिल अंकल का और उसके बाद सही जवाब आया मीत अंकल का.

फ़िर दर्पण शाह "दर्शन" अंकल, फ़िर पंडितजी यानि प.डी.के. शर्मा "वत्स" अंकल का, फ़िर प्रेमलता पांडे आंटी, फ़िर आये एम. वर्मा अंकल, फ़िर संजय तिवारी "संजू" अंकल, फ़िर उडनतश्तरी अंकल और आखिर मे आये अभिषेक ओझा अंकल.
आप सबके खाते में तीस तीस नम्बर मैने जमा करवा दिये हैं.

अब रामप्यारी की तरफ़ से रामराम…अगले शनीवार फ़िर से यही मिलेंगें. वैसे आजकल शाम ६ बजे मैं ताऊजी डाट काम पर रोज ही मिल जाती हूं. ..और हां आपका आज से शुरु होने वाला सप्ताह शुभ हो.



हीरू और पीरू यानि हीरामन और पीटर की मनोरंजक टिपणियां यहां पढिये.

"आपकी सेवा में हीरू और पीरु"

अरे हीरू भिया..दशहरे की रामराम....
थारे भी घणी रामराम ओ..कंईं खबर लाया हो?

ई देखो अनिल अंकल कईं के रिया हे...किणने राक्षसणिया होण बतई रिया हे?
जरा दिखा म्हारे...
Blogger Anil Pusadkar said...

रामप्यारी एक ही काफ़ी होती है किसी को निपटाने के लिये तीन-तीन का पता पूछने की क्या ज़रूरत आन पड़ी?अटल जी से पूछ लेना,उनको भी तीन नाम तो याद ही होंगे?जया माया ममता।एक और है लेकिन आऊट आफ़ फ़ार्म चल रही है आजकल,उमा।

September 26, 2009 11:09 AM

और ई देखो...निर्मला आंटी के री हे के रामप्यारी उणाने पूछ पूछ ने स्कूल चलावे हे...
नई यार ! ला देखणे दे म्हारे..
Blogger Nirmla Kapila said...

प्ता हो भी तो भी नहीं बताऊँगी खुद को पता नहीम होता हम से पूछ 2 कर स्कूल चलातीहै आपकी राम प्यारी और आप ताऊ उसके पीछे लगे रहते हैं बस

September 26, 2009 12:23 PM



और ये मुरारी अंकल अपणी राक्षसणियां होण के वापस मांगी रिया हे...ला दिखा..

Blogger Murari Pareek said...

लंकिनी, ताड़का, त्रिजटा, सुरपन खां, सुरसा, इनमे se तीन सुन्दर सुन्दर निकाल ले रामप्यारी बाकी मेरी वापस लौटा दे | वापस रामायण में डालनी हैं! और भी थी पर सब काम में बीजी थी इसलियी नहीं लाया |

September 26, 2009 1:43 PM


और ई देखो राज भाटिया अंकल काईं केणे लाग रिया हे..तम ई पढि लो..


Blogger राज भाटिय़ा said...

अरे ताऊ यह तो ताज महल का पिछला हिस्सा है, जहा से गोपियां पानी भर भर कर,भर भर कर, भर भर कर, भर भर कर, भर भर कर, भर भर कर, भर भर कर, सडक धोया करती थी, ओर फ़िर कृष्णा भगवान वहां पर अपनी आऊडी कार ले कर आते थे, ओर फ़िर सब मिल कर डिज्जे पर खुब शोर दार धुने बजाते थे

September 26, 2009 2:54 PM





अच्छा अब नमस्ते.सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. ताऊ पहेली – 41 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.

ताऊ पहेली - 41

प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम.

ताऊ पहेली अंक 41 में मैं ताऊ रामपुरिया, सह आयोजक सु. अल्पना वर्मा के साथ आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. क्ल्यु हमेशा की तरह रामप्यारी के ब्लाग से मिलेंगे. रामप्यारी के ब्लाग पर पहला क्ल्यु 11:30 बजे और दुसरा 2:30 बजे मिलेगा. रामप्यारी का जवाब अलग टिपणी में देवें. तो आईये अब आज की पहेली की तरफ़ चलते हैं.

