हे प्रभु ये तेरा पथ वाले श्री महावीर सेमलानी जी अपने ब्लाग पर भी जैन धर्म से संबंधित आलेख लिखते ही रहते हैं. और उन्होनें निम्न आलेख हमें इस जवाबी पोस्ट के लिये उपलब्ध करवाया है जिसे हम ज्यों त्यों छाप रहे हैं और उनके आभारी हैं.Sittannavasal - The Arivar-koil
दक्षिण के तामिल प्रदेश में भी जैन धर्म का प्रचार व प्रभाव बहुत प्राचीन काल से पाया जाता है। तामिल साहित्य का सबसे प्राचीन भाग `संगम युग' का माना जाता है, और इस युग की प्रायः समस्त प्रधान कृतियां तिरुकुरुल आदि जैन या जैनधर्म से सुप्रभावित सिद्ध होती हैं। जैन द्राविड़संघ का संगठन भी सुप्राचीन पाया जाता है। अतएव स्वाभाविक है कि इस प्रदेश में भी प्राचीन जैन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हों। जैनमुनियों का एक प्राचीन केन्द्र पुडुकोट्टाइ से वायव्य दिशा में ९ मील दूर सित्तन्नवासल नामक स्थान रहा है। यह नाम सिद्धानां वासः से अपभ्रष्ट होकर बना प्रतीत होता है।Garbha-griham
यहां के विशाल शिला-टीलों में बनी हुई एक जैनगुफा बड़ी महत्वपूर्ण है। यहां एक ब्राह्मी लिपि का लेख भी मिला है, जो ई. पू. तृतीय शती का (अशोककालीन) प्रतीत होता है। लेख में स्पष्ट उल्लेख है कि गुफा का निर्माण जैन मुनियों के निमित्त कराया गया था। यह गुफा बड़ी विशाल १०० X ५० फुट है। इसमें अनेक कोष्ठक हैं, जिनमें समाधि-शिलाएं भी बनी हुई हैं। ये शिलाएं ६ X ४ फुट हैं। वास्तुकला की दृष्टि से तो यह गुफा महत्वपूर्ण है ही, किन्तु उससे भी अधिक महत्व उसकी चित्रकला का है, गुफा का यह संस्कार पल्लव नरेश महेन्द्रवर्मन् (आठवीं शती) के काल में हुआ है।Chithanavasal or Sittannavasal
जैन चित्रकला
चित्रकला के प्राचीन उल्लेख -
भारतवर्ष में चित्रकला का भी बड़ा प्राचीन इतिहास है। इस कला के साहित्य में बहुत प्राचीन उल्लेख पाये जाते हैं,
यहां यह कला जिस विकसित रूप में प्राप्त होती है, वह स्वयं बतला रही है कि उससे पूर्व भी भारतीय कलाकारों ने अनेक वैसे भित्तिचित्र दीर्घकाल तक बनाए होंगे, तभी उनको इस कला का वह कौशल और अभ्यास प्राप्त हो सका जिसका प्रदर्शन हम उन गुफाओं में पाते हैं।The samava-sarana composition
जैन साहित्यिक उल्लेखों से प्रमाणित है कि जैन परम्परा में चित्रकला का प्रचार अति प्राचीन काल में हो चुका था और यह कला सुविकसित तथा सुव्यवस्थित हो चुकी थी।
भित्ति-चित्र -
जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन उदाहरण हमें तामिल प्रदेश के तंजोर के समीप सित्तन्नवासल की उस गुफा में मिलते हैं जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। किसी समय इस गुफा में समस्त मित्तियां व छत चित्रों से अलंकृत थे, और गुफा का वह अलंकरण महेन्द्रवर्मा प्रथम के राज्य काल (ई. ६२५) में कराया गया था। शैव धर्म स्वीकार करने से पूर्व यह राजा जैनधर्मावलम्बी था। वह चित्रकला का इतना प्रेमी था कि उसने दक्षिण-चित्र नामक शास्त्र का संकलन कराया था। गुफा के अधिकांश चित्र तो नष्ट हो चुके हैं, किन्तु कुछ अब भी इतने सुव्यवस्थित हैं कि जिनसे उनका स्वरूप प्रकट हो जाता है। इनमें आकाश में मेघों के बीच नृत्य करती हुई अप्सराओं की तथा राजा-रानी की आकृतियां स्पष्ट और सुन्दर हैं। छत पर के दो चित्र कमल-सरोवर के हैं। सरोवर के बीच एक युगल की आकृतियां हैं, जिनमें स्त्री अपने दाहिने हाथ से कमलपुष्प तोड़ रही है, और पुरुष उससे सटकर बाएं हाथ में कमल-नाल को कंधे पर लिए खड़ा है। युगल का यह चित्रण बड़ा ही सुन्दर है। ऐसा भी अनुमान किया गया है कि ये चित्र तत्कालीन नरेश महेन्द्रवर्मा और