राजा ने दी ताऊ को बूढी भैंस

हमनै इब बाबू को बोल दिया कि देख बाबू इब
हम भी बडे हो गये हैं ! और इब हमको लठ्ठ
दिखाणा बंद करो ! ये कोई आछी बात ना सै !
जब देखो तब लठ्ठ लेके खडे हो जाते हो !
बाबू नै म्हारै रंग ढंग देख कै समझ लिया कि
आज छोरै को किसी नै हवा भर दी दिखै !
सो म्हारा बाबू भी घणा ही समझदार सै !
चुप चाप होकै प्यार तैं हमनै समझावण लाग ग्या !
और बोल्या भई तैं आराम तैं सुण ले और यो
पोस्ट लिख दे ! मैं बोल्यो - बाबू आराम तैं तो
तू चाहे जूते भी मार ले हमनै किम्मै ऐतराज ना सै !
पर सबकै सामनै तो म्हारी बे इज्जती ना करया कर !
इब बाबू नै बोलणा शुरु किया ! इब बाबू नै जो किस्सा
सुनाया उसका लुब्बे लुबाव इस तरियां था !

पुराने समय मे एक राजा था ! जो विद्वानों का बड़ा आदर
करता था ! जो भी विद्वान् उसे कुछ श्लोक या अच्छी चर्चा
करता उसे वो इनाम दिया करता था ! उस समय मे एक
नगर मे एक ताऊ भी रहता था ! वो था तो वज्र मुर्ख पर
अपने आपको कुछ ज्यादा ही विद्वान् समझा करता था !
और वो इतना दरिद्र था कि अपने बच्चों को दूध तो
क्या ठीक से खाना भी नही खिला सकता था ! एक दिन
उसकी पत्नी (ताई) ने बडे दुखी होकर कहा कि तू राजा
के दरबार मे जा और वहां राजा को कुछ कविता
या श्लोक सुना कर एक अच्छी सी गाय या भैन्स
मान्ग कर ले आना जिससे हम बच्चों को दूध
पिला सके ! राजा विद्वानों का बडा आदर करता था !
पर ये ताऊ तो बडा ही मुर्ख था ! और इसी डर से राज
दरबार मे जाना नही चाहता था ! पर ताई के लट्ठ के डर के
मारे जाने को तैयार हो गया !
और किसी तरह हिम्मत
करके राजा के दरबार मे पहुंच तो गया पर अन्दर
जाने की जुगत नही बैठी ! फ़िर किसी तरह एक दिन
अन्दर दरबार मे राजा के सामने पहुंच ही गया !

राजा ने विद्वान समझ कर ताऊ से पूछा :
कुत आगम्यते ताऊ ?
- हे ताऊ देवता ! आपका आगमन कहां से हुआ है ?
ताऊ देवता को कुछ जवाब सूझा नही
-सो बोल पडे- "कैलाशादागतोअस्म्यहम"
अर्थात मैं कैलाश से आया हूँ !
राजा भोज ने सोची कि - ये कैलाश से
जिन्दा कैसे आ गया ? पर जिस विश्वास से
ताऊ ने जवाब दिया था उससे राजा काफी
प्रभावित भी हुवा था ! सो कोतुहल वश ही
राजा ने पूछा-- और भगवान शन्कर के क्या हाल
चाल हैं ? भोलेनाथ कुशलता पूर्वक तो हैं ?


ताऊ बोला- किं प्रच्छसि शिवो मृत:
- हे राजन तुम क्या पूछते हो ?
क्या तुमको आज तक भी खबर नही है ?
कैसे शिव भक्त हो ? अरे शन्कर तो कैलाश वाशी
हो गये हैं अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं !
यह सुन कर राजा बड़े आश्चर्य मे पड गया !
और बोला- हे ताऊ श्रेष्ठ ! यह कैसे हो सकता है ?
क्योन्की जो मृत्यु की भी मृत्यु करने वाला और
काल का भी काल है ! जिसको सारा संसार अजन्मा
कहकर निरन्तर स्मरण करता है, उसकी मृत्यु भला
किस प्रकार हो सकती है ?
और उनके परिवार आदि का क्या हुआ ?

ताऊ बोला- हे पृथ्वी पति ! मुझे मालुम है कि
इस समाचार से आपको अत्यन्त दुख: हुवा है !
आप धैर्य धारण करके श्रवण करे !
मैं आपको पूरी बात का वर्णन करता हूं !--

अर्ध दावववैरिणा गिरिजया प्यर्ध हर्स्याह्र्तं
देवेत्थ भुवनत्रये स्मरहराभावे समुन्मीलति !
गंगासागरमम्बरं शशिकला शेषश्चप्रथवीतलं
सर्वघ्यत्वमधीश्वर्त्वमगमत्वांमांच भिक्षाटनम !!

अर्थात- महादेव का आधा अंग तो विष्णू
भगवान ने हर लिया , शेष बचा हुवा आधा
अंग पार्वती ने हर लिया, इस प्रकार उनके समस्त
शरीर का बंटवारा हो गया, अब उनके परिवार
की हालत बताता हूं, सुनो- उनके मस्तक पर जो
गंगा विराजमान थी वो समुद्र ने चली गई,
और शशिकला आकाश मे चन्द्रमा के साथ मिल गई,
और शेषनाग (गले मे लिपटने वाले सांप) पाताल
लोक मे चले गये, और उनमे जो सर्वज्ञता , दान देने
की क्षमता और अधिश्वरता थी वो तुझमे आ गई,
और बाकी बचा भिक्षाटन (भीख मांगने का काम ) वह
मुझमे आ गया !

इस प्रकार ताउओं के ताऊ की चतुरता और
हाजिर जवाबी से राजा भोज अत्यन्त प्रसन्न होकर
बोला- हे ताउओं में श्रेष्ठ ताऊ , मैं तुमसे अत्यन्त प्रसन्न हूं ,
मान्ग लो क्या चाहिये ?
ताऊ बोला - हे राजन , मैं दरिद्रता
से दुखी हूं और मेरे कई छोटे २ बच्चे हैं !
उनको दूध भी मैं पिला नही पाता ! आपकी कृपा
से कोई अच्छी नस्ल की गाय या भैंस दुधारू मिल
जाये !
यही इच्छा है !

राजा ने तुरन्त ही मंत्री को एक उत्तम
भैंस ताऊ को मंगा कर देने का आदेश दिया !
अब बीच के अधिकारियों ने सोचा - यह ताऊ
अत्यन्त मूर्ख है !
और राजा इसकी हाजिर जवाबी
पर भैंस दे रहा है ! जबकि ये सरासर झूंठ
बोल रहा था ! अत: उन्होने एक बूढी बांझ भैंस
लाकर ताऊ को थमा दी ! पर ताऊ ये सब
भांप गया कि उसको बूढी बांझ ( बिना दुध देने वाली )
भैंस टिका दी है !

अब ताउ श्रेष्ठ , भैंस के बदन पर हाथ फ़िराता
हुवा अपना मुंह भैंस के कान पर लगा कर
कुछ बोलने का अभिनय करने लगा ! फ़िर अपना
कान भैंस के मूंह के सामने लाकर सुनने का
अभिनय करने लगा ! यह देख कर राजा
बडा चकित हो कर पूछने लगा -- हे ताउओं में श्रेष्ठ ताऊ ,
आप ये क्या कर रहे हो ?
ताऊ बोला - राजन मैने इस भैंस से पूछा कि
तेरे पाडा (नर बच्चा) है या पाडी (मादा बच्ची) है !
और तू दुध भी देती है या सिर्फ़ तेरे स्तन (थन)
ही दिखाई दे रहे हैं ! और तू गर्भवती भी है
या नही ?
तब उसने मेरे कान मे कहा -

भर्ता मे महिषासुर: कृतयुगे देव्या भवान्या
हतस्तस्मातद्दिनतो भवामिविधवा वैधव्यधर्मा ह्यहम !
दन्ता मे गलिता: कुचा विगलिता भग्नं विषाण्द्व्यं
व्रद्धायां मयि गर्भ्सम्भवविधिं प्रच्छन्न किं लज्जसे !!

