प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 86 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है Junagadh Fort-Bikaner-Rajasthan
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.
राजस्थान है ही इतना खूबसूरत और रंग बिरंगा प्रदेश कि इस के जिस भी हिस्से की बात करें वहाँ दिल रमने लगता है.थार के रेगिस्तान भी यहाँ के लोगों के मस्त मस्त स्वभाव को बदल न सके और उन्होंने इन्हीं रेत के टीलों के बीच अपनी जीवटता की छाप छोड़ी हैं.
आज एक बहुत ही खूबसूरत शहर लिए चलते हैं वह है बीकानेर.नमकीन भुजिया का पर्याय है बीकानेरी भुजिया!नमकीन ही नहीं यहाँ का रसगुल्ला ,पतीसा भी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में लोकप्रिय है.राजस्थान के इस जिले के बारे में हलकी सी जानकारी देती चलूँ.
यह जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में है.इसका अधिकांश हिस्सा अनुपजाऊ और रेगिस्तान है .इसके दक्षिण-पश्चिम में मगरा नाम की पथरीली भूमि है,जहाँ बारिश होने के कारण कुछ पैदावार हो पाती है.
इसका पुराना नाम जांगल देश था.जोधपुर के शासक राव जोधा के पुत्र राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई.राजा राय सिंह ने इसे सुन्दर रूप दिया.महाराजा गंगासिंह जी ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया.अक्षय तृतीया के दिन बीकानेर स्थापना दिवस मनाया जाता है और यहाँ के लोग पतंग उड़ाकर उत्सव मनाते हैं.बीकानेर शहर के रहने वाले प्रसिद्ध गज़लकार राजेंद्र स्वर्णकार जी ने अपने शहर की प्रशंसा में दोहे लिखे और पढ़े हैं उन्हें यहाँ सुन सकते हैं.
*बीकानेर का लोक साहित्य काफी समृद्ध हैं.राजपरिवार के लोगों ने भी साहित्य में योगदान किया है.उदाहरण हेतु बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी मे टीका लिखी थी.
*राज्य की शिक्षा व्यवस्था का कुंभ भी कहा जाता है.
*बीकानेर में ज्योतिष ,तंत्र मन्त्र आदि के कई ज्ञाता भी बड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं.इन में ज्योतिषाचार्य पंडित बाबूलालजी शास्त्री का नाम बड़े आदर से लिया जाता है.
*यहाँ के रंग बिरंगे जीवन में तीज ,त्यौहार,मेले ख़ास भूमिका रखते हैं.कोलायत मेला,मुकम मेला,देशनोक मेला,नागिनी जी मेला,तीज मेला, शिवबाड़ी मेला, नरसिंह चर्तुदशी मेला, सुजनदेसर मेला, केनयार मेला, जेठ भुट्टा मेला, कोड़मदेसर मेला, दादाजी का मेला, रीदमालसार मेला, धूणीनाथ का मेला आदि लोकप्रिय मेले हैं.
*मुख्य दर्शनीय स्थल लालगढ़ का महल,गंगा गोल्डन जुबली संग्रहालय,राज रतन बिहारी और रसिक शिरोमणी मंदिर,बीका-की-टेकरी का भव्य किला,लक्ष्मीनारायण मंदिर, भंडेसर मंदिर, नागणेची जी का मंदिर, देवकृण्डसागर में प्राचीन शासकों की छतरियॉ, शिवबाडी मंदिर,चूहों के लिये प्रसिद्ध करणीमाता का मंदिर हैं और शहर से थोड़ी दूर भव्य महलों और प्रवासी पक्षियों के लिये प्रसिद्ध 'गजनेर' भी दर्शनीय है.
