जय हो भोलेनाथ ...प्रणाम



श्रावण का पवित्र महीना है !

इसमे माँ गौरी और भोलेनाथ की लीलाओं

का अभिनय करते इन बालकों की नाट्य कला

का आनंद लें !

और इनका भी उत्साह वर्धन करे एवं जोर से बोले

जय माता गौरी ! जय बम भोले !

मास्टर जी थम काटडा दे के दिखा दो !

घण्णे दिन हो गये इधर उधर की बात करते हुये !
कभी ताई, कभी बाबू और कभी दोस्त की
बात करते हुये ! इन चक्करों मे पडकर ताई नै
तो म्हारी जोर दार पूजा पाठ कर दी सै !
सरदार जी नै अभी खबर नही सै कि ब्लाग पै
उनके गुण गाण हो राखें सैं !
मालूम पडैगा तो वो भी किम्मै कसर छोडण
आला नही सै !


ताऊ कै पास पहले एक बन्दर हुआ करता था,
वो भी नाराज होकर कितै भाज लिया !
और अकेले आदमी का इब दिमाग भी हो गया सै
किम्मै ऊंदा सुंदा ! सो ताऊ इक्कल्ला बैठया
बैठया मक्खी सी मारण लाग रया था !


बैठे बैठे ताऊ को पोकरे की याद आ गई अपने
बचपन के दोस्त की ! यो पोकरा गाम की स्कूल मै
ताऊ की साथ ही पढया करता था !
इस पोकरे के दो तीन किस्से याद आ गये !
थम भी सुण लो !


स्कूल मे वार्षिक उत्सव मै पोकरा ने भी एक
नाटक मे फ़ुफ़ा का पार्ट करया था और बुआ (फ़ुफ़ी)
का पार्ट करया एक छोरी नै, जिसका नाम था पताशी !
नाटक हो लिया और नाटक मे बुआ का पार्ट करने
के कारण पताशी को सब छोरे छोरियां बुआजी
बुआजी कहण लग गये ! और ज्यों ज्यों
वो चिढती गई , वैसे वैसे पूरे स्कूल के
छोरे छोरीयां उसको और ज्यादा बुआजी के
नाम तैं बुलाण लग गये !
और पोकरा को भी सब फ़ुफ़ा फ़ुफ़ा कहण लाग गये !
खैर साब यो हीं मामला चलता रहा !


और कुछ दिन बाद एक नये मास्टर जी गणित
पढाने वाले बच्चनसिंघ जी ट्रान्सफ़र हो के
हमारी स्कूल मे आये ! और पहले ही दिन
क्लास मे आकर परिचय लेना शुरु किया !
प्रत्येक छात्र खडा हो कर अपना परिचय दे रहा था !
पतासी का नम्बर आया और वो खडी हुई ही थी कि
छोरे छोरियां चिल्लाण लाग गे - बुआजी .. बुआजी !
मास्टरजी कै कुछ समझ नी आया कि क्या बात है ?
पताशी नै अपणा नाम बताया और बैठ गई !
थोडी देर बाद पोकरा का नम्बर आया और वो खडा
हुआ -- इब पोकरा बोला- जी मास्टरजी वैसे तो
मेरा नाम पोकरा चौधरी सै ! पर मैं अण सारे
छोरे छोरियां का फ़ुफ़ा लागू सूं !
पूरी बात मालूम पडनै पर सारी क्लास के साथ साथ
मास्टर जी भी हन्स पडे !
और इस सारे मामले की खास बात ये है कि
ये दोनो एक ही जाति से थे सो दोनो के घर वालों
ने आपस मे तय करके थोडे समय बाद इनको असली
जीवन मे भी फ़ुफ़ा फ़ुफ़ी बना दिया !
आज भी जब कभी गान्व जाने पर इनसे
मिलना होता है तो इन किस्सों को याद कर
करके बहुत आनन्द लेते हैं !


