कहते हैं की आदमी के जब खोटे दिन आजावैं तो सब काम उल्टे उल्टे ही हुया करै सै ! ताऊ नै इतनै धंधे करके देख लिए ! पर कोई सा भी धंधा सही ना बैठ्या ! ताऊ नै डकैती भी डाल के देख ली, उसमै भी मुंह की ही खाई ! झूंठे बीमे इंश्योरेंस करवा लिए तब भी पार ना पडी ! भैंस पाल के देख ली ! उलटी जमीन बेचनी पड़ गई !
अब ताऊ कै बड़े भाई भाटिया जी नै जर्मनी तैं फोन करकै ताऊ को समझाया थोडै कड़क शब्दों म्ह ! और साफ़ कह दिया की देख ताऊ , तू यो उल्टे सीधे धंधे कर कर के घर की इज्जत की सत्रह बजा दी ! तेरे को तो शर्म किम्मै आवै कोनी ! पर हमको तो शर्म आती है ! तू कोई भी काम ढंग से नही कर सकदा ! बस इब तू खेत म्ह हल चला और खेती कर ! जो कमाई हो जावे वो ठीक नही तो खर्चे के पिस्से ( रुपये ) मैं भिजवा दूंगा ! और उल्टे सीधे काम इब मत करना ! अरे बावली बूच तू नहर किनारै की १६ किल्ले जमीन का मालिक हौकै यो पागल पण के काम करण लाग रया सै ?
और कुछ एडवांस म्ह खर्चे पानी के रुपये भी भिजवा दिए ! साथ में एक लट्ठ खेती की रखवाली के लिए भेज दिया !
इब आप तो जानते ही हो की ताऊ हर काम इमानदारी तैं करया करै सै ! जमीन भी ताऊ धौरे १६ किल्ले की थी ! सो ताऊ नै कुछ खेतों म्ह चने लगा दिए ! और एक समझदार बोल्या - ताऊ नु कर कुछ खेतो म्ह ककडी और खरबूजे लगा दे ! इनकै बीज घणे ही मंहगे बिकै सै आज कल ! सो ताऊ नै ककडी खरबूजे भी खेत म्ह बो दीये ! ताऊ के खेतो म्ह एक पेड़ पर घणे सारे बैयाँ के घोसले भी थे ! और वहाँ पर एक पेड़ों का झुरमट भी था !
इब ताऊ के चने वाले खेत का हाल तो भाटिया जी नै आपको बता ही दिया ! ताऊ नै भाटिया जी को सारी रपोर्ट फोन पै बताई थी की इस तरियां भेष बदल कै लोग चोरी कर रे सै ! तो भाटिया जी नै सलाह दे डाली की अरे ताऊ तन्ने लट्ठ क्यों भिजवाया था !
इबकै आन्वै तो बजा दिए तू तो इनको ! और भाई अरविन्द मिश्रा जी बिल्कुल ठीक कह रे सै की "-वो कैसा ब्राह्मण था जो पिट गया .! असल ब्राहमण को कोई छू कर तो देख ले ? जिसे बुद्धि नहीं वह ब्राह्मण नहीं !" इब भाई उन तीनो को ठोका तो मन्नै ही था ना ! सो इस बात का खुलासा भी मन्नै ही करना पडैगा ! वो तो तीनो के तीनो ही नकली थे ! कैसे ? सुन लो !