कुमारी राजुल शेखावत के अनुसार -:बीकानेर आए और यहां की हवेलियां नहीं देखीं तो आपकी सैर अधूरी मानी जाएगी। पुराने बीकानेर शहर में तंग बल खाती गलियों के ठीक ऊपर इनके झरोखों की छटा बेहतरीन होती है। लाल पत्थर से बनी इन हवेलियों में इनके दरवाज़े ,नक्काशीदार खिड़कियां या फिर बारामदे , सबमे कुछ ऐसा है, जिसे राजसी कहा जाता है।पुराने वक्त मे ये हवेलियां धन्ना सेठों के रहने की जगह हुआ करती थी। बीकानेर की हवेलियों में से रामपुरिया हवेलियां खासी मशहूर हैं। इन हवेलियों को देखकर आपको जैसलमेर की पटवा हवेली की याद आएगी। वैसे, बीकानेर की रामपुरिया हवेलियां लाल डलमेरा पत्थरों की बनी हैं।हवेलियों की दीवारों और झरोखों पर पत्तियां और फूल उकेरे गए हैं। कमरों के भीतर सोने की जरी का बेशकीमती काम देखकर आप दांतो तले उंगली दबा बैठेगें।विरासत को सहेजने का अपना अनोखा अंदाज कहें या फिर विरासत से कमाई करने वाली व्यापारिक बुद्धि - नई पीढी ने इन हवेलियों को कमाऊ जायदाद में तब्दील करदिया है। रामपुरिया हवेलियों के मालिक प्रशांत रामपुरिया के मुताबिक,हवेलियों को होटल में तब्दील करने की वजह से उनका रखराखाव आसान हो जाता है। कमाई के साथ-साथ ही विरासत भी सहेजी जा रही है.
जूनागढ़ का किला -:
बीकानेर में स्थित जूनागढ़ किले को भारतीय कलात्मक-जगत का अदभूत केंद्र कहा जाता है .इस किले का निर्माण राजा राय सिंह ने ३० जनवरी १५८६ में शुरू करवाया था और यह आठ साल में १७ फरवरी १५९४ को पूरा हुआ.उनके बाद भी बीकानेर के हर शासक ने इस किले को समृद्ध किया.मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद बीकानेर के कला प्रेमी शासकों ने विस्थापित उस्ता कारीगरों को अपने दरबार में शरण दी.
Junagarh Fort
इसका नाम पहले चिंतामणि दुर्ग रखा गया था.बाद में सिर्फ 'गढ़ ' कहा जाता था. लालगढ़ दुर्ग बन जाने के बाद इसे लोग पुराना किला [ जूनागढ़ ]कहने लगे .
विकिपीडिया और रतन सिंह शेखावत जी के लिखे विवरण- के आधार पर -इस के परकोटे की परिधि ९६८ मीटर है जिसके चारों और नौ मीटर चौडी व आठ मीटर गहरी खाई है,किले ३७ बुर्जे बनी है जिन पर कभी तोपें रखी जाती थी |
किले पर लाल पत्थरों को तराश कर बनाए गए कंगूरे देखने में बहुत ही सुन्दर लगते है |
Junagarh fort kings palace
पूरब और पश्चिम के दरवाजों को कर्णपोल और चांदपोल कहते है.मुख्य द्वार सूरजपोल के अलावा दौलतपोल,फतहपोल, तरनपोल और ध्रुवपोल है.किले के भीतरी भाग में आवासीय इमारते ,कुँए ,महलों की लम्बी श्रंखला है जिनका निर्माण समय समय पर विभिन्न राजाओं ने अपनी कल्पना अनुरूप करवाया था.
