आजकल हवाएं बडी सर्द हो चली हैं. माहोल मे महाभारत के अंत का सा सन्नाटा है. कुल मिलाकर कौन कहां? कब? क्या लिख देगा..कहा नही जा सकता. यू भी अब लिखना पढना कम हो चुका है. टिपियाने का मन नही करता. कहां कब क्या सनसनी खेज लिखा मिल जायेगा? कहा नही जा सकता.
बाबा घायलदास ने पिछले सप्ताह पंकज मिश्रा से वादा किया था एक अतिथि चर्चा के लिये. उसी सिलसिले मे कुछ चिठ्ठों की पुरानी पोस्ट भी पढने मे आई. बाबा द्वारा बहुत कुछ पढा गया .. और जो कुछ पढा गया उससे बाबा घायलदास जी को अकल्पनिय तकलीफ़ पहुंची. जो लोग बाबा घायलदास जी के सामने वाह वाह करते थे उन्हीं लोगों ने जमकर बाबा को परम वचनों से नवाज रखा था.
उनकी भाषा और दृष्टांत से बाबा घायलदास जी ने तुरंत उनको पहचान लिया और इतने नजदीक के लोगों का यह व्यवहार बाबा को अर्जुन की तरह विरक्ति से भर गया.
बाबा ने सोचा ...काश ये धरती फ़ट जाये...पर धरती तो बिना वर्षा के सूख कर पहले ही फ़टी हुई थी अब और क्यों फ़टने लगी? धरती माता ने कोई ठेका थोडे ही ए रखा है कि सारे विरक्त लोग उसकी गोद मे ही समायेंगे?
तब अचानक बाबा घायलदास को सामने पानी की टंकी दिखाई पडी और उस पर चढने के लिये उन्होने सरपट दौड लगा दी. बीच रास्ते ही खयाल आया कि गांव मे एक ही टंकी है और अगर बाबा के वजन से फ़ूट गई तो सारे गांव वाले वाले प्यासे मर जायेंगे सो बाबा ने तुरंत अपने कदमों को ब्रेक लगा दिये.
बाबा को सारा माहोल ऐसा लग रहा था कि बिना किसी प्रयास के ही कायलत्व को उपलब्ध होगये फ़ोकट मे ही यानि बिना तपस्या किये ही बाबा की समाधि लग गई. तत्वज्ञान की उपलब्धि के लिये कायल होना, फ़िर घायल होना और इसके बाद प्रथम सीढी है कायलत्व प्राप्ति और उसके बाद दूसरी सीढी है घायलत्व प्राति और अंतिम सोपान है परम तत्व यानि कायलम शरणम गच्छामि हो जाना.
अचानक समाधिष्ट बाबा घायलदास के आश्रम मे बाबा कायलदास के पधारने की सूचना आती हैं...दोनों का मिलन ऐसा मिलन है जैसे कबीर साहब और बाबा फ़रीद का हुआ था. उन दो महान विभुतियों मे तो सुना है वाणी से एक शब्द का भी आदान प्रदान नही हुआ जो कुछ वार्तालाप हुआ वो मौन मे ही होगया. पर अगर बाबा कायलदास और घायलदास यानि गुरु घंटाल और चेले घंटाल की मुलाकात हो और जनता को उनके अमृत वचनों का लाभ ना मिले? ऐसा तो हो ही नही सकता. आईये देखते हैं दोनों मे क्या बात हुई?
बाबा घायलदास : बाबाश्री आज कल माहोल बडा विभत्स दिखाई देरहा है? चहुं और अराजकता है... मन बेचैन है. क्या होने वाला है?
बाबा कायलदास : वत्स, हम देख पा रहे हैं कि ठीक महाभारत के उपरांत भी ऐसा ही दृष्य था..उसके उपरांत भी तो दुनियां चल रही है ना? तो फ़िक्र क्युं करते हो? आगे भी ऐसे ही चलेगी.
बाबा घायलदास : पर बाबाश्री, फ़िक्र की तो बात है ही ना? महाराज धृतराष्ट्र तो मैं हूं नही कि १०१ पुत्रों के मारे जाने के बाद भी जिवित रह पाऊं और हिमालय गमन करुं? मन बहुत खिन्न है महाराज....मेरा मतलब बाबाश्री.