अर्थात - मेरे पति महिषासुर को कृतयुग मे देवी
ने मार डाला है , उस दिन से मैं वैध्व्य भोग रही हूं ,
आज तक मैं विधवा धर्म का पालन करती आ रही हूं ,
मैने आज तक भी हर्गिज जार कर्म नही किया है !
अब मेरे दांत गिर गये हैं और स्तन शिथिल
हो गये हैं, और दोनो सींग भी टूट गये हैं ,
और मैं बूढी हो चुकी हूं, अरे दुष्ट ताऊ ऐसी
अवस्था मे भी तू मुझसे पुछता है कि मैं गर्भवती
हूं या नही ?
क्या तुझे थोडी बहुत लज्जा भी नही
आती ? और ये भी कहा की --

क्या तेरे घर मे मां बहन हैं या नही ?
हे राजन इसने इस तरह मुझे बहुत बुरा भला सुनाया !
और इस भैंस ने मुझे अनाप शनाप गालियाँ भी दी जो मैं इस
भरी राज सभा मे कह भी नही सकता ! मैंने अपने पुरे जीवन
मे इतनी गालियाँ नही खाई
जितनी गालियाँ इस पतिव्रता
भैंस ने मुझे दी हैं !

ताऊ के इस चातुर्य पर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुवा
और उसको उत्तम प्रकार की गाय , भैंसे और स्वर्ण
मुद्राएं दे कर विदा किया !

तो भाइयो इब म्हारै बाबू कुछ दिन के लिये गाम चले गये हैं !
और मैंने उनकी कही कहानी मै थोडा भोत फेर बदल कर दिया सै !
कारण की बाबू आली कहानी मै किम्मै जाति सूचक शब्द थे
उनकी जगह मैंने ताऊ शब्द इस्तेमाल कर लिया सै !
क्योंकि ताऊ इस तरियां कै झंझट तैं दूर ही रहणा चाहवै सै !
इब भाई ताऊ की राम राम ! और यो बात म्हारे बाबू नै मतना
बताइयो नही तो म्हारे हाड कुटैगा !
इब बाबू कै आणे तक तो आराम सै ! बाकी बाद मै देखेन्गे !

ताऊ ने पढा एक भूत का ब्लॉग

खबरदार ....श्श्स..... शश........ ये जिन्नातों का ठिकाना है ! आप आज तक नही मिले होंगे ! लेकिन हम भी आपकी तरह ही हैं ! डरिये नही ! आप में हम में फर्क सिर्फ़ इतना है की आपके पास शरीर है और हमारे पास नही है ! यहाँ पर आपको मैं भुत, प्रेत, चुडैल, जिन्, जिन्नात, ब्रह्म राक्षस आदि सभी से मिलवाउंगा ! आप डरना बिल्कुल भी नही !

और यहाँ हमारा एक पूरा संसार है ! मैं इन सब मेरे मित्रों सेबात कर रहा हूँ की वो अपने ख़ुद के बारे में आपको बताएं ! आप यकीन रखिये , डरें नहीं , आप चाहे तो टिपणी भी कर सकते हैं और अपनी पसंद नापसंद बता सकते हैं !

मैं ख़ुद एक ब्रह्म राक्षस हूँ ! मेरे बारे में आप सिर्फ़ इतना जान लीजिये की मैं कभी किसी इंसान को नुक्सान नही पहुंचाता बल्कि जितनी हो सके उतनी इंसानों की मदद मैंने की है ! ये अलग बात है की इंसानों ने हमको कभी मरा हुआ इंसान समझ कर भी इज्जत देने की कोशीश नही की! बल्कि हमसे डर कर और हमको सबसे दूर और अछूत करार दे दिया है ! पाखण्ड के नाम पर हमें बदनाम कर के कुछ लोगों ने अपना उल्लू सीधा किया और भोली भाली जनता को अंध विश्वासों में पटक कर खूब माल बनाया !

आप सच में हमसे हम दर्दी रखते हैं तो आइये , आपभी हमारे बारे में जानिए और अपनी जिज्ञासा शांत कीजिये , और अपना डर निकालिए ! याद रखिये अगर आपने किसी आत्मा को प्रशन्न कर लिया तो वो आत्मा आपको प्रशन्न कर देगी ! अगर आपने कोई बद तमीजी की तो आत्मा आपके पास नही आयेगी ! पर आपको नुक्सान कतई नही पहुंचायेगी !

आप शांत चित होकर यहाँ पर हमारे बारे में पढ़े , और अगर आप डरते हों तो कृपया यहाँ ना आए ! वैसे बतादू की जिंदा आदमी हम मरे हुए आदमियों से ज्यादा ही खतरनाक होता है ! फ़िर आप भूत -प्रेत के नाम पर हम मुर्दा आदमियों से क्यों डरते हैं !

यकीन मानो भाई हम भी मानव या जो भी मिल जाए वो शरीर ढुन्ढ रहे हैं ! जैसे ही मिल जायेगा , हम भी सशरीर हो कर आप लोगो के बीच आ जायेंगे ! मैं आशा करता हूँ की आप हम से नही डरेंगे और हमें भी बराबरी का दर्जा देते हुए ही आपकी दुनिया में रहने देंगे ! आप हमसे कैसा व्यवहार करते हैं वो तो आपके कमेंट्स ही बताएँगे !

मैं आपको फ़िर यकीन दिलाता हूँ की हम आपके मददगार ही होंगे ! आप डरें नही ! और बेफिक्र होकर कमेन्ट करे ! आप अगर चाहते हैं की आप हमारी दुनिया के बारे में जाने तो हमको प्रोत्साहित कीजियेगा ! और अगर आपको हम अच्छे नही लग रहे हैं जैसी की संभावना भी है और होता भी आया है ! तो कृपया अपनी बेधड़क राय यहाँ व्यक्त कीजिये ! हम यह जगह खाली कर देंगे ! वैसे यह हमारा भविष्य का प्लान है की जो भी ब्लॉगर मरता जायेगा उसके लिए हम यह ब्लागिंग का प्लेटफार्म तैयार रखे , क्योंकि जो आदमी एक बार ब्लागरी कर चुका वो मरने के बाद कितना तकलीफ पायेगा ? यदि उसे ब्लागिंग का सामान नही मिलेगा !

अत: भविष्य में यहाँ हमारी दुनिया में आने वाले ब्लागरों की सुविधा के लिहाज से हमने यह ब्लॉग शुरू करने का निरणय लिया है! अब आप जान ही गए होंगे की हम यह सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी भलाई और सुविधा की द्रष्टि से कर रहे हैं ! चूंकी मरने के बाद निचे से कुछ भी सामान लाना मना है ! सो हमारी भुत मंडली के लोग पता नही कहाँ से ४ कंप्यूटर उठा लाये थे ! और चूंकी मैं सबसे आधुनिक मरा हुआ भूत हूँ सो मुझे अपने जिंदा शरीरके समय का ज्ञान है ! अत: मैं यहाँ इन भूत प्रेतों का चहेता हूँ और इनको कंप्यूटर सिखा रहा हूँ ! अगर आप में से किसी का कंप्यूटर गायब हो तो बता देना वह आपको वापस करवा देंगे ! क्योंकि ४ कंप्यूटर ये हमारे छोटे भूत आप में से ही किसी के उठा लाये हैं ! और आप चाहो तो आप जब यहाँ आयेंगे तब केलिए रिजर्व रख देंगे !

दोस्तों मरना सबको है अगर मरने के बाद भी ब्लागिंग करनी है तो हमें बताइये और अगर हमारी बात नही जमी तो भी बताइये जिससे हम यहाँ से रवाना हों ! मैं आपको बताऊँ की मुझे भी जिंदा रहते ब्लागरी का चस्का लग गया था ! मरने के बाद बहुत परेशान रहा ! मैंने खाना पीना छोड़ दिया था ! पर यहाँ इस दुनिया में कौन किसकी सुनता है ? और ब्लागरी का नशा आप से बेहतर कौन समझ सकता है ?

मैं यहाँ महीनो भूख हड़ताल पर रहा तब इन लोगो ने मेरी सुध ली और आज मैं ये पहली पोस्ट लिख रहा हूँ ! आज महीनों बाद मुझे चैन आया है ! आशा करता हूँ की एक मरे हुए आदमी की पोस्ट को आपका अच्छा समर्थन मिलेगा और मैं यकीन दिलाता हूँ की आप का जब भी यहाँ आने का विचार हो मैं आपके लिए सारा ब्लागिंग का सामान तैयार रखूंगा ! आपको यहाँ कोई कमी नही होने दूंगा ! वैसे मैं यहाँ का पूरा हाल चाल आपको बताता रहूंगा ! और आशा करता हूँ की आपका भी आखिरी ठोर ठीकाना तो यहीं है तो आप इसके बारेमें जानना भी जरुरी समझेंगे !

