"सांझ का नजारा "

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सु्रमई एक सांझ का नजारा
नीड को लौटते पंछियों का झुंड
उड़ने का मंजर नही 
हवा मे तैरने  का आभास

नीड पर पक्षियों का कलरव
मीठा सहगान और परिहास
सुकून सा बिखरा लगे
हर नीड़ के आस पास

और एक तरफ़ इन्सान
जो भूल चुका हर सहगान
दो कदम भी साथ ना चले,
न करे अपनों की भी पहचान

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(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)

Comments

  1. और एक तरफ़ इन्सान
    जो भूल चुका हर सहगान
    दो कदम भी साथ ना चले,
    न करे अपनों की भी पहचान


    -सही आंकलन! बहुत बढ़िया रचना. बधाई सीमा जी को.

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  2. सीमा जी की हर कविता में एक कशिश होती है, भावों और शब्दों के चुनाव में ऐसा आकर्षण है जो पाठक को
    रचना को बार बार पढ़ने में बाध्य कर देता है। उनकी अन्य रचनाओं की भांति यह भी बहुत सुंदर रचना है।
    महावीर शर्मा

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  3. सुबह हुई नहीं शाम दिखा दिये। जय हो,जय हो!

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  4. चित्र भी सुंदर हैं और कविता भी। पर चित्रों की बहुतायत ने कविता को कैप्शन बना दिया। रिक्त स्थान का भी कोई महत्व है?

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  5. सीमा जी के तो हम शुरुआती पैरवी हैं

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  6. सुंदर चित्रों के साथ सुंदर रचना....बहुत अच्‍छा लगा।

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  7. सुंदर चित्रों के साथ सुंदर रचना...बहुत अच्‍छा लगा।

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  8. "और एक तरफ़ इन्सान
    जो भूल चुका हर सहगान
    दो कदम भी साथ ना चले,
    न करे अपनों की भी पहचान
    " पक्षियों की एकता का सुंदर चित्रण करती ये पंक्तियाँ कितना गूढ़ संदेश देती हैं आज की मानवता पर.....ताऊ जी आपके ये विचार बेहद सराहनीय हैं.."

    regards

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  9. जोरदार !अभी तो ब्रह्म मूहूर्त में जगे लूलिन के दीदार में दीदे फोड़ रहे थे -चलिए अब करते हैं शाम का इन्तजार ! जय हो !!

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  10. बहुत सुंदर कविता और चित्र भी.
    कृपया यह स्पष्ट करें कि कविता लिखी किस ने है??
    आप ने या सीमा जी ने?
    [मेरे ख्याल से आप ने लिखी है और संशोधन सीमा जी ने किया है???]

    सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई

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  11. waah bahut khubsurat chitra aur bahut sundar kavita badhai

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  12. आज का सच कह दिया जी आपने। बहुत सुन्दर लिखी यह रचना भी।
    और एक तरफ़ इन्सान
    जो भूल चुका हर सहगान
    दो कदम भी साथ ना चले,
    न करे अपनों की भी पहचान

    बहुत उम्दा।

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  13. सु्रमई एक सांझ का नजारा

    नीड को लौटते पंछियों का झुंड
    sundar ---shukriyaa

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  14. इंसान का क्या कहें, बस वह इंसान है...साथ चले तो चले भी खूब अन्यथा तुम कौन और मैं कौन. अक्कल ने अक्कल का दुश्मन बना दिया है उसे.

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  15. जय हो. लेकिन किसकी? सीमाजी की.

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  16. सीमा जी निसंदेह आप मुझे कई बार चकित कर देती है...अद्भुत

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  17. नहीं जी! ऐसा तो नहीं है कि इन्सानों में यह सहगान नहीं है। आपने शायद शाम को जाते मानवों को नीड़ की ओर जाते नहीं देखा है या देखा भी है तो महसूस नहीं किया है। ज़रा शाम में निकलिए और उस ट्राफिक जाम को देखिए जहां हारनों का कलरव उन इन्सानों को नीड़ पहुंचने की बेचैनी को इंगित करता है॥

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  18. जय हो.....जय हो.......जय हो.......

