पिछले भागों में आपने पढा कि ताऊ का अवतरण कैसे हुआ? उसके बाद के भाग बाबाश्री ताऊ महाराज चरितावलि -2 में भगवान श्रीराम का यह लोक छोडकर जाना, श्रीकृष्णावतार व उनका मथुरा छोडकर रणछोड दास बनना, और श्रीकृष्ण द्वारा भविष्य के अनुसार योजना बनाना.
अब आज के प्रवचन में बाबाश्री बता रहे हैं. उनके जीवन में रामप्यारी व ताई का आगमन, तथा ताई को लठ्ठ हस्तांतरण परम पुनीत पावन प्रसंग, जिसके श्रवण मनन से समस्त पाप ताप दूर होकर अनंत भौतिक सुखों की प्राप्ति बैठे बिठाये बिना मेहनत किये ही हो सकेगी.
बाबाश्री ने श्रीकृष्ण के साथ आये दल का यथोचित स्वागत सत्कार करते हुये उन लोगों को माखन रोटी खिलाई तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण और बाबाश्री ने भविष्य की योजनाओं पर गुप्त मंत्रणा की. मंत्रणा पश्चात बाबाश्री ने अपने आश्रम से नाथद्वारा तक श्रीकृष्ण के पहूंचने के लिये एक गुप्त मार्ग का निर्माण करवाया, जिसके द्वारा श्रीकृष्ण अपने दल सहित नाथद्वारा के लिये प्रस्थान कर गये.
समय बीतने के साथ साथ बाबाश्री के आश्रम में आस पास के गांवों से भक्त नित्य दर्शन के लिये आने लगे. भेंट स्वरूप सब अपने साथ फ़ल मिठाईयां और तरह तरह के पकवान लाया करते थे. आश्रम में चहल पहल काफ़ी बढ गयी थी. पर रात को बाबाश्री अपने आश्रम में किसी को भी रुकने नही देते थे. सूर्य डूबने से पहले सभी को आश्रम छोडना पडता था.
इन्हीं भक्तों में से एक भक्त सतीश सक्सेना भी नित्य प्रति दर्शन हेतु आने लगे. अपनी निष्ठा और सत्यशील विचारों की वजह से उन्होंने बाबाश्री के दिल में एक विशेष स्थान बना लिया. बाबाश्री अक्सर अपनी गुप्त बातें और भविष्य की योजनाएं भी उनसे डिस्कस कर लेते थे.
एक दिन सुबह सबेरे ही सतीश सक्सेना आ पहुंचे और बाबाश्री ताऊ महाराज को चिंता मग्न देखकर पूछ बैठे - बाबाश्री आज आपके चेहरे पर मुझे चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं? कुछ खास बात हुई है क्या? किसी ने गलत सलत टिप्पणी कर दी या कोई बेनामी आपके खिलाफ़ कोई पोस्ट लिख गया? आप आदेश करें...मैं सबकी ऐसी तैसी कर दूंगा......
बीच में टोकते हुये बाबाश्री ताऊ महाराज बोले - नही नही वत्स...जैसा तुम सोच रहे हो वैसी कोई बात नही है. असल समस्या यह है कि यहां आश्रम में अब भक्तों का खाना पीना होने लगा है जिसकी वजह से यहां चूहे हो गये हैं और हमारे पास एक दो लंगोटियां ही हैं जो चूहे कुतर गये हैं. हम इसी को लेकर चिंतित हैं.
सतीश सक्सेना बोले - बाबाश्री, आप इतने बडे ज्ञानी होकर इतनी छोटी सी बात से डर रहे हैं. मैं आपके लिये जाकी कम्पनी को आर्डर देकर दर्जनों लंगोटियां बनवा देता हूं..आप निश्चिंत रहिये. अगले ही दिन भक्त सतीश सक्सेना एक दर्जन लंगोटियां और साथ में एक बिल्ली भी ले आये.
बाबाश्री ने बिल्ली को देखकर पूछा - भक्त, ये बिल्ली क्यों लाये हो?