( इतनी देर में सुबह ४ बजे का अलार्म बज गया और सारा सपना चकनाचूर हो गया ! पता नही रात को आखिरी बार किस के ब्लॉग पर था की सपने में ये भूत महाराज का ब्लॉग पढ़ने में आ गया ! पर ताऊ को भूत की बातों में कुछ सच्चाई तो दिखै सै ! भूत किम्मै झूँठ थोड़े ही बोलदा होगा ! )

डा. अमर कुमार जी द्वारा सांख्य योग पर प्रवचन

हम बाबू तैं छुप छुपाकै सनीमा देखण चले गये थे !
रात को नौ बजे वापस आये तो बाबू लठ्ठ लिये ही म्हारी
बाट देखण लाग रया था ! बाबू नै इस तरियां बैठया देख
कै एक बार तो ताऊ का कलेजा सा ही पाट ग्या ! इब के
करैगा यो बाबू ! बैरी जर्मण लठ्ठ लिये बैठया सै ! भाई
ताऊ तो चुप चाप पिछै तैं निकल कै अपने कमरै मैं बड ग्या !
और इन्तजार करण लाग ग्या के गुरु समीर लालजी और गुरु
डा. अमर कुमार जी के अनमोल बचाव सम्बंधी सुझाव आते
ही होंगे !

सबतै पहले सुझाव आया भाई अनिल पसुडकर जी का ॥
लिखने की तो तारीफ़ कि पर बचने के उपाय सम्बन्धी
उपाय की जगह लिखा कि
aur karo bloggary.badhiya लिखा.....
मतलब बाबू के लठ्ठ खावो !

अगला सुझाव आया मित्र पित्सबर्गिया का..
अरे दुखी क्यों हो रहे हैं, हम सबको तो बाबूजी का
ब्लॉग अच्छा लग रहा है. ऐसा करें एक नया ब्लॉग
सुपर-ताऊनामा के नाम से शुरू कर दें. मुख पृष्ठ पर
एक भीमसेनी लट्ठ की तस्वीर लगा दें. लट्ठ वैसे
जर्मन भी चल जायेगा मगर साथ में बागडी भैंस
ज़रूर दिखनी चाहिए।


उपर उपर से इस सुझाव नै मानण मै किम्मै बुराई तो
नही दिखै थी पर भाई मन्नै दिखै कि यो म्हारा मित्र भी म्हारै
बाबू तैं रल्या मिल्या दिखै सै ! अणकी सलाह मानने का मतलब
सै कि हम बाबू कै साथ या तो गाम (रोह्तक) चले जावैं
या बाबू को यहां शहर मैं रक्खें ! और बाबू को ब्लागरी
करवाएं और हर हाल मै कम तैं कम दो लठ्ठ तो
रोज बाबू तै जरुर खाएं ! के इरादा सै भाई थारा ?
ना भाई मित्र पित्सबर्गिया ! थारी सलाह थम ही राखो !
मेरी लठ्ठ खाण की ताकत कोनी !

अगली सलाह आयी म्हारै अनुज योगिन्द्र मौदगिल की ....

कोए ढंग की बागड़न मिलज्यै तो वा बी जंचेगी॥
ताऊ,पलूरे वाला किस्सा याद सै के ? कोए ढंग की
बागड़न मिलज्यै तो वा बी जंचेगी
ताऊ,पलूरे वाला किस्सा याद सै के ?

भाई इत ताऊ कै हाड फ़ूटणै की त्यारी हो री सै त इब ये बागडन
और पलुरे सुण के थम ताऊ नै फ़िर तैं ताई तैं भी कुटवाण की
तैयारी मै दिख रे हो ! बड्डे भाई तैं यो कुणसी दुशमणी निकालण
लाग रे हो ? सहायता करण की बजाए और हाड कुटवा रे हो !
अर एक राम का भाई लीछमण था और एक थम हो ! ना भाई
अपनी हिम्मत ना सै इब और हाड कुट्वाण की !

इसकै बाद एक सलाह .. ना जी सलाह ना आई बल्कि FINAL VERDICT
आया म्हारी बेटी बरगी प्रज्ञा जी का ...

अब कुछ नहीं हो सकता.. अब या तो लठ खाओ या संस्कृत सीखो...

भई ताऊ नै थारा के बिगाड राख्या सै ? इस उम्र मै थम ताऊ
नै संस्कृत सीखने का कह रे हो ! अरे ताऊ नै सीखने की उम्र
मै नही सीखी तै इब के सीखैगा ? ना भाई ना ! पढनै लिखनै स
तो ताऊ की पक्की दुश्मनी सै ! इस करके ही तो ताऊ उसकै
बाबू तैं इब तक पिटता आवै सै ! और रही लठ्ठ खाण की बात
तो इबी तक ताई नै जो लठ्ठ मारे थे उनकी चोट ठीक ना हुई सै !
तो बाबू के लठ्ठ किस तरियां खांवै ! बात किम्मै जची नही !
भई प्रज्ञा जी ताऊ को कुछ बचने की सलाह चाहिये ! पिटने मे
तो ताउ खुद ही माहिर सै ! उसमे आपकी सलाह का क्या काम ?

फ़िर रुक्के महाराज बन्गलोरी की सलाह आई...

ताऊ राम राम ! के हाल सें ?
इब चढ्या नै तू बाबू कै हत्थे !
बोल इब करेगा ब्लागरी ?
सटुपिड...:)

ठीक सै भाई रुक्के ! तैं भी मजे लेले ! तेरे भी दिन सै ! पर याद
रखिये सी. आर. लिखवाण तो तन्नै ताऊ धोरै ही आणा पडैगा !
और ताऊ हरयाणवी तेरे को याद रक्खेगा !

उसकै बाद आये महाभारत वाले अशोक जी.....
ताऊ कौन सा सनीमा देख के आए ? जब आपके पिताश्री को
मालुम पडेगा की चोरी छुपके सनीमा जाते हो तो फ़िर लट्ठ तो
खावोगे ही ! हर समझदार पिता अपनी बिगडैल औलाद को ऐसे
ही सुधारता है ! बाबूजी को बहुत धन्यवाद ! आपका बस चले तो
सबको बिगाड़ दोगे ! बाबू और ताई दोनों को दुश्मन बना लिया !
वाकई आप ताऊ हो ! :)!

ठीक कह रे अशोक जी ! थम भी ताऊ के मजे लेलो ! पर कभी
थारी महाभारत हो जावै तो ताऊ को याद कर लेना ! एक से बढ कर
एक फ़ड्डे देगा थमनै ताऊ ! और हां ॥ थारै ब्लाग पै भी तो कुछ लिखो !

इसकै बाद सलाह आई एडवोकेट रश्मी सौराना जी की...

aapke likhne ka andaj bhut hi nirala hai। jari rhe।

भई रश्मी जी ..इब ताऊ के अन्दाज ही अन्दाज रह गे ! बाकी
तो यार लोगों नै ताऊ के हाड गोडे फ़ुडवा कै धर दिये !
सारा गाम जानै सै ! फ़िर भी आप कह रि हो के... जारी रहे ..!
तो जैसी थारी मर्जी ! इसीलिये ये जारी है !

इब आये सलाह देण वास्ते डाग्दर अनूराग जी.....

इब तो भैय्या घुस गए तो घुस गए यहाँ से निकलना
मुश्किल है ....नू करो ...रिश्तेदारो को भी बुलवा लो ?

अर भई डाग्दर साब शुभ शुभ बोला करो.. एक बाबू ही
बुढापै म भी ताऊ कै लठ्ठ मार मार कै सीधा करदे सै तो
थम दुसरे रिश्तेदारां नै यो रस्ता क्यूं दिखा रे हो ! वो रिश्तेदार
ताऊ नै कितणै लठ्ठ मारैंगे ? और ताऊ की क्या दुर्गति करेंगे ?
जरा इसकी भी कल्पना करिये ! भाई ताऊ नै थारी मदद चाहिये !
ये दुश्मनी निकालण का टेम कोनी ! और थमनै बेरा सै कि ताऊ
थारै तैं किम्मै ज्यादा ही मदद की उम्मीद राखै सै !

