फ़िल्म शोले के सभी चरित्र अपने आप में इतनी कसावट लिये हुये थे कि हर चरित्र दर्शकों के दिल में बस गया. फ़िल्म सर्वकालिक हिट रही. इसके किरदारों के पीछे की कहानी कोई नही जानता. जैसे किसी को ये नही मालूम की डाकू गब्बर सिंह के पिता कौन थे? सिर्फ़ पिता का नाम हरिसिंह मालूम है. सभी किरदारों के पिछले जन्म का इतिहास क्या है? इन्हीं सब सवालों के जवाब देता हुआ हमारा यह ताऊ टीवी धारावाहिक है "हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले" जिसमे आप इन किरदारों के वर्तमान जन्म के साथ साथ अगले पिछले जन्म की कहानी भी जान पायेंगे.
"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले"
(भाग -1)
बहुत समय पहले की बात है. नदी किनारे बसा एक गांव था जिसका नाम था श्यामगढ. खुशहाल किसानों का गांव, कुछेक घर दूसरी जातियों के भी थे. गांव में खूब भाईचारा था. इसी गांव में एक गबरू जवान हरिसिंह भी रहता था. समय आने पर एक सुंदर सी कन्या से इसकी शादी हुई. दोनों अपना खुशहाल जीवन बिता रहे थे.
डाकू गब्बर सिंह बचपन में अपने माता पिता के साथ
कोर्ट में गब्बर से अपना वकील करने के लिये पूछा गया तो गब्बर ने कहा - अपने केस की पैरवी मैं स्वयं ही करूंगा जजसाहब. मुकदमा शुरू हुआ.
सरकारी वकील ने कहा - मी लार्ड, डाकू गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरी सिंह ना सिर्फ़ एक जघन्य हत्यारा है बल्कि इसने मासूम बच्चों की हत्या भी की है अत: इसे तुरंत फ़ांसी की सजा दी जानी चाहिये.
बीच में ही डाकू गब्बर बोला - अर.. जज्जी... मन्नै इस बात पै कसूताई ऐतराज सै...वो क्या कहवैं...हां माई बाप....
गब्बर के इतना कहते ही कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया...कि ये किस बात का आबजेक्शन करेगा? पर जज साहब के गब्बर की बात समझ में नही आई कि वो किस भाषा में क्या बोल रहा है?
जज साहब ने कहा - तुमको जो भी कहना है...हिंदी या अंग्रेजी में कहो.
गब्बर बोला - अजी जज्जी...मन्नै तो यो ही भाषा आवै सै...हिंदी..अंग्रेजी कै होवै सै? मन्नै के बेरा?
जज साहब ने कहा - तुम कोई वकील क्यों नही कर लेते? जो तुम्हारी बात को हमें समझा सके...
गब्बर बोला - अजी जज्जी....थम घणी बावली बात कररे सो....बात थारी समझ म्ह नही आ रही सै तो वकील थम करो...मैं क्यूं कर वकील करूंगा...?
जज साहब ने माथा पीट लिया, इस निपट गंवार डाकू गब्बर की बातों पर और मुकदमे की कारवाई आगे बढाते हुये फ़ैसला देने के लिये आखिरी बार गब्बर से पूछा -. हां तो गब्बर सिंह तुम अपना अपराध कबूल करते हो?
गब्बर बोला - जज साहब, अभी अभी सरकारी वकील साहब ने कहा कि डाकू गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरी सिंह..... मुझे इस बात पर ऐतराज है....इन्होने मेरे पिताजी को स्वर्गीय कहा है अब इस बात का क्या भरोसा कि मेरे पिताजी स्वर्ग में हैं या नर्क में? तो जब तक इस बात का फ़ैसला नही हो जाता कि मेरे पिताजी स्वर्गीय हैं या नारकीय... मुझे गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरीसिंह के नाम से नही बुलाया जाना चाहिये.
अब सरकारी वकील भी पेशोपेश में...उसे गब्बर सिंह वल्द नारकीय हरि सिंह कहके भी नही बुलाया जा सकता और जज साहब भी परेशान कि इसने भारी आफ़त खडी कर दी... बिना बाप के नाम से मुलजिम को सजा कैसे दी जाये?
