"वर्तमानकालीन ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिका"


प्रिय श्रोताओं, मैं रामप्यारे आज की शाम के सत्र में आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. जैसा की आप जानते हैं ताऊ टीवी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मेलन - 2013 आहुत किया गया है. इस सम्मेलन के उदघाटन सत्र में सर्वप्रथम  "महान ब्लाग धर्म गुरू बाबा ताऊराम डमरू वाले"  के प्रवचन  होंगे. आज का विषय है "वर्तमानकालीन  ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिका" .

सबसे पहले  "ब्लाग धर्म गुरू  बाबा ताऊराम  डमरू वाले" के  स्वागत में   एक भजन संध्या का आयोजन किया गया है जिसमें  हारमोनियम बजाते हुये  ताऊ  वंदना प्रस्तुत करेंगे प्रसिद्ध भजन सम्राट श्री सतीश सक्सेना, उनके साथ तबले पर संगत करेंगे बेचैनों की बेचैन आत्मा महान ब्लाग-तबला वादक श्री देवेंद्र पाण्डेय और ढोलक बजा रहे हैं महान यायावार ढोलक वादक श्री ललित शर्मा




अब श्री सतीश सक्सेना प्रस्तुत कर रहे हैं श्री ताऊ वंदना......


जय ताऊ देवा !
ॐ जय ताऊ देवा 
भूत प्रेत सब भागे 
नाम सुमर लेवा !

चतुरबुदधि का मालिक 
हर धंधा करता !
भ्रष्टाचार भगा कर 
निज जेवें भरता !


जिसके पीछे पड़ता 
त्राहि त्राहि करता  
सुबह शाम ताई से 
रोज़ खूब पिटता ! 

जाके गुण जो गावै 
चमचापति बनता 
नोट खूब घर बरसै 
कष्ट नही पाता। 

ऊँ जय ताऊ देवा

अब  "ब्लाग धर्म गुरू  बाबा ताऊराम  डमरू वाले"  अपना प्रवचन देंगे.....


प्यारे भक्तजनों...आपको हमारा अरबी अरबी आशीर्वाद. वैसे तो हम ऊल्लू टेढा करने तक ही सीमित रहते हैं हमें किसी की भलाई बुराई में कोई दिलचस्पी नही रहती. पर आयोजकों के निवेदन और आपका कल्याण करने के लिये हम यहां पधारे हैं.

हमें कहा गया है कि हम आपको  "वर्तमानकालीन  ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिका" विषय पर कुछ कहें पर इस पर कहने जैसा कुछ नही है. धर्म और खासकर ब्लाग धर्म के लिये आपको नित्य प्रति एक काम अवश्य करना चाहिये, वो यह कि रोज सुबह उठकर हमारे बैंक अकाऊंट में अपनी श्रद्धा अनुसार दक्षिणा ट्रांसफ़र करवाना चाहिये. इससे आपके सब ब्लाग पाप दूर हो जायेंगे.

इसके अलावा हमसे गुरू दीक्षा ग्रहण करके अपना परलोक सुधारना चाहिये. हम जो गुरू मंत्र आपको देंगे उससे आप समय आने पर अपने ब्लाग सहित सीधे अपने कर्मों के अनुसार नरक या स्वर्ग में जायेंगे. यह शक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़  हमारे द्वारा दिये गये गुरू मंत्र में ही है. हमारे मंत्र में इतनी शक्ति है कि उसके जाप से आप हैलीकाप्टर  दुर्घटना में भी बच जायेंगे. जिसका चमत्कार आप देख ही चुके हैं कि कैसे हैलीकाप्टर के गिरने के बावजूद भी हमारा बाल  बांका नही हुआ.

इसके अलावा आप निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें.

1. ब्लाग पर धन (टिप्पणी) कमाने के लिये हमेशा उल्टा ज्यादा और सीधा कम लिखें. अपनी भडास ज्यादा से ज्यादा निकालें इससे आपका दिमाग ताजा रहेगा और सामने वाले का खराब.

2.  कोई भी काम की बात ब्लाग पोस्ट पर ना लिखें. याद रखिये कि कोई भी ब्लागर आपकी पोस्ट  नही पढता. एक सरसरी निगाह डालकर एवम  दूसरे की टिप्पणियां देखकर "तूने मेरी खुजाई मैं तेरी खुजा देता हूं" की तर्ज पर टिप्पणी ठोक कर  चलता बनता है.

3.  अब आता हूं आज के मुख्य विषय  "वर्तमानकालीन  ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिका" पर. मेरा यह मानना है कि ब्लागिंग वापस उसी दौर में पहुंच चुकी है जहां से पाषाण युग शुरू हुआ था. चहुंओर एक उदासी छाई हुई है.  अधिकतर पोस्ट सूनी मांग जैसी पडी हैं.  इसके लिये आप हमारे बैंक अकाऊंट में जितनी ज्यादा से ज्यादा रकम भिजवायेंगे उतनी ही आपकी पोस्ट पर टिप्पणियां आने की संभावना बढ जायेगी.

