ताऊ महाराज धॄतराष्ट राजभवन में चिंता मग्न बैठे हैं, ब्लाग पुत्र दुर्योधन और ब्लागपुत्री दु:शला की नाफ़रमानियां बढती ही जा रही थी. इधर उनके चहेते मंत्री आपस में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर तोतलों को एक और मौका दे रहे थे. ताऊ महाराज धॄतराष्ट की सरकार हिलने लगी थी. उधर ताई महारानी से भी कुछ विशेष सहयोग नही मिल रहा था...महारानी की तबियत बुढौती मे नासाज चल रही थी.
ताऊ महाराज धॄतराष्ट जब भी परेशान होते थे तब भीष्म पितामह को याद कर लेते थे. आज भी पितामह और ताऊ महाराज धॄतराष्ट आपस में विचारमग्न थे. युवराज दुर्योधन को भीष्म पितामह समझा रहे थे कि वत्स दुर्योधन, दूसरों को अपमानित करना, बेनामी टिप्पणी करना यह अच्छी बात नही है. इससे ब्लागिंग का पतन होता है और अगर तुमने यही रवैया जारी रखा तो तुम्हारा ब्लाग पतन निश्चित है.
इस बात पर दुर्योधन उतेजित होकर बोला - पितामह, आप क्या चाहते हैं कि वो आकर मुझे गरियाते रहें? और मैं उनके तलुवे चाटता रहूं? नही पितामह नही, मैं ईंट का जवाब पत्थर से भी दूंगा और जरुरत लगी तो मानसिक ब्लेकमेल करके जनता का समर्थन भी हासिल करूंगा. मुझे लोगों का समर्थन और हमदर्दी हासिल करने की कला आ गई है, यह द्वापर नही है कि सारी हमदर्दी का टोकरा पांडव ही बटोर ले गये थे. अब मेरे साथ प्राक्सी सरवर भी है.
भीष्म पितामह बोले - वत्स, इस नीति पर हम भी कभी चले थे पर हमारा क्या हश्र हुआ? आज हम ब्लाग पोस्ट लिखने के काबिल ही नही रहे. अगर भूल से कभी कोई पोस्ट लिख भी दी तो कोई टिप्पणी को रोने वाला भी नही फ़टकता. हम दो चार जनों को मेल या फ़ोनिया कर बताते हैं तब जाकर कहीं दस पंद्रह टिप्पणी का इंतजाम होता है. हमने मठ में जितने चेले चमचे इकठ्ठे किये थे वो भी सब किनारा कर गये. हम आज अकेले सर शैया पर लेटे हैं. अत: वत्स तुम ऐसा मत करो.
पितामह की यह बात सुनकर ताऊ महाराज धॄतराष्ट ने पूछा - पर पितामह, आपको शर शैया पर लेटने की क्या आवश्यकता है? आप आराम से राजमहल में रहकर ब्लागिंग किजिये, यहां राजमहल में लेपटोप, हाईस्पीड नेट कनेक्शन, डेटाकार्ड और प्राक्सी सर्वर इत्यादि सभी कुछ तो उपलब्ध है. आप जिसकी चाहे उसकी खटिया खडी कर सकते हैं, हमारा दुर्योधन इन कामों में पारंगत हो चुका है....आप चाहे जिसे आपस में भिडवाकर बुढापे में घर बैठे मजे लूट सकते हैं.
पितामह बोले - नही वत्स धॄतराष्ट्र, अब और नही, हमने ब्लागिंग में लोगों को आपस में खूब लडाया भिडाया, खूब मजे लिये, पर अब और पाप की गठरी सर पर नही ले सकते. तुम जानते हो कि हम को शर शैया पर क्यों लेटना पडा है?
ताऊ महाराज धॄतराष्ट - नही तात श्री, आप बताये.
पितामह बोले - वत्स धॄतराष्ट्र, हमने बचपन में एक भंवरा पकड लिया था और खेल खेल में उसके शरीर को शूलों से बींध दिया और उस दुष्ट भंवरे ने हमको श्राप दे दिया कि जावो, जिस तरह तुमने मेरा शरीर शूलों से बींध दिया है उसी प्रकार एक दिन तुम्हारा शरीर भी शूलों से बींधा जायेगा, तब तुम्हें पता चलेगा की शूलों से बींधे जाने की वेदना क्या होती है? आह वत्स धॄतराष्ट्र... सच में..बडी वेदना हो रही है...इसीलिये हमने ब्लागिंग में भी श्राप और शूलों से बींधे जाने के डर से मजे लेने कम कर दिये हैं...यानि बुरा करने से बुराई ही हाथ लगती है वत्स....पर क्या करें... ये ससुरी ब्लागिंग की आदत पूरी तरह छूटती भी तो नही है.
