जैसा की आप जानते हैं कि ताऊ पहेली प्रथम राऊंड मे संयुक्त रूप से श्री संजय बैंगाणी और श्री गौतम राजरिशी को संयुक्त रुप से महाताऊ की उपाधि से नवाजा गया था. उसका अलंकरण समारोह पहली अप्रेल को होना था पर श्री गौतम जी का ट्रांसफ़र होजाने से महाताऊ अलंकरण समारोह फ़िलहाल स्थगित किया गया है. जैसे ही उस समारोह की तिथी निश्चित होगी आपको सूचना दी जायेगी. आज हम आपका परिचय करवा रहे हैं श्री संजय बैंगाणी से.
तो आईये अब आपको आज के परिचयनामा मे मिलवाते हैं श्री संजय बैंगाणीजी से. हम भी द्वारका और सोमनाथ की यात्रा पर थे जहां रास्ते मे संजय बैंगाणी जी से अहमदाबाद मे मुलाकात हुई. बहुत ही शांत और सुंदर स्वभाव के धनी, और नम्रता के बावजूद एक कर्मठ व्यक्तित्व संजय बैंगाणी जी से हमारी यादगार मुलाकात रही. आप भी रुबरू होईये.
ताऊ : संजय जी आप क्या करते हैं?
संजय बैंगाणीजी : मैं यहीं अहमदाबाद से मीडिया कम्पनी चलाता हूँ. जहां आप बैठे हैं यह मेरी कम्पनी का आफ़िस है.
ताऊ : और आप ब्लागिंग कब से कर रहे हैं?
संजय बैंगाणीजी : मैं करीब चार साल से हिन्दी ब्लॉगिंग से जूड़ा हूँ.
ताऊ : अपने जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना बताईये?
संजय बैंगाणीजी : ऐसी घटनाएं सामान्यतः वे होती है जो पारिवारीक खूशियों से जूड़ी हुई होती है, मसलन परिवार के सदस्य का जन्म या शादी ब्याह वगेरे. बेटे व भतीजे का जन्म ऐसी ही घटना है.
ताऊ : नही हम कुछ अलग तरह की घटना के बारे मे पूछ रहे हैं जो आपके सांथ घटी है?
संजय बैंगाणीजी : कुछ अलग तरह की घटनाओं में जब होने वाली सास ने बुला कर कुछ कड़े शब्दों में समझाया की मैं उनकी बेटी से न मिला करूँ. वह घटना आज भी याद है
ताऊ : हां बिल्कुल वही घटना पूछना चाह रहे हैं आप जरा पूरी घटना बताईये?
संजय बैंगाणीजी : असल मे हमारा प्रेम विवाह हुआ है. असम में हम पड़ोसी थे. मेरी छाप एक अच्छे लड़के की रही है. यानी ससूराल वालों को एक व्यक्ति के रूप में मुझ से कोई शिकायत नहीं थी. मगर वे आधुनिकता के रंग में रंगे हुए है और मेरी विचारधारा एकदम अलग रही है. मैं नास्तिक हूँ और हिन्दी वाला भी... तो उन्हे मेरा भविष्य शून्य लगा होगा. जो भी हो हमारे मिलने पर प्रतिबन्ध था.
श्रीमती एवम श्री संजय बैंगाणी
ताऊ : पर हमने तो सुना है कि आप कहीं मिलते ही नही थे?
संजय बैंगाणीजी : ये लो ताऊ जी अब आप ये सूचना कहां से निकाल लाये?
ताऊ : भाई इंटर्व्यु लेने आये हैं तो कुछ खोज खबर तो लेकर ही आना पडता है ना.
संजय बैंगाणीजी : आपको जब ये मालूंम ही है तो बता देते है कि हम वैसे भी सिनेमा-हॉल या बगीचे में नहीं मिलते थे. मिलना होता तो एक जगह मिलते और फिर फूटपाथ में चलते हुए बतियाते.
ताऊ : वाह संजय जी वाह. ये तो आज भी बिल्कुल नया आईडिया है. फ़िर आगे बताईये?
संजय बैंगाणीजी : फिर क्या…बस चलते हुये बात करते और बाद में रिक्शा पकड़ अपने अपने रस्ते चल देते. एक दिन उनके रिश्तेदार ने फूटपाथ पर साथ चलते देख लिया तो उसी दिन सास के दरबार में हाजरी लग गई.
ताऊ : फ़िर तो आप लोगों की अच्छी हाजरी भर गई होगी क्लास में.
संजय बैंगाणीजी : हां उस समय तो काफ़ी क्लास लगी पर बाद में होने वाली पत्नी को परेशानी से बचाने के लिए शहर ही छोड़ दिया. इंटरनेट व मोबाइल का युग आया नहीं था, अतः आपसी सम्पर्क नहीं के बराबर था. दोनो अपने निर्णय पर स्थिर रहे तो उसके चार साल बाद ससूराल वालों को हामी भरनी ही थी.
ताऊ : यानि सच्चे प्यार की जीत हो ही गई आखिर. आपके कालेज समय की या स्कूल के समय की कोई यादगार घटना जो आपको याद हो?
संजय बैंगाणीजी : कॉलेज की पढ़ाई गुवाहाटी में की है. तब उल्फा का अलगाववाद चरम पर था. राजस्थानियों के लिए स्थानीय विद्यार्थियों में थोड़ा घृणा का सा भाव था, तो उसे झेला था. वहीं कुछ ऐसे थे जो उल्फा की धमकी के बाद भी अपने घरों पर राष्ट्रीय त्योंहार के समय तिरंगा फहराते थे.
स्कूल के समय में कोई खास घटनाएं नहीं हुई है, आठवीं-नौवीं कक्षा में था तब मध्याह्न के समय नाश्ते के दौरान बहस करते थे वह आज भी याद आती है. मैं गाँधीजी की खूब आलोचनाएं करता था. भगवान या स्वर्ग नर्क नहीं होते, इस पर तर्क करते. कुल मिला कर मजा आता था.