बाबा कायलदास : वत्स ऐसा नही कहते. मन छोटा ना करो घायल दास.. आखिर मेरे बाद इस दुनियां को राह दिखाने वाले मेरे उतराधिकारी तो तुम ही हो...वत्स तुम्हारा संशय दूर करने के लिये आज इस पवित्र कथा का आयोजन यहां करवाओ. इसके श्रवण मनन से मन के सब क्लेश दूर हो जाते हैं वत्स... सुनो और सुनावो...सारे क्लेश भगाओ. अब जल्दी से कथा के लिये तैयारीयां शुरु करवाओ.
और बाबा घायल दास के चेलों ने फ़टाफ़ट कथा की तैयारी शुरु करदी..पंडाल.. शामियाना..माईक की व्यवस्था कर दी गई और आनन फ़ानन में गांव वाले भी भेंट पूजा की सामग्री ले कर कथा सुनने के लिये पण्डाल में हाजिर हो गये. कुछ चेले कथा के लिये प्रसाद रुपी सामग्री तैयार कराने मे जुट गये.
इधर बाबा श्री कायलदास जी मंचासीन होकर माईक पर काबिज होगये और तबला पेटी की धुन के बीच यों बोलना शुरु किया.
बाबाश्री कायलदास जी द्वारा अमृत प्रवचन
बाबा कायलदास : तो भक्त जनों, पुरातन समय की बात है. उस समय मे एक गांव था. और उस गांव मे एक बहुत ही चालाक और दुष्ट प्रवृति का आदमी रहता था. उस आदमी को गांव की शांति और सदा शयता बिल्कुल दोनों आंखों से नही सुहाती थी तो एक से क्या सुहायेगी?
बोलो बाबा कायलदास की जय...सारे जुटे हुये भक्त जयकारा लगाते हैं.
बाबा कायलदास आगे कहते हैं....तो भक्तो...समय बलवान...यह दुष्ट आदमी धीरे धीरे..उन्नति करता हुआ गांव का सरपंच बन गया. तब तो इसके अत्याचार और बढ गये. सभी गांव वालों को कोर्ट मुकदमों मे फ़ंसाना...झूंठी गवाहियां देना ...दिलवाना इसका परम पुनीत कर्तव्य होगया. इसके चारों भाई भी इसी की तरह बडे दुष्ट थे. यानि एक ही बेल के सारे तुंबडे थे.
इसी बीच एक भक्त खडा होकर बीच मे बोल पडा...पर बाबाश्री..आप यह पुरातन समय की कथा सुना रहे हैं तो इसमे पंचायत और सरपंच कहां से आगये?
बाबा कायलदास जी ने बडे ही मधुर शब्दों मे झिडकी देते हुये कहा - वत्स..गुरुजनों से बहस नही करते और यह हम तुमको बिल्कुल मौलिक कथा सुना रहे हैं...इसमें संशय करोगे तो कुंभी पाक नरक के भागी बनोगे और श्रद्धा पूर्वक सुनोगे तो स्वर्ग के दरवाजे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं...इसलिये हे वत्स ..अब ध्यान पूर्वक आगे की कथा सुनो.
एक बार फ़िर ... बाबा कायलदास की जय..का जयकारा लगता है...
अब उत्साह पूर्वक बाबा कायलदास जी ने कथा प्रवचन आगे बढाये....हां तो हम कह रहे थे कि वो दुष्ट बडा अत्याचारी बन गया...सरकार से नदी किनारे की सरकारी जमीन जो गरीब लोगों को वितरित करने के लिये मंजूर हुई थी उसको खुद ही अपने और रिश्तेदारों को अलाट करवा ली...पूरे गांव मे अशान्ति और अराजकता फ़ैल गई..
सारे बोलो... बाबा कायलदास की जय.. और एक जोर का जयकारा लगता है बाबा कायलदास आगे बोलना शुरु करते हैं...
