अब आप कहेंगे कि ये ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को क्या होगया है? महाराज अंधे, बहरे और गंवार तो थे ही अब पूरी तरह से सठिया भी गये हैं क्या? अरे बालम को खिलाना ही है तो किसी फ़ाईव स्टार होटल के रेस्ट्रां मे ले जाके डिनर खिलवावो या कहो कि आवो बालम स्विटरजरलैंड घुमा लाये...या आवो बालम ताजमहल घुमा लाये, भले ही कालोनी के पार्क में भी ना ले जावो..... पर ये कौन सी बात हुई की बालम को ककडी खिला रहे हैं?
अब आप हमेशा की तरह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को गलत समझ रहे हैं. महाराज ना तो बालम को कहीं घुमाने ले जा रहे हैं और ना ही डिनर या ककडी वकडी खिलाने कहीं ले जा रहे हैं. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने पिछली पोस्ट "ताऊ आज ताई के हाथों पिटेगा या बचेगा?" मे आपको एक चित्र दिखाया था और उसमे तीन सब्जियों के चित्र थे जो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बाजार से महारानी गांधारी की फ़रमाईश पर लाये थे. आप लोगों से फ़ैसला करवाने के लिये वो चित्र दिखाया गया था. पर अफ़्सोस जाने अनजाने में किसी ने भी सही जवाब नही दिया और ताऊ महाराज को सभी ने पिटवा डाला. महाराज टूटे हाथ पांव लेकर आज रविवार को खटिया तोडेंगे.
असल में ताई ने टमाटर, सेव और लौकी लाने का कहा था और महाराज सेव और टमाटर तो सही ले आये और ये मत भूलिये कि महाराज अंधे हैं सो हाथ से टटोलने मे लौकी की जगह बालम ककडी ले आये. और घर आकर ताई से बहस भी करने लगे कि ये लौकी ही है.
ये लौकी नही बालम ककडी है जनाब!
आप सभी के जवाब भी गलत हैं. ये जो लौकी दिखाई दे रही है यह वास्तव में लौकी ना होकर बालम ककडी है. ... जी हां बालम ककडी. यह खाने में बडी यमी यमी.. होती है. काटने पर अंदर से बिल्कुल केशरिया रंग की निकलती है. इसे ऐसे ही खायें या सब्जी, कोफ़्ते या खीर बनाकर खायें, है बडी मजेदार. ज्यादातर लोग इसे यूं ही काटकर खाते हैं
यहां मालवा प्रांत में रहने वाले लोग इसे बडे चाव से खाते हैं और दूर दूर अपने रिश्तेदारो को भिजवाते हैं. कई तो इसके ऐसे शौकीन हैं कि बाहर विदेशों में रह रहे अपने रिश्तेदारों को भी भिजवाते हैं. यह तोडने के बाद १५/२० दिनों तक सामान्य टेंपरेचर पर खराब भी नही होती.
इसकी और एक विशेषता है कि इसकी पैदावार सिर्फ़ मांडव गढ वाले धार जिले और सैलाना (रतलाम) में ही होती है. अन्य जगह यह नही पैदा होती. यह सैलाना वही है जहां का कैक्टस गार्डन विश्व प्रसिद्ध है. अब सैलाना आ ही गये हैं तो नीचे के विडियो में वहां का प्रसिद्ध कैक्टस गार्डन भी देख ही लिजिये वरना कहेंगे कि ताऊ महाराज ने बालम ककडी तो खिला दी पर कैक्टस गार्डन नही दिखाया.
बालम ककडी के बारे में कहा जाता है कि जैसे आगरे का पेठा आगरे में ही पनपता है वैसे ही यह भी सिर्फ़ इन्हीं दो जगह पैदा होती है....अनेक लोगों ने इसे दूसरी जगह उगाने की कोशीश की पर सफ़लता नही मिल पायी. बालम ककडी के एक नग का वजन लगभग डेढ दो किलो से ढाई तीन किलो तक का होता है.