सतिश सक्सेना बोले - महाराज श्री, यह बिल्ली अब यहां रहेगी और चूहों का खात्मा कर देगी. अब आप चूहों की तरफ़ से निश्चिंत होकर हस्तिनापुर वाले प्लान के बारें सोचिये. यह छोटी मोटी बाते आप मुझ पर छोड दिजीये.
बाबाश्री ने खुश होकर भक्त को आशिर्वाद दिया. धीरे धीरे बिल्ली ने अपना काम करना शुरू कर दिया. बाबाश्री की लंगोटियां भी सुरक्षित रहने लगी. बाबाश्री को अब बिल्ली से स्नेह हो गया और वो प्यार से उसे रामप्यारी के नाम से बुलाने लगे. भक्त गण भेंट स्वरूप रामप्यारी के लिये दूध भी अवश्य लाते थे. बाबाश्री के साथ ही आश्रम में रामप्यारी की भी पूजा होने लगी, वह भी एक अवतार समझी जाने लगी. आश्रम में सब काम व्यवस्थित चलने लगा.
वर्षा के दिनों में भक्त रास्ते में पडने वाले नदी नालों की वजह से पहाड पर स्थित बाबाश्री के आश्रम में नही पहुंच पाते थे सो रामप्यारी के दूध की समस्या आने लगी. जितने भी चूहे थे उनको तो रामप्यारी ने पहले ही सफ़ाचट कर दिया था. एक समय लगातार दस दिन तक कोई भी भक्त दूध लेकर नही आया तो रामप्यारी के प्राणों पर बन आयी. बाबाश्री तो अवतारी पुरूष थे सो उन्हें कोई भूख प्यास नही लगती थी...पर रामप्यारी का क्या करें?......
किसी तरह रास्ते खुले तो तुरंत सतीश सक्सेना दूध की बाल्टी लिये हुये आ पहुंचे. अब रामप्यारी की जान में जान आयी. सतीश सक्सेना ने रामप्यारी की मरियल हालत और बाबाश्री की बेचैनी देखते हुये तुरंत एक मुर्रा भैंस लाकर आश्रम में बंधवा दी. अब क्या था...आश्रम में दूध का भी पक्का इंतजाम हो गया और फ़िर से अमन चैन बहाल हो गया.
अब बाबाश्री का सारा ध्यान रामप्यारी और भैंस का चारा पानी का इंतजाम करते हुये बीतने लगा. उधर बाबाश्री ने हस्तिनापुर में महाराज धृतराष्ट्र के रूप में भी जन्म ले रखा था सो इस भैंस की वजह से हस्तिनापुर के राजकाज में भी बाधा पडने लगी. बाबाश्री का सारा दिन भैंस के लिये चारा पानी जुटाने, गोबर साफ़ करने, दूध निकालने, दूध को गर्म करके रामप्यारी को देने इत्यादि में ही पूरा होने लगा.
इस समय तक सतीश सक्सेना बाबाश्री के परम खास भक्त बन चुके थे सो उन्होनें बाबाश्री के सामने प्रस्ताव रखते हुये कहा कि - बाबाश्री अब इस तरह तो काम नही चलेगा, आप यदि भैंस की सेवा में ही लगे रहे तो फ़िर आश्रम और हस्तिनापुर कौन संभालेगा? वैसे आपकी आज्ञा हो तो आश्रम के काम धंधे तो मैं भी संभाल लूंगा पर भैंस के गोबर इत्यादि का काम मेरे वश का नही है.
बाबाश्री किसी भी कीमत पर आश्रम का प्रबंध किसी और को देने के पक्ष में नही थे सो उन्होंने कोई जवाब नही दिया. बाबाश्री ताऊ महाराज को मौन देखकर सतीश सक्सेना ने कहा - बाबाश्री मेरे दिमाग में एक लाजवाब आईडिया आया है. आप विवाह कर लिजीये. सारी समस्या हल हो जायेगी.
बाबश्री ताऊ महाराज ने भृकुटियां तानते हुये कहा - ये क्या कह रहे हो भक्त? जानते नही हो हम त्रेता से अब तक बाल ब्रह्मचारी हैं? और तुम हमारा ब्रह्मचर्य तुडवाने का कह रहे हो?
