आवो "बालम ककडी" खाएं!

अब आप कहेंगे कि ये ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को क्या होगया है? महाराज अंधे, बहरे और गंवार तो थे ही अब पूरी तरह से सठिया भी गये हैं क्या? अरे बालम को खिलाना ही है तो किसी फ़ाईव स्टार होटल के रेस्ट्रां मे ले जाके डिनर खिलवावो या कहो कि आवो बालम स्विटरजरलैंड घुमा लाये...या आवो बालम ताजमहल घुमा लाये, भले ही कालोनी के पार्क में भी ना ले जावो..... पर ये कौन सी बात हुई की बालम को ककडी खिला रहे हैं?

अब आप हमेशा की तरह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को गलत समझ रहे हैं. महाराज ना तो बालम को कहीं घुमाने ले जा रहे हैं और ना ही डिनर या ककडी वकडी खिलाने कहीं ले जा रहे हैं. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने पिछली पोस्ट "ताऊ आज ताई के हाथों पिटेगा या बचेगा?" मे आपको एक चित्र दिखाया था और उसमे तीन सब्जियों के चित्र थे जो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बाजार से महारानी गांधारी की फ़रमाईश पर लाये थे. आप लोगों से फ़ैसला करवाने के लिये वो चित्र दिखाया गया था. पर अफ़्सोस जाने अनजाने में किसी ने भी सही जवाब नही दिया और ताऊ महाराज को सभी ने पिटवा डाला. महाराज टूटे हाथ पांव लेकर आज रविवार को खटिया तोडेंगे.

असल में ताई ने टमाटर, सेव और लौकी लाने का कहा था और महाराज सेव और टमाटर तो सही ले आये और ये मत भूलिये कि महाराज अंधे हैं सो हाथ से टटोलने मे लौकी की जगह बालम ककडी ले आये. और घर आकर ताई से बहस भी करने लगे कि ये लौकी ही है.

ये लौकी नही बालम ककडी है जनाब!


आप सभी के जवाब भी गलत हैं. ये जो लौकी दिखाई दे रही है यह वास्तव में लौकी ना होकर बालम ककडी है. ... जी हां बालम ककडी. यह खाने में बडी यमी यमी.. होती है. काटने पर अंदर से बिल्कुल केशरिया रंग की निकलती है. इसे ऐसे ही खायें या सब्जी, कोफ़्ते या खीर बनाकर खायें, है बडी मजेदार. ज्यादातर लोग इसे यूं ही काटकर खाते हैं

यहां मालवा प्रांत में रहने वाले लोग इसे बडे चाव से खाते हैं और दूर दूर अपने रिश्तेदारो को भिजवाते हैं. कई तो इसके ऐसे शौकीन हैं कि बाहर विदेशों में रह रहे अपने रिश्तेदारों को भी भिजवाते हैं. यह तोडने के बाद १५/२० दिनों तक सामान्य टेंपरेचर पर खराब भी नही होती.

इसकी और एक विशेषता है कि इसकी पैदावार सिर्फ़ मांडव गढ वाले धार जिले और सैलाना (रतलाम) में ही होती है. अन्य जगह यह नही पैदा होती. यह सैलाना वही है जहां का कैक्टस गार्डन विश्व प्रसिद्ध है. अब सैलाना आ ही गये हैं तो नीचे के विडियो में वहां का प्रसिद्ध कैक्टस गार्डन भी देख ही लिजिये वरना कहेंगे कि ताऊ महाराज ने बालम ककडी तो खिला दी पर कैक्टस गार्डन नही दिखाया.



बालम ककडी के बारे में कहा जाता है कि जैसे आगरे का पेठा आगरे में ही पनपता है वैसे ही यह भी सिर्फ़ इन्हीं दो जगह पैदा होती है....अनेक लोगों ने इसे दूसरी जगह उगाने की कोशीश की पर सफ़लता नही मिल पायी. बालम ककडी के एक नग का वजन लगभग डेढ दो किलो से ढाई तीन किलो तक का होता है.

मांडव गढ (धार) की बालम ककडी थोडी कम मजेदार होती है और थोडी सस्ती भी है यानि एक ककडी १५ से २० रूपये में मिल जाती है वहीं सैलाना की ३० से ५० रूपये में मिलती है. यह बरसात में ही होती है अब इसकी फ़सल खत्म होने पर है ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह की और बची है. इसमे प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हैं. यह कमजोरी दूर करके ताकत प्रदान करती है. और भी बहुत सारे गुण हैं इसमें, जो महाराज आपको कभी बाद में बतायेंगे.

हमारा सोचना है कि इसका नाम लौकी ककडी भी हो सकता था पर इसका नाम बालम ककडी ही क्यों पडा? यह वाकई सोचने वाली बात है कि नही? क्या आप में से कोई बता सकता है? अगर किसी ने जानते बूझते नही बताया तो ताऊ आस्ट्रोलोजिकल क्लिनिक की चेतावनी याद रखें.

ताऊ आज ताई के हाथों पिटेगा या बचेगा?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की जान खतरे में डालकर किसी ने जबरदस्त साजिश करके बदला लेने की कोशीश की है. महाशरीफ़ और निहायत ही नेक इंसान, धर्मपूर्वक ब्लाग प्रजा पालक ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के साथ जिसने भी ऐसा किया है वो अच्छा नही किया. बुराई का बदला बुराई से ही मिलता है. पता नही किसने फ़ोनियाकर ताई महारानी गांधारी को शिकायत लगा दी कि ताऊ महाराज तुम्हें बुढिया कहते हैं....वगैरह..वगैरह....

अब ताई महारानी में इतनी अक्ल कहां कि वो महाराज ताऊ से शांतिपूर्वक पूछती कि असल बात क्या है? बस एक ही रट लगा दी कि अपनी लिखी चिठ्ठी वापस लो और क्लीन चिट दो...या लठ्ठ खाकर अपनी जान दो.......अब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की इतनी कूबत थोडे ही है कि महारानी का कोप भाजन बन कर अपना बुढापा खराब करलें सो महाराज ने तुरंत प्रेस बुलाकर ऐलान कर दिया कि मेरे कहने का मतलब ना तो महारानी के बुढापे से था और ना ही किसी मंत्री संत्री के भ्रष्टाचार से.

बात यहीं समाप्त भी नही हुई. ताई महारानी ने अपने को बुढिया कहा जाने को मन में गांठ की तरह बांध लिया और ताऊ की जान की दुश्मन बन गई. वैसे यह स्वभाविक भी है कि कोई भी महारानी आंटी तक कहाया जाना पसंद नही करती...फ़िर बुढिया कहा जाना तो सबसे बडी और गंदी गाली समान बात है. बस ताई ने उसी समय से ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को लठ्ठ मारने के बहाने ढूंढने शुरू कर दिये थे पर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र भी कोई ऐसे ही अंधे बहरे नही हुये हैं बल्कि द्वापर से ब्लागयुग तक की महाराजी तय की है सो बहुत संभल संभल कर कदम रख रहे थे.

आखिर कल सुबह ताई महारानी ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को सब्जियां लाने का कहा. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की क्या औकात जो मना करते, आज्ञाकारी महाराज की तरह चुपचाप बाजार की तरफ़ निकल लिये और जो तीन चीजे ताई ने मंगायी थी वो लेकर वापस आगये.

उन तीनों चीजों को देखते ही महारानी ताई की त्योंरियां आसमान पर चढ गयी और अपना लठ्ठ उठाकर महाराज की कुटाई करने के लिये तैयार होगयी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने आज्ञाकारी पति की तरह लठ्ठ खाने की बजाये आज लठ्ठ हाथ मे पकड कर रोक लिया और पूछा कि - ए मेरी बंदरिया महारानी, पहले मेरा कसूर बता, फ़िर तू लठ्ठ मार मार कर चाहे मेरी जान ही क्यों ना ले ले, मुझे कोई शिकवा ना रहेगा...पर कसूर बता.

ताई महारानी बोली - तुम द्वापर से आज तक बंदर के बंदर ही रहे, जरा भी अक्ल नही आयी? मैने तुमसे क्या मंगाया और तुम क्या लेकर आ गये? हे भगवान तुमने मेरी ही किस्मत में ये बुढऊ क्यों लिखा था जिससे फ़ूल मंगाया और कद्दू ले कर आया है?

दोनों में काफ़ी खिच खिच होती रही..आखिर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र सही सामान लाये या गलत...इसका फ़ैसला ब्लाग पुत्र-पुत्रियों पर ही छोड दिया गया. अब नीचे तीन चीजे हैं जो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र खरीद कर लाये हैं और ताई महारानी कह रही हैं कि ये वो चीजे नही हैं जो उन्होने लाने को कहा था, जबकी ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र का कहना है कि यही वो चीजे हैं जो उनसे लाने को कहा गया था.

अब आपको फ़ैसला करना है कि ऊपर चित्र में तीन कौन कौन सी चीजे हैं? अगर आपके जवाब ताऊ महाराज की लाई चीजों से मिल गये तो आज ताऊ लठ्ठ खाने से यानि पिटने से बच जायेगा और अगर आपके जवाब ताई महारानी के जवाबों से मिले तो ताऊ का क्या हाल होगा? यह उनके दुश्मनों की खुशी से ही पता चल जायेगा.

ताऊ आस्ट्रोलोजिक्ल आफ़िस की चेतावनी :-

१. अगर किसी पुरूष ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को पिटवाने के लिये जान बूझकर गलत जवाब दिया तो उनकी खुद की पिटाई उसकी पत्नि के हाथों से होगी और अगर स्त्री हैं तो आज उसकी पिटाई उसकी सास के हाथों होगी. और अगर कोई कुंआरा/कुंआरी है तो उपरोक्त फ़ल उनको शादी के बाद प्राप्त होंगे.

२. अगर कोई बिना जवाब दिये जायेगा तो भी उसे भी उपरोक्त फ़लों की प्राप्ति मासांत तक होकर रहेगी.

अत: इमानदारी पूर्वक जवाब दें और परेशानी से बचें.

ब्लागिंग में भी श्राप के डर से मजे लेने कम कर दिये हैं

ताऊ महाराज धॄतराष्ट राजभवन में चिंता मग्न बैठे हैं, ब्लाग पुत्र दुर्योधन और ब्लागपुत्री दु:शला की नाफ़रमानियां बढती ही जा रही थी. इधर उनके चहेते मंत्री आपस में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर तोतलों को एक और मौका दे रहे थे. ताऊ महाराज धॄतराष्ट की सरकार हिलने लगी थी. उधर ताई महारानी से भी कुछ विशेष सहयोग नही मिल रहा था...महारानी की तबियत बुढौती मे नासाज चल रही थी.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट जब भी परेशान होते थे तब भीष्म पितामह को याद कर लेते थे. आज भी पितामह और ताऊ महाराज धॄतराष्ट आपस में विचारमग्न थे. युवराज दुर्योधन को भीष्म पितामह समझा रहे थे कि वत्स दुर्योधन, दूसरों को अपमानित करना, बेनामी टिप्पणी करना यह अच्छी बात नही है. इससे ब्लागिंग का पतन होता है और अगर तुमने यही रवैया जारी रखा तो तुम्हारा ब्लाग पतन निश्चित है.

इस बात पर दुर्योधन उतेजित होकर बोला - पितामह, आप क्या चाहते हैं कि वो आकर मुझे गरियाते रहें? और मैं उनके तलुवे चाटता रहूं? नही पितामह नही, मैं ईंट का जवाब पत्थर से भी दूंगा और जरुरत लगी तो मानसिक ब्लेकमेल करके जनता का समर्थन भी हासिल करूंगा. मुझे लोगों का समर्थन और हमदर्दी हासिल करने की कला आ गई है, यह द्वापर नही है कि सारी हमदर्दी का टोकरा पांडव ही बटोर ले गये थे. अब मेरे साथ प्राक्सी सरवर भी है.

भीष्म पितामह बोले - वत्स, इस नीति पर हम भी कभी चले थे पर हमारा क्या हश्र हुआ? आज हम ब्लाग पोस्ट लिखने के काबिल ही नही रहे. अगर भूल से कभी कोई पोस्ट लिख भी दी तो कोई टिप्पणी को रोने वाला भी नही फ़टकता. हम दो चार जनों को मेल या फ़ोनिया कर बताते हैं तब जाकर कहीं दस पंद्रह टिप्पणी का इंतजाम होता है. हमने मठ में जितने चेले चमचे इकठ्ठे किये थे वो भी सब किनारा कर गये. हम आज अकेले सर शैया पर लेटे हैं. अत: वत्स तुम ऐसा मत करो.

पितामह की यह बात सुनकर ताऊ महाराज धॄतराष्ट ने पूछा - पर पितामह, आपको शर शैया पर लेटने की क्या आवश्यकता है? आप आराम से राजमहल में रहकर ब्लागिंग किजिये, यहां राजमहल में लेपटोप, हाईस्पीड नेट कनेक्शन, डेटाकार्ड और प्राक्सी सर्वर इत्यादि सभी कुछ तो उपलब्ध है. आप जिसकी चाहे उसकी खटिया खडी कर सकते हैं, हमारा दुर्योधन इन कामों में पारंगत हो चुका है....आप चाहे जिसे आपस में भिडवाकर बुढापे में घर बैठे मजे लूट सकते हैं.

पितामह बोले - नही वत्स धॄतराष्ट्र, अब और नही, हमने ब्लागिंग में लोगों को आपस में खूब लडाया भिडाया, खूब मजे लिये, पर अब और पाप की गठरी सर पर नही ले सकते. तुम जानते हो कि हम को शर शैया पर क्यों लेटना पडा है?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट - नही तात श्री, आप बताये.

पितामह बोले - वत्स धॄतराष्ट्र, हमने बचपन में एक भंवरा पकड लिया था और खेल खेल में उसके शरीर को शूलों से बींध दिया और उस दुष्ट भंवरे ने हमको श्राप दे दिया कि जावो, जिस तरह तुमने मेरा शरीर शूलों से बींध दिया है उसी प्रकार एक दिन तुम्हारा शरीर भी शूलों से बींधा जायेगा, तब तुम्हें पता चलेगा की शूलों से बींधे जाने की वेदना क्या होती है? आह वत्स धॄतराष्ट्र... सच में..बडी वेदना हो रही है...इसीलिये हमने ब्लागिंग में भी श्राप और शूलों से बींधे जाने के डर से मजे लेने कम कर दिये हैं...यानि बुरा करने से बुराई ही हाथ लगती है वत्स....पर क्या करें... ये ससुरी ब्लागिंग की आदत पूरी तरह छूटती भी तो नही है.

(क्रमश:)

दुनियां की सबसे श्रेष्ठ और खराब वस्तु क्या है?

