हमनै इब बाबू को बोल दिया कि देख बाबू इब
हम भी बडे हो गये हैं ! और इब हमको लठ्ठ
दिखाणा बंद करो ! ये कोई आछी बात ना सै !
जब देखो तब लठ्ठ लेके खडे हो जाते हो !
बाबू नै म्हारै रंग ढंग देख कै समझ लिया कि
आज छोरै को किसी नै हवा भर दी दिखै !
सो म्हारा बाबू भी घणा ही समझदार सै !
चुप चाप होकै प्यार तैं हमनै समझावण लाग ग्या !
और बोल्या भई तैं आराम तैं सुण ले और यो
पोस्ट लिख दे ! मैं बोल्यो - बाबू आराम तैं तो
तू चाहे जूते भी मार ले हमनै किम्मै ऐतराज ना सै !
पर सबकै सामनै तो म्हारी बे इज्जती ना करया कर !
इब बाबू नै बोलणा शुरु किया ! इब बाबू नै जो किस्सा
सुनाया उसका लुब्बे लुबाव इस तरियां था !
पुराने समय मे एक राजा था ! जो विद्वानों का बड़ा आदर
करता था ! जो भी विद्वान् उसे कुछ श्लोक या अच्छी चर्चा
करता उसे वो इनाम दिया करता था ! उस समय मे एक
नगर मे एक ताऊ भी रहता था ! वो था तो वज्र मुर्ख पर
अपने आपको कुछ ज्यादा ही विद्वान् समझा करता था !
और वो इतना दरिद्र था कि अपने बच्चों को दूध तो
क्या ठीक से खाना भी नही खिला सकता था ! एक दिन
उसकी पत्नी (ताई) ने बडे दुखी होकर कहा कि तू राजा
के दरबार मे जा और वहां राजा को कुछ कविता
या श्लोक सुना कर एक अच्छी सी गाय या भैन्स
मान्ग कर ले आना जिससे हम बच्चों को दूध
पिला सके ! राजा विद्वानों का बडा आदर करता था !
पर ये ताऊ तो बडा ही मुर्ख था ! और इसी डर से राज
दरबार मे जाना नही चाहता था ! पर ताई के लट्ठ के डर के
मारे जाने को तैयार हो गया ! और किसी तरह हिम्मत
करके राजा के दरबार मे पहुंच तो गया पर अन्दर
जाने की जुगत नही बैठी ! फ़िर किसी तरह एक दिन
अन्दर दरबार मे राजा के सामने पहुंच ही गया !
राजा ने विद्वान समझ कर ताऊ से पूछा :
कुत आगम्यते ताऊ ?
- हे ताऊ देवता ! आपका आगमन कहां से हुआ है ?
ताऊ देवता को कुछ जवाब सूझा नही
-सो बोल पडे- "कैलाशादागतोअस्म्यहम"
अर्थात मैं कैलाश से आया हूँ !
राजा भोज ने सोची कि - ये कैलाश से
जिन्दा कैसे आ गया ? पर जिस विश्वास से
ताऊ ने जवाब दिया था उससे राजा काफी
प्रभावित भी हुवा था ! सो कोतुहल वश ही
राजा ने पूछा-- और भगवान शन्कर के क्या हाल
चाल हैं ? भोलेनाथ कुशलता पूर्वक तो हैं ?
ताऊ बोला- किं प्रच्छसि शिवो मृत:
- हे राजन तुम क्या पूछते हो ?
क्या तुमको आज तक भी खबर नही है ?
कैसे शिव भक्त हो ? अरे शन्कर तो कैलाश वाशी
हो गये हैं अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं !
यह सुन कर राजा बड़े आश्चर्य मे पड गया !
और बोला- हे ताऊ श्रेष्ठ ! यह कैसे हो सकता है ?
क्योन्की जो मृत्यु की भी मृत्यु करने वाला और
काल का भी काल है ! जिसको सारा संसार अजन्मा
कहकर निरन्तर स्मरण करता है, उसकी मृत्यु भला
किस प्रकार हो सकती है ?