जनानी ड्योढी से लेकर त्रिपोलिया तक पांच मंजिला महलों की श्रंखला है पहली मंजिल में सिलहखाना,भोजनशाला ,हुजुरपोडी बारहदरिया,गुलाबनिवास,शिवनिवास,फीलखाना और गोदाम के पास पाचों मंजिलों को पार करता हुआ ऊँचा घंटाघर है | दूसरी मंजिल में जोरावर हरमिंदर का चौक और विक्रम विलास है | रानियों के लिए ऊपर जालीदार बारहदरी है | भैरव चौक ,कर्ण महल और ३३ करौड़ देवी देवताओं का मंदिर दर्शनीय है | इसके बाद कुंवर-पदा है जहाँ सभी महाराजाओं के चित्र लगे है |
जनानी ड्योढी के पास संगमरमर का तालाब है फिर कर्ण सिंह का दरबार हाल है जिसमे सुनहरा काम उल्लेखनीय है | पास में चन्द्र महल,फूल महल , चौबारे,अनूप महल,सरदार महल,गंगा निवास, गुलाबमंदिर, डूंगर निवास और भैरव चौक है | चौथी मंजिल में रतननिवास, मोतीमहल,रंगमहल , सुजानमहल और गणपतविलास है |
पांचवी मंजिल में छत्र निवास पुराने महल ,बारहदरिया आदि महत्वपूर्ण स्थल है | अनूप महल में सोने की पच्चीकारी एक उत्कृष्ट कृति है | इसकी चमक आज भी यथावत है | गढ़ के सभी महलों में अनूप महल सबसे ज्यादा सुन्दर व मोहक है | महल के पांचो द्वार एक बड़े चौक में खुलते है | महल के नक्काशीदार स्तम्भ ,मेहराब आदि की बनावट अनुपम है | फूल महल और चन्द्र महल में कांच की जडाई आमेर के चन्द्र महल जैसी ही उत्कृष्ट है | फूल महल में पुष्पों का रूपांकन और चमकीले शीशों की सजावट दर्शनीय है | अनूप महल के पास ही बादल महल है | यहाँ की छतों पर नीलवर्णी उमड़ते बादलों का चित्रांकन है | बादल महल के सरदार महल है | पुराने ज़माने में गर्मी से कैसे बचा जा सकता था ,इसकी झलक इस महल में है | गज मंदिर व गज कचहरी में रंगीन शीशों की जडाई बहुत अच्छी है | छत्र महल तम्बूनुमा बना है जिसकी छत लकडी की बनी है | कृष्ण-रासलीला की आकर्षक चित्रकारी इस महल की विशेषता है |
junagarh fort queens
श्री नरेश सिह राठौङ जी कहते हैं -इस गढ़ के अन्दर जो सोने की पच्चीकारी की गयी है उसके कारीगर आज गुमनामी की जिन्दगी जी रहे है । बीकानेर मे एक मोहल्ला है जो भुजिया बाजार के पिछे है उसे उस्तों का मोह्ल्ला के नाम से जाना जाता है यह मोहल्ला इन्ही कारीगरो का मोहल्ला है ।
इस बारे मे उन्हें यह जानकारी यहाँ के एक विद्युत अधिकारी शकूर साहब ने दी है जो कि इन्ही उस्ता कारीगरो के खानदान से हैं ।
सभी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएं.
आईये अब रामप्यारी मैम की कक्षा में
अब आईये आपको उन लोगों से मिलवाता हूं जिन्होने इस पहेली अंक मे भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया. आप सभी का बहुत बहुत आभार.
श्री ललित शर्मा
अभिषेक ओझा,
श्री अविनाश वाचस्पति
श्री मनोज कुमार
श्री पी.एन.सुब्रमनियन
श्री राम त्यागी
श्री संजय बेंगाणी
डा. अरुणा कपूर.
श्री पी.सी.गोदियाल,
सुश्री anshumala
श्री राज भाटिया
श्री महेंद्र मिश्र
श्री नीरज गोस्वामी
सुश्री वंदना
डॉ टी एस दराल
सुश्री अनामिका की सदायें .....
आयोजकों की तरफ़ से सभी प्रतिभागियों का इस प्रतियोगिता मे उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. !
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.
राजस्थान है ही इतना खूबसूरत और रंग बिरंगा प्रदेश कि इस के जिस भी हिस्से की बात करें वहाँ दिल रमने लगता है.थार के रेगिस्तान भी यहाँ के लोगों के मस्त मस्त स्वभाव को बदल न सके और उन्होंने इन्हीं रेत के टीलों के बीच अपनी जीवटता की छाप छोड़ी हैं.
आज एक बहुत ही खूबसूरत शहर लिए चलते हैं वह है बीकानेर.नमकीन भुजिया का पर्याय है बीकानेरी भुजिया!नमकीन ही नहीं यहाँ का रसगुल्ला ,पतीसा भी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में लोकप्रिय है.राजस्थान के इस जिले के बारे में हलकी सी जानकारी देती चलूँ.
यह जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में है.इसका अधिकांश हिस्सा अनुपजाऊ और रेगिस्तान है .इसके दक्षिण-पश्चिम में मगरा नाम की पथरीली भूमि है,जहाँ बारिश होने के कारण कुछ पैदावार हो पाती है.
