कभी पिता , कभी पति,
भाई और संतान के लिए
रूप धर माँ बेटी
बहन और पत्नी का
और खो जाते है स्वपन उसके
भूल जाती है पहचान अपनी
रिश्तों की इस अंधी दौड में
उसे कोमलता से
अगली रात तक
जिसने
मुझे जन्म दिया है?
-अल्पना वर्मा नमस्कार, आईये आपको आज राजस्थान के एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन माऊंट आबू के बारे मे जानकारी देते हैं. शनीवार को पूछा गया पहेली का स्थान था नक्की झील के किनारे स्थित टोड राक. 'माउंट आबू,' जिला सिरोही में है जानिए इस जिले सिरोही के बारे में- सिरोही राजस्थान का पर्वतीय एवं सीमावर्ती जिला हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूल नाम शिवपुरी था। १४०५ में राव शोभा जी ने शिवपुरी शहर को बसाया था. प्रदेश का एकमात्र पर्वतीय स्थल माउन्ट आबू इस जिले में हैं। यह क्षेत्र मौर्य, क्षत्रप, हूण, परमार, राठौड, चौहान, गुहिल आदि शासकों के अधीन रहा। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र आबुर्द प्रदेश के नाम से जाना जाता था और गुर्जर-मरू क्षेत्र का एक भाग था। देवडा राजा रायमल के पुत्र शिवभान ने सरणवा पहाडों पर एक दुर्ग की स्थापना की और 1405 ई. में शिवपुरी नामक नगर बसाया। उनके पुत्र सहसमल ने शिवपुरी के दो मील आगे 1425 ई. में नया नगर बसाया जिसे आजकल सिरोही के नाम से जाना जाता हैं। राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सिरोही गुजरात राज्य से जुडा एक प्रमुख नगर और इसी नाम का एक जिला मुख्यालय हैं। यह सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 24 किमी. दूर स्थित हैं। श्री राय साहब विसाजी मिस्त्री [जिनके केवल एक ही बाजू थी]उन्हें सिरोही का मुख्य इंजिनियर कहा जाता है.उनके योगदान के लिए उन्हें यहाँ के लोग हमेशा याद करते हें. अब 'माउंट आबू 'के बारे में जानते हें-- क्षेत्रफल-25वर्ग किमी. वर्षा- 153से 177सेंमी. कब जाएं-फरवरी से जून और सितंबर से दिसंबर माउन्ट आबू भारत का प्राचीनतम पर्वत हैं। माउंट आबू राजस्थान का वह स्थान है, जहां गर्मी हो या सर्दी हमेशा सैलानियों का तांता लगा रहता है। कुछ रोचक प्रचलित कथाएँ इस स्थान के बारे में --: 1-इस शहर का पुराना नाम 'अर्बुदांचल 'बताया जाता है.पुरानो के अनुसार इस जगह को अर्बुदारान्य [अर्भु के वन.] के नाम से जाना जाता है.कहते हैं वशिष्ठ मुनि ने विश्वामित्र से अपने मतभेद के चलते इन वनों में अपना स्थान बना लिया था. 2-एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी। 3-माउंट आबू अनेक ऋषियों और संतों का देश रहा है. इनमें सबसे प्रसिद्ध हुए ऋषि वशिष्ठ, कहा जाता है कि उन्होंने धरती को राक्षसों से बचाने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के हवन-कुंड में से चार अग्निकुल राजपूत उत्पन्न किए थे। इस यज्ञ का आयोजन आबू के नीचे एक प्राकृतिक झरने के पास किया गया था, यह झरना गाय के सिर के आकार की एक चट्टान से निकल रहा था, इसलिए इस स्थान को गोमुख कहा जाता है। ४- पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं. ५-कहा जाता है कि भारत में संत, महापुरुष यहाँ के पहाड़ों में निवास करते थे। मान्यता है कि हजारों देव, ऋषि-मुनि स्वर्ग से