मैं स्वयं काल यानि समय हुं. अक्सर लोग कहते हैं कि जब कुछ काम नही होता तब हम समय काटने के लिये ब्लागिंग करते हैं. पर उन मूर्खानंदों को यह समझ नही आता कि मुझ साक्षात काल यानि समय को कौन काट सकता है? ये तो मैं ही उन काटने वालों को काट डालता हुं. इस सॄष्टि के आदि से अभी ब्लागयुग तक की स्मॄतियां मुझमें समायी हुई है.

आज यूं ही एक घटना याद आरही है जो आपको सुनाना जरूरी समझता हूं. सभी ब्लागर बच्चों से गुजारिश है कि इसे अति श्रर्द्धा पूर्वक मन लगाकर सुने जिससे वो निश्चित ही कल्याण को प्राप्त हो सकेंगे.

द्वापर से ही अक्सर तोतलों (जनता) को ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की काबिलयत पर हमेशा शक रहा है. ज्यादातर लोग मानते हैं कि ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे, अक्षम और बेअक्ल हैं और शासन करने की क्षमता उनमें नही है, उन्होने जोडतोड करके हस्तिनापुर की कुर्सी हथिया ली थी जो आज तक छोडने के लिये तैयार नही है. और तो और महाभारत युद्ध से लेकर ब्लागयुद्ध एवम भ्रष्टाचार तक के लिये तोतले उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कोशीश करते है. जबकि यह सभी बाते गलत हैं.

गोल्ड मेडलिस्ट ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र


सच यह है कि ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र नितांत सज्जन, शरीफ़, ब्लाग प्रजापालक और कुशाग्र बुद्धि हैं. मैं आपको उस समय की एक घटना बताता हुं जब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अन्य राजकुमारों के साथ गुरूकुल में विध्याययन किया करते थे. आपको इस घटना से ही ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की बुद्धि की गहराई का पता चल जायेगा.

गुरूकुल में वार्षिक परीक्षाएं चल रही थी. गुरू सभी छात्रों से वायवा के प्रश्नों सहित उनसे प्रेक्टीकल भी करवा रहे थे.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की बारी आई तब गुरू ने उनसे पूछा : वत्स धॄतराष्ट्र, तुम जावो और अति शीघ्र दुनियां की सर्वश्रेष्ठ वस्तु लेकर आवो.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र तुरंत छात्रावास में अपने कमरे में गये और वहां से अपने डेस्कटोप का की बोर्ड उठाकर ले आये और उसे गुरू को देते हुये बोले - गुरूदेव यह लिजिये इस दुनियां की सर्वश्रेष्ठ चीज.....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के इतना कहते ही गुरू कुपित होगये और ताऊ महाराज को उल्टी सीधी आगे पीछे दो चार बेंत लगादी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने बेंत लगा अपना अगवाडा पिछवाडा सहलाया और चुपचाप सर झुका कर खडे रहे क्योंकि उस युग में आज की तरह छात्रों को शिक्षक की बेंते खाने पर विरोध का हक नही था.

इसके बाद गुरू ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को कहा - ठीक है धॄतराष्ट्र, तुम इस सवाल का जवाब लाने में तो असफ़ल रहे पर तुम्हारा यह साल खराब ना हो इसलिये मैं तुमको एक मौका और देना चाहता हुं. अब तुम दुनियां की कोई ऐसी वस्तु लावो जो सबसे बेकार और गंदी हो.

यह प्रश्न सुनकर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने वहां से वापस छात्रावास की तरफ़ दौड लगा दी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ताले तोडने और चोरी चकोरी करने में तो जन्मजात ही माहिर थे सो सीधे डाँ. दराल के कमरे की तरफ़ गये और उसका ताला तोडकर उनका की बोर्ड उठाया और लाकर गुरू के सामने रख दिया.

दूसरे सवाल के जवाब मे भी की बोर्ड देखकर गुरू भडक गये और बेंत उठाने लगे तभी वहां वायवा के लिये बैठे पितामह बोले - आचार्य, आप वत्स धॄतराष्ट्र को बेंत मारने के पहले उससे इस बात का कारण नही जानना चाहेंगे कि वो दोनों प्रश्नों के जवाब में की बोर्ड क्यों लेकर आया है? आचार्य गुरू को पितामह की यह सलाह पसंद आई और उन्होने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र से इसका कारण पूछा.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - गुरूदेव और पितामह आप दोनों को प्रणाम, असल में कंप्यूटर का यह की बोर्ड ही है जिससे ज्ञान, प्रकाश फ़ैलाने वाली, भाईचारा और सोहाद्र बढाने वाली पोस्ट और टिप्पणियां की जा सकती हैं इसलिये यह दुनियां की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है. और इसी की बोर्ड से गंदी, बदबूदार, गाली गलौच, किसी का दिल दुखाने वाली, कुंठित और लुंठित, परेशान करने वाली और दुश्मनी नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्ट और टिप्पणियां लिखी जा सकती हैं, इस वजह से यह दुनियां की सबसे गंदी और बेकार वस्तु भी है.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र का यह जवाब सुनकर आकाश से देवताओं ने भी फ़ूल बरसाये और गुरू ने उन्हें उस बैच का सबसे होनहार और मेधावी छात्र घोषित करके गोल्ड मेडल देते हुये आशीर्वाद दिया कि - वत्स धॄतराष्ट्र मैं तुमको वरदान देता हूं कि तुम अंधे होकर भी देखते रहोगे और बहरे होकर भी सुनते रहोगे.

इसके बाद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने पितामह के चरण छुये तो भीष्म पितामह ने भी आशीर्वाद दिया कि - वत्स धॄतराष्ट्र, तुमने मेरे कुल का नाम रोशन कर कर दिया, जावो मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूं कि तुम द्वापर से लेकर ब्लागयुग तक अखंड राज्य करोगे.

(क्रमश:)

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के चिरयुवा होने का राज.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने आज तक किसी को अपना साक्षात्कार नही दिया लेकिन मिस समीरा टेढी ने किसी तरह महाराज को साक्षात्कार के लिये राजी कर ही लिया और अपने साथ कैमरामैन रामप्यारे को लेकर राजमहल पहुंच गयी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र पहले से ही तैयार बैठे थे अत: पहुंचते ही साक्षात्कार का सिलसिला शुरू होगया.

मिस समीरा टेढी - महाराज, मैं आपका शुक्रिया अदा करती हुं कि आपने हमारे चैनल को आपका प्रथम साक्षात्कार प्राप्त करने का सौभाग्य प्रदान किया. अब मैं आपसे सबसे पहले यह पूछना चाहुंगी कि आप द्वापर से लेकर अब ब्लागयुग तक भी वैसे के वैसे जवान बने हुये हैं, अंधे होकर भी देख लेते हैं? बहरे होकर भी सुन लेते हैं? आखिर इसका राज क्या है? क्या आप शिलाजीत का सेवन करते हैं?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, कैमरामैन रामप्यारे और साक्षात्कार लेती मिस समीरा टेढी


ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - देखिये समीरा जी, हम बंदर प्रजाति के हैं तो शिलाजीत के सेवन वाली कोई बात नही है बल्कि शिलाजीत खाना तो हमारे भोजन का अंग है. और आप जानती हैं कि शिलाजीत बहुत ही दुर्गम पहाडों की कंदराओं में पाई जाती है जहां हमारे अतिरिक्त और कोई नही पहूंच सकता. और इसके खाने से हमारा तन मन अति स्वस्थ और शांत चित बना रहता है और इसी की वजह से हम अपने ब्लाग मठ एवम सत्ता का संचालन शांति पूर्वक करते हैं. लेकिन इस शिलाजीत सेवन का हमारे चिरयुवा शरीर से कुछ लेना देना नही है.

मिस समीरा टेढी - पर महाराज दूसरे मठाधीष भी तो शिलाजीत का सेवन करते होंगे?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - नही नही समीरा जी, दूसरे मठाधीषों को असली शिलाजीत नही मिल पाता. असल में हम जब शिलाजीत खा रहे होते हैं तब कुछ जूठन नीचे गिर जाती है और उस जूठन को हमारे पीछे लगा शेर चाट लेता है और गुर्राकर अपने मठाधीश होने की घोषणा करने लगता है. जो असली शिलाजीत खाता है वो तो हमारी तरह हमेशा शांतचित रहता है, सिर्फ़ शेर और भेडिये ही गुर्राहट दिखाया करते हैं. असली शिलाजीत सेवन करने वाले मठाधीष को कभी गुस्सा आता ही नही है.

मिस समीरा टेढी - तो महाराज इसका मतलब यह हुआ कि ये जो ब्लाग जगत में उठा पटक चलती है इसके पीछे वो शेर और भेडिये टाईप मठाधीष नही बल्कि शांत चित और स्थिर बुद्धि वाले आप ही जिम्मेदार हैं?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - अब समीरा जी अपने मुंह से मैं क्या कहूं? आप स्वयं ही अंदाज लगा लिजिये. हमारे खिलाफ़ तोतलों द्वारा इतने रोकपाल आंदोलन हुये, हमने कभी पलटकर जवाब भी दिया क्या? अरे जब हमने तोतलों (जनता) को जवाब नहीं दिया तो ये मठाधीष कहां लगते हैं? अब आपका आज का समय समाप्त होने को है...बस आप एक प्रश्न और पूछ सकती हैं...इसके बाद समय समाप्त...हमें अन्य ब्लाग कार्य भी निपटाने हैं.

मिस समीरा टेढी - महाराज मेरा अंतिम सवाल यह है कि जब आप अपने चिरयुवा होने का राज शिलाजीत को भी नही बताते तो आखिर वह कौन सी चीज हैं जिसके सेवन से आप द्वापर से अभी तक तंदुरूस्त बने हुये हैं और सारे सत्ता सुत्र अपने हाथ में रखे हुये हैं?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - समीरा जी, वैसे तो हम यह राज खोलना नही चाहते क्योंकि इस राज के खुलने से हमारे विरोधी मठाधीष भी चिरयुवा हो जायेंगे, फ़िर भी हम आपसे अति प्रसन्न हैं सो बता ही देते हैं कि हम सप्ताह में दो बार ताऊ परांठे का सेवन करते हैं जिससे हमको किसी तरह के रोग नही होते, ना ही कभी घुटने दुखते हैं और ना ही कभी शारीरिक या मानसिक थकान होती है.

मिस समीरा टेढी - महाराज आप ये क्या मजाक कर रहे हैं? भला परांठा सेवन से कोई तंदूरूस्त रह सकता है? उल्टे डाक्टर लोग तो परांठा सेवन के लिये मना करते हैं.....आप असल बात छिपा रहे हैं महाराज.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - नही समीरा जी, हम झूंठ तो कभी बोलते ही नही हैं, अगर झूंठ बोलते होते तो द्वापर के महाभारत में हमारी हार क्यूं होती? असल में ताऊ परांठा हमारे राजवैद्य के द्वारा इजाद किये गये नुस्खे का परिणाम है जिसके सेवन से हर कोई जवान और स्वस्थ रह सकता है. अब आप पूछ ही रही हैं तो हम ताऊ परांठा बनाने की विधी आपको बताये देते हैं, अगर हमारी प्यारी प्रजा चाहे तो अवश्य सेवन कर ले.

मिस समीरा टेढी - महाराज अवश्य बताईये, यह प्रजा पर आपका बडा उपकार होगा, आजकल रोग बीमारियों का इलाज भी बडा महंगा हो गया है.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - आप लिख लिजिये समीरा जी.....जो भी मानव ताऊ परांठे का सेवन सप्ताह में दो बार करेगा वो आजीवन स्वस्थ और तंदूरूस्त रहेगा, उसे कब्ज, घुटने का दर्द, वायु विकार, चेहरे पर झुर्रियां नही व्याप्त होंगी. और सबसे बडी बात ब्लागिंग में उसकी मठाधीशी जाने का कोई भय नही रहेगा.

सबसे पहले सामग्री नोट किजिये.

१. गेहुं का आटा २ कटोरी
२. तेल मोयन के लिये २ चम्मच
३. मेथी दाना पाऊडर २ चम्म्च
४. अजवाईन पाऊडर २ चम्मच
५. काला नमक १ चम्मच
६. हींग पाऊडर १/२ चम्मच
७. हल्दी पाऊडर १/२ चम्मच
८. अलसी पाऊडर १ चम्मच
९.सफ़ेद नमक स्वादानुसार
१० प्याज १ बडा साईज का
११. शिमला मिर्च १ बडा साईज का
१२. हरी मिर्च ५/६, लहसुन की ५/६ कलियां, अदरक एक बडा टुकडा.
१३. हरा धनिया १ गड्डी बारीक कटा हुआ

ताऊ परांठा बनाने की विधि :-

आटे में मोयन वाला तेल, मेथीदाना पाऊडर, अजवाईन पाऊडर, काला नमक, सफ़ेद नमक, हींग पाऊडर, हल्दी डालकर मिला लिजिये. प्याज, शिमला मिर्च को कद्दूकस करके आटे में मिला लिजिये. हरी मिर्च, लहसुन और अदरक को मिक्सर में पीस कर आटे में मिला लिजिये. और अंत में हरे धनिये की गड्डी के बारीक कटे सारे पत्ते आटे मे डालकर उसे गूंध लिजिये. सारी सामग्री मिलने के बाद गूंधने के लिये पानी कम ही लगेगा. अब इस तैयार आटे के परांठे मंदी आंच पर सेंक लिजिये. यह आपका कुरकुरा ताऊ परांठा तैयार हो गया अब इसे गर्मा गर्म ही दही, रायता या सब्जी जिससे भी चाहे खा लिजिये.

यह नाश्ते का नाश्ता और सौ रोगों की एक दवा, और प्रोटीन का यह अथाह भंडार है. बोलो ताऊ परांठे की जय!

मिस समीरा टेढी - महाराज आपकी बडी कॄपा जो आपने इस ब्लागयुग में इतनी उत्तम विधि जन कल्याण के लिये बताई.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - समीरा जी आप तो हमें शर्मिंदा कर रही हैं, हम तो जन कल्याण के लिये ही अवतरित हुये हैं वो तो कुछ मठाधीशों ने हमें बदनाम कर रखा है.

(शेष साक्षात्कार अगली किस्तों में.....)

"तनु वेड्स मनु" बनाम "मेरे ब्रदर की दुल्हन" और ताऊ

पिछले अंक में आपने पढा था जब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और पितामह के बीच बाते हो रही थी तभी युवराज दुर्योधन ने उनके परम प्रिय सखा कर्ण के साथ राज दरबार में प्रवेश किया था और यह उदघोष किया था कि अब मेरे हाथ में गदा नही बल्कि की-बोर्ड और हाईस्पीड नेट कनेक्शन है और प्राक्सी सर्वर भी.......