हां तो भक्त जनों....धीरे धीरे समय बीतता गया..और काल को कौन जीत पाया है? एक दिन यह व्यक्ति भी मर गया...वैसे तो सारे गांव मे हर्ष की लहर फ़ैल गई...पर असली समस्या यहीं से शुरु हो गई...सारे गांव वाले पहले से भी ज्यादा परेशान...
फ़िर एक भक्त बीच मे ही बोल पडा...बाबाश्री..अब जब दुष्ट मर गया तो ..परेशानी काहे की?
बाबा कायलदास जी बोले...अरे तुच्छ प्राणी...हमने कहा ना ..कथा के बीच मे प्रतिप्रश्न करने वाला कुंभी पाक नरक का भागी बनता है...क्युं अपना परलोक बिगाड रहा है मुर्ख? पर अब जब तूने पूछ ही लिया है तो हम बता देते हैं कि...उस गांव मे जब भी कोई मर जाता था तो उसकी चिता मे आग लगाने के पहले उस दिवंगत की तारीफ़ मे दो शब्द बोल कर श्रद्धांजलि देने की परंपरा थी.. और इसके बाद ही चिता को आग लगाई जाती थी.. और इसी के चलते यह समस्या खडी हुई...क्योंकि इस आदमी के तारीफ़ मे क्या बोला जाये? जिंदगी भर तो इसने सिवाय लोगों को लडवाने और घर तुडवाने के कुछ किया नही..अब इसको श्रद्धांजलि के लिये तारीफ़ के शब्द कहां से लाये जाये?
गांव वाले परेशान...मुर्दा आखिर कब तक बिना जले पडे रहे? आखिर मुर्दे के भी कुछ मूलभूत अधिकार होते हैं कि नही...और एक डर गांव वालों को और सताने लगा कि ज्यादा देर ऐसे दुष्ट आदमी की लाश पडी रहे और कहीं भूत पिशाच बन गया तो मरने के बाद भी परेशान करेगा..
तभी भक्तो ने एक और जोरदार जयकारा लगाया....बाबा कायलदास जी की जय हो..बाबाश्री अमर रहे....
बाबा श्री कायल दास जी ने हाथ ऊठाकर भक्त जनों को आशिर्वाद देते हुये बोलना शुरु किया.. हां तो भक्त जनों..इस समस्या के निवारण के लिये गांव वालों को अब ताऊ की याद आई...एक मात्र ताऊ ही था गांव मे सबसे ज्यादा अंग्रेजी पढा लिखा यानि पांचवी फ़ेल..जिसने अंगरेजी बोलने मे भी कईयों को हराया था.
गांव वाले ताऊ को जाकर हाथ जोडकर बोले - ताऊ तुमने कई बार गांव की इज्जत बचाई है आज भी तुम ही कुछ करो..सो गांव वालों द्वारा विनती करने पर ताऊ श्रद्धांजलि देने को तैयार होगया और बोलना शुरु किया.
ताऊ उवाच : भाईयो और बहनों...बडे दुख की बात है कि आज हमारे सरपंच साहब हमारे बीच नही रहे...अब उनकी क्या तारीफ़ करुं और क्या छोड दूं? और ताऊ ने आवाज रोनी करते हुये जेब से रुमाल निकालते हुये...आंसु पोंछने का नाटक करते हुये आगे बोलना शुरु किया...
भाईयो अब ज्यादा क्या कहूं...सरपंच साहब..बस ये समझ लो कि उनके बाकी के चारों भाईयो से ज्यादा शरीफ़ और भले इंसान थे.
और गांव वालों ने चैन की सांस ली और ताऊ की भूरी भूरी नही तो पीली पीली प्रसंशा की...
तो हे भक्त जनों..इस कथा के श्रवण मनन से जैसे गांव वालों की मुराद पूरी हुई वैसे ही आपकी भी होगी...बस मरे हुये आदमी को तारीफ़ पूर्वक श्रद्धांजलि देते रहो.
बोलो बाबाश्री कायलदास जी की जय....और एक जोर का जयकारा लगता है.