उनकी रानी के ही हैं। एक ओर हाथी अनेक कमलनालों को अपनी सूड़ में लपेट कर उखाड़ रहा है, कहीं गाय कमलनाल चर रही है, हंस-युगल क्रीड़ा कर रहे हैं, पक्षी कमल मुकुलों पर बैठे हुए हैं, व मत्स्य पानी में चल-फिर रहे हैं। दूसरा चित्र भी इसी का क्रमानुगामी है। उसमें एक मनुष्य तोड़े हुए कमलों से भरी हुई टोकरी लिये हुए है, तथा हाथी और बैल क्रीड़ा कर रहे हैं। हाथियों का रंग भूरा व बैलों का रंग मटियाला है। विद्वानों का अनुमान है कि ये चित्र तीर्थंकर के समवसरण की खातिका-भूमि के हैं, जिनमें भव्य-जन पूजा-निमित्त कमल तोड़ते हैं।The samava-sarana composition3
इसी चित्र का अनुकरण एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर के एक चित्र में भी पाया जाता है। यद्यपि यह मंदिर शैव है, तथापि इसमें उक्त चित्र के अतिरिक्त एक ऐसा भी चित्र है जिसमें एक दिगम्बर मुनि को पालकी में बैठाकर यात्रा निकाली जा रही है।
१०-११ वीं शती में जैनियों ने अपने मंदिरों में चित्रनिर्माण द्वारा दक्षिण प्रदेश में चित्रकला को खूब पुष्ट किया। उदाहरणार्थ, तिरु मलाई के जैनमंदिर में अब भी चित्रकारी के सुन्दर उदाहरण विद्यमान हैं जिनमें देवता व किंपुरुष आकाश में मेघों के बीच उड़ते हुए दिखाई देते हैं। देव पंक्तिबद्ध होकर समोसरण की ओर जा रहे हैं। गंधर्व व अप्सराएं भी बने हैं। एक देव फूलों के बीच खड़ा हुआ है। श्वेत वस्त्र धारण किये अप्सराएं पंक्तिबद्ध स्थित हैं। एक चित्र में दो मुनि परस्पर सम्मुख बैठे दिखाई देते हैं। कहीं दिगंबर मुनि आहार देने वाली महिला को धर्मोपदेश दे रहे हैं। एक देवता चतुर्भुज व त्रिनेत्र दिखाई देता है, जो सम्भवतः इन्द्र है। ये सब चित्र काली भित्ति पर नाना रंगों से बनाए गये हैं। रंगों की चटक अजन्ता के चित्रों के समान हैं। देवों, आर्यों व मुनियों के चित्रों में नाक व ठुड्डी का अंकन कोणात्मक तथा दूसरी आंख मुखाकृति के बाहर को निकली हुई सी बनाई गई है। आगे की चित्रकला इस शैली से बहुत प्रभावित पायी जाती है।
| श्री उडनतश्तरी अंक 99 |
| सुश्री सीमा गुप्ता अंक 96 |
| श्री Darshan Lal Baweja अंक 95 |
| सुश्री Indu Arora अंक 94 |
प. श्री. डी. के. शर्मा “वत्स” अंक 93 |
| Dr.Ajmal Khan अंक 92 |
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| सुश्री Anju अंक 90 |
| सभी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएं. |
श्री अविनाश वाचस्पति श्री हे प्रभु ये तेरा पथ सुश्री M.A.Sharma "सेहर" श्री अशोक पांडे श्री पी.सी.गोदियाल श्री दिनेशराय द्विवेदी सुश्री अंजना श्री sabir*h*khan सुश्री Anju Dr.Ajmal Khan अब अगले शनिवार को ताऊ पहेली में फ़िर मिलेंगे. तब तक जयराम जी की! |
अब आईये आपको उन लोगों से मिलवाता हूं जिन्होने इस पहेली अंक मे भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया. आप सभी का बहुत बहुत आभार.
श्री अभिषेक ओझा, और
श्री ललित शर्मा
श्री स्मार्ट इंडियन
श्री काजलकुमार,
श्री नीरज जाट जी
श्री सतीश सक्सेना
श्री जीतेंद्र
श्री नरेश सिंह राठौड
श्री राज भाटिया
डा.अरूणा कपूर
डा.रुपचंद्रजी शाश्त्री "मयंक,
श्री गगन शर्मा
श्री आशीष मिश्रा
श्री रंजन
अब अगली पहेली का जवाब लेकर अगले सोमवार फ़िर आपकी सेवा मे हाजिर होऊंगा तब तक के लिये आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये. नमस्कार!
आयोजकों की तरफ़ से सभी प्रतिभागियों का इस प्रतियोगिता मे उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. !
ताऊ पहेली के इस अंक का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.




