आज का दिन विश्व इतिहास का भयावह काला दिन है. अभी तक भी वे लोग खूनी खेल खेल रहे हैं. हमारी सारी खुफियागिरी, सारी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गयी है. अभी भी हम लोग कुछ नहीं कर सके हैं. सिवाय लाशों का मंजर देखने के. आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? हम ऐसी घटनाओं को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? ये खूनी खेल कब तक चलेगा? कोई जवाब नहीं है हमारे पास.
युद्ध में कोई शोक नहीं होता, युद्ध जीता जाता है और फिर विजय का जश्न मनाया जाता है तब तक पूरा देश ड्यूटी पर होता है। ड्यूटी पर कोई शोक नहीं, उल्लास नहीं। यह शोक का नहीं, तीखेपन को धार देने का वक्त है।
इस शोक में हम भी शामिल हैं. भगवान् पीड़ित परिवारों को इस शोक से उबरने की शक्ति दे और देश के नेतृत्त्व को इन दुस्साहसी पिशाचों से निबटने की राजनैतिक इच्छाशक्ति!
@ द्विवेदी जी , आपके कथन से सहमत हूँ पर क्या हमारे भाग्य विधाता इस युद्ध का प्रतिकार करने की इच्छा शक्ति रखते हैं या पहले जैसी लीपापोती करेंगे ! माना अब १९६२, १९६५ या १९७१ जैसे युद्दों का स्वरुप नही रहा ! यहाँ तो यही नही पता की कौन लड़ने वाला सामने है ! मेरी अपनी समझ कहती है युद्ध और आतंकवाद में बहुत फर्क होता है !
इनसे बात करके जिनको छुड़वाने की बात करते पहले उनको मारना चाहिये था ...क्यूंकि वहां देश की बात पर सभी दल एक हो जाते है वहां छिछोरी राजनीति नही चलती है......ओर कितने लोगो का मरने का इंतज़ार करेंगे हम ?किसी कानून को लागू करने में .जो पकड़े जाते है उन्हें सजा देने में हमारी सिट्टी पीटती गुम होती है ....जिन नेताओ को बचाने में संसद पर हमला करने वालो को रोकने में पुलिस वाले मरते है.वाही नेता बहार आकर उसी हमला करने वाले को फंसी देने में कानून का रोना रोता है ?क्या संशोधन नही पारित कर सख्ती इस देश की संसद ?क्या देश भक्ति पर भी एकमत नही है हम ?.....गिल का तरीका ही इस देश को वापस ला सकता है....क्यों अमेरिका में दुबारा हमला करने की हिम्मत हुई ?कहाँ है मुलायम ?अमर सिंह ?राज ठाकरे ???? दुबके पड़े है अपने दडबो में ...इस देश को किसी पंडित किसी मौलवी किसी पीर पैंगम्बर की जरुरत नही है....सबको एक लाठी से हांको.....द्रिवेदी जी ठीक कहते है.....ये वक़्त शोक का नही है ,विलाप का नही है.....
अमरीकाके राष्ट्रपति बुश से यहँ की जनता भी नाराज है परँतु एक ही सही काम किया उन्होँने और वह था आतँकवाद को धिक्कारने का ! अब भी ना चेते भारतवासी तो कब ? हरेक नागरिक को मुँबई पर हमले को निजी हमला है ये जान कर, प्रतिकार, सामना और सामूहिक और सबल प्रयास करना जरुरी है - जिनकी जानेँ गईँ ईश्वर उनके परिवार को शक्ति देँ - - लावण्या
दो ही रास्ते हैं - १. शोक करते रहो और मरते रहो २. विद्रोह करो और जिंदा रहो
च्वाइस आपकी?
राजा अगर नपुंसक हो तो उसकी प्रजा का यही हश्र होता है, प्रजा को अगर जिंदा रहना है तो उसे ऐसे नपुंसक राजा और उसकी नपुंसक सेना दोनों के खिलाफ विद्रोह कर उन्हें गद्दी से हटा देना चाहिये।
yae chitr lagaa kar ham shok hee nahin apna aakrosh vyakt kar rahae haen . khun daekha kar aakrosh haen vilaap nahin chitr agar sab blog par aataa haen to ek juttaa blogger ki dikhtee haen .