इस जगह को पहचानिये!



ताऊ पहेली का प्रकाशन हर शनिवार सुबह आठ बजे होगा. ताऊ पहेली के जवाब देने का समय कल रविवार दोपहर १२:०० बजे तक है. इसके बाद आने वाले सही जवाबों को अधिकतम ५० अंक ही दिये जा सकेंगे

अब रामप्यारी का विशेष बोनस सवाल : - ३० अंक के लिये.

rampyari-tdc-1_thumb[2] हाय एवरी बडी..वैरी गुड मार्निंग फ़्रोम रामप्यारी.

विनम्र निवेदन : - कृपया मेरे सवाल का जवाब अलग टीपणी मे देवें. बडी मेहरवानी होगी. एक ही टिपणी मे दोनो जवाब मे से एक सही होने पर प्रकाशित नही की जा सकती और इससे आप कन्फ़्युजिया सकते हैं कि आपकी टिपणी रुकी हुई है. तो सही होगी?

आज का सवाल :-

श्री रामचरित मानस मे उल्लेखित तीन राक्षसियों के नाम बताईये !


अब आप मेरे ब्लाग पर पहली हिंट की पोस्ट पढ सकते हैं 11:30 बजे और दुसरी 2:30 बजे.

अब रामप्यारी की रामराम.




इस अंक के आयोजक हैं ताऊ रामपुरिया और सु,अल्पना वर्मा

नोट : यह पहेली प्रतियोगिता पुर्णत:मनोरंजन, शिक्षा और ज्ञानवर्धन के लिये है. इसमे किसी भी तरह के नगद या अन्य तरह के पुरुस्कार नही दिये जाते हैं. सिर्फ़ सोहाद्र और उत्साह वर्धन के लिये प्रमाणपत्र एवम उपाधियां दी जाती हैं. किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजकों का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा. एवम इस पहेली प्रतियोगिता में आयोजकों के अलावा कोई भी भाग ले सकता है.


मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग

 

नोट : – ताऊजी डाट काम  पर हर शाम 6:00 बजे नई पहेली प्रकाशित होती हैं. यहा से जाये।

उडनतश्तरी का टिप्पणी ग्राफ़ 15 हजार के पार

बधाई ! बधाई !! बधाई !!!



हमेशा सौम्य और शांत रहने वाले उडनतश्तरी ने खामोश रहना मुझे पसंद है. पोस्ट पर आई हुई टिप्पणीयों के
साथ ही खामोश रहते हुये ही एक इतिहास रच दिया है. हिंदी ब्लागजगत मे सिर्फ़ ३३९ पोस्ट पर १५०००
टिपणी सर्वप्रथम प्राप्त कर नया रिकार्ड बनाया है.


उडनतश्तरी की सफ़लता इस मायने मे भी काबिले तारीफ़ है कि पहले साल मे भी उन्होनें प्रति पोस्ट ३४ कमेंट का रिकार्ड बनाया था. और अब ४५ कमेंट प्रति पोस्ट का नया रिकार्ड है.

बहुत दिन से हम इस बात पर निगाह रखे हुये थे. शायद स्वयं समीरलालजी को भी इसके बारे में पता नही होगा, और हमने आज उनके ब्लाग पर १५००० वीं टिपणी की बधाई भी दे दी है. वो जब सोकर ऊठेंगे तब आश्चर्यचकित होंगे कि ताऊ ने चुपचाप यह सब पता लगा लिया और खबर भी नही लगने दी.

तो आईये सब मिलकर समीरलाल जी के इस ऐतिहासिक रिकार्ड के लिये उनको बधाई दें.



ताऊ की शोले "पत्रिका" के ब्लाग चंक में

आज हिंदी भाषा के लोकप्रिय दैनिक अखबार "पत्रिका" के ब्लाग चंक स्तंभ मे "ताऊ की शोले" पोस्ट को स्थान मिला है.