गब्बर सिंह ने यह सब मुकदमें में विलंब करने के लिये ही किया था, जज साहब यह कहते हुये कोर्ट अगले एक महिने के लिये मुल्तवी कर दी कि पहले यह जांच की जाये कि गब्बर सिंह के पिता स्वर्ग में हैं या नरक मे...तब तक के लिये यह मुकदमा स्थगित किया जाता है.
और इसी दर्म्यान जेल से डाकू गब्बर सिंह फ़रार हो जाता है.......आप अंदाजा लगाईये कि वो सीधा कहां पहुंचेगा? जिस पाठक का अंदाजा सही निकलेगा उसका नाम इस सीरीयल के लेखकों में सम्मिलित किया जायेगा.
(शेष अगले अंक में)
समय बीतने के साथ इनको गणेश नाम का एक होनहार पुत्र हुआ. धीरे धीरे बालक बडा होने लगा. हरिसिंह की पत्नि ने उसे पढाने की इच्छा जताई पर गांव में कोई स्कूल नही था. हरिसिंह ने आखिर तय किया कि वो अपने बेटे को शहर पढने के लिये भेजेगा. एक दिन हरिसिंह अपने बेटे को लेकर उसका स्कूल में दाखिला कराने शहर रवाना हुआ.
गांव से थोडी ही दूर निकला होगा कि उस समय का कुख्यात डाकू शान सिंह जो रामगढ का रहने वाला था, सामने टकरा गया. पुरानी दुश्मनी के चलते दोनों में मुकाबला होने लगा, भयंकर तलवार बाजी होने लगी. अपने बेटे को हरिसिंह ने झाडियों के पीछे छिपा दिया था. इस लडाई में हरिसिंह मारा गया.
अबोध बालक यह दृष्य देखकर सदमें में आ गया....घर का रास्ता भी भूल गया...उसे याद था तो सिर्फ़...अपने दम तोडते बाप का चेहरा और दूसरा चेहरा रामगढ निवासी डाकू शान सिंह का...जिंदगी के थपेडे खाता हुआ गणेश बडा हुआ. उसे कुछ भी याद नही था...सिवाय मरते बाप के चेहरे और रामगढिया डाकू शान सिंह के चेहरे के....गणेश के मन में सिर्फ़ बदले की आग जल रही थी.
गांव से थोडी ही दूर निकला होगा कि उस समय का कुख्यात डाकू शान सिंह जो रामगढ का रहने वाला था, सामने टकरा गया. पुरानी दुश्मनी के चलते दोनों में मुकाबला होने लगा, भयंकर तलवार बाजी होने लगी. अपने बेटे को हरिसिंह ने झाडियों के पीछे छिपा दिया था. इस लडाई में हरिसिंह मारा गया.
अबोध बालक यह दृष्य देखकर सदमें में आ गया....घर का रास्ता भी भूल गया...उसे याद था तो सिर्फ़...अपने दम तोडते बाप का चेहरा और दूसरा चेहरा रामगढ निवासी डाकू शान सिंह का...जिंदगी के थपेडे खाता हुआ गणेश बडा हुआ. उसे कुछ भी याद नही था...सिवाय मरते बाप के चेहरे और रामगढिया डाकू शान सिंह के चेहरे के....गणेश के मन में सिर्फ़ बदले की आग जल रही थी.
समय बीतते बीतते गणेश गबरू जवान हो गया और एक दिन उसने अपना बदला पूरा करने के लिये अपना खुद का एक डाकू गैंग बना लिया. गणेश आतंक का पर्याय बन गया. और इसी गणेश का नाम पड गया डाकू गब्बर सिंह........
डाकू गब्बर सिंह आवाज पर अचूक निशाना साधते हुये
वह आसपास के गांवों मे जमकर लूटमार करता पर रामगढ से उसे विशेष नफ़रत थी. इतनी नफ़रत थी कि वो पूरे रामगढ वासियों को तडपा तडपा कर मारना चाहता था. बचपन की नफ़रत थी....जैसे ही अपने पिता की याद आती...उसका खून खौल उठता...उस समय वो गुस्से में उबल पडता...जो भी सामने आता उसे तडपा तडपा कर मारता. उसे लगता जैसे वो डाकू शान सिंह को ही मार रहा है.