और उनके परिवार आदि का क्या हुआ ?
ताऊ बोला- हे पृथ्वी पति ! मुझे मालुम है कि
इस समाचार से आपको अत्यन्त दुख: हुवा है !
आप धैर्य धारण करके श्रवण करे !
मैं आपको पूरी बात का वर्णन करता हूं !--
अर्ध दावववैरिणा गिरिजया प्यर्ध हर्स्याह्र्तं
देवेत्थ भुवनत्रये स्मरहराभावे समुन्मीलति !
गंगासागरमम्बरं शशिकला शेषश्चप्रथवीतलं
सर्वघ्यत्वमधीश्वर्त्वमगमत्वांमांच भिक्षाटनम !!
अर्थात- महादेव का आधा अंग तो विष्णू
भगवान ने हर लिया , शेष बचा हुवा आधा
अंग पार्वती ने हर लिया, इस प्रकार उनके समस्त
शरीर का बंटवारा हो गया, अब उनके परिवार
की हालत बताता हूं, सुनो- उनके मस्तक पर जो
गंगा विराजमान थी वो समुद्र ने चली गई,
और शशिकला आकाश मे चन्द्रमा के साथ मिल गई,
और शेषनाग (गले मे लिपटने वाले सांप) पाताल
लोक मे चले गये, और उनमे जो सर्वज्ञता , दान देने
की क्षमता और अधिश्वरता थी वो तुझमे आ गई,
और बाकी बचा भिक्षाटन (भीख मांगने का काम ) वह
मुझमे आ गया !
इस प्रकार ताउओं के ताऊ की चतुरता और
हाजिर जवाबी से राजा भोज अत्यन्त प्रसन्न होकर
बोला- हे ताउओं में श्रेष्ठ ताऊ , मैं तुमसे अत्यन्त प्रसन्न हूं ,
मान्ग लो क्या चाहिये ?
ताऊ बोला - हे राजन , मैं दरिद्रता
से दुखी हूं और मेरे कई छोटे २ बच्चे हैं !
उनको दूध भी मैं पिला नही पाता ! आपकी कृपा
से कोई अच्छी नस्ल की गाय या भैंस दुधारू मिल
जाये ! यही इच्छा है !
राजा ने तुरन्त ही मंत्री को एक उत्तम
भैंस ताऊ को मंगा कर देने का आदेश दिया !
अब बीच के अधिकारियों ने सोचा - यह ताऊ
अत्यन्त मूर्ख है ! और राजा इसकी हाजिर जवाबी
पर भैंस दे रहा है ! जबकि ये सरासर झूंठ
बोल रहा था ! अत: उन्होने एक बूढी बांझ भैंस
लाकर ताऊ को थमा दी ! पर ताऊ ये सब
भांप गया कि उसको बूढी बांझ ( बिना दुध देने वाली )
भैंस टिका दी है !
अब ताउ श्रेष्ठ , भैंस के बदन पर हाथ फ़िराता
हुवा अपना मुंह भैंस के कान पर लगा कर
कुछ बोलने का अभिनय करने लगा ! फ़िर अपना
कान भैंस के मूंह के सामने लाकर सुनने का
अभिनय करने लगा ! यह देख कर राजा
बडा चकित हो कर पूछने लगा -- हे ताउओं में श्रेष्ठ ताऊ ,
आप ये क्या कर रहे हो ?
ताऊ बोला - राजन मैने इस भैंस से पूछा कि
तेरे पाडा (नर बच्चा) है या पाडी (मादा बच्ची) है !
और तू दुध भी देती है या सिर्फ़ तेरे स्तन (थन)
ही दिखाई दे रहे हैं ! और तू गर्भवती भी है
या नही ? तब उसने मेरे कान मे कहा -
भर्ता मे महिषासुर: कृतयुगे देव्या भवान्या
हतस्तस्मातद्दिनतो भवामिविधवा वैधव्यधर्मा ह्यहम !