जिसे आप नीचे पढ सकते हैं.



पूरी पोस्ट आप यहां पढ सकते हैं.

इब रामराम.

"ताऊ की शोले" की शूटिंग रुकी - गब्बर जंगल लौटा!!



ताऊ की शोले (एपिसोड - 7)
लेखक और एपिसोड निर्देशक : समीरलाल "समीर" और ताऊ रामपुरिया


गब्बर को बड़ी मुश्किल से ठाकुर घेर घार के ब्लॉगिंग में लाये थे. धीरे धीरे गब्बर का मन भी रमने लगा था ब्लॉगिंग की दुनिया मे. जंगल में छिप छिप कर अड्डा चलाते चलाते वो भी थक गया था.

कुछ समय तो बहुत मजा आया मगर जैसे ही गब्बर स्थापित होने लगा, नाम कमाने लगा, उसकी यहाँ ब्लॉगिंग मे खिलाफत होने लग गई. लोग मौज लेने के नाम पर उसे परेशान करते, जलील करते. यहाँ व्यंग्य बाणों के बेवजह तीर और स्ट्रींग ऑपरेशन की तर्ज पर खुद को और अन्यों को जलील होता देख कर गब्बर को लगा कि अगर यही सब यहाँ भी करना है तो जंगल में ही ठीक थे. यही सोच कर गब्बर वापस उदास मन से अपनी पूरी गैंग के साथ वापस जंगल जाने की तैयारी करने लगा.


ब्लॉगिंग के दौरान ही कालिया इस बात से गब्बर से नाराज रहने लगा कि गब्बर सांभा को ज्यादा चाहता है जबकि वो कालिया के बाद गैंग में आया है और सीरियस भी नहीं है. हर समय हा हा हो हो और लड़कपना करता है.

गब्बर अक्सर कालिया को समझाता है कि सांभा जैसा मौलिक और सुलझी सोच का डकैत मैने पूरे जंगल में आज तक नहीं देखा, इसलिए वो मेरा प्रिय है. जब मैं बीमार था तब भी सांभा रोज मुझे डकैती डालने की सलाह देता था. गब्बर ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए सांभा की शान में एक बेहतर शेर भी सुनाया जिसका लब्बोलुआब यह था कि सांभा क्यूँ उनका प्रिय है. शेर सुना कर गब्बर हो.. हो.. करके हंसने लगा मानो बहुत उँचा शेर सुनाया हो.

ठाकुर के साथ रह रह कर गब्बर को भी मौज लेने की आदत पड़ गई और इसी चुहल में उसने पुलिस वालों से भी मौज ले ली थी. अब पूरी पुलिस फोर्स भी उसके पीछे पड़ गई थी. भागते रास्ता नजर नहीं आ रहा था तो उसने सोचा कि जंगल का रास्ता लेने में उनसे भी बचाव हो जायेगा, इसलिए जंगल वापस लौट जाना 'एक पंथ दो काज' जैसी बात थी. कालिया तुरंत जंगल चलने को तैयार नहीं था क्योंकि सांभा सरदार के साथ आगे आगे चलता अतः उसने कह दिया कि आप और सांभा चलिये, हम पहुँचते हैं. अगले दिन सुबह सरदार गब्बर सिंह और सांभा जंगल की तरफ निकल पड़े.

सांभा ने भी पुलिस की मार से बचने के लिए जंगल में सेफ पहुँचने तक अपना नाम बदल कर सांभा 'सज्जन' रख लिया और गब्बर ने अपना ब्लॉग पासवर्ड से प्रोटेक्ट कर लिया. नाम बदलने के बाद भी सांभा की लड़कपने की आदत तो थी ही तो सांभा लड़कपना करते करते जंगल की तरफ चले जा रहे थे. गब्बर उसके लड़कपने पर उसे समझाने की बजाये कभी उसे और लड़कपना करने के लिए उकसाता तो कभी ताली बजा कर हौसला अफजाई करता तो कभी सिर्फ मुस्करा देता लेकिन रोकता कभी नहीं.