इस आतंकी घटना के मूल में हमारा भ्रष्ट नैतिक इतिहास रहा है। आडवाणी को आज कहते सुना कि ये 1993 का ही Continuation है, लेकिन आडवाणी शायद भूल गये कि 1993 की जड में वही राममंदिर था जिसके दम पर उन्होंने सरकारी सुख भोगा था। और आगे बढें तो उस राममंदिर के मूल में हिंदू-मुस्लिम फसाद था जो आजादी के वक्त बहुत कुछ हमारे राजनितिज्ञों की दूरदृष्टि में कमी की वजह से पनपा था। फसाद के जड में यदि शुरूवात में ही मट्ठा डाल दिया जाता तो ये आतंकवाद का विषवृक्ष पनपने न पाता। रही बात अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की, तो वह भी इसी तरह के जैसे मसलों की उपज है। बस उसके जडों में मट्ठा डालने में देर हो गई है। अब ये आतंकवाद का वृक्ष कब तक फले-फूलेगा, समझ नहीं आ रहा।
युद्ध में कोई शोक नहीं होता, युद्ध जीता जाता है और फिर विजय का जश्न मनाया जाता है तब तक पूरा देश ड्यूटी पर होता है। ड्यूटी पर कोई शोक नहीं, उल्लास नहीं। यह शोक का नहीं, तीखेपन को धार देने का वक्त है।
दिनेशराय जी ने बिल्कुल सही कहा है ये युद्ध है और युद्ध में शोक नही किए जाते युद्ध तो सिर्फ़ जीते जाते है |
देश के लिए यह बड़ी ही दुखद और शोकपूर्ण स्थिति है . परमात्मा इस अमानवीय और बर्बरतापूर्ण जघन्य कायराना कृत्य मैं हताहत और पीड़ित परिवारों को दुःख और शोक की घड़ी से उबरने की शक्ति दे . साथ ही परमात्मा देश के लोगों को सजग और चोक्न्ना रहने की चेतना दे . देश के नीति निर्माताओं को ऐसी सद बुद्धि और साहस दे की राजनीतिक और निज स्वार्थ से ऊपर उठकर सोच सकें , ताकि देश मैं निर्दोष लोगों को जान न गवाना पड़े और देश की असुरक्षित और भीरु देश के रूप मैं बनती छबि से बचाया जा सके . देश और विश्व का हर मानव निर्भीक और निडर होकर इस देश मैं कंही भी विचरण कर सके और रह सके .
इस क्रूर और खौफ़नाक घट्ना पर आंख नम हुई और जैसे आवाज ही खत्म हो गई। बहुत ही दुखद और कायरतापुर्ण घट्ना है।इस विपरित परिस्थिती से जुझने के लिये पीड़ित परिवारों को ईश्वर शक्ति दे।और अब जनता जागरुक होकर ये कहे कि बस अब और नही?प्रत्येक व्यक्ति को एकजुट होकर देश के लिये काम करना होगा।
हार्दिक श्रद्धांजली मेरे उन शहीद भाईयो के लिये जो हमारी ओर हमारे देश की आबरु की रक्षा करते शहीद हो गये।लेकिन मन मै नफ़रत ओर गुस्सा अपनी निकाम्मी सरकार के लिये
" आज शायद सभी भारतीय नागरिक की ऑंखें नम होंगी और इसी असमंजस की स्थति भी, हर कोई आज अपने को लाचार बेबस महसूस कर रहा है और रो रहा है अपनी इस बदहाली पर ..." "...समस्त दिवंगत आत्माओं को हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि."
आज का दिन विश्व इतिहास का भयावह काला दिन है. अभी तक भी वे लोग खूनी खेल खेल रहे हैं. हमारी सारी खुफियागिरी, सारी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गयी है. अभी भी हम लोग कुछ नहीं कर सके हैं. सिवाय लाशों का मंजर देखने के. आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? हम ऐसी घटनाओं को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? ये खूनी खेल कब तक चलेगा? कोई जवाब नहीं है हमारे पास.