दन्ता मे गलिता: कुचा विगलिता भग्नं विषाण्द्व्यं
व्रद्धायां मयि गर्भ्सम्भवविधिं प्रच्छन्न किं लज्जसे !!
अर्थात - मेरे पति महिषासुर को कृतयुग मे देवी
ने मार डाला है , उस दिन से मैं वैध्व्य भोग रही हूं ,
आज तक मैं विधवा धर्म का पालन करती आ रही हूं ,
मैने आज तक भी हर्गिज जार कर्म नही किया है !
अब मेरे दांत गिर गये हैं और स्तन शिथिल
हो गये हैं, और दोनो सींग भी टूट गये हैं ,
और मैं बूढी हो चुकी हूं, अरे दुष्ट ताऊ ऐसी
अवस्था मे भी तू मुझसे पुछता है कि मैं गर्भवती
हूं या नही ? क्या तुझे थोडी बहुत लज्जा भी नही
आती ? और ये भी कहा की --
क्या तेरे घर मे मां बहन हैं या नही ?
हे राजन इसने इस तरह मुझे बहुत बुरा भला सुनाया !
और इस भैंस ने मुझे अनाप शनाप गालियाँ भी दी जो मैं इस
भरी राज सभा मे कह भी नही सकता ! मैंने अपने पुरे जीवन
मे इतनी गालियाँ नही खाई जितनी गालियाँ इस पतिव्रता
भैंस ने मुझे दी हैं !
ताऊ के इस चातुर्य पर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुवा
और उसको उत्तम प्रकार की गाय , भैंसे और स्वर्ण
मुद्राएं दे कर विदा किया !
तो भाइयो इब म्हारै बाबू कुछ दिन के लिये गाम चले गये हैं !
और मैंने उनकी कही कहानी मै थोडा भोत फेर बदल कर दिया सै !
कारण की बाबू आली कहानी मै किम्मै जाति सूचक शब्द थे
उनकी जगह मैंने ताऊ शब्द इस्तेमाल कर लिया सै !
क्योंकि ताऊ इस तरियां कै झंझट तैं दूर ही रहणा चाहवै सै !
इब भाई ताऊ की राम राम ! और यो बात म्हारे बाबू नै मतना
बताइयो नही तो म्हारे हाड कुटैगा !
इब बाबू कै आणे तक तो आराम सै ! बाकी बाद मै देखेन्गे !
हम भी बडे हो गये हैं ! और इब हमको लठ्ठ
दिखाणा बंद करो ! ये कोई आछी बात ना सै !
जब देखो तब लठ्ठ लेके खडे हो जाते हो !
बाबू नै म्हारै रंग ढंग देख कै समझ लिया कि
आज छोरै को किसी नै हवा भर दी दिखै !
सो म्हारा बाबू भी घणा ही समझदार सै !
चुप चाप होकै प्यार तैं हमनै समझावण लाग ग्या !
और बोल्या भई तैं आराम तैं सुण ले और यो
पोस्ट लिख दे ! मैं बोल्यो - बाबू आराम तैं तो
तू चाहे जूते भी मार ले हमनै किम्मै ऐतराज ना सै !
पर सबकै सामनै तो म्हारी बे इज्जती ना करया कर !
इब बाबू नै बोलणा शुरु किया ! इब बाबू नै जो किस्सा
सुनाया उसका लुब्बे लुबाव इस तरियां था !
पुराने समय मे एक राजा था ! जो विद्वानों का बड़ा आदर
करता था ! जो भी विद्वान् उसे कुछ श्लोक या अच्छी चर्चा
करता उसे वो इनाम दिया करता था ! उस समय मे एक
नगर मे एक ताऊ भी रहता था ! वो था तो वज्र मुर्ख पर
अपने आपको कुछ ज्यादा ही विद्वान् समझा करता था !