युवराज दुर्योधन, अंगराज कर्ण, ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, पितामह और मिस समीरा टेढी


युवराज दुर्योधन की बातों से महाराज अति चिंतित हो गये और बडे खिन्न मन से मिस समीरा टेढी की तरफ़ देखते हुये आज का दरबार बर्खास्त करने के लिये इशारा किया.

आज के राज दरबार की बर्खास्तगी की बात सुनकर युवराज दुर्योधन ने प्रसन्न हो कर कहा - तातश्री, आपको मैं काफ़ी समय से परेशानी में देख रहा हूं. पहले तो तोतलों द्वारा रोकपाल बिल के चक्कर में आपकी नींद और खाना पीना हराम हो रहा था, अब ये पितामह ने आपके लिये नई मुसीबत खडी करके रखदी. ऐसे में आपको थोडा मनोरंजन का ख्याल रखना चाहिये जिससे आपका दिमाग शांत बना रहे. एक बडी अच्छी फ़िल्म आई है और उसके पास भी आये हुये हैं, चलिये आपको वही फ़िल्म दिखा लाता हूं. आप चाहे तो समीरा आंटी को भी लिये चलिये. और पितामह चाहें तो उनको भी ले चलिये.

पितामह का मूड तो युवराज दुर्योधन की शक्ल देखते ही खराब हो जाता था, क्योंकि हाई स्पीड नेट कनेक्शन और प्राक्सी सर्वर के सहारे दुर्योधन ने पितामह की ऐसी तैसी कर रखी थी, बेचारे पितामह अपना ब्लाग बोरिया कितनी बार इधर उधर घसीटते फ़िरते थे उसके मारे. सो पितामह ने तो बहाना बना कर मना कर दिया कि आज वो सब ब्लागर्स को जय हो, बहुत अच्छे, खुश रहो, अरे ये तो हमारी फ़ला पोस्ट मे था...जैसी टिप्पणियां करते हुये अपनी चुनिंदा पोस्टों के लिंक छोडने का काम करेंगे. मिस समीरा टेढी ने अपनी नये कार्य कि जिम्मेदारियों को निभाने के लिये समयाभाव का कहकर मना कर दिया.

मिस समीरा टेढी और पितामह की बात सुनने के बाद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - वत्स, दुर्योधन तुम्हारी बात हमे बडी रूचिकर लग रही है. अब समीरा जी भी साथ चलेंगी तो पीछे से हस्तिनापुर की देखभाल कौन करेगा? आजकल तोतलों का भरोसा नही कि तीन घंटे की हमारी अनुपस्थिति में भी क्या गुल खिला डाले? और पितामह तो हमारे साथ जायेंगे नही, उनको अपनी टिप्पणीबाजी में ही आनंद आता है सो उन्हें भी टिप्पणियों द्वारा पंगे बाजी का शौक पूरा करने दो.

और हां फ़िल्म कोई अच्छी सी होनी चाहिये जैसी तुमने पिछली बार दिखाई थी. वो क्या नाम था उसका...हां याद आया "तनु वेड्स मनु" बस वैसी ही फ़िल्म हो तो निकल चलते हैं.

युवराज दुर्योधन बोले - तातश्री, "मेरे ब्रदर की दुल्हन" बिल्कुल "तनु वेड्स मनु" जैसी ही है..बल्कि स्टारकास्ट और बैनर भी बहुत बडा है. आप चलिये आपका दिमाग फ़्रेश हो जायेगा.

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - अरे वाह वत्स दुर्योधन, तुम हमारा कितना ख्याल रखते हो? यानि आज फ़िर से कनपुरिया डांस देखने का मौका मिलेगा? और एक बात हमारे दिमाग में आ रही हैं कि हम भी इस फ़िल्म की समीक्षा लिख कर एक पोस्ट निकाल लेंगे, अब कोई अरविंद मिश्रजी का ही ठेका थोडे ही है कि फ़िल्म देखी और समीक्षा के नाम पर एक पोस्ट निकाल ली?

युवराज दुर्योधन और अंगराज कर्ण अपने साथ ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को लेकर मल्टीपलेक्स में पहुंच गये. अब ज्यों ज्यों फ़िल्म आगे बढती गयी वैसे वैसे ताऊ महाराज धृतराष्ट्र का दिमाग आऊट आफ़ कंट्रोल होने लग गया. उन्होनें फ़िल्म बीच में छोडकर ही राजमहल लौटने का फ़ैसला किया परंतु युवराज और कर्ण...बस थोडी देर और तातश्री...थोडी देर और तात श्री...कहते हुये पूरी फ़िल्म ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को दिखा ही डाली.

अब पूरी फ़िल्म देखने के बाद ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने युवराज दुर्योधन को डांटते हुये - वत्स तुमको द्वापर में भी अक्ल इस्तेमाल करने की आदत नही थी और अब इस ब्लागयुग में भी नही है. और अंगराज कर्ण तुम भी सिर्फ़ धनुष (की बोर्ड) उठाने के अलावा दुनियादारी की समझ नही रखते. तीन घंटे खराब करवा डाले.

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र की डांट सुनकर युवराज तमकते हुये बोले - तात श्री, इसमे हमारा क्या कसूर? देश के एक बहुत बडे अखबार में हमने समीक्षा पढी थी कि "मेरे ब्रदर की दुल्हन" इतनी बडी और शानदार फ़िल्म है कि तनु वेड्स मनु को भी काफ़ी पीछे छोड देगी.

इस बात को सुनकर ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और भी क्रोधित होते हुये बोले - युवराज दुर्योधन, जरा अखबार की मजबूरी समझा करो, क्या पता वो खुद ही इस फ़िल्म के नफ़े नुक्सान में पार्टनर हो? जरा अक्ल लगाया करो वत्स. अब तुम्हें हस्तिनापुर की सत्ता संभालनी है. हम कब तक बैठे रहेंगे? अरे हम जिस तरह बहरे होकर भी सुन लेते हैं और अंधे होकर भी देख लेते हैं? उसी तरह का गुण प्राप्त करो वत्स, तभी इस हस्तिनापुर राज्य की बागडोर संभाल पावोगे. जरा अच्छे और बुरे में भेद करना सीखो. सिर्फ़ बैनर का और स्टार कास्ट का नाम बडा होने से ही फ़िल्म अच्छी नही हो जाती वत्स.

अब अंगराज कर्ण बोले - महाराज श्री, आपकी बात सही है. द्वापर से लेकर इस ब्लागयुग में अकेले सिर्फ़ आप ही हैं जो अंधे होते हुये भी पूरी बारीकी से फ़िल्म देख सकते हैं और बहरे होते हुये भी पूरी तरह से संगीत को बारीकी से सुन सकते हैं. महाराज आपको इन दोनों फ़िल्मों में क्या अच्छा बुरा लगा? जरा वह भी बताने की कॄपा करें.

तनु वेड्स मनु का कनपुरिया डांस, देखते ही तबियत बाग बाग हो जायेगी!


ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - वाह अंगराज कर्ण वाह, यह आपने बहुत बढिया सवाल किया है. तनु वेड्स मनु में पटकथा इतनी चुस्त और सादगी लिये हुये है कि फ़िल्म देखते हुये हम पूरी तरह से उसमे खो गये. एक एक फ़्रेम कसा हुआ लगता है. और पूरा संगीत इतना लाजवाब है कि इन कई वर्षों में ऐसा गीत संगीत फ़िल्मों में देखने सुनने को नही मिला. इसका संगीत सुनते हुये एक दूसरी ही दुनियां में पहूंच जाते हैं खासकर रंगरेज मेरे...वाले गीत मे... और कंगना राणाऊत की पहली बार कोई फ़िल्म देखी और हम तो उसकी अदाकारी के कायल होगये... यानि तनुजा त्रिवेदी के रोल में तो वो लाजवाब रही... उस के द्वारा किया हुआ कनपुरिया डांस तो कमाल का था. हमारे राजमहल की नर्तकी भी ऐसा डांस नही कर सकती. इसीलिये यह फ़िल्म हमने कई बार देखी.

युवराज ने पूछा - तातश्री, और क्या विशेषता रही इस फ़िल्म की?

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - वत्स, इस फ़िल्म में हमें जिम्मी शेरगिल की एक्टिंग बहुते लाजवाब लगी और उसी की जुबानी एक और बात का पता चला कि शादी का जोडा तो लखनऊ से ही खरीदना चाहिये, कानपुर में तो सिर्फ़ चमडा ही मिलता है. बस पूरी फ़िल्म लाजवाब है.

कर्ण बोला - महाराज श्री आपको "मेरे ब्रदर की दुल्हन" में क्या खास बात लगी?

"मेरे ब्रदर की दुल्हन" भव्य सेट्स के साथ बोरियत


ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - अंगराज, यह सारी फ़िल्म हर मामले में बकवास है. इस पूरी फ़िल्म में तनु वेड्स मनु की भौंडी नकल मारने की कोशीश की गई है, लचर संगीत, भव्य सेट्स और सारे तामझाम के बावजूद भी यह बकवास है. इतने बडे बैनर को इस तरह की नकल करने की क्या जरूरत आ पडी? शायद इस बैनर की अब तक की सबसे बकवास फ़िल्म है. नकल मारने में भी अक्ल नही लगाई गई है.

हां इस फ़िल्म में एक रेपिड फ़ायर विडियो कांफ़्रेंसिंग का सीन है जो कटरीना कैफ़ उसके होने वाले दुल्हे से पूछती है. वैसे तो अभी तक देखने सुनने में नही आया पर अगर भविष्य में ऐसा हुआ कि कोई लडकी ब्लागर किसी लडके ब्लागर से इस तरह के रेपिड फ़ायर के सवाल शादी के पहले करे तो वो कुछ यों होंगे.

लडकी ब्लागर : बेनामी टिप्पणी या नाम सहित?

लडका ब्लागर : बेनामी टिप्पणी.

लडकी ब्लागर : मौज लेना या पोस्ट निकालना

लडका ब्लागर : दोनों.

लडकी ब्लागर : टांग खिंचाई या तथ्यात्मक?

लडका ब्लागर : खांटी टांग खिंचाई.

लडकी ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी या निष्पक्ष?

लडका ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी

लडकी ब्लागर : ज्यादा टिप्पणियां महिला ब्लागर की पोस्ट पर या पुरूष ब्लागर की पोस्ट पर?

लडका ब्लागर : डार्लिंग अब बस भी करो, तुम जानती तो हो....फ़िर सब कुछ साफ़ साफ़ ही क्यूं पूछ रही हो?

लडकी ब्लागर : ओह डार्लिंग...आई लव यू...चलो हम शादी कर ही लेते है....इतने विचारों का साम्य आखिर और कहां मिलेगा?

आखिर ये ब्लाग भारत कब तक चलेगी तातश्री?

राज दरबार में ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बहुत उदास बैठे हैं. पास में उतेजित से पितामह और आशीर्वाद देने की मुद्रा में शांत चित गुरू द्रोणाचार्य बैठे हैं. मिस समीरा टेढी कुछ जरूरी बातों पर महाराज से विचार विमर्श के लिये कमर पर हाथ टिकाये मटकती सी चली आ रही हैं. समूचे दरबार में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा है.

आखिर सन्नाटे को तोडते हुये ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - पितामह आप ही बताईये कि आखिर ये सब हमारी ही किस्मत में क्यों लिखा है? द्वापर से अभी ब्लागयुग तक हम कभी चैन से नही जी पाये, अभी हम मुश्किल से तोतलों के आंदोलन से उबरे थे, उसमे भी हमारी किरकिरी हुई थी और अब ये आपने नया सर दर्द खडा कर दिया... ...आखिर पितामह आप समझते क्यूं नही कि अब द्वापर नही है जहां आप जगत पितामह बने हुये थे, अब ये ब्लागयुग है...इसमे सब अपने अपने पितामह है..कोई आपको पितामह मानने को तैयार नही होगा.

महाराज धॄतराष्ट्र, ब्लाग पितामह, मिस समीरा टेढी और गुरू द्रोण


पितामह बोले - पर वत्स धृतराष्ट्र, जब तुम द्वापर से लेकर आज तक महाराज बने हुये हो तो मेरे को पितामह मानने में क्या दिक्कत है? अरे इस ब्लाग युग का सुत्रपात तक हमने किया है तो हम ब्लाग पितामह हुये कि नही? वत्स, तुम ये मान लो कि हमें पितामह कहाये बिना नींद नही आती. अब हम क्या करें? हमको हर किसी के फ़टे में टांग फ़ंसाने की द्वापर से ही आदत पडी हुई है...अब हमारी द्वापर वाली शान तो नही रही पर तुम्हारे इन ब्लाग पुत्र पुत्रियों को समझावो कि हमें वही पितामह वाला सम्मान दिया करें और हमारी टिप्पणियों को महत्व दें....

पितामह की बात काटते हुये मिस समीरा टेढी बोली - पर पितामह आप भी ना .....अब क्या कहूं? आप अपने आप को समझते तो ब्लाग पितामह हैं पर बाते बिल्कुल बचकानी चिरकुटई टाईप करते हैं तो आपको कौन ब्लाग पितामह मानेगा? आखिर आपका आचरण भी तो वैसा ही होना चाहिये ना?

इतनी देर से खामोश बैठे गुरू द्रोणाचार्य ने उचकते हुये मिस समीरा टेढी का समर्थन करते हुये बोलना शुरू किया - पितामह आप ये क्यूं नही समझते कि अब ब्लागयुग में राजशाही नही लोक शाही चलती है. और आप अपने आपको अब भी ब्लागयुग का पुरोधा समझते हैं...ये भूल मत किजिये पितामह वर्ना आप पितामह तो दूर बल्कि पुत्रमह भी नही रहेंगे. इस ब्लागयुग में सब एक से बढकर एक हैं...जरा युग की नजाकत समझिये और ये रोना धोना बंद करके खुद कुछ ढंग की ब्लागिंग किजिये...फ़ोकट खेमेबाजी करके कब तक आप पितामह बने रहेंगे?

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने गुरू द्रोणाचार्य की बातों से प्रसन्नता प्रकट करते हुये कहा - पितामह मुझे तो गुरू द्रोण की बाते बडी प्रीतिकर लगी. आप इनका कहा मानिये और फ़ालतू की टिप्पणियां करके अपने को पितामह कहलवाने के बजाये स्वयं कुछ स्वस्थ लेखन किजिये जिससे आपको लोग सच में पितामह समझ सकें.....और...

महाराज ताऊ धृतराष्ट्र कुछ और बोल पाते कि इतने में ही युवराज दुर्योधन अपने परम मित्र कर्ण के साथ राज दरबार में प्रवेश करते हुये चिल्लाये...ये क्या हो रहा है तातश्री? आखिर ये ब्लाग भारत कब तक चलेगी तातश्री? द्वापर में हम भले ही हार गये होंगे पर अब ये ब्लाग युग है इसमे हमको कौन हरायेगा? अब मेरे हाथ में गदा नही बल्कि की-बोर्ड और हाईस्पीड नेट कनेक्शन है और प्राक्सी सर्वर भी.......