सतीश सक्सेना बोले - बाबाश्री, अब इसके अलावा कोई उपाय भी नही है. और विवाहित रहते हुये भी आप ब्रह्मचारी बने रह सकते हो. आप तो महान तपस्वी हैं और फ़िर कितने ही ऋषि मुनियों ने आश्रम व्यवस्था के नाम पर राजकन्याओं से विवाह रचाये थे यह क्यों भूल जाते हैं? आप तो आज्ञा दिजीये.
भक्त सतीश सक्सेना के तर्कों के सामने बाबाश्री ताऊ महाराज निरूत्तर हो गये और विवाह के लिये रजामंदी दे दी. भक्त सतीश सक्सेना ने ताऊ के समकक्ष ताई नाम की एक योग्य कन्या को ढूंढ निकाला. यही कन्या गांधार नरेश की राजकुमारी गांधारी का दूसरा प्रतिरूप थी जिसने इसी लिये यह दूसरा रूप धारण किया था जिससे हस्तिनापुर व आश्रम में दोनों जगह साथ रह सके.
इस तरह बाबाश्री के साथ ताई का विवाह संपन्न होगया और आश्रम में फ़िर चहल पहल हो गयी. अब ताई सारा दिन खेतों में काम करती और भैंस के चारे पानी व आश्रम का रख रखाव करती. बाबाश्री अब सारा दिन भजन सत्संग और भक्तों का कल्याण करने में बिताने लगे.
ताई जब खेतों में काम करती तो वहां उन्हें जंगली जानवरों का खतरा रहता था सो एक दिन यह समस्या बताकर ताई ने बाबाश्री ताऊ महाराज से अपनी रक्षार्थ वह प्रभु श्रीराम प्रदत लठ्ठ मांग लिया. समस्या को देखते हुये मजबूरी मे सकुचाते हुये यह लठ्ठ बाबाश्री ताऊ महाराज ने ताई को हस्तांतरित कर दिया.
प्रभु श्रीराम ने जब यह लठ्ठ ताऊ महाराज को दिया था तब कहा था कि इसे हमेशा अपने साथ ही रखना यदि किसी दुसरे को यह लठ्ठ हस्तांतरित किया तो इसका उपयोग तुम्हारे खिलाफ़ ही होगा. और प्रभु श्रीराम के यह वचन सत्य सिद्ध हुये. वो जादुई लठ्ठ इस कलियुग के ब्लाग युग में भी ताई द्वारा बाबाश्री की पीठ पर बरसता ही रहता है.
(क्रमश:)
अब आज के प्रवचन में बाबाश्री बता रहे हैं. उनके जीवन में रामप्यारी व ताई का आगमन, तथा ताई को लठ्ठ हस्तांतरण परम पुनीत पावन प्रसंग, जिसके श्रवण मनन से समस्त पाप ताप दूर होकर अनंत भौतिक सुखों की प्राप्ति बैठे बिठाये बिना मेहनत किये ही हो सकेगी.
दूध की बाल्टी लिये सतीश सक्सेना, बाबाश्री ताऊ आश्रम की सीढियां चढते हुये |
बाबाश्री ने श्रीकृष्ण के साथ आये दल का यथोचित स्वागत सत्कार करते हुये उन लोगों को माखन रोटी खिलाई तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण और बाबाश्री ने भविष्य की योजनाओं पर गुप्त मंत्रणा की. मंत्रणा पश्चात बाबाश्री ने अपने आश्रम से नाथद्वारा तक श्रीकृष्ण के पहूंचने के लिये एक गुप्त मार्ग का निर्माण करवाया, जिसके द्वारा श्रीकृष्ण अपने दल सहित नाथद्वारा के लिये प्रस्थान कर गये.
समय बीतने के साथ साथ बाबाश्री के आश्रम में आस पास के गांवों से भक्त नित्य दर्शन के लिये आने लगे. भेंट स्वरूप सब अपने साथ फ़ल मिठाईयां और तरह तरह के पकवान लाया करते थे. आश्रम में चहल पहल काफ़ी बढ गयी थी. पर रात को बाबाश्री अपने आश्रम में किसी को भी रुकने नही देते थे. सूर्य डूबने से पहले सभी को आश्रम छोडना पडता था.
