पिछले अंक में आपने पढा था जब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और पितामह के बीच बाते हो रही थी तभी युवराज दुर्योधन ने उनके परम प्रिय सखा कर्ण के साथ राज दरबार में प्रवेश किया था और यह उदघोष किया था कि अब मेरे हाथ में गदा नही बल्कि की-बोर्ड और हाईस्पीड नेट कनेक्शन है और प्राक्सी सर्वर भी.......
युवराज दुर्योधन, अंगराज कर्ण, ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, पितामह और मिस समीरा टेढी
युवराज दुर्योधन की बातों से महाराज अति चिंतित हो गये और बडे खिन्न मन से मिस समीरा टेढी की तरफ़ देखते हुये आज का दरबार बर्खास्त करने के लिये इशारा किया.
आज के राज दरबार की बर्खास्तगी की बात सुनकर युवराज दुर्योधन ने प्रसन्न हो कर कहा - तातश्री, आपको मैं काफ़ी समय से परेशानी में देख रहा हूं. पहले तो तोतलों द्वारा रोकपाल बिल के चक्कर में आपकी नींद और खाना पीना हराम हो रहा था, अब ये पितामह ने आपके लिये नई मुसीबत खडी करके रखदी. ऐसे में आपको थोडा मनोरंजन का ख्याल रखना चाहिये जिससे आपका दिमाग शांत बना रहे. एक बडी अच्छी फ़िल्म आई है और उसके पास भी आये हुये हैं, चलिये आपको वही फ़िल्म दिखा लाता हूं. आप चाहे तो समीरा आंटी को भी लिये चलिये. और पितामह चाहें तो उनको भी ले चलिये.
पितामह का मूड तो युवराज दुर्योधन की शक्ल देखते ही खराब हो जाता था, क्योंकि हाई स्पीड नेट कनेक्शन और प्राक्सी सर्वर के सहारे दुर्योधन ने पितामह की ऐसी तैसी कर रखी थी, बेचारे पितामह अपना ब्लाग बोरिया कितनी बार इधर उधर घसीटते फ़िरते थे उसके मारे. सो पितामह ने तो बहाना बना कर मना कर दिया कि आज वो सब ब्लागर्स को जय हो, बहुत अच्छे, खुश रहो, अरे ये तो हमारी फ़ला पोस्ट मे था...जैसी टिप्पणियां करते हुये अपनी चुनिंदा पोस्टों के लिंक छोडने का काम करेंगे. मिस समीरा टेढी ने अपनी नये कार्य कि जिम्मेदारियों को निभाने के लिये समयाभाव का कहकर मना कर दिया.
मिस समीरा टेढी और पितामह की बात सुनने के बाद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - वत्स, दुर्योधन तुम्हारी बात हमे बडी रूचिकर लग रही है. अब समीरा जी भी साथ चलेंगी तो पीछे से हस्तिनापुर की देखभाल कौन करेगा? आजकल तोतलों का भरोसा नही कि तीन घंटे की हमारी अनुपस्थिति में भी क्या गुल खिला डाले? और पितामह तो हमारे साथ जायेंगे नही, उनको अपनी टिप्पणीबाजी में ही आनंद आता है सो उन्हें भी टिप्पणियों द्वारा पंगे बाजी का शौक पूरा करने दो.
और हां फ़िल्म कोई अच्छी सी होनी चाहिये जैसी तुमने पिछली बार दिखाई थी. वो क्या नाम था उसका...हां याद आया "तनु वेड्स मनु" बस वैसी ही फ़िल्म हो तो निकल चलते हैं.
युवराज दुर्योधन बोले - तातश्री, "मेरे ब्रदर की दुल्हन" बिल्कुल "तनु वेड्स मनु" जैसी ही है..बल्कि स्टारकास्ट और बैनर भी बहुत बडा है. आप चलिये आपका दिमाग फ़्रेश हो जायेगा.
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - अरे वाह वत्स दुर्योधन, तुम हमारा कितना ख्याल रखते हो? यानि आज फ़िर से कनपुरिया डांस देखने का मौका मिलेगा? और एक बात हमारे दिमाग में आ रही हैं कि हम भी इस फ़िल्म की समीक्षा लिख कर एक पोस्ट निकाल लेंगे, अब कोई अरविंद मिश्रजी का ही ठेका थोडे ही है कि फ़िल्म देखी और समीक्षा के नाम पर एक पोस्ट निकाल ली?
