तनिक सी गुफ़्तगू करली कि तमाशा बना दिया
झौंका था हवाओं का दुनियां ने तूफ़ान बना दिया
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तेरी आशिकी में अपने दिल को बिगाड बैठा
जिंदगी, सुकून में थी, घर को उजाड बैठा !
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क्या शोख थीं अदाएं, ख़्वाबों में रह गयी हैं !
आते हो ख्यालों में,जब खुशियाँ बह गयी हैं !
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आतिशे इंतकाम में, घर का चमन उजाड़ा !
जब तुम न मिल सके तो खुद को ही है,पछाड़ा
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ख्वाहिश थी दर पे तेरे , दीवाना मैं ही होता
सब मुझसे बौने होते , मैं ही तुम्हारा होता !
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ख्वाहिश थी दर पे तेरे,दीवाना मैं ही होता
ReplyDeleteसब मुझसे बौने होते,मैं ही तुम्हारा होता !
बहुत उम्दा,सुंदर गजल ,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
आभार धीरेंद्र जी.
Deleteरामराम.
सुन्दर !!
ReplyDeleteआभार पूरण जी.
Deleteरामराम.
ताऊ ,
ReplyDeleteग़ज़ल में भी आ गए महाराज !! बधाई
ख्वाहिश थी दर पे तेरे , दीवाना मैं ही होता
सब मुझसे बौने होते , मैं ही तुम्हारा होता !
यह ख्वाहिश तो पूरी हो गयी आपकी, सब वैसे भी आपके ( चालू ) आगे कहाँ ठहरते हैं प्रभू !
अगर यह रचना में आप गंभीर है तो मुझे आपके बुढापे की चिंता है ताऊ !
मंगल कामनाएं ताई के लिए !
जय हो.
Deleteसतीश जी, हमारे बुढापे की चिंता करने के लिये धन्यवाद, नीचे लिखे प्वाईंट्स पर ध्यान दिया जाये.
Delete1. हम रामायण कालीन माता सीता के आशीर्वाद प्राप्त ताऊ हैं, सतयुग से कल्युग तक तो बुढापा आया नही, अब क्या खाक आयेगा?
2. आपकी जिज्ञासा है कि इस रचना में आप गंभीर हैं तो......सतिश जी गंभीर तो हम ताई के साथ शादी करके भी नही हुये तो अब क्या खाक गंभीर होंगे.:)
3. हमारी इस रचना को जिस्मानी ना समझकर रूहानी समझकर गौर करें, हमारा मतलब आपको साफ़ समझ आ जायेगा.
रामराम.
तेरी आशिकी में अपने दिल को बिगाड बैठा
ReplyDeleteजिंदगी, सुकून में थी, घर को उजाड बैठा !
किस चक्कर में आ गए ??? ये आग का दरिया है और डूब के जाना है ..... सारे धंधे चौपट हो जाएंगे ।
हा...हा...हा...हा...
Deleteसमझ में आई या नहीं ई ...ई ...ई...
उम्र का ख़याल करो !!!!
संगीता जी का आभार वैसे ताऊ समझने वाली चीज़ नहीं ...
ताऊ ...
Deleteये धंधे मुझे दे ..दे...
संगीता जी, सही कहा आपने, परमात्मा के इश्क पर बढना इक आग का दरिया ही तो है. आभार.
Deleteरामराम.
सतीश जी अब क्या समझना और क्या समझाना? जिस रस्ते पर कदम बढा दिये हैं तो फ़िर वापिस क्या खींचना. आभार.
Deleteरामराम
सतीश जी सारे धंधों के फ़ार्मुले ताऊ बताने को तैयार है, आप तो जब चाहे तब ले लीजिये.:)
Deleteरामराम.
वाह ताऊ ! आई लव यू ...!
ReplyDeleteधन्यवाद संतोष जी.
Deleteरामराम.
ताऊ आप तो गजल में भी माहिर हो, बढ़िया रचना है
ReplyDeleteहर पंक्ति लाजवाब है !
ख्वाहिश थी दर पे तेरे , दीवाना मैं ही होता
सब मुझसे बौने होते , मैं ही तुम्हारा होता !
प्रेम साधारण हो की असाधारण इसके आगे हर चीज
बौनी लगती है ,ख्वाहिश तो हो दीवाना होने की !
यह तारीफ़ कुछ अधिक गंभीर लग रही है ...
Deleteताऊ का दिमाग खराब हो जाएगा !
pleeese..
सुमन जी, सही कहा आपने, उमर खैयाम को भी सिर्फ़ इसीलिये गलत समझा गया और उनकी गजल रूबाईयां सिर्फ़ मयखानों की शोभा बन गई, सतीश जी तो लगता है हमें उमर खैयाम ही बना कर छोडेंगे.:)
Deleteरामराम.
सतीश जी, इस रास्ते पर चलने की पहली शर्त ही दिमाग का खराब होना है.:) तथाकथित स्वस्थ दिमाग इन रास्तों पर चलने की सोच भी नही सकता.:)
Deleteरामराम
वाह ! वाह !!