4. अब आते हैं टेक्नीकल बात पर. ब्लाग पोस्ट का धन तो टिप्पणियां ही होती हैं. अत: अपने कमेंट बाक्स में प्रत्युतर का आप्शन अवश्य लगालें और अधिक से अधिक प्रत्युत्तर देवें. प्रति टिप्पणी बाबा को दक्षिणा भेंट देते रहेंगे तो आपको दिन दूनी रात चौगुनी टिप्पणियां मिलती रहेंगी. दक्षिणा भेंट मिलती रहेगी तो   बाबा अपनी प्रत्युत्तर टिप्पणी टीम के द्वारा आपकी पोस्ट को गुलजार करवा देंगे.

ब्लाग भक्तगणों, हम कभी भी मिथ्या नही बोलते यदि हम मिथ्या बोलते हों तो परमात्मा आप सबके ब्लाग टिप्पणी सहित डिलीट कर दे. अब तो रामराम बोलना पडेगा ना....

ब्रेक...ब्रैक....ब्रैक......ब्रेक...ब्रैक....ब्रैक......ब्रेक...ब्रैक....ब्रैक......

 ब्लागिंग में नई जान फ़ूंकने और सभी ब्लागर्स  की राय जानने के लिये    अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मेलन - 2013 के अगले सत्र में लंच के बाद विचार विमर्श होगा. अब आप सभी लोग डिनर के लिये पधारे और अपने अपने शयन कक्षों में जाकर विश्राम करें.


दुल्हन की बारात अपने घर बुलाने की कसम खायें


क्या यह संभव है कि लडकी घोडी पर सवार होकर बैंड बाजे और बारात के साथ लडके के घर जाये और वहां शादी की सभी रस्में पूरी करे? जी हां यह गप्प नही बल्कि हकीकत है. दो दिन पहले खंडवा (म.प्र.) जिले के सतवारा गांव में कानून की छात्रा रजनी (25 वर्षीय)  नाचते गाते बारातियों के साथ घोडी पर सवार होकर दूल्हे के घर पहूंची और शादी की रस्में पूरी की.

पाटीदार समाज की यह पुरानी परंपरा थी जो कन्या घटारी के नाम से जानी जाती थी जिसे वर्तमान समय में पूर्णरूपेण भुला दिया गया है. रजनी इसे महिला सशक्तिकरण का प्रतीक मानती है और उम्मीद करती  है कि इससे सामाजिक कुरीतियां दूर होनें में मदद मिलेगी.

बारात लेकर लडकियों के घर जाना लडके अपना पैदायशी हक मानते हैं वहीं दूल्हे प्रवीण (30 वर्षीय) का मानना है कि दूल्हन का उसके घर बारात लेकर आना गर्व की बात है. इस पुरानी प्रथा को फ़िर से जीवित करना समय की मांग है और इससे लडकियों को समाज में समानता का अधिकार मिलेगा.

यह समाचार सांध्य दैनिक प्रभात किरण में पढने को मिला. ब्लागर भाईयों, कैसा रहे आप भी इस प्रथा का समर्थन करें? जो ब्लागर भाई कुंआरे हैं वो अपनी दुल्हन की बारात अपने घर बुलाने की कसम खायें और जो बच्चों के बाप हैं वो अपने लडकों की शादी इस रीति से करने की कसम खायें तो एक नई सामाजिक चेतना का प्रादुर्भाव यहीं से हो सकता है.

तेरा नाम क्या है रे कालिया? : गब्बर सिंह


"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले"  
(भाग -2)

        एपीसोड  लेखक      : ताऊ रामपुरिया
सहयोगी लेखक        : सुश्री सुमन
                                                  : श्री पी. एन. सुब्रमनियन
                                                     : सुश्री संगीता स्वरूप (गीत)



हमने पिछले भाग -1 में पूछा था कि गब्बर जेल से भागकर सीधा कहां पहुंचेगा? इसका सही अंदाजा जिन्होने लगाया  है उनका नाम आज के भाग -2 में सहयोगी लेखक के रूप मे दिया जा रहा है. जो भी पाठक इस धारावाहिक  के सवालों का सही अंदाजा लगायेगा उनका नाम जब भी यह उपन्यास के रूप में छपेगा तब उनके नाम भी सहयोगी लेखकों के रूप में छापकर उनको भी श्रेय दिया जायेगा.

इस धारावाहिक की लेखन प्रक्रिया में कोई भी पाठक सहयोग कर सकता है. चाहे तो स्वतंत्र रूप से कोई सा भाग लिख सकता है या मिलजुल कर भी. इसके लिये taau@taau.in पर संपर्क किया जा सकता है.

भाग -1  में जिन्होंने सही अंदाजा लगाया  उनके नाम  इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाईयां!

अभी तक भाग - 1 में आपने पढा कि सीधा साधा अबोध बालक गणेश किन हालातों में एक  खतरनाक डाकू गब्बर सिंह बन गया. रामगढ के पिछले जन्म के लाला सुखीराम ने घोडे के रूप में जन्म लेकर गब्बर को पुलिस के हाथों गिरफ़्तार करवा दिया. इसके बाद गब्बर  जेल तोड कर  फ़रार हो गया.....अब आगे.

आधी रात के समय  गब्बर सिंह किसी तरह जेल से भागने में तो सफ़ल हो गया. लेकिन उसका मन कर रहा था कि अभी जाकर उस घोडे का (पिछले जन्म के  लाला सुखीराम) टेटूआ दबा दे जिसने जान बूझकर उसे गिरफ़्तार करवा दिया था. गब्बर को इस बात का इतना ताप...इतना ताप चढा था कि इस समय कोई उसके शरीर को भी छू ले तो भस्म हो जाये.