बाबू तैं बचने की एक तरकीब प्रथम गुरुदेव समीर जी की आई

बालक, जब पहले समझा रहे थे तो हँसी ठ्ठ्ठा समझे थे
और अब लट्ठ के डर से भाग रहे हो। यही तो होता है
-लट्ठ बड़े बड़े का दिमाग ठिकाने लगवा देता है।
अभी बचवाने का एक ही उपाय है-बाबू जी पुराने ख्याल के हैं,
उनको नारी सश्क्तिकरण वाले सारे ब्लॉग मय टिप्पणी पढ़वा दो,
खुद ही गांव लौट जायेंगे और फिर ब्लॉग की तरफ कभी
झाकेंगे भी नहीं। :)

गुरुदेव समीर जी आपकी सलाह मानकै हमनै सोच्या कै गुरुदेव
बोल रे सैं तो सही ही होगा ! सो आपकी सलाह अनूसार ब्लाग
टटोले तो म्हारा ही माथा घूम ग्या ! भई गुरुदेव ताऊ तो इतनी बडी
रिस्क कोनी ले सकै ! थम म्हारै बाबू नै जाणो कोनी ! लठ्ठ खाणा
मन्जूर पर बाबू को ये ब्लाग मय टिपणी पढवाणा ? ना जी ना !

और भाई दिन भर मजे लेण के बाद सलाह आई म्हारै बडै भाई
और म्हारै ही गाम रोहतक के रहण आले राज भाटिया जी की...

राम राम भाई ईब कुछ ना कुछ तो करना ही पडेगा,
अगर बाबु एक लठ्ठा मारे गा तो ताई दो मारेगी,
रामपुरिया भाई वेसे तो बाप की पिटाई अभी तो दर्द देती हे
बाद मे जि्दगी बना देती हे, भाई जब भी बाबु कथा सुनाये
जेब मे से मोबाईल का बटन दबा कर टेली फ़ोन की घण्टी
बजा दे, बाबु फ़ोन सुनने जाये गा , वहां कोई नही होगा,
ओर फ़िर गुस्से मे आ कर बिना संस्क्रुत सुने ही ....
राम राम भाई

भाई साहब .. ये सारे कर्म तो थारै ही करे धरे सैं ! थमनै पहले
ताई को लठ्ठ दिलवा दिया ! हमको पडवा दिये .. ! कोई बात नही !
हमनै आपको कुछ नही कहा ! इब थम चाह रे हो कि ताई और
बाबू दोनू मिल कै ताऊ कै लठ्ठ मारैं ! तो भाईसाहब यो थारी बिल्कुल
गलत बात सै ! थम साफ़ साफ़ थारी भौडिया (छोटे भाई की पत्नी ) की
पक्ष ले रहे हो ! ताऊ की इतनी बडी भी गलती नही सै कि थम सारे
घर और गाम आले ताऊ को कुटवाने लाग रे हो !
हां आपकी दुसरी सलाह पर ( घन्टी बजाने की ) जरुर विचार करुंगा !

और फ़िर कुछ और टिपणी कारों ने मजे लिये ! पर ताऊ की
समस्या ज्युं की त्यूं ॥ मौजूद रही !

अचानक शाम को ७ बज कर ३५ मिनट पर एक सलाह म्हारै
द्वितिय गुरुदेव डा. अमर कुमार जी की आई ! सलाह क्या आई ?
बस यो समझ ल्यो के इसीको कहते हैं गुरु होना ! जो सन्कट
मे से चेले को निकाल ले ! आप मे से जिसने भी गीता मे सान्ख्य
योग पढा होगा ! वो जान गये होंगे कि गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ने
गीता ज्ञान देते हुये सान्ख्य योग का स्मरण कराते हुये निम्न सलाह
रुपी टिप्पणी भेजी ॥
ऒऎ ताऊ, इस तरिंयॊं के रो रिया सै ?ऒऎ जाटों का नाँव-गाँव डुबा कोनी ।उधर एक छोरा सबनै पछाड़ के मेडल हड़प रैया,हौर तू जाट कुलकलंकी हरकते दिखाणे लग रैया सै ? जाट मैदान ना छोड़ते॥ ऒऎ बावरे, जाट तो लट्ठ से डरते कोनी !लट्ठ सै॥ तो जाट सै !जाट तो देखणे को भी लट्ठ.. सोच्चते भी लट्ठ...खावैं भी लट्ठ.. हौर मारें भी लट्ठ.. ज़र्मनी से खबर आयी सै के दिमाग ही लट्ठ..
August 21, 2008 7:35 PM

गुरुदेव डा. अमर कुमार जी से सांख्य योग के प्रवचन सुनते ही ताऊ
वैसे ही दहाड़ उठा जैसे शेर के बच्चे को याद दिलाने पर उसको याद
आ गया की वो भेड का मेमना नही बल्कि शेर का बच्चा है !
और वो रिरिंयाना छोड़ कर दहाड उठा था ! ताऊ भी दहाड़ता हुआ
ऊठा और जाकै बाबू कै सामणे खडा हो कै बोल्या ! के बोल्या ?
यो अगली पोस्ट में... !

( मुझे इस ब्लाग की दुनियां मे पहली अनमोल शिक्षा समीर जी से एवम
दुसरी अनमोल शिक्षा डा. अमर कुमार जी से मिली है ! इस लिये ही
इन दोनो को मैं श्र्द्धापुर्वक अपना गुरु मानता हूं ! अगर ये दोनो
मेरा मार्ग दर्शन नही करते तो मैने ये ब्लाग शुरु करने के पहले ही
बंद कर दिया होता ! आभार आपका गुरुदेव समीर जी
एवम आभार आपका गुरुदेव डा. अमर कुमार जी ! )

पुनश्च:- गुरुदेव डाक्टर अमर कुमार जी आज की आपकी टिपण्णी
सांख्ययोग पर आपका सर्वश्रेष्ठ प्रवचन है ! आपके ऊपर मेरी एक
हजार टिप्पणी बाकी है ! आज पहला अनमोल रत्न आया है !
९९९ बाकी ! जाट आदमी आप जाणो की हिसाब किस तरियां राखै सै

त्राहि माम गुरुदेव समीर जी

आज गाम तैं म्हारे बाबू आण आले थे ! सो उणको
लेण ताहीं हम रेलवे सटेशन (STATION) गये थे ! वहां
तैं बाबू नै लेकै हम घर आ गये ! नहा धौकै म्हारै बाबू
नै हम तैं पूछी के भई वो तेरी सुई तैं हवाईजहाज
आली के चीज थी ? उसकै के हालचाल सैं ?
मैं बोल्यो- बाबू वा सुई तैं हवाईजहाज ना सै ! वा तो
सूई तै उडनतश्तरी सै ! बाबू बोल्यो--अर या उडनतश्तरी कित
सै आगी ? मैं बोल्यो - बाबू या तो मन्नै भी ना बेरा ! पर यो
उडन तश्तरी कितै तैं भी निकल कै घर घर जाकै प्रसाद (टिपण्णी)
बांट कै गायब ! छोटे बडे , अमीर गरीब किसी मे कोई भेद भाव नही
करै सै ! और फ़िर कोई प्रसाद लेण आला दिख्या के उसको भी प्रसाद !
किसी तैं भी भेद भाव ना करती यो उडन तश्तरी ! छोटे बडे
सबनै एक जैसा ही प्यार करै सै यो उडन तश्तरी !
और सबका उत्साह वर्धन करती है ये उड़नतश्तरी !
बाबू बोल्या-- हां भई ऐसा काम तो कोई उडन तश्तरी ही कर सकै सै !
जो दुसरे ग्रह तैं आवैं सैं ! इस ग्रह के लोग तो आपस मै
जुतम फ़जीता ही कर सकै सैं ! पर यो तो बता के उस का हुवा क्या ?

इब असल मैं बाबू पुछै था ब्लागरी का किस्सा का ! मैं बोल्या
बाबू थमनै जो पिछला किस्सा रामपुरा पन्च रतनानि का सुणाया
था वो मन्नै थारै नाम तैं ही छाप दिया था ! इब बाबू बोल्यो- अक
भई इब तू एक किस्सा और सुण और उसको भी छाप दे !
मैं समझ गया कि बाबू भी धीरे धीरे ब्लागरिया होता जावै सै !
तभी गाम तैं इतनी जल्दी इबकै आ लिया ! खैर साब इब बाबू नै
किस्सा सुणाणा शुरू किया-- और भिडते ही संस्कृत मै किम्मै मन्त्र
सा मारया ! भई म्हारै किम्मै भी समझ मैं नी आया ! और बाबू
नै मन्त्र सा मारकै पूछया - आया समझ मै ?