उतरकर इन पहाड़ों में निवास करते थे ६ -जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। सिरोही जिले में स्थित नीलगिरि की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। हरे-भरे जंगलों से घिरी पहाड़ियों के बीच एक शांत स्थान, माउंट आबू, राजस्थान के रेतीले समुद्र में एक हरे मोती के समान है। अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित इस पहाड़ी स्थान का ठंडा मौसम पूरे पहाड़ी क्षेत्र को फूलों से लाद देता है, जिसमें बड़े पेड़ और फूलों की झाड़ियां भी शामिल हैं। माउंट आबू को जाने वाला मार्ग यदि आकाश मार्ग से देखा जाए तो ऊंची-ऊंची चट्टानों के बीच घुमावदार रास्ते उच्च वेग वाली हवा के साथ एक बिंदु-रेखा के समान दिखाई देंगे। राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन, माउंट आबू गर्मियों में लिए एक स्थान से कहीं अधिक है। माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों कापसंदीदा स्थान था। पहुँचें वायु मार्ग से- निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहां से 185किमी.दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं। रेल मार्ग से- नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28किमी.की दूरी पर है जो अहमदाबाद,दिल्ली,जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है। सड़क मार्ग से- माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिएअपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं। घूमने की जगह- दिलवाड़ा जैन मंदिर,नक्की झील-टॉड रॉक और नन रॉक-गोमुख मंदिर-माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य-गुरु शिखर-सूर्यास्त स्थल (सनसेट पॉइंट) -ट्रेवोर्स टैंक -अर्बूदा देवी का मंदिर-वास्तुपाल और तेजपाल मंदिर-अचलेश्वर और अचलगढ-गौतम आश्रम, अंबाजी, ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय (ओमशांति भवन दर्शनीय हैं). खरीदारी- राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहां की संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियों और सूती कोटा साड़ियां काफी लोकप्रिय है। यहां की दुकानों से चांदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है। समाचारों में- १-16 march २००९ रविवार को माउंट आबू मार्ग स्थित आरणा गांव के समीप घने जंगलों में अचानक आग भडकउठी थी.बहुत से प्रयासों के बाद ही आग को बुझाया जा सका. २- नक्की झील के उत्तरी तट पर तीन करोड़ की लागत से माउंट आबू में देश का सबसे बड़ा मछलीघर (अक्वेरियम) बनने जा रहा है। 3-भालुओं के लिए प्रसिद्ध माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का अस्तित्व इस इलाके में हो रहे अवैध निर्माण से खतरे में है. 4-एक जगह यह पढा है-- दुनिया जहान में हिल स्टेशन माना जाने वाला माउंट आबू प्रदेश सरकार की ओर से हिल स्टेशन घोषित नहीं है इसलिए यहाँ वनकर्मियों को हिलस्टेशन की सुविधाएँ (हार्ड ड्यूटी एलाउंस) नहीं मिलतीं। यह बात कितनी सच है..