युवराज दुर्योधन और अंगराज कर्ण अपने साथ ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को लेकर मल्टीपलेक्स में पहुंच गये. अब ज्यों ज्यों फ़िल्म आगे बढती गयी वैसे वैसे ताऊ महाराज धृतराष्ट्र का दिमाग आऊट आफ़ कंट्रोल होने लग गया. उन्होनें फ़िल्म बीच में छोडकर ही राजमहल लौटने का फ़ैसला किया परंतु युवराज और कर्ण...बस थोडी देर और तातश्री...थोडी देर और तात श्री...कहते हुये पूरी फ़िल्म ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को दिखा ही डाली.
अब पूरी फ़िल्म देखने के बाद ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने युवराज दुर्योधन को डांटते हुये - वत्स तुमको द्वापर में भी अक्ल इस्तेमाल करने की आदत नही थी और अब इस ब्लागयुग में भी नही है. और अंगराज कर्ण तुम भी सिर्फ़ धनुष (की बोर्ड) उठाने के अलावा दुनियादारी की समझ नही रखते. तीन घंटे खराब करवा डाले.
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र की डांट सुनकर युवराज तमकते हुये बोले - तात श्री, इसमे हमारा क्या कसूर? देश के एक बहुत बडे अखबार में हमने समीक्षा पढी थी कि "मेरे ब्रदर की दुल्हन" इतनी बडी और शानदार फ़िल्म है कि तनु वेड्स मनु को भी काफ़ी पीछे छोड देगी.
इस बात को सुनकर ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और भी क्रोधित होते हुये बोले - युवराज दुर्योधन, जरा अखबार की मजबूरी समझा करो, क्या पता वो खुद ही इस फ़िल्म के नफ़े नुक्सान में पार्टनर हो? जरा अक्ल लगाया करो वत्स. अब तुम्हें हस्तिनापुर की सत्ता संभालनी है. हम कब तक बैठे रहेंगे? अरे हम जिस तरह बहरे होकर भी सुन लेते हैं और अंधे होकर भी देख लेते हैं? उसी तरह का गुण प्राप्त करो वत्स, तभी इस हस्तिनापुर राज्य की बागडोर संभाल पावोगे. जरा अच्छे और बुरे में भेद करना सीखो. सिर्फ़ बैनर का और स्टार कास्ट का नाम बडा होने से ही फ़िल्म अच्छी नही हो जाती वत्स.
अब अंगराज कर्ण बोले - महाराज श्री, आपकी बात सही है. द्वापर से लेकर इस ब्लागयुग में अकेले सिर्फ़ आप ही हैं जो अंधे होते हुये भी पूरी बारीकी से फ़िल्म देख सकते हैं और बहरे होते हुये भी पूरी तरह से संगीत को बारीकी से सुन सकते हैं. महाराज आपको इन दोनों फ़िल्मों में क्या अच्छा बुरा लगा? जरा वह भी बताने की कॄपा करें.
तनु वेड्स मनु का कनपुरिया डांस, देखते ही तबियत बाग बाग हो जायेगी!
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - वाह अंगराज कर्ण वाह, यह आपने बहुत बढिया सवाल किया है. तनु वेड्स मनु में पटकथा इतनी चुस्त और सादगी लिये हुये है कि फ़िल्म देखते हुये हम पूरी तरह से उसमे खो गये. एक एक फ़्रेम कसा हुआ लगता है. और पूरा संगीत इतना लाजवाब है कि इन कई वर्षों में ऐसा गीत संगीत फ़िल्मों में देखने सुनने को नही मिला. इसका संगीत सुनते हुये एक दूसरी ही दुनियां में पहूंच जाते हैं खासकर रंगरेज मेरे...वाले गीत मे... और कंगना राणाऊत की पहली बार कोई फ़िल्म देखी और हम तो उसकी अदाकारी के कायल होगये... यानि तनुजा त्रिवेदी के रोल में तो वो लाजवाब रही... उस के द्वारा किया हुआ कनपुरिया डांस तो कमाल का था. हमारे राजमहल की नर्तकी भी ऐसा डांस नही कर सकती. इसीलिये यह फ़िल्म हमने कई बार देखी.
युवराज ने पूछा - तातश्री, और क्या विशेषता रही इस फ़िल्म की?