आसपास के गांवों मे अम्माओं को अपने बच्चों को डराकर बात मनवाने का एक नाम मिल गया...बेटा पढ ले वर्ना डाकू गब्बर सिंह उठा ले जायेगा. और डाकू गब्बर सिंह का समाज को ये योगदान है कि उसके डर से बच्चों ने इतनी पढाई की...कि आगे जाकर वो बडे सरकारी अफ़सर और नेता तक बने.
ये बात अलग है कि वो गब्बर के डर से पढे लिखे थे इसलिये गब्बर के सारे गुण उनमे आ गये. गब्बर बंदूक से लोगों को लूटता था पर इन लोगों ने बिना बंदूक के सफ़ेद कपडे पहनकर जनता को लूटना शुरू कर दिया. इन गब्बर के चेलों ने लूट लूट कर जनता का सारा धन स्विस बैंकों में पहुंचा दिया....पर डाकू गब्बर सिंह की कहानी अभी बाकी है.
एक दिन रामगढ के कुछ लोगों को लूटकर गब्बर ने कई मासूमों की जघन्य हत्या कर डाली और भागते समय उसके घोडे ने धोखा दे दिया क्योंकि ये जो नया घोडा खरीदा था वो पिछले जन्म में रामगढ का लाला सुखीराम था...जो गब्बर के हाथों मारा गया था...बस लाला सुखीराम भी बदला लेने के लिये पुन: जन्म लेकर घोडा बन गया और जवान होते ही गब्बर के अस्तबल में पहुंच गया.
एक दिन रामगढ के कुछ लोगों को लूटकर गब्बर ने कई मासूमों की जघन्य हत्या कर डाली और भागते समय उसके घोडे ने धोखा दे दिया क्योंकि ये जो नया घोडा खरीदा था वो पिछले जन्म में रामगढ का लाला सुखीराम था...जो गब्बर के हाथों मारा गया था...बस लाला सुखीराम भी बदला लेने के लिये पुन: जन्म लेकर घोडा बन गया और जवान होते ही गब्बर के अस्तबल में पहुंच गया.
रामगढ के लोगों का कत्लेआम करके वापस भागते समय पुलिस गब्बर के पीछे लगी थी. एक जगह मौका देखकर गब्बर के घोडे ने अपना काम दिखा दिया. वो कुछ इस तरह गिरा कि उसके नीचे गब्बर की टांग फ़ंस गई और गब्बर पुलिस के हाथों गिरफ़्तार होकर जेल पहुंच गया. वर्ना पुलिस की क्या ताकत कि वो गब्बर को हाथ भी लगा सके?
पुलिस ने ठोस धाराएं लगाते हुये गब्बर को अदालत में प्रस्तुत किया. जाहिर है रिकार्ड धारी गब्बर को कई बार फ़ांसी होनी थी.
पुलिस ने ठोस धाराएं लगाते हुये गब्बर को अदालत में प्रस्तुत किया. जाहिर है रिकार्ड धारी गब्बर को कई बार फ़ांसी होनी थी.
कोर्ट में गब्बर से अपना वकील करने के लिये पूछा गया तो गब्बर ने कहा - अपने केस की पैरवी मैं स्वयं ही करूंगा जजसाहब. मुकदमा शुरू हुआ.
गब्बर परेशान था, उसे मौत सामने दिखाई दे रही थी पर वो अपने दिमाग में कोई युक्ति सोच रहा था. जेल तोड कर भागने के लिये समय चाहिये था क्योंकि अभी पहरा बहुत सख्त था.
एक दिन फ़ाईनल बहस के लिये मुकदमा शुरू हुआ.
सरकारी वकील ने कहा - मी लार्ड, डाकू गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरी सिंह ना सिर्फ़ एक जघन्य हत्यारा है बल्कि इसने मासूम बच्चों की हत्या भी की है अत: इसे तुरंत फ़ांसी की सजा दी जानी चाहिये.