छठी कक्षा में था तब साज-सज्जा के रूप में स्कूल की दीवारों पर मुझ से चित्र बनवाए गए थे और उनमें चित्रकला के शिक्षक ने रंग भरे थे. हो सकता है वे चित्र आज भी बने हुए हो. तो उस समय यह मेरे लिए गर्व की बात थी.
ताऊ : पर हमने सुना है कि आप एक बार चलती कक्षा मे ही रो पडे थे? वो क्या बात थी?
संजय बैंगाणीजी : हां ताऊ जी , हुआ यह था कि उस दिन क्रिकेट का मैच था, जब पटाखों की आवाज सुनी तो सब खुश हुए. शिक्षक ने पढ़ाने पर विराम दिया, और सबने एक दुसरे को बधाई दी. तभी कोई बाहर से आया और पता चला भारत पाकिस्तान से हार गया था और मुस्लिम बस्ती में पटाखे चलाए गए थे. मैं इतना दुखी हुआ की आँखे भर आई. और रो पडा.
ताऊ : आप मूलत अहमदाबाद से ही हैं या कही गांव से ?
संजय बैंगाणीजी : मेरा जन्म राजस्थान के एक कस्बे बिदासर में हुआ, वहीं से पाँचवीं पास की. और फिर गुजरात के सूरत शहर आ बसे. गुजराती माध्यम से दसवीं पास की और चले गए असम. बाकी की शिक्षा जहाँ तक की वहीं की.
ताऊ : फ़िर काम धंधा?
संजय बैंगाणीजी : वैश्य होने के नाते स्व-व्यवसाय ही करियर के रूप में सुझता है, अतः उसी से जूड़ा. फिर वापस गुजरात के अहमदाबाद शहर में आ गया. अब यहाँ अपनी मीडिया कम्पनी में नौकरी बजाता हूँ.
ताऊ : आपके गांव के बारे मे कुछ बताईये?
संजय बैंगाणीजी : ताऊ जी असल मे मेरा गाँव आम धारणा वाले गाँव जैसा नहीं है. बिजली, पानी व सड़क के मामले में शहरों को मात दे दे ऐसी स्थिति है. मगर वहाँ कम ही जाना होता है. अब तो हर प्रकार से खूद को गुजराती ही पाता हूँ.
ताऊ : कुछ आपके परिवार के बारे मे बताईये.
संजय बैंगाणीजी : परिवार के मामले में अपने आपको अत्यंत सुखी पाता हूँ. संयुक्त परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई पंकज (चिट्ठा: मंतव्य) व एक बहन खुशी (चिट्ठा: खुशी की बात) का बड़ा भाई हूँ. पत्नी (निधि) भी एक ही है….. और एक पुत्र (उत्कर्ष) है सोचा ..जनसंख्या बढ़ा कर दुनिया को नर्क बनाने में अपना योगदान कम से कम हो यही उच्चित है… साथ ही एक प्यारे से भतीजे (अद्वैत) का ताऊ होने का गर्व भी प्राप्त है.
ताऊ : आपका संयुक्त परिवार है. जबकि आज यह संयुक्त परिवार की घारणा ही ध्वस्त हो चुकी है? इस बारे मे कुछ कहना चाहेंगे?
संजय बैंगाणीजी : मैं जिस पृष्टभूमि से आता हूँ वहाँ सयुंक्त परिवार सामान्य सी बात है या फिर कहें तो परिवार सयुंक्त ही होते है. सयुंक्त परिवार के नुकसान से कहीं अधिक लाभ है. आपको सबका मन रख कर चलना होता है वहीं आपकी परवाह करने वाले भी उतने ही अधिक लोग होते है. मेरी दृष्टि मे संयुक्त परिवार व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ है.
ताऊ : आपके बेटे के बारे मे क्या कहना चाहेंगे?
संजय बैंगाणीजी : एक बेटा है, सातवीं की परिक्षाएं दे रहा है. पहला बाल-ब्लॉगर भी वही था (meriduniya.wordpress.com). था इसलिए की अब लिखता नहीं, कम्प्यूटर गेम में ज्यादा आनन्द लेता है.
ताऊ : आपकी जीवन संगिनी के बारे कुछ बताईये?
संजय बैंगाणीजी : मेरी जीवन संगिनी निधि मुझ से ज्यादा पढ़ी लिखी है. फिलहाल अपने व्यवसाय को जमाने में लगी हुई है. लिखना-लिखाना पसन्द नहीं. किसी से भी दोस्ती कर लेना बायें हाथ का खेल है. शेष घरेलू महिला है.
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
संजय बैंगाणीजी : गलत-सलत ही सही लिखना. पढ़ना. चर्चाएं करना, रेखाचित्र बनाना
ताऊ : सख्त ना पसंद क्या है?
संजय बैंगाणीजी : खामखा समय बरबाद करना, निरुद्देश्य जीना, चापलूसी करना
ताऊ : और पसंद क्या है?
संजय बैंगाणीजी : हास्य, बच्चों की मुस्कान, अच्छे डिजाइन तथा उत्साहपूर्ण व हार का खतरा ले कर भी काम करने वाले लोग
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
संजय बैंगाणीजी :केवल वाह वाह करने के लिए टिप्पणी देना और टिप्पणी पाने के लिए ही लिखना हिन्दी ब्लॉगिंग को जिन्दा तो रखे हुए है मगर उसके स्वास्थय के लिए सही नहीं है. बाजार के लिए हिन्दी उपयोगी बनी रही तो ब्लॉगिंग में भी तेजी आएगी. मात्र ब्लॉगिंग ही नेट पर हिन्दी के लिए काफी नहीं है. अतः ब्लॉगर ज्यादा से ज्यादा हिन्दी सामग्री नेट पर डालें यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. यही नेट पर हिन्दी का भविष्य तय करेगा.