इसका पुराना नाम जांगल देश था.जोधपुर के शासक राव जोधा के पुत्र राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई.राजा राय सिंह ने इसे सुन्दर रूप दिया.महाराजा गंगासिंह जी ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया.अक्षय तृतीया के दिन बीकानेर स्थापना दिवस मनाया जाता है और यहाँ के लोग पतंग उड़ाकर उत्सव मनाते हैं.बीकानेर शहर के रहने वाले प्रसिद्ध गज़लकार राजेंद्र स्वर्णकार जी ने अपने शहर की प्रशंसा में दोहे लिखे और पढ़े हैं उन्हें यहाँ सुन सकते हैं.
*बीकानेर का लोक साहित्य काफी समृद्ध हैं.राजपरिवार के लोगों ने भी साहित्य में योगदान किया है.उदाहरण हेतु बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी मे टीका लिखी थी.
*राज्य की शिक्षा व्यवस्था का कुंभ भी कहा जाता है.
*बीकानेर में ज्योतिष ,तंत्र मन्त्र आदि के कई ज्ञाता भी बड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं.इन में ज्योतिषाचार्य पंडित बाबूलालजी शास्त्री का नाम बड़े आदर से लिया जाता है.
*यहाँ के रंग बिरंगे जीवन में तीज ,त्यौहार,मेले ख़ास भूमिका रखते हैं.कोलायत मेला,मुकम मेला,देशनोक मेला,नागिनी जी मेला,तीज मेला, शिवबाड़ी मेला, नरसिंह चर्तुदशी मेला, सुजनदेसर मेला, केनयार मेला, जेठ भुट्टा मेला, कोड़मदेसर मेला, दादाजी का मेला, रीदमालसार मेला, धूणीनाथ का मेला आदि लोकप्रिय मेले हैं.
*मुख्य दर्शनीय स्थल लालगढ़ का महल,गंगा गोल्डन जुबली संग्रहालय,राज रतन बिहारी और रसिक शिरोमणी मंदिर,बीका-की-टेकरी का भव्य किला,लक्ष्मीनारायण मंदिर, भंडेसर मंदिर, नागणेची जी का मंदिर, देवकृण्डसागर में प्राचीन शासकों की छतरियॉ, शिवबाडी मंदिर,चूहों के लिये प्रसिद्ध करणीमाता का मंदिर हैं और शहर से थोड़ी दूर भव्य महलों और प्रवासी पक्षियों के लिये प्रसिद्ध 'गजनेर' भी दर्शनीय है.
कुमारी राजुल शेखावत के अनुसार -:बीकानेर आए और यहां की हवेलियां नहीं देखीं तो आपकी सैर अधूरी मानी जाएगी। पुराने बीकानेर शहर में तंग बल खाती गलियों के ठीक ऊपर इनके झरोखों की छटा बेहतरीन होती है। लाल पत्थर से बनी इन हवेलियों में इनके दरवाज़े ,नक्काशीदार खिड़कियां या फिर बारामदे , सबमे कुछ ऐसा है, जिसे राजसी कहा जाता है।पुराने वक्त मे ये हवेलियां धन्ना सेठों के रहने की जगह हुआ करती थी। बीकानेर की हवेलियों में से रामपुरिया हवेलियां खासी मशहूर हैं। इन हवेलियों को देखकर आपको जैसलमेर की पटवा हवेली की याद आएगी। वैसे, बीकानेर की रामपुरिया हवेलियां लाल डलमेरा पत्थरों की बनी हैं।हवेलियों की दीवारों और झरोखों पर पत्तियां और फूल उकेरे गए हैं। कमरों के भीतर सोने की जरी का बेशकीमती काम देखकर आप दांतो तले उंगली दबा बैठेगें।विरासत को सहेजने का अपना अनोखा अंदाज कहें या फिर विरासत से कमाई करने वाली व्यापारिक बुद्धि - नई पीढी ने इन हवेलियों को कमाऊ जायदाद में तब्दील करदिया है। रामपुरिया हवेलियों के मालिक प्रशांत रामपुरिया के मुताबिक,हवेलियों को होटल में तब्दील करने की वजह से उनका रखराखाव आसान हो जाता है। कमाई के साथ-साथ ही विरासत भी सहेजी जा रही है.