(क्रमश:)

क्या है ताऊ महाराज के अंधे होने का राज?

पिछले भाग में आपने पढा था कि किस तरह ब्रह्मचारी सन्यासी ताऊ महाराज को बिल्ली पालने के जुर्म की वजह से इस संसार सागर में उतरना पडा. ताऊ और ताई दोनों ही काफ़ी खूबसूरत थे. जिन्होने ताऊ महारज धॄतराष्ट्र और ताई गांधारी को उस जमाने में देखा है, वो जानते हैं कि कितना खूबसूरत, आकर्षक और आदर्श जोडा हुआ करता था. लोग उनकी मिसाले दिया करते थे. फ़िर अचानक क्या हुआ? किसकी नजर लग गई कि ताऊ और ताई का यह जोडा एक बंदर और बंदरिया की शक्ल में बदल गया?

हुआ यूं कि शादी के कुछ दिन तक तो गाय भैंस बिल्ली सब पलती रही, दोनों जमकर जिंदगी की ब्लागिंग करते रहे, बडे हंसी खुशी में दिन कटते रहे. पर खाली खूबसूरती के दम पर कब तक गॄहस्थ की गाडी चलनी थी? गॄहस्थी चलाने के लिये काम धंधा, रूपया पैसा चाहिये. ताऊ के पास काम धंधे के नाम पर बाबा गिरी थी, अब शादी कर ली तो बाबा गिरी से आने वाला चढावा भी बंद हो गया. थक हार कर ताऊ ने छोटी मोटी चोरी लूट...डकैतियां डालना शुरू कर दिया. इन धंधो का जब ताई को पता चला तो उसने सुबह शाम मेड-इन-जर्मन से ताऊ की आरती उतारनी शुरू कर दी. ताऊ पर डबल मार पड रही थी. चोरी डकैती में पकडा जाये तो पुलिस का डंडा पडता और पुलिस से किसी तरह बच भी जाये तो ताई का लठ्ठ पडता. यानि इधर कुआं उधर खाई.... आखिर कितने दिन बेचारा ताऊ ये जुल्म सहन करता?

घोडा कूदनी आश्रम पर तपस्यारत ताऊ महाराज


आखिर ताऊ मूल रूप से तपस्वी बाबा तो था ही, उसने मन ही मन ताई को सबक सिखाने का फ़ैसला कर लिया और तपस्या करने के लिये घोडाकूदनी आश्रम चला गया. वहां ताऊ महाराज ने जमकर तपस्या शुरू कर दी. जल्द ही देवता प्रसन्न हो गया और ताऊ के सामने, हाथ में हुक्का लिये हुये प्रकट हो गया. देवता ने ताऊ को वरदान मांगने के लिये कहा.

ताऊ ने एक आंख खोलकर देखा कि देवता के हाथ में हुक्का है तो उसकी इच्छा भी हुक्का पीने की हो गई. ताऊ ने देवता से कहा कि मुझे तो वरदान में आप ये हुक्का ही दे दिजिये.

देवता बोला - ए ताऊ, तू इस हुक्के का क्या करेगा? ये कोई साधारण हुक्का नही है. तू इसे छोड और कोई दूसरा वरदान मांगले.

पर ताऊ तो ताऊ ठहरा, अड गया कि देना हो तो ये हुक्का ही दे दो वर्ना फ़िर से तपस्या शुरू करता हूं...हुक्का तो ले कर ही रहुंगा, तुम देवता हो, तुमको हुक्के का क्या काम? ये हम जैसे ताऊओं के काम की चीज है.

देवता ने ताऊ को समझाते हुये कहा - भक्त ये कोई साधारण हुक्का नही है. तुम खाम्ख्वाह इससे परेशानी में पड जाओगे. पर ताऊ नही माना. थक हार कर देवता ने वो हुक्का ताऊ को दे दिया.

ताऊ ने फ़टाफ़ट हुक्के में तंबाकू डालकर अंगारे डाले और पहला कश ही खींच कर धुंआ बाहर छोडा था कि उस धुंआ से एक बडा सा विशालकाय जिन्न पैदा होगया और हाथ जोड कर बोला - ए मेरे मालिक ताऊ, हुक्म करिये...खादिम को किस लिये याद किया है? मैं आपके तीन हुक्म बजा लाने के लिये आपकी सेवा में हाजिर हुं.... पर ये बात ध्यान में रखियेगा कि आप जो भी मांगेगे उतना ही आपकी पत्नि को स्वत: ही मिल जायगा. अब मुझे जल्दी आदेश दिजिये...एक बार मैं प्रकट हुआ तो बिना काम पुरा किये नही जाऊंगा और आपने मुझे काम नही दिया तो आपकी खैर नही...जल्दी मेरे आका...जल्दी...अब मेरे हाथ में खुजली शुरू हो गई है.....और जिन्न ने ताऊ के हाथ से लठ्ठ ले लिया.

जिन्न का ये रूप देखकर ताऊ को तो मन चाही मुराद मिल गई. उसने सोचा कि ताई अपनी सुंदरता पर बहुत इतराती है, अब देखता हूं कैसे इतरायेगी? ताऊ ने तुरंत कहा कि - ए मेरे हुक्के तू फ़टाफ़ट मेरा चेहरा बिगाड कर काले बंदर के जैसा कर दे. देखते देखते ताऊ वर्तमान बंदर के चेहरे वाला होगया. और उधर ताई का चेहरा भी काली बंदरिया जैसा होगया.

इसके बाद ताऊ ने सोचा कि ताई अपनी आंखों पर भी बहुत घमंड करती है...आज उनका भी काम तमाम कर देता हुं...ताऊ तुरंत बोला - ए मेरे हुक्के, तू मेरी दोनों आंखें फ़ोड दे....ताऊ के इतना कहते ही जिन्न ने ताऊ की दोनों आंखे फ़ोड डाली और हमेशा के लिये ताऊ को महाराज धॄतराष्ट्र बना डाला. उधर ताई भी अंधी हो गई.

ताऊ को इतने से भी संतोष नही हुआ. क्योंकि ताई के मारे हुये लठ्ठों से उसकी पीठ के अलावा आत्मा भी घायल हो चुकी थी. तुरंत फ़िर बोला - ए मेरे हुक्के, जल्दी से मेरे दोनों कान भी फ़ोड डाल...मुझे बहरा भी कर दे. इतना कहते ही जिन्न ने तुरंत ताऊ को बहरा बना डाला.

और यही राज है कि महाराज ताऊ हमेशा के लिये अंधे और बहरे होकर निष्पक्ष हस्तिनापुर का राज्य संभाल रहे हैं, उन्हे कुछ अन्याय दिखाइ ही नही देता. और हस्तिनापुर की प्रजा का दुर्भाग्य देखिये कि किस तरह निजी लडाई के चलते उनको अंधे और बहरों के शासन में रहना पड रहा है. यानि करनी धरणी ताऊ और ताई की...नतीजा भोग रही है प्रजा...कोई रोकने वाला नही ..कोई टोकने वाला नही.

जब शासनाध्यक्ष अंधा हो जाये तब उसकी अर्धांगिनी की ये जिम्मेदारी हो जाती है कि राज्य शासन की बागडोर संभालने में महाराज की सहायता करे. पर विधि का विधान देखिये कि ताऊ के हुक्के वाले जिन्न ने अपने वचनानुसार ताई को भी अंधी और बहरी बना डाला था....... ताई इसी शर्म के बारे कि लोग क्या कहेंगे कि हस्तिनापुर की महारानी अंधी और बहरी है? उसने हमेशा के लिये आंखों पर पट्टी बांध ली. और नतीजा यह हुआ कि राज दरबारियों को जो थोडा बहुत भ्रम था वह भी दूर होगया कि अब उन्हें कौन देखेगा? और अंधे बहरों को अंधे बहरे ही पैदा होने की संभावना होती है सो हस्तिनापुर का दुर्भाग्य देखिये कि राजकुमार दुर्योधन जन्म से ही अंधे और बहरे पैदा हुये.....हाय विधाता...बडा निर्दयी है तू तो...

अब कौन रोकने टोकने वाला है? धीरे धीरे महाराज और महारानी के अंधे बहरे होने की बात हस्तिनापुर के राज दरबारियों और मंत्रियों को लग गई...उन्होने देख लिया कि जब महाराज और महारानी ही अंधे और बहरे हैं तो हमको कौन रोकेगा? जम के लूट लो..शायद अगले जन्म में ये मौका मिले ना मिले. दुर्भाग्य कि इन राज दरबारियों के हाथों हस्तिनापुर के तोतले अनाथों की तरह यूं ही लुटते पिटते रहेंगे...महाराज ताऊ धॄतराष्ट्र के मंत्री संत्री किसी तोतले से डरते नही हैं...किसी की इनक्मटेक्स की जांच करवा देते हैं...किसी की सीडी की जांच...किसी की कुछ .. किसी की कुछ... झूंठे मामलों मे फ़ंसाकर उनका ध्यान मूल मुद्दों से हटाने में माहिर हैं..

(क्रमश:)

तेरी चोटी काट कर तेरे बाप के पास भिजवा दूंगी.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे क्यों बने हुये थे? उत्तर साफ़ है कि हस्तिनापुर जैसे विशाल साम्राज्य का संचालन करने के लिये कई बातों को अनदेखा करना पडता है. द्वापर में महाराज ताऊ अंधे बन कर राज्य चलाते थे. सिर्फ़ संजय की आंखों द्वारा ही देखते थे. जो कुछ संजय ने कह दिया वैसा ही आदेश कर डालते थे.

यूं लोग तो कहते हैं कि महाभारत का युद्ध श्री कॄष्ण की वजह से ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हार गये. पर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र कदाचित इस बात से इतफ़ाक नही रखते. महाभारत का युद्ध हारने के बाद, हार के कारणों पर जो जांच आयोग बैठाया गया था उसकी रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध हारने का कारण श्री कॄष्ण नही थे. युद्ध हारने के लिये स्पष्ट रूप से जांच आयोग ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र द्वारा १०१ पुत्र पैदा करने को कारण माना था. आयोग के निष्कर्ष में यह साफ़ साफ़ और बोल्ड अक्षरों में लिखा गया था कि १०१ पुत्रों को पैदा करने में महाराज ने अपनी ब्रह्मचर्य शक्ति गंवा दी जिसकी वजह से वो कमजोर होगये. हालांकि स्वयं महाराज इस बात पर यकीन नही रखते.


ताई गांधारी, ताऊ महाराज, युवराज दुर्योधन और पीछे युवरानी भानुमति चारा लेकर आते हुये


अभी अभी पिछले सप्ताह यही बात स्पष्ट हो गई जब अन्ना जी महाराज ने, कालू यादव महाराज द्वारा कठोर व्रत उपवास आंदोलन पालन पर आश्चर्य और संदेह, व्यक्त करने के, जवाब में कहा था कि "ब्रह्मचर्य की ताकत को दस बारह बच्चे पैदा करने वाले क्या जाने?

खैर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को तो युगों युगों के लिये हस्तिनापुर का राज्य संभालने के लिये वरदान मिला हुआ है. अब ये द्वापर तो है नही की महाराजी चलती रहेगी और जनता God save the king गाती रहेगी. अब जमाना प्रजातंत्र का है सो महाराज ने भी हस्तिनापुर का शासन संभालने की कला सीख ली है. द्वापर में महाराज अंधे ही थे पर कलयुग में वो अंधे के साथ साथ बहरे भी होगये हैं. मजाल जो किसी तोतले (जनता) की बात पर ध्यान देंवे? वो सिर्फ़ अपने कानून मंत्री की सलाह पर ही चलते हैं.

अबकी बार महाराज ने द्वापर जैसी भूल नही की बल्कि सिर्फ़ एक ही औलाद पैदा की यानि अपनी पूरी शक्ति शासन संभालने के लिये सुरक्षित रख ली और अन्ना जी महाराज द्वारा ब्रह्मचर्य शक्ति क्षीण करने के आरोप से भी बच गये.

एक रोज हमने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के अंदरूनी पारिवारीक जीवन में झांकने की कोशीश की और यह देखकर दंग रह गये कि द्वापर में सिर्फ़ ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे थे और ताई महारानी गांधारी ने पट्टी बांधी हुई थी. पर अब तो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे के साथ साथ बहरे, ताई भी बहरी, और घूंघट से आंखे बंद, ताऊ महाराज का सुपुत्र दुर्योधन, वो भी बहरा और मजे की बात ताऊ महाराज की पुत्र वधु भी बहरी.

हमे आश्चर्य हुआ कि इस प्रकार का राज परिवार है तो शासन किस तरह चलता होगा? पर हमने देखा कि शासन तो बडे आराम से चल रहा है....महाराज ठहरे अंधे बहरे...महारानी और राज परिवार नितांत बहरा...उनके कानों में अपनी मतलब की ही बात पहूंचती है जैसा उनके मन माफ़िक हो. तोतला (जनता) कभी कभी आकर राजमहल के सामने धरना आंदोलन कर जाता है वो अंधे और बहरे होने की वजह से महाराज तक पहुंचता ही नही.

मंत्रिमंडल में किदम्बरम, चपिल चिब्बल, चंबिका कोनी. कनीष किवारी, तनु किंघवी, शुभचिंतक चारा मंत्री कालू कादव, जैसे मूर्धन्य और ज्ञानी लोग भरे पडे थे सो हस्तिना पुर का राज चल रहा था. कभी कभी एक दो तोतले व्यक्ति शासन के खिलाफ़ सत्याग्रह किया करते थे... और जनता को भडकाया करते थे......उनमें से एक कामदेव बाबा को तो चपिल चिब्बल और चंबिका कोनी ने ही निपटा डाला था.... पर ये दूसरा तोतला कुछ भारी पड गया. असल में ताऊ महाराज की कोई गलती नही....वो तो महाराज की क्राईसिस मैनेजमैंट कमेटी ने कन्ना कजारे को भी बाबा कामदेव समझ लिया और यहीं गच्चा हो गया. असल में इस तोतले के पीछे हस्तिनापुर के सारे तोतले एक साथ सडकों पर आ गये... सडक पर, गांव में, गली में..जहां देखो वहीं पर तोतले ही तोतले इकठ्ठे हो गये... सो मजबूरी में ताऊ महाराज को इस तोतले की बाते माननी पडी. महाराज की चिंता को दूर करते हुये उनके सभी सलाहकारों ने प्रस्ताव पारित करके कमेटी के पास भेजा ही इस लिये है कि महाराज की वाहवाही हो जाये और प्रस्ताव लंबे समय तक यूंही पडा रहेगा...तब तक तोतले ठंडे पड जायेंगें.