ताऊ : आप बहुत शुरुआती दौर के गिने चुने ब्लागर्स मे से हैं? आपके अनुभव बताईये?
संजय बैंगाणीजी : जब मैने ब्लॉगिंग शुरू की थी, हिन्दी लिखना इतना सरल नहीं था. हिन्दी टाइप करने के लिए हिन्दीनी जैसे औजारों का उपयोग करना पड़ता था. नारद नामक एग्रीगेटर भी अभी आना बाकी था. कभी कभी आपका लिखा दो दिन बाद चिट्ठा विश्व पर दिखता था. मगर जिस तरह की सामूहिकता की भावना से तब काम किया था, अब उसका लोप हो गया है. तब एक नया चिट्ठा जूड़ना भी बहुत महत्त्व रखता था. चिट्ठों की सख्यां सौ तक पहूँची वह भी उत्सव मनाने जैसी घटना थी.
ताऊ : आपका लेखन जहां तक मैने पाया है, हमेशा ही एक अहम सवाल को या कहें कि एक सोच को ऊठाता है. इसकी कॊई खास वजह?
संजय बैंगाणी : पता नहीं शायद ऐसा हो..मगर ज्यादातर पोस्टें पहले से तय कर के नहीं लिखी गई है. चुंकि हमेशा ऑन लाइन होता हूँ, अतः कोई विचार आया और दो मिनट पर तो टाइप कर पोस्ट कर देता हूँ. मात्र लिखने के लिए लिखना पसन्द नहीं.
ताऊ : क्या आप राजनिती मे रुची रखते हैं? अगर हां तो अपने विचार बताईये?
संजय बैंगाणी जी : राजनिती में बहुत ज्यादा रूचि है. लोकतंत्र को अब तक कि सबसे सही शासन व्यवस्था मानता हूँ. लोकतंत्र में आस्था है. वैचारिक रूप से दक्षिणपंथ के काफी निकट पाता हूँ. समाजवाद व साम्यवाद मेरी दृष्टि में खयाली पूलाव है, लोकतांत्रिक तरीके से इन्हे लागू नहीं किया जा सकता. नेहरू मेरी दृष्टी में स्वप्न देखने वाले नहीं बल्कि सपनों में जीने वाले व्यक्ति थे.
ताऊ : कोई ऐसी बात जो आप पाठको से कहना चाहें.
संजय बैंगाणीजी : मैने अनुभवों से पाया है कि आप सच्चे मन से कोई काम करना चाहते है तो वह काम पूरा जरूर होता है, समय लग सकता है. अतः ईमानदारी से लगे रहें,
ताऊ : आप ताऊ कौन ? इस बारे मे क्या कहेंगे?
संजय बैंगाणी जी : ब्लॉग जगत में एक ताऊ हुआ करते थे, अब कम दिखते है, वे हैं जितू भाई. मगर आप जिस ताऊ की बात कर रहें है उनके आगे सभी ताऊ भतिजे समान है. कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता. ऐसे में कयास लगाने से कोई फायदा नहीं.
ताऊ ताऊ है, ताऊ को और कोई नाम न दो.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक और इस विचार को आप किस रुप में देखते हैं?
संजय बैंगाणीजी : पूर्व में ब्लॉगजगत में अक्षरग्राम के झण्डे तले बहुत शानदार और सफल प्रयोग हुए है. जैसे कि बूनो कहानी, अनुगूँज, चिट्ठाचर्चा जो अभी भी जारी है, तो ऐसा ही एक प्रयोग है, ताऊ साप्ताहिक. एक सुन्दर सामुहिक प्रयास.
ताऊ : आपको अगर बचपन के दिनों की कोई एक घटना पुन: जीने की छूट मिल जाये तो कौन सी घटना को जीना चाहेंगे?
संजय बैंगाणीजी : एक घटना क्या, मैं तो पूरा बचपन फिर से जीना चाहूँगा. इतनी यादें है कि एक को छाँटना बहुत मुश्किल है.
श्री संजय और उनके सहयोगी अपने आफ़िस में
ताऊ : मान लिजिये आपको भारत का गृहमंत्री बना दिया जाये तो वर्तमान आतंकी गतिविधियों से कैसे निपटेंगे?
संजय बैंगाणी जी : मैं वही करूँगा जो एक गृहमंत्री को करना चाहिए. युद्ध का निर्णय गृहमंत्री के हाथ में नहीं है. मगर गुप्तचर तंत्र तो है ही. मैं गुप्तचर तंत्र को मजबूत बनाता. और देश में आतंकियों के आंतरिक नेटवर्क को खत्म करता फिर वह स्लिपर सेल हो या हवाला तंत्र. एक वाक्य में कहूँ तो मैं निर्ममता से काम करता. देश के बाहर बैठे आतंकी नेताओं को जो सिंगापूर, बांग्लादेश, कनाड़ा जहाँ कहीं भी बैठे है, खुफिया तंत्र द्वारा खत्म करवा देता. मानवाधिकार के लिए काम कर रही संस्थाओं पर कड़ी नजर रखता क्योंकि कुछ एक विदेशी धन के लिए देश के दुश्मनों के हित के लिए काम करती है, तो उन्हे कानूनी कार्यवाह्हियों में उलझा कर खत्म करता. पूर्वोत्तर के राज्यों को अंतिम लक्ष्य तक सेना के हवाले करता, वहाँ बातचीत बहुत हो गई. सीधी बात है ब्रिटेन तभी जीत सकता है जब कोई चर्चिल बनता है. यह वास्तविकता है की महात्मा जब राजनीति करता है तो देश टूटता है. अतः राजनीति में उतरना है तो बूरा बन कर भी वही करना चाहिए जो देश के व्यापक हित में हो.
तो कैसी लगी आपको श्री संजय बैंगाणी से यह बात चीत? अपने विचार अवश्य बताईयेगा.
तो आईये अब आपको आज के परिचयनामा मे मिलवाते हैं श्री संजय बैंगाणीजी से. हम भी द्वारका और सोमनाथ की यात्रा पर थे जहां रास्ते मे संजय बैंगाणी जी से अहमदाबाद मे मुलाकात हुई. बहुत ही शांत और सुंदर स्वभाव के धनी, और नम्रता के बावजूद एक कर्मठ व्यक्तित्व संजय बैंगाणी जी से हमारी यादगार मुलाकात रही. आप भी रुबरू होईये.
ताऊ : संजय जी आप क्या करते हैं?
संजय बैंगाणीजी : मैं यहीं अहमदाबाद से मीडिया कम्पनी चलाता हूँ. जहां आप बैठे हैं यह मेरी कम्पनी का आफ़िस है.
ताऊ : और आप ब्लागिंग कब से कर रहे हैं?
संजय बैंगाणीजी : मैं करीब चार साल से हिन्दी ब्लॉगिंग से जूड़ा हूँ.
ताऊ : अपने जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना बताईये?
संजय बैंगाणीजी : ऐसी घटनाएं सामान्यतः वे होती है जो पारिवारीक खूशियों से जूड़ी हुई होती है, मसलन परिवार के सदस्य का जन्म या शादी ब्याह वगेरे. बेटे व भतीजे का जन्म ऐसी ही घटना है.
ताऊ : नही हम कुछ अलग तरह की घटना के बारे मे पूछ रहे हैं जो आपके सांथ घटी है?
संजय बैंगाणीजी : कुछ अलग तरह की घटनाओं में जब होने वाली सास ने बुला कर कुछ कड़े शब्दों में समझाया की मैं उनकी बेटी से न मिला करूँ. वह घटना आज भी याद है
ताऊ : हां बिल्कुल वही घटना पूछना चाह रहे हैं आप जरा पूरी घटना बताईये?
संजय बैंगाणीजी : असल मे हमारा प्रेम विवाह हुआ है. असम में हम पड़ोसी थे. मेरी छाप एक अच्छे लड़के की रही है. यानी ससूराल वालों को एक व्यक्ति के रूप में मुझ से कोई शिकायत नहीं थी. मगर वे आधुनिकता के रंग में रंगे हुए है और मेरी विचारधारा एकदम अलग रही है. मैं नास्तिक हूँ और हिन्दी वाला भी... तो उन्हे मेरा भविष्य शून्य लगा होगा. जो भी हो हमारे मिलने पर प्रतिबन्ध था.
ताऊ : पर हमने तो सुना है कि आप कहीं मिलते ही नही थे?
संजय बैंगाणीजी : ये लो ताऊ जी अब आप ये सूचना कहां से निकाल लाये?
ताऊ : भाई इंटर्व्यु लेने आये हैं तो कुछ खोज खबर तो लेकर ही आना पडता है ना.
संजय बैंगाणीजी : आपको जब ये मालूंम ही है तो बता देते है कि हम वैसे भी सिनेमा-हॉल या बगीचे में नहीं मिलते थे. मिलना होता तो एक जगह मिलते और फिर फूटपाथ में चलते हुए बतियाते.
ताऊ : वाह संजय जी वाह. ये तो आज भी बिल्कुल नया आईडिया है. फ़िर आगे बताईये?
संजय बैंगाणीजी : फिर क्या…बस चलते हुये बात करते और बाद में रिक्शा पकड़ अपने अपने रस्ते चल देते. एक दिन उनके रिश्तेदार ने फूटपाथ पर साथ चलते देख लिया तो उसी दिन सास के दरबार में हाजरी लग गई.
ताऊ : फ़िर तो आप लोगों की अच्छी हाजरी भर गई होगी क्लास में.
संजय बैंगाणीजी : हां उस समय तो काफ़ी क्लास लगी पर बाद में होने वाली पत्नी को परेशानी से बचाने के लिए शहर ही छोड़ दिया. इंटरनेट व मोबाइल का युग आया नहीं था, अतः आपसी सम्पर्क नहीं के बराबर था. दोनो अपने निर्णय पर स्थिर रहे तो उसके चार साल बाद ससूराल वालों को हामी भरनी ही थी.
ताऊ : यानि सच्चे प्यार की जीत हो ही गई आखिर. आपके कालेज समय की या स्कूल के समय की कोई यादगार घटना जो आपको याद हो?
संजय बैंगाणीजी : कॉलेज की पढ़ाई गुवाहाटी में की है. तब उल्फा का अलगाववाद चरम पर था. राजस्थानियों के लिए स्थानीय विद्यार्थियों में थोड़ा घृणा का सा भाव था, तो उसे झेला था. वहीं कुछ ऐसे थे जो उल्फा की धमकी के बाद भी अपने घरों पर राष्ट्रीय त्योंहार के समय तिरंगा फहराते थे.
स्कूल के समय में कोई खास घटनाएं नहीं हुई है, आठवीं-नौवीं कक्षा में था तब मध्याह्न के समय नाश्ते के दौरान बहस करते थे वह आज भी याद आती है. मैं गाँधीजी की खूब आलोचनाएं करता था. भगवान या स्वर्ग नर्क नहीं होते, इस पर तर्क करते. कुल मिला कर मजा आता था.
छठी कक्षा में था तब साज-सज्जा के रूप में स्कूल की दीवारों पर मुझ से चित्र बनवाए गए थे और उनमें चित्रकला के शिक्षक ने रंग भरे थे. हो सकता है वे चित्र आज भी बने हुए हो. तो उस समय यह मेरे लिए गर्व की बात थी.
ताऊ : पर हमने सुना है कि आप एक बार चलती कक्षा मे ही रो पडे थे? वो क्या बात थी?
संजय बैंगाणीजी : हां ताऊ जी , हुआ यह था कि उस दिन क्रिकेट का मैच था, जब पटाखों की आवाज सुनी तो सब खुश हुए. शिक्षक ने पढ़ाने पर विराम दिया, और सबने एक दुसरे को बधाई दी. तभी कोई बाहर से आया और पता चला भारत पाकिस्तान से हार गया था और मुस्लिम बस्ती में पटाखे चलाए गए थे. मैं इतना दुखी हुआ की आँखे भर आई. और रो पडा.
ताऊ : आप मूलत अहमदाबाद से ही हैं या कही गांव से ?
संजय बैंगाणीजी : मेरा जन्म राजस्थान के एक कस्बे बिदासर में हुआ, वहीं से पाँचवीं पास की. और फिर गुजरात के सूरत शहर आ बसे. गुजराती माध्यम से दसवीं पास की और चले गए असम. बाकी की शिक्षा जहाँ तक की वहीं की.
ताऊ : फ़िर काम धंधा?
संजय बैंगाणीजी : वैश्य होने के नाते स्व-व्यवसाय ही करियर के रूप में सुझता है, अतः उसी से जूड़ा. फिर वापस गुजरात के अहमदाबाद शहर में आ गया. अब यहाँ अपनी मीडिया कम्पनी में नौकरी बजाता हूँ.
ताऊ : आपके गांव के बारे मे कुछ बताईये?
संजय बैंगाणीजी : ताऊ जी असल मे मेरा गाँव आम धारणा वाले गाँव जैसा नहीं है. बिजली, पानी व सड़क के मामले में शहरों को मात दे दे ऐसी स्थिति है. मगर वहाँ कम ही जाना होता है. अब तो हर प्रकार से खूद को गुजराती ही पाता हूँ.
ताऊ : कुछ आपके परिवार के बारे मे बताईये.
संजय बैंगाणीजी : परिवार के मामले में अपने आपको अत्यंत सुखी पाता हूँ. संयुक्त परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई पंकज (चिट्ठा: मंतव्य) व एक बहन खुशी (चिट्ठा: खुशी की बात) का बड़ा भाई हूँ. पत्नी (निधि) भी एक ही है….. और एक पुत्र (उत्कर्ष) है सोचा ..जनसंख्या बढ़ा कर दुनिया को नर्क बनाने में अपना योगदान कम से कम हो यही उच्चित है… साथ ही एक प्यारे से भतीजे (अद्वैत) का ताऊ होने का गर्व भी प्राप्त है.
ताऊ : आपका संयुक्त परिवार है. जबकि आज यह संयुक्त परिवार की घारणा ही ध्वस्त हो चुकी है? इस बारे मे कुछ कहना चाहेंगे?
संजय बैंगाणीजी : मैं जिस पृष्टभूमि से आता हूँ वहाँ सयुंक्त परिवार सामान्य सी बात है या फिर कहें तो परिवार सयुंक्त ही होते है. सयुंक्त परिवार के नुकसान से कहीं अधिक लाभ है. आपको सबका मन रख कर चलना होता है वहीं आपकी परवाह करने वाले भी उतने ही अधिक लोग होते है. मेरी दृष्टि मे संयुक्त परिवार व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ है.
ताऊ : आपके बेटे के बारे मे क्या कहना चाहेंगे?
संजय बैंगाणीजी : एक बेटा है, सातवीं की परिक्षाएं दे रहा है. पहला बाल-ब्लॉगर भी वही था (meriduniya.wordpress.com). था इसलिए की अब लिखता नहीं, कम्प्यूटर गेम में ज्यादा आनन्द लेता है.
ताऊ : आपकी जीवन संगिनी के बारे कुछ बताईये?
संजय बैंगाणीजी : मेरी जीवन संगिनी निधि मुझ से ज्यादा पढ़ी लिखी है. फिलहाल अपने व्यवसाय को जमाने में लगी हुई है. लिखना-लिखाना पसन्द नहीं. किसी से भी दोस्ती कर लेना बायें हाथ का खेल है. शेष घरेलू महिला है.
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
संजय बैंगाणीजी : गलत-सलत ही सही लिखना. पढ़ना. चर्चाएं करना, रेखाचित्र बनाना
ताऊ : सख्त ना पसंद क्या है?
संजय बैंगाणीजी : खामखा समय बरबाद करना, निरुद्देश्य जीना, चापलूसी करना
ताऊ : और पसंद क्या है?
संजय बैंगाणीजी : हास्य, बच्चों की मुस्कान, अच्छे डिजाइन तथा उत्साहपूर्ण व हार का खतरा ले कर भी काम करने वाले लोग
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
संजय बैंगाणीजी :केवल वाह वाह करने के लिए टिप्पणी देना और टिप्पणी पाने के लिए ही लिखना हिन्दी ब्लॉगिंग को जिन्दा तो रखे हुए है मगर उसके स्वास्थय के लिए सही नहीं है. बाजार के लिए हिन्दी उपयोगी बनी रही तो ब्लॉगिंग में भी तेजी आएगी. मात्र ब्लॉगिंग ही नेट पर हिन्दी के लिए काफी नहीं है. अतः ब्लॉगर ज्यादा से ज्यादा हिन्दी सामग्री नेट पर डालें यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. यही नेट पर हिन्दी का भविष्य तय करेगा.
ताऊ : आप बहुत शुरुआती दौर के गिने चुने ब्लागर्स मे से हैं? आपके अनुभव बताईये?
संजय बैंगाणीजी : जब मैने ब्लॉगिंग शुरू की थी, हिन्दी लिखना इतना सरल नहीं था. हिन्दी टाइप करने के लिए हिन्दीनी जैसे औजारों का उपयोग करना पड़ता था. नारद नामक एग्रीगेटर भी अभी आना बाकी था. कभी कभी आपका लिखा दो दिन बाद चिट्ठा विश्व पर दिखता था. मगर जिस तरह की सामूहिकता की भावना से तब काम किया था, अब उसका लोप हो गया है. तब एक नया चिट्ठा जूड़ना भी बहुत महत्त्व रखता था. चिट्ठों की सख्यां सौ तक पहूँची वह भी उत्सव मनाने जैसी घटना थी.
ताऊ : आपका लेखन जहां तक मैने पाया है, हमेशा ही एक अहम सवाल को या कहें कि एक सोच को ऊठाता है. इसकी कॊई खास वजह?
संजय बैंगाणी : पता नहीं शायद ऐसा हो..मगर ज्यादातर पोस्टें पहले से तय कर के नहीं लिखी गई है. चुंकि हमेशा ऑन लाइन होता हूँ, अतः कोई विचार आया और दो मिनट पर तो टाइप कर पोस्ट कर देता हूँ. मात्र लिखने के लिए लिखना पसन्द नहीं.
ताऊ : क्या आप राजनिती मे रुची रखते हैं? अगर हां तो अपने विचार बताईये?
संजय बैंगाणी जी : राजनिती में बहुत ज्यादा रूचि है. लोकतंत्र को अब तक कि सबसे सही शासन व्यवस्था मानता हूँ. लोकतंत्र में आस्था है. वैचारिक रूप से दक्षिणपंथ के काफी निकट पाता हूँ. समाजवाद व साम्यवाद मेरी दृष्टि में खयाली पूलाव है, लोकतांत्रिक तरीके से इन्हे लागू नहीं किया जा सकता. नेहरू मेरी दृष्टी में स्वप्न देखने वाले नहीं बल्कि सपनों में जीने वाले व्यक्ति थे.
ताऊ : कोई ऐसी बात जो आप पाठको से कहना चाहें.
संजय बैंगाणीजी : मैने अनुभवों से पाया है कि आप सच्चे मन से कोई काम करना चाहते है तो वह काम पूरा जरूर होता है, समय लग सकता है. अतः ईमानदारी से लगे रहें,
ताऊ : आप ताऊ कौन ? इस बारे मे क्या कहेंगे?
संजय बैंगाणी जी : ब्लॉग जगत में एक ताऊ हुआ करते थे, अब कम दिखते है, वे हैं जितू भाई. मगर आप जिस ताऊ की बात कर रहें है उनके आगे सभी ताऊ भतिजे समान है. कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता. ऐसे में कयास लगाने से कोई फायदा नहीं.
ताऊ ताऊ है, ताऊ को और कोई नाम न दो.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक और इस विचार को आप किस रुप में देखते हैं?
संजय बैंगाणीजी : पूर्व में ब्लॉगजगत में अक्षरग्राम के झण्डे तले बहुत शानदार और सफल प्रयोग हुए है. जैसे कि बूनो कहानी, अनुगूँज, चिट्ठाचर्चा जो अभी भी जारी है, तो ऐसा ही एक प्रयोग है, ताऊ साप्ताहिक. एक सुन्दर सामुहिक प्रयास.
ताऊ : आपको अगर बचपन के दिनों की कोई एक घटना पुन: जीने की छूट मिल जाये तो कौन सी घटना को जीना चाहेंगे?
संजय बैंगाणीजी : एक घटना क्या, मैं तो पूरा बचपन फिर से जीना चाहूँगा. इतनी यादें है कि एक को छाँटना बहुत मुश्किल है.
ताऊ : मान लिजिये आपको भारत का गृहमंत्री बना दिया जाये तो वर्तमान आतंकी गतिविधियों से कैसे निपटेंगे?
संजय बैंगाणी जी : मैं वही करूँगा जो एक गृहमंत्री को करना चाहिए. युद्ध का निर्णय गृहमंत्री के हाथ में नहीं है. मगर गुप्तचर तंत्र तो है ही. मैं गुप्तचर तंत्र को मजबूत बनाता. और देश में आतंकियों के आंतरिक नेटवर्क को खत्म करता फिर वह स्लिपर सेल हो या हवाला तंत्र. एक वाक्य में कहूँ तो मैं निर्ममता से काम करता. देश के बाहर बैठे आतंकी नेताओं को जो सिंगापूर, बांग्लादेश, कनाड़ा जहाँ कहीं भी बैठे है, खुफिया तंत्र द्वारा खत्म करवा देता. मानवाधिकार के लिए काम कर रही संस्थाओं पर कड़ी नजर रखता क्योंकि कुछ एक विदेशी धन के लिए देश के दुश्मनों के हित के लिए काम करती है, तो उन्हे कानूनी कार्यवाह्हियों में उलझा कर खत्म करता. पूर्वोत्तर के राज्यों को अंतिम लक्ष्य तक सेना के हवाले करता, वहाँ बातचीत बहुत हो गई. सीधी बात है ब्रिटेन तभी जीत सकता है जब कोई चर्चिल बनता है. यह वास्तविकता है की महात्मा जब राजनीति करता है तो देश टूटता है. अतः राजनीति में उतरना है तो बूरा बन कर भी वही करना चाहिए जो देश के व्यापक हित में हो.
तो कैसी लगी आपको श्री संजय बैंगाणी से यह बात चीत? अपने विचार अवश्य बताईयेगा.
संजय जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteश्री संजय बैंगाणी से ताऊ जी की बेबाक बातचीत अच्छी लगी। मेरी दृष्टि में ताऊ-नामा स्वस्थ मनोरंजन का ब्लाग तो है ही, साथ ही समय-समय पर विशिष्ट व्यक्तित्वों को भी जाल-जगत पर परिलक्षित करने मे अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका का भी निर्ववहन कर रहा है।
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ,
आपका एक नियमित पाठक
संजय बेंगाणी से की गयी बातचीत बहुत अच्छी लगी। संजय कभी चिट्ठाचर्चा के नियमित दोपहरिया लेखक होते थे। अपनी बात जो ठीक लगती है उसे रखने में कभी संकोच नहीं किया। मतभेद के बावजूद विरोधी के लिये कभी हल्की भाषा प्रयोग नहीं की। संजय एक बेहतरीन इंसान हैं। हमेशा सहयोग के लिये तत्पर। इनके देशप्रेम के जज्बे को ध्यान में रखते हुये बारे में निरंतर में हमने इनके परिचय में एक लेख लिखा था-राष्ट्र रंग में डूबा एक ब्लागर।
ReplyDeleteबेहद दिलचस्प उंटर्व्यु, धन्यवाद आपने इतने लाजवाब इन्सान के बारे मे अंतरंगता से परिचय करवाया.
ReplyDeleteइतने पुराने ब्लागर से इस अंदाज मे मिलवाना बहुत बढिया लगा. धन्यवाद.
ReplyDeleteसंजय बैंगाणी जी से मिलवाने का बहुत आभार. इनकी पुरानी यादें काफ़ी दिलचस्प लगी. और देशप्रेम का जज्बा भी पसंद आया.
ReplyDeleteबेहद दिलचस्प संजय बैंगाणी जी से वार्तालाप बेहद रोचक लगा....आभार
ReplyDeleteregards
Sanjay ka interview yehan parkar achha laga. Fursatiya ji ke comment se sehmati
ReplyDeleteसंजय बेंगाणी जी सचमुच एक जीवंत जीवन जी रहे हैं ! उनसे मिलाने के लिए शुक्रिया ! यह दम्पति सदैव आनन्दित रहे यही कामना है !
ReplyDeleteसंजय जी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteसंजय जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा.. और ताऊजी के इंटरव्यू कौशल का तो कहना ही क्या..हर छिपी बात तह तक निकाल लेते हैं..
ReplyDeleteसंजय जी से मिलना रोचक रहा उनके बारे में जानना दिलचस्प .शुक्रिया .
ReplyDeleteसंजय जी से इस बातचीत अच्छी लगी । शुरुआती चिट्ठाकारों में से एक संजय जी से यहाँ मिलना अपने आप में एक सुखद अनुभव है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteसंजय जी के बारे में जानना वास्तव में सुखद रहा......
ReplyDeleteसच मे राष्ट्र रंग मे डू्बे हुए ब्लागर हैं संजय जी।
ReplyDeleteRochak interview raha.
ReplyDeleteShuruaati chitthakari ka anubhav bhi rochak laga...-blog post karne ke do din baad net par dikhti thi!!!!!!us ka alag hi romanch raha karta hoga.
Sanjay ji ke saath safal sakshaatkaar hetu Taau ji badhaaye
संजय जी के बारे में विस्तार से जानना अच्छा रहा, ब्लौगिंग के भविष्य के बारे में भी उन्होंने अपनी राय साफगोई से रखी.
ReplyDeleteताऊ जी, आपने संजय बैंगाणी जी इतना अच्छा परिचय करवाया, बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteEk bahut achhi aur behtreen mulakat rahi sanjay ji ke sath...
ReplyDeleteसंजय जी से मुलाकात और उनका व्यक्तित्व हमें तो दोनों बहुत पसंद आये.
ReplyDeletebahut achha laga saakshatkaar,lagta hai jo bhi kehte hai ek dam dil se.
ReplyDeleteबढिया इन्टरव्यू था.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा संजय जी के बारे में इतना सब कुछ जानकर.
ReplyDeleteSanjay ji se baat cheet achee lagi..........lajawaab interview
ReplyDeleteसर्वप्रथम आपका तहे दिल से आभार !!
ReplyDeleteआपके पदचिन्हों का मेरे ब्लॉग पर .
आपका प्रोफाइल पेज जैसे ही पढ़ना शुरू किया
एक मुस्कान उभर आई जो शीघ्र ही खिलखिलाहट में बदल गयी
आप जैसे महानुभावों की तो बहुत सख्त जरुरत है इस दुनिया में
जहाँ ज़िन्दगी की रफ़्तार में ,रोज़ की दिनचर्या में
लोगों के चेहरों से हँसी अक्सर गायब ही रहती है
संजय जी के बारे में जान कर बहुत ख़ुशी हुई
शुरू में ही बार - बार यहाँ पर आने का appointment ले रही हूँ :))))
Warm regards
सादर !!!!
baatcheet bahut achchi lagi aapko shukria...
ReplyDeletebaatcheet bahut achchi lagi aapko shukria...
ReplyDeleteसंजय जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद और एक रोचक तथा बढ़िया इंटरव्यू के लिए बधाई।
ReplyDeleteसन्जयजी कि मुलाकात ताऊ रामपुरियाजी के साथ पढी, बहुत सी नई जानकारी मिली उनके बारे मे। यह भी पत्ता चला कि वे बडे ही स्वतन्त्र ख्यालो के साथ परिवारके साथ चलने वाले व्यक्ती है। साथ ही साथ एक अच्छे पति- एक अच्छे पिता - एक मॉ बाप का अच्छा बेटा -
ReplyDeleteएक अच्छे जमाईराज सभी गुणो के धनी है हमारे बैणाजी। बैगाणी जी को शुभकामनाऐ कि जिवन मे यू ही सफल बने रहे। आभार्-
ताऊजी - ५-६-अप्रेल को मै सन्जयजी के गाव बिदासर गया था ( यहॉ आचार्य महाप्रज्ञजी बिराज रहे थे)। बडा ही आदर्श गाव है। इस गाव मे बडी बडी हवेलिया है। (मकाननुमा घर नही) राजस्थान के चुरु जिले का यह गाव थली प्रदेश मे आता है । थली का अर्थ थल यानी यहॉ रेगिस्थान जैसा है। यहॉ कि तेज हवाओ मे घुल के बडे बादल मण्डरा जाते है। रेतीली हवाऐ चलती रहती है। यह गाव हमारे तेरापन्थ धर्म सघ के लिऐ कई कारणो से महत्वपुर्ण है। इस गाव से तेरापन्थ धर्म सघ मे कई महान साधु- साध्वीयो का जन्म हुआ है। यह पवित्र भुमि है। यहॉ के रहवासी कलकत्ता/ मुमबई मे रहते है। यह गाव, घनी लोगो का गॉव है॥
संजय भाई से यह आभासी मुलाकात बहुत अच्छी लगी। वे अभी तक वैसे लगे जैसे लोग मुझे पसंद हैं। विचारों में बेबाकी और अपने साध्य के लिए कठोर श्रम। कभी अवसर हुआ तो उन से वास्तविक रूप से मिलना बहुत अच्छा लगेगा।
ReplyDeleteसंजय बैंगाणी जी से आपके माध्यम से मिलना एक अलग अनुभव रहा वरना तो खूब मिला हूँ. :)
ReplyDeleteवैसे हमारी ख़ासी अच्छी पहचान बन पड़ी है.आपके माध्यम से और भी बहुत कुछ जान पाए. आभार.
ReplyDeleteउनको पढ़ता ओर बूझता आया हूँ.....आज उनसे मिलकर अच्छा लगा .. मेरी मेडिकल की पूरी पढाई गुजरात में हुई है ओर मेरे गहरे दोस्त कई गुजराती भी है....इसलिए ओर अच्छा लगा .
ReplyDeleteक्या आज फिर मोडरेशन लगायेगा, ताऊ ?
ReplyDeleteमेरे को तो एक बात भा गयी..
वह यह कि निधि जी के बाँयें हाथ के खेल का शिकार संजय कितनी शिद्दत से हुये होंगे..
यह आज उनके सदाबहार हँसता हुआ नूरानी चेहरे से ज़ाहिर भी हो गया !
चश्म ए बद्दूर
संजय जी से मिलकर अच्छा लगा.... धन्यवाद आपका.
ReplyDeleteसंजय जी का बेहतरीन परिचय आप के द्वारा प्राप्त हुआ . आपको बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteसंजय जी से दिलचस्प मुलाकात और वो भी एकदम खास ताऊ-स्टाइल में...आहहाहा...
ReplyDeleteसंजय बैंगाणी जी का साक्षात्कार अभी-अभी
ReplyDeleteपढ़ा ! बेहद अच्छा लगा ! समझ नहीं पाया
कि ताऊ ने साक्षात्कार बेहतरीन लिया है या संजय जी का व्यक्तित्व ही दिलकश है ?
इस चक्कर में तीन बार पढ़ गया ! मेरे हिसाब
से संजय जी ने जिस बेबाकी और सादगी से अपनी बात कही है वो अत्यंत प्रभावित करती है !
एक स्वस्थ ब्लॉगर के बारे में इतना कुछ जानकार अच्छा लगा ! पहली बार अपनी बिरादरी के बन्दे से मिलकर दिल खुश हो गया !
हिंदी ब्लागिंग के शुरूआती दिनों के बारे में // उनकी प्रेम कहानी जानकार,// संयुक्त परिवार के बारे में उनके विचार पढ़कर, प्रभावित हुआ !
ख़ास तौर पर उनकी यह बात भी नोट किये जाने लायक है ...."टिप्पणी पाने के लिए ही लिखना हिन्दी ब्लॉगिंग को जिन्दा तो रखे हुए है मगर उसके स्वास्थय के लिए सही नहीं है.
राजनीति के बारे में संजय जी के विचार जानकार सरदार पटेल और सुभाष चन्द्र बोस की बरबस याद आ गयी !
एक बात तो तय है कि खुदा न खास्ता अगर मैं प्रधान मंत्री बन गया तो गृह मंत्री संजय भाई ही होंगे ! मेरी अपील है कि इस साक्षात्कार की एक-एक कापी श्री शिवराज पाटिल और माननीय पी०चिदंबरम को भी भेजी जाए !
ताऊ जी आपको हार्दिक बधाई
ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ
आज की आवाज
संजय भाई के बारे में विस्तार से जानकारी मिली ... बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteसँजय भाई और सौ. निधि जी के बारे मेँ आसाम निवास जैसी बातेँ पहली बार ही सुनी हैँ
ReplyDelete- ताऊ जी का ये प्रयास बहुत बढिया लगा -
- लावण्या
ताऊ जे बात्त....
ReplyDeleteधन्यवाद जी
संजय जी का आभार
रोचक बातचीत। बधाई।
ReplyDeleteताऊजी का आभार कि उन्होने मुझे यहाँ स्थान दिया, पधारे और साक्षात्कार किया.
ReplyDeleteतमाम टिप्पणीकर्ता साथियों का शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ. इतनी सारी शुभकामनाएं वह भी उनसे जिन्हे रूबरू अभी तक मिला भी नहीं हूँ, से पाना सदा याद रहने वाली घटना है.
एक बेबाक और निर्भीक ब्लॉगर से परिचय कराने के लिए धन्यवाद.. कब से इंतेज़ार कर रहा था कल शायद देख नही पाया.. अंतिम सवाल का जवाब मुझे बहुत पसंद आया..
ReplyDeleteसंजय जी से मिलकर अच्छा लगा। मै तो केवल इतना ही जानता था कि अहमदाबाद मे रहते है और हमारी शेखावाटी के ही रहने वाले है । मै संजय जी को इतना और बता दू कि जितना अपने गांव के बारे मे नही जानता उससे ज्यादा सूरत के बारे मे जानता हू । वहा मैने १० साल बिताये है । ताऊ धन्यवाद आपका.
ReplyDeleteघणी खोजी
ReplyDeleteखोजबीन है
धुन बीन की
मनभावन है
ब्लॉगिंग में
चहुं ओर
दिख रहा
सावन है
संजय बैंगाणी
नंबर वन नहीं
ऐवन है।