अभी चंद दिन पहले ही भाई डा.दराल साहब ने एक पोस्ट लिखी थी फ़ासिल बनने की क्या जल्दी है-- . जो उनके सरल स्वाभाविक मन के विचार थे. इस पोस्ट को पढने के बाद मन में कुछ अंतर्द्व्दं सा था जिसे मैने पहले कभी महसूस नही किया.
मेरे लेखन का ना तो कोई विषय है, ना कोई उद्देष्य है, बस जो मन में आया, तुरंत लिख मारा और पोस्ट तैयार. डाक्टर दराल की पोस्ट के बाद मैने अपने विचारों को देखना परखना उनसे बातचीत करना शुरू किया. इस आत्म निरीक्षण में मैने जो पाया वह अदभुत था.
मैने पाया कि कहानी, गीत-गजल, गंभीर और हास्य यानि हर तरह के विचार समय समय पर उमडते रहे...पर मै उनमें से सिर्फ़ हास्य को ही पकड पाया....बाकी के विचारों को पकडने की कोशीश की तो उन्होनें टका सा जवाब दे दिया कि ताऊ अपना काम करो, हास्य को पकडो, बाकी के हम तो साहित्य हैं... हमारे साथ तुम्हारी दोस्ती नहीं जमेगी यह कहकर वो भागने लगे.
अब सीधे रास्ते मान जाये तो फ़िर ताऊ काहे का और किसका? वो विचार जब भाग रहे थे तब ताऊ ने भी उनके पीछे दौड लगा दी.... बाकी तो काफ़ी तेजी से भाग निकले पर एक नन्हीं सी बच्ची ताऊ की गिरफ़्त में आ गई.
ताऊ ने उससे पूछा तू कौन है? तू साहित्य के जितनी बडी तो नहीं लग रही?
वो बोली - ताऊ, मेरा नाम कविता समझले...गीता समझ ले....जो भी चाहे समझ ले... मैं भी साहित्यकारों की बपौती हूं. तू मुझे छोड दे वर्ना तू मेरी भी फ़जीहत करेगा.
ताऊ ने सोचा - क्या पता ये सच बोल रही है या झूंठ? क्योंकि ताऊ खुद छटा हुआ .. मक्कार...झूंठों का सरदार उठाईगिरा..डाकू ठहरा, तो दूसरे भी उसे वैसे ही लगते हैं. ताऊ ने उस गीता या कविता को पिंजरे में बंद करके भाई दिगंम्बर नासवा के पास यह कहते हुये रवाना कर दिया कि भाई इसे देखो और बताओ कि ये क्या है? यदि ये झूंठ बोल रही हो और कविता या गीता ना हो तो मैं इसके हाईकू नाम के बढिया पकवान बना डालूंगा.
लौटती मेल से दिगम्बर भाई का जवाब आया कि ताऊ ये सच बोल रही है इसके हाईकू पकवान मत बनाना, वर्ना इसकी स्वाभाविकता खो जायेगी. इसको ऐसे ही रहने दोगे तो ये गंभीर प्रेम लेखन में आपकी परिपक्वता दर्शायेगी....इसे ऐसे ही रहने दें. तो अब ताऊ के दिमाग में आयी कविता आपके सामने हाजिर है.
वो बातें वो मुलाकाते
वो चंद हंसीन रातें
ख्वाबों के मानिंद, देखते देखते गुजर गई
तेरे होने से
धूप में भी छांव का एहसास
बीते वो लम्हें, जीवन में जैसे तपिश आ गई
कहां से चलकर
कहां आ गये हम
किससे पूछूं, राहें क्यों अब जुदा हो गई
खाई थी कसमें
जन्मों के बंधन की
फ़िर क्यों अचानक, जिंदगी रूसवा हो गई
बुने थे ख्वाब हमने
साथ साथ ये करेंगे, वो करेंगे
वक्त से पहले ही, जिंदगी दगा दे गई
तू जहां भी रहे
गुलजार रहना ए जिंदगी
हमें तो बस, गमजदा रहने की आदत सी हो गई
सोचा था हमने जीवन
रहेगा गुलजार यूं ही
वक्त से पहले ही, जीवन की सांझ आ गई
सांझ की बेला में
मिला जो साथ रब का
जीवन सफ़र में, फ़िर से जैसे बहार आ गई
इस कविता को देख और उसकी फोटू देख तो किसी का लगाव हो जाय -ताऊ सही पकड़ा है आपने !