कृपया जानकार पाठक बतायें. दिलवाड़ा जैन मंदिरः कहते हैं सात अजूबों से कम नहीं हैं ये मंदिर. पौराणिक कथा के अनुसार -भगवान विष्णु के नये अवतार बालमरसिया ने इस मंदिर की रुपरेखा बनाई थी. इन आकर्षक ढ़ग से तराशे गए मंदिरों का निर्माण 11 वीं और 13 वीं सदी में हुआ था। ये जैन तीर्थकारों के संगमरमर से बने ललित्यपूर्ण मंदिर हैं। प्रथम तीर्थकर का विमल विसाही मंदिर सबसे प्राचीनतम है। इसका निर्माण सन् 1031 में विमल विसाही नामक एक व्यापारी ने किया था जो उस समय के गुजरात के शासकों का प्रतिनिधि था। यह मंदिर वास्तुकला के सर्वोत्तम उदारहण हैं। यह पांच मंदिरों का समूह है. प्रमुख मंदिर में ऋषभदेव की मूर्ति व 52 छोटे मंदिरों वाला लम्बा गलियारा है, जिसमें प्रत्येक में तीर्थकरों की सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित है तथा 48 ललित्यपूर्ण ढ़ग से तराशे हुए खंभे गलियारे का प्रवेश द्वारा बनाते हैं। बाइसवें तीर्थंकर - नेमीनाथ का लून वसाही मंदिर का निर्माण दो भाइयों वस्तुपाल व तेजपाल ने ईसवी सन् 1231 में किया वे पोरवाल जैन समुदाय से संबंध रखने वाले गुजरात के शासक राजा वीर धवल के मंत्री थे। द्वारा के खोलों डयोढ़ी पर बने खंभों, प्रस्तर पादों व मूर्तियों के कारण मंदिर शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है। 1231 में इस मंदिर को तैयार करने में 1500 कारीगरों ने काम किया था। वो भी कोई एक या दो साल तक नहीं। पूरे 14 साल बाद इस मंदिर को ये खूबसूरती देने में कामयाबी हासिल हुई थी। उस वक्त करीब 12 करोड़ 53 लाख रूपए खर्च किए गए। अगले सप्ताह फ़िर किसी नई जानकारी के साथ मिलते हैं. तब तक के लिये नमस्कार. -अल्पना वर्मा ( विशेष संपादक ) |
-आशीष खण्डेलवाल नमस्कार, आईये आज आपको एक रोमांचक जानकारी देते हैं. अरे आप डरिये मत. मैं कोई मजाक भी नही कर रहा हुं.
नहीं, मैं कोई अंधविश्वास नहीं फैला रहा हूं। एक ब्रिटिश दम्पती वाकई लोगों को ऐसा ही सिखाने की योजना बना रहा है। और तो और इस काम में सरकार भी उन्हें लाखों रुपए देकर मदद कर रही है। साउथ वेल्स के इस दम्पती को सरकार ने इस कोर्स के लिए 4500 पाउंड (करीब सवा तीन लाख रुपए) यूं ही दे दिए हैं। सरकार के इस कदम की ब्रिटेन में जमकर आलोचना हो रही है। दरअसल पॉल और डेबोरा रीज को यह पैसा सरकार की ओर से वांट-टू-वर्क योजना के तहत दिया गया। ब्रिटेन में नौकरी से निकाल दिए गए लोगों को सरकार फिर से काम पर लगाने में इसी योजना के तहत मदद करती है। पॉल और डेबोरा ने अपने आवेदन में लिखा कि वे लोगों को भूतों से बातें करना सिखाएंगे। शायद वहां के बाबू भी लालफीताशाही में यकीन रखते हैं। उन्होंने उस फाइल को पढ़े बिना ही लाखों रुपए देकर उनकी मदद कर दी है। आलोचना होने पर इस घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। पॉल और डेबोरा का कहना है कि उन्होंने यह कोर्स इसलिए चुना, क्योंकि इसमें प्रतियोगिता कम है। साथ ही हर व्यक्ति अपने खोए परिजनों से बात करने में दिलचस्पी रखता है। यह बात और है कि वे कोर्स में क्या पढ़ाएंगे, यह किसी को नहीं पता। पूरी खबर इस वेबसाइट पर पढ़ी जा सकती है- http://www.telegraph.co.uk/news/uknews/5054558/Psychics-given-4500-government-funding-to-teach-people-to-communicate-with-the-dead.html अगले हफ्ते तक के लिए इजाज़त। आपका दिन शुभ हो.. -आशीष खण्डेलवाल ( तकनीकी संपादक ) |