बाबा घायलदास ने पिछले सप्ताह पंकज मिश्रा से वादा किया था एक अतिथि चर्चा के लिये. उसी सिलसिले मे कुछ चिठ्ठों की पुरानी पोस्ट भी पढने मे आई. बाबा द्वारा बहुत कुछ पढा गया .. और जो कुछ पढा गया उससे बाबा घायलदास जी को अकल्पनिय तकलीफ़ पहुंची. जो लोग बाबा घायलदास जी के सामने वाह वाह करते थे उन्हीं लोगों ने जमकर बाबा को परम वचनों से नवाज रखा था.
उनकी भाषा और दृष्टांत से बाबा घायलदास जी ने तुरंत उनको पहचान लिया और इतने नजदीक के लोगों का यह व्यवहार बाबा को अर्जुन की तरह विरक्ति से भर गया.
बाबा ने सोचा ...काश ये धरती फ़ट जाये...पर धरती तो बिना वर्षा के सूख कर पहले ही फ़टी हुई थी अब और क्यों फ़टने लगी? धरती माता ने कोई ठेका थोडे ही ए रखा है कि सारे विरक्त लोग उसकी गोद मे ही समायेंगे?
तब अचानक बाबा घायलदास को सामने पानी की टंकी दिखाई पडी और उस पर चढने के लिये उन्होने सरपट दौड लगा दी. बीच रास्ते ही खयाल आया कि गांव मे एक ही टंकी है और अगर बाबा के वजन से फ़ूट गई तो सारे गांव वाले वाले प्यासे मर जायेंगे सो बाबा ने तुरंत अपने कदमों को ब्रेक लगा दिये.
बाबा को सारा माहोल ऐसा लग रहा था कि बिना किसी प्रयास के ही कायलत्व को उपलब्ध होगये फ़ोकट मे ही यानि बिना तपस्या किये ही बाबा की समाधि लग गई. तत्वज्ञान की उपलब्धि के लिये कायल होना, फ़िर घायल होना और इसके बाद प्रथम सीढी है कायलत्व प्राप्ति और उसके बाद दूसरी सीढी है घायलत्व प्राति और अंतिम सोपान है परम तत्व यानि कायलम शरणम गच्छामि हो जाना.
अचानक समाधिष्ट बाबा घायलदास के आश्रम मे बाबा कायलदास के पधारने की सूचना आती हैं...दोनों का मिलन ऐसा मिलन है जैसे कबीर साहब और बाबा फ़रीद का हुआ था. उन दो महान विभुतियों मे तो सुना है वाणी से एक शब्द का भी आदान प्रदान नही हुआ जो कुछ वार्तालाप हुआ वो मौन मे ही होगया. पर अगर बाबा कायलदास और घायलदास यानि गुरु घंटाल और चेले घंटाल की मुलाकात हो और जनता को उनके अमृत वचनों का लाभ ना मिले? ऐसा तो हो ही नही सकता. आईये देखते हैं दोनों मे क्या बात हुई?
बाबा घायलदास : बाबाश्री आज कल माहोल बडा विभत्स दिखाई देरहा है? चहुं और अराजकता है... मन बेचैन है. क्या होने वाला है?
बाबा कायलदास : वत्स, हम देख पा रहे हैं कि ठीक महाभारत के उपरांत भी ऐसा ही दृष्य था..उसके उपरांत भी तो दुनियां चल रही है ना? तो फ़िक्र क्युं करते हो? आगे भी ऐसे ही चलेगी.
बाबा घायलदास : पर बाबाश्री, फ़िक्र की तो बात है ही ना? महाराज धृतराष्ट्र तो मैं हूं नही कि १०१ पुत्रों के मारे जाने के बाद भी जिवित रह पाऊं और हिमालय गमन करुं? मन बहुत खिन्न है महाराज....मेरा मतलब बाबाश्री.
बाबा कायलदास : वत्स ऐसा नही कहते. मन छोटा ना करो घायल दास.. आखिर मेरे बाद इस दुनियां को राह दिखाने वाले मेरे उतराधिकारी तो तुम ही हो...वत्स तुम्हारा संशय दूर करने के लिये आज इस पवित्र कथा का आयोजन यहां करवाओ. इसके श्रवण मनन से मन के सब क्लेश दूर हो जाते हैं वत्स... सुनो और सुनावो...सारे क्लेश भगाओ. अब जल्दी से कथा के लिये तैयारीयां शुरु करवाओ.