और वो इतना दरिद्र था कि अपने बच्चों को दूध तो
क्या ठीक से खाना भी नही खिला सकता था ! एक दिन
उसकी पत्नी (ताई) ने बडे दुखी होकर कहा कि तू राजा
के दरबार मे जा और वहां राजा को कुछ कविता
या श्लोक सुना कर एक अच्छी सी गाय या भैन्स
मान्ग कर ले आना जिससे हम बच्चों को दूध
पिला सके ! राजा विद्वानों का बडा आदर करता था !
पर ये ताऊ तो बडा ही मुर्ख था ! और इसी डर से राज
दरबार मे जाना नही चाहता था ! पर ताई के लट्ठ के डर के
मारे जाने को तैयार हो गया ! और किसी तरह हिम्मत
करके राजा के दरबार मे पहुंच तो गया पर अन्दर
जाने की जुगत नही बैठी ! फ़िर किसी तरह एक दिन
अन्दर दरबार मे राजा के सामने पहुंच ही गया !
राजा ने विद्वान समझ कर ताऊ से पूछा :
कुत आगम्यते ताऊ ?
- हे ताऊ देवता ! आपका आगमन कहां से हुआ है ?
ताऊ देवता को कुछ जवाब सूझा नही
-सो बोल पडे- "कैलाशादागतोअस्म्यहम"
अर्थात मैं कैलाश से आया हूँ !
राजा भोज ने सोची कि - ये कैलाश से
जिन्दा कैसे आ गया ? पर जिस विश्वास से
ताऊ ने जवाब दिया था उससे राजा काफी
प्रभावित भी हुवा था ! सो कोतुहल वश ही
राजा ने पूछा-- और भगवान शन्कर के क्या हाल
चाल हैं ? भोलेनाथ कुशलता पूर्वक तो हैं ?
ताऊ बोला- किं प्रच्छसि शिवो मृत:
- हे राजन तुम क्या पूछते हो ?
क्या तुमको आज तक भी खबर नही है ?
कैसे शिव भक्त हो ? अरे शन्कर तो कैलाश वाशी
हो गये हैं अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं !
यह सुन कर राजा बड़े आश्चर्य मे पड गया !
और बोला- हे ताऊ श्रेष्ठ ! यह कैसे हो सकता है ?
क्योन्की जो मृत्यु की भी मृत्यु करने वाला और
काल का भी काल है ! जिसको सारा संसार अजन्मा
कहकर निरन्तर स्मरण करता है, उसकी मृत्यु भला
किस प्रकार हो सकती है ?
और उनके परिवार आदि का क्या हुआ ?
ताऊ बोला- हे पृथ्वी पति ! मुझे मालुम है कि
इस समाचार से आपको अत्यन्त दुख: हुवा है !
आप धैर्य धारण करके श्रवण करे !
मैं आपको पूरी बात का वर्णन करता हूं !--
अर्ध दावववैरिणा गिरिजया प्यर्ध हर्स्याह्र्तं
देवेत्थ भुवनत्रये स्मरहराभावे समुन्मीलति !
गंगासागरमम्बरं शशिकला शेषश्चप्रथवीतलं
सर्वघ्यत्वमधीश्वर्त्वमगमत्वांमांच भिक्षाटनम !!
अर्थात- महादेव का आधा अंग तो विष्णू
भगवान ने हर लिया , शेष बचा हुवा आधा
अंग पार्वती ने हर लिया, इस प्रकार उनके समस्त
शरीर का बंटवारा हो गया, अब उनके परिवार
की हालत बताता हूं, सुनो- उनके मस्तक पर जो
गंगा विराजमान थी वो समुद्र ने चली गई,
और शशिकला आकाश मे चन्द्रमा के साथ मिल गई,
और शेषनाग (गले मे लिपटने वाले सांप) पाताल
लोक मे चले गये, और उनमे जो सर्वज्ञता , दान देने
की क्षमता और अधिश्वरता थी वो तुझमे आ गई,
और बाकी बचा भिक्षाटन (भीख मांगने का काम ) वह
मुझमे आ गया !
इस प्रकार ताउओं के ताऊ की चतुरता और
हाजिर जवाबी से राजा भोज अत्यन्त प्रसन्न होकर
बोला- हे ताउओं में श्रेष्ठ ताऊ , मैं तुमसे अत्यन्त प्रसन्न हूं ,
मान्ग लो क्या चाहिये ?