-Seema Gupta आइये आज आपको एक और छोटी सी कहानी सुनाते हैं. सर्दियों के दिन.. सूबह सूबह बहुत ही शानदार धूप जंगल मे खिली हुई है. एक खरगोश अपनी मांद से बाहर, आराम से बैठा अपने कंप्युटर के की-बोर्ड पर अंगुलियां चला रहा है. . तभी एक लोमड़ी वहां आती है. और उस सर्दियों की धूप मे बैठ कर काम करते हुये खरगोश से पूछने लगी. लोमड़ी : "आप किस विषय पर काम कर रहे हैं?" खरगोश: "अपनी थीसिस पर ." लोमड़ी: "हम्म ... किस बारे में है यह थीसिस?" खरगोश: "ओह, मैं लिख रहा हूँ की खरगोश लोमडी कों कैसे खाते हैं ." लोमड़ी: "यह हास्यास्पद है! कोई भी बेवकूफ जानता है कि खरगोश लोमडी कों नहीं खा सकते ! खरगोश: "मेरे साथ आओ और मैं तुम्हें दिखाता हूँ!" और खरगोश उस लोमडी को लेकर अपनी मांद मे चला जाता है. और कुछ ही मिनटों के बाद, एक लोमड़ी की हड्डी कों खाता हुआ खरगोश वापस आता है और , फ़िर से अपने कंप्युटर के की बोर्ड पर अपनी अंगुलियां चलाने लगता है. जल्द ही एक भेड़िया वहां से निकला और मेहनती ख़रगोश को देखने के लिए रुक जाता है. अब भेडिये ने भी उससे पूछा. भेड़िया : "आप जो लिख रहे हैं वह क्या है?" खरगोश: " खरगोश कैसे भेड़ियों को खाते है इस विषय पर एक शोध कर रहा हूँ." भेड़िया : "तुम ऐसी बकवास को प्रकाशित करने की उम्मीद कैसे कर सकते हो ?" खरगोश: "कोई समस्या नहीं है. क्या तुम देखना चाहते हो?" खरगोश और भेडिया फिर मांद में जाते है और कुछ ही मिनटों में खरगोश वापस आकर अपनी टाइपिंग करने लगता है. अंत में एक भालू आता है और पूछता है, तुम क्या कर रहे हो ? खरगोश: "मैं शोध कर रहा हूँ की खरगोश भालू को कैसे खाते है भालू " ह ह ह ह ह कितना बेतुका है ! लगता है तुम पूरी तरह पागल हो गये हो? खरगोश: "मेरे घर में आओ और मैं तुम्हें दिखाता हूँ" मांद के अंदर का दृश्य: जैसे ही वे मांद में प्रवेश करते हैं , खरगोश भालू की पहचान मांद में बेठे शेर से कराता है..... नैतिक: इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता की आपका शोध का विषय कितना मुर्खता पुर्ण या बेतुका है ..प्रश्न ये है की आपके अधीन काम करने वाला सुपरवाइज़र कितना योग्य है ... कार्यशील संसार के संदर्भ में प्रबंधन पाठ : आपका बुरा प्रदर्शन उतना मायने नहीं रखता जितना ये महत्वपूर्ण है, की आप अपने मालिक की पसंद है या नहीं. अब अगले सप्ताह तक के लिये इजाजत, नमस्कार. -Seema Gupta संपादक (प्रबंधन) |
मैं हूं हीरामन राम राम ! सभी भाईयों और बहनों को. मैं हूँ तोता हीरामन! ताई कहती है मेरा मन बिलकुल हीरे जैसा है इस लिए नाम भी हीरामन रख दिया.. मैं अभी अभी विदेश भ्रमण से लौटा हूँ.. तो देखा यहाँ तो रामप्यारी सब की लाडली बनी बैठी है! वैसे वो है तो मेरी भी लाडली! मुझ से छोटी है न! खैर..मैं तो यहाँ आज का विदूषक का खिताब देने हाज़िर हुआ हूँ! कल की पहेली में बहुत सारी मजेदार टिप्पणियां आई हैं..