बीकानेर में स्थित जूनागढ़ किले को भारतीय कलात्मक-जगत का अदभूत केंद्र कहा जाता है .इस किले का निर्माण राजा राय सिंह ने ३० जनवरी १५८६ में शुरू करवाया था और यह आठ साल में १७ फरवरी १५९४ को पूरा हुआ.उनके बाद भी बीकानेर के हर शासक ने इस किले को समृद्ध किया.मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद बीकानेर के कला प्रेमी शासकों ने विस्थापित उस्ता कारीगरों को अपने दरबार में शरण दी.
इसका नाम पहले चिंतामणि दुर्ग रखा गया था.बाद में सिर्फ 'गढ़ ' कहा जाता था. लालगढ़ दुर्ग बन जाने के बाद इसे लोग पुराना किला [ जूनागढ़ ]कहने लगे .
विकिपीडिया और रतन सिंह शेखावत जी के लिखे विवरण- के आधार पर -इस के परकोटे की परिधि ९६८ मीटर है जिसके चारों और नौ मीटर चौडी व आठ मीटर गहरी खाई है,किले ३७ बुर्जे बनी है जिन पर कभी तोपें रखी जाती थी |
किले पर लाल पत्थरों को तराश कर बनाए गए कंगूरे देखने में बहुत ही सुन्दर लगते है |
पूरब और पश्चिम के दरवाजों को कर्णपोल और चांदपोल कहते है.मुख्य द्वार सूरजपोल के अलावा दौलतपोल,फतहपोल, तरनपोल और ध्रुवपोल है.किले के भीतरी भाग में आवासीय इमारते ,कुँए ,महलों की लम्बी श्रंखला है जिनका निर्माण समय समय पर विभिन्न राजाओं ने अपनी कल्पना अनुरूप करवाया था.
जनानी ड्योढी से लेकर त्रिपोलिया तक पांच मंजिला महलों की श्रंखला है पहली मंजिल में सिलहखाना,भोजनशाला ,हुजुरपोडी बारहदरिया,गुलाबनिवास,शिवनिवास,फीलखाना और गोदाम के पास पाचों मंजिलों को पार करता हुआ ऊँचा घंटाघर है | दूसरी मंजिल में जोरावर हरमिंदर का चौक और विक्रम विलास है | रानियों के लिए ऊपर जालीदार बारहदरी है | भैरव चौक ,कर्ण महल और ३३ करौड़ देवी देवताओं का मंदिर दर्शनीय है | इसके बाद कुंवर-पदा है जहाँ सभी महाराजाओं के चित्र लगे है |
जनानी ड्योढी के पास संगमरमर का तालाब है फिर कर्ण सिंह का दरबार हाल है जिसमे सुनहरा काम उल्लेखनीय है | पास में चन्द्र महल,फूल महल , चौबारे,अनूप महल,सरदार महल,गंगा निवास, गुलाबमंदिर, डूंगर निवास और भैरव चौक है | चौथी मंजिल में रतननिवास, मोतीमहल,रंगमहल , सुजानमहल और गणपतविलास है |
पांचवी मंजिल में छत्र निवास पुराने महल ,बारहदरिया आदि महत्वपूर्ण स्थल है | अनूप महल में सोने की पच्चीकारी एक उत्कृष्ट कृति है | इसकी चमक आज भी यथावत है | गढ़ के सभी महलों में अनूप महल सबसे ज्यादा सुन्दर व मोहक है | महल के पांचो द्वार एक बड़े चौक में खुलते है | महल के नक्काशीदार स्तम्भ ,मेहराब आदि की बनावट अनुपम है | फूल महल और चन्द्र महल में कांच की जडाई आमेर के चन्द्र महल जैसी ही उत्कृष्ट है | फूल महल में पुष्पों का रूपांकन और चमकीले शीशों की सजावट दर्शनीय है | अनूप महल के पास ही बादल महल है | यहाँ की छतों पर नीलवर्णी उमड़ते बादलों का चित्रांकन है | बादल महल के सरदार महल है | पुराने ज़माने में गर्मी से कैसे बचा जा सकता था ,इसकी झलक इस महल में है | गज मंदिर व गज कचहरी में रंगीन शीशों की जडाई बहुत अच्छी है | छत्र महल तम्बूनुमा बना है जिसकी छत लकडी की बनी है | कृष्ण-रासलीला की आकर्षक चित्रकारी इस महल की विशेषता है |