दो चार दिन बाद ही इन्ही मास्टर जी की क्लास मे से तडी मारने
की वजह से मास्टर जी नाराज थे ! आते ही मास्टर जी दहाडे-
पोकरा खडा हो जा ! अच्छा पोकरा थोडा हाजिर जवाब था
और चुन्कि गाम के चोधरी का बेटा था सो दबंग भी था !
पोकरा- ने तुरन्त जबाव दिया- जी मास्टर जी ..और खडा हो गया !
मास्टर जी -- तुम कल स्कूल क्यूं नही आये ?
पोकरा- जी मास्टर जी , कल म्हारी झोठडी (भैंस) ब्याई थी !
और उसने ने काटडा (नर बच्चा) दिया था !
मास्टर जी - तो इसमै कौन सी विशेष बात हुई ?
पोकरा बोल्या- तो मास्टर जी थम काटडा दे के दिखा दो !


और इस बात पर मास्टर जी ने पोकरा की अच्छी कुटाई
कर डाली पर पोकरा कभी भी नही सुधरा ! जब तक स्कूल
मे रहा यही सब उल्टे सीधे कारनामे करता रहा !

दोस्त हो तो ऐसा -१

यही कोई दस दिन पहले ही ताऊ किसी काम तैं बम्बई
गया था ! वापस आण के बाद सुबह घुमण (मार्निन्ग वाक)
पर आज सारे दोस्त बैठे गप शप करण लाग रे थे !
म्हारे अण दोस्तां मै एक सरदार भी सै, भाई घण्णा जबरा !
यो म्हारे बचपन का भी दोस्त सै ! और यो इतना सुथरा सरदार सै
कि इसका नाम सबनै "पन्डित सरदार सतनाम सिन्ह अगरवाल"
निकाल्या हुया सै ! युं तो सरदार जी को सब बडा शरीफ़ समझ्या
करैं सैं ! पर भाई आज इसके कामां पै ताऊ का ध्यान गया तो
इसकी शराफ़त समझ आई !
यो मेरा यार सारी उम्र तो बोरिन्ग (ट्युब वैल)
खोदता रह्या ! फ़िर इबी वो धन्धा मन्दा पड गया तै इसनै नया धन्धा
भी भाई भाटे फ़ौडण का कर लिया ! मतलब गिट्टी (स्टोन क्रेशर)
फ़ोडया करै आज कल ! मतलब इसने तो फ़ोडा फ़ाडी करनी सै !
पहले धरती फ़ोडया करता इब पहाड फ़ोडण लाग गया !
आज मैं इसने बोल्या की - अरे सरदार के तेरी अक्ल
पै पत्थर पड़ रे सै ? जो तूने इस उम्र मे भी यो पत्थर
फ़ौडण का धंधा शुरू कर दिया ?
या तेरी अक्ल पे पत्थरो की कमी पड़ री सै ?
जो ये पत्थर फोड़ के उसपे डालेगा !
इस उम्र में जीप तै इतनी दूर खदान
पे जाण की उम्र रह री सै के तेरी ?

आज पूरे ५ दिन बाद सरदार जी घुमने आए हैं !
पुछने पर बताया- कि तबियत ठीक नही थी ! उम्र भी सरदार जी की
अच्छी खासी हो री सै ! थम अन्दाजा ही लगा ल्यो ! यो ताऊ तैं भी
दो साल बडा सै ! और भाई इसका फ़ोडा फ़ाडी का काम समझ
कै थम यो मत समझ लियो के यो कोई भोत मेहनती माणस सै !
भई यो घण्णा नाजुक लाल भी सै ! इन सरदार जी के कुछ किस्से
तो हम सब दोस्तां नै बेरा ही सै ! जैसे कि सरदार जी बिना ए.सी. की
कार मैं नही चल सकते ! ड्राईवर चाहिये ही चाहिये ! वर्ना चाहे
जितना नुक्सान हो जाये ! ये नही जायेन्गे ! दोस्तां कै साथ भी जाणा
हो तो कार ये नही चलायेन्गे ! इनको साथ ले जाना हो तो इनको
लाद के जावो !