लेकिन मुझे जो सब से ज्यादा मजेदार लगी.. उसे "आज का विदूषक" (सिर्फ़ तीन स्थानों के लिये) का खिताब मिलता है... _________________________________________________ आज के प्रथम विदूषक का खिताब जाता है श्री योगिंद्र मौदगिल को... आपने फ़रमाया है:- हे ताऊ.... ये है डायनासोर की पुरानी खोपड़ी. जो कुदरती थपेड़े सह-सह कर पत्थर जैसी होगी. इश्क के मारे जिन छोरे-छोरियों के पास ढंग की जगह जाने के पैसे नहीं होते, वे बिचारे शादी के बाद की रिहर्सल के लिये यहीं आते हैं, और टिप के रूप में हस्ताक्षर भी कर जाते हैं. बाकि रही रामप्यारी.. ईब भला जो राम नै ई प्यारी होली उसका के जवाब दयूं..? इतना हिसाब-किताब आता तो कविता थोड़े ई लिखता..!!! जैरामजीकी.... --------------------------------------------------- और आज के दूसरे विदुषक हैं श्री शाश्त्री जी : ![]() पहेली न बूझने के बहाने!--: प्रिय ताऊ जी, पिछले शनिवार सफर के कारण आपके चिट्ठे पर न आ सका. उसका मानसिक डिप्रेशन अभी भी चल रहा है. उम्मीद है कि इस उत्तर को लिखने के बाद यह डिप्रेशन कम हो जायगा. 1. मैं किताबों का बेहद प्रेमी हूँ, अत: वह पुस्तक जरूर देखना चाहूंगा जिसमे एक साथ इक्क्यासी-बयासी पन्ने देखे जा सकते हैं!!! (हा! हा!! आज कुछ तो हाथ लगा!! प्रात: शायद आपको स्मरण किया था ताऊ जी). 2. चट्टान देखते ही डिप्रेशन बढ गया -- कि कहीं यह मेरे ऊपर न ट्पक जाये. घर वालों से कह दिया है कि ऐसी कोई भी दुर्घटना हुई तो ताऊ जी और सिर्फ ताऊजी जिम्मेदार हैं अत: हर्जाखर्चा के लिये सीधे वहीं पहुंच जाना!! हां नीचे वाली चट्टान पर खुदे दिल को देख कर दुख और भी बढ गया कि एक क्षण के आनंद के लिये किस तरह हम प्रकृतिदत्त चीजों पर लिखलिखा कर उनको रौन्दते हैं. ------------------------ और तीसरे विदुषक हैं : श्री राज भाटिया अरे ताऊ आलू तो हो ही नही सकता... अब सोचने कि बात यह है कि यह है कया.... ओर मेने ओर मेरे हेरी ने बहुत दिमाग लगाया... तो लगा हो ना हो यह राज स्थानी शकर कंदी हो सकती है..... ___________________________ आप मजेदार टिपणियां करते रहिये. हीरामन अगले सप्ताह फ़िर आपकी सेवा मे इसी जगह उपस्थित होगा. तब तक के लिये नमस्कार |
आपको यह बताते हुये हमे हार्दिक प्रशन्नता हो रही है कि ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल मे कल सोमवार से एक नये सदस्य का आगमन हो रहा है. कौन?
इस बात को आज सस्पेंस ही रहने देते हैं. कल की पत्रिका मे आप स्वयम ही उनसे मिल लिजियेगा. हां एक बात बता देते हैं कि ये महाशय हैं बडे विदुषक किस्म के. अब ये क्या गुल खिलायेंगे यह हमको भी फ़िल्हाल तो नही मालूंम. तो इनका कल तक इन्तजार करते हैं.
एक जरुरी बात यह है कि कल के रामप्यारी के लिये हमे सवाल भेजा था श्री आशीष खंडेलवाल ने. इसी लिये उन्होने रामप्यारी के सवाल का जवाब नही दिया.
अगर आप भी रामप्यारी के लिये कोई सवाल भेजना चाहते हैं तो रामप्यारी की अक्ल के हिसाब से कोई अटपटा- चटपटा सा सवाल भेज सकते हैं. जो रामप्यारी को जंच गया तो वो अवश्य शामिल करेगी. पर आप जानते ही हैं कि रामप्यारी बहुत इमानदार है सो आपका सवाल अगर शामिल हुआ तो उस अंक मे आप रामप्यारी के सवाल का जवाब नही दे पायेंगे.
जिन भाईयों बहणों ने रामप्यारी के सवाल भेजे हैं उनके सवाल भी समय आने पर अवश्य प्रकाशित किये जायेंगे.
अब आपको और इन्तजार नही करवाते हुये हम आज का रिजल्ट जानने के लिये आपको बीनू फ़िरंगी के पास लिय चलते हैं.
ताऊ रामपुरिया की तरफ़ से आपको बहुत घणी रामराम.