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - वत्स, इस फ़िल्म में हमें जिम्मी शेरगिल की एक्टिंग बहुते लाजवाब लगी और उसी की जुबानी एक और बात का पता चला कि शादी का जोडा तो लखनऊ से ही खरीदना चाहिये, कानपुर में तो सिर्फ़ चमडा ही मिलता है. बस पूरी फ़िल्म लाजवाब है.
कर्ण बोला - महाराज श्री आपको "मेरे ब्रदर की दुल्हन" में क्या खास बात लगी?
"मेरे ब्रदर की दुल्हन" भव्य सेट्स के साथ बोरियत
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - अंगराज, यह सारी फ़िल्म हर मामले में बकवास है. इस पूरी फ़िल्म में तनु वेड्स मनु की भौंडी नकल मारने की कोशीश की गई है, लचर संगीत, भव्य सेट्स और सारे तामझाम के बावजूद भी यह बकवास है. इतने बडे बैनर को इस तरह की नकल करने की क्या जरूरत आ पडी? शायद इस बैनर की अब तक की सबसे बकवास फ़िल्म है. नकल मारने में भी अक्ल नही लगाई गई है.
हां इस फ़िल्म में एक रेपिड फ़ायर विडियो कांफ़्रेंसिंग का सीन है जो कटरीना कैफ़ उसके होने वाले दुल्हे से पूछती है. वैसे तो अभी तक देखने सुनने में नही आया पर अगर भविष्य में ऐसा हुआ कि कोई लडकी ब्लागर किसी लडके ब्लागर से इस तरह के रेपिड फ़ायर के सवाल शादी के पहले करे तो वो कुछ यों होंगे.
लडकी ब्लागर : बेनामी टिप्पणी या नाम सहित?
लडका ब्लागर : बेनामी टिप्पणी.
लडकी ब्लागर : मौज लेना या पोस्ट निकालना
लडका ब्लागर : दोनों.
लडकी ब्लागर : टांग खिंचाई या तथ्यात्मक?
लडका ब्लागर : खांटी टांग खिंचाई.
लडकी ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी या निष्पक्ष?
लडका ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी
लडकी ब्लागर : ज्यादा टिप्पणियां महिला ब्लागर की पोस्ट पर या पुरूष ब्लागर की पोस्ट पर?
लडका ब्लागर : डार्लिंग अब बस भी करो, तुम जानती तो हो....फ़िर सब कुछ साफ़ साफ़ ही क्यूं पूछ रही हो?
लडकी ब्लागर : ओह डार्लिंग...आई लव यू...चलो हम शादी कर ही लेते है....इतने विचारों का साम्य आखिर और कहां मिलेगा?
युवराज दुर्योधन की बातों से महाराज अति चिंतित हो गये और बडे खिन्न मन से मिस समीरा टेढी की तरफ़ देखते हुये आज का दरबार बर्खास्त करने के लिये इशारा किया.
आज के राज दरबार की बर्खास्तगी की बात सुनकर युवराज दुर्योधन ने प्रसन्न हो कर कहा - तातश्री, आपको मैं काफ़ी समय से परेशानी में देख रहा हूं. पहले तो तोतलों द्वारा रोकपाल बिल के चक्कर में आपकी नींद और खाना पीना हराम हो रहा था, अब ये पितामह ने आपके लिये नई मुसीबत खडी करके रखदी. ऐसे में आपको थोडा मनोरंजन का ख्याल रखना चाहिये जिससे आपका दिमाग शांत बना रहे. एक बडी अच्छी फ़िल्म आई है और उसके पास भी आये हुये हैं, चलिये आपको वही फ़िल्म दिखा लाता हूं. आप चाहे तो समीरा आंटी को भी लिये चलिये. और पितामह चाहें तो उनको भी ले चलिये.
पितामह का मूड तो युवराज दुर्योधन की शक्ल देखते ही खराब हो जाता था, क्योंकि हाई स्पीड नेट कनेक्शन और प्राक्सी सर्वर के सहारे दुर्योधन ने पितामह की ऐसी तैसी कर रखी थी, बेचारे पितामह अपना ब्लाग बोरिया कितनी बार इधर उधर घसीटते फ़िरते थे उसके मारे. सो पितामह ने तो बहाना बना कर मना कर दिया कि आज वो सब ब्लागर्स को जय हो, बहुत अच्छे, खुश रहो, अरे ये तो हमारी फ़ला पोस्ट मे था...जैसी टिप्पणियां करते हुये अपनी चुनिंदा पोस्टों के लिंक छोडने का काम करेंगे. मिस समीरा टेढी ने अपनी नये कार्य कि जिम्मेदारियों को निभाने के लिये समयाभाव का कहकर मना कर दिया.