श्री नरेश सिह राठौङ जी कहते हैं -इस गढ़ के अन्दर जो सोने की पच्चीकारी की गयी है उसके कारीगर आज गुमनामी की जिन्दगी जी रहे है । बीकानेर मे एक मोहल्ला है जो भुजिया बाजार के पिछे है उसे उस्तों का मोह्ल्ला के नाम से जाना जाता है यह मोहल्ला इन्ही कारीगरो का मोहल्ला है ।
इस बारे मे उन्हें यह जानकारी यहाँ के एक विद्युत अधिकारी शकूर साहब ने दी है जो कि इन्ही उस्ता कारीगरो के खानदान से हैं ।
श्री रतनसिंह शेखावत अंक 101 |
श्री प्रकाश गोविंद अंक 100 |
Dr.Ajmal Khan अंक 99 |
प. श्री. डी. के. शर्मा “वत्स” अंक 98 |
सुश्री सीमा गुप्ता अंक 97 |
श्री सुज्ञ अंक 96 |
श्री उडनतश्तरी अंक 95 |
श्री Darshan Lal Baweja अंक 94 |
सुश्री Indu Arora अंक 93 |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक अंक 92 |
सुश्री Anju अंक 91 |
श्री विवेक रस्तोगी अंक 90 |
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई! |
निम्न सभी प्रतिभागियों को सवाल का सही जवाब देने के लिये 20 नंबर दिये हैं सभी कॊ बधाई. सुश्री सीमा गुप्ता श्री प्रकाश गोविंद श्री अंतर सोहिल श्री Darshan Lal Baweja सुश्री इंदु अरोड़ा डा.रुपचंद्रजी शाश्त्री "मयंक, सुश्री Anju अब अगले शनिवार को ताऊ पहेली में फ़िर मिलेंगे. तब तक जयराम जी की! |
अब आईये आपको उन लोगों से मिलवाता हूं जिन्होने इस पहेली अंक मे भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया. आप सभी का बहुत बहुत आभार.
श्री ललित शर्मा
अभिषेक ओझा,
श्री अविनाश वाचस्पति
श्री मनोज कुमार
श्री पी.एन.सुब्रमनियन
श्री राम त्यागी
श्री संजय बेंगाणी
डा. अरुणा कपूर.
श्री पी.सी.गोदियाल,
सुश्री anshumala
श्री राज भाटिया
श्री महेंद्र मिश्र
श्री नीरज गोस्वामी
सुश्री वंदना
डॉ टी एस दराल
सुश्री अनामिका की सदायें .....
अब अगली पहेली का जवाब लेकर अगले सोमवार फ़िर आपकी सेवा मे हाजिर होऊंगा तब तक के लिये आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" को इजाजत दिजिये. नमस्कार!
आयोजकों की तरफ़ से सभी प्रतिभागियों का इस प्रतियोगिता मे उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. !
ताऊ पहेली के इस अंक का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteभाई रतन सिंह एवं अन्य विजेताओं को बहुत बधाई..
ReplyDeleteपता नहीं कैसे गुजरात से जबाब नहीं आया. :)
सभी विजेताओं और प्रतिभागियों को बधाई!
ReplyDeleteबीकानेर के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए अल्पना जी का हार्दिक आभार
ReplyDeleteसभी विजेताओं को बधाई. बिकानेर के बारे में विस्तृत जानकारी पढ़कर अच्छ लगा. विडियो में पहले दोनों मोर को देखकर सोंचता रहा कि मोरनी तो है नहीं ..बाद में बच्चों के साथ मोरनी भी दिखी.
ReplyDelete..सुंदर पोस्ट.
ताऊ पहेली -86 के बहाने मेरे शहर बीकानेर से संबद्ध इतनी सारी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए सु. अल्पना वर्मा जी
ReplyDeleteकोटिशः बधाई की पात्र हैं ।
आपकी श्रम - साधना , लगन और निष्ठा वरेण्य है ! वंदनीय है ! प्रेरणास्पद है !