रात का सन्नाटा...निहत्था गब्बर सिंह तेजी से जंगल की तरफ़ बढा जा रहा था...मन में सिर्फ़ और सिर्फ़ उस घोडे का ख्याल...आखिर कहां मिलेगा वो पुलिस का खबरी घोडा?

अचानक भानगढ के खंडहरों से गुजरते हुये  गब्बर को कुछ आवाजे सुनाई दी...उसके कान कुछ चौकन्ने हो गये. उसने हालात का जायजा लिया. आवाजे कुछ ऐसी लग रही थी जैसे चुडैले नाच रही हों...एक बार गब्बर ठिठका...सोचा कहीं सचमुच की चुडैले हुई तो.....और पास में गया तो चट्टान की आड से  उसे अंधेरे में एक घोडा दिखाई दिया.....गब्बर की बांछे खिल गई. यह तो वही घोडा था जो अपने साथी संगियों को गब्बर को गिरफ़तार करवाने की दास्तान सूरमा भोपाली स्टाईल में सुना रहा था....

गब्बर निहत्था था...इस घोडे सुखीराम को सजा देने के लिये वह अंधेरे में ही इधर उधर कोई हथियार तलाशने लगा. आखिर उसे एक लठ्ठ मिल ही गया.  लठ्ठ  हाथ में लेकर वो चट्टान  के और पास खिसक कर कान लगाकर सुनने लगा क्योंकि अभी अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा था. उसे अभी दिन निकलने तक इंतजार भी करना था.

लाला सुखीराम (घोडा) डींग हांकता हुआ और गब्बर सिंह लठ्ठ लिये चट्टान के पीछे

उधर घोडा बना लाला सुखी राम हिनहिनाते हुये डींगे हांक रहा था कि कैसे उसने गब्बर को गिराया और उसकी टांग को दबाकर बैठ गया था. गब्बर तो पकडा गया था पर इस गिरने के खेल में लाला सुखीराम की टांग भी टूट चुकी थी और वो इसी मारे यहां भानगढ के खंडहरों में आ छुपा था जहां भूत प्रेतों के डर से कोई आता भी नही था. उसे गब्बर का भी डर तो था कि यदि वो जेल से भाग निकला तो उसका क्या हाल करेगा?

इसी बीच दिन निकलने को था...सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा. गब्बर ने देखा कि लाला सुखीराम के आस पास चार पांच लोग और भी बैठे थे. वो कौन थे? क्या वो भूत प्रेत थे? घोडा बना सुखीराम उनके साथ मनुष्यों की भाषा में बात कर रहा था. एक बार तो गब्बर डरा...लेकिन गब्बर अपना नाम मिट्टी में नही मिलाना चाहता था सो वह लठ्ठ  फ़टकारता हुआ कूदकर घोडे के सामने आया और बिना अक्ल इस्तेमाल करते हुये तडातड आठ दस लठ्ठ तो घोडे को लगाये और वहां बैठे आदमियों को भी पिनपिना दिया.

लाला सुखी  गब्बर को देखते ही गश खाने लगा क्योंकि वह गब्बर की क्रूरता उसके साथ रहते हुये देख चुका था. गब्बर ने उसकी टूटी टांग पर भी ठ्ठ मारे थे सो वह दर्द के मारे बैचेन हो रहा था....वह रहम की भीख मांगने लगा.

गब्बर सिंह बोला - तू...तू...किस मुंह से रहम की भीख मांगता है बे? हमरे साथ गद्दारी की सजा यही है कि अब गोली खा......पर हमरे पास इस समय ना बंदूक है... ना ही गोली? गब्बर ने वहां थर थर कांप रहे घोडे के साथ वाले आदमियों पर नजर डाली. वो हाथ बांधे नजर झुकाये खडे रहम की भीख मांग रहे  थे.

उन लोगों ने कहा - सरदार, हमको छोड दो...तुम्हारे पांव पडते हैं. हमें तो इस लाला सुखीराम ने ही तुम्हारे बारे में डींग हांकते हुये कहानियां सुनाई थी. हम भी गांव के साहुकार से बचकर भागे लोग हैं और यहां रहते हैं. एक दिन यह घोडा आकर हमको मनुष्यों की भाषा में बोलने लगा तो हमने  चमत्कारी घोडा समझकर इसकी सेवा पानी करनी शुरू कर दी.

सारे हालातों का जायजा लेने के बाद गब्बर इस नतीजे पर पहुंचा कि ये भानगढ के खंडहर नया अड्डा बनाने के लिये सबसे उपयुक्त रहेंगे. क्योंकि यहां भूत प्रेतों के डर से कोई आता जाता भी नही है. गब्बर ने वहां मौजूद आदमियों से सलाह मशविरा किया और उनको अपनी नई गैंग में शामिल करने का फ़ैसला कर लिया. आखिर गब्बर को नई शुरूआत तो करनी ही थी. वो लोग भी समाज के सताए हुये थे, उन्होंने तुरंत गब्बर को अपना सरदार मान लिया और गब्बर ने एक कांटे से अपनी अंगुली से खून निकाल कर उनको खून का टीका लगाते हुये अपना चेला बना लिया. गब्बर ने उनको कुछ गोली बारूद का इंतजाम करने को कहा. दो लोग उसी समय निकल गये.