आदर्णीय देवियों और सज्जनों, ताऊ के भाइयो, बहणों, भतीजियों और भतीजो, समस्त संपादक मंडल के सदस्य गणों, आप सबको बीनू फ़िरंगी का सादर प्रणाम.
और मिस रामप्यारी को विशेष रामराम.
ताऊ पहेली राऊंड –२ के पांचवें अंक का रिजल्ट घोषित करते हुये मुझे अपार हर्ष हो रहा है. और मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि मुझे ये मौका आज फ़िर मिला. और जब तक ताऊ चाहेगा आगे भी मिलता रहेगा.
मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि मैं बिना किसी ईमान और इमानदारी के यानि बेइमानी पुर्वक रिजल्ट घोषित करता आ रहा हूं पर आपने आज तक कभी ध्यान ही नही दिया और शायद आगे भी नही देंगे तब तक करता रहूंगा.
यह बात मैं जबसे रिजल्ट घोषित कर रहा हूं तब से लिख रहा हूं अब देखता हूं कि इस बात पर आप लोगों का ध्यान कब तक जाता है? वैसे मुझे आशा है आप मेरे द्वारा तैयार रिजल्ट से संतुष्ट हो ही रहे होंगे? नही तो अब तक ताऊ से शिकायत कर चुके होते.
तो आईये अब चलते हैं रिजल्ट की तरफ़ :- हमारी इस पहेली का सही जवाब है टोड-राक माऊंट आबू . जो कि नक्की झील के किनारे पर स्थित है. इस विषय पर विस्तृत जानकारी कल के अंक मे पत्रिका की विशेष संपादक सु.अल्पना वर्मा दे रही हैं.
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सर्वाधिक अंक प्रात किये १०१ घणी बधाई प्रथम स्थान के लिये. .श्री रतन सिंह शेखावत
तालियां..... तालियां..... तालियां..... जोरदार …. तालियां
विशेष बधाई….
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आईये अब अन्य माननिय विजेताओं के बारे में क्रमश: जानते हैं. सभी को हार्दिक बधाई.
| poemsnpuja अंक ९८
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| संजय बेंगाणी अंक ९७ |
| jitendra अंक ९६ |
| आशीष खण्डेलवाल अंक ९५ |
नीरज गोस्वामी अंक ९४ |
| HEY PRABHU YEH TERA PATH अंक ९३ |
| अन्तर सोहिल अंक ९२ |
Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" अंक ९१ |
| सतीश चंद्र सत्यार्थी अंक ९० |
| नरेश सिह राठौङ अंक ८९ |
| आलोक सिंह अंक ८८ |
|
अंक ८७ |
|
अंक ८६ |
| हिमांशु । Himanshu अंक ८५ |
| दिलीप कवठेकर अंक८४ |
| makrand अंक ८३ |
| Syed Akbar अंक ८२ |
| प्रकाश गोविन्द अंक ८१ |
Rajeev (राजीव) अंक ७९ |
इसके अलावा निम्न महानुभाओं ने भी इस पहेली अंक मे शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया. जिसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं.
श्री मा पलायनम, श्री ज्ञानदत्त पांडेय, श्री अशोक पांडेय, श्री योगिंद्र मौदगिल, सुश्री पारुल,
श्री अरविंद मिश्रा, श्री महामंत्री तस्लीम, सुश्री रचना, श्री डा. रुपचन्द्र शाश्त्री “ मयंक”,
सुश्री रंजना [रंजू भाटिया], श्री शाश्त्री जी, श्री PD, श्री शुभम आर्य, श्री राज भाटिया, और श्री पंगेबाज.
आप सबका बहुत बहुत आभार..
