कुल्लू से मनाली के बीच अनेक रिसोर्ट्स हैं आप कहीं भी ठहर सकते हैं. मनाली मे हर तरह के होटल उपलब्ध हैं.
कुल्लू से ही ब्यास नदी इठलाती बल खाती मनाली तक साथ चलती है और आगे बीच बीच मे रोहतांग तक कहीं कहीं झरनों के रुप मे मिलती है.
रोहतांग मनाली से ५१ किलोमिटर दूर है. पूरा रास्ता मनोरम दृष्यावली से परिपुर्ण है. कई फ़िल्मकार इसी रास्ते पर अपनी फ़िल्मों का छायांकन करते मिलेंगे.
कोठी नामक जगह के बाद रास्ता और चढाई भरा हो जाता है. ड्राईविंग का असली आनन्द इसी रास्ते पर आता है. पुरे रास्ते मे अनेको बर्फ़ के दर्रे मिलते हैं.
लेकिन प्रदुषण की समस्या वहां भी है. बर्फ़ के ढलानों से फ़िसलने के पहले जरा जांच ले कि कहीं कोई टूटी कांच ( बीयर) की बोतल तो नही है. कई सिरफ़िरे ऐसी वस्तुये वहां खाली करके पटक जाते हैं.
वैसे पूरी ही कुल्लू घाटी बहुत ही रमणीक है. आप जब भी समय निकाल पायें अवश्य जायें. आपका वहां बिताया समय यादगार समय बन जायेगा.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
और अब आईये चलते हैं सुश्री सीमा गुप्ता के स्तम्भ “मेरी कलम से” की और
नमस्कार, ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के एक और अंक में आपका स्वागत है. आज एक कहानी और सुनते हैं.
जंगल मे एक सर्दियों के दिन थे. उस सूबह अच्छी सी धुप खिली हुई थी. और एक शेर अपने गुफा के बाहर, आलस्य में धूप में लेटा हुआ था . तभी एक लोमड़ी घूमते घूमते वहां आई.
लोमड़ी : आपकी घडी मे क्या बजा होगा? क्योंकि..मेरी घडी टूट गयी है.
शेर बोला - "ओह, लाओ मैं आपकी घडी सुधार देता हूं.
लोमड़ी : "हम्म ... लेकिन यह एक बहुत जटिल और बारीक काम है. और आपके बड़े पंजे इसे उल्टा खराब कर देगें ." लोमड़ी: लेकिन "यह हास्यास्पद है! कोई बेवकूफ भी ये जानता है की है कि इतने बडॆ पंजे के साथ आलसी शेर" जटिल घड़ियों को ठीक नहीं कर सकते हैं .
शेर घडी लेकर अपनी गुफा में चला गया. और कुछ देर बाद जब वापस आता है तो उसके हाथ मे चलती हुई घडी होती है ..
अपनी घडी को ठीक देख कर लोमड़ी, शेर से और प्रभावित हो जाती है और धुप मे लेटा शेर बेहद प्रसन्न होता है.
जल्द ही एक भेड़िया भी वहां आता है और धूप में लेटे आलसी शेर को देखने के लिए रुक जाता है.
भेड़िया बोला : "क्या मै आज रात आपके साथ टीवी देखने आ सकता हूँ , क्योंकि मेरा TV खराब हो गया है?
शेर : "ओह, मैं आसानी से आप का टीवी ठीक कर सकता हूँ..
भेडिया: " आप क्या सोचते हैं कि मैं आपकी इस बकबास पर यकिन कर लूंगा? एक बडे पंजे वाला शेर इतना बारीक, टीवी सुधारने का काम कर सकता है? नही ये असम्भव है.. खैर भेडिया अपना टीवी सुधरवाने लिये तैयार हो जाता है.
शेर उसका टीवी लेकर अपनी गुफा में चला जाता है और कुछ समय बाद एक बिल्कुल ठीक टी वी के साथ आता है. भेडिया ये देख कर चकित और खुश हो जाता है.
अब शेर की गुफा के अंदर का नजारा देखिये . एक कोने में आधा दर्जन से अधिक छोटे और बुद्धिमान खरगोश बहुत विस्तृत उपकरणों के साथ बहुत बारीक और जटिल काम कर रहे हैं.