हथियार उस समय कोई था नही. घोडे को जिंदा छोडना भविष्य के लिए एक बेवकूफ़ी होती. गब्बर  घोडे को लठ्ठ  मार मार कर थक गया पर घोडा बिना गोली के मर नही सकता था.

थोडी ही देर में वो दो लोग एक बंदूक और कुछ गोलियां लेकर आ गये. अब गब्बर ने घोडे पर बंदूक तान दी और बोला - अब तू मरने के लिये तैयार हो जा....तूने...गब्बर के साथ....डाकू गब्बर सिंह के साथ गद्दारी की है....जिस गब्बर के नाम से बच्चे पढ पढ कर अफ़सर..नेता बन बन कर देश को लूटने लगे....उस गब्बर के साथ गद्दारी.....? तुझे तो मैं तडपा तडपा कर मारूंगा....

गब्बर सिंह बंदूक की लिबलिबी दबाने ही वाला था कि घोडा बने लाला सुखी राम ने कहा - गब्बर ठहर जा...ठहर जा....वर्ना बहुत पछतायेगा. यदि तू मेरी जान बख्स दे और मेरी टूटी टांग का आपरेशन करवाकर प्लास्टर करवाने का वादा करे तो मैं तुझे एक ऐसी राज की बात बता सकता हूं...जिसे कोई नही जानता और तेरे लिये ये जानना बेहद जरूरी है.....देख ले गब्बर....

गब्बर सोच में पड गया कि आखिर इसके पास वो कौन सा राज है? जिसे जानना उसके लिये बहुत जरूरी है? गब्बर ने लिबलिबी से अपनी अंगूली हटा ली और सोच में पड गया.....गब्बर सोच रहा था कि ये घोडा होकर भी मनुष्यों की भाषा में बात करता है.... ये तिलस्मी घोडे जैसा लगता है.... जरूर कुछ चमत्कारी राज इसके पास होगा....क्या किया जाये?

तभी जो आदमी बंदूक लेकर आया था वह बोला - सरदार...इसे अभी मारने की क्या जल्दी है? इसकी टांग तो टूटी पडी है ये चल फ़िर भी नही सकता, यहीं एक जगह पडा लीद करता रहता है. पहले इससे वो राज की बात पूछ लो...फ़िर गोली मार देना...ये कहां भागकर जायेगा?

गब्बर को उसकी बात पसंद आई. उसने खुश होकर पूछा - तेरा नाम क्या है रे कालिया? तू तो बहुत समझदार लगता है?

वो आदमी बोला - सरदार नाम से क्या फ़र्क पडता है? आपने मुझे कालिया कह कर बुलाया तो आज से मेरा नाम कालिया ही समझ लिजिये.

कालिया की बात से गब्बर खुश हो गया और उसको कहा - जाओ हमारे लिये  खाने पीने का इंतजाम करो...हमें बहुत भूख लगी है. कालिया अपने साथ एक आदमी को लेकर बाहर निकल गया.

आप  यह अंदाजा लगाकर बताईये कि घोडा बने लाला सुखीराम के पास ऐसा कौन  सा राज है जो वो गब्बर को बताने के एवज में अपनी जान बचाना चाहता है?


डोयिचे वेले बनाम सोते की भैंस का पाडा.


जब बोफ़ोर्स कांड हुआ था तब साईज में छोटा होते हुये भी उस समय के मान से बहुत बडा घोटाला था. ताऊ के रामप्यारे को आखिर तक बोफ़ोर्स का मतलब ही नही समझ आया. रामप्यारे के लिये बोफ़ोर्स कांड का मतलब घोटाला ना होकर कोई अन्होनी दुखद घटना जैसी बात थी. आज तक कहीं कोई दुख या संवेदनात्मक घटना हो तो रामप्यारे बस यही कहता है कि ताऊ आज तो बोफ़ोर्स हो गया...कितनी ही बार समझाया पर उसके लिये तो बोफ़ोर्स के अपने ही मायने थे.

ताऊ अभी दो सप्ताह की जेल (ससुराल) यात्रा पर  (जयपुर - दिल्ली)  गया था और पीछे से ये डायचा वाला कांड हो गया. वापस लौटने पर  रामप्यारे ने बताया कि ताऊ तुमको तो जेल यात्रा करने से फ़ुरसत नही है और यहां पीछे से बोफ़ोर्स कांड जैसा ही डायचा वाला कांड हो गया. ताऊ की समझ में कुछ आया नही. जेल यात्रा के दरम्यान ही मोबाईल पर इससे संबंधित कुछ पोस्ट देखी थी पर उन पर कुछ ज्यादा ध्यान नही दिया.

आज अरविंद मिश्र जी की पोस्ट    एवम खुशदीप जी की पोस्ट से डायचा वाला कांड का माजरा समझने की कोशीश ताऊ कर रहा था कि इतनी ही देर में रामप्यारे आ टपका.. और आते ही बोला - ताऊ, डायचा वाला  कांड तो अब बोफ़ोर्स से भी बडा हो गया.