ReplyDeleteआभार शेखावत जी.
Deleteरामराम.
अहा ताऊ! एक दम शानदार . श्रीमान सक्सेना साहब की बातों पर ध्यान मत दीजियेगा, घुटनों का क्या है, आजकल तो बदल भी जाते हैं ... :)
ReplyDeleteसही है ...
Deleteताऊ मस्त !!
हा हा हा.... घुटनों का इलाज अच्छा बताया.:)
Deleteरामराम.
जिन्दगी अकेली, क्या शानदार है, क्या सूझा, पा ली बेगार है।
ReplyDeleteसही है, आदमी सोचता है सारा बोझ उसी के कंधों पर है और इसी धुन में सारी उम्र बेगार ही करता रहता है.
Deleteरामराम.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-06-2013) के चर्चा मंच 1263 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteआभार अरूण जी.
Deleteरामराम.
मस्त
ReplyDeleteआभार देवेंद्र जी.
Deleteरामराम.
bahud umda njm.
ReplyDeleteadrneeyon! rchna ka swagat krnen;aur tauji ko haath ajmaane den (ghazal) men.
बहुत आभार धीरेंद्र जी.
Deleteरामराम.
तेरी आशिकी में अपने दिल को बिगाड बैठा
ReplyDeleteजिंदगी, सुकून में थी, घर को उजाड बैठा ! badi saralta se dil ki bat kah dee ....ati sundar ....
*****
आभार निशा जी.
Deleteरामराम.
ताउजी
ReplyDeleteआश्चर्य जनक सुप्रभात !
आप को हर फन में माहिर हैं ....ये आपने लिखा ?
ताऊ हैं या महा ताऊ या छुपे रुस्तम ताऊ ? :))
जय हो आपकी
आभार सेहर जी, हुआ ये था कि कुक के छुट्टी पर होने की वजह से आजकल ताई का दिमाग रसोई में 48 डिग्री पर भन्नाया रहता है. बस इसी भन्नाहट में जमा दिये दो चार लठ्ठ और हमें सीधे परमात्मा से इश्क करने की सूझ पडी.:)
Deleteरामराम.
ye taoo ko baithe bithaye kya ho gaya!
ReplyDeleteताऊ का दिमाग खराब होने से ताऊ पगला गया है.:)
Deleteरामराम.
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमैं तो आपको पढ़ता रहता हूं, प्रशंसक हूं आपका।
नोट : आमतौर पर मैं अपने लेख पढ़ने के लिए आग्रह नहीं करता हूं, लेकिन आज इसलिए कर रहा हूं, ये बात आपको जाननी चाहिए। मेरे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए । धोनी पर क्यों खामोश है मीडिया !
लिंक: http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/blog-post.html?showComment=1370150129478#c4868065043474768765
तेरी आशिकी में अपने दिल को बिगाड बैठा
ReplyDeleteजिंदगी, सुकून में थी, घर को उजाड बैठा ..
ऐसा होता है ताऊ .. इसलिए तो कहते हैं इश्क आग का दरिया है ...
इससे जितना बचके रहो अच्छा है ...
पर शेर सभी लाजवाब है ताऊ श्री ...
शुक्रिया दिगंबर भाई, अब जिस रस्ते चल पडे हैं उस पर चल कर भी देख लेते हैं. आग के दरिया से ज्यादा तो कुछ नही आयेगा?:)
ReplyDeleteरामराम.
BEHTREEN POST..
ReplyDeleteताऊ आज हमारे फिर उभर के आये
ReplyDeleteहर अंदाज़ निराला ताऊ का हमको भाये....
स्वस्थ रहें !
आज मान गए कि ताऊ की महिमा अपरम्पार है।
ReplyDeleteतनिक सी गुफ़्तगू करली कि तमाशा बना दिया
ReplyDeleteझौंका था हवाओं का दुनियां ने तूफ़ान बना दिया
....बहुत खूब ..
गजल में भी माहिर हो, बढ़िया रचना है
ReplyDeleteतनिक सी गुफ़्तगू करली कि तमाशा बना दिया
ReplyDeleteझौंका था हवाओं का दुनियां ने तूफ़ान बना दिया
वाह! वाह! वाह!
यह तो बड़ा उम्दा शेर है!
आप ने तो बड़े अच्छे शेर लिखे हैं ..
बहुत बढ़िया !
अरे ग़ज़ल????
ReplyDeleteकिसी गलत blog पर तो नहीं आ गए हम...या ताऊ आपका blog हैक तो नहीं हो गया :-)
सादर
अनु
सीस काटि भुइंयाँ धरो, ता पर राखो पाँव,
ReplyDeleteदास कबीरा यों कहै, ऐसा हो तो आव।
मैं घर जारा आपना, लिया मुरैरा हाथ,
अब घर जारौं ताहि का जो चलै हमारे साथ। - कबीर