रास्ते में गांव पड़ा. उम्र में बड़ा दिखने पर भी सांभा को लड़कपना करता देख वह गांव के बच्चों के लिए कोतुहल का कारण बन गया. बच्चों नें मजमा लगा लिया और सांभा को घेर लिया. बच्चे उसे चिढाने लगे. ढेले और चूसे हुए आम की गुठलियों से मार मार कर हंसने लगे. तब गब्बर भागा भागा सांभा को बचाने आगे आया. बच्चे तो बच्चे होते हैं. उनके पास इतनी शैक्षणिक योग्यता और अनुभव कहाँ होता है कि जान पाये कि इतने नामी गिरामी डाकू गब्बर को और उसके खास मौलिक डकैती वाले चेले सांभा को हरकतों से पहचान सकें..

बस, बच्चों ने दोनों को घेर कर बहुत परेशान किया. हे हे ही ही करके चिढ़ाया भी. गब्बर को लगा कि अब यहाँ से भाग निकलने में ही भलाई है. उसने सांभा को ईशारा किया और दोनों ने दौड़ लगा दी. तब भागते भागते गांव से दूर आकर रास्ते में दोनों एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे. इस बीच गब्बर ने माणिक चन्द का नया गुटके का पाऊच खाया. गब्बर का मूड ठीक करने के लिए सांभा ने जेब से अपनी एक मौलिक रचना निकाल कर गब्बर को सुनाई:

अपनों को भीड़ से बचाना भी जरुरी है

झुठ को छिपाने का बहाना भी जरुरी है,

यूँ तो इत्र का जलवा कम नहीं होता कभी

लेकिन कभी कभी, नहाना भी जरुरी है.

इस मार्मिक एवं संदेशपूर्ण कविता पर वाह वाह करते हुए गब्बर को ख्याल आया कि संदेश है कि नहाये हुए हफ्ते भर से उपर हो गया है. पास ही एक तालाब था. अतः दोनों जा कर उसमें घुस गये. अब अपने लड़कपने के अंदाज में सांभा ने एक गीत सुनाया:

सांभा को संगीत शिक्षा देते हुये उस्ताद गब्बर सिंह


'पानी में जले मेरा गोरा बदन!! पानी मेंZZZZZZzzzzzzzzzzzzz!!

गब्बर का खास चेला था तो गब्बर ने उसका मनोबल बढ़ाने के लिए वाह वाह की और इस गीत की मौलिकता एवं धुन पर सांभा को बधाई एवं शुभकामनाएँ दी.

इतने में न जाने कैसे कालिया उनको ढ़ूंढ़ता हुआ आ गया. गब्बर को वाह वाह करता देखना एवं बधाई एवं शुभकामनाएँ संदेश देता देखना उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने ब्रेकिंग न्यूज की तरह एक्सक्लूजिव राज खोला कि 'सरदार, ये फिल्म का गाना है. सांभा ने नहीं लिखा है, उठाया हुआ माल सुना रहा है.'

उसने अपनी बात साबित करने के लिए उसकी पिछली मौलिक रचना पर,
अपनों को भीड़ से बचाना भी जरुरी है
झुठ को छिपाने का बहाना भी जरुरी है,...... जो सांभा ने विश्राम के क्षणों मे पेड़ के नीचे सुनाई थी, पर आई ३६ में से छंटी हुई १२ टिप्पणियाँ भी दिखलाई जिससे सांभा को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा था.

उसने यह भी बताया कि सांभा को रोकने वाली टिप्पणियाँ उड़ा दी जाती है अतः पानी अब सर के उपर से गुजरता कहलायेगा. लेकिन चेले के मोह में मदहोश होने के कारण गब्बर के कान में जूँ तक नहीं रेंगी और वो वाह वाह करता रहा और सांभा तर्रनुम में गाता रहा..