ReplyDeleteवड्डे पंगे ले रहे हो ताऊ !
ReplyDeleteकविता सच्चे मन की अभिव्यक्ति है .
वाह ! शानदार रचना !
ReplyDeleteकविवर ताऊ की जय हो !!
वाह ताऊ वाह !
रचना की प्रस्तुती के इस अंदाज ने साबित कर दिया कि ताऊ ने साहित्य के पीछे भागते हुए भी सबसे पहले पकड़ा हास्य नहीं छोड़ा : )
सोचा था हमने जीवन
ReplyDeleteरहेगा गुलजार यूं ही
वक्त से पहले ही, जीवन की सांझ आ गई
ताऊ मेरे, सादे शब्दों में अपने दिल की बात कहकर और शान्द्रा कविता में आज वाकई आपने दिल की गहराइयों को छु लिया।
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ReplyDeleteहास्य को ही पकड़े रहिए क्योंकि इसी का जमाना है।
ReplyDeleteकविता में अभिव्यक्त भाव हृदयस्पर्शी हैं ..... संभलकर रहें
ReplyDeleteताऊ (भाई) जी राम-राम .....
ReplyDeleteबड़ी अच्छी चीज़ लगी है आपके दिल के हाथ ....ये दिल को मिली है ,दिल से मिली है ..इससे दिल्लगी मत करना ..तन्हाई में बड़ी काम आएगी ...
मेरा कहा याद रखना ...
टांग खिचाई का हुनर तो है ....आज दिल भी चुरा लिया ....
शुभकामनायें!
स्वस्थ रहें!
वाह...ताऊ ...वाह!
ReplyDeleteबना दिया ना मूरख!
अरे कविता ही करनी थी तो इतनी बड़ी भूमिका बाधने की क्या जरूरत थी!
--
मूर्ख दिवस की बधाई हो...ंंंंंंंंंंं
ReplyDeleteतू जहां भी रहे
गुलजार रहना ए जिंदगी
हमें तो बस, गमजदा रहने की आदत सी हो गई
बढ़िया रूपक बढ़िया भाव संयोजन इसका विलोम देखिये -हुजूमे गम मेरी फितरत बदल नहीं सकते ,मैं क्या करूँ मुझे आदत है मुस्कुराने की .शुक्रिया ताऊ सा आपकी सादर टिप्पणियों का .हमारी संजीवनी है आपकी कही .
वाह ताऊ ... हा न कहते थे आप परिपक्व कवि हो गए हो ...
ReplyDeleteएक हास्य रचनाकार के भीतर गंभीर कवी को भी छुपा हुआ देख रही हूँ मै आपकी इस रचना में ताऊ जी, बहुत सुन्दर रचना है ....अंतिम पंक्तियाँ मन को छु गई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों की अभिव्यक्ति ,,बढ़िया रचना,,,
ReplyDeleteकविता तो बहुत अच्छी है.
ReplyDeleteअच्छी भावाभिव्यक्ति की है..
भूमिका रोचक बनायी है.
ताऊ के हायकू का अपना स्थान है.
मगर लगता है कविता रचना में भी आप माहिर हो रहे हैं.
ताऊ को प्रेरणा मिली , यह तो अच्छी बात है।
ReplyDeleteवैसे हास्य में भी गंभीर बातें कही जा सकती हैं।
अब तो ये बात ताऊ समझ गया लगता है। :)
लाजवाब. वक़्त हाथ से फिसलता जा रहा है. हमें खुशी है कि इस जीवन में ताऊ के दर्शन हो लिए, जन्म सफल हो गया!
ReplyDeleteकविता बहुत ही खूबसूरत है... ताऊ जी!
ReplyDelete~सादर!!!
क्या कहें पर आपके भाव हमें मुस्करा अवश्य जाते हैं, रुलाने के लिये हमारे ख्याल तो काफी थे।
ReplyDelete@ वक्त से पहले ही, जीवन की सांझ आ गई
ReplyDeleteवाह ताऊ ..
आज गंभीर कैसे महाराज ??
"हमें तो बस, गमजदा रहने की आदत सी हो गई" बहुत सुंदर. पकड़ ही लो इसे भी. हमें तो गश आ जाता है.