ReplyDeleteयुद्ध में कोई शोक नहीं होता, युद्ध जीता जाता है और फिर विजय का जश्न मनाया जाता है तब तक पूरा देश ड्यूटी पर होता है।
ReplyDeleteड्यूटी पर कोई शोक नहीं, उल्लास नहीं।
यह शोक का नहीं, तीखेपन को धार देने का वक्त है।
इस शोक में हम भी शामिल हैं. भगवान् पीड़ित परिवारों को इस शोक से उबरने की शक्ति दे और देश के नेतृत्त्व को इन दुस्साहसी पिशाचों से निबटने की राजनैतिक इच्छाशक्ति!
ReplyDelete@ द्विवेदी जी , आपके कथन से सहमत हूँ पर क्या हमारे भाग्य विधाता इस युद्ध का प्रतिकार करने की इच्छा शक्ति रखते हैं या पहले जैसी लीपापोती करेंगे ! माना अब १९६२, १९६५ या १९७१ जैसे युद्दों का स्वरुप नही रहा ! यहाँ तो यही नही पता की कौन लड़ने वाला सामने है ! मेरी अपनी समझ कहती है युद्ध और आतंकवाद में बहुत फर्क होता है !
ReplyDeleteसाथ हूँ !
ReplyDeleteइनसे बात करके जिनको छुड़वाने की बात करते पहले उनको मारना चाहिये था ...क्यूंकि वहां देश की बात पर सभी दल एक हो जाते है वहां छिछोरी राजनीति नही चलती है......ओर कितने लोगो का मरने का इंतज़ार करेंगे हम ?किसी कानून को लागू करने में .जो पकड़े जाते है उन्हें सजा देने में हमारी सिट्टी पीटती गुम होती है ....जिन नेताओ को बचाने में संसद पर हमला करने वालो को रोकने में पुलिस वाले मरते है.वाही नेता बहार आकर उसी हमला करने वाले को फंसी देने में कानून का रोना रोता है ?क्या संशोधन नही पारित कर सख्ती इस देश की संसद ?क्या देश भक्ति पर भी एकमत नही है हम ?.....गिल का तरीका ही इस देश को वापस ला सकता है....क्यों अमेरिका में दुबारा हमला करने की हिम्मत हुई ?कहाँ है मुलायम ?अमर सिंह ?राज ठाकरे ???? दुबके पड़े है अपने दडबो में ...इस देश को किसी पंडित किसी मौलवी किसी पीर पैंगम्बर की जरुरत नही है....सबको एक लाठी से हांको.....द्रिवेदी जी ठीक कहते है.....ये वक़्त शोक का नही है ,विलाप का नही है.....
ReplyDeleteआज फिर से सुबह सुबह आँखे नम हो गई थी। और अब गुस्सा आ रहा है पता नही किस किस पर।
ReplyDeleteईश्वर मृत आत्माओं को शान्ती दे । उनके परीवार को होसला दे । इससे ज्यादा कुछ नही ------
ReplyDeleteअमरीकाके राष्ट्रपति बुश से यहँ की जनता भी नाराज है परँतु एक ही सही काम किया उन्होँने और वह था आतँकवाद को
ReplyDeleteधिक्कारने का ! अब भी ना चेते भारतवासी तो कब ?
हरेक नागरिक को मुँबई पर हमले को निजी हमला है ये जान कर,
प्रतिकार, सामना और सामूहिक और सबल प्रयास करना जरुरी है -
जिनकी जानेँ गईँ ईश्वर उनके परिवार को शक्ति देँ -
- लावण्या
दो ही रास्ते हैं -
ReplyDelete१. शोक करते रहो और मरते रहो
२. विद्रोह करो और जिंदा रहो
च्वाइस आपकी?
राजा अगर नपुंसक हो तो उसकी प्रजा का यही हश्र होता है, प्रजा को अगर जिंदा रहना है तो उसे ऐसे नपुंसक राजा और उसकी नपुंसक सेना दोनों के खिलाफ विद्रोह कर उन्हें गद्दी से हटा देना चाहिये।
yae chitr lagaa kar ham shok hee nahin apna aakrosh vyakt kar rahae haen . khun daekha kar aakrosh haen vilaap nahin chitr agar sab blog par aataa haen to ek juttaa blogger ki dikhtee haen .