आपको एक दिन का आंखों देखा हाल ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के राज परिवार का सुनाते हैं, जिससे आपको अंदाज हो जायेगा कि महाराज कैसे शासन चला रहे थे और उनके अंधे बहरे होने का क्या फ़ायदा था.

एक रोज सुबह सुबह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हुक्का गुडगुडा रहे थे कि उनको पुत्र दुर्योधन की आहट सुनाई दी. उन्होने उसे कहा, बेटा दुर्योधन, जरा मेरे लिये चाय तो बनवा ला.

अब दुर्योधन भी ठहरा बहरा, उसने समझा कि तातश्री उसे खेत जोतने का कह रहे होंगे? अब युवराज हैं जो समझ लिया सो समझ लिया, उनसे कोई सवाल तो पूछने से रहा. युवराज की द्वापर में भीम ने गदा मार कर जो जंघाये तोडी थी वो अभी तक ठीक तरह से जुडी नही थी. इसी कारण युवराज थोडा लंगडाते हुये चलते थे. और उसी महाभारत युद्ध में भीम की गदा के कुछ सशक्त प्रहार युवराज दुर्योधन के मुंह पर भी हुये थे जिसके फ़लस्वरूप युवराज का मुंह अभी तक भी बांका टेढा ही रह गया था. इन दिनों युवराज दुर्योधन तातश्री के पूरे आज्ञाकारी थे सो चुपचाप हल कांधे पर रखा और बैलों को हांकते हुये खेतों की तरफ़ निकल पडे.

रास्ते में एक जगह चोराहे पर श्री सतीश सक्सेना खडे थे युवराज दुर्योधन को वहां से गुजरते हुये देखा तो पूछने लगे कि रामलीला मैदान को कौन सी सडक जायेगी?

युवराज तो ठहरे बहरे....उन्होने सतीश सक्सेना के हावभाव से समझा कि ये मुझे बैल बेचने के लिये पूछ रहा है. सो
युवराज दुर्योधन ने नाराज होकर कहा - नही, मुझे बैल नही बेचने हैं.

सक्सेना जी बडे आश्चर्य चकित हुये और बोले - भाई, मुझे बैल नही खरीदने, मुझे तो रामलीला मैदान जाना है अन्ना के अनशन में, उसका रास्ता बता दो.

दुर्योधन ने फ़िर समझा कि ये मुझे बैल बेचने के लिये ज्यादा कीमत देने की बोल रहा है. सो युवराज बोला - तुम जानते नही हो मैं कौन हुं? तुम दो टके के तोतले (जनता) होकर मेरे बैल खरीदोगे? यानि हस्तिनापुए के युवराज के बैल खरीदोगे? और ये कहते हुये वो सतीश सक्सेना को मारने के लिये दौडा जैसे बाबा कामदेव के पीछे दिल्ली पुलिस दौडी थी. अब सतीश सक्सेना भी क्या करते? अन्नागिरी करने घर से निकले थे सो चुपचाप युवराज दुर्योधन को प्रणाम करके शांत किया.

राजपुरूषों का यह खास गुण होता है कि कोई उनके सामने झुक जाये तो उसे कुछ और दें या ना दें पर उसे अभय दान अवश्य दे देते हैं. अब इन राजपुरूषों का ये तोतले क्या बिगाड लेंगे? कर लो, क्या कर लोगे? ये खानदानी अंधे तो थे ही अब प्रजातंत्र ने इनको ५ साल बहरे होने का लाईसेंस भी दे दिया. यानि द्वापर में महाराजी चलती थी सो अंधे बन कर शासन किया करते थे अब कलयुग में प्रजातंत्री चलती है सो बहरे होने की और सुविधा मिल गई.

युवराज दुर्योधन खेत में पहुंचकर हल जोतने लगे. हालांकि खेतों में फ़सल खडी थी उसी पर हल चला दिया क्योंकि तातश्री के आज्ञा कारी पुत्र जो बन गये थे अब कलयुग में. थोडी देर बाद उनके लिये कलेवा यानि ब्रेक फ़ास्ट लेकर युवरानी भानुमति आ गई.

लंच की पोटली सर से उतार कर उसने युवराज को आवाज लगाई. युवराज दुर्योधन बैल छोडकर वहां आ बैठे और लंच लेने लगे. युवराज बोले - भानुमति, प्रिये आज तुम्हारे हाथों से रोटी और सब्जी बडी स्वादिष्ट बनी है और छाछ का तो कहना ही क्या? बस मुक्का प्याज और ले आती तो मजा आ जाता.

अब युवरानी भानुमति भी इस जन्म में बहरी थी. और उसके बहरेपन का कारण कोई राजनैतिक नही था. वो तो द्वापर में किसी भी पचडे में नही थी. बस द्वापर में युवराज दुर्योधन द्वारा अपने प्रति किये गये उपेक्षापूर्ण और रूखे व्यवहार की वजह से बहरी हो गई थी.

भानुमति ने समझा कि ये मेरी लाई हुई रोटी और सब्जी की बुराई कर रहा है. अब युवरानी भी कोई द्वापर वाली सीधी साधी भानुमति नही है, अब वो गांगेय नरेश की सीधी साधी पुत्री ना होकर पक्की हरयाणवी चौधरी की बेटी की तरियां तेज तर्राट है. सो टका सा जवाब दिया - तन्नै खानी हों त खाले नही तो तेरी बेबे को बोल जाके, रोटी सब्जी उसने बनाई है मैने नही. अब दोनों बहरे, अपनी अपनी बके जा रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे अन्ना और उनकी टीम जन लोकपाल बनाने का कह रहे थे और चपिल चिब्बल और चंबिका ने अपनी मर्जी का सरकारी लोकपाल का मसौदा बना दिया था.

युवराज तो खा पीकर थोडी देर वहीं लेट कर सो गये, फ़िर उठकर राजमहल में चले गये. और जाकर तातश्री और माताश्री के पास बैठ गये. युवरानी भानु ने भैंसों के लिये चारा काटा और उस गठ्ठर को लेकर घर लौट चली.

भानुमति ने घर पहुंचकर ताई गांधारी को सुनाते हुये ऊंचे स्वर में कहा - ए बुढिया, टिक्कड ढंग से बनाया कर, तेरा छोरा खाने में घणै नखरे करता है और इब मेरे तैं उसके नखरे नही उठाये जाते हैं. यो द्वापर कोनी जो मैं चुपचाप सुण ल्यूंगी...इब परजातंतर है...समझ लिये...

ताई भी बहरी थी सो उसने समझा कि मैं जो गहने और नया घाघरा लुगडी पहने बैठी हूं, इसकी वजह से ये मुझे कुछ जली कटी सुना रही है सो तुरंत बोली - ये गहने जेवर तेरे बाप के यहां से आये हुये नही है, ये तो मुझे मेरे मायके गांधार से मिले हुये हैं... और यो लुगडा तो मेरा भाई शकुनी परसों राखी बंधाई म्ह दे के गया है.... ज्यादा जबान चलायेगी तो तेरी चोटी काट कर तेरे बाप के पास भिजवा दूंगी.

हे भगवान, ये क्या होगया है ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और उनके कुणबे को? इतने बडे हस्तिनापुर राज्य को क्या अंधा और बहरा होकर चलाया जा सकता है? उस तोतली जनता की आवाज बिना लठ्ठ खाये महाराज के कानों में कभी पहूंचेगी भी? क्या होगा उस प्रस्ताव का जो, स्टेंडिंग कमेटी के पास गया है? क्या ये अंधे बहरों का राज परिवार और मंत्रिमंडल उसे पास करके तोतलों (जनता) की बात सुनेगा या उसे ठंडे बस्ते में पटक कर यूं ही मजे मारता रहेगा?

ताऊ की यादों में : डाक्टर अमर कुमार

ऐसा कोई दिन नही जाता जब मुझे समीर जी की कोई मेल ना मिलती हो. कभी कभी सिर्फ़ दो शब्द, ना कोई औपचारिकता ना कोई लाग लपेट, अक्सर मैं भी ऐसी ही मेल करता हूं, वैसे ही जवाब भी. शायद दोनों तरफ़ से आदत सी हो गई है कि दिन भर में दो चार मेल इस तरह की हो ही जाती है. अन्य मेल चेक करते समय समीर जी की मेल कभी भी बीच में टपक सकती है. उस दिन भी अचानक एक मेल प्रकट हुई....मैने चेक किया यह सोचकर कि दो शब्द ही तो होंगे....पर जो पढा, वो पढना पूरी जिंदगी का सफ़र था....मेल में लिखा था ताऊ, अभी अति दुखद समाचार मिला कि डॉ अमर कुमार नहीं रहे. समीर

एक पल में वो इंसान निस्पॄह भाव से विदा हो गया जो मेरे लिये गुरू और गुरू भी कबीर की श्रेणी का था, कबीर का शिष्य होना सहज नही है, क्योंकि कबीर ने अपने शिष्यों से बिना लठ्ठ उठाये कभी बात ही नही की.

मेरे भौतिक एवम आध्यात्मिक जीवन में कबीर मेरे आदर्श रहे हैं, और यहां ब्लाग जगत में भी साक्षात कबीर मिल गये. डाक्टर साहब में पूरी क्षमता से कबीर हो जाने की क्षमता थी. वही मस्तमौला फ़क्कड स्वभाव, खरी खरी कहने की क्षमता, ना कोई अपना, ना पराया. सारा जग अपना. हंसता खिलखिलाता स्वभाव...मजाक करने की आदत....जोक्स के मेसेज करना....यानि अपनी संपूर्ण क्षमता से कबीर. निर्मल सादगी लिये......

जैसा कि सभी जानते और मानते भी हैं कि हिंदी ब्लाग जगत में सबके अपने अपने मठ हैं, कमेंट्स का लेन देन भी अपने अपने मठ की सीमाओं में ही होता है वहीं पर डाक्टर अमर कुमार जी का ना कोई मठ था ना कोई सीमाएं थी. जिस तरह कबीर हाथ में लठ्ठ लिये सच कहने के लिये प्रसिद्ध थे उसी तरह डाक्टर साहब ने कभी भी ये नही देखा कि वो किस की पोस्ट पर कमेंट कर रहे हैं? उनके लिये सिर्फ़ पोस्ट का कंटेंट ही अहम था. और इसी का फ़ल है कि उनकी यत्र तत्र सर्वत्र फ़ैली हुई टिप्पणियां आज दिखाई देती हैं.

डाक्टर अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुये मैं उनसे जुडी हुई यादों को यहां क्रम बद्ध पोस्टों में लिखने का प्रयास कर रहा हुं.



मुझे याद आ रही है उस टेलीफ़ोन काल की, जो मेरा उनका प्रथम टेलिफ़ोनिक संवाद था. शायद वो रविवार का दिन था...छुट्टी का दिन...समय तकरीबन दोपहर बाद ...तीन बजे के आसपास का....

लंच के बाद साप्ताहिक नींद पूरी करने का समय.....नींद की खुमारी आना शुरू हो चुकी थी.

अचानक फ़ोन की घंटी बजी.....इच्छा हुई कि फ़ोन काट दूं.....फ़िर पता नही क्या हुआ कि फ़ोन उठा लिया.

हैल्लो ...हां जी कौन बोल रहे हैं?

उधर से अंजानी सी आवाज आई... कौन बोल रहे हैं?

मैने कहा - फ़ोन आपने लगाया है...फ़िर आपको मालूम होगा कि आपने किसको लगाया है? बोलिये क्या काम है?

उधर से आवाज आई - जनाब मैं धार (इंदौर के पास का एक शहर) पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर बोल रहा हूं.

अब पुलिस इंस्पेक्टर का नाम सुन कर तो अच्छे अच्छे हेकडी भूल जाते हैं फ़िर ताऊ क्या चीज है? हमने कहा - आदेश किजिये सर.

उधर से आवाज आई - आदेश का क्या काम? आपके नाम का गिरफ़्तारी वारंट है मेरे पास....

अब हम जो आराम से पलंग पर पसरे थे, तुरंत अटेंशन की मुद्रा में बैठ गये और बोले - सर आपको कोई गलतफ़हमी हुई है...मेरे नाम से गिरफ़तारी वारंट का क्या काम? जरूर आपसे कोई भूल हुई है....

उधर से आवाज आई - आपका नाम .....(ताऊ नही कहकर हमारा असली नाम पुकारा) है?

मैने कहा - हां हुजूर, नाम तो ये मेरा ही है.

आपका फ़ोन नंबर ****3654** है?

मैने कहा - जी नंबर तो यही है.

हां तो फ़िर आपके खिलाफ़ मेरे पास नान बेलेबल वारंट है....

अब इतने वार्तालाप के पश्चात ये तो समझ आ गया कि आदमी ये इंटरेस्टिंग है....पर पुलिस का क्या काम? फ़िर जिस नंबर से फ़ोन आया था उसे देखा तो यह पक्का होगया कि ये नंबर मध्य प्रदेश का तो नही है... और ये फ़ोन करने वाला आदमी बहुत ही नजदीक का परिचित है, पर आवाज सुनी हुई नही लग रही है. अंतत: हमने कहा कि आपके पास जब नान बेलेबल वारंट ही है तो आकर गिरफ़्तार कर लिजिये....

बस हमारे इतना कहते ही उधर से हंसते हुये आवाज आई - ओये ताऊ, तेरे को कितने दिन से ढूंढ रहा था तू आज पकड में आया.....

ये शब्द सुनते ही अनायास मेरे मुंह से निकला - अरे गुरू जी प्रणाम.... धन्य भाग जो आज आपसे बात हो रही है....

फ़िर उधर से आवाज आई - कौन गुरूजी? किसका गुरू जी?

मैने कहा - डाक्टर साहब अब हम भी ऐंवई ताऊ नही हैं, आप डाक्टर अमर कुमार जी हैं....

उधर से आवाज आई - वाह ताऊ वाह.... तेरे से यही उम्मीद थी, मान गया तेरे को......

इसके बाद करीब डेढ घंटे बात हुई. घर परिवार की... बच्चों की...कलकता में रहने वाले उन परिचितों की जो बातों बातों में उनके और मेरे दोनों के परिचय में निकल आये....तमाम दुनियां जहान की बातों मे कब इतना समय बीत गया पता ही नही चला.....

(शेष अगले भागों में)

ये ताऊ गिरी है या अन्ना गिरी?

आजकल पूरे देश में अन्ना गिरी चल रही है या कहें कि पूरा भारत अन्ना मय हो गया है. अन्ना की सारी कोशीशें सरकारी भ्रष्टाचार से जनता को राहत दिलाने की हैं पर एक तरफ़ निजी कंपनियां भी ग्राहकों को परेशान करने और उनका शोषण करने में पीछे नही हैं. ऐसी ही एक कंपनी से ताऊ भी तंग आ गया और आखिर अपनी ताऊ गिरी दिखा ही दी.