ताऊ बोला - हे राजन , मैं दरिद्रता
से दुखी हूं और मेरे कई छोटे २ बच्चे हैं !
उनको दूध भी मैं पिला नही पाता ! आपकी कृपा
से कोई अच्छी नस्ल की गाय या भैंस दुधारू मिल
जाये ! यही इच्छा है !
राजा ने तुरन्त ही मंत्री को एक उत्तम
भैंस ताऊ को मंगा कर देने का आदेश दिया !
अब बीच के अधिकारियों ने सोचा - यह ताऊ
अत्यन्त मूर्ख है ! और राजा इसकी हाजिर जवाबी
पर भैंस दे रहा है ! जबकि ये सरासर झूंठ
बोल रहा था ! अत: उन्होने एक बूढी बांझ भैंस
लाकर ताऊ को थमा दी ! पर ताऊ ये सब
भांप गया कि उसको बूढी बांझ ( बिना दुध देने वाली )
भैंस टिका दी है !
अब ताउ श्रेष्ठ , भैंस के बदन पर हाथ फ़िराता
हुवा अपना मुंह भैंस के कान पर लगा कर
कुछ बोलने का अभिनय करने लगा ! फ़िर अपना
कान भैंस के मूंह के सामने लाकर सुनने का
अभिनय करने लगा ! यह देख कर राजा
बडा चकित हो कर पूछने लगा -- हे ताउओं में श्रेष्ठ ताऊ ,
आप ये क्या कर रहे हो ?
ताऊ बोला - राजन मैने इस भैंस से पूछा कि
तेरे पाडा (नर बच्चा) है या पाडी (मादा बच्ची) है !
और तू दुध भी देती है या सिर्फ़ तेरे स्तन (थन)
ही दिखाई दे रहे हैं ! और तू गर्भवती भी है
या नही ? तब उसने मेरे कान मे कहा -
भर्ता मे महिषासुर: कृतयुगे देव्या भवान्या
हतस्तस्मातद्दिनतो भवामिविधवा वैधव्यधर्मा ह्यहम !
दन्ता मे गलिता: कुचा विगलिता भग्नं विषाण्द्व्यं
व्रद्धायां मयि गर्भ्सम्भवविधिं प्रच्छन्न किं लज्जसे !!
अर्थात - मेरे पति महिषासुर को कृतयुग मे देवी
ने मार डाला है , उस दिन से मैं वैध्व्य भोग रही हूं ,
आज तक मैं विधवा धर्म का पालन करती आ रही हूं ,
मैने आज तक भी हर्गिज जार कर्म नही किया है !
अब मेरे दांत गिर गये हैं और स्तन शिथिल
हो गये हैं, और दोनो सींग भी टूट गये हैं ,
और मैं बूढी हो चुकी हूं, अरे दुष्ट ताऊ ऐसी
अवस्था मे भी तू मुझसे पुछता है कि मैं गर्भवती
हूं या नही ? क्या तुझे थोडी बहुत लज्जा भी नही
आती ? और ये भी कहा की --
क्या तेरे घर मे मां बहन हैं या नही ?
हे राजन इसने इस तरह मुझे बहुत बुरा भला सुनाया !
और इस भैंस ने मुझे अनाप शनाप गालियाँ भी दी जो मैं इस
भरी राज सभा मे कह भी नही सकता ! मैंने अपने पुरे जीवन
मे इतनी गालियाँ नही खाई जितनी गालियाँ इस पतिव्रता
भैंस ने मुझे दी हैं !
ताऊ के इस चातुर्य पर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुवा
और उसको उत्तम प्रकार की गाय , भैंसे और स्वर्ण
मुद्राएं दे कर विदा किया !
तो भाइयो इब म्हारै बाबू कुछ दिन के लिये गाम चले गये हैं !
और मैंने उनकी कही कहानी मै थोडा भोत फेर बदल कर दिया सै !