और ये सरदार जी इतने अच्छे ड्राइवर सैं की भाई
आप समझ ल्यो की कुल्लू मनाली की ट्रिप पै हम दोनों
परिवार गये थे तब कार पुरे समय करीब १५ दिन तक इसनै ही चलाई
थी ! इब न्युं समझ ल्यो कि हम मनाली सै रोहतांग दर्रे पै गये
तो सरदार जी को वो जगह इतनी पसन्द आयी कि लगातार बाकी
के दस दिन हम सबको रोहतान्ग ले गये और साब इस सरदार नै वाकई
जिन्दगी का स्वर्ग दिखा दिया ! मेरे कलेक्सन मे वहां की खींची हुई
असन्ख्य फ़ोटो हैं ! एक यहां भी चिपका रहा हूं सिर्फ़ रास्ते की
विकटता और इनकी ड्राइवरी के गुण गान के लिये ! और इतने दुर्गम
और बर्फ़ीले रास्ते पर वाकई इनकी ड्राइवरी काबिले तारीफ़ थी !
उपरोक्त फोटो रोहतांग में व्यास नदी के उदगम स्थान
से ठीक पहले वाले दर्रे को पार करते वक्त ली गई थी !

उस समय तो हमने लौटकर इनकी सच्ची तारीफ़ ही की थी !
धीरे धीरे देखा की इस तारीफ़ से प्रभावित हो के सरदार जी कभी
हमको मान्डव ले जारहे हैं ! कभी कहीं ! बल्कि ये गोवा, पूरे
दक्शिण भारत की यात्रा साल दर साल दोनों परिवारों को करवाते रहे !
और आप यकिन मानिये ताऊ को इनकी चाबी हाथ लग गई !
इस महन्गाई के जमाने मे बिना पेट्रोल और ड्राइवर के खर्चे के
सैर सपाटा हो जाये तो क्या बुरा है ?

बच्चों को भी गर्मीयों की छुट्टीयों मे पक्का था कि सतनाम अन्कल
ले ही जायेन्गे ! बच्चों की पसन्द ना पसन्द पर किसी साल शिमला,
कभी मसूरी, नैनीताल, और कश्मीर का भ्रमण होता ही रहा , इन
सरदार जी की वजह से ! भाई दोस्त हो तो ऐसा !

ताऊ के दोस्तां तैं परिचय की इस श्रन्खला मैं इब यो सरदार जी
तो दिखते ही रहेन्गे ! पर आज के एपीसोड के अन्त मे ध्यान आया कि
इनकी नजाकत का एक किस्सा नही सुनाया तो आपके और इनके दोनो
के साथ बे-इन्साफ़ी होगी ! अभी चन्द दिन पहले मैं इनके घर गया
था ! वहां पर ये सरदार साहब थे नही ! सरदारनी नै हम दोनुं ताऊ
ताई को बैठाया और पुराने जमाने की गप शप करते हुए आखिर
बात फ़िर सरदार जी पर ही आ गई ! और इनकी नाजुकता की चर्चा
चल पडी ! सरदारनी बोली - भाई साहब इनकी रईसी की तो तुस्सी
गल ही छ्ड दो ! इनकी रईसी कितनी महन्गी पडती है ? वो सब आपको
मालूम ही क्या है ?
मैं बोल्या- नही परजाई जी ! तुस्सी दस्सो ! मैं के जाणूं ?
सरदारनी बोली- घर के बाहर सब्जी वाला आया ! मैं कुछ काम मे व्यस्त
थी , और सलाद के खीरे खत्म हो गये थे ! मैने कहा- सरदार जी
बाहर सब्जी वाला आया है ! तुम जाके ले आवो !
अब इन्होने इनके आफ़िस पर फ़ोन करके मनोज (आफ़िस ब्वाय) को
बुलवाया ! वो मोटर साइकिल से पेट्रोल फ़ूक कर आया ! अन्दर बुला
कर उसको इन्होने २ रु. दिये और एक पाव खीरे बुलवा दिये ! और इनको
किसी भी काम का कहो तो यही होता है ! २ रू. के खीरे और उसके
लिये २० रु. का पेट्रोल फ़ुकवा देते हैं ।
(पम्मी भाभी से क्षमा-याचना सहित ! और अगर आप नाराज ही हो रही
हो तो आपकी मर्जी ! अबके होली पै ताऊ के मुंह पर लाल
की जगह काला गुलाल पोत देना
!)