'पानी में जले मेरा गोरा बदन!! पानी मेंZZZZZZzzzzzzzzzzzzz!!

कालिया ने पूरी गैंग को इक्ट्ठा कर लिया कि सांभा उठाया हुआ माल सुनाता है तो भी सरदार उसे वाह वाही देता है, शाबासी देता है, बधाई एवं शुभकामनाएँ संदेश देता है और हम ओरीजनल भी सुनायें तो कहता है कि कहाँ से उड़ाया, मौलिक नहीं लगता. गोली मार दूँगा. गाली दूँगा आदि.

गैंग ने कालिया की बात का पुरजोर समर्थन किया एवं सांभा का पुरजोर विरोध किया तो सरदार गब्बर सिंह को डर लगा कि गैंग उसके विरोध में न चली जाये. वैसे ही बिखरी हुई है. जंगल के मामले में शैशव अवस्था में है, कहीं टूट ही न जाये.
इस डर से हमेशा की तरह ऐसे मौकों पर अपनी आदतानुसार बात बिगड़ती देख सरदार 'खे खें ही हीं' करके हंसने लगा और कहने लगा कि वो तो मैं यूँ ही तुम लोंगो की मौज ले रहा था और साथ ही सांभा को प्रोत्साहन देकर उसका मनोबल बढ़ा रहा था ताकि वो ठीक से नहा ले. वरना वो तो एक डुबकी मार कर निकल जाता है. फिर दो दो महिने तालाब पर नहीं आता. तुम लोग कबसे इतने छुईमुई हो गये कि इतनी सी बात का बुरा मान गये. उसने कालिया की तरफ देख कर आँख मारी और दाँत दिखाये.

गैंग वालों को भी गब्बर की बात उचित लगी और लगा कि सांभा नहाया रहेगा तो जंगल में बदबू भी कम रहेगी.
सबको सहमत देख गब्बर भीतर ही भीतर शातिराना मुस्कराया और सांभा को धीरे से आंख भी मारी.
फिर सब शांति से जंगल की तरफ चल पड़े.

गब्बर अब अपना गैंग फिर से नये सिरे से स्थापित कर रहा है जंगल में. नये पद आवंटित किए जा रहे हैं. सबके रहने खाने की पुनः व्यवस्था की जा रही है. आसपास के गांवों के रुट मैप बन रहे हैं. नियमित जल, दारु, गुटका एवं गोश्त आपूर्ति के लिए इंतजाम किये जा रहे हैं. डांस फ्लोर (नृत्य भूमि) का कन्सट्रक्शन(निर्माण कार्य) किया जा रहा है. ठाकुर का हाथ अलग करने के लिए हाथ बांधने के लिए बल्लियाँ लगाई जा रही हैं.

अब इतने सब कामों में समय तो लगता ही है अत: शोले की शूटिंग रोकी जा रही है. आप अब इन्तजार करें शूटिंग पुनः शुरू होने का ताऊ की शोले भाग-२ के लिए.

तब तक आप सबको शोले की पूरी टीम की ओर से राम राम!!

-आगे शूटिंग कब शुरु होगी, इसी मंच से सूचित किया जायेगा. आते रहें.-
अंत में : - मैं इस बात के लिये क्षमायाचना चाहता हूं कि ताऊ की शोले में ज्यादा मदद नहीं कर पाया बस, यही एक स्क्रिप्ट लिख पाया हूँ. ताऊ की शोले- २ में मैं वादा करता हूं कि ज्यादा से ज्यादा लिखने की कोशीश करुंगा. इसमे आप लोगों द्वारा की गई गई सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार व्यक्त करता हूं.
-समीरलाल "समीर"

डिस्क्लेमर :-

इस आलेख का मकसद मात्र शूटिंग के रुकने की सूचना देना और हास्य विनोद है, कृपया इसे मौज निरुपित कर विवाद पैदा करने का कष्ट न उठायें.