कारण की बाबू आली कहानी मै किम्मै जाति सूचक शब्द थे
उनकी जगह मैंने ताऊ शब्द इस्तेमाल कर लिया सै !
क्योंकि ताऊ इस तरियां कै झंझट तैं दूर ही रहणा चाहवै सै !
इब भाई ताऊ की राम राम ! और यो बात म्हारे बाबू नै मतना
बताइयो नही तो म्हारे हाड कुटैगा !
इब बाबू कै आणे तक तो आराम सै ! बाकी बाद मै देखेन्गे !
भाई ताऊ, बहुत ही अच्छी को शिक्षा से भरपुर कहानी सुना दी आप ने धन्य हे, कोन कहता हे ताऊ मुर्ख होता हे ? हा आज कल शरीफ़ को मुरख ही कह देते हे, क्योकि आज कल तो चालाको ओर चालूओ का जमाना हे,
ReplyDeleteलेकिन आज पता चल गया कि भेंस भी पति व्रता होती हे,
धन्यवाद
क्या बात है ताऊ ? कहाँ से पकड़ लाये ये पतिव्रता भैंस ? भई हंस हंस के बुरे हाल हुए जा रहे है ! आपके चरण बिना पकडे काम नही चलेगा ! इब आप तो जल्दी बंगलोर आ जाओ !
ReplyDeleteबहुत दिन हो गए हैं यहाँ आए ! और इबकै एक सप्ताह म्हारे साथ क लिए निकाल कै आना ! थारे किस्से कहानी सुनने को सारे आफिस आले छोरे छारी तरस रहे सै ! इब बहाने बाजी
नही चलेंगे ! नही त हम सारे स्टाफ आले अबकी थारे घर आ धमकेंगे !
वाह ताऊ छा गए आप तो आपने तो संस्कृत आख़िर सीख ही ली ! ताऊ और भैंस के संवाद में तो मजा ही आगया !
ReplyDeleteबहुत अच्छे !
ताऊ जी बहुत ही अच्छी कहानी सुनाई....आपका स्टाइल ज़बरदस्त है .....हमेशा की तरह एक बहुत ही खूबसूरत पोस्ट !!!!!!!!1
ReplyDeleteताऊ अब आदमियों की संगत छोड़ कर
ReplyDeleteभैंसों की संगत करने लग गए क्या ?
" मैंने अपने पुरे जीवन मे इतनी गालियाँ नही
खाई जितनी गालियाँ इस पतिव्रता भैंस ने मुझे दी हैं !"
हमको भी तो बताओ की इस पतिव्रता ने आपको
ऎसी कौन सी गालिया दे डाली ? आर ताऊ तेरे
पैरों में प्रणाम ,तेरे गोडों में परनाम , तेरे हाथों को परनाम, इतना मत हंसा के तेरे को ही नजर लग जाए !
तिवारी साहब का सलाम ले ले ताऊ !
ये तो गजब की कथा सुनाई आप ने लुबे लुआब यह किसब कुछ पहले भी कहा सुना जा चुका है हम बॉस उसे कान नहीं देते .
ReplyDeletewah tau anand aa gaya.din bhar ka tension khatam
ReplyDeleteबाबू जी से इतनी अच्छी-अच्छी कहानियां सुनते हैं फ़िर भी उन्हें बदनाम करते हैं - यह क्या बात हुई?
ReplyDeleteत्वरित-लाभ संहिता के अनुसार भैंस से गाली सुनने में तो ३० दिन में प्रमोशन का योग बँटा है - ज़रा अपने बॉस पर नज़र रखिये. अगर यह भविष्यवाणी सच न हो तो भैंस के बाएँ सींग में कोई नुक्स होगा - चेक कर सकते हैं.
जातिसूचक शब्द तो गलती से आ ही गया एक जगह और उसकी वजह से मैं बहुत खफा हूँ. आपकी खुशकिस्मती है कि पुरखों ने धरना-महापंचायत नहीं बनाई नहीं तो हम अभी आ धमकते विरोध प्रदर्शन के लिए.