ReplyDeleteइस आतंकी घटना के मूल में हमारा भ्रष्ट नैतिक इतिहास रहा है। आडवाणी को आज कहते सुना कि ये 1993 का ही Continuation है, लेकिन आडवाणी शायद भूल गये कि 1993 की जड में वही राममंदिर था जिसके दम पर उन्होंने सरकारी सुख भोगा था। और आगे बढें तो उस राममंदिर के मूल में हिंदू-मुस्लिम फसाद था जो आजादी के वक्त बहुत कुछ हमारे राजनितिज्ञों की दूरदृष्टि में कमी की वजह से पनपा था। फसाद के जड में यदि शुरूवात में ही मट्ठा डाल दिया जाता तो ये आतंकवाद का विषवृक्ष पनपने न पाता।
ReplyDeleteरही बात अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की, तो वह भी इसी तरह के जैसे मसलों की उपज है। बस उसके जडों में मट्ठा डालने में देर हो गई है। अब ये आतंकवाद का वृक्ष कब तक फले-फूलेगा, समझ नहीं आ रहा।
युद्ध में कोई शोक नहीं होता, युद्ध जीता जाता है और फिर विजय का जश्न मनाया जाता है तब तक पूरा देश ड्यूटी पर होता है।
ReplyDeleteड्यूटी पर कोई शोक नहीं, उल्लास नहीं।
यह शोक का नहीं, तीखेपन को धार देने का वक्त है।
दिनेशराय जी ने बिल्कुल सही कहा है ये युद्ध है और युद्ध में शोक नही किए जाते युद्ध तो सिर्फ़ जीते जाते है |
देश के लिए यह बड़ी ही दुखद और शोकपूर्ण स्थिति है . परमात्मा इस अमानवीय और बर्बरतापूर्ण जघन्य कायराना कृत्य मैं हताहत और पीड़ित परिवारों को दुःख और शोक की घड़ी से उबरने की शक्ति दे .
ReplyDeleteसाथ ही परमात्मा देश के लोगों को सजग और चोक्न्ना रहने की चेतना दे . देश के नीति निर्माताओं को ऐसी सद बुद्धि और साहस दे की राजनीतिक और निज स्वार्थ से ऊपर उठकर सोच सकें , ताकि देश मैं निर्दोष लोगों को जान न गवाना पड़े और देश की असुरक्षित और भीरु देश के रूप मैं बनती छबि से बचाया जा सके . देश और विश्व का हर मानव निर्भीक और निडर होकर इस देश मैं कंही भी विचरण कर सके और रह सके .
तकनीक की जानकारी का न होना इस समय साल रहा है । मुझे चित्र लगाना नहीं आता ।
ReplyDeleteआपने हम सबके शोक को अभिव्यक्ति दी है ।
इस क्रूर और खौफ़नाक घट्ना पर आंख नम हुई और जैसे आवाज ही खत्म हो गई। बहुत ही दुखद और कायरतापुर्ण घट्ना है।इस विपरित परिस्थिती से जुझने के लिये पीड़ित परिवारों को ईश्वर शक्ति दे।और अब जनता जागरुक होकर ये कहे कि बस अब और नही?प्रत्येक व्यक्ति को एकजुट होकर देश के लिये काम करना होगा।
ReplyDeleteउन्होंने जंग में भारत को हरा दिया है.
ReplyDeleteअपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी....
हार्दिक श्रद्धांजली मेरे उन शहीद भाईयो के लिये जो हमारी ओर हमारे देश की आबरु की रक्षा करते शहीद हो गये।लेकिन मन मै नफ़रत ओर गुस्सा अपनी निकाम्मी सरकार के लिये
ReplyDelete" आज शायद सभी भारतीय नागरिक की ऑंखें नम होंगी और इसी असमंजस की स्थति भी, हर कोई आज अपने को लाचार बेबस महसूस कर रहा है और रो रहा है अपनी इस बदहाली पर ..."
ReplyDelete"...समस्त दिवंगत आत्माओं को हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि."
साथ हूं और हमेशा रहूंगा।
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