इब यदि नाई असल का होता तो ताऊ के जर्मन लट्ठ खाकै उठ ही नही सकता था ! वहाँ से सीधे शमशान धौरे ही जाना चाहिए था ! वो इतने लट्ठ खाकै भी बात करण लाग रया था मतलब नाई नही था ! कोई और ही खतरनाक माणस था ! क्योंकि नाई इतने लट्ठ झेल ही नही सके था ! दूसरा क्षत्रिय होता तो सामने प्रतिरोध जरुर करता जो उसने नही किया ! आज भी असल क्षत्रिय इतनी आसानी से हार नही मान सकता ! इब बचा ब्राह्मण ! तो ब्राह्मण तो सौ प्रतिशत नकली था! पहली बात , अगर ब्राह्मण होता तो अक्ल से काम करता ! वो चने भी ले जाता और ताऊ को ताई से ही पिटवा कर मानता ! और ब्राह्मण होता तो पहले वाले नाई और क्षत्रिय को पिटता देख कर ही समझ गया होता की भविष्य क्या है ? और कभी का रफ्फूचक्कर हो गया होता ! वो तीनो ही नकली थे !
इब आगे सुनो !
एक गीदड़ को कहीं से एक कागज मिल गया . आपणे साथी गीदडो मैं जाके उंची नीची देण लाग गया की भाई मन्नै ताऊ कै खेत मैं ककडी खरबूज या जो भी खेत म्ह लगा हो वो सब कुछ खाने का परमिट मिल गया ! इब उसके साथ वाले गीदडो में खूब गप्पे मारने गया ! बोला - भाई लोगो ये परमिट बड़ी मुश्किल से मिला है ! मैं तो इब जब भी इच्छा होती है, जाकै किसी भी खेत में तरबूज , ककडी खा लेता हूँ ! अगर खेत का मालिक आजाता है तो ये परमिट दिखा देता हूँ ! और ये परमिट देख कै वो वापस उलटा चला जाता है ! उसके साथ वाले गीदड़ उससे बड़े प्रभावित थे ! उसकी सेहत भी मोटी ताजा हो चली थी ! क्योंकि वो रात को ताऊ के बैयाँ वाले पेड़ के पास खेत में लगे ककडी तरबूज के मजे लेण का आदी हो चुका था ! और इधर ताऊ परेशान की ये कौन चोरी कर रहा है ? वो तीनो को तो पहले ही इतने लट्ठ मार चुका था की वो तो वापस आ ही नही सकते थे !
अब बाक़ी के गीदड़ इसकी खूब सेवा पानी करण लाग गे ! और ये पठ्ठा उनको लेके रात होते ही ताऊ के खेत में घुसेड देता और बोलता भाईयो खूब छक कर खाओ ! ये अपना परमिट वाला ही खेत सै ! इधर ताऊ इस नुक्सान को देख कर परेशान हो चला था ! एक दिन ताऊ अपना मेड इन जर्मण लट्ठ लेके खेत म्ह छिप कै बैठ्ग्या ! इधर जैसे ही रात हुई , गीदड़ खेत के अन्दर ! और ककडी तरबूज खाने शुरू कर दिए ! इब ताऊ नै उन गीदडो को पकड़ २ कै लट्ठ मारने शुरू किए ! पहले तो उनको समझ ही नही आया की यो के राशा हो रया सै ? इधर ताऊ जोर २ तैं उनको कूटे जावै था ! सारे गीदड़ अधमरे हो लिए !
अब वो गीदड़ आपने सरदार से बोले - अरे इस ताऊ नै परमिट दिखा ! म्हारै हाथ पैर तोड़ दिए इस नै ! परमिट वाला कागज़ हाथ म्ह लेके वो सरदार गीदड़ बोला -- अरे जल्दी भाज ल्यो सुसरो ! यो साला अनपढ़ गंवार ताऊ लागे सै मन्नै तो ! इसकी समझ मैं ना आरी सै बात ! अपणा परमिट इंग्लिस में बन्या हुआ सै और यो ताऊ किम्मै इंगलिश समझता कोनी !
