यह बालदिवस की सत्य घटना है ! यह परिवार इतनी आर्थिक तंगी से गुजर रहा था की खाना तो दूर , घर में चाय का सामान भी नही था ! नाम बदल गए हैं ! पता नही क्यों ? मैं तय नही कर पा रहा हूँ की गाँव की चौपाल पर बैठे लोगो ने उसे क्यों नही बचाया ? आप ही तय करे !
एक दिन एक ताई का, अपने पति ताऊ से
चाय बनाने के सवाल पर, झगडा हो गया
घर में ना चाय , ना दूध और ना शक्कर
बस इसी बात पर दोनों में होगई टक्कर !
ताई जाकर गाँव के पटेल के कुए की मुंडेर पर,
आत्मोसर्ग करने पाँव लटका कर कूदने के लिए बैठ गई
गाँव की चौपाल पर बैठे सात ताउओ ने भी देखा
बचाने कोई नही गया, करते रहे अपना लेखा जोखा !
बिजली गुल थी , ट्यूशन पढ़कर, टॉर्च की रोशनी में लौटते सात बच्चे
ताई को पैर लटकाए देख, ठिठके, माजरा समझने में निकले अच्छे
सातों ने आहिस्ता से, ताई को बातो में लगा कर, मुंडेर से पीछे खींच लिया
बात जब ताई के समझ आई तो जान देने निकली ताई ने माथा पीट लिया !
गाँव के ताउओ से पूछा गया, तुम देख कर भी क्यों अनजान रहे ?
सातो ताऊ बोले - ताकि कुए में धकेलने का इल्जाम हम पर ना लगे !
बच्चो को तो बालदिवस पर स्कूल कमेटी से सम्मानित होना ही था
अगर बच्चों की जगह सातो ताऊ होते तो ..........................................?
अगर बच्चों की जगह सातो ताऊ होते तो....?
ReplyDelete--------
तो क्या, आलस के मारे न ताऊगण धकेलते, न बचाते! अन्तत: चुपचाप ताई को घर पांव दबा लौटना पड़ता।
चाय मरने के लिये पर्याप्त कारण नहीं है! :)
ताऊजी,बच्चे तो स्कूल में सम्मानित हो गए। सातों ताऊ स्कूल जाते नहीं थे। उन्हें तो सातों ताई ही सम्मानित करतीं। अगलों का ऐसा सम्मान होता, अक फेर कदी अपनी वाली भी कुवें में कुद्दन जात्ती, तो उसे भी ना रोकते।
ReplyDeleteअगर कुएँ को ब्लॉग जगत माने तो ताई को वापस आना ही था..
ReplyDeleteसम्मानित करने का काम बचपन तक ही सीमित रहना चाहिए. आगे चलकर सातों ताऊ सरीखे ताई को बचाते तो एक ही ध्येय रहता....सम्मानित होना.
ReplyDeleteकविता और कविता में दिखी कहानी बहुत खूब रही.
मुस्किल सवाल है ? :-)
ReplyDeleteक्या ताऊ चाय के नाम पर आत्महत्या ? ताई कन्ने दिमाग नई हे लगता है !!
ReplyDeleteसातो ताऊ बोले - ताकि कुए में धकेलने का इल्जाम हम पर ना लगे !
ReplyDeleteबच्चो को तो बालदिवस पर स्कूल कमेटी से सम्मानित होना ही था
अगर बच्चों की जगह सातो ताऊ होते तो ..........................................?
" ek baar post ka sirshk dekh kr to chaunk hee gyee, kee ye kya mazra hai..... lakin jub pdha tb smej aaya sara bavaal chaiay (tea) ne mchjaya hua jai...ab agar vo sath(7) tauu taee ko bchaa laite to humare in tau jee ko kaun puchta ha ha ha isliye vo saton ke sath aslee tauu jee ka intjaar krty hee reh gye..."
regards
अरे जिस ने कुदना होता है वो नखरे नही करती, झट से कुद पडती, उन सात ताऊयो मे मै भी था, इब ताउ के सामने इन नारियो के नखरे ना चले , ताउ तो खुद पकड के लटका दे, की बोल इब देगी धमकी, बोल ससुरी के छोडु......ओर लठ्ठ दो बजा दे.अब उखाड लो जो उखाडना हो ताऊ का
ReplyDeleteरै ताऊ सबतै पहलां तो मेरी राम राम सै। ईब थारी कविता के बारे में कहूं सूं भाई मकै ध्यान ला के सुनिये एक तो काम यो छोरों ने घणा कसूत्ता कर दिया मक चोखा कर दिया अर भाई इब थम भी ताई नै जाके समझा देयो कि रे ताई यो जान देण में कुछ कोन्नी धरिया ईब टैम कट ग्या ईब तां ताऊ नई ताई बी कोनी ला सकदा तो टैम ते ही चाय बना के दे दिया करे अर घर पे कुछ कोनी था तो ये पडोसी किस खातर होवें सैं वा एक कहावत कोनी सुनी कि एक ताई का मन हलवा खान नू करे सै पर वहां भी जमायै दाने के फांके पडे थे तो ताऊ यूं बोल्यी
ReplyDeleteहोता अगर आटा गुड घर में लेती तेल उधार पर क्या करें ओडे तो कण्डे वी कोन्नी
ताऊओ ने ताई को इसलिए नही बचाया, की ताई का पति अगर ताई को बचाने वाले ताउओ के खिलाफ, ताई से पुलिस को यह बयान दिलवा देता की ये मुझे कुंए में धकेल रहे थे तब क्या होता ? और वो कड़की में भी थे तो उन ताउओ को हमेशा ब्लेकमेल करते ! हमारी समझ से तो यह कारण प्रमुख दिखाई दे रहा है ! अखबार में भी हमने ऐसा ही पढा था !