ताऊ  ने उसे डांटते हुये कहा - अरे निपट मूर्ख...कहीं के...मैने गलती की जो तेरा नाम रामप्यारे रख दिया..तेरा नाम तो अक्ल मारे रखना था.

रामप्यारे नाराज होते हुये बोला - ताऊ, आखिर मैने  इसमे कौन सी गलती कर दी? अगर डायचा वाला कांड हुआ है और मैं जोर लगाकर आपको बता रहा हूं तो आप मुझे शाबासी देने की बजाय लतिया रहे हैं? ये भी भला कोई बात हुई?

ताऊ बोला  - रामप्यारे...अगर तू चाहता तो तू खुद भी ये कांड कर सकता था...पर तुझे तो रेंकने से ही फ़ुरसत नही मिलती तो कांड कहां से करेगा? इसमें कौन सी बडी बात थी? अगर तू इधर उधर रेंकने की बजाये अपनी नजर ताजा तरीन हालातों पर रखता तो आज हम इस कांड के हीरो होते...पर तूने तो मेरा नाम ही मिट्टी में मिला दिया...नामाकूल कहीं का...

रामप्यारे मुंह लटका कर बोला - ताऊ मैं कितना तो पढता रहता हूं...सारे दिन मोबाईल से भी नेट-सर्फ़िंग में लगा रहता हूं...और आप मुझे इस तरह डांट रहे हैं....

ताऊ बोला - अबे उल्लू के चर्खे.....तू नेट पर क्या सर्फ़िंग करता है यह मुझे मालूम है...तू तो बस जवान रामप्यारियो (गधियों) से नैन मटक्का करता है...अब मेरा मुंह मत खुलवा...तू जो नेट पर पढता है वह सब मुझे मालूम है. अगर तू काम की बात पढता होता तो हमारे लिये डायचा वाला कांड जीतना कोई मुश्किल थोडी होता

रामप्यारे ने आश्चर्य से पूछा - ताऊ, मानता हूं कि मैं थोडा बहुत नैन मटक्का कर लेता हूं और इधर उधर के गुरू घंटालों का साहित्य  भी पढ  लेता हूं...पर मैं यह कांड  कैसे कर सकता था?

ताऊ ने कहा - तू सक्षम था रामप्यारे इस कांड को अंजाम देने में...पर सोये हुये की घोडी तो भैंस का पाडा ही देती है....सो भुगत अब इस  भैंस के पाडे को.....

रामप्यारे ने दांत बाहर निकालते हुये पूछा - ताऊ ये घोडी को भैंस का पाडा कैसे हो सकता है? आखिर ये कांड क्या है? क्या ये भी कोई बडा भैंस की पाडा वाला कांड  हुआ था क्या?

ताऊ बोला - रामप्यारे सुन, एक बार हम दिन छिपने के समय  घर के बाहर बैठे हुक्का पी रहे थे कि एक शानदार घोडी पर एक आदमी आया. रात को रूकने की इजाजत मांगने लगा क्योंकि अंधेरा हो चुका था और आगे घना जंगल वाला रास्ता था. हमने उसे खाना खिलाया और रूकने के लिये खटिया और बिस्तर दे दिया.

रामप्यारे ने फ़िर बीच में ही  पूछा....पर इस कहानी का डायचा वाला से क्या संबंध...?

ताऊ ने नाराज होकर उसे डांटा और कहा--बावलीबूच..कहीं का....बीच में मत बोल..चुपचाप कहानी सुन और इसे गुन, सब समझ जायेगा.

घोडी को खूंटे से बांधकर घुडसवार खटिया पर लेट गया. दिन भर का थका मांदा था सो गहरी नींद में सो गया. और उसके सोते ही हमारी नीयत उसकी खूबसूरत घोडी पर खराब हो गई. हमने सोचा कि इसकी घोडी तो हमारी होनी चाहिये...पर यह संभव नहीं था...फ़िर उसी समय उस घोडी ने एक सुंदर सा बच्चा दे दिया.

बच्चा देखकर हमारी तबियत बाग बाग हो गई कि घोडी ना सही उसका बच्चा ही सही, कुछ दिन में ये भी जवान घोडा बन जायेगा. हमने अपनी ताजा ब्याई हुई भैंस का पाडा उसकी घोडी के पास कर दिया और उसकी घोडी का बच्चा अपनी भैंस के पास कर दिया.

सुबह घुडसवार को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसकी घोडी ब्याने वाली थी पर ये भैंस का पाडा कैसे दिया? घुडसवार ने ताऊ से पूछा - ताऊ ये पाडा मेरी घोडी का नही है, तुम्हारी नियत खराब हो रही है. लाओ सीधे से मेरी घोडी का बच्चा दो और अपना पाडा संभालो. नही तो मैं पंचायत कराऊंगा.

ताऊ बोला - तू पागल हुआ है क्या? तेरी घोडी ने ही ये पाडा दिया है, पंचायत कराले...सांच को आंच नही. सारा गांव...सारे पंच जानते हैं कि ताऊ कितना शरीफ़ आदमी है. आसपास के गांवों में मेरी शराफ़त और नेकनियति का डंका बजता है.