इन्हीं भक्तों में से एक भक्त सतीश सक्सेना भी नित्य प्रति दर्शन हेतु आने लगे. अपनी निष्ठा और सत्यशील विचारों की वजह से उन्होंने बाबाश्री के दिल में एक विशेष स्थान बना लिया. बाबाश्री अक्सर अपनी गुप्त बातें और भविष्य की योजनाएं भी उनसे डिस्कस कर लेते थे.
एक दिन सुबह सबेरे ही सतीश सक्सेना आ पहुंचे और बाबाश्री ताऊ महाराज को चिंता मग्न देखकर पूछ बैठे - बाबाश्री आज आपके चेहरे पर मुझे चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं? कुछ खास बात हुई है क्या? किसी ने गलत सलत टिप्पणी कर दी या कोई बेनामी आपके खिलाफ़ कोई पोस्ट लिख गया? आप आदेश करें...मैं सबकी ऐसी तैसी कर दूंगा......
बीच में टोकते हुये बाबाश्री ताऊ महाराज बोले - नही नही वत्स...जैसा तुम सोच रहे हो वैसी कोई बात नही है. असल समस्या यह है कि यहां आश्रम में अब भक्तों का खाना पीना होने लगा है जिसकी वजह से यहां चूहे हो गये हैं और हमारे पास एक दो लंगोटियां ही हैं जो चूहे कुतर गये हैं. हम इसी को लेकर चिंतित हैं.
सतीश सक्सेना बोले - बाबाश्री, आप इतने बडे ज्ञानी होकर इतनी छोटी सी बात से डर रहे हैं. मैं आपके लिये जाकी कम्पनी को आर्डर देकर दर्जनों लंगोटियां बनवा देता हूं..आप निश्चिंत रहिये. अगले ही दिन भक्त सतीश सक्सेना एक दर्जन लंगोटियां और साथ में एक बिल्ली भी ले आये.
बाबाश्री ने बिल्ली को देखकर पूछा - भक्त, ये बिल्ली क्यों लाये हो?
सतिश सक्सेना बोले - महाराज श्री, यह बिल्ली अब यहां रहेगी और चूहों का खात्मा कर देगी. अब आप चूहों की तरफ़ से निश्चिंत होकर हस्तिनापुर वाले प्लान के बारें सोचिये. यह छोटी मोटी बाते आप मुझ पर छोड दिजीये.
बाबाश्री ने खुश होकर भक्त को आशिर्वाद दिया. धीरे धीरे बिल्ली ने अपना काम करना शुरू कर दिया. बाबाश्री की लंगोटियां भी सुरक्षित रहने लगी. बाबाश्री को अब बिल्ली से स्नेह हो गया और वो प्यार से उसे रामप्यारी के नाम से बुलाने लगे. भक्त गण भेंट स्वरूप रामप्यारी के लिये दूध भी अवश्य लाते थे. बाबाश्री के साथ ही आश्रम में रामप्यारी की भी पूजा होने लगी, वह भी एक अवतार समझी जाने लगी. आश्रम में सब काम व्यवस्थित चलने लगा.
वर्षा के दिनों में भक्त रास्ते में पडने वाले नदी नालों की वजह से पहाड पर स्थित बाबाश्री के आश्रम में नही पहुंच पाते थे सो रामप्यारी के दूध की समस्या आने लगी. जितने भी चूहे थे उनको तो रामप्यारी ने पहले ही सफ़ाचट कर दिया था. एक समय लगातार दस दिन तक कोई भी भक्त दूध लेकर नही आया तो रामप्यारी के प्राणों पर बन आयी. बाबाश्री तो अवतारी पुरूष थे सो उन्हें कोई भूख प्यास नही लगती थी...पर रामप्यारी का क्या करें?......