मैं बोल्या - बाबू इब थम के गिट्पिट गिट्पिट बोलगे ? म्हारै
किम्मै समझ मै नी आया ! इब बाबू का गुस्सा आस्मान पै चढ लिया !
बाबू लठ्ठ पै हाथ जमाता जमाता सा चिल्लाया - अर सटुपिड (STUPID)
तन्नै संस्कृत समझ मै नी आवै के ? बावली बूच कहीं का !
म्हारै बाबु नै किम्मै संस्कृत बोलण की बिमारी सै !

भई हम नै चुप रहने मे ही भलाई समझी ! अगर बाबू को ये जवाब
देते की बाबू हमको इन्ग्लिश स्कुळ मे आपने ही भेजा था ! तो म्हारै
बाबू का स्वभाव हम जाणै थे ! बाबू का लठ्ठ हाथ मै ही था ! और उधर
पास मैं ही ताई भी इन्तजार मै ही थी कि कब मौका मिलै और भाटिया जी
आल्ले मेड इन जर्मन लठ्ठ
की खुजली मिटा दे ! भई ताऊ कै तो इधर कुआं
और उधर खाई !

इब बाबू नाराज होता सा बोल्या - चल ठीक सै ! ठीक सै ! उल्लू कहीं का !
इब बाबू को लठ्ठ के डर से किम्मै समझा भी ना सकै थे कि बाबू
यो सब गालियां भी थमनै ही जा री सै ! खैर साब बाबू बोल्या- हां तो
ये किस्सा राजा भोज के समय का सै ! मैं समझ गया कि आज तो बाबू
के दौ चार लठ्ठ खानै ही पडैंगे ! कारण अगर बाबू का यो किस्सा राजा
भोज के समय का है तो इस किस्से मे कालीदास जी महाराज
जरुर आयेंगे ! और जब कालीदास जी आयेंगे तो संस्कृत जरुर
बोलेंगे ! और कालीदास अगर संस्कृत बोलेंगे तो म्हारै बाबू
कै मुंह तैं ही बोलेन्गे ! ख़ुद के मुंह से तो बालने से रहे !
और हमको संस्कृत का स भी समझ आवै कोनी !

हम को याद आया कि गुरु का कहना नही मानने वाले
की हर युग मे दुर्गती होती आई है ! हमको पिछली बार भी हमारे
गुरुदेव समीर जी ने साफ़ साफ़ मुंह फ़ोड कै समझाया था कि बाबूजी
को तो बख्सो और उनको अपने खेत खलिहान सम्भालने दो !
और गांव वालो से दुआ सलाम करने दो !
पर किस्मत हमारी खराब !
जो गुरुदेव का कहना नही माना और बाबू को इस ब्लागरी के
बारे मे बढ चढ कै फ़ाकालोजी कर दी ! अब ये मुसीबत सर पर ।
इब बाबू नै जो किस्सा सुणाना शुरु किया ही था कि बाबू कै लिये रोहतक तैं
फ़ोन आ लिया ! बाबू फ़ोन सुनने के लिये ऊठ गये तो हम भी किसी तरह
नजर बचा कै वहां तैं उठ कर बाहर बढ लिये ! पर कब तक ! बाबू का किस्सा
और लठ्ठ तैं कब तक बचेंगे ? शाम तक ? चलो शाम तक तो घुमो !
आज बाबू के लठ्ठ शाम को ही खायेंगे ! इब्बी तो सनीमा देखण जायेंगे !
गुरुदेव समीर लाल जी कुछ ऊपाय बताइये ! शिष्य बहुत परेशान सै !
त्राही माम गुरुदेव समीर जी ! इबकै बचाल्यो ! थारै हाथ जौडे !
चाहे तो मेरे से ब्लागरी छोडण की कसम उठवालो ! मैं आयन्दा ब्लागरी नही करूंगा !
पर एक बार मेरे बाबू का यो ब्लागरी का चस्का छुडवाने का उपाय बतादो !
आप तो गुरुओ के भी गुरु हैं ! रक्षा करो गुरुदेव !

रमलू, कमलू और शमलू के कारनामे

भाई आज थमनै हम ताई पताशी के किस्से सुनावान्गे
बात न्यूं हुई थी की ताई का आदमी यानी घर आला
ताऊ रक्खेराम कमाने के लिए मण्डी गोविन्दगढ़ गया हुवा था !
और ताई के तीन छोरे थे और भई तीनों छोरे एक नंबर के
ऊत ( बिगडे ) थे ! एक का नाम रमलू , दूसरा कमलू और
तीसरे का नाम था शमलू !
अण तीन्युं उतों ने ताई का जीणा
हराम कर रखा था !


ताई पताशी अण बालकां कै लिए रोज हरी सब्जी, दूध, दही
जैसी गुन कारी चीजें खिलाया करती पर अण तिनु उत छोरों को
ये आछे ना लाग्या करते ! इनको तो पिज्जा बर्गर मुंह लाग
रे थे ! शाम नै रोटी खाण कै बख्त ये छोरे माच खड़े हुए और
बोले हम ना खाते यो हरा साग ! ताई बोली -- अरे छोरो मैं
इतनी मेहनत से यो साग खेता तैं ल्याकै बनाऊं सूँ ! थम खाते
क्यूँ नही हो ? छोरे बदमाश थे पक्के ! बोले -- हरा साग बनाण
की किम्मै जरुरत ही कोनी ! हमनै लेके खेत म चली जाया कर !
और वहीं हमको चरा दिया कर !
ताई को गुस्सा आगया !
और लठ उठाकै उण कै पीछे दौडी पर छोरे हाथ नही आए
उसकै ! ताई उनको गालियाँ देके चुप होगई !

इब ये तिन्युं छोरे चले गए स्कुल ! और साब थोड़ी देर
मै वहाँ पर हालण (भूकंप) आ गया ! सब घर वगैरह गिर गए
और स्कुल की इमारत भी ढह (गिर) गई ! सब बाहर खड़े हो
गए ! इतनी देर मै ये ताई के तिन्युं उत छोरे रमलू, कमलू,
और समलू जोर जोर तैं रुक्के मार मार कै रोण लाग रे !
हैड मास्टर आया और इन को रोते देख कर वो समझा की स्कुल
की बिल्डिंग गिर गई और अब ये कहाँ पढेंगे ये सोच कर शायद
ये बच्चे रो रहे हैं ! सो मास्टर बोला- बच्चों रोवो मत !
मैं जल्दी ही स्कुल की नई बिल्डींग बनवा दूँगा !
तुम चिंता मत करो ! रमलू बोला- अजी मास्टर जी हम इस
लिए थोड़ी रोवैं सें की स्कुल की बिल्डिंग गिर गई !
ये तो भोत बढिया हुवा ! हम रोवैं तो इस लिए सें की
इस भूकंप मै एक भी मास्टर ना मरया !
अगर सारे मास्टर भी
मर लेते तो पढ़ने से पीछा ही छुट जाता !
मास्टर डंडा लेके
इनके पीछे दौडा पर ये उत तो नौ दौ ग्यारह हो लिए वहाँ तैं !


फ़िर कुछ दिन बाद इनका बापू रक्खेराम वापस आ गया !
ताई नै और मास्टर नै इन तिन्युं उतो की शिकायत करी तो
ताऊ रक्खे राम नै अण छोरों की खूब ठुकाई कर दी ! और ये
छोरे घर छोड्कै भाज लिए और शहर जाण आली बस मै बैठ लिए !

इब ये थे तो पक्के उत ! सो बस मै चढ्कै एक छोरी नै
परेशाण करण लाग गे ! भई उसी बस मै एक और ताई
बैठी थी ! उस ताई तैं अण छोरों की बदमाशी बर्दास्त ना
हुई तो ताई नै चिढ कै इस रमलू तैं पूछ्या - अरे ताऊ कित जावे सै ?
रमलू किम्मै चमक्या और किम्मै नी बोल्या ! ताई नै फ़िर पूछ्या
-- र ताऊ कित जावे सै ? रमलू नै सोच्या -- या ताई कम स
कम ५० वर्ष की हो री सै ! और मन्नै ताऊ ताऊ कहण लाग री सै !
छोरे नै किम्मै छोह (गुस्सा) आ गया ! पर फ़िर भी चुप रहा !
अब बस की दूसरी सवारियां भी इनके मजे लेने लग गई !