रविवार होने से सुबह घुमने के बाद थोडी देर वहीं बैठ कर ज्यादा
देर गप शप हो जाती है ! आज भी गप शप खत्म हो कर सब विदा
लेकर अपने अपने वाहन की तरफ़ बढ रहे हैं ! पता नही क्यूं ये
सरदारजी पलट कर आये और पुछने लगे- ताऊ तुने बम्बई मे क्या क्या
गुल खिलाए अबकी बार ये तो बताया ही नही ?
मैने कहा- यार सतनाम आज तो देर हो गई अगले रविवार बताउन्गा !
सरदार बोला-- अच्छा ये तो बतावो कि हमारे प्रधान मन्त्री मनमोहन
सिन्ह जी मार्निंग वाक शाम को ही क्यूं करते हैं ? अगर अपन भी मार्निंग
वाक सुबह की बजाए शाम को ही करें तो ?
मेरे को इच्छा हुई ये कहने की -- क्युंकि वो तेरी तरह सरदार है ! फ़िर सोचा यार ये
कही बुरा मान गया तो रविवार का सत्यानाश कर देगा , सो मैने बडे ही
शान्त भाव से जवाब दिया-- क्युंकि आदर्णीय मनमोहन सिन्घ जी PM हैं !
AM कोनी, जो सुबह घुमैगा ! जब PM सै तो शाम नै ही
मार्निन्ग वाक करैगा वो तो ! और तू PM कोनी !
सो तू सुबह ही कर मार्निंग वाक !

इस श्रंखला को शुरू करने का आइडिया मुझे मेरे ब्लॉग गुरु समीरजी,
(जिनसे मुझे ब्लागिंग का पहला सबक मिला ) के मून्नू और
अनुराग जी के "दस सालो मे कितना बदल गयी है शब ?" से मिला है !
अब मुझे महसूस हुवा है की हमारे आस पास ही कितना कुछ मौजूद है !
बस वो नजर चाहिए देखने के लिए !
अब आज मैंने कुछ ज्यादा ही पाससे सरदार जी को देख लिया है !
सरदार सतनाम सिंग से क्षमा याचना सहित !
अगले दोस्त की तलाश है !

इब इस बूढे नै भी बिगाडगा के ?

पिछले सप्ताह पता नही क्या हुवा कि ब्लाग व्लाग से तौबा करने
का पक्का इरादा हमनै कर लिया था ! और ये भी तय कर लिया था
कि इब यो ताऊगिरी भी छोड देनी सै ! बहुत कर ली ताऊ गिरी !
इब अपने को शरीफ़ आदमी बनके रहणा सै ! और ताई को तो
जैसे मुन्ह मान्गी मुराद मिल गई ! इस ब्लागिन्ग से सबसे
ज्यादा पीडीत प्राणी वो ही सै ! इब इसका जबाव आपको
मुझसे ज्यादा मालूम सै ! ज्यादा पोल पट्टी मत खुलवाओ !
ढकी रहण दो , तो अच्छा सै !

वैसे तो ताऊ बाप के बडे भाई नै कहवैं सैं !
पर इस दुनिया मे ताऊ को बाप का बडा भाई तो क्या
लोग खुद का छोटा भाई भी मानने को तैयार नही हैं !
और ताऊगिरी छोडने की प्रेक्टिस करते हुये जितनी
शुद्ध हिन्दी हम जानते थे उतनी शुद्ध और पवित्र
हिन्दी मे बिल साहब पर एक लेख लिख मारया !
यानि अन्तिम लेख ! और लिखण पढण की कसम ठा के
लग लिये अपनै काम धन्धे तैं !

भाई २४ घन्टे भी ना बीते होंगे की म्हारे लेख पै टिपणी आण
लाग री भतेरी ! इब जिसको ब्लागरी का चस्का पडज्या वो के
छॊड सकदा है ? भई हमनै भी इसका अफ़सोस होण लाग्या के
क्युं कर कसम खाई ? पर क्या करें ? ताई के डर के मारे चुप
चाप बैठे थे ! और म्हारा जी ललक रहया था कि कब यो ताई
जावै बाहर और हम शुरु हो जावै ! कम से कम टिपण्णी प्रकाशित
तो कर दे और देख भी ले कि कैसा रहा ? पर भाई हम भी
पक्के ऊल्लू सैं ! मन्नै मन ही मन सोची अरे ताऊ तु के बावली
बूच हो रया सै ? अरे तन्नै जब ब्लागरी छोड दी तो के करणा कमेन्ट
पब्लिश करके ? पर हमनै कहीं पढ राख्या था कि खोटा समय आवै
तै मन भी उल्टी सिधी बात समझावै सै ! भाई इतनी देर मे म्हारे बाबु
यानि म्हारे पिताजी आ गये गाम से !