मांडव गढ (धार) की बालम ककडी थोडी कम मजेदार होती है और थोडी सस्ती भी है यानि एक ककडी १५ से २० रूपये में मिल जाती है वहीं सैलाना की ३० से ५० रूपये में मिलती है. यह बरसात में ही होती है अब इसकी फ़सल खत्म होने पर है ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह की और बची है. इसमे प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हैं. यह कमजोरी दूर करके ताकत प्रदान करती है. और भी बहुत सारे गुण हैं इसमें, जो महाराज आपको कभी बाद में बतायेंगे.
हमारा सोचना है कि इसका नाम लौकी ककडी भी हो सकता था पर इसका नाम बालम ककडी ही क्यों पडा? यह वाकई सोचने वाली बात है कि नही? क्या आप में से कोई बता सकता है? अगर किसी ने जानते बूझते नही बताया तो ताऊ आस्ट्रोलोजिकल क्लिनिक की चेतावनी याद रखें.
अब आप हमेशा की तरह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को गलत समझ रहे हैं. महाराज ना तो बालम को कहीं घुमाने ले जा रहे हैं और ना ही डिनर या ककडी वकडी खिलाने कहीं ले जा रहे हैं. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने पिछली पोस्ट "ताऊ आज ताई के हाथों पिटेगा या बचेगा?" मे आपको एक चित्र दिखाया था और उसमे तीन सब्जियों के चित्र थे जो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बाजार से महारानी गांधारी की फ़रमाईश पर लाये थे. आप लोगों से फ़ैसला करवाने के लिये वो चित्र दिखाया गया था. पर अफ़्सोस जाने अनजाने में किसी ने भी सही जवाब नही दिया और ताऊ महाराज को सभी ने पिटवा डाला. महाराज टूटे हाथ पांव लेकर आज रविवार को खटिया तोडेंगे.
असल में ताई ने टमाटर, सेव और लौकी लाने का कहा था और महाराज सेव और टमाटर तो सही ले आये और ये मत भूलिये कि महाराज अंधे हैं सो हाथ से टटोलने मे लौकी की जगह बालम ककडी ले आये. और घर आकर ताई से बहस भी करने लगे कि ये लौकी ही है.
आप सभी के जवाब भी गलत हैं. ये जो लौकी दिखाई दे रही है यह वास्तव में लौकी ना होकर बालम ककडी है. ... जी हां बालम ककडी. यह खाने में बडी यमी यमी.. होती है. काटने पर अंदर से बिल्कुल केशरिया रंग की निकलती है. इसे ऐसे ही खायें या सब्जी, कोफ़्ते या खीर बनाकर खायें, है बडी मजेदार. ज्यादातर लोग इसे यूं ही काटकर खाते हैं
यहां मालवा प्रांत में रहने वाले लोग इसे बडे चाव से खाते हैं और दूर दूर अपने रिश्तेदारो को भिजवाते हैं. कई तो इसके ऐसे शौकीन हैं कि बाहर विदेशों में रह रहे अपने रिश्तेदारों को भी भिजवाते हैं. यह तोडने के बाद १५/२० दिनों तक सामान्य टेंपरेचर पर खराब भी नही होती.
इसकी और एक विशेषता है कि इसकी पैदावार सिर्फ़ मांडव गढ वाले धार जिले और सैलाना (रतलाम) में ही होती है. अन्य जगह यह नही पैदा होती. यह सैलाना वही है जहां का कैक्टस गार्डन विश्व प्रसिद्ध है. अब सैलाना आ ही गये हैं तो नीचे के विडियो में वहां का प्रसिद्ध कैक्टस गार्डन भी देख ही लिजिये वरना कहेंगे कि ताऊ महाराज ने बालम ककडी तो खिला दी पर कैक्टस गार्डन नही दिखाया.
बालम ककडी के बारे में कहा जाता है कि जैसे आगरे का पेठा आगरे में ही पनपता है वैसे ही यह भी सिर्फ़ इन्हीं दो जगह पैदा होती है....अनेक लोगों ने इसे दूसरी जगह उगाने की कोशीश की पर सफ़लता नही मिल पायी. बालम ककडी के एक नग का वजन लगभग डेढ दो किलो से ढाई तीन किलो तक का होता है.