ताऊ को टेलीफ़ोन का अनाप शनाप बिल मिला और परेशान सा कल दोपहर ताऊ एयरटेल टेलीफ़ोन कंपनी के आफ़िस में पहुंचा . वहां उसने अपनी समस्या के बारे में बातचीत करनी चाही परंतु जैसा कि इस कंपनी का रवैया है, ताऊ को टरकाने के चक्कर में हीले हवाले देने लगे.

ताउ ने अपनी समस्या के हल के लिये बहुत मिन्नते की पर कंपनी के कर्मचारियों ने ताऊ को बेवकूफ़ समझते हुये कोई भाव नही दिया और वहां का कर्मचारी बोला - आप बाद में आना अभी सरवर डाऊन है.

अब ताऊ को क्या पता कि सरवर का अप और डाऊन क्या होता है? ताऊ परेशान तो था ही, यह सुनकर उसको और जोरदार गुस्सा आगया और उसका हाथ सीधा अपने लठ्ठ पर गया. परंतु आजकल अन्ना के प्रभाव से ताऊ का भी थोडा हॄदय परिवर्तन हो चुका है सो ताऊ बडी शांति से अपने गुस्से पर काबू रखते हुये वहां से बाहर निकल आया, दो मिनट अन्ना का स्मरण किया और फ़िर उसने कंपनी के आफ़िस का शटर नीचे गिरा कर उस पर बाहर से ताला लगा दिया और सीधे अपने घर आगया.

अंदर बैठे कर्मचारी जो अब तक ताऊ के मजे ले रहे थे, वो अब घबरा गये. शटर ठोंकने लगे, पर ताऊ तो ताले की चाबी जेब में डालकर अपने घर जा चुका था सो थक हार कर कंपनी के कर्मचारियों ने पुलिस को मदद के लिये फ़ोन किया, बडी देर बाद पुलिस ने आकर बाहर से ताला तोडकर कर्मचारियों को बाहर निकाला.

मजे की बात यह कि टेलीफ़ोन कंपनी वाले ताऊ के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखाने को भी तैयार नही हुये. मैनेजर ने पुलिस को कहा कि - आप तो जाईये, यह हमारे और ताऊ के बीच आपस का मामला है, हम स्वयं निपट लेंगे.

ताऊ ने अच्छा किया? या बुरा किया? आपकी क्या राय है?



यह पूरी खबर पढने के लिये इमेज पर चटका लगाकर पढ लिजिये.

अगर लामप्याले और मिस समीला टेढी के कहने पर चले तो....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र राजमहल के तलघर में बने अपने गुप्त कक्ष में चिंता मग्न बैठे हुये हैं. पास ही मिस समीरा टेढी गमजदा बैठी हुई है. दोनों के चेहरे पिटे हुये से लग रहे हैं. जब से वो तोतला व्यक्ति राजमहल के बाहर से ऊलजलूल बक कर गया है, तब से ही ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र मानसिक रूप से अस्थिर से हो गये हैं. पिछले दो दिनों के ताजा हालात जानकर महाराज और भी चिंतित हो गये हैं. वैसे ताऊ महाराज कर भी क्या सकते हैं? शायद वो तो महाभारत काल में भी नाम के महाराज थे और आज भी कोई फ़र्क नही हैं. महाराज ताऊ की रोनी सूरत से अच्छे अच्छे धोखा खा जाते हैं.

चिंता मग्न ताऊ महाराज, बेशर्म रामप्यारे एवम गमजदा मिस समीरा टेढी


हमेशा अपने बडे बडे दांत फ़ाडने वाला, लंबे कानों को इतराकर हमेशा ऊंचे रखने वाला और आंखों को ऊंची नीची नचा कर बात करने वाला रामप्यारे भी अपनी गर्दन झुकाये झेंपते हुये खंबे की आड में बैठ गया है, पूरे माहोल में एक सन्नाटा सा छाया हुआ है.

मिस टेढी और रामप्यारे को ये अंदाज तक नही था कि बाजी इस तरह हाथ से फ़िसल जायेगी? ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र महाभारत काल में युद्ध हारने के बाद का समय याद करके अपने अंतर्मन में हिल उठे थे. महाराज को अभी यहां का राजकाज संभाले हुये कुछ ही समय तो हुआ था... अब वो रामप्यारे और मिस समीरा टेढी के मजबूत कंधों पर राजकाज का बोझ डालकर चैन की बंशी बजाने लगे थे वर्ना तो महाराज का जीवन हमेशा ही झंझावातों से घिरा हुआ ही रहा है.

रामप्यारे ने महाराज को गमगीन देखकर बोलना शुरू किया : हे हस्तिनापुर सम्राट , ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र आपकी जय हो! महाराज आप चिंता क्यों करते हैं? अभी भी बाजी हाथ से नही गई है. मेरे रहते आप चिंता ना करें, आप मुझ पर यकीन करें, मेरे कानून ज्ञान का भरोसा करें....मैं इस संकट से आपको निकाल ही लूंगा....आप थोडा धैर्य धरिये.....

रामप्यारे को बीच में ही टोकते हुये मिस समीरा टेढी बोली - रामप्यारे जी, आप का कानून भगवान जाने कब काम आयेगा? आपने ही मुझे भी उलटी सीधी पट्टी पढाकर अपने साथ सवाल जवाब में बिठा लिया, और मैं भी कर्मजली..जनमजली आपकी बातों में आकर जनता से उल्टा सीधा कह बैठी...आपको पता है सारे हस्तिनापुर की जनता सडकों पर उतर आयी है...जनता को अब रोकपाल बिल से कम कुछ भी मंजूर नही है. और आप अब भी कानून की दुहाई दे रहे हैं..?

रामप्यारे ने मिस टेढी की बातें सुनकर अपनी गर्दन फ़र्श में घुसेड ली और अपने खुरों से फ़र्श को कुरेदने लगा.....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र कुछ बोलना ही चाहते थे कि इतने में ही राजमहल के बाहर से उसी तोतले व्यक्ति की जोर जोर से आवाज आने लगी....वो बोले जा रहा था....अले ताऊ महालाज...तुम कुछ तो शलम कलो...तुम्हारी राज करने की ख्वाहिश ने महाभारत तलवा डाला था जबकि तुम जानते हो कि तुममें हस्तिनापुर के महाराज बनने की औकात नही थी और अब भी तुम्हारी इसी राज करने की इच्छा ने सारे हस्तिनापुर की जनता का जीवन नर्क बना डाला है....ताऊ महालाज अब भी सुधल जावो और जनता के हक जनता को सौंप दो...अगर लामप्याले और मिस समीला टेढी के कहने पर चले तो इनका तो कुछ नही बिगडेगा...हस्तिनापुर के महाराज होने नाते अब भी इतिहास तुमको माफ़ नही तलेगा.

तोतले की बात सुनकर रामप्यारे और मिस समीरा टेढी का चेहरा तमतमा गया अगर उनका बस चलता तो उस तोतले की अभी अर्थी उठवा देते और ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अब तक तो बुढ्ढे और अंधे होने का नाटक करते आये थे अब शायद बहरे होने का भी नाटक करने लगे? इतनी झन्नाटेदार आवाजे, जो पूरे हस्तिनापुर में गूंज रही हैं, वो उन्हें सुनाई क्यों नही देती? शायद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे के साथ साथ सच में ही बहरे भी होगये हैं.....

अंधे ताऊ महालाज धॄतराष्ट्र....तानून मंत्री लामप्याले...और मिस समीला टेढी...?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अपने राजमहल में अपने राज्य के नियम निर्माण मंत्री रामप्यारे और अपनी खास सलाहकार मिस समीरा टेढी के साथ गंभीर चिंतन की मुद्रा में बैठे हैं.

ताऊ महाराज : रामप्यारे, ये क्या हो रहा है? हम तो सीधे साधे स्पष्ट रूप से अंधे महाराज हैं जो इस हस्तिनापुर राज्य की बागडोर मजबूरी में ढो रहे हैं. तुम जानते हो कि हम इस राज्य के असली हकदार नही है, बल्कि हम किसी दूसरे की प्रतिक्षा में इस हस्तिनापुर के महाराज बने हुये हैं. आखिर हम कब तक प्रतिक्षा करें?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, अपने नियम-निर्माण प्रमुख रामप्यारे
एवम आल-इन-वन मंत्री मिस समीरा टेढी के साथ मंत्रणा करते हुये


हमेशा की तरह अपने बडे बडे दांत दिखाता हुआ रामप्यारे बोला : ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, मेरे रहते आप क्यूं चिंता करते हैं? मैं हूं ना आपका नियम निर्माण मंत्री, सबको कुछ नियम कानून के पेंच निकालते हुये निपटा दूंगा.

ताऊ महाराज बोले : पर रामप्यारे, अब तो ये कन्ना कजारे जैसे लोग सीधे मुझे ही ललकारने लगे हैं? अनशन की धमकी देने लगे हैं और तो और ८० साल का बुढ्ढा कहकर मेरी औकात तक बताने की हिम्मत कर रहे हैं... ये कोई अच्छी बात है क्या? जब मैने आंख और कान बंद करके तुमको और समीरा जी को सारे हस्तिनापुर की अप्रत्य्क्ष जिम्मेदारी सौंप रखी है तो ये सीधे मुझे पत्र क्यों लिख रहे हैं? क्या वो जानते नही कि हम मजबूर और अंधे महाराज हैं?

रामप्यारे बोला : महाराज आप व्यर्थ चिंतित हो रहे हैं...राजकाज थोडी सख्ती से चलाना पडता है. कोई भी ऐरा गैरा आयेगा और वो कहेगा कि ऐसा ऐसा कानून बनाओ...तो क्या हम बना देंगे? बोलिये...

ताऊ महाराज : बात तो तुम्हारी सही है पर ना जाने हमें एक अज्ञात सा भय सता रहा है...हमें कुछ अनहोनी सी दिखाई देने लगी है. हम पत्र का जवाब क्या दें?

रामप्यारे : महाराज आप कि छवि तो एक दम साफ़ और इमानदार महाराज की है और आप स्वयं झूंठ बोल रहे हैं..जब आपकी आंखे ही नही हैं आप अंधे हैं तो आपको अनहोनी दिखाई कैसे देने लग गई? महाराज आप तो साफ़ कह दिजिये कि इन छोटे मोटे कामों के लिये हमारे राज्य के पुलिस प्रधान से बात करें...मुझे इतने बडे राज्य की जिम्मेदारी उठानी पडती हैं....इन कामों के लिये मुझे फ़ुरसत नही है.

ताऊ महाराज : वाह रामप्यारे वाह, ये तुमने सही कहा, तुम वाकई हमारे नियम निर्माण मंत्री बनने के सर्वथा काबिल हो.

इसी बीच काफ़ी देर से चुपचाप बैठी हुई मिस समीरा टेढी बोली : ताऊ महाराज, मैं रामप्यारे जी की बात से बिल्कुल सहमत हूं. और मैं चाहती हुं कि अब मैं और रामप्यारे जी बाहर जाकर जनता को आपकी और कानून की राय से अवगत करा दें.

राजमहल के बाहर जनता हुजूम बनाकर कुछ जानने को आतुर खडी थी. बाहर निकल कर मिस समीरा टेढी ने बोलना शुरू किया :- प्यारी जनता जनार्दन, आप ही फ़ैसला करें कि ये मुठ्ठी भर लोग, आपके प्यारे और आदरणीय ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को बुढ्ढा कहने लगे हैं और सरकार के कामकाज में बाधा डालने की कोशीश में लगे हैं. आप जानते हैं कि आपके महाराज ताऊ एक नेक इमानदार और सर्वप्रिय सम्राट हैं. अब महाराज हर ऐरे गैरे से तो बात नही कर सकते ....अगर कोई कानून वानून बनाने की जरूरत है भी तो महाराज और उनकी मंत्री परिषद बनायेगी...जनता को कानून बनाने से क्या लेना देना?

जनता में से एक आवाज आई....पर जनता की जरूरत के हिसाब से रोकपाल कानून बनने चाहिये...

उस व्यक्ति को डपटते हुये मिस टेढी ने बोलना शुरू किया - अच्छा तो अब तुम कानून बनाना सिखाओगे हमें? अरे मूर्ख...जनता, कानून तो हमारे कानून के ज्ञानी रामप्यारे जी बनावायेंगे...और जो रोकपाल बिल जनता के हक में है वो वाला रोकपाल कानून रामप्यारे जी ने बनाकर महाराज और मंत्री परिषद के सदस्यों के सामने पटक दिया है.

इसी बीच रामप्यारे जी बोले - प्यारी जनता, आप चिंता मत करिये और इन बेफ़ालतू लोगों के बहकावे में मत आईये, आपको इनसे कुछ मिलने वाला नही है.....और ये कन्ना कजारे और करविंद बेजरीवाल जैसे लोग टीवी कैमरों की नजर में आकर अपनी पहचान बनाने की कोशीश कर रहे हैं, इसके अलावा कुछ नही. आप भ्रमित ना हों और अपना विश्वास और भरोसा ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और उनकी मंत्री परिषद में बनाये रखिये.

इस के बाद मिस समीरा टेढी बोली :- और आप लोग एक बात अच्छी तरह समझ लिजिये कि हमारे कानून के अनुसार अगर किसी ने हमारे महाराज ताऊ को बुढ्ढा कहा या अनशन करने की कोशीश भी की तो उनपर कानून के मुताबिक ब्लाग पुलिस की कठोर कार्यवाही की जायेगी. अब आप चुपचाप अपने अपने घर निकल लो और कानून को अपना काम करने दो.

जनता में से एक तोतला बोलने वाला व्यक्ति उठ कर जोर से चिल्लाकर पूछने लगा : अले तोई मुझे ये तो बताओ कि इस हस्तिनापुर राज्य को चला तौन रहा है? अंधे ताऊ महालाज धॄतराष्ट्र....तानून मंत्री लामप्याले...या मिस समीला टेढी...? इस राज्य का तोई मालिक भी है या सब अपने अपने तलीके से जनता का खून चूसते लहोगे?

इस तोतले की बात पर मुंह बिचकाते हुये रामप्यारे और मिस समीरा टेढी अंदर राजमहल में जाकर महाराज को सब जानकारी देने लगे. और रामप्यारे ने महाराज ताऊ को आश्वस्त किया कि वो चैन से सोयें, कल सुबह तक मैं कानून के दायरे में सबको अंदर जेल में डलवा दूंगा...आपका कहीं नाम भी नही आयेगा...सब कुछ सरकारी कानूनों के अंतर्गत होगा....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र : पर क्या ऐसा हो पायेगा कि सब कुछ कानून के अंतर्गत निपट जायेगा?