मिस समीरा टेढी और पितामह की बात सुनने के बाद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - वत्स, दुर्योधन तुम्हारी बात हमे बडी रूचिकर लग रही है. अब समीरा जी भी साथ चलेंगी तो पीछे से हस्तिनापुर की देखभाल कौन करेगा? आजकल तोतलों का भरोसा नही कि तीन घंटे की हमारी अनुपस्थिति में भी क्या गुल खिला डाले? और पितामह तो हमारे साथ जायेंगे नही, उनको अपनी टिप्पणीबाजी में ही आनंद आता है सो उन्हें भी टिप्पणियों द्वारा पंगे बाजी का शौक पूरा करने दो.
और हां फ़िल्म कोई अच्छी सी होनी चाहिये जैसी तुमने पिछली बार दिखाई थी. वो क्या नाम था उसका...हां याद आया "तनु वेड्स मनु" बस वैसी ही फ़िल्म हो तो निकल चलते हैं.
युवराज दुर्योधन बोले - तातश्री, "मेरे ब्रदर की दुल्हन" बिल्कुल "तनु वेड्स मनु" जैसी ही है..बल्कि स्टारकास्ट और बैनर भी बहुत बडा है. आप चलिये आपका दिमाग फ़्रेश हो जायेगा.
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - अरे वाह वत्स दुर्योधन, तुम हमारा कितना ख्याल रखते हो? यानि आज फ़िर से कनपुरिया डांस देखने का मौका मिलेगा? और एक बात हमारे दिमाग में आ रही हैं कि हम भी इस फ़िल्म की समीक्षा लिख कर एक पोस्ट निकाल लेंगे, अब कोई अरविंद मिश्रजी का ही ठेका थोडे ही है कि फ़िल्म देखी और समीक्षा के नाम पर एक पोस्ट निकाल ली?
युवराज दुर्योधन और अंगराज कर्ण अपने साथ ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को लेकर मल्टीपलेक्स में पहुंच गये. अब ज्यों ज्यों फ़िल्म आगे बढती गयी वैसे वैसे ताऊ महाराज धृतराष्ट्र का दिमाग आऊट आफ़ कंट्रोल होने लग गया. उन्होनें फ़िल्म बीच में छोडकर ही राजमहल लौटने का फ़ैसला किया परंतु युवराज और कर्ण...बस थोडी देर और तातश्री...थोडी देर और तात श्री...कहते हुये पूरी फ़िल्म ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को दिखा ही डाली.
अब पूरी फ़िल्म देखने के बाद ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने युवराज दुर्योधन को डांटते हुये - वत्स तुमको द्वापर में भी अक्ल इस्तेमाल करने की आदत नही थी और अब इस ब्लागयुग में भी नही है. और अंगराज कर्ण तुम भी सिर्फ़ धनुष (की बोर्ड) उठाने के अलावा दुनियादारी की समझ नही रखते. तीन घंटे खराब करवा डाले.
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र की डांट सुनकर युवराज तमकते हुये बोले - तात श्री, इसमे हमारा क्या कसूर? देश के एक बहुत बडे अखबार में हमने समीक्षा पढी थी कि "मेरे ब्रदर की दुल्हन" इतनी बडी और शानदार फ़िल्म है कि तनु वेड्स मनु को भी काफ़ी पीछे छोड देगी.
इस बात को सुनकर ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और भी क्रोधित होते हुये बोले - युवराज दुर्योधन, जरा अखबार की मजबूरी समझा करो, क्या पता वो खुद ही इस फ़िल्म के नफ़े नुक्सान में पार्टनर हो? जरा अक्ल लगाया करो वत्स. अब तुम्हें हस्तिनापुर की सत्ता संभालनी है. हम कब तक बैठे रहेंगे? अरे हम जिस तरह बहरे होकर भी सुन लेते हैं और अंधे होकर भी देख लेते हैं? उसी तरह का गुण प्राप्त करो वत्स, तभी इस हस्तिनापुर राज्य की बागडोर संभाल पावोगे. जरा अच्छे और बुरे में भेद करना सीखो. सिर्फ़ बैनर का और स्टार कास्ट का नाम बडा होने से ही फ़िल्म अच्छी नही हो जाती वत्स.