किसी तरह रास्ते खुले तो तुरंत सतीश सक्सेना दूध की बाल्टी लिये हुये आ पहुंचे. अब रामप्यारी की जान में जान आयी. सतीश सक्सेना ने रामप्यारी की मरियल हालत और बाबाश्री की बेचैनी देखते हुये तुरंत एक मुर्रा भैंस लाकर आश्रम में बंधवा दी. अब क्या था...आश्रम में दूध का भी पक्का इंतजाम हो गया और फ़िर से अमन चैन बहाल हो गया.
अब बाबाश्री का सारा ध्यान रामप्यारी और भैंस का चारा पानी का इंतजाम करते हुये बीतने लगा. उधर बाबाश्री ने हस्तिनापुर में महाराज धृतराष्ट्र के रूप में भी जन्म ले रखा था सो इस भैंस की वजह से हस्तिनापुर के राजकाज में भी बाधा पडने लगी. बाबाश्री का सारा दिन भैंस के लिये चारा पानी जुटाने, गोबर साफ़ करने, दूध निकालने, दूध को गर्म करके रामप्यारी को देने इत्यादि में ही पूरा होने लगा.
इस समय तक सतीश सक्सेना बाबाश्री के परम खास भक्त बन चुके थे सो उन्होनें बाबाश्री के सामने प्रस्ताव रखते हुये कहा कि - बाबाश्री अब इस तरह तो काम नही चलेगा, आप यदि भैंस की सेवा में ही लगे रहे तो फ़िर आश्रम और हस्तिनापुर कौन संभालेगा? वैसे आपकी आज्ञा हो तो आश्रम के काम धंधे तो मैं भी संभाल लूंगा पर भैंस के गोबर इत्यादि का काम मेरे वश का नही है.
बाबाश्री किसी भी कीमत पर आश्रम का प्रबंध किसी और को देने के पक्ष में नही थे सो उन्होंने कोई जवाब नही दिया. बाबाश्री ताऊ महाराज को मौन देखकर सतीश सक्सेना ने कहा - बाबाश्री मेरे दिमाग में एक लाजवाब आईडिया आया है. आप विवाह कर लिजीये. सारी समस्या हल हो जायेगी.
बाबश्री ताऊ महाराज ने भृकुटियां तानते हुये कहा - ये क्या कह रहे हो भक्त? जानते नही हो हम त्रेता से अब तक बाल ब्रह्मचारी हैं? और तुम हमारा ब्रह्मचर्य तुडवाने का कह रहे हो?
सतीश सक्सेना बोले - बाबाश्री, अब इसके अलावा कोई उपाय भी नही है. और विवाहित रहते हुये भी आप ब्रह्मचारी बने रह सकते हो. आप तो महान तपस्वी हैं और फ़िर कितने ही ऋषि मुनियों ने आश्रम व्यवस्था के नाम पर राजकन्याओं से विवाह रचाये थे यह क्यों भूल जाते हैं? आप तो आज्ञा दिजीये.
भक्त सतीश सक्सेना के तर्कों के सामने बाबाश्री ताऊ महाराज निरूत्तर हो गये और विवाह के लिये रजामंदी दे दी. भक्त सतीश सक्सेना ने ताऊ के समकक्ष ताई नाम की एक योग्य कन्या को ढूंढ निकाला. यही कन्या गांधार नरेश की राजकुमारी गांधारी का दूसरा प्रतिरूप थी जिसने इसी लिये यह दूसरा रूप धारण किया था जिससे हस्तिनापुर व आश्रम में दोनों जगह साथ रह सके.
इस तरह बाबाश्री के साथ ताई का विवाह संपन्न होगया और आश्रम में फ़िर चहल पहल हो गयी. अब ताई सारा दिन खेतों में काम करती और भैंस के चारे पानी व आश्रम का रख रखाव करती. बाबाश्री अब सारा दिन भजन सत्संग और भक्तों का कल्याण करने में बिताने लगे.
ताई जब खेतों में काम करती तो वहां उन्हें जंगली जानवरों का खतरा रहता था सो एक दिन यह समस्या बताकर ताई ने बाबाश्री ताऊ महाराज से अपनी रक्षार्थ वह प्रभु श्रीराम प्रदत लठ्ठ मांग लिया. समस्या को देखते हुये मजबूरी मे सकुचाते हुये यह लठ्ठ बाबाश्री ताऊ महाराज ने ताई को हस्तांतरित कर दिया.