रामप्यारे बोला - अरे महाराज, आप मुझे जानते नही हैं क्या? अभी थोडे समय पहले मैने और समीरा जी ने काका कामदेव का क्या हाल किया था? आप बेफ़िक्र हो जाईये...

इस पर महाराज ताऊ धृतराष्ट्र अंधे होने के बावजूद भी आसमान में देखते हुये कल के बारे में सोचते नजर आये.



ये है ताऊ के जीवन का असली राज

ताऊ आज भी कुछेक लोगों के लिये रहस्य ही बना हुआ है. ताऊ कौन है? क्या है उसका नाम गाम, पता? शायद कुछ लोग जानते हैं और कुछ जो सब कुछ जानने का दावा करते हैं वो कुछ भी नही जानते. अक्सर लोग यह भी जानना चाहते हैं कि ताऊ, तुम ताऊ कैसे बने? ताऊ जवाब देता हैं कि भाई हमारे जीवन में जब से ताई का आगमन हुआ है उसके बाद ही हम ताऊ बने वर्ना आदमी बडे काम के थे. लोग इस जवाब को उटपटांग सा मानते हैं और समझते हैं कि ताऊ का दिमाग सटका हुआ है. लोगों की रामप्यारी के बारे में भी जिज्ञासा रहती है कि ये क्या वाकई बिल्ली है? कहां से आई...इत्यादि इत्यादि...?

आज हम सब बातों का खुलासा कर ही देते हैं, पर इसके लिये आपको थोडा पीछे चलना होगा. बात उन दिनों की है जब बाबा ताऊआनंद, गुरू समीरानंद के साथ मां नर्मदा के तट पर स्थित अपने बंदरकूदनी योगाश्रम में बैठकर ब्लाग तपस्या किया करते थे.

बंदरकूदनी आश्रम में तपस्या करते हुये गुरू चेले


दोनों गुरू चेले ऐसी ब्रहम चर्चा किया करते थे जैसे ब्लाग मठाधीष अपने चेले चपाटों से किया करते हैं कि कैसे कहां टिप्पणी करना है? किसको टिप्पणी नही देना है, कब कहां किसकी टांग खींचना है? किसकी खटिया के नीचे आग लगाना है? कहां पर मामा मारीच को भेजना है?, कहां पर सुर्पणखां की ड्यूटी लगानी है? कहां ब्लाग सम्मेलन करवाना है? और उस सम्मेलन में किसको बुलाना है? किसको किराया भत्ता देना है? किसको खो करना है? खो करना....मतलब किसको आने से रोक देना है, किसका स्ट्रिंग आपरेशन करवाना है.....किसकी चर्चा में ऐसी तैसी करनी है? इस प्रकार उच्च्कोटि की ब्लाग ब्रह्म साधना दोनों गुरू चेले किया करते थे और सदैव इस शाश्त्र चर्चा में लीन रहा करते थे. गुरू ने एक महा ग्रंथ भी इस विषय में अपने हाथ से लिख रखा था.

समय ऐसे ही गुजरता जा रहा था कि एक दिन अकस्मात गुरू समीरानंद बोले - वत्स ताऊनाथ, हम और अधिक ज्ञान प्राप्ति और घनघोर तपस्या के लिये इसी समय पाताल लोक प्रस्थान करना चाहते हैं.

चेला ताऊनाथ बोला - गुरूदेव हम भी आपके साथ ही चलूंगा.

गुरू समीरानंद बोले - वत्स, मूर्खता मत करो, यहां बंदरकूदनी पर हमने अपना मठ बडी मुश्किल से खडा किया है, तुम यहां इसकी देखभाल करो, हम कनाडे (पाताल लोक) जाकर वहां एक नया मठ खडा करेंगे, हमने सुना है वहां डालर बरसते हैं.....हम समय आने पर वापस यहीं बंदरकूदनी आश्रम पर लौटेंगे. अब ये बंदरकूदनी आश्रम तुम्हारे हवाले करके हम कनाडे के लिये प्रस्थान करते हैं और महा ग्रंथ शाश्त्र का पूरा ध्यान रखना, ये शाश्त्र बडा कीमती है, कहीं खराब ना हो जाये. और गुरू समीरानंद वहां से रवाना होगये.

इसके बाद बाबा ताऊनाथ बंदरकूदनी आश्रम के मठाधीष बनकर ब्लाग ब्रह्मचर्चा की बीन बजाने लगे. एक दिन बाबा ताऊनंद ने देखा कि कुछ चूहे आश्रम में घुस आये हैं और शाश्त्र की पवित्र किताब को कुतर गये हैं. अब बाबा ताऊनाथ का ध्यान ब्लाग ब्रह्म चर्चा में कम और शाश्त्र की देखभाल में ज्यादा लगने लगा.

आखिर एक दिन आश्रम के परम भक्त सतीश सक्सेना ने सलाह दी की ताऊ महाराज, आप एक बिल्ली पाल लिजिये, वो चूहे खा जायेगी और आपको शाश्त्र की चिंता नही करनी पडेगी, आप आराम से ब्लाग ब्रह्म चर्चा में लीन रह सकेंगे. और उन्होने ताऊ को एक बिल्ली भेंट कर दी, जिसे आप रामप्यारी के नाम से जानते हैं.

यहां तक भी ठीक था, पर अब रामप्यारी के लिये दूध की जरूरत पडने लगी, महाराज ताऊ और भी परेशान रहने लगे, तभी आश्रम के महा परम भक्त डाक्टर टी.सी. दराल ने सलाह दे डाली - अरे बाबा ताऊ महाराज, इसमै कुण सी बडी बात सै? नु करो कि रामप्यारी के लिये एक झौठडी (भैंस) आश्रम में बांध लो, बस रामप्यारी हमेशा दूध पिया करेगी और चूहों से महा ग्रंथ शाश्त्र की रखवाली करती रहेगी, बाबा ताऊनाथ को ये फ़ड्डा बहुत पसंद आया. दराल साहब ने आश्रम में एक ताजा ब्याई हुयी झौठडी काटडे के साथ में भिजवादी.

अभी तक तो शाश्त्र, चूहे और रामप्यारी की ही चिंता करनी पडती थी अब नई मुसीबत खडी हो गई...झौठडी को भी चारा पानी देने की जिम्मेदारी बढ गई....साथ में काटडा भी परेशान करने लगा...ताऊ महाराज परेशान....परेशान बैठे थे कि इतनी ही देर मे आश्रम के परम भक्त राज भाटिया पधारे.

बाबा ताऊ महाराज ने सारी समस्या बतायी. भाटिया जी बोले - महाराज ताऊ श्री मेरे पास एक बिल्कुल शानदार आईडिया है. आप उस आईडिये पर चलो, फ़िर देखो कि सब काम कैसे अपने आप हो जायेंगे, आपको ना रामप्यारी को दूध देना पडेगा और ना झौठडी और काटडे को संभालने का झंझट करना पडेगा, सब काम अपने आप हो जायेंगे.

बाबा ताऊ आनंद बोले - हे भक्त अब जल्दी से वो आईडिया बतावो, हम बहुत परेशान हैं. ईश्वर तुम्हारा कल्याण करेगा...

राज भाटिया बोले - महाराज ताऊ, आप एक काम करिये शादी कर लिजिये, शादी करते ही सब काम काज घर वाली करेगी और आप नित्य ब्लाग ब्रह्म शाश्त्र की चर्चा, टिप्पणी करते रहियेगा. और मैने एक बढिया लडकी देख रखी है उससे आपकी शादी करवाने का जिम्मा मेरा.

राज भाटिया की ये बात महाराज ताऊनाथ को अति प्रिय लगी और इस तरह शादी के बाद ताई का आगमन हो गया. शादी के समय राज भाटिया ने चार मेड इन जर्मन लठ्ठ ताई को भेंट स्वरूप दे दिये.

अब कहां का महा ग्रंथ शाश्त्र और कहां की चर्चा.... बाबा ताऊ आनंद सब कुछ भूल भाल गये और दुनिया दारी में समा गये.

कुछ समय बाद गुरू समीरानंद बंदरकूदनी आश्रम पधारे तो वहां आश्रम की जगह घर गॄहस्थी बसी हुई थी और ताऊ के सर पर ताई दे दनादन लठ्ठ मार रही थी. ताऊ आगे..आगे और ताई लठ्ठ लिये पीछे...पीछे भागी जा रही थी. गुरू समीरा नंद ने चेले ताऊ की और देख कर इशारे से पूछा कि ये क्या हो रहा है?

ताऊ महाराज बोले - गुरू देव यह सब तुम्हारे शाश्त्र की देखभाल की वजह से हुआ है और इन परम भक्तों यानि सतीश सक्सेना, डाक्टर दराल और राज भाटिया की बातों में आकर ही मैं इस दुर्गति तक पहूंचा हूं.

गुरू समीरानंद बोले - ताऊ चिंता मत कर, मैं भी पाताल लोक जाकर इस में फ़ंस गया हूं. खैर.... एक से भले दो ....अब बाबागिरी अगले जन्म में करेंगे, इस जन्म में तो ब्लागरी से ही काम चलाना पडेगा..

(क्रमश:)

क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?

परसों भरी दोपहर की बात
अकस्मात कनाट प्लेस पर
एक क्युट सी छोरी ने ताऊ को रोका
ताऊ को पहचानने मे हो गया धोखा !
ताऊ-सुलभ लज्जा से नजर झुकाए
ताऊ वहां से चुपचाप गुजर गये

बस इत्ती सी बात पर
उस क्यूटनी के बाल
मारे गुस्से के बिखर गये

क्यूटनी पहले तो जोर जोर से चीखी
फ़िर बिफ़र कर चिल्लाने लगी-
आसपास के जवान लोगो, जल्दी आवो
इस शरीफ़जादे ताऊ से मुझको बचाओ

मैं पलकों मे अवध की शाम
होठों पर बनारस की सुबह
जुल्फ़ों मे शबे-मालवा
और चेहरे पर बंगाल का जादू रखती हूं
फ़िर भी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?

ताऊ बोल्यो अरे छोरी
जो तू समझ री सै वा बात कोनी
मैं तो जन्म को आंधलो धृतराष्ट सूं
तू मन्नै दीखी कोनी

क्यूटनी सी वा छोरी बोली
रे ताऊ तू आंधला बणकै
झूंठ बोलकै
घणै मजे ले रया सै
यदि तू सच म्ह ही आंधला सै
तो रिश्वत के नोटों की गड्डियां
किस तरियां गिणरया सै?

ताऊ बोल्यो रे छोरी
बात तो तू सांची कहवै सै
पर रिश्वत के नोट गिणकर
उनको स्विस बैंकों म्ह जमा करवाकर
मन्नै आनंद घणा आवै सै

रे बावली छोरी सुण
मन्नै तेरी अवध की शाम,
बनारस की सुबह,
शबे-मालवो
और बंगाल को जादू
रिश्वत का नोटां कै सामणै
बेकार नजर आवै सैं

और बावली छोरी जरा सोच
तेरे मेरे बीच
किम्मै उंच नीच हो जाती
तो ताई लठ्ठ लेकै
के थारै बाप के पास जाती ?

और सबसे बडी बात भी सुणले
मैं आंधलो धॄतराष्ट्र कोनी
या पोल भी तो खुल जाती

ब्लाग संसद में सवाल और ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज के जवाब

ब्लाग संसद के चुनाव हो गये और ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की अगुवाई में सरकार नें जनहित में काम काज शुरू कर दिया. अब सरकार कितने ही जनहित के काम करे पर विपक्ष का काम होता है सिर्फ़ विरोध के लिये विरोध करना. इसका मतलब यह नही है कि विरोधी कुछ घाटे में रहता है या उनके काम नही होते. मलाई और रस दोनों ही खींचते हैं. पर जनता को यह तसल्ली रहे कि कोई उनकी तरफ़ से भी ब्लाग संसद में आवाज उठा रहा है, सिर्फ़ इसलिये ब्लाग संसद में नौटंकी करनी पडती है, बाकी तो वही होता है जो मंजूरे ताऊ होता है.

पिछले दिनों ऐसे ही ब्लाग संसद में विरोधी सदस्य, “ ब्लाग महंगाई और गरीब ब्लाग जनता को टिप्पणियों की कमी के सवाल पर” कुछ ज्यादा ही जोश में आ कर शोरगुल और नारेबाजी करने लगे थे जिनको ब्लाग अध्यक्षा मिस समीरा टेढी ने बडी मुश्किल से अंगुली उठा उठा कर चुप कराया था.

शोरगुल करते सदस्यों को चुप कराती अध्यक्ष महोदया


और अंतत: इस मामले का पटाक्षेप तब हुआ था जब ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज ने विरोधियों को याद दिलाया कि – भाईयों ये मत भूलो, हम सब एक ही हमाम में नहा रहे हैं, अब क्या फ़र्क पडता है कि चड्डी पहने या नंगे होकर नहाये, कम से कम नाटक तो कपडे पहनकर नहाने का करो, हमाम के बाहर भले ही जमकर नंगाई करते रहो.

अचानक सभी ब्लाग संसद के सदस्य आदरपूर्वक खडे होगये, मालूम पडा कि स्वयंभू ब्लाग संसद अध्यक्षा मिस समीरा टेढी ब्लाग संसद में पधार चुकी हैं और आसन ग्रहण कर रही हैं. आसन ग्रहण करते ही उन्होने हथौडा उठाया और उसे टेबल पर ठौकते हुये आज की ब्लाग संसद में सवाल जवाब का सिलसिला शुरू करने का आर्डर दे दिया.

सवाल नंबर १ :-

Blogger ajit gupta said...

    उस गड्ढे में से कितने गुणा होकर नए नेता उगे? ये कम नहीं होने के हैं।

जवाब ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज द्वारा :-

माननिया स्वयंभू अध्यक्ष महोदया समीरा जी, माननिया सदस्या द्वारा पूछे गये प्रश्न का जवाब बच्चा बच्चा जानता है, मैं इसका जवाब देना उचित नही समझता, फ़िर भी नाटक नौटंकी के लिये जवाब दे ही देता हूं. उस गड्डे में जितने नेताओं को दफ़नाया गया था उससे अति उत्तम किस्म की कंपोस्ट खाद तैयार हुई, वो खाद मैंने अपने खेतों में डाल दी, फ़िर इतनी जोरदार फ़सल आई कि मैं क्या बताऊं? उस फ़सल को खा खा कर ताऊ जैसा मेहनती, ईमानदार इंसान, धीरे धीरे चोरी, बेईमानी, ठगी, लूट, डकैती जैसे धंधे करने लगा, महोदया यह उस खाद द्वारा उपजी फ़सल के अन्न का ही असर था कि मेरी बुद्धि अत्यंत कुटिल होगई और आज मैं ब्लागिस्तान के सर्वोच्च पद पर उसी की बदौलत पहुंच पाया हूं, उसी फ़सल से मैने अपनी पार्टी बनाई, और मेरी पार्टी के सदस्य उसे ही खा खा कर भ्रष्टाचार और लूट के विश्व रिकार्ड बना रहे हैं.