अब अंगराज कर्ण बोले - महाराज श्री, आपकी बात सही है. द्वापर से लेकर इस ब्लागयुग में अकेले सिर्फ़ आप ही हैं जो अंधे होते हुये भी पूरी बारीकी से फ़िल्म देख सकते हैं और बहरे होते हुये भी पूरी तरह से संगीत को बारीकी से सुन सकते हैं. महाराज आपको इन दोनों फ़िल्मों में क्या अच्छा बुरा लगा? जरा वह भी बताने की कॄपा करें.
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - वाह अंगराज कर्ण वाह, यह आपने बहुत बढिया सवाल किया है. तनु वेड्स मनु में पटकथा इतनी चुस्त और सादगी लिये हुये है कि फ़िल्म देखते हुये हम पूरी तरह से उसमे खो गये. एक एक फ़्रेम कसा हुआ लगता है. और पूरा संगीत इतना लाजवाब है कि इन कई वर्षों में ऐसा गीत संगीत फ़िल्मों में देखने सुनने को नही मिला. इसका संगीत सुनते हुये एक दूसरी ही दुनियां में पहूंच जाते हैं खासकर रंगरेज मेरे...वाले गीत मे... और कंगना राणाऊत की पहली बार कोई फ़िल्म देखी और हम तो उसकी अदाकारी के कायल होगये... यानि तनुजा त्रिवेदी के रोल में तो वो लाजवाब रही... उस के द्वारा किया हुआ कनपुरिया डांस तो कमाल का था. हमारे राजमहल की नर्तकी भी ऐसा डांस नही कर सकती. इसीलिये यह फ़िल्म हमने कई बार देखी.
युवराज ने पूछा - तातश्री, और क्या विशेषता रही इस फ़िल्म की?
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - वत्स, इस फ़िल्म में हमें जिम्मी शेरगिल की एक्टिंग बहुते लाजवाब लगी और उसी की जुबानी एक और बात का पता चला कि शादी का जोडा तो लखनऊ से ही खरीदना चाहिये, कानपुर में तो सिर्फ़ चमडा ही मिलता है. बस पूरी फ़िल्म लाजवाब है.
कर्ण बोला - महाराज श्री आपको "मेरे ब्रदर की दुल्हन" में क्या खास बात लगी?
ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - अंगराज, यह सारी फ़िल्म हर मामले में बकवास है. इस पूरी फ़िल्म में तनु वेड्स मनु की भौंडी नकल मारने की कोशीश की गई है, लचर संगीत, भव्य सेट्स और सारे तामझाम के बावजूद भी यह बकवास है. इतने बडे बैनर को इस तरह की नकल करने की क्या जरूरत आ पडी? शायद इस बैनर की अब तक की सबसे बकवास फ़िल्म है. नकल मारने में भी अक्ल नही लगाई गई है.
हां इस फ़िल्म में एक रेपिड फ़ायर विडियो कांफ़्रेंसिंग का सीन है जो कटरीना कैफ़ उसके होने वाले दुल्हे से पूछती है. वैसे तो अभी तक देखने सुनने में नही आया पर अगर भविष्य में ऐसा हुआ कि कोई लडकी ब्लागर किसी लडके ब्लागर से इस तरह के रेपिड फ़ायर के सवाल शादी के पहले करे तो वो कुछ यों होंगे.
लडकी ब्लागर : बेनामी टिप्पणी या नाम सहित?
लडका ब्लागर : बेनामी टिप्पणी.
लडकी ब्लागर : मौज लेना या पोस्ट निकालना
लडका ब्लागर : दोनों.
लडकी ब्लागर : टांग खिंचाई या तथ्यात्मक?
लडका ब्लागर : खांटी टांग खिंचाई.
लडकी ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी या निष्पक्ष?
लडका ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी
लडकी ब्लागर : ज्यादा टिप्पणियां महिला ब्लागर की पोस्ट पर या पुरूष ब्लागर की पोस्ट पर?
लडका ब्लागर : डार्लिंग अब बस भी करो, तुम जानती तो हो....फ़िर सब कुछ साफ़ साफ़ ही क्यूं पूछ रही हो?
लडकी ब्लागर : ओह डार्लिंग...आई लव यू...चलो हम शादी कर ही लेते है....इतने विचारों का साम्य आखिर और कहां मिलेगा?
बहुत खूब ताऊ श्री.
ReplyDeleteथारी अक्ल का भी जबाब नहीं.