और बाबा घायल दास के चेलों ने फ़टाफ़ट कथा की तैयारी शुरु करदी..पंडाल.. शामियाना..माईक की व्यवस्था कर दी गई और आनन फ़ानन में गांव वाले भी भेंट पूजा की सामग्री ले कर कथा सुनने के लिये पण्डाल में हाजिर हो गये. कुछ चेले कथा के लिये प्रसाद रुपी सामग्री तैयार कराने मे जुट गये.
इधर बाबा श्री कायलदास जी मंचासीन होकर माईक पर काबिज होगये और तबला पेटी की धुन के बीच यों बोलना शुरु किया.
बाबा कायलदास : तो भक्त जनों, पुरातन समय की बात है. उस समय मे एक गांव था. और उस गांव मे एक बहुत ही चालाक और दुष्ट प्रवृति का आदमी रहता था. उस आदमी को गांव की शांति और सदा शयता बिल्कुल दोनों आंखों से नही सुहाती थी तो एक से क्या सुहायेगी?
बोलो बाबा कायलदास की जय...सारे जुटे हुये भक्त जयकारा लगाते हैं.
बाबा कायलदास आगे कहते हैं....तो भक्तो...समय बलवान...यह दुष्ट आदमी धीरे धीरे..उन्नति करता हुआ गांव का सरपंच बन गया. तब तो इसके अत्याचार और बढ गये. सभी गांव वालों को कोर्ट मुकदमों मे फ़ंसाना...झूंठी गवाहियां देना ...दिलवाना इसका परम पुनीत कर्तव्य होगया. इसके चारों भाई भी इसी की तरह बडे दुष्ट थे. यानि एक ही बेल के सारे तुंबडे थे.
इसी बीच एक भक्त खडा होकर बीच मे बोल पडा...पर बाबाश्री..आप यह पुरातन समय की कथा सुना रहे हैं तो इसमे पंचायत और सरपंच कहां से आगये?
बाबा कायलदास जी ने बडे ही मधुर शब्दों मे झिडकी देते हुये कहा - वत्स..गुरुजनों से बहस नही करते और यह हम तुमको बिल्कुल मौलिक कथा सुना रहे हैं...इसमें संशय करोगे तो कुंभी पाक नरक के भागी बनोगे और श्रद्धा पूर्वक सुनोगे तो स्वर्ग के दरवाजे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं...इसलिये हे वत्स ..अब ध्यान पूर्वक आगे की कथा सुनो.
एक बार फ़िर ... बाबा कायलदास की जय..का जयकारा लगता है...
अब उत्साह पूर्वक बाबा कायलदास जी ने कथा प्रवचन आगे बढाये....हां तो हम कह रहे थे कि वो दुष्ट बडा अत्याचारी बन गया...सरकार से नदी किनारे की सरकारी जमीन जो गरीब लोगों को वितरित करने के लिये मंजूर हुई थी उसको खुद ही अपने और रिश्तेदारों को अलाट करवा ली...पूरे गांव मे अशान्ति और अराजकता फ़ैल गई..
सारे बोलो... बाबा कायलदास की जय.. और एक जोर का जयकारा लगता है बाबा कायलदास आगे बोलना शुरु करते हैं...
हां तो भक्त जनों....धीरे धीरे समय बीतता गया..और काल को कौन जीत पाया है? एक दिन यह व्यक्ति भी मर गया...वैसे तो सारे गांव मे हर्ष की लहर फ़ैल गई...पर असली समस्या यहीं से शुरु हो गई...सारे गांव वाले पहले से भी ज्यादा परेशान...
फ़िर एक भक्त बीच मे ही बोल पडा...बाबाश्री..अब जब दुष्ट मर गया तो ..परेशानी काहे की?