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ताऊ ,पहले तो उलाहना ई तुम्हारी पोस्ट की लुनाई ऐसी भाई कि सुबह की मार्निंग वाक् में लेट हो गया हूँ -दूसरी बात तो भाटिया जी से करनी है -कि वो के यथार्थवादी कहानी देख समझ सकते हैं -इब आपको अंगरेजी और हिन्दी की बात भी आसानी से समझ में आ जावे है तीसरी बया के घोसले वाला पेड़ सचमुच बड़ा आलीशान लागे है . ताऊ तू खेती किसानी ही कर उसका एक बड़ा ही गौरवशाली अतीत रहा है -कुछ चने अरहर की फसल भी उगा .लठ तो है ही इब भैंसे भी आ जायेंगी -कहावत भी है जिसकी लाठी उसकी भैंस -फिर खेतों की हरियाली में थोड़ी यौन साधना भी हो जावे है और पुराने दिन लौट आ जाने हैं -इस बात को मर्म हम तूं देहाती आदमी ही जाने हैं -भाटिया /और शहरी भाई जाने या न जाने ,कौन जाने ? तू बताना भी नईं !
ReplyDeleteबताओ अनपढ़ है ताऊ और बेचारे पिटे परमिटधारक गीदड़ ...सब उसकी गल्ती है जिसने बिना अंग्रजी पढ़ाये ताऊ को जर्मन लठ्ठ दिया...गीदड़ों को उनसे बदला निकलना चाहिये.
ReplyDeleteताऊ अक्ल से बहुत तेज है बस काम धंधे नही चलते ताऊ के
ReplyDeleteअपणा परमिट इंग्लिस में बन्या हुआ सै और यो ताऊ किम्मै इंगलिश समझता कोनी!
ReplyDeleteघनी साची बात बोल्ली सै गीदड़ ने - इंगरेजी पास दीखै सै!
यो साला अनपढ़ गंवार ताऊ लागे सै मन्नै तो ! इसकी समझ मैं ना आरी सै बात ! अपणा परमिट इंग्लिस में बन्या हुआ सै और यो ताऊ किम्मै इंगलिश समझता कोनी
ReplyDelete"ha ha ha ha ha tau jee hume to sajees kee buu aa rhee hai, jra lgee hath enquery beetha lo or ptta to kro ye geedad aapke khaiton mey bheje kisne thy, kaheen koee muhn mey ram bagal mey churee wala kisa na ho , ha ha ha ha ab ye humaree sirf slah hai, bakee app akal lgaa loo....ha ha ha ha very intresting"
Regards
ताऊ, अंग्रेजी तो हमेशा पिटवाकर ही दम लेती है। आज की कथा में तो काफी ट्वीस्ट है। मजेदार।
ReplyDeleteअरे जल्दी भाज ल्यो सुसरो ! यो साला अनपढ़ गंवार ताऊ लागे सै मन्नै तो ! इसकी समझ मैं ना आरी सै बात ! अपणा परमिट इंग्लिस में बन्या हुआ सै और यो ताऊ किम्मै इंगलिश समझता कोनी !
ReplyDeleteताऊ मजा आगया आज तो ! कमाल की भाषा लिखी है ! आप तो पुराना डकैती का धंधा ही शुरू कर दो ! चुनावी मौसम में अच्छा चलेगा ! सही कह रहा हूँ !
अंग्रेज और जर्मन का तो वैसे ही लफ़डा है। आणंद आ गया ताऊ।
ReplyDeleteअनपढ़ होने में कितनी नियामत है! सियारों से निपटने के लिये अनपढ़ की ही जरूरत है।
ReplyDeleteअनपढ़ और प्रत्युत्पन्नमति से लबालब!
जमाये रहिये ताऊनामा!
इब तो वैस्से भी यो ज़माना है की अनपढ़ पड़े लिखो से ज्यादा कमान लाग रे से!