मांडव गढ (धार) की बालम ककडी थोडी कम मजेदार होती है और थोडी सस्ती भी है यानि एक ककडी १५ से २० रूपये में मिल जाती है वहीं सैलाना की ३० से ५० रूपये में मिलती है. यह बरसात में ही होती है अब इसकी फ़सल खत्म होने पर है ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह की और बची है. इसमे प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हैं. यह कमजोरी दूर करके ताकत प्रदान करती है. और भी बहुत सारे गुण हैं इसमें, जो महाराज आपको कभी बाद में बतायेंगे.
हमारा सोचना है कि इसका नाम लौकी ककडी भी हो सकता था पर इसका नाम बालम ककडी ही क्यों पडा? यह वाकई सोचने वाली बात है कि नही? क्या आप में से कोई बता सकता है? अगर किसी ने जानते बूझते नही बताया तो ताऊ आस्ट्रोलोजिकल क्लिनिक की चेतावनी याद रखें.
बाप रे, इतनी चौड़ी ककड़ी।
ReplyDeleteसबसे पहले किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को लाकर यह ककडी खिलाई थी । प्रेमिका को बहुत पसन्द आई और उसने अपनी सभी सहेलियों को बताया कि बालम ककडी लाया । बस तभीसे इसका नाम बालम ककडी समझ लीजिये ।
ReplyDeleteताऊ बना दिया ना बेवकूफ। बालम ककड़ी उदयपुर में खूब होती है और अभी इसका मौसम है। टोकरे के टोकरे सब्जीमंडी में भरे रहते हैं। यह कई प्रकार की होती है लेकिन इसका रंग लौकी से थोड़ा गहरा हरा होता है और कुछ धारियां भी रहती है। मुख वाला भाग खीरा ककडी की तरह होता है। अन्दर से पीली और एकदम मुलायम होती है। एक-एक ककड़ी दो-दो किलों से भी अधिक की होती है। उदयपुर में तो इस ककड़ी के पीछे लोग पागल हुए रहते हैं।
ReplyDeleteइसको काटकर नमक और कालीमिर्च लगा कर खाया जाता है।स्वाद दोगुना हो जाता है।
Deleteहमारे बिहार में इसे "फूट" कहते हैं... और उड़िया में "फूट काँकड़ी"... बालम ककड़ी नाम आज पहली बार सुना... नाम की कथा तो बस आपसे ही सुनेंगे!!
ReplyDeleteकमाल की चीज़ है ताऊ । मेरा मतलब ये ककड़ी । अब इसका नाम बालम ककड़ी इसलिए पड़ा होगा क्योंकि इसके चक्कर में जाने कितने बालम ( ताऊ) पिटे होंगे ।
ReplyDeleteखैर बढ़िया रहा यह ककड़ी प्रसंग ।
बालम ककडी के बहाने से दिलचस्प हास्य लेख पढ़ने को मिला....आभार आपका.
ReplyDelete@चला बिहारी ब्लॉगर बनने
ReplyDeleteशायद "फ़ूट" या "फ़ूट ककडी" इस बालम ककडी से अलग होती है. क्योंकि फ़ूट में एक अजीब सी गंध/सुगंध होती है जबकि बालम ककडी में नही होती. फ़ूट ककडी से ना तो मिठाई बनायी जा सकती और ना ही खीर.
हमारे यहां भी फ़ूट आती है जो इससे अलग होती है, हां ये हो सकता है कि वनस्पति शाश्त्र के हिसाब से ये एक ही परिवार के हों. और इसका पता तो कोई साईंस ब्लागर एशोसियेशन वाला इधर झांका तो वो ही दे पायेगा.:)
रामराम.
ठंड की तरफ़ बढ़ती कड़कड़ाती ककड़ी। काश हमें भी यही वाली खाने को मिलती ताऊ। बहुत रोचक लेख ताई के फटके के साथ। हा हा।
ReplyDeleteहा हा हा हा...खूब बेवकूफ बनाये ताऊ..! याद रहेगा।
ReplyDeleteताऊ महाराज की जय हो, आपने बालम ककड़ी के बारे में अच्छी जानकारी दी | आपका बहुत -बहुत धन्यवाद् ||
ReplyDeleteबहुत रोचक लेख.....ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे हैं सो हाथ से टटोलने मे लौकी की जगह बालम ककडी ले आये....