म्हारे बाबु (पिताजी) सैं पुरे ८० बरस के उपर के और म्हारे बडे
भाई के साथ गाम मै ही रहण लाग गे सैं ! शहर उणको जमदा
कोनी ! आज भी खेत सम्भालते हैं ! और कम से कम १०
किलोमिटर पैदल चाल लेते हैं ! सुबह ३ बजे उठणा और रात के ८
बजे सोणा ! यो ही दिन चर्या सै बाबु की ! म्हारे बाबू नहा धोके
और सबके हाल चाल पुछण लाग रे थे ! फ़िर म्हारा नम्बर आ गया !

बाबू - तेरे के हाल चाल सैं? बम्बई दिखाण गया था ! के बोल्या डाग्दर ?
मैं बोल्या- बाबू ठीक ठाक सैं ! डाक्टर साब नै दवाई गोली लिख दी सै !
फ़िर म्हारे बाबू नै पूछी- भई तैं युं उदास सा क्यों कर बैठया सै ?
फ़िर मैने म्हारे बाबू को बताई कि इस तरिया हमनै ब्लागरी शुरु
करी और छोडने की कसम खाली ! और म्हारी घर आली कि तरफ़ देख्या !
वो ऐसे घूर रही थी जैसे बाबू के जाते ही कच्चा चबा जायेगी !
बाबू नै पुछ्या कि यो ब्लागरी के होवै सै ! मै बोल्या बाबू इसमे लोग
सुई से लेकर हवाई जहाज तक की बात करया करै सैं !
बाबू नै म्हारी तरफ़ देख्या ! बाबू को हमारी ओकात पता थी !
मैने कहा - बाबू कुछ मेरी तरह गप शप भी कर लेते हैं !

इब म्हारे बाबू बोले - बेटा देख हम जिस गाम के सैं उस गाम का
गप शप करणा तो धर्म ही सैं ! म्हारे गाम मे जब हम बच्चे थे तब
राम लीला मे एक जोकर हुया करता था मोहन भान्ड ! वो अपने
आपको भाट कवि मोहन के नाम से बुलवाना पसन्द करता था !
और वो न्युं कह्या करता था -- अपने गान्व के बारे मे ...

रामपुरा पन्च रतनानि,
कान्टा, भाटा , पर्वता
चतुर्थे राज धर्माणि च
पन्चमे गपम शपम !
रामपुरा पन्च रत्नानी यानि रामपुरा मे पान्च रतन हैं !
कौन से ? (१) कान्टा .. इस वजह से यहां के लोग चुभते हैं !
(२) भाटा (रास्ते के पत्थर) .. बिना देख कर चलने वालों को
ठोकर लग जाती है ! (३) पर्वता ..यानी यहां के पहाड.. जो लोगों
को अपनी जडी बून्टी ओषधि से दुसरों का दुख हर लेते हैं !
(४) राज धर्माणि ... यहां के राजा का राज धर्म और प्रजा वत्सलता और
पन्चमे .. गपम शपम .. अर्थात यहां के लोग गप शप करते हुये सुख
पुर्वक जीवन यापन करते हैं !

म्हारे बाबू नै समझाया कि गप शप से जीवन के दुःख और तनाव
कम हो जाते हैं और स्वस्थ रहने मे मदद मिलती है ! गप शप भी
भोजन पानी और दवाई जितनी ही जरूरी है !
और एक फ़ार्मुला स्वस्थ रहण का म्हारे बाबू ने और बताया--
खाते समय अगर एक कौर को ३२ बार चबा कर खावोगे तो पेट
सम्बन्धित कोई भी रोग नही होगा ! और अगर ६४ बार चबा कर
खाया तो हाथी का भी वजन कम हो जायेगा ! हम आश्चर्य से बाबू
का मुन्ह ताकते रहे ! तो म्हारे बाबू की स्वस्थ्ता का राज यो सै !