अब आईये रामप्यारी की क्लास में:-
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आप सबको रामप्यारी की नमस्ते. अब क्या बताऊं आपको? ताऊ ने जानबूझकर मेरे साथ गडबड करदी. पहले तो मुझे समझ ही नही आया कि ये कैसे हो गया? जब आप लोगों ने बताया तो मुझे समझ आगया. मैने ताऊ से पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? तब ताऊ ने पूछा कि मैने क्या किया? तब मैने बताया कि आपने जानबूझकर गलत रिपोर्ट लिखवा दी. तब ताऊ बोला – मैने कब रिपोर्ट लिखवाई? मैने कहा कि वो मर्डर की तफ़्तीस रिपोर्ट? तो ताऊ बोला – रामप्यारी तू तो बडी बेवकूफ़ है. मैं तो “पेरी मेशन” का नावल पढ रहा था और तूने उसको सच मान कर रिपोर्ट लिख ली तो मैं क्या करुं? तो मेरी ये नौकरी तो पक्के से छुट ही जायेगी. अब चार्जशीट का जवाब भी क्या दूं? पर आपने तो मुझको मेरी गल्तियां बता ही दी हैं तो आप सब के खाते मे मैने तीस तीस नम्बर जमा करवा दिये हैं. सबसे पहले आये रतन सिंह शेखावत अंकल, उसके बाद आई सीमा आंटी, फ़िर आये तरुण अंकल, और सबसे बडी गल्ती की तरफ़ सबसे पहले ध्यान दिलाया आर. सी. मिश्रा अंकल ने. स्मार्ट ईंडियन अंकल, नितिन अंकल, पर्काश गोविंद अंकल और फ़िर आई हरकीरत आंटी. सुशील कुमार छोक्कर अंकल, हे प्रभु ये तेरा पथ वाले अंकल, अंतर सोहिल अंकल, आलोक अंकल, और उसके बाद आये सतीश चन्द्र सत्यर्थी अंकल, और आज तो शाश्त्री अंकल ने भी रामप्यारी की गलती निकाल ही आखिर. हैल्लो अंकल कैसे हैं आप? फ़िर PD अंकल..हाय अंकल ..कहां कहां…घूमे इतने दिनो तक? उसके बाद आये नरेश राथौड अंकल, सैयद अकबर अंकल…हैल्लो अंकल लविजा कैसी है?… फ़िर रंजन अंकल..हाय अंकल..पल्टू के क्या हाल चाल हैं? और उसके बाद आये हिमांशू अंकल…हैल्लो अंकल आप्ने मेरा जवाब ताऊ के जवाब के साथ घुसेड दिया था. अगली बार जरा ध्यान रखना ना…मुझे जवाब बनाने मे दिक्कत होती है..क्योंकि मैं कम पढी लिखी हूं ना.. फ़िर दिलिप कवठेकर अंकल, दीपक तिवारी साहब अंकल, फ़िर मकरंद अंकल, अविनाश वाचस्पति अंकल और फ़िर अपने फ़ौजी अंकल..अरे वही गौतम राजरिशी अंकल..हाय अंकल..कैसी लगी आपकी नई जगह? मुझे जरुर बताना. मैं वहां आऊंगी. और फ़िर प्रकाश गोविंद अंकल और सबसे आखिर मे आये राजीव अंकल. आप सबको मैने इमानदारी से तीस तीस नम्बर दे दिये हैं. अबकी बार कोई भी दीदी नही आई मुझे मेरी गल्ती बताने. वो डा. पूजा दीदी भी आकर ताऊ के सवाल का जवाब दे कर चली गई. हैलू दीदी..आप का क्लिनिक वापस कब चालू हो रहा है? कब आऊं कैट स्केन करने? बस अब आज रामप्यारी ज्यादा बाते नहीं करेगी. मेरे को नौकरी की पडी है. देखती हूं कि कोई ताऊ की सिफ़ारिश से काम चल जाये. वैसे आप चिंता मत करना. सिफ़ारिश से यहां बडे बडे काम हो जाते हैं ये तो एक रामप्यारी की छोटी सी नौकरी बचाने का सवाल है. |
छपते छपते :
अच्छा अब नमस्ते. कल सोमवार को ताऊ साप्ताहिक पत्रिका मे सिर्फ़ रिजल्ट वाला हिस्सा
छोडकर बाकी सब स्तम्भ यथावत प्रकाशित होंगे.
सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. इस दुसरे राऊंड की पांचवीं पहेली का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : seema gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी