पोखर की व्यथा
समाकर मुझमे
अनेको जलधाराएं
चैन से सोया करती थी
जैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
और मैं भी सम्पुर्णता के
एहसास मे जिया करता था
नीर चुरा कर मुझसे ही
ऊंचे अम्बर में विचरण करते
ये मेघा इतराया करते थे
चांद सितारे आसमान मे
अपना अक्स निहार मुझमे
श्रंगार कर शरमाया करते थे
मुझमे यूँ जीवन को पा सब
खुशी से ईठलाया करते थे
पर अब मैं सुखा पोखर हुं आसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
समाकर मुझमे
अनेको जलधाराएं
चैन से सोया करती थी
जैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
और मैं भी सम्पुर्णता के
एहसास मे जिया करता था
नीर चुरा कर मुझसे ही
ऊंचे अम्बर में विचरण करते
ये मेघा इतराया करते थे
चांद सितारे आसमान मे
अपना अक्स निहार मुझमे
श्रंगार कर शरमाया करते थे
मुझमे यूँ जीवन को पा सब
खुशी से ईठलाया करते थे
पर अब मैं सुखा पोखर हुं आसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
सीमा जी , पोखर बरखा जल से हरे भरे होँ यही आशा है ..
ReplyDeleteमरघट जैसे सन्नाटे को,
ReplyDeleteदिल से दूर भगाना है।
फिर से अपने भारत को,
जग का आचार्य बनाना है।।
सूखा पोखर ? ऐसा क्या हुआ ?? रेत सा तन जो ढह गया है -नेह निर्झर बह गया है ! क्या निरालात्व को प्राप्त हो गए ताऊ ! मुझे याद नहीं आ रही है निराला की पूरी कविता -डॉ मनोज से अनुरोध की वे कुछ और लाईने लिख दें आपको थोडा ढाढस देने के लिए ! च्च च्च च्च ...!
ReplyDeleteसमाकर मुझमे
ReplyDeleteअनेको जलधाराएं
चैन से सोया करती थी
जैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
" पोखर की व्यथा इन शब्दों मे भावनत्मक स्तर पर व्यक्त हो रही हैं....सभी पोखर जल से भरे रहे यही प्रार्थना है , जल ही जीवन है..."
Regards
पर अब मैं सुखा पोखर हुं
ReplyDeleteआसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
पर ताऊ जी कौन जिम्मेदार है इसकी यह हालत करने के लिये. बहुत उम्दा और पीडा को व्यक्त किया है.
बहुत पिडादायक है पोखरों का सूखना. सटीक व्यथा.
ReplyDeleteबहुत पीडादायक है पोखरों का सूखना. सटीक व्यथा.
ReplyDeleteअपना अक्स निहार मुझमे
ReplyDeleteश्रंगार कर शरमाया करते थे
मुझमे यूँ जीवन को पा सब
खुशी से ईठलाया करते थे
पर अब मैं सुखा पोखर हुं
आसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
वाह बहुत सुन्दर लिखा है सीमा जी।
पर अब मैं सुखा पोखर हुं
ReplyDeleteआसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
रचना तो वाकई बहुत सुंदर है ,इसके लिए सुश्री सीमा गुप्ताजी को बधाई .
पर मुझे एक बात समझ में ना आई कि ताऊ जी को गम में डूबी इस रचना को प्रस्तुत करनें की कौन सी आवश्यकता आन पडी .
ऊपर के निर्देश के अनुक्रम में आप मुझसे निराला जी की वह रचना पूरी सुन ही लें -
स्नेह निर्झर बह गया है ,रेत ज्यों तन रह गया है |
आम की यह डाल जो सूखी दिखी ,कह रही है अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते |
पंक्ति मैं वह हूँ लिखी ,नहीं जिसका अर्थ जीवन दह गया है |
दिए हैं मैंने जगत को फूल फल ,किया है आपनी प्रभा से चकित चल|
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल ,ठाट जीवन का वही जो ढह गया है |
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा ,श्याम त्रिन पर बैठनें को निरुपमा |
बह रही है हृदय पर केवल अमा,मै अलक्षित हूँ यही कवि कह गया है ||
इन दिनों
ReplyDeleteलोग ले जाते
मिट्टी उपजाऊ
गहराई मेरी बढ़ जाती है
वर्षा जल की
मैं बाट जोहती
भर जाए फिर से
मेरी झोली
समाकर मुझमे
ReplyDeleteअनेको जलधाराएं
चैन से सोया करती थी
जैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
bahut marmik rachana,ye panktiyaan bahut achhi lagi.
समाकर मुझमे अनेको जलधाराएं चैन से सोया करती थी
ReplyDeleteजैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
बहुत ही अच्छा लिखा है ताऊ जी!
अब मैं सुखा पोखर हुं
आसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
एक सूखे पोखर की व्यथा कथा द्वारा कविता में भाव अभिव्यक्ति सफल दिखती है.
यही आज कल के ज़माने की रीत है जब तक व्यक्ति उनके काम का है लोग उस के आसपास रहते हैं..जब वह काम का नहीं रहता तो छोड़ जाते हैं.
[आज तो ताऊ जी भी उदास कविता लिख रहे हैं.]
pokharo ka sukhna nischit hi ek chintaniy ghatna hai hum ko is par vichar karna hoga... aapki yah kavita sundar lagi....
ReplyDeleteaapki yah kavita achchi lagi.....
ReplyDeleteआज के दौर की सबसे बड़ी व्यथा और चिंता यही है।
ReplyDeleteसीमा जी बधाई की पात्र है.... इस ज्वलंत विषय पर कविता लिखने के लिए.....
ReplyDelete"समाकर मुझमे
ReplyDeleteअनेको जलधाराएं
चैन से सोया करती थी
जैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
और मैं भी सम्पुर्णता के
एहसास मे जिया करता था"
इस कविता के माध्यम से सीमा जी ने जिस मुद्दे की ओर ध्यानाकर्षित किया है,उसके लिए वो सचमुच बधाई की पात्र हैं.......आभार
सूखा पोखर तो आजकल कमाई का जरिया है ताऊ जी हर सरपंच यही कामना करता है कि उसके गांव का पोखर सूखे और वो राहत कार्य करवा कर लूट खसोट कर सके।
ReplyDeleteपोखर कि व्यथा अच्छी लगी । मै तो राजस्थान का रहने वाला हू यहाँ के लोग पानी के प्रती बहुत ही जागरूक है । आपका कविता के माध्यम से चिन्ता जाहिर करना बहुत अच्छा लगा आभार
ReplyDeleteपोखरे का सुखना अच्छा नहीं , कितने ही पशु-पछी उसके ऊपर निर्भर रहते हैं .जल ही जीवन है अगर जल ही नहीं रहेगा तो क्या होगा
ReplyDeleteजैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
ReplyDeleteऔर मैं भी सम्पुर्णता के
एहसास मे जिया करता था
Bahut khoob...
वाह जी सीमा जी आज बहुत ही दिनों बाद सुना यह पोखर शब्द इसे तो जैसे भूल ही गए थे और आपने बिल्कुल सच्चाई लिखी है बेहतरीन उपलब्धि बारम्बार बधाई ताऊ को भी
ReplyDeleteसमाकर मुझमे अनेको जलधाराएं
ReplyDeleteचैन से सोया करती थी
जैसे मां के आगोश मे तृप्त शिशु
सुन्दर रचना है..........
सीमा जी की झलक साफ़ नज़र आती है
मुझे अपने गांव का तालाब याद आ गया। मेरे बचपन में उसमें हर मौसम में पानी रहता था। सभी मंगल संस्कार उसके किनारे होते थे। अब उसे पाट कर लोग घर दुकानें बनाते जा रहे हैं।
ReplyDeleteदुखद।
सही है जी. पोखर की व्यथा-कथा बहुत सही उकेरा है सीमा जी ने.
ReplyDeleteसही सच्ची कविता ..बहुत पसंद आई यह
ReplyDeletesookhe pokhar ke dard ko bahut hi sundar dhang se ukera hai aapne....bhaavpoorn rachna..
ReplyDeleteगम की अंधेरी रात में दिल को न बेकरार कर, सुबह जरूर आएगी, सुबह का इंतजार कर।
ReplyDeleteपोखरों का सूखना निश्चित ही पीडा दायक है. हमारी झील सूख रही है. हम क्या करें.
ReplyDeleteपर अब मैं सुखा पोखर हुं
ReplyDeleteआसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
जर्जर हुए पोखर की आत्मवेदना ....सीमा जी ने बहोत सुन्दर भावों से सजाया है इसे ...कुछ कुछ इसी से मिलती जुलती कविता ' बूढा पुल' पढ़ी थी कहीं अब याद नहीं किसकी थी ...!!
नीर चुरा कर मुझसे ही
ReplyDeleteऊंचे अम्बर में विचरण करते
wah!!
पर अब मैं सुखा पोखर हुं
आसपास मेरे पसरा बस
मरघट सा सन्नाटा है....
wah !! wah!!!
tau ji hamne aapko email bhej di hai,agar inbox mein na mile to spam mein kripaya check kare.
ReplyDeleteyahan bhi apna email aapko de dete hai,aapke sujhav ka swagat hai,hamara email hai mehhekk@rediffmail.com,regards,isko publish nahi kare shukran
ReplyDeleteअच्छी लेखनी हे..../ पड़कर बहुत खुशी हुई.../ आप कौनसी हिन्दी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे..? मे रीसेंट्ली यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा था तो मूज़े मिला.... " क्विलपॅड " / ये बहुत आसान हे और यूज़र फ्रेंड्ली भी हे / इसमे तो 9 भारतीया भाषा हे और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप भी " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...?
ReplyDeletewww.quillpad.in
मार्मिक रचना....
ReplyDeleteसारी टिप्पणियों को पढ़कर उलझ गया हूँ, जहाँ अपनी छोटी सी समझ कह रही है मुझसे कि रचना और शब्द आपके हैं और सीमा जी ने कुछ सुधार किया है और शायद इसलिये आप आभार प्रकट कर रहे हैं....या फिर रचना सीमा जी की हैं
अब सीमा जी की अद्भुत लेखनी से सारा ब्लौग वाकिफ़ है...
लेकिन ये बकलम आप खुद हो, है ना ताऊ?