बीच में ही डाकू गब्बर बोला - अर.. जज्जी... मन्नै इस बात पै कसूताई ऐतराज सै...वो क्या कहवैं...हां माई बाप....
गब्बर के इतना कहते ही कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया...कि ये किस बात का आबजेक्शन करेगा? पर जज साहब के गब्बर की बात समझ में नही आई कि वो किस भाषा में क्या बोल रहा है?
जज साहब ने कहा - तुमको जो भी कहना है...हिंदी या अंग्रेजी में कहो.
गब्बर बोला - अजी जज्जी...मन्नै तो यो ही भाषा आवै सै...हिंदी..अंग्रेजी कै होवै सै? मन्नै के बेरा?
जज साहब ने कहा - तुम कोई वकील क्यों नही कर लेते? जो तुम्हारी बात को हमें समझा सके...
गब्बर बोला - अजी जज्जी....थम घणी बावली बात कररे सो....बात थारी समझ म्ह नही आ रही सै तो वकील थम करो...मैं क्यूं कर वकील करूंगा...?
जज साहब ने माथा पीट लिया, इस निपट गंवार डाकू गब्बर की बातों पर और मुकदमे की कारवाई आगे बढाते हुये फ़ैसला देने के लिये आखिरी बार गब्बर से पूछा -. हां तो गब्बर सिंह तुम अपना अपराध कबूल करते हो?
गब्बर बोला - जज साहब, अभी अभी सरकारी वकील साहब ने कहा कि डाकू गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरी सिंह..... मुझे इस बात पर ऐतराज है....इन्होने मेरे पिताजी को स्वर्गीय कहा है अब इस बात का क्या भरोसा कि मेरे पिताजी स्वर्ग में हैं या नर्क में? तो जब तक इस बात का फ़ैसला नही हो जाता कि मेरे पिताजी स्वर्गीय हैं या नारकीय... मुझे गब्बर सिंह वल्द स्वर्गीय हरीसिंह के नाम से नही बुलाया जाना चाहिये.
अब सरकारी वकील भी पेशोपेश में...उसे गब्बर सिंह वल्द नारकीय हरि सिंह कहके भी नही बुलाया जा सकता और जज साहब भी परेशान कि इसने भारी आफ़त खडी कर दी... बिना बाप के नाम से मुलजिम को सजा कैसे दी जाये?
गब्बर सिंह ने यह सब मुकदमें में विलंब करने के लिये ही किया था, जज साहब यह कहते हुये कोर्ट अगले एक महिने के लिये मुल्तवी कर दी कि पहले यह जांच की जाये कि गब्बर सिंह के पिता स्वर्ग में हैं या नरक मे...तब तक के लिये यह मुकदमा स्थगित किया जाता है.
और इसी दर्म्यान जेल से डाकू गब्बर सिंह फ़रार हो जाता है.......आप अंदाजा लगाईये कि वो सीधा कहां पहुंचेगा? जिस पाठक का अंदाजा सही निकलेगा उसका नाम इस सीरीयल के लेखकों में सम्मिलित किया जायेगा.
(शेष अगले अंक में)
वाह !!! बेहतरीन,ये रीमेक बनाने करिश्मा सिर्फ आप कर सकते है,ताऊ, आभार,
ReplyDeleteRECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
sau topon ki salaami aapki soncj ko.
ReplyDeleteआगे पीछे की कहानी सत्यापित करनी पड़ेगी, पर एक बात तो सच है, कि आवाज पर निशाना लग जाता है।
ReplyDeleteबेहतरीन कथानक शानदार मोर्फिंग डाकू गब्बर सिंह के वेश में ब्लॉग तश्तरी की .
ReplyDeleteबेहतरीन कथानक शानदार मोर्फिंग डाकू गब्बर सिंह के वेश में ब्लॉग तश्तरी की .
ReplyDeleteअब समझी ये सफेदपोश गब्बर के ही बिरादरी के है मतलब ...रोचक है गब्बर की कहानी !