ReplyDeleteहाय रब्बा ! ताई क्या दगा दे गई ...?????
ReplyDeleteक्यूँ हुआ ? कैसे हुआ ...???कब हुआ ..?????
जिंदगी के कुछ ख्याब खुद-ब-खुद रूबरू हो गए :))
ReplyDeleteबुने थे ख्वाब हमने
ReplyDeleteसाथ साथ ये करेंगे, वो करेंगे
वक्त से पहले ही, जिंदगी दगा दे गई
ताऊ आपके रंग अनेक ,
वैसे ताऊ जी डॉट कॉम से ताऊ डॉट इन होना प्रोमोशन है या डिमोशन ? :)
ऐसा कुछ तो कभी सोचा ही नहीं था कि इस ब्लॉग पर पढ़ने को मिलेगा ..... हरकिरत जी की तरह मेरे मन में भी यही प्रश्न उठ रहे हैं ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
अरे ताऊ तनै या बहोत अच्छी लिख मारी है
ReplyDeleteसच्च बोलूं हूँ .........
मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
रागात्मक बिम्ब प्रेम की रीत का प्रीत के बंधन का विछोह के विस्तार का .
ReplyDeleteजेन फ़कीर की टिपण्णी यहाँ पढ़ें -
ReplyDeleteसुन्दर बोध कथा .गुनीजनों को रास्ता बताती .
हाईकू पकवान के लिए फ़्रेंचाइज़ी भी रखा जा सकता है..
ReplyDeleteकुछ सीखने की नीयत हो तो दिमाग की स्लेट खाली होनी चाहिए .बेहतरीन उद्धरण .
ReplyDeleteBahut achchi kavita lagi taauji :)
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ReplyDeleteवो बातें वो मुलाकाते
वो चंद हंसीन रातें
ख्वाबों के मानिंद, देखते देखते गुजर गई
ReplyDeleteवो बातें वो मुलाकाते
वो चंद हंसीन रातें
ख्वाबों के मानिंद, देखते देखते गुजर गई
शुक्रिया ताऊ सा .
ReplyDeleteवाह ताऊ उस छोटी सी नन्ही का ये हाल किया ..आखिर मनवा ही दिया की ताऊ हो और वो भी छंट हुए कविताऊ ...चलिए शुरुआत ऐसी है तो आगे क्या कहर धायेंगे.. मजे से तो आपके हाश्य में भी सरबोर हो गए..रही खाही कसर कविता ने पूरी कर दी ...लगे रहो ताऊ इसी उताई में...
ReplyDeleteवाह ताऊ उस छोटी सी नन्ही का ये हाल किया ..आखिर मनवा ही दिया की ताऊ हो और वो भी छंट हुए कविताऊ ...चलिए शुरुआत ऐसी है तो आगे क्या कहर धायेंगे.. मजे से तो आपके हाश्य में भी सरबोर हो गए..रही खाही कसर कविता ने पूरी कर दी ...लगे रहो ताऊ इसी उताई में...
ReplyDeleteवाह! बहुत खूबसूरत, सुन्दर भाव, आकर्षक प्रस्तुति. सांझ की बेला में
ReplyDeleteमिला जो साथ रब का
जीवन सफ़र में, फ़िर से जैसे बहार आ गई
ये ख्याल तो बहुत खूबसूरत है.
सादर.
वाह! बहुत खूबसूरत, सुन्दर भाव, आकर्षक प्रस्तुति. सांझ की बेला में
ReplyDeleteमिला जो साथ रब का
जीवन सफ़र में, फ़िर से जैसे बहार आ गई
ये ख्याल तो बहुत खूबसूरत है.
सादर.
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteआप तो आल राउंडर हैं...
ReplyDelete:-)
बधाई इस सुन्दर रचना के लिए.
सादर
अनु
वाह!ताऊ, आपने तो छोटकी से ही छक्का मार दिया .बहुत सुन्दर भाव .सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletelatest post वासन्ती दुर्गा पूजा
LATEST POSTसपना और तुम
आपकी नई पोस्ट का बेसब्री से इंतजार है .... आभार सार्थक टिप्पणी के लिए :)
ReplyDeleteकविता जीवन अर्थों से भरी है ...जीवन में सब रस आते है ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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