ReplyDeleteअब आपकी भैंस कहाँ है ? क्या चाँद पर ही यमराज के झौठे के साथ घर बसा लिया है या वापस भी आ रही है ? उसको जल्दी बुलवाईये उसके बिना आपका ब्लॉग भी सूना पडा है ! :)
ताऊ बच्चे न हों तो बुढ़ापा काटे न कटे।
ReplyDeleteवाह ताऊ ये पोस्ट तो कमाल की है. और वो भी बाल दिवस के मौके पर. वैसे वाकई ताई को बचाना एक मुश्किल काम था...और बाकी लोगों से पीटने का भय भी था इसमें. मुझे अपने एक भइया के साथ घटी घटना याद आ गई, हमारे गाओं में एक बहुत बड़ा कुआँ था जिससे सब लोग पीने का पानी भरते थे, एक दिन एक लड़की कुएं में गिर गई, हल्ला मचा...भइया पास में ही थे, और बहुत अच्छे तैराक थे. तो कुएं में कूद के उसको बहार निकले. उसके बाद शाबाशी तो क्या मिलेगी अच्छा खासा हल्ला हो गया दोनों के नाम को लेकर. इसलिए किसी को बचाना बड़ा जोखिम का काम है. सातों ताऊ समझदार थे :D
ReplyDeleteक्योंकि वे सात ताऊ देशी संस्कृति के ठेकेदार थे. अब चाय ठहरी अंग्रेजों की ड्रिंक - उसके झगडे से किसी को न बचाते वो. हाँ किसी देसी ड्रिंक - देसी दारू वगैरा - की बात होत तो देखना था कैसे दोड़ते हुए आते वे सातों अकाल के पीछे लट्ठ लिए हुए.
ReplyDeleteताऊओं ने कभी किसी को आत्महत्या करते नही देखा होगा...जब इतना दुर्लभ द्रश्य फ्री में देखने को मिल रहा है तो ताऊ क्यों बचाते...
ReplyDeleteबालमन पर आखिर ताई क्यों ना रिझे भला,बच्चे मन के सच्चे/अब रही ताऊओं की बात तो क्या मजाल वो ताई के पास भी फ़टके?नही तो वो सबके सब अब तक कुयें से झांकते नजर ना आते/वो जानते थे कि चाय की कड्की अब तक ताई के दिमाग मे खौल रही है/
ReplyDeleteकुश जी से सहमती जताते हुये....
ReplyDeleteचाय भी वजहों में वजह हुई भई
कवित्वमय पोस्ट, मजेदार।
ReplyDeleteक्या कहा जाए ?
ReplyDeleteघुघूती बासूती
दरअसल ताउ ने पूरी जवानी ऐसी ही धमकियों के बीच निकाल दी। सो उसे मालूम था....
ReplyDeleteतभी कहूं आजकल सारे इनाम ताऊ के बच्चे कैसे ले जा रहे हैं :-)
ReplyDeleteये बच्चे ही है जिनको ताक कर ताई का बुढापा गुजर लेगा वरना तो ताऊ को चिलम लगाने से फुर्सत कहाँ.
ReplyDelete7 Tau milker bhee becharee Taai ko Chai pilane ke bare mei poochne bhee nahee gaye .....
ReplyDeleteI thought all the TAUS r Gentlemen :)
कई दिनों बाद लौट कर अपने कुछ पसंदीदा चुनिन्दा बुकमार्क ब्लागों की सैर कर रहा हूँ -आपने मेरा इंतज़ार नही किया और पोस्ट लिखते भये -ये तो नही हुयी दोस्तों वाली बात ! और चिडियों पर आपकी नजर ज्यादा है इनदिनों यह जानते हुए कि दूर है उनका ठिकाना ....क्या भूतिनी वाला चित्र केवल अपने माजी (अतीत )की किसी याद के लिए है ?
ReplyDeleteअरे ताऊ जी
ReplyDeleteअगर सातों ताऊ बचा लेते तो आप ये सवाल कैसे पूछते ?
और फ़िर बच्चे कैसे इस पोस्ट में आते ?
और फ़िर'' ये बाल दिवस की सत्य घटना है ''से शुरुआत कैसे होती
waise ab log tipiyaa chuke hain .
aap is kahanee ko aage badha sakte hain
जीओ ताऊ जीओ
ReplyDeleteताऊ बहुत खूब...
ReplyDeleteलाजवाब जी.
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