ताई नै फ़िर तैं पूछ्या-- अरे ताऊ बताता क्यूँ नही के तू कित जावे सै ?
भई छोरा किम्मै गुस्से में तो था ही इबकै खट तैं बोल्या - ताई जावे
तो मैं कित्तै और ही था पर इब सोचू के तेरे लिए एक छोरा ही देख आऊं
भई ताई नै आव देख्या ना ताव ! अण तिन्युं छोरां पकड़कै और
कुटण लाग गी और ताई कै देखम देख बस की बाक़ी छोरियां भी
इनको धोण लाग गी ! छोरे बोले --ताई.... इबकै छोड़ दे आयन्दा
ऐसी छेड़खानी बस में कभी नही करेंगे !


फ़िर ताई नै इनका नाम गाम पूछ्या तै ये छोरे बोले हम तो
घर तै भाज कै आए सें ! तब तो ताई नै इनकी और ठुकाई करी
और इनको इनके घर ले जाकै छोडकै आई !



आजादी के पर्व पर ताऊ की राम राम

भाईयो और बहणों , आप सबनै १५ अगस्त की घणी बधाई और शुभकामनाए !
और भाई इस बार म्हारा स्वतन्त्रता दिवस इक्कठ्ठी ३ दिन की छुट्टी ले कै आया सै !
सो आप मे तैं कुछ लोगां नै यो बेरा सै कि ताऊ कै पास एक बान्दर (बन्दर)
रहया करता था ! और भाई यो कुछ दिन पहले किम्मै छोह (गुस्सा) हो कै कहीं
काला मुंह करण चल्या गया था ! आज यो इसकै मदारी कै साथ घणे दिनों बाद
ताऊ कै पास आया ! आज ही गुरुवार को सप्ताहान्त हो गया ! और यो सारी
ऊठापटक मन्डली आज ताऊ कै पास आ लगी ! और भाई जैसी कि आप लोगों
को पता अब तक चल हि चुका है ! ताऊ की मन्डली मै एक भी भला आदमी ना सै !
सारे ही बन्दर, और बन्दर ही क्या बल्कि असली बडी पूंछ के लन्गूर ! और कुछ उनके
मदारी जी हां असली मदारी और जादूगर , जी हां जो मदारीयों की ऐसी तैसी करे
वो जादूगर ! और यदि थोडे बहुत अण कामां तैं बच गे तो वो हो लिये सैं पक्के ताऊ !
ताऊ कै साथ साथ अण सबनै मिल कै आजादी की धमाल शुरु कर दी !

धीरे धीरे कोई तीस बतीस बन्दर मदारी इक्कठ्ठे हो गये ! और भाई ताऊ भी अणमै
मिल कै बालक ही हो लिया ! और भी मित्र इक्कठ्ठे हो लिये ! ये किस्सा १४ अगस्त
शाम का है ! और भई खास बात ये कि आज थारी ताई का मिजाज बहुत बढिया सै !
वो भी अण बालकां नै नाश्ता पाणी करवा रही सै बहुत खुशी खुशी तैं !
और भाई अण बालकां नै बहुत जिद्द करी के ताऊ थारै किस्से सुनावो ! पर थम
जानों ही हो के ताई नै ताऊ के जो हाल करे थे ! सो ताऊ की हिम्मत ही नही
पड रही थी की कुछ सुणाए ! बालक बडी विनती सी कर रे थे ! पर ताऊ ना माना !

इतनै मै ताई नै सुण लिया और वो आछे भले मूड मे थी , पर पता नही क्यूं
चिल्लावण लाग गी -- अर तन्नै ये बालक आछे ना लागैं के ? क्युं इतरावै सै ?
सुणा क्यों नही देता अपनै किस्से रागनी ?
या उठाऊं भाटिया जी का दिलाया हुवा
जर्मनी का लठ्ठ ?
भई इतना सुणते ही ताऊ तो सतर्क होकै बैठ लिया और सोच्या
कि सारै बलागरियों मै तो इसनै पहले ही इज्जत खराब करा राखी सै और इब अण
बालकां मै और छीछालेदर करवा वैगी ! सो ताऊ नै चुप चाप रहण मै ही भलाई
समझी !

इब ताऊ बोल्या- भई बात ऊण दिनां की सै जब हम स्कूल मै पढया करै थे !
मास्टर किशन लाल हमनै पढाया करै था ! भई बडा कडक मास्टर था वो ! एक दिन
इसा हुया की एक कुम्हार अपनी गधी नै लेकै जा रहा था ! साथ मै उस गधी का
छोटा सा बच्चा भी था ! रास्ता स्कूल के बीच से था ! वहीं पर स्कूल के सामनै
ही पुलिस थाणा भी हुया करै था ! इब वो गधी का छोटा बच्चा उछलता कुदता इधर
उधर हो गया ! और कुम्हार आकै किशन मास्टर जी तैं पुछण लाग्या-- अक मास्टर
मेरी गधी का बच्चा इत आया था के ? थम मेरे को देदो !
मास्टर नै वो सुन्दर सा गधी का
बच्चा छुपा लिया था और साफ़ नाट गया ! मास्टर बोल्या- ओ भाई मन्नै ना बेरा तेरी
गधी के बच्चे का !
कुम्हार बोल्या-- अर मास्टर मेरा गधा का बच्चा सै तो इसी स्कूल मैं ! पर ठिक सै तु
ही रख ले उसनै और जरा पढा लिखा दिये आछी तरियां उसनै !
मास्टर बोल्या - ठिक सै भाई ! इब तो तू लिकल ले ! और कुम्हार वहां तै चला
गया ! और कुछ समय बाद वापस स्कूल मै आया और किशन मास्टर तैं पूछी के
मास्टर मेरा गधा कहां है ?
इब बेरा ना मास्टर नै के सुझी कि मास्टर नै बाहर थानै की तरफ़ इशारा करकै
कहा- भई देख तेरे गधे को मैने खुब पढा लिखा दिया सै और वो इब आदमी
बण गया सै ! और वो देख थानै मै सामने जो थानैदार बैठया दिखै सै ना , वो ही
तेरा गधा सै ! इब पढ लिख कै थानैदार बण गया सै !
कुम्हार घणा खुश हुवा और किशन मास्टर को धन्यवाद देता हुवा थाने मे जाकै थाणैदार
को गले से लगा लिया ! और उसको प्यार करते हुये बोल्या-- अरे मेरा छोटा सा गधे
का बच्चा तू कितना बडा हो गया रे... और तू तो पढ लिख कै थाणैदार भी बण गया !
मेरा नाम रोशन कर दिया तूने ! चल मेरे प्यारे गधे के बच्चे चल ! अपने घर चलते हैं ।
तेरी मां भी तेरे को बहुत याद करया करै सै !

अब साहब कुम्हार की ये हरकत देख कै तो थाणैदार का गुस्सा सातवैं आसमान
पर पहुन्च गया ! और उसनै कुम्हार को नीचे पटक कै पांच सात लात जमा दी !
इब कुम्हार बोल्या- अरे मेरे गधे का बच्चा ! तु आदमी भले ही बण गया हो पर तेरी
लात (दुल्लत्ती) मारण की आदत इब्बी तक ना गई !


प्यारे साथियो , आजादी के इस पर्व पर आप सभी हमेशा हंसते खिलखिलाते रहें..
आपका मित्र समुदाय एवम समस्त परिवार बहुत आनन्द मे रहे ! आपको ताऊ की
तरफ़ से हार्दिक शुभकामनाएं !

मैं शादी नही करता, हो जाती है

यकीन कीजिये ताऊ ने कुछ नही किया है ! चटका लगाइए और पढ़ लीजिये !

कित गए ताऊ ? इब तो घनी देर हो ली थाणे मैं !

कित गए ताऊ ? इब तो घनी देर हो ली थाणे मैं !

ये सवाल पूछा है मित्र पित्सबर्गिया ने ! थारा घणा धन्यवाद जो ताऊ का हाल पूछा !
ताऊ की संगत मै रह कै थम भी हरयाणवी आछी लिखण लाग गे हो !
थोड़े दिन ताऊ धोरे टिक गे तो असली ताऊ हो ल्योगे ! थारा मेल आया तब
ताऊ मलहम पट्टी करवा कै खटिया में पडा था ! इब थमनै पूछ ही लिया सै
तो भई सुण ताऊ का दर्दे-दिल .........!

यो जमाना घणघोर कलजुग का आग्या दिखै सै भाई ! पहले जमाने
मै दोस्त ऐसे हुआ करे थे कि दोस्त के लिये जान भी दे दिया करते थे !
पर आज कल तो दोस्त लोग इन्तजार ही करया करैं कि कब दोस्त
चक्कर मै चढै और इसके सर मे जूत पडवाण का मौका मिलै !