ReplyDeleteमेरे विचार से तो ताऊ महाराज का ताई के हाथों पिटना तय है....
बालम खीरा उत्तरांचल,हरियाणा, राजस्थान में भी पाया जाता है। इसका अर्क किडनी की पथरी की रामबाण दवाई है, जो लखनऊ में मिलता है। मैने इसके अर्क का इस्तेमाल करके देखा है। एक बंदे की 32 MM की पथरी भी इसने 6 खुराक में गला दी। आयुर्वेद में इसे मुत्रल औषधि माना गया है।
ReplyDeleteमतलब बालम को ककड़ी खिलाओ और निरोगी रखो :)
वाह ...ताउजी ऐसी ककड़ी तो पहली बार देखा ,आपने बहुत अच्छी जानकारी दे दी ...आभार
ReplyDeleteमाफ कीजिएगा हमलोग आपको पिटने से नहीं बचा पाए..
हम तो पिछली पोस्ट में ही समझ गये थे कि किम्मै न किम्मै झोल सै, इत्ता सूधा न है ताऊ कि ऐसी ऐसी पहेलियाँ पूछ ले।
ReplyDeleteअब सलिल भाई ने ’फ़ूट’ नाम ले ही लिया है तो हम भी बताकर रहेंगे कि एक फ़ूट पंजाब में भी होती है जो छोटे खरबूजे की तरह दिखती है लेकिन स्वाद अलग होता है।
@संजय @ मो सम कौन
ReplyDeleteफ़ुट नै पंजाब में फ़ुट ही कहदें होगें, पण रोहतक-भिवाणी म्हे इसने "हैजा" भी कहवें सैं। :)
राम राम
टमाटर ,सेव और खीरा ;
ReplyDeleteमिटा देगी ताऊ की पीड़ा .
मेरा उत्तर सही था . खीरा यानी ककड़ी .
ताऊ जी ये बालम खीरा तो नहीं....
ReplyDeleteखीरा-ककड़ी बापू को भी प्रिय था क्या?
ReplyDelete--
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्व. लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
इन महामना महापुरुषों के जन्मदिन दो अक्टूबर की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
यह रोचक पोस्ट तो ज्ञानवर्धक भी हो गयी। हमने तो आज तक यह अनोखी ककड़ी देखी नहीं थी। जानकारी का शुक्रिया!
ReplyDeleteऐसी भला ककड़ी होती है क्या.......क्या जुल्म है!!
ReplyDeleteरोचक...
ReplyDeleteपहली बार ही जाना...
सादर...
ताऊ जब आँखों वालों ने इसे नहीं पहचाना तो फिर बेचारे अंधे धृतराष्ट्र महाराज की क्या गलती|
ReplyDeleteइसका विवरण फूट ककड़ी जैसा लग रहा है , मगर दिखने में लौकी जैसी ...
ReplyDeleteजो दिखता है वह होता नहीं है , हम समझते हैं कि यह वही है , मगर वह होता नहीं है ...तारे जमीन पर ईशान ने कितनी अच्छी बात कही थी !
ऐसी ककड़ी न मैंने आज तक देखा और न खाया! बड़ा ही रोचक पोस्ट!
ReplyDeleteदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बालम खीरे के बारे में सुना था ...ककड़ी के बारे में पहली बार जाना ...अच्छा और रोचक प्रसंग
ReplyDeleteएक अति विरल जानकारी पूर्ण पोस्ट .
ReplyDeleteएक भिज्वायिये न ताई से इधर की पंडिताइन को ....मूल ऐसे बालम खीरा क्यों कहते हैं ? इधर एक बालम खीरा भी होता है !
ReplyDeleteज्ञान चक्षु खोलने के लिए कॉफ़ी है यह प्रसंग बा -शर्ते चक्षु हों ,ज्ञान भी हो .
ReplyDelete.सन्दर्भ मग्गा बाबा और प्रोफ़ेसर ...