मज़ाक बंद - बहुत अच्छी पोस्ट है, जितना भी कहा जाय कम है. ऐसे ही ज्ञान बांटते रही हंसी-हंसी में.
ताऊ जी राम राम
ReplyDeleteबङी अच्छी कहानी सुनाई आपने लेकिन इस कहानी में एक बात का खुलासा ये हुआ कि भैंस भी पतिव्रता होती है और आप भैस की भाषा समझ लेते हो। मजा आ गया।
Bahut Khub.
ReplyDeleteइब ताऊ, बढि़या बात कह दी, भई संस्कृत तो थारी है बढ़िया पर इब तो ना पढ़ी जाती म्हारे से। पर सीख तो म्हारे को मिलगी सै, कि ताऊ तो ताऊ होवे है।
ReplyDeleteवैसे हमारे यहां पर चलन है कि ताऊ-चाचा-मामा के साथ जी लगाना जरूरी है मेरे चाचा जी और ताऊ जी को बिना जी के नहीं पुकार सकता कोई पूरे गांव में और यदि निकल गया किसी भी छोरे के मुंह से तो बस मुंह टूटा समझो। तो ताऊ जी को राम राम।
बहुत अच्छे जा रहे हो ! भैंसों का धंधा भी बुरा नही ! अरे यार ताउजी आपने भी राजा से क्या माँगा ? भैंस .. अरे मांगना ही था तो १०/२० गाँव मांग लेते ! पर ताऊ तो ताऊ ! धन्य हो ! हे हरयाणवी महा पुरूष ! आपको शत शत नमन ! हमारे अहोभाग्य जो आप हमारे बीच हैं ! आप तो देते रहो चोक छक्के !
ReplyDeleteताऊ गजब लिखा ! कहाँ से लाते हो ऐसे ऐसे आइडिया ?
ReplyDeleteहमको भी बताओ ! पतिव्रता भैंस पहली ही बार सुनी !
अभी पता नही और क्या क्या बताओगे ? धन्यवाद !
ताऊ गजब लिखा ! कहाँ से लाते हो ऐसे ऐसे आइडिया ?
ReplyDeleteहमको भी बताओ ! पतिव्रता भैंस पहली ही बार सुनी !
अभी पता नही और क्या क्या बताओगे ? धन्यवाद !
रोचक और शिक्षाप्रद कहानी मजेदार शैली मे आनंद आ गया पढकर !!
ReplyDeleteताऊ आज बहुत ज्ञान दे दिया आपने ....सच्ची हम भी भक्त हो गए थारे
ReplyDelete" ha ha ha ha so interesting to read this story, the style and haryanvee language used to decribe the post and story is mind blowing, enjoyed a lot to read it"
ReplyDeleteRegards
ताऊ जी राम राम, नहीं ये भीम ताल नहीं जयपुर का जल महल है। आपको मेरी कविता और चित्र पसंद आया, आपका धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रीती जी , करदी ना गड़ बड़ आपने ! अरे भई इतना सच नही बोलते ! मैंने तो यूँ ही ताई के सामने हांकने को जलमहल लिख दिया था ! और ताई ठहरी ठेठ जयपुरी !
ReplyDeleteमैंने सोचा जलमहल तो वर्षों से सुखा पडा है ! सो भीमताल ही होगा ! सो शर्त लगा बैठा ताई से ! अब दो जर्मन मेड लट्ठ, भाटिया जी वाले, मुझे खाने पड़ेंगे आज ही !
लगता है आप सब लोगो को राज भाटिया जी ने ताई के पक्ष में कर रखा है ! और आप सब ताऊ के ख़िलाफ़ षडयंत्र करते रहते हो ! अब फोटो छापी आपने और लट्ठ खाए ताऊ ? ये कौन सी बात हुई ? कहीं ये फोटो छापने के लिए राज भाटिया जी ने तो नही कहा ना आपको ? :)
कहानी ये बताती है की मूर्ख भी कभी कभी विद्वानों के कान कतरने की क्षमता रखते हैं...भोत बढ़िया पोस्ट रे भाई...