घुडसवार ने पंचायत बुलवा ली...साम दाम दंड भेद सब आजमा लिये पर पंच, सरपंच,चौधरी, दरोगा तक सबके सब ताऊ के ही आदमी थे सो फ़ैसला आखिर में ताऊ के हक में जाता. कुल मिलाकर घुडसवार  अपनी घोडी का बच्चा ताऊ से वापस नही ले सका. थक हार कर उसे भी कुछ कुछ विश्वास होने लगा कि हो सकता है उसकी घोडी ने भैंस का पाडा ही जना हो...वह बोला - ताऊ तूने सरे आम मेरी आंखों में धूल झौंकी या फ़िर सही में मेरी घोडी ने भैंस का पाडा ही जना? मुझे सच सच बता तो दे.

ताऊ बोला - बावलीबूच...सोते हुये आदमी की घोडी तो भैंस का पाडा ही जनेगी.

ताऊ के मुंह से यह शुद्ध तत्व ज्ञान का उपदेश सुनकर  घुडसवार तुरंत  वहां से यह सोचकर  चलता बना कि अभी तो इस तत्वज्ञानी ताऊ ने मेरी घोडी का बच्चा ही हथियाया है अब कहीं समूची घोडी ही ना कब्जा करले...

रामप्यारे बोला - वाह ताऊ वाह...तुमने तो मेरी आंखे ही खोल  दी...अब अगले साल ये डायचा वाला कांड मैं ही करूंगा...अब नही सोऊंगा...रोज बिहाने बिहाने ही उठ कर कांड किया करूंगा.

"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले" भाग -1


फ़िल्म शोले के सभी चरित्र अपने आप में इतनी कसावट लिये हुये थे कि हर चरित्र दर्शकों के दिल में बस गया. फ़िल्म सर्वकालिक हिट रही. इसके किरदारों के पीछे की कहानी कोई नही जानता. जैसे किसी को ये नही मालूम की डाकू गब्बर सिंह के पिता कौन थे? सिर्फ़  पिता का नाम हरिसिंह मालूम है.  सभी किरदारों के पिछले जन्म का इतिहास क्या है?  इन्हीं सब सवालों के जवाब देता हुआ हमारा यह ताऊ टीवी धारावाहिक है "हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले" जिसमे आप इन किरदारों के  वर्तमान जन्म के साथ साथ अगले पिछले जन्म की कहानी भी जान पायेंगे.

"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले"  
(भाग -1)

बहुत समय पहले की बात है. नदी किनारे बसा एक गांव था जिसका नाम था श्यामगढ. खुशहाल किसानों का गांव, कुछेक घर दूसरी जातियों के भी थे. गांव में खूब भाईचारा था. इसी गांव में एक गबरू जवान हरिसिंह भी रहता था. समय आने पर एक सुंदर सी कन्या से इसकी शादी हुई. दोनों अपना खुशहाल जीवन बिता रहे थे. 

डाकू गब्बर सिंह बचपन में अपने  माता पिता के साथ

समय बीतने के साथ इनको गणेश नाम का एक होनहार पुत्र  हुआ. धीरे धीरे बालक बडा होने लगा. हरिसिंह की पत्नि ने उसे पढाने की इच्छा जताई पर गांव में कोई स्कूल नही था. हरिसिंह ने आखिर तय किया कि वो अपने बेटे को शहर पढने के लिये भेजेगा. एक दिन  हरिसिंह अपने बेटे को लेकर  उसका स्कूल में दाखिला कराने शहर रवाना हुआ. 

गांव से थोडी ही दूर निकला होगा कि उस समय का कुख्यात डाकू शान सिंह जो रामगढ का रहने वाला था,  सामने टकरा गया. पुरानी दुश्मनी के चलते दोनों में मुकाबला होने लगा, भयंकर तलवार बाजी होने लगी. अपने बेटे को हरिसिंह ने झाडियों के पीछे छिपा दिया था. इस लडाई में हरिसिंह  मारा गया.

अबोध बालक यह दृष्य देखकर सदमें में आ गया....घर का रास्ता भी भूल गया...उसे याद था तो सिर्फ़...अपने दम तोडते बाप का चेहरा और दूसरा चेहरा रामगढ निवासी डाकू शान सिंह का...जिंदगी के थपेडे खाता हुआ गणेश बडा हुआ. उसे कुछ भी याद नही था...सिवाय मरते बाप के चेहरे और रामगढिया डाकू शान सिंह के चेहरे के....गणेश के मन में सिर्फ़ बदले की आग जल रही थी. 

समय बीतते बीतते गणेश गबरू जवान हो गया और एक दिन उसने अपना बदला पूरा करने के लिये अपना खुद का एक डाकू गैंग बना लिया. गणेश आतंक का पर्याय बन गया. और इसी गणेश का नाम पड गया डाकू गब्बर सिंह........

डाकू गब्बर सिंह आवाज पर अचूक निशाना साधते हुये


वह आसपास के गांवों मे जमकर लूटमार करता पर रामगढ से उसे विशेष नफ़रत थी. इतनी नफ़रत थी कि वो पूरे रामगढ वासियों को तडपा तडपा कर मारना चाहता था.  बचपन की नफ़रत थी....जैसे  ही  अपने पिता की याद आती...उसका खून खौल उठता...उस समय वो गुस्से में उबल पडता...जो भी सामने आता उसे तडपा तडपा कर मारता. उसे लगता जैसे वो डाकू शान सिंह को ही मार रहा है. 