ककड़ी !
ReplyDeleteयह तो ककड़ा है :)
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteबालम ककडी ...
ReplyDeleteवाह क्या नाम दिया गया है बालम ककड़ी...
श्याद स्वाद ही ऐसा होगा कि बालम की याद दिला दे :)
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...
ReplyDeleteहमारे बिहार में इसे "फूट" कहते हैं... और उड़िया में "फूट काँकड़ी"... बालम ककड़ी नाम आज पहली बार सुना... नाम की कथा तो बस आपसे ही सुनेंगे!!
लो जी, सलिल भाई ने बता दिया फूट... भाई पहले ही कह देते हरियाणा/राजस्थान के बोर्डर वाले इलाके में बहुत प्रसिद्ध है ये फूट. कई बार दिल्ली में हमारे पास भी आ जाता है ... पर हम लोग इसकी तुलना खीरे से करते हैं.,,, कि गाँव का खीरा आया है .
हमारे( उत्तर प्रदेश) यहाँ इसे फूट कहते है कारण क्या है यह नहीं मालूम......
ReplyDeletehindi blog jagat ka ek aham blog,,hasy aur gyan ka achchha sangam..kya pta ye kakdi tarai kshetro me milti ho... pahado me eske baare me nahi suna...
ReplyDeleteabhar...
दीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
ReplyDeleteदीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteway4host
rajputs-parinay
आदरणीय ताऊ,
ReplyDeleteआपके सभी मित्रों व परिजनों के साथ ही आपको भी ज्योति-पर्व पर अनंत मंगलकामनायें!
सुन्दर और रोचक जानकारी मिली आपसे.
ReplyDeleteसुना है बालम खीरा भी होता है.
जो पथरी के उपचार में बेजोड है.
दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,ताऊ श्री जी.
कहीं डूब कर जुआ खेल रहे हो का ताऊ...? घर बार ब्लाग-यार सबको भुला दिये!
ReplyDeleteशुभ दीपावली।
आपकी पोस्ट की हलचल आज (30/10/2011को) यहाँ भी है
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की हलचल आज (30/10/2011को) यहाँ भी है
ReplyDeleteककडी भी स्पेशल .. और ककडी के बहाने आपकी पोस्ट भी !!
ReplyDeleteमेरी टिपण्णी क्यूँ नही दे रही है दिखलाई
ReplyDeleteताऊ श्री क्या आपने 'बालम ककड़ी' है खाई.
खाकर खुद गायब हो जाते हो
साथ में टिपण्णी भी उडा ले जाते हो.
आपको इसका राज अवश्य ही बताना होगा
नही तो जल्दी से मेरे ब्लॉग पर आना होगा.
आपकी अमूल्य टिपण्णी से मेरी बाधा होगी आधी
बाकी तो 'जप यज्ञ' से मिट जायेगी सब व्याधि.
बोलिए ताऊ श्री महराज जी की जय.
2 mahine se koi post nahin na hi aap ki koi khabar...asha hai sab kushal mangal hai...with regards,alpana
ReplyDeleteताऊश्री, नववर्ष की आपको परिवार सहित बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteताउश्री,अपना समाचार दीजियेगा प्लीज.
ReplyDeleteबहुत दिनों से आपकी कोई खबर नही है.
आपके कुशल मंगल की कामना करता हूँ.
बालम खीरा तो सुना था आज बालम ककड़ी भी देख ली... ये बालम भी क्या क्या अजूबे रखते हैं :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा, मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता कि ककड़ी ऐसी भी हो सकती है।एकदम अलग है ये पोस्ट,बहुत मजा आया, बहुत-बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteताऊ तेरी कमी खलती है यार ....
ReplyDeleteबापस आ जाओ !
.
ReplyDeleteताउजी रामराम !
कहां हैं आप ?
परमात्मा से प्रार्थना है कि आप सपरिवार स्वस्थ - सानंद हैं ...
नई पोस्ट का घणा इंतज़ार है ...
बालम ककड़ी का रोचक प्रसुतिकरण ..
ReplyDeleteआभार