प्रश्न के दूसरे हिस्से में पूछा गया है कि ये कम नही होने के? माननिया महोदया, मैने पूरे ब्लागिस्तान की जमीन में वही बीज डाल दिये हैं, तो कम होने का सवाल ही नही उठता, भ्रष्टाचार, बेईमानी, महंगाई, गरीबी इन सबको हम बढाने में कोई कोर कसर नही छोडेंगे.


सवाल नं. २ :-

Blogger anshumala said...

जवाब ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज द्वारा :-

माननिया स्वयंभू अध्यक्ष महोदया समीरा जी, माननिया सदस्या द्वारा पूछा गया प्रश्न कम, सुझाव ज्यादा है. इस सुझाव को मंजूर करते हुये मैं सुचित करना चाहुंगा कि ना सिर्फ़ कल के दिन बल्कि सभी सदस्यों को मय परिवार, उम्र भर की अवधि के लिये, भरपेट मलाईदार दूध के सेवन के लिये, हर ब्लाग संसद के सदस्य को मात्र अढाई करोड रूपया प्रति वर्ष सरकारी खजाने से दिये जाने का प्रस्ताव रखता हूं.

ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के उक्त प्रस्ताव को उपस्थित सदस्यों ने एक साथ मेजे थपथपाकर ध्वनि मत से स्वीकार कर लिया. और इसके बाद स्वयंभू अध्यक्ष महोदया मिस समीरा टेढी ने प्रश्नोतर काल समाप्ति की घोषणा कर दी.

इब सीधे खूंटै पै पढो

इब सिर्फ़ खूंटै पै पढो :-

बात उन दिनों की है जब ताऊ ब्लाग प्रेसिडेंट भी नही बना था, यानि राजनीति भी नही करता था, और चोरी डकैती बेइमानी के काम काज भी शुरू नही किये थे. उन दिनों में ताऊ सिर्फ़ इमानदारी से खेतों मे मेहनत करके अपनी रोजी रोटी किसी तरह चलाया करता था. सुबह जल्दी उठकर अपना ऊंट और हल लेकर जंगल में अपने खेत जोतने निकल जाया करता था.
ताऊ अपने ऊंट से खेत में हल जोतते हुये


एक दिन ताऊ अपने खेत में हल चला रहा था कि एक बहुत ही जोरदार आवाज आई. ताऊ ने अपणै दीदे (आंखें) ठाये और ताऊ के दीदे फ़ाटे के फ़ाटे ही रह गये. ताऊ ने देखा कि पास की सडक से एक बस बेकाबू होकर नीचे पचास साठ गहरे गड्डे मे गिरी पडी थी और चीख पुकार मची हुई थी. ताऊ हल छोडकर फ़टाफ़ट वहां पहुंच गया.

वहां जाकर ताऊ ने देखा कि लोग मरे अधमरे और घायल पडे थे. चिल्ला पुकार मची थी.

ताऊ ने पूछा कि भाई तुम कौन लोग हो तो एक गंभीर घायल ने बताया कि वो सारे के सारे नेता हैं और देश की गरीबी दूर करने के उपायों पर चर्चा करने के लिये संरक्षित वन क्षेत्र के जंगल में जा रहे थे, जहां देश की गरीबी और महंगाई कम करने के उपाय सोचने के बाद शिकार खेलने का प्रोग्राम था.

नेता नाम सुनते ही ताऊ का खून उछाले मारने लगा. सभी नेता गंभीर घायल पडे थे, और ताऊ से सहायता और शहर में खबर करने की प्रार्थना करने लगे.

ताऊ ने उनको आश्वासन दिया कि चिंता मत करो, इस जंगल में मेरे अलावा और कोई डाक्टर नही मिलेगा, मैं तुम्हारा परमानेंट इलाज करूंगा. ताऊ ने इत्मिनान से एक अच्छा बडा सा गडढा खोदा और उन सब नेताओं को उस गड्डे में दफ़ना दिया. इसके बाद नहा धोकर अपने काम मे लग गया.

कुछ दिनों बाद नेताओं की खोज खबर शुरु हुई तो पुलिस वाले उनको ढूंढते ढूंढते ताऊ के पास आ पहुंचे.

पुलिस वाले ताऊ से पूछने लगे कि ये तुम्हारे खेत के पास जो एक्सीडेंट हुई बस पडी है इसमे देश के होनहार स्थापित विस्थापित सभी किस्म के नेता थे जो देश की गरीबी और महंगाई दूर करने के लिये मिटींग करने जा रहे थे, वो सब कहां हैं? आखिर वो कहां गये?

ताऊ उन दिनों सच बोला करता था सो वो बोला : हुजुर मैने उन सबको पास में ही गड्ढा खोदकर इज्जत पूर्वक दफ़ना दिया है.

पुलिस वालों ने पूछा : क्या वो सारे के सारे एक्सीडेंट मे मर गये थे?

ताऊ बोला : अजी थाणेदार साहब, इसका तो मुझे पक्का पता नही पर उनमें से दो चार नेता बोल रहे थे कि वो मरे नही हैं, जिंदा है, पर आप तो जानते ही हो कि ये नेता लोग कितनी झूंठ बोलते हैं? मैं तो इन नेताओं की बात का कभी भी यकीन नही करता, इसलिये सारे के सारे नेताओं को दफ़ना डाला.

"ब्लागर भाईचारा बढाओ पार्टी" आनन फ़ानन मे आयोजित की गई

जिस तरह से पूरी दुनिया, एक देश, एक प्रांत, एक जिले और शहर की इकाई अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता होती है उसी तरह ब्लाग जगत भी अपने आप में एक पूरा संसार है. यहां भी वही सब अच्छाईयां बुराईयां, राग द्वेष, गुटबाजी, राजनीति,  प्रेम सौहाद्र दिखाई देता है. अभी पिछले समय ही अनेक ब्लाग मठ्ठों, माफ़ किजिये...मठ्ठों नही... मठों का भी जिकर सुनने में आया था, जो कि सही भी लगता है.  और गहराई से देखता हुं तो लगता है कि यह ब्लागजगत भी अपने आप में एक संपूर्ण संसार है.

जब यह पूर्ण संसार है तो जाहिर सी बात है कि यहां भी सरकार होती है और चूंकी हम एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के आदि हैं तो चुनाव भी होंगे और यहां सारी जद्दोजहद सत्ता हथियाने की है. पिछले दिनों ब्लागिस्तान में चुनाव थे और मठाधिषों को एक पल की भी फ़ुरसत नही थी, तमाम फ़ुरसतिया लोगों को चुनाव की वजह से काम धंधा मिला हुआ था.  सभी इस जोगाड में लगे थे कि किसी तरह  जनता से वोट हथियाकर चुनाव जीता जाये और बाद में जोडतोड से सरकार  तो बना ही ली जायेगी.

लेकिन सबसे ज्यादा झटका इस बार ताऊ को लगा. क्योंकि ताऊ को किसी भी मठाधीष अखाडे ने अपने अखाडे का टिकट ही नही दिया. और दुनियां जानती है कि  किसी अखाडे के बैनर बिना टिप्पणियां तक नही मिलती तो वोट मिलने का तो सवाल ही नही उठता. ताऊ बेचारा परेशान...घूम रहा था...इस खोटे समय में एक रामप्यारे ही उसका सलाहकार हुआ करता था जो आजकल किसी अखबार में कालम लिखने लगा था...वाकई ताऊ को इतना परेशान कभी नही देखा गया कि वो चुनाव  अखाडे के टिकट के लिये तरस गया.

रात को ताऊ किसी तरह सो गया और फ़िर सोते सोते  अचानक उठ बैठा. एक आईडिया घुस आया उसकी शातिर खोपडी में.  सुबह उठकर ब्लाग चुनाव आफ़िस में जाकर निर्दलीय उम्मीदवार का नामांकन फ़ार्म भर आया. और अपने चुनाव प्रचार में जुट गया. दूसरे प्रतिद्वंद्वी अपने इंमानदारी और शराफ़त भाईचारे का राग अलापते और ताऊ ने अपना एक भाषण रट लिया और हर जगह वही भाषण दिन रात झाडने लग गया.
बहणों और भाईयों, आप जानते हैं कि ताऊ एक ठग और लुटेरा इंसान है, और आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं...तो आप मुझे  वोट क्यों दें? और  मैं आपकी बात से सहमत हूं...आप मुझे बिल्कुल वोट मत दिजियेगा...पर आपसे एक बात कहना चाहुंगा कि ताऊ नें तो दस बीस हजार की डकैती डाली होगी लेकिन बाकी के मठाधीषों ने तो पू्रे देश का माल हजम करके बाहर के बैंकों में पहूंचा दिया है, अरे ताऊ ने तो जो भी किया वो आपके लिये किया...देश के बाहर कुछ नही लेगया बल्कि ब्लाग जगत का माल ब्लाग जगत में ही रख छोडा है...और मैं आपसे वादा करता हुं कि अगर  मैं चुनाव जीत गया तो इस ब्लागजगत में  एक सख्त रोकपाल बिल लागू करूंगा कि कोई भी गंदगी, भ्रष्टाचार करना  इस ब्लागिस्तान में संभव नही होगा और सारे ब्लागर चैन की बंशी बजाया करेंगे. आपको जो समझ आये वैसा ही करें पर रोकपाल बिल की बात ध्यान रखें.


ताऊ के उक्त भाषण का जनता पर काफ़ी असर हुआ और निर्दलीय होने के बावजूद भारी बहुमत से चुनाव जीत गया. अब ताऊ को दिखने लगी ब्लाग प्रेसीडेंट की कुर्सी और जनता उम्मीद कर रही थी रोकपाल बिल के लागू होने की. इधर स्पष्ट बहुमत किसी भी मठाधीष के अखाडे को नही मिला था, सब जोड तोड में लगे थे. सब तरह की संभावनाएं टटोली जा रही थी....ऐसे ऐसे ब्लागर मठाधीष एक दूसरे से गुपचुप मुलाकाते कर रहे थे जो एक दूसरे को फ़ूटी आंख नही सुहाते ...ये समझे कि जैसे ताऊ............से मिल रहा हो....

खैर सब जोड तोड के बाद दो  गुट बन गये....थोडे बहुत जोगाड से कोई सा भी गुट सरकार बना सकता था. दोनों गुटो में  समस्या यह आ रही थी की ब्लाग प्रेसीडेंट कौन बने? और किसके कितने मंत्री हों? बडी मुश्किल की घडी थी. ताऊ अपने लठ्ठ को लिये ब्लाग प्रेसीडेंट बनने की जोगाड में लगा था. और ताऊ के द्वारा चुनाव में जनता को रोकपाल बिल के वादे की वजह से कोई सा भी गुट ताऊ को घास नही डाल रहा था.

ताऊ के  कमरसिंह ने पहले गुट के कुछ सदस्यों को मंत्री और भारी संख्या में टिप्पणीयों का लालच देकर ताऊ की तरफ़ तोड लिया, फ़िर भी ब्लाग सरकार बनाने लायक बहुमत नही बना. ताऊ के कमर सिंह ने जी जान लडा दी पर अब  भी दस वोट कम पड रहे थे. और सामने बचे गुट में महान मक्कार और भ्रष्टाचार के पुतले ही बचे थे, जिनके विदेशी बैंक खाते और घोटालों में नाम थे. रोकपाल की वजह से वो ताऊ के कट्टर दुश्मन थे. पर ताऊ ने हार नही मानी. एक रोज ताऊ के कमरसिंह ने ताऊ की और उनकी मुलाकात की व्यवस्था करा ही दी.

एक "ब्लागर भाईचारा बढाओ पार्टी" आनन फ़ानन मे आयोजित की गई. वहां एक से बढकर एक जानी दुश्मन भी हाथ में माकटेल काकटेल के गिलास थामे नजर आये. और फ़िर ताऊ ने अपना भाषण देना शुरू किया :- प्यारे ब्लागर साथियों, आपने इस ब्लागर भाईचारा बढाओ पार्टी मे शरीक होकर ब्लाग जगत की बडी सेवा की है. आप मेरी रोकपाल बिल वाली बात को ज्यादा दिल से ना लगाये. वो तो चुनाव जीतने के लिये कुछ भी कहना पडता है. पर हम तो आपस में ब्लाग भाई हैं, एक दूसरे को नुक्सान थोडे ही पहुंचायेगे, हम ब्लाग हित में मिलजुलकर जनता को लूटेंगे, आपको मेरी ब्लाग सरकार में लूट की खुली छूट होगी. मैं आंखे बंद करके रहुंगा, आप बिल्कुल निश्चिंत रहें, आप सब अपने अपने मठ की ताकत जनता  को लूटकर बढाते रहें, मैं कुछ नही बोलूंगा.

ताऊ के मुंह से ऐसी बात सुनकर सबके चेहरे खिल उठे. एक भ्रष्टाचार के मामले में फ़ंसे और ताऊ के घनघोर विरोधी सदस्य ने सवाल पूछा - पर ताऊ हम जैसों को कैसे बचाओगे? हम तुमको क्यों वोट दें? तुम हमारे विरोधी हो..कहीं हमे जेल में डाल दोगे तो?

ताऊ बोला - भाई तू चिंता मत कर, मैं रोकपाल बिल की खानापूर्ति के पहले एक ऐसा बिल लाऊंगा कि नेताओं और भ्रष्टाचारियों को सिर्फ़ एयरकंडीशंड जेल में  ही रखा जायेगा. उनको पेशी पर ले जाने के लिये बी.एम.डबल्यु या उससे ऊंचे दरजे  की कारे ही इस्तेमाल की जायेंगी. सारे मुकदमे इस तरह चलवाऊंगा कि तुम्हारे जीते जी उनका फ़ैसला ही नही आयेगा. सरकार की साख बचाने और जनता को दिखाने के  लिये तुम जैसों को दो चार महिने एयरकंडीशंड जेल में   बिताने होंगे और वो भी तुम नही रहना चाहो तो तुम्हारी जगह जेल में तुम्हारा  डुप्लीकेट रह जायेगा, तुम जमानत होने तक चुपचाप विदेश में मस्ती करके चले आना. ताऊ की यह बात सुनते ही सारे भ्रष्टाचारियों ने एक स्वर से ताऊ को जयजयकार करते हुये अपना नेता चुन लिया.