सावन के अंधे को हरा हरा क्यूँ सूझे है?
ताऊ मेरे, छोडियै मत कोई सा काम। इब यो समीक्षा भी इश्टारट कर दी?
ReplyDeleteलेकिन मजा आया, म्हारे पीसे और टैम बचा दिया:)
रामराम।
वाह!
ReplyDeleteताऊ ने कमाल कर दिया!
कनपुरिया डांस ने धमाल कर दिया!!
वाह ताऊ वाह ...........
ReplyDeleteहाँ अब शादी का माहौल बन गया है ...कहाँ नाचेगी रक्कासा ......और गाने में चारो और ब्लॉगर कौन कौन हैं -बस pabla sir yaa और bhee koi ?
ReplyDeleteताऊ जी,
ReplyDeleteअक्ल गई घास चरने। होती तो नकल ही क्यूँ मारते?
बहुत खूब, मज़ेदार!
ReplyDelete:):) कहाँ की बात कहाँ जोड़ देते हैं ... चलो हमारे पैसे तो बचे
ReplyDeleteगज़ब कर डाला ताऊ...जिओ.... डांस तो कमाल का था. ......
ReplyDeleteक्या क्या रिसर्च कर डाल रहे हैं...जल्दी कहीं डॉ न लिखने लगना नाम के साथ.
ताऊ ये आपने समीक्षा फिल्म की की है, ब्लागर्स की या फिर भारतीय सत्ता की..
ReplyDeleteदेशी जलेबी का रस चॉकलेट में कहाँ?
ReplyDeleteआदरणीय ताऊ जी
ReplyDeleteआपको इस नेक कम के लिए बधाई .....वैसे ब्लॉगर लड़की और लड़के के संवाद के माध्यम से आपने बहत सी बातें उजागर की हैं पूरी की पूरी पोस्ट सोचने पर मजबूर करती है ....!
राम राम केवल राम की तरफ से
दोनों अंक पढ़ लिये बहुत बढ़िया मजाक
ReplyDeleteवाह !
'ब्लागयुग में अकेले सिर्फ़ आप ही हैं जो अंधे होते हुये भी पूरी बारीकी से फ़िल्म देख सकते हैं और बहरे होते हुये भी पूरी तरह से संगीत को बारीकी से सुन सकते हैं. '
ReplyDeleteब्लोगयुग बड़ी तेज़ी से पश्चिमी प्रभाव में अत्याधुनिक हो रहा है.
ब्लोगभारत शोध का विषय !
तनु वेड्स मनु तो देखी थी ..ये ब्रदर की दुल्हन भी देख ही लेते हैं ..देखें ताऊ कितना सही बोलते हैं.
ReplyDeleteताउजी ये वाली पोस्ट तो एकदम ही रोचक मालूम पर रही है .....,राम -राम
ReplyDeleteकनपुरिया डांस देख मन मस्त हो गया ताऊ जी.
ReplyDeleteओ हो , तो सारा चक्कर कानपुरिया डांस का है ।
ReplyDeleteताई के साथ न देखी होती तो दूसरी भी पसंद आती । :)
ताऊ!
ReplyDeleteअब तो कुछ भी नहीं बाकी रहा कहने को!!क्रमशः से पहले तो ट्रेलर था, क्रमशः के बाद तो पूरी फिल्म हिट है!!
राम राम!
यह एपीसोड भी लाजवाब है...
ReplyDeleteगीत गाया गज़ब का, ऊपर से झुमका बरेली वाला। तबियत गार्डन-गार्डन हो गयी ताऊ। पीसे तो म्हारे भी वसूल हो लिये।
ReplyDeleteहमने तो वो भी नहीं देखी थी और ये तो सवाल ही नहीं उठता। अब तो प्रमाण पत्र भी साथ है कि बेकार है, धन्यवाद ताऊ।
ReplyDeleteजिम्मी को शायद पता नहीं कि कितने कानपुरियों को दुश्मन बना लिया है इसने ---
ReplyDeleteराम राम ताऊ जी फिल्म की रेटिंग तो दी नहीं सिनेमा हाल में देखें या सी डी में,मजेदार वाह वाह
ReplyDeleteताऊ महाराज की जय हो | मान गए आप को आपका कोई सानी नहीं है | आपको पढ़कर बहुत मजा आता है |
ReplyDeleteकछु मिठाई-विठाई का इंतजाम है कि नाही ?
ReplyDelete------
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..