आसपास के गांवों मे अम्माओं को अपने बच्चों को डराकर बात मनवाने का एक नाम मिल गया...बेटा पढ ले वर्ना डाकू गब्बर सिंह उठा ले जायेगा.  और डाकू गब्बर सिंह का समाज को ये योगदान है कि उसके डर से बच्चों ने इतनी पढाई की...कि आगे जाकर वो बडे सरकारी अफ़सर और नेता तक बने. 

ये बात अलग है कि वो गब्बर के डर से पढे लिखे थे इसलिये गब्बर के सारे गुण उनमे आ गये. गब्बर  बंदूक से लोगों को लूटता था पर इन लोगों ने बिना बंदूक के  सफ़ेद कपडे पहनकर जनता को लूटना शुरू कर दिया. इन गब्बर के चेलों ने लूट लूट कर जनता का सारा धन स्विस बैंकों में पहुंचा दिया....पर डाकू गब्बर सिंह की कहानी अभी बाकी है.  

एक दिन रामगढ के कुछ लोगों को लूटकर गब्बर ने कई मासूमों की जघन्य हत्या कर डाली और भागते समय उसके घोडे ने धोखा दे दिया क्योंकि ये जो नया घोडा खरीदा था वो पिछले जन्म में रामगढ का लाला सुखीराम था...जो गब्बर के हाथों मारा गया था...बस लाला सुखीराम भी बदला लेने के लिये  पुन: जन्म लेकर घोडा बन गया और जवान होते ही गब्बर के अस्तबल में पहुंच गया. 

रामगढ के लोगों का कत्लेआम करके वापस भागते समय पुलिस गब्बर के पीछे लगी थी. एक जगह मौका देखकर गब्बर के घोडे ने अपना काम दिखा दिया. वो कुछ इस तरह गिरा कि उसके नीचे गब्बर की टांग फ़ंस गई और गब्बर पुलिस के हाथों गिरफ़्तार होकर जेल पहुंच गया. वर्ना पुलिस की  क्या ताकत कि वो गब्बर को हाथ भी लगा सके?

पुलिस ने ठोस धाराएं लगाते हुये गब्बर को अदालत में प्रस्तुत किया. जाहिर है रिकार्ड धारी गब्बर को कई बार फ़ांसी होनी थी. 

कोर्ट में गब्बर से अपना वकील करने के लिये पूछा गया तो गब्बर ने कहा - अपने केस की पैरवी मैं स्वयं ही करूंगा जजसाहब. मुकदमा शुरू हुआ.

गब्बर परेशान था, उसे मौत सामने दिखाई दे रही थी पर वो अपने दिमाग में कोई युक्ति सोच रहा था. जेल तोड कर भागने के लिये समय चाहिये था क्योंकि अभी पहरा बहुत सख्त था. 

एक दिन फ़ाईनल बहस के लिये मुकदमा शुरू हुआ.

सरकारी वकील ने कहा - मी लार्ड, डाकू गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरी सिंह ना सिर्फ़ एक जघन्य हत्यारा है बल्कि इसने मासूम बच्चों की हत्या भी की है अत: इसे तुरंत फ़ांसी की सजा दी जानी चाहिये.

बीच में ही डाकू गब्बर बोला - अर.. जज्जी... मन्नै इस बात पै कसूताई ऐतराज सै...वो क्या कहवैं...हां माई बाप....

गब्बर के इतना कहते ही कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया...कि ये किस बात का आबजेक्शन करेगा? पर जज साहब के गब्बर की बात समझ में नही आई कि वो किस भाषा में क्या बोल रहा है?

जज साहब ने कहा -  तुमको जो भी कहना है...हिंदी या अंग्रेजी में कहो.

गब्बर बोला - अजी जज्जी...मन्नै तो यो ही भाषा आवै सै...हिंदी..अंग्रेजी कै होवै सै? मन्नै के बेरा?

जज साहब ने कहा - तुम कोई वकील क्यों नही कर लेते? जो तुम्हारी बात को हमें समझा सके...

गब्बर बोला - अजी जज्जी....थम घणी बावली बात कररे सो....बात थारी समझ म्ह नही आ रही सै तो वकील थम करो...मैं क्यूं कर वकील करूंगा...?

जज साहब ने माथा पीट लिया, इस निपट गंवार डाकू गब्बर की बातों पर और मुकदमे की कारवाई आगे बढाते हुये फ़ैसला देने के लिये आखिरी बार गब्बर से पूछा -. हां तो गब्बर सिंह तुम अपना अपराध कबूल करते हो?

गब्बर बोला - जज साहब, अभी अभी सरकारी वकील साहब ने कहा कि डाकू गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरी सिंह..... मुझे इस बात पर ऐतराज है....इन्होने मेरे पिताजी को स्वर्गीय कहा है अब इस बात का क्या भरोसा कि मेरे पिताजी स्वर्ग में हैं या नर्क में? तो जब तक इस बात का फ़ैसला नही हो जाता कि मेरे पिताजी स्वर्गीय हैं या नारकीय... मुझे  गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरीसिंह के नाम से नही बुलाया जाना चाहिये.

अब सरकारी वकील भी पेशोपेश में...उसे गब्बर सिंह वल्द नारकीय हरि सिंह कहके भी नही बुलाया जा सकता और जज साहब भी परेशान कि इसने भारी आफ़त खडी कर दी...  बिना बाप के नाम से मुलजिम को सजा कैसे दी जाये?