दूसरे कोने में एक बहुत बड़ा शेर उन्हें मेहनत से काम करते देख मन ही मन बडा प्रसन्न दिख रहा है.
Moral : यदि आप जानना चाहते हैं की एक मेनेजर प्रसिद्ध क्यूँ है , तो उसका नहीं उसके अधीनस्त कर्मचारियों का काम देखिये. जिनकी मेहनत का श्रेय उसको मिलता है.
कार्यशील संसार के संदर्भ में प्रबंधन पाठ : यदि आप जानना चाहते हैं की क्यों कोई अयोग्य मेनेजर बिना काबलियत ही पदोन्नत कर दिया जाता है तो उसके अधीन कार्य करने वालो का कार्य देखो. अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं तब तक के लिये अलविदा.
संपादक (प्रबंधन) |
इस गुरुवार १९ मार्च को हम श्री सैयद यानि लविजा के पापा का ईन्टर्व्यु प्रकाशित करेंगे जो कि ताऊ पहेली के उपविजेता रह चुके हैं.
ताऊ पहेली राऊंड दो के तीसरे अंक के उपविजेता श्री .दिलिप कवठेकर , और राऊंड एक के महाताऊ सम्मान प्राप्त श्री संजय बैंगाणी और श्री गौतम राजरिषि के इंटर्व्यु अभी चल ही रहे हैं. हम हमारे सम्माननिय पाठकों से अनुरोध करते हैं कि उनको इनसे जो भी सवाल पूछने हों वो कृपया हमें जल्दी से जल्दी भिजवायें
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : seema gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
अल्पना जी द्वारा, आशीष द्वारा प्रद्द्त जानकारी एवं सीमा जी द्वारा प्रद्द्त मेनेजमेन्ट फंडा बहुत अच्छा लगा. सभी का आभार.
ReplyDeleteताऊ जी! पत्रिका विस्तृत होती जा रही है। इसे दो तीन पेजों में बदलना पड़ेगा। मेरा जैसा पाठक कई बार इसे सरसरी तौर पर पढ़ कर निकल जाता है यह ठीक नहीं। आप इसे दिन भर में तीन चार टुकड़ों में प्रकाशित कर सकते हैं।
ReplyDeleteआशीष जी आपके द्वारा दी गई जानकारी बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteसीमा जी ने भी बहुत अच्छी बात बताई, मैनेजर कितना ही काबिल हो अगर उसके अधीनस्थ कर्मचारी कामचोर है तो वो मेनेजर भी फ़ैल है और कर्मचारी दुरुस्त है तो अयोग्य मेनेजर भी एक सफल मेनेजर बन जायेगा |
अल्पना जी ने रोहतांग दर्रा घर बैठे ही घुमा दिया बहुत-बहुत आभार !
हमेशा की तरह अल्पना जी ने इस स्थान की भी व्यापक और रोचक जानकारी दी है। छोटे-छोटे किस्सों से बड़े-बड़े मैनेजमेंट नुस्खे सिखाने में सीमा जी का जवाब नहीं। एक और अच्छे अंक के संपादन के लिए ताऊ, रामप्यारी और बीनू फिरंगी का आभार..
ReplyDeleteअल्पना जी ने रोहतांग दर्रे की बहुत खुबसुरत जानकारी दी है..कभी जाना तो हुआ नहीं पर हाँ जी जरुर जाने का मन हो आया है इतनी डिटेल पढ़ कर.. , .आशीष द्वारा दी गई जूता मोबाइल की जानकारी बहुत अच्छी लगी, क्या पता आने वाले समय में ये मोबाइल भी पोपुलर हो जाये....इस पत्रिका की सफलता के लिए सभी पाठको के योगदान और प्रोत्साहन का आभार.