अल्पना जी के प्रति हार्दिक आभार और मंगलकामनाएं !
शस्वरं पर ताऊ डॉट इन के समस्त प्रशंसकों का हार्दिक स्वागत है !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
जवाब तो आया था, हमने किला लिखा, मास्टरजी ने कहा जुनागढ़ नाम भी लिखना था. :)
ReplyDeleteसभी को बधाई
ReplyDeleteपहेली हल के बहाने बहूत ही शानदार रही यह जानकारी, आभार अल्पना जी
आपकी शुभकामनाएं मेरे लिए अमूल्य निधि है!....धन्यवाद!
ReplyDelete१.अल्पना जी,बीकानेर से सम्बंधित जानकारी के लिए धन्यवाद.वीडियो बहुत ही अच्छा है.
ReplyDelete२.रतन सिंह जी व अन्य विजेताओं को बहुत बधाई.
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई! ताऊ बहुत दिन से छुट्टी पर थी आप कैसे हैं? शुभकामनायें
ReplyDeleteविजेताओं को बधाई!
ReplyDeleteपहेली के माध्यम से उपयोगी जानकारी मिली।
मोरनी का बच्चा सबसे अच्छा
ReplyDeleteसभी विजेताओं को हार्दिक बधाई!
उपयोगी जानकारी ...
ReplyDeleteसभी विजेताओं को बधाई ...!
सभी पहेली प्रेमियों को
ReplyDeleteहार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं
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श्री रतनसिंह शेखावत जी को प्रथम आने पर बहुत-बहुत मुबारकबाद! इस किले को शेखावत जी न पहचानते तो भला कौन पहचानता ?
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मैं इस बार चूक गया ! 8.15 पर तो सो कर ही उठा था! बहुत अजीब बात थी कि एक नजर में देखने पर ही राजस्थान का किला लग रहा था, फिर प्रतियोगियों को दिक्कत क्यूँ हुयी?
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ताऊ जी आपने हिंट में भोजन की थाली दिखाई थी, इससे अच्छा अगर बीकानेर की भुजिया (नमकीन) दिखाई होती तो ज्यादा सहूलियत होती :) यहाँ बहुत प्रसिद्द है सब जानते हैं!
[यह गट्टे की सब्जी क्या चीज है?]
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बहुत सुन्दर पहेली
अल्पना जी ने किले के बारे में विस्तृत जानकारी
देकर बढ़िया ज्ञानवर्धन किया ...बहुत आभार!
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मोर-मोरनी-और बच्चे का वीडिओ बहुत प्यारा है!
सभी विजेताओं को ढेर सारी शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसभी विजेताओं को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteसभी विजेताओं और प्रतिभागियों को बधाई
ReplyDeleteभाई रतन सिंह एवं अन्य विजेताओं को बहुत बधाई....विस्तृत जानकारी देकर बढ़िया ज्ञानवर्धन किया ...बहुत आभार
ReplyDeleteशेखावत जी एवं सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाइयाँ!
ReplyDeleteरतन सिंह और अन्य सभी विजेताओं को बधाई!.... ताउजी को भी हार्दिक धाई!
ReplyDeleteसभी विजेताओं को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteJai Ram ji ki TAAU the Great.....
ReplyDeletepar Main hogya ghana late...
मा.रतन सिंह जी सहित सभी विजताओं को बहुत बहुत बधाई.
ReplyDelete-रामप्यारी ,,मोर परिवार की विडियो बहुत ही अच्छी है.
-@प्रकाश जी ,गट्टे की सब्जी -गुंधे बेसन के रोल बना कर उन्हें भाप में पका कर छोटे टुकड़े काट कर अन्य सब्जियों की तरह सूखी या तरी वाली बनाई जाती है.
-आभार
आपकी पहेली बड़ी अच्छी लगी .क्या कहने . अपनी पहेली का रुख कभी ग्राम-चौपाल तरफ भी करें .
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी मिली ...शुभकामनायें
ReplyDeleteश्री रतन सिंह जी व् अन्य विजेताओं को बधाई | यह जुना गढ़ तो हमने भी देखा है |
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