प्रभु श्रीराम ने जब यह लठ्ठ ताऊ महाराज को दिया था तब कहा था कि इसे हमेशा अपने साथ ही रखना यदि किसी दुसरे को यह लठ्ठ हस्तांतरित किया तो इसका उपयोग तुम्हारे खिलाफ़ ही होगा. और प्रभु श्रीराम के यह वचन सत्य सिद्ध हुये. वो जादुई लठ्ठ इस कलियुग के ब्लाग युग में भी ताई द्वारा बाबाश्री की पीठ पर बरसता ही रहता है.
(क्रमश:)
जानकारी से भरपूर कथा सुनाई है ताऊ !!
ReplyDeleteराम राम आभार !!
कथा श्रवण के लिये आभार.:)
Deleteरामराम.
भक्त भी कभी कभी अपने गुरु को बड़ी मुसीबत में डाल देते है
ReplyDeleteसोच समझकर उनकी सलाह मान लेनी चाहिए ताऊ :)
त्रेता में भक्त हम जैसे होते थे जो सदा सही सलाह देते थे पर द्वापर अंत आते आते भक्तों ने ही कल्याण करना शुरू कर दिया.:)
Deleteरामराम.
आगे का सारा फसाद बिल्ली के पालने से हुआ,अब अपने भक्तों को मार्गदर्शन दीजिये कि, भले ही चूहे कितना ही परेशान करे लेकिन बिल्ली नहीं पालनी चाहिए !
ReplyDeleteसबसे पहले खाना पीना और उसके पीछे चूहे..फ़िर आगे की श्रंखला, इसलिये आजकल हम भक्तों को यह सलाह देते हैं कि भले कुछ भी पालो पर खाने और पीने से परहेज करो, फ़िर चूहे कहां से आयेंगे? यही चूहे जिंदगी में कुतर कुतर कर छेद करके जिंदगी नरक बना देते हैं.
Deleteरामराम.
@ प्रभु श्रीराम ने जब यह लठ्ठ ताऊ महाराज को दिया था तब कहा था कि इसे हमेशा अपने साथ ही रखना यदि किसी दुसरे को यह लठ्ठ हस्तांतरित किया तो इसका उपयोग तुम्हारे खिलाफ़ ही होगा. और प्रभु श्रीराम के यह वचन सत्य सिद्ध हुये. वो जादुई लठ्ठ इस कलियुग के ब्लाग युग में भी ताई द्वारा बाबाश्री की पीठ पर बरसता ही रहता है.
ReplyDeleteअब क्या करे सब समय का फेर है ताऊ, :)
क्या करें? सब पिछले कर्मों का फ़ेर है.:)
Deleteरामराम.
@ सतिश सक्सेना बोले - महाराज श्री, यह बिल्ली अब यहां रहेगी और चूहों का खात्मा कर देगी. अब आप चूहों की तरफ़ से निश्चिंत होकर हस्तिनापुर वाले प्लान के बारें सोचिये. यह छोटी मोटी बाते आप मुझ पर छोड दिजीये.
ReplyDeleteलगता है सतीश जी को प्राणियों से बहुत प्रेम है इसलिए बिल्ली पालने की सलाह दी मै होती तो पेस्ट कंट्रोल करवाने की सलाह देती !
काश आपकी सलाह उस युग में मिल गयी होती.:(
Deleteरामराम.
बहुत खूब ...
ReplyDeleteआभार.
Deleteरामराम.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
आभार वंदना जी.
Deleteरामराम.
यह सब गड़बड़ सक्सेना साहब के कारण ही हो रही लगती है। :)
ReplyDeleteकाहे दुखती रग पर हाथ रख रहे हैं?:)
Deleteरामराम.
:)यह भी खूब रही!
ReplyDeleteआश्रमवासियों का विस्तार भक्तों के खाने-पीने के कारण हुआ,अगर उनका खाना-पीना रोक दिय होता तो न चूहे बढ़ते न बिल्ली लानी पड़ती ना ही भैंस और ना ही ताई और ना ही लट्ठ !