ReplyDeleteregards
आपका साझा ब्लोग पत्रिका का आनँद दे रहा है सभी को बधाई और इसी तरह खुशियाँ बाँटते रहीये
ReplyDelete- लावण्या
पर्वतमाला का किया,वर्णन ललित-ललाम।
ReplyDeleteसुन्दर-सुन्दर दृश्य,ये लगते हैं अभिराम।।
ताऊ जी की पत्रिका, मुझको बड़ी पसंद।
बच्चों-बूढ़ों सभी को, यह देती आनन्द।।
अल्पना जी,आशीष जी,एवं सीमा जी सहित पत्रिका का समस्त संपादक मंडल अपनी अपनी भूमिका का बहुत ही बढिया तरीके से निर्वहण कर रहा है.....बधाई
ReplyDeletewaah rohtak ki sair,juta phone aur manager ki kahani bahut bahut pasand aaye.sabhi ka bahut aabhar.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकरी और प्रसंग .
ReplyDeleteधन्यवाद
ham jab manali ghoomne gaye the to hamara bhi rohtang pass jane ka plan tha, par mausam achanak se kharab ho gaya fir avalanche ke karan bahut se log fans gaye. to hamara jaana ho nahin paaya...jaan ke accha laga yahan ke bare me. shayad fir kabhi jaana ho paaye.
ReplyDeleteaccha raha aaj ka ank bhi, dhayavaad taau aur baki sampadak mandal ko.
बहुत शानदार! साप्ताहिक पत्रिका के दर्शन पहली बार हुए. लेकिन अद्भुत प्रयोग है, यह साप्ताहिक पत्रिका. रोहतांग पास और व्यास नदी के उद्गम वाली जगह और इलाके की जानकारी बहुत खूब रही. हम इस साप्ताहिक पत्रिका के परमानेंट ग्राहक बन गए आज से.
ReplyDeleteनिश्चित ही वो खरगोश जापानी रहे होंगे:)
ReplyDeleteआप सब की मेहनत के लिए आभार जैसा शब्द छोटा होगा फिर भी ..बहुत आभार.
ReplyDeleteताऊ को राम-राम...तनिम व्यस्तता बढ़ गयी है इस स्थानांतरण के चक्कर में तो अनुपस्थित रहने लगा हूँ...और इसी फेर में इस बार की पहेली देख नहीं पाया....
ReplyDeleteअल्पना जी का व्याख्यान हमेशा की तरह रोचक और ग्यानवर्धक और सुश्री सीमा जी की कथा नये द्वार खोलती हुई....
सचमुच बहुत अच्छी जगह है कई बार जाना हुआ वहां पर,यहाँ के काफी फोटो भी हैं हमारे,बस अब परदेस में आने के बाद तो कभी मौका नहीं मिला फिर से वहां जाने का क्योंकि कम समय के लिए ही भारत जाना होता है बस उन्हीं फोटो को देखकर याद ताजा कर लेते हैं...
ReplyDeleteआज की साप्ताहिक पत्रिका रोचक लगी.
ReplyDeleteवेद ब्यास कुंड के बारे में नेट पर बहुत ज्यादा जानकरी उपलब्ध नहीं है लेकिन यह एक ऐसी जगह है जहाँ एक बार तो जरुर जाना चाहिये.मनाली और कुल्लू तक जा कर लोग अक्सर वापस आ जाते हैं.हमने जब यह जगह ६ साल पहले देखी थी तब नाम मात्र को ही बर्फ वहां थी.
आशीष जी ,'जूते में फ़ोन 'यह तो बड़ी मजेदार खबर आप ने दी है.यह लेख वाकई रोचक लगा.
लेकिन इस से चलते -चलते फ़ोन करने वालों को एक जुटा पहन कर चलना पड़ेगा..एक हाथ में ले कर!
ऐसी अनोखी चीजें ताऊ नहीं खरीदेंगे तो कौन खरीदेगा!आप की खबर में सच्चाई दिख रही है.
सीमा जी का कहानी के द्वारा हर बार प्रबंधन का एक नया गुर सिखाना पसंद है. अच्छी प्रस्तुति लगी.
-पाठकों से सवाल आमंत्रित करने का विचार अच्छा है.
पत्रिका रोचक लगी.
ReplyDeleteटिपण्णी पहले लेलो पत्रिका किस्तो मे पढूंगा.
ReplyDeleteराम राम जी की