बाबा कायलदास जी बोले...अरे तुच्छ प्राणी...हमने कहा ना ..कथा के बीच मे प्रतिप्रश्न करने वाला कुंभी पाक नरक का भागी बनता है...क्युं अपना परलोक बिगाड रहा है मुर्ख? पर अब जब तूने पूछ ही लिया है तो हम बता देते हैं कि...उस गांव मे जब भी कोई मर जाता था तो उसकी चिता मे आग लगाने के पहले उस दिवंगत की तारीफ़ मे दो शब्द बोल कर श्रद्धांजलि देने की परंपरा थी.. और इसके बाद ही चिता को आग लगाई जाती थी.. और इसी के चलते यह समस्या खडी हुई...क्योंकि इस आदमी के तारीफ़ मे क्या बोला जाये? जिंदगी भर तो इसने सिवाय लोगों को लडवाने और घर तुडवाने के कुछ किया नही..अब इसको श्रद्धांजलि के लिये तारीफ़ के शब्द कहां से लाये जाये?
गांव वाले परेशान...मुर्दा आखिर कब तक बिना जले पडे रहे? आखिर मुर्दे के भी कुछ मूलभूत अधिकार होते हैं कि नही...और एक डर गांव वालों को और सताने लगा कि ज्यादा देर ऐसे दुष्ट आदमी की लाश पडी रहे और कहीं भूत पिशाच बन गया तो मरने के बाद भी परेशान करेगा..
तभी भक्तो ने एक और जोरदार जयकारा लगाया....बाबा कायलदास जी की जय हो..बाबाश्री अमर रहे....
बाबा श्री कायल दास जी ने हाथ ऊठाकर भक्त जनों को आशिर्वाद देते हुये बोलना शुरु किया.. हां तो भक्त जनों..इस समस्या के निवारण के लिये गांव वालों को अब ताऊ की याद आई...एक मात्र ताऊ ही था गांव मे सबसे ज्यादा अंग्रेजी पढा लिखा यानि पांचवी फ़ेल..जिसने अंगरेजी बोलने मे भी कईयों को हराया था.
गांव वाले ताऊ को जाकर हाथ जोडकर बोले - ताऊ तुमने कई बार गांव की इज्जत बचाई है आज भी तुम ही कुछ करो..सो गांव वालों द्वारा विनती करने पर ताऊ श्रद्धांजलि देने को तैयार होगया और बोलना शुरु किया.
ताऊ उवाच : भाईयो और बहनों...बडे दुख की बात है कि आज हमारे सरपंच साहब हमारे बीच नही रहे...अब उनकी क्या तारीफ़ करुं और क्या छोड दूं? और ताऊ ने आवाज रोनी करते हुये जेब से रुमाल निकालते हुये...आंसु पोंछने का नाटक करते हुये आगे बोलना शुरु किया...
भाईयो अब ज्यादा क्या कहूं...सरपंच साहब..बस ये समझ लो कि उनके बाकी के चारों भाईयो से ज्यादा शरीफ़ और भले इंसान थे.
और गांव वालों ने चैन की सांस ली और ताऊ की भूरी भूरी नही तो पीली पीली प्रसंशा की...
तो हे भक्त जनों..इस कथा के श्रवण मनन से जैसे गांव वालों की मुराद पूरी हुई वैसे ही आपकी भी होगी...बस मरे हुये आदमी को तारीफ़ पूर्वक श्रद्धांजलि देते रहो.
बोलो बाबाश्री कायलदास जी की जय....और एक जोर का जयकारा लगता है.
राम राम जियो ताऊ जी
ReplyDeleteये तो सही सम्मेलन है..
लगता है हमें भी जल्दी से इसमें आना पड़ेगा
:)
jai ho babaji ki.......
ReplyDeleteMAZA AA GAYA
ताऊ, सिक्स़र मार दिया आपने !
ReplyDeleteसमीर जी को भी इस नए रोल की हार्दिक शुभकामनाये, भले इंसान दीख रहे है :)
अहमदाबाद में गधा सम्मेलन! और रिपोर्ट में हमारी तस्वीर! बहुत नाइंसाफी की है :)
ReplyDeleteसमीरलालजी हर रूप में जमते है. नजर ना लगे....
jai ho baba ki.