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  19. सुरमई सांझ! यह शब्द ही मोहक हैं। शायद कोई फिल्मी गीत भी है इन शब्दों से युक्त।

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  20. सीमा जी धन्यवाद इस सुंदर कविता का,
    कभी ताऊ की भेंस पर भी एक कविता लिख दे...
    काली काली
    बहुत प्यारी
    मेरी भेंस
    बच्चो का
    पेट है भरती
    ताऊ की बोतल
    भी भरती
    दुध तो
    देती शुद्ध
    ताऊ मिलऎ पानी
    भेंस देखे
    कर्म तऊ के
    लेकिन बंधी
    खूंटे से
    लाचार बेचारी
    ताऊ कहे
    मेरी
    राम प्यारी
    जिन्दगी की पहली कविता, ताऊ की भेंस के नाम
    राम राम जी

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  21. बहुत सुन्दर कविता है, ताऊ! आपको बधाई और सीमा जी का आभार.
    [भाटिया जी की कविता भी कोई कम नहीं है]

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  22. बहुत सुंदर। आनंद आया।

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  23. @ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...चित्र भी सुंदर हैं और कविता भी। पर चित्रों की बहुतायत ने कविता को कैप्शन बना दिया। रिक्त स्थान का भी कोई महत्व है?

    आपकी बात सही है. पर आप जरा देखें कि यहां पर हमने वर्णन नीड पर लौटते पक्षियों का किया है. और इसको नीड की अभिव्यक्ति देने की दृष्टि से खाली स्थान को जान बूझकर चित्रों से भरा गया है. सिर्फ़ एक तरफ़ खाली छोडा गया है.

    अब यह तो अपनी २ दृष्टि है. अगर चित्र लगाना है तो उस चित्र के कंटेंट के अलावा उसका प्लसमैंट भी देखना पडता है.

    आशा है आप हमारी बात को समझेंगे कि हम लोगों ने कितने प्रयत्न पूर्वक इस पोस्ट का डिजाईन तैयार किया है. इन डिजाइंस को तैयार करने में बहुत समय और मेहनत लगती है.तब कहीं जाकर
    मन की संतुष्टि लायक काम हो पाता है.

    सपाट पोस्ट की बजाये हमारा मन होता है कि उसको सुंदर दिखना भी चाहिये. आपको पसंद नही आया इसके लिये खेद है.


    रामराम

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  24. बहुत खूबसूरत और दिलचस्प पोस्ट...वाह.
    नीरज

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  25. और एक तरफ़ इन्सान
    जो भूल चुका हर सहगान
    दो कदम भी साथ ना चले,
    न करे अपनों की भी पहचान

    क्या बात है ताऊ ..........मन में उतर गयी सीधी
    इंसान को बहुत कुछ सीखना बाकी है अभी

    शुक्रिया आपका और सीमा जी का इतनी सुंदर कल्पना के लिए

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  26. सीमा जी, यह कविता बढ़िया है मगर आप की टिप्पणी ने कन्फ्यूज़ कर दिया,,, वास्तव में ये पंक्तियां किसकी है.... क्योंकि नीचे (कविता के) आभार आपके नाम है वह लेखकीय आभार है या प्रेरणा के प्रति.....
    पिछली पोस्ट में मेरापन्ना (अल्पना जी) और आपका प्रबंधन दृश्टांत बहुत पसंद आया आप को बधाई....
    ताई को प्रणाम पर यह पहली बार है
    ताऊ को छत्तीसवें साल की अग्रिम शुभकामनाएं...

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  27. ताऊ को नमन......मोहक तस्वीरों के संग इतने मोहक शब्दों की माला
    वाह !!!

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  28. सुंदर चित्र और कविता.

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  29. परिंदो से इन्सान की तुलना,

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  30. परिंदो से इन्सान की तुलना,

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