ReplyDelete@.इन्होने मेरे पिताजी को स्वर्गीय कहा है अब इस बात का क्या भरोसा कि मेरे पिताजी स्वर्ग में हैं या नर्क में?
अब्जेक्शन करने का यह तरीका निपट गंवार डाकू गब्बर का नहीं लगता बड़ा समझदारी का प्रश्न है जिसपर आजतक किसी ने अब्जेक्शन नहीं किया ...:)
जेल से फ़रार होकर उस घोड़े के पास पहुच गया होगा जिसकी वजह से जेल जाना पड़ा ...मजेदार है कहानी अगले अंक का इंतजार है !
हा हा हा | बेहतरीन | ये ज़रूर ५०० करोड़ का बिज़नस करेगी ;) ....
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
यानि कास्टिंग अभी चल ही रही है। लेकिन कास्टिंग काउच तो नहीं !
ReplyDeleteवैसे --- गब्बर भाग कै के माम्मा कै जा गा !!
गया होगा ठेक्के पै !
शान सिंह के पास ही जायेगा बदला लेने और कहाँ जायेगा .....:))
ReplyDeletebahut badhiya . anand aa gaya tauji ... mast
ReplyDeleteगब्बर सिंह सीधा साइबर कैफे गया होगा.....अपनी नयी पोस्ट ब्लॉग पर लगाने :-)
ReplyDeleteसादर
अनु
सही ढाला है आज के दौर में ....एकदम बढ़िया
ReplyDeleteTaau maharaj ki jai ho ......
ReplyDeletemere hishab se pahle wo jail se chutne ki khushi me apne adde pe jakar gana wana & dance vaigra karayega ....
शोले तो मात खा गया
ReplyDeletelatest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
वाह ! वाह ताऊ !!
ReplyDeleteआजकल गब्बर की तरह ही दिल्ली दुष्कर्म के आरोपी भी मुकदमा लम्बा खींचने के लिए कुछ ऐसे ही हथकंडे अपना रहे है !!
गब्बर सिंह को घोड़े के पास जाना चाहिए
ReplyDeleteगब्बर गया ठेके पे ...
ReplyDeleteअब सजा नहीं मिलेगी तो मुक्ति के लिये अपील कैसे होगी...
ReplyDeleteगब्बर सीधा घोड़े के पास गया होगा बदला लेने .... बढ़िया कथानक
ReplyDeleteडाकू गब्बर अब भाग के ताऊ की शरण में ही आने वाला है ... या फिर कराची वाले ... के घर ...
ReplyDeleteमज़ेदार और रोचक !:)
ReplyDeleteइस दबंग में क्या 'दबंग' के हीरो साहब भी आएँगे? तभी तो इसका नाम दबंग रक्खा गया है... :)
~सादर!!!
maerae ghar me haen aur maeri sharan mae haen germany kae kanun kae mutabik unko deport nahin kiyaa jasaktaa
ReplyDeletejis ko milna ho wahii aa jayae
बहुत रोचक मसाला पिक्चर ताऊ
ReplyDeleteमाँ वैष्णो देवी
वाह जज के भी तोते उड़ा दिए।
ReplyDeleteव्यंग्य विनोद और एक्शन से भरपूर यह प्रस्तुति पढ़िए पढ़िए पढ़िए .शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का जो हमारा उत्साह बढ़ाती हैं .
ReplyDeleteबड़ा जोरदार अदालती सीन है :-) मगर गब्बर सिंह के बचपन और जवानी के चेहरे में इतना फर्क ?
ReplyDeleteगब्बर के बचपन की कहानी ..
ReplyDeleteबड़ी दूर की सोची है ...
गणेश के बदले की दास्ताँ ...
बहुत ही रोचक!बाकि गणेश गबरू कहाँ गया होगा वहाँ से..मालूम नहीं .जवाब का इंतज़ार है,
फेर के होया ?
ReplyDeleteहर बार की तरह शानदार प्रस्तुति डाकू गब्बर सिंह
ReplyDeleteडाकू गब्बर सिंग!! :) :)
ReplyDelete