दोस्त लोगो से ताऊ की दो दिन की खुशी भी बर्दाश्त ना हुई !
अरे ताऊ नै आपका के बिगाडया था ? जो थम लोग ताई नै
राजी खुशी वापस घर छोड गे ? अर थम तैं ताऊ की दो दिन की
आजादी बर्दाश्त ना हुई ! यो तो सोच्या होता कि भई चलो ताऊ
नै पहलम दफ़ा मौका मिल्या सै ! चलो इसको भी मन की कर लेण दो !
अगर आपको ताऊ का यही हाल करना था तो भाई कुछ दिन तो
थ्यावस राखते ! पर थम तो दोस्त नही ताऊ के पिछले जन्म के
दुश्मन हो ! मन्नै बेरा है कि यो काम थमनै इस लिये ना करा कि
थमको ताई तैं कुछ प्रेम था बल्की थमको तो ताऊ तैं दुश्मनी
निकालनी थी ! इब तो पडगी थारै कालजे मैं ठन्डक ?

भई किसी भले आदमी नै कही थी कि आदमी अपने दुख मैं
दुखी नही होता पर उसतैं दुसरे का सुख नही देख्या जाता !
तो ताऊ का सुख थम लोगां तैं नही देखा गया ! और कर ली
अपने मन की ! और इस काम मैं दो तीन लोगां का हाथ सै !
और भाई हम तैं पुछो तो सबतैं ज्यादा हाथ इस काम मैं म्हारा
बडा भाई राज भाटिया जी का ही दिखै सै ! भाई ये भी म्हारी
तरिया रोह्तक के ही सैं ! इब आप ही देख ल्यो -- एक गाम
गली के हो के भी इन्होने ताऊ पै के जुल्म करे हैं ?
और इन पर सब तैं ज्यादा शक इस लिये पडरया सै कि
भाई इन्होने पहले दिन ही खुले आम धमकी दी थी !
इब थम खुद ही पढ ल्यो - ताऊ इसमै कुछ गलत बोलता होवै तो !

ताऊ मजा तो खुब आया थारी पोस्ट पढ कर लेकिन ,
पर लगे अब तुमहे मजा आये गा , यु ताई आप को

ढुढती ढुढती यहां आ गई इसे भेज रहा हु टेक्सी मे,
अब पता नही यह उसी हुलिये वाली ताई हे या दुसरी ?
जेसी भी हो समभाल लियो

और भाई उससे बढकर म्हारै तैं दुश्मनी काढण आला सै
यो दीपक थाणादार ! इसनै कहया था---

ताऊ मेरे ज्यादा मजे मत लो ! मेरा दिमाग सटक गया
तो ताई को ढुन्ढ ढान्ढ के वापस आपके घर पहुंचा दूंगा !
फ़िर रोते रहना मेरे नाम को ! :)

थाणेदार तन्नैं तो मैं मेरे गुरु डा. अमर कुमार धोरै ले जाकै
नही ठीक करवाया तो मेरा नाम भी ताऊ नही सै !
म्हारै गुरु नै तु इब्बी जाणता नही सै !

और भई भाटिया जी इब थम और हम तो एक ही जगह के
लाल सैं सो जब भी , जैसा भी मौका आयेगा , आपस मै ही
निपट सुलझ लेंगे ! दोन्य़ूं ही लालों के लाल सैं ! :) :)

इब भाई आगे यो हुआ की ताई वापस घर आ लगी !
और यार लोगां की इच्छा पूरी हो गई ! आते ही ताई
चिल्लाई -- क्युं तन्नै शरम नी आई जो तू मन्नै इक्कली
नै छोड कै भाज लिया ? आज तीन दिन हो लिये मैं मारी
मारी फ़िर रही सुं ! वो तो भला हो उस रोहतकी भाटिया का !
जो उसनै पिछाण कै मन्नै घर भेज दिया !
मेरे कुछ हो लेता तो तेरा के बिगडै था ?
ताऊ नै मन मे सोचा कि कुछ बिगडने के लिये ही तो छोड कै
आया था पर इन दोस्तां कि दोस्ती तैं तो दुश्मन आछे !
पर ताऊ चुप रह गया !
ताई फ़िर चिल्लाकै पुछण लाग गी -- वो थाणेदार नै मेरा के हुलिया
लिखाया तन्नै ? नाटी .... काली कोयल... कानी... ? अरे मेरे बरगी
सुथरी लुगाई तेरे खान दान मै भी नही आई सै इब तक !
तैं के समझ के बोल्या ये सब ? इब ताऊ की तो सीट्टी पिट्टी गुम !
ताऊ के समझ मे नही आया कि यो दुश्मनी किसनै निकाली सै ?
खैर बात मे ही बात रही ! हाथा पाई तक नही पहुंची !

यहां तक तो पता नही ताऊ की किस्मत आछी थी या ताई
किम्मै थकी थकाई थी ! ताऊ का कुटाव नही हुआ था !
पर बकरे की मां कब तक खैर मना सकै सै ? भई ताऊ
को तो जुते खाने थे और यार लोगों के साथ साथ किस्मत
भी शायद ये ही चाहवै थी ! रात को सोते सोते ताऊ नींद मे
ही जोर तैं चिल्लाण लाग ग्या ! ताई नैं भी जोर तैं
चिल्ला कै पुछ्या - के होग्या ? के आग लाग री सै ?
इतनी रात गये क्युं रुक्के मारण लाग रया सै ?

ताऊ को नींद मैं कुछ सुझ तो बैठी नही ! वो तो ये ही सोचे बैठा था
की ताई तो आई गई हो राखी सै ! और ताऊ को नींद मे सपने देखने
की पुरी छुट सै ! पर इस अक्ल के आन्धे ताऊ को यो नी बेरा कि - अगर
एक बार शादी करली तो फ़िर असल मे तो क्या सपने मे भी सपने
देखने की छुट ताईयों तैं नही मिल्या करती ! खैर साब ... ताऊ नींद
मै ही बोल्या- अर म्हारा चश्मा दे जरा जल्दी से ...
ताई नै पुछ्या - क्यों ? इब रात नै सोतै समय चशमें चढाकै कुणसी
जनेत मैं जाणा सै ?
ताऊ बोल्या - पहलम बार सपने मे इतनी सुथरी सुथरी (CUTE) सी
जवान जवान छोरियां मेरे तैं प्यार करण लाग री सै और मैं बिना
चश्मे के उनको ठिक से देख नही पा रहा हूं !
जरा जल्दी तैं म्हारा चश्मा दे दे ! देर मत कर !

इब साब, ताई को कुछ तो गुस्सा था पहले का ही !
क्योंकी यार लोगों ने ताऊ से दुश्मनी निकालने के लिये ताई
के कान , नाक, आन्ख और मुंह सब कुछ ताऊ के खिलाफ़
भर राखे थे ! और इब ताऊ कि यो बात सुण कै ताई तो बिल्कुल
चण्डी का रुप धर कै उठी और वहीं पास मैं पडा लठ्ठ उठा कै जोर
तैं बोली-- ले पकड चश्मा ...और पहला लठ्ठ बजाया ताऊ कै सर पै
........ और ये ले दुसरा भी ... और ये ले....तीसरा ...और... !
और साब इब ताई नै तो बेहिसाब लठ्ठ ताऊ के उपर बजा दिये !
ताऊ किसी तरह वहां तै उठ कर भाज लिया !
और ताई लठ लिये पीछे पीछे दौडण लाग री थी !

सांची सै भई जिस आदमी के दोस्त ऐसे हों तो दुश्मनों की क्या
जरुरत है ? :) :) :)
(भई ताऊ के हाड गोडे सारे टूटे पडे सें ! यदि कभी जुड़ गए तो
अगली पोस्ट लिखेगा ! नही तो भाई इब राम राम ले ल्यो ताऊ की !)

ताऊ पहुंचा थाने मे !