ReplyDeleteto anpadh taaoo ne khoob dhamaadham diye gidadon ko, par koi kuch bhi kahe mhanne to padh kar majaa aa gayaa
ReplyDeleteकहानी तो म्नै खूब भल्ली लाग री सै| वैसे ताऊ के खेत्तों का के हुआ फिर ककङी और तरबूज़ बचे को नी|
ReplyDeleteये के भयो ताऊ... गीदड़ नेता लाने गए हैं... हड़ताल करने को :-)
ReplyDeleteमेरा मानना है कि अच्छा है कि अंग्रेजी नहीं पढ़े हैं। सो गीदड़ पिट गए। साले गीदड़ नहीं तो परमिट दिखा कर खेत का कबाड़ा कर देते। लेकिन मेरे पुत्र पंडित उत्कर्ष त्रिपाठी मेरे विचार से सहमत नहीं। उनका कहना है कि अगर ताऊ अंग्रेजी पढ़े होते तो भाटिया ताऊ जर्मनी से ताऊ के लिए लट्ठ ही नहीं ताऊ और ताई दोनों के लिए जींस की पैंट भी भेजते। और अपनी उन साथियों के बीच जिनकी मम्मियां जींस पहन कर आती हं,उत्कर्ष जी सगर्व उद्घोषित कर सकते हमारी ताई बहुत स्मार्ट हैं, जर्मनी की इंपोर्टेड जींस पहनती हैं।
ReplyDeleteऐसी अंग्रेजी किस काम की जो पीटने से न बचा सके, भाई हमारा ताऊ ही सही है, गंवार कैसे हुआ, वो तो बड़ा तेज़ तर्रार है...वाह ताऊ क्या सही किस्सा सुनाया है.
ReplyDeleteवाह ताऊ ! तभी तो इस मुयी अंग्रेजी का विरोध कर रहा हू जिस ने भी बोली वही पिट्या ! स्कुल मे सीखने लगा तो मास्टर ने पीटा, घर पर आया तो वापू ने पीटा ताऊ इस नाश पीटी अंग्रेजी से तो हमारी हिन्दी ही ठीक जिस के कारण आज तक पिटाई नही हुयी.
ReplyDeleteसद्दम हुसेन ने बोली वो भी ..., लदेन ने बोली वो भी... रे ताऊ तु मत बोलियो यु अंग्रेजी, भाई अपनी देसी भाषा ही अपनी है.
अर्विंद जी हम भी देसी है जी
राम राम जी की
एक वकील साहब मुंसिफ की अदालत में अंग्रेजी में दो घंटे बहस करके आए। दूसरे वकीलों ने पूछा अंग्रेजी में बहस क्यूँ? तो कहा हिन्दी में करता तो जज तो समझता ही मुवक्किल भी समझ जाता। अब जो वे समझे हैं दोनों ठीक समझे हैं।
ReplyDeleteइस मारामारी में हम सबका का मजा हो गया, यह आप जानते थे ताऊ. इसीलिए यह पोस्ट भी कर दी.
ReplyDeleteभैया ताऊ। अपनी तो समझ में आ गयी तुम भी समझ लेना। कभी कोई अंग्रेजी वाला परमिट लेकर मत चल देना खामखाह मुसीबत खड़ी हो जाएगी।
ReplyDeleteताउ ऐसा ही कहा गया है कि
ReplyDeleteउत्तम खेती दुजौ बान(व्यपार)
अधम चाकरी भीख निदान
इसलिये आप खेती ही करो !!सरकार समर्थन मुल्य मे आपकी फ़सल खरीदेगी !!
ताऊ दीपक जी का कहना मानने में कोई बुराई कोन्या
ReplyDeleteईब तो मान्ने ले
ताई बी राजी रवेगी
तू दिलीप कुमार की तरह गीत गाता होया हल चलाइये
म्हारी ताई बैजन्ती माला की तरह चूल्हे की रोटी लहसन-मिरची की चटनी अर लास्सी का डोल ले कै आया करेगी
बस फेर तो बस्स.....
मजेदार। ये ससुरी अंग्रेजी गीदड़ों तक को पिटवा देती है।
ReplyDeleteejjat ki 17 bajana kise kahte hain sir.
ReplyDeleteor 17 he kyun
18 19 ya 20 kyun nahi