ReplyDeleteनीरज
.
ReplyDeleteऒऎ ताऊ, तू इस तरियों लिखा करेगा,
ते बाकी ब्लागर के घास छीलांगे ?
ठैर जरा को , क्लिनिक से लौट के तेरी ख़बर लेता बहुत अच्छा लिखण लग्या सै, भई तू तो ?
गुरुदेव बाबू नै एक बात और कही थी की चेले में गुरु के ही गुण ज्यादा आजाते हैं ! इब ये तो आपकी रामायण आप जानो ! आछी बूरी जो भी हो ! ताऊ तो गुरु का नाम लेके की-बोर्ड पै शुरू हो जाता है ! फ़िर आछी बुरी गुरु के मत्थे !
ReplyDeleteप्रणाम गुरुदेव !
many many thanks for ur encouragement n valuable comment on my poetry. Humara blog aapka he hai aap khushe se blog ka link lgaa sekten hain. Regards
ReplyDelete.
ReplyDeleteकुझ कुझ समझ में आण गयी सै, थारी बात...
भाई इस तरियों पोस्ट में गज़्ज़ब करियो, कोनी !
बहुतेरे महिषाव्रता जुगाली करण लाग पडे सै ।
बैठे अपणि सन्सकीरत को पगुराण दे इन्नै !
बहुत दूर की पोटली बाँध रक्खी सै, तन्नै ...
अरे भई वो बोलने वाली भैंस जरा इधर मुंम्बई भेज देना, बडे-बडे सेठ साहूकार हैं, शेयर मार्केट में खडे कर के उस बांझ भैंस को सामने रख अच्छा खासा डेरी सेंटर का IPO निकलवा देंगे.....और जब थन से दूध नहीं आएगा तो कहेंगे....सरकार से सब्सिडी चाहिये चारे के लिये ताकि उसके थन में दूध उतर सके, और मजे की बात तो ये होगी कि सरकार ये मांग पूरी भी कर देगी....पशु कल्याण के नाम पर......थोडा समय बीतते न बीतते उस भैंस के नाम Mutul Fund भी निकल जाएगा.....और हम आप टापते रह जाएंगे कि ससुरों ने सूखे थन से भी पैसे की धार खींच निकाली :)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
वाह ....ताऊ ...वाह...
ReplyDeleteगजब की पेल्ली...
संस्कृत बी...
धन्य हुआ..
आपको नमन करता हूं...
ताऊ दा जवाब नहीं। भई ऐसी भैंस अगर एक्सट्रा हो, तो हमें जरूर मेल करना, हम मुंहमाँगे दामों पे खरीदना चाहेंगे।
ReplyDeleteअरे वाह ताऊ, आप तो पूरी मंडली जमाए बैठे हैं।
ReplyDeleteकितने अच्छे हैं बाबूजी.. पोस्ट लिखने के लिए इतनी अच्छी शिक्षादायक कहानी सुना गए। बाबूजी तो बेचारे गांव जाकर धान की सोहनी कराकर खाद छिंटवा रहे होंगे और उनकी कहानी पर आप आराम से टिप्पणियों के मजे ले रहे हैं :)
खूब आराम कर लो भैया, जब तक बाबूजी गांव से लट्ठ लेकर नहीं आ जाते।
भाई बुरी बात है। ताऊ होकर भी झंझट से डरते हो :) हम तो समझते थे कि आप सिर्फ ताई और बाबूजी की लट्ठ से ही डरते हो :)
वाह जी...संस्कृत और हरियाणवी का ये मेल तो बड़ा शानदार लगा!
ReplyDeleteaisi sanskrit bolne wala tau moorakh kis tarah ho gaya tauji. Bahut bahut badhiya ....padhkar anand aa gaya.
ReplyDeleteab is rachna ki tarz par tau par ek shlok
"gyanaapi vardhante anandam cha nirmalam/ mahat hasyakartaram tau naamasya lekhakam"