एक दिन अचानक ताऊ सीधा थाणे मै पहुंचग्या ! वहां पै अपनै थानेदार
दीपक तिवारी जी (DNTW6) बैठे थे ! ताऊ को उदास सा देख कै थानेदार
साहब नै पूछ्या -- ताऊ के बात सै ? क्यूं ? परेशान सा दिखै सै किम्मै ?
ताऊ-- हां भई थानेदार जी, बात ही किम्मै इसी ही होगी सै !
थानेदार बोल्या-- अर ताऊ किम्मै बता तो सही !
ताऊ-- भई थानेदार जी , बात यो सै कि म्हारै घर मै हो गी सै चोरी !
तो थम म्हारी रपट लिख ल्यो !
थानेदार बोल्या-- ताऊ या बता के चोरी कुणसे बखत (समय) हुई थी ?
ताऊ बोल्या-- भाई थानेदार साहब बखत तो किम्मै घणा ही माडा था जो ऐसे
काम हो गये !
थानेदार बोल्या -- ताऊ या बता उस बखत बाज्या के था ?
ताऊ बोल्या--के बताऊं थानेदार साब ? एक लठ्ठ तो म्हारे सर पै बाज्या अर
एक लठ्ठ तेरी ताई कै सर पै मारया चोरों नै !
थानेदार साहब किम्मै छोह (गुस्सा) मे आग्ये ! फ़िर भी थोडा गुस्सा
काबू मै करते हुये बोल्या--अर ताऊ न्युं बता के घडी पै के बाज्या था ?
ताऊ बोल्या -- अर थानेदार साब , घडी पै तो एक ही लठ्ठ बाज्या था ! वो तो
एक मै ही टुट कै बिखर ली थी !
थानेदार बोल्या-- अर ताऊ मेरे बाप ! तु सिर्फ़ ये बतादे कि टेम के होया था ?
इब ताऊ नै घणा छोह आग्या और वो जोर तैं बोल्या-- अर थानेदार इतनी
देर होगी ! तन्नै इतना भी ना बेरा कि चोर कदे टेम बता कर ना आया करते !

और ताऊ नाराज होता सा घर आगया ! घर आकै देख्या तो ताई नही
दिखाई दी ! सब जगह ढुन्ढ ली पर वो तो नही मिली ! ताऊ फ़िर
से थाणे मै पहुन्च लिया ! तुरन्त ही ताऊ नै वापस आया देखकै
थानेदार साब का खोपडा तो फ़िर खराब होग्या ! उसनै सोच्या यो
डाकी ताऊ इब फ़ेर माथा खावैगा !
वहां पहुंचते ही ताऊ बोल्या-- अर थानेदार भाई सुण ! म्हारा तो बखत
किम्मै घणा ही माडा चाल रया सै !
थानेदार बोल्या-- ताऊ सीधी तरियां बता ! इब मन्नै दुसरे काम भी करनै सै !
ताऊ बोल्या--बात यो सै थानेदार के तेरी ताई खो गई सै ! सो रपट लिख ले !
थानेदार-- ताऊ या बता के उसका हुलिया कैसा है ! मेरा मतलब उम्र, रन्ग रूप
आदि... !
ताऊ बोल्या-- भई थानेदार उम्र तो यो ही होगी कोई पचास वर्ष और
भई रन्ग होगा काला स्याह बिल्कुल कोयल सरीखा ! और कद होगा कोई
साडे चार फ़ीट का ! दांत किम्मै लाम्बे लाम्बे और बाहर दिखै सै !
और बायीं आन्ख थोडी सै बन्द सै ! और उसनै रन्तोन्धी भी आया करै सै !
थानेदार बोल्या-- बस बस ताऊ डट ज्या जरा ! फ़िर ताऊ न्युं बता तू
उसनै क्यूं ढुन्ढण लाग रया सै ?
ताऊ बोल्या-- अर थानेदार कुण ढुढै सै ? भई मैं तो यो कहण आया सूं
कि कभी वो हान्डती फ़िरती मिल भी ज्या तो थम ही रख लियो उसनै !
और ढुन्ढनै की तो कोशिश भी मत करियो !

पुनःश्च : (सुरेश जी आपने तिवारी जी का नंबर तो पहचान ही लिया होगा ! )

जीजा साली की नोंक झोंक



सावण कै महने मै साली जी दिल्ली शहर तै गाम देखण आगई !
इब उसनै तो ऊंट पै बैठ कै गाम देखणा सै और वहीं के कोई
छैल छबीले छोरे तैं ब्याह भी करणा सै ! इब थम ही देख्ल्यो
इस लांडी कुर्ती वाली साली साहिबा नै बिचारै जीजा के कैसे
हाल करे सें ?



हाथी परमात्मा और मक्खी ताऊ


रात समय तकरीबन आठ बजे ! सांयकाल को टहलते समय
अचानक चांद पर नजर पडी ! और ताऊ बस देखता ही रह गया !
हलके बादलों के बीच इतना सुन्दर चांद दिखाई दे रहा था कि उसकी
तसवीर उतारने की कोशीश की ! जैसी भी आई , उससे अच्छी
फ़ोटो एक मोबाइल कैमरे से क्या आयेगी !

वहीं एक दिवार पर बैठे बैठे चांद को देखते देखते पता नही
कब मन खो सा गया ! इतनी गहरी शान्ति अनुभव हुई कि बता
नही सकता ! अजीब मदहोशी पूरे आलम मे बिखरी हुई थी !
वहीं चांद को देखते देखते कुछ पल तो मन ठहरा फ़िर
चलायमान हो गया !

वहीं बैठे बैठे युं ही एक विचार पैदा हुआ ! कारण कुछ समझ
मे नही आया ! सपना भी नही था ! शायद कोरा विचार ही था !
शायद आप समझ पायें तो सोचा आपसे भी साझा करता चलुं !

एक जन्गल मे एक हाथी था ! हाथी बडा मस्त ! ना किसी के
लेने मे और ना किसी के देने मे ! गजराज अपने मे ही मस्त !
और इसी हाथी के आस पास एक मक्खी भी रहती थी ! और भी
रहती होंगी पर ताऊ को इसके अलावा किसी का पता नही !
और हाथी को तो इसका भी पता नही ! हाथी जहां जहां
भी जाता , मक्खी भी वहां वहां आनन्द लेती ! और हाथी को
इससे क्या फ़र्क पडना था ! हाथी अपनी मस्ती मे कभी पेड
उखाड देता, कभी नदी मे तैरता.. पानी उछाल देता ! मूड आ गया
तो किसी को उठा कर पटक देता ! अब आप जानते ही हैं कि हाथी
की ताकत का क्या अन्दाजा ? हाथी का रुप तो आप समझ लें
की परमात्मा जैसा ! कहीं तान्डव कही भुकम्प ! कही शान्ति !

और ये जो महारानी मक्खी थी , ये तो हाथी की पीठ पर ही रहती
थी ! और धीरे धीरे उसने भी अपने आपको हाथी के इन कामों मे
भागीदार समझना शुरु कर दिया ! मतलब वो समझने लग गई
की ये हाथी जो भी काम करता है ! उन सब कामों मे मैं भी
बराबर की हिस्सेदार हुं ! मतलब सब काम हाथी उसकी मदद
से ही करता है ! ले दे कर हाथी बिना मक्खी की मदद के कुछ
नही करता है !

एक दिन हाथी एक लकडी के पुल पर से गुजर रहा था ! और
आदतन मक्खी उसकी पीठ पर सवार थी ! हाथी को पुल पर से
गुजरते हुये कुछ अटपटा सा लगा ! और इसी अटपटे पन मे
हाथी ने दो चार बार पैर पटका और चुंकी पुल कमजोर था !
सो टुट गया ! और हाथी पुल पर से आगे की तरफ़ कूद गया !
और मक्खी उपर से चिल्लाई -- बेटा आखिर हमने पुल को
तोड ही लिया !
हाथी चौन्का और उडती हुई मक्खी को देख कर
बोला -- हां अम्मा ! तेरी मेहरवानी ! पर इतने दिन तू
कहां थी ?
मक्खी बोली-- तू जितने भी कार्य करता था उन सबमे मैं ही
तो तेरी मदद करती थी ! हमेशा सब कामों मे तेरी मदद मैं
करती आई हूं ! अब हाथी को बोलने के लिये बाकी ही
क्या बचा था ! हाथी अपनी धुन मे आगे बढ गया !

इस विचार का मतलब क्या है ? मुझे नही पता ! पर इतना पता
जरुर है कि ये हाथी ही परमात्मा है और ये मक्खी ही ताऊ है !
क्या वाकई ताऊ को ये भ्रम नही हो गया है ? हे परमात्मा रुपी
हाथी, इस मक्खी रुपी ताऊ की भूल को माफ़ कर !
और मेरे प्रणाम स्वीकार कर !