 

इब खूंटे पै पढो:-



सांभा : सरदार अगर वाहवाही नही दी तो..इस झील मे डुबकर प्राण दे दूंगा....!!!

गब्बर : अरे नही सांभा..तू तो मेरा प्रिय चेला है....तुझे डुबने थोडे ही दूंगा, भले मैं ही डूब जाऊं...तू चालू रह...!!! वाह..वाह...वाह..वाह..क्या खूब...सांभा...जीता रह..क्या मौलिक तान छेडी...पानी में जले..तेरा गोरा बदन..पानी में... जियो मेरे लाल…पानी मे और जलाओ…शाबास…

कालिया : सरदार...ये गलत बात है...उडाये हुये...माल पर वाह वाह...ये पक्षपात है...मैं नही रुक सकता यहां पर...सरदार सांभा का नही हमारा बदन गोरा है...सांभा तो काला कलूटा बैंगन लूटा है...अगर इसे मौलिक गाना है तो गाये...पानी में जले मेरा काला बदन..पानी में...गोरा बदन क्यों जलवा रहा है ये?

गब्बर : अरे ओ कालिया खामोश..वर्ना तेरी खुपडिया में सारी की सारी गोलियां उतार दूंगा…..खबरदार जो मेरे सांभा के लिये कुछ भी कहा तो ..अब सांभा की इच्छा गोरा बदन जलाने की है तो गोरा ही जलेगा...समझा ना? सरदार से जबान लडाने का नही...बोल दिया अपुन ने तो बोल दिया..समझा क्या?

कालिया : ठीक है सरदार..अब तुम और तुम्हारा सांभा ही गिरोह चला लेना…...हमको तो मालूम था कि ग्रहों की चाल ही कुछ टेढी मेढी हो गई है...और यों भी चारों तरफ़ हल्ला मचा है कि ब्लाग जगत आजकल ग्रहों की मार मे पडा है. शनि की वक्र दृष्टी का शिकार है और रोज एक दो पोस्ट तक इस पर लिखी जा रही हैं.

गब्बर : कालिया...ज्यादा बोलने का नईं...अपुन सब समझ गयेला है...तू होशियारी मत दिखा...तू किस के साथ मिल गयेला है? अपुन को सब मालूम है...जब दूर दूर समन्दर पार तक किसी पकड का पता नही चलता है तो लोग कहते है कि गब्बर सरदार उठा ले गया होगा......

कालिया : सरदार बात को समझा करो...और इस चेला मोह से बाहर निकल कर किसी योग्य पंडित से झाड फ़ूंक कराओ .. सरदार एक बार और सोचलो..कुछ पूजा पाठ और दान दक्षिणा के साथ मिष्ठान्न भोजन करवा दो ब्लागरों को...वर्ना ये शनि नही उतरेगा तुम्हारे सर से..और बिना शनि उतरे डकैती और पकड करना बडा मुश्किल है....और कालिया व्यंगात्मक हंसी हंसकर अपना बैग वहां से जाने के लिये कंधे पर डाल लेता है

हूं..अरे ओ सांभा.. कितने आदमी थे रे ..ऊहां?


और गब्बर अपने नथुने फ़ुलाता हुआ कुछ गंभीर मुद्रा अख्तियार कर लेता है....और अचानक पिस्तौल उठाकर पूछ बैठता है...अरे ओ सांभा..कितने आदमी थे रे.. ऊहां?

सांभा : सरदार पूरे के पूरे ... ३६.....

गब्बर : हूंSSSS....पहले ३ थे... अब ३ पर ६ आके बैठ गये...और पूरे ३६...बहुत ना इंसाफ़ी है रे कालिया... (गब्बर सरदार गुर्राकर बोला)
और कालिया की रुह कांप जाती है....गोलियों की आवाज...ठांय..ठांय..ठांय...

गोलियां किस पर चली? कालिया जिंदा बचा या गया ऊपर..? ये सब जानने के लिये इंतजार किजिये..ताऊ की शोले - भाग २ का....