ReplyDeletemaan gaye taaoo ............aapko aise hee thode 'TAAOO' kahte hain :)
ReplyDeletetताऊ जी बचो ये बाबा तो रोज़ अपना भेस बदल लेते हैं कभी समीर बाबा तो कभी कायल बाबा\ जै हो बाबा जी? हमने टिकट लगा लिफाफा भेज दिया है धन्यवाद्
ReplyDeleteye babaji badhiya hai:;),aur samelan ki report ka intazaar rahega:)
ReplyDeleteहम भी जय हो बाबा की कह देते है। और इस मेले की अगली फोटो का इंतजार।
ReplyDeleteइधर भी गधे हैं
ReplyDeleteउधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं
गधे ही गधे है
गधों की ये दुनिया
गधों का ये आलम
गधों का है ताऊ
ये संसार सालम
--op aditya g se saabhaar
पर ताऊ एक बात समझ म्हं कोनी आई अक् यू नकली ताऊ क्यूं पड़ा राख्या असली कित सै ....?
vah vah sundar sammelan hai.. ham bhee katar me hai.
ReplyDeletesundar aati sundar bhesh na badalta rahe to baba baba kaishe...
ReplyDeleteइलाहाबाद से अहमदाबाद
ReplyDeleteजिंदाबाद जिंदाबाद
आज तो मजा आ गया ताऊ. आभार
ReplyDeleteबाबा कायल दास कुछ पूछना था !! नहीं नहीं पूछ कर में अपना परलोक नहीं बिगाडूँगा !! बाबा ख़याल दास की.......... अरे भाई कोई जे तो बोलो जे!!!!!! इतनी अच्छी दौड़ हुई मुझे आमत्रित नहीं किया !!! ताऊ कम से कम मुझे ले चलते तो पहला स्थान तो पक्का था!!! खैर गई बात को घोडे भी नहीं नावाद सकते लेकिन गधेडे तो नावड ही सकते हैं !! !!
ReplyDeleteबोलो बाबाश्री कायलदास जी की जय...
ReplyDeleteसंजय बाबू, इश्वर की कृपा है. बिना काला टीका लगाये भी नजर से बच के सटक लेते है.
लाईव रिपोर्टिंग एकदम लाईव है.
जाय हो बाबा कायल दास और बाबा घायल दास की
ReplyDeleteबहुत ही रोचक .....जय हो कायल दास महाराज की ..... महाराज टोरंटो से बिराजे है हा हा
ReplyDeleteजय हो!
ReplyDeleteहमने भी टिकट लगा लिफाफा भेज दिया है ...
ReplyDeleteक्या इस सम्मेलन की अध्यक्षता कोई नामवर करेगा:)
ReplyDeleteवाह ताउजी, आज तो खूंटे पर मजा ही आगया.
ReplyDeleteबाबा कायलदास जी और घायलदास जी की जय हो.
ReplyDeleteहमने लिफ़ाफ़ा भेज दिया है कोई इंट्री फ़ीस हो तो वह बःइ भिजवा देते हैं पर हमको इंट्री चाहिये.:)
taau khnte par to rukka bandha dikh raha hai?:)
ReplyDeleteये तो बडी उंची बाबागिरी है. जोडी अच्छी जम रही है..बाबा कायलदास और घायलदास की.
ReplyDeleteअध्यात्म और गर्दभ सम्मलेन - एक पंथ दो काज - एक कोठार में दो अनाज, वाह वाह!
ReplyDeleteजय हो दोनों बाबाओं की ! आज हम भी ये प्रवचन पढ़कर आपके कायल्त्व को प्राप्त हो गए !
ReplyDeleteउफ़्फ़ इत्ती लंबी दौड थी ..बाप रे कित्ता भागना पडा...ताउ किसी तरह सेकेंड आया ...आपने सबके साथ ही तसवीर लगा दी हमारी ..वो गोला लगा के हाईलाईट तो कर देते...इत्ती भीड में हमें अलग से कौनो पहिचानिये नहीं रहा है.....चलिये रपट में दिखा दीजीयेगा...
ReplyDeleteबाबा एलियन जी तो ..नित नये रूप धरते हैं..सबै में कमाल लगते हैं...
लाईव रिपोर्ट देते रहो गधा सम्राट ओह सारी प्यारे ताऊ !
ReplyDeleteताऊ राम राम ......... कौन कौन सा ब्लोगेर भेस बदल कर आया है इस सम्मलेन में वो भी जरूर बताना .......
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