गब्बर सिंह ने यह सब मुकदमें में विलंब करने के लिये ही किया था, जज साहब यह कहते हुये कोर्ट अगले एक महिने के लिये मुल्तवी कर दी कि पहले यह जांच की जाये कि गब्बर सिंह के पिता स्वर्ग में हैं या नरक मे...तब तक के लिये यह मुकदमा स्थगित किया जाता है.

और इसी दर्म्यान जेल से डाकू गब्बर सिंह फ़रार हो जाता है.......आप अंदाजा लगाईये कि वो सीधा कहां पहुंचेगा? जिस पाठक का अंदाजा सही निकलेगा उसका नाम इस सीरीयल के लेखकों में सम्मिलित किया जायेगा.

(शेष अगले अंक में)

ख्वाबों के मानिंद, देखते देखते गुजर गई...


अभी चंद दिन पहले ही भाई डा.दराल साहब ने एक पोस्ट लिखी थी   फ़ासिल बनने की क्या जल्दी है-- . जो उनके सरल  स्वाभाविक मन के विचार थे. इस पोस्ट को पढने के बाद मन में कुछ अंतर्द्व्दं सा था जिसे मैने पहले कभी महसूस नही किया. 

मेरे लेखन का ना तो कोई विषय है, ना कोई उद्देष्य है, बस जो मन में आया, तुरंत लिख मारा और पोस्ट तैयार. डाक्टर दराल की पोस्ट के बाद मैने अपने विचारों को देखना परखना उनसे बातचीत करना शुरू किया. इस आत्म निरीक्षण में मैने जो पाया वह अदभुत था.

मैने पाया कि कहानी, गीत-गजल, गंभीर और हास्य यानि हर तरह के विचार समय समय पर उमडते रहे...पर मै उनमें से सिर्फ़ हास्य को ही पकड पाया....बाकी के विचारों को पकडने की कोशीश की तो उन्होनें टका सा जवाब दे दिया कि ताऊ अपना काम करो, हास्य को पकडो, बाकी के हम तो साहित्य हैं... हमारे साथ तुम्हारी दोस्ती नहीं जमेगी यह कहकर वो भागने लगे.

अब सीधे रास्ते  मान जाये तो फ़िर ताऊ काहे का और किसका? वो विचार जब भाग रहे थे तब ताऊ ने भी उनके पीछे दौड लगा दी.... बाकी तो काफ़ी तेजी से भाग निकले पर एक नन्हीं सी बच्ची  ताऊ की गिरफ़्त में आ गई. 

ताऊ ने उससे पूछा तू कौन है? तू साहित्य के जितनी बडी तो नहीं लग रही? 
वो बोली - ताऊ, मेरा नाम कविता समझले...गीता समझ ले....जो भी चाहे समझ ले... मैं भी साहित्यकारों की बपौती हूं. तू मुझे छोड दे वर्ना तू मेरी भी फ़जीहत करेगा.

ताऊ ने सोचा - क्या पता ये सच बोल रही है या झूंठ? क्योंकि ताऊ खुद छटा हुआ .. मक्कार...झूंठों का सरदार  उठाईगिरा..डाकू ठहरा, तो दूसरे भी उसे वैसे ही लगते हैं. ताऊ ने उस गीता या  कविता को पिंजरे में बंद करके भाई दिगंम्बर नासवा के पास यह कहते हुये  रवाना कर दिया कि भाई इसे देखो और बताओ कि ये क्या है? यदि ये झूंठ बोल रही हो और कविता या गीता ना हो तो मैं इसके हाईकू नाम के बढिया पकवान बना डालूंगा.

लौटती मेल से दिगम्बर  भाई का जवाब आया कि ताऊ ये सच बोल रही है इसके हाईकू पकवान मत बनाना,  वर्ना इसकी स्वाभाविकता खो जायेगी. इसको ऐसे ही रहने दोगे तो  ये गंभीर प्रेम लेखन में आपकी परिपक्वता दर्शायेगी....इसे ऐसे ही रहने दें. तो अब ताऊ के  दिमाग में आयी कविता आपके सामने हाजिर है.






वो बातें वो मुलाकाते
वो चंद हंसीन रातें
ख्वाबों के मानिंद, देखते देखते गुजर गई

तेरे होने से
धूप में भी छांव का एहसास
बीते वो लम्हें, जीवन में जैसे तपिश आ गई

कहां से चलकर
कहां आ गये हम
किससे पूछूं, राहें क्यों अब  जुदा हो गई

खाई थी कसमें
जन्मों के बंधन की
फ़िर क्यों अचानक, जिंदगी रूसवा हो गई

बुने थे 
ख्वाब हमने
साथ साथ  ये करेंगे, वो करेंगे
वक्त से पहले ही,  जिंदगी दगा दे गई

तू जहां भी रहे
गुलजार रहना ए जिंदगी
हमें तो बस, गमजदा रहने की आदत सी हो गई

सोचा था हमने जीवन

रहेगा  गुलजार यूं ही 
वक्त से पहले ही, जीवन की सांझ आ गई

सांझ की  बेला में
मिला जो साथ रब का
जीवन सफ़र में,  फ़िर से जैसे बहार आ गई