सारी ग़लती सतीश जी नामक भक्त को सलाहकार रखने में हुई है!गलत सलाह से ऐसे ही परिणाम भुगतने पड़ते हैं..आगे की कहानी की प्रतीक्षा रहेगी.
भक्त को मौके की तलाश है ...
Delete:)
अल्पना जी आप सही कह रही हैं, पर भविष्य में क्या लिखा है यह प्रभु श्रीराम भी नही जानते, भक्त सतीश सक्सेना तो जाने अनजाने इस होनी का माध्यम बन गये, आभार.
Deleteरामराम.
बाबाश्री ताऊ महाराज की जय हो !
ReplyDeleteआभार शेखावत जी.
Deleteरामराम.
चाहे जितना पहुँचा हुआ हो कोई- धरती की हवा लगते ही माया के प्रपंच से बच नहीं पाता !चलता रहे कथा का क्रम ...
ReplyDeleteसही कहा आपने, कथा अनवरत चलती ही रहती है. आभार.
Deleteरामारम.
वह है लट्ठ प्रसाद जो अब ताऊ के अलावा भक्त गन भी प्राप्त कर सकेगें :-) लट्ठम देहि ताई :-)
ReplyDeleteतथास्तु भक्त.:)
Deleteरामराम.
ताऊ ,
ReplyDeleteवह चाबी मुझे दे दे ...
चाबी आपको दे दें? जिससे आप दूसरी बिल्ली लाकर और पिजडे में डाल दें? माफ़ किजीये एक बिल्ली पालने के फ़ल ही भुगत रहे हैं अब दूसरी नही.:)
Deleteरामराम.
मतलब ताई का हाथों ताऊ की तो हड्डीया टुटनी ही है। ताऊ भी बेचारा क्या करे, भक्त तो भक्त पूरी कायनात ही ताऊ को धोने का बहाना ढूंढती रहती है ।
ReplyDeleteअब कायनात भी क्या करे? ताऊ इतना काला है कि उसे धोये बिना दुनियां का काम चल भी नही सकता.:)
Deleteरामराम.
ये तो भईया जी निन्यानबे का चक्कर लगता है जिसके फेरे में ताऊ जी कैसे बच पायेंगे
ReplyDeleteसही कहा रमाकांत जी, जो भी इस संसार में आया कि फ़ंसा निन्यानवे के चक्कर में, यानि कुल मिलाकर "वही रामदयाल और वही गधेडी".:)
Deleteरामराम.
rochak .
ReplyDeleteआभार.
Deleteरामराम.
अद्भुत कथा प्र्स्तुतिक्र्ण | साधुवाद
ReplyDeleteआभार.
Deleteरामराम.
लठ्ठ का हस्तांतरण ...इतिहास की बड़ी घटना है . शुक्रिया ...आपने इस महत्वपूर्ण घटना का आँखों देखा हाल बताया :)
ReplyDeleteआभार.:)
Deleteरामराम.
ओह ! तो अब पता चला कि ताऊ की ताउगिरि के संपादक और प्रधान रचयिता तो अपने सखा सतीश सक्सेना जी हैं ।
ReplyDeleteयानि बगल में छोरा और जग में ढिंढोरा! :)
पता चलाने में आपने बहुत देर लगवा दी.:)
Deleteरामराम.
इतिहास में हम हमेशा कमज़ोर रहे। आज अच्छा ज्ञान वर्धन हुआ।
ReplyDeleteमहाराज श्री के प्रवचनों को सुनते रहिये, सारे काल याद हो जायेंगे.:)
Deleteरामराम.
जय हो ताऊ...पूरी ताकत से जुटे हो...देखकर अच्छा लगा.. :)
ReplyDeleteहा हा हा....आपकी उपस्थिति से संबल और भी बढ गया. आभार
ReplyDeleteरामराम.
तू इन्सान के रूप में आए हैं तो दुनिया के कार्य तो करने ही पढेंगे ... आगे आगे क्या होगा ये देखना बाकी है ...
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