(क्रमश:)
डरिये नही पितामह श्राप से खूब मजे चखाइये शर शैय्या से उतर समर मे अपनी चकरी चलाइये श्राप वाप कछु नहि लगेगा "हरि" का नाम लेते भर जाइये……अरु भवसागर पार हो जाइये…क्योंकि श्री रामचरित मानस की चौपाई कि यह कड़ी याद आ गई "कलजुग केवल नाम अधारा"
ReplyDeleteतात! मौज लेने का कोई भी मौका नहीं छूटना चाहिए। मौका छूट गया तो क्या ब्लॉगर और क्या ब्लॉगिंग। घोर नाईंसाफ़ी नहीं चलेगी। चेले-चपाटी तो दो दिन के होते हैं, बाकी मोर्चा तो खुद ही संभालना पड़ेगा। :))
ReplyDeleteवाह ताऊ जी ......सोचने पर मजबूर हूँ ...!
ReplyDeleteराम राम
जाने कितने समय बाद आना हुआ ,लगता है एक दिन छुट्टी वाले दिन , सब अगला पिछला पढना होगा ...ताऊभारत पढ रहे हैं ...मजे क्या कई लोगों ने तो ब्लॉगिंग ही कम कर दी है ताऊ ..अप्पन भी रफ़्तार थामने की कोशिश में ही हैं
ReplyDeleteक्रमशः! मतलब ऐसे तीर और भी चलेंगे!!भगवान बचाये।
ReplyDeleteदुर्योधन होश में आओ। पितामह को शीश नवाओ।।
मौज लेना कम करो ताउ, किसी दिन कोई खाट खड़ी कर देगा।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ताऊ जी राम राम ..आजकल कहा हो दिखाई ही नहीं देते हो .....महारा ब्लॉग पर भी कम ही आओ हो /..
ReplyDeleteधूर्तराष्ट्र का स्टिंग ऑपरेशन सही चल रहा है। नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें! माँ की कृपा आप पर बनी रहे!
ReplyDeleteमहाभारत की यह श्रृखला जारी रहे......
ReplyDeleteताऊ !
ReplyDeleteराम राम ...
अपमान करना सबके बस की बात नहीं, यह तो विद्वता बघारने का एक साधन मात्र है !
हर इंसान की सुख उठाने की परिभाषाएं अलग हैं !
दुर्योधन थे और होते रहेंगे !
शुभकामनायें !
कोरवों और पांडवों के माध्यम से आप न जाने किस किस पर तीर चलाते हैं !यह निराला अंदाज क्या खूब है .!नवरात्रि की बधाई !
ReplyDeleteअथ ब्लोगिंग पुराण्…………जय हो।
ReplyDeleteसबसे पहले तो ताऊ बुढ्ढे होंगे आप हमारी ताई को बुढ्ढी ना कहे , दूसरे हिंदी ब्लॉग जगत में चेलो की कमी है अरे पुराने आप को ताड़ गये तो क्या हुआ , यहाँ टिप्पणी लेने देने का खेल करने वाले और भी है, तू नहीं कोई और सही कोई और नहीं तो कोई और सही अभी तो सैकड़ो पड़े है टिप्पणी टिप्पणी खेलने वाले और याद रखिये की हर बार एक ही फार्मूला काम नहीं करता है जनता को बहलाने के लिए लोगों की सहानभूति पाने के लिए इसलिए फार्मूले के एक्सपायर होने से पहले उसे बदल डालिये |
ReplyDeleteताउजी पोस्ट काफी रोचक और अर्थपूर्ण लगा ......राम -राम
ReplyDeletekoshish hai ke apke pratikon pakar
ReplyDeletesakoon........
aur mouj....jaisa chahiye....ysa mila
ghani pranam.
ताऊ इब थारी भी खैर नहीं । :)
ReplyDeleteताऊ इतना दीजिए,जामे मौज समय,
ReplyDeleteउसको भी ना हर्ट हो,हमहूँ खुस हुई जाएँ!!
.इसीलिये हमने ब्लागिंग में भी श्राप और शूलों से बींधे जाने के डर से मजे लेने कम कर दिये हैं...
ReplyDelete--
अब समय आ गया है कि हमें भी ताऊ की सलाह पर ही चलना चाहिए!
श्राप का भय तो हमें भी खाये जा रहा है।
ReplyDeleteबहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ... पोस्ट ...
ReplyDeleteयुवराज दुर्योधन को भीष्म पितामह समझा रहे थे कि वत्स दुर्योधन, दूसरों को अपमानित करना, बेनामी टिप्पणी करना यह अच्छी बात नही है. इससे ब्लागिंग का पतन होता है और अगर तुमने यही रवैया जारी रखा तो तुम्हारा ब्लाग पतन निश्चित है.
ReplyDeleteसन्देश तो सही दिया है ... पर कोई समझे तब न ...
बुढ़ापे में ही सही , ताऊ में समझदारी तो आई!
ReplyDeleteथोड़ी चेलों में भी आ जाये!
बुरा करने से बुराई ही हाथ लगती है वत्स...
ReplyDeleteकाश!! वो समझे ताऊ...मुझे तो लगता है आप अपनी लट्ठ वाली भाषा से ही समझाओ... :)
वाह ताऊ ! जिसकी भी मौज ली है तगड़ी ली है :)
ReplyDeleteक्या बात है ताऊ श्री.
ReplyDeleteआपकी बातों का अंदाज ही कुछ और है.
मन खुश हो जाता है.