फ़िर म्हारा बाबू बोल्या - भई तेरी वो ब्लागरी के सै ? हमनै भी
तो दिखा ! फ़िर हमने अपना लेपटाप खोल कर उनको कुछ ब्लाग
दिखाये ! और इसके बारे मे समझाया ! बाबू सारा सब कुछ देख कर
बहुत चकित थे और बोले - अरे भई यो थारी एक छोटी सी
मशीन के कहया करैं इसनै.. हां लपटप म्हानै भी मन्गा दे !
हम भी उत खेत मैं बैठ कै ब्लागरी करेन्गे !
मैं बोल्या ठिक सै बाबू आज ही मन्गा देन्गे !
और साहब म्हारी बाप बेटे की इब तक चुप चाप बात सुन
रही म्हारी घर आली ( ताई ) इतना सुनते ही दहाड उठी--
तैं खुद तो बिगड ही रहया सै इब इस बूढे नै भी
बिगाडगा के ?

ऐसा काम तो कोई ताऊ ही कर सकै सै !

भाई जगदीश त्रिपाठी जी और भाई रुक्का थमनै ताऊ की घणी
राम राम ! भाई थम दोनुं तो बिना मतलब नाराज होण लाग रे
हो ! भाई हम ४/५ दिन तैं बाहर चले गये थे ! हमनै मालूम सै
कि थारा म्हारे उपर घणा प्रेम हो रया सै ! भाई इब थम और
नाराज मत होवो ! ताऊ थारी सब नाराजी दुर कर देगा ! मन्नै बेरा सै कि
यो हरयानवी चाट की थमनै आदत सी पड गी सै ! और भाई थारी साथ
साथ यो आदत और कई लोगां नै भी लाग री सै !


भाई हम गये थे मुम्बई कोई काम वास्ते !
इब थम जानो हम तो सिधे साधे माणस सैं!
दिन मैं अपणा काम निपटा के शाम की समय राम जी भगवान
के मन्दिर मैं दर्शन करने चले गये ! वहां पर देख्या कि एक ताऊ
पहले से ही बैठया रोवण लाग रया था !


मैने पूछा -- अरे ताऊ तैं क्यूं रोवण लाग रया सै ?
वो ताऊ बोल्या-- अरे ताऊ रोऊं नही तो हन्सू क्युं कर ?
भाई बात ही म्हारे साथ ऐसी ही होगी सै !
मैने पूछा-- ताऊ तसल्ली तै बता तो सई के थारे साथ ऐसा के हो गया
जो तू इस तरियां रुक्के मार के रोवण लाग रया है ?
वो ताऊ बोल्या-- अरे भाई बात या सै कि मेरी लूगाई खो गई है !
और मैं उसको ढुन्ढ ढुन्ढ के घणा परेशान हो लिया ! सब जगह
ढुन्ढ ली और वो मिलदी कोनी ! और भाई पुलिस भी मेरी मदद करै
कोनी ! पुलिस आले मन्नै ताऊ समझ के दूर तैं ही भगा देवैं सै !
इब हार थक के परेशान होकै मैं रामजी धोरे आया हूं !
और फ़िर झुक कर रोते हुये प्रार्थना करता हुवा बोलण लाग गया--
हे राम जी भगवान मैं थारा १०१ रुप्पैये का प्रसाद बाटूंगा ! आप मेरी
लूगाई दिलवा दो ! और फ़िर वो रोण लाग गया !

भई इब मन्नै इस ताऊ की बात पर घणा छोह (गुस्सा) आया
और मैं बोल्या-- अरे बावलीबूच ताऊ ! अगर तेरी लूगाई (ताई) ही खो (गुम)
गई सै तो इत के करण आया सै ? भाई ये खुद (रामजी ) अपनी लूगाई को
नही ढुन्ढ पाये थे ! फ़िर तेरी लूगाई को क्या ढुन्ढ देंगे ?
वो किम्मै रोवंता सा बोल्या - साफ़ साफ़ बताओ !
मैं बोल्या -- भाई तैं एक काम कर ! यहां से उठ और हनुमानजी कै
धोरै जा ! रामजी की लुगाई नै भी वो हि ढुन्ढ के ल्याया था और
तेरी लुगाई को भी वो ही ढुन्ढ के ला देन्गे !
और भाई जब हनुमान जी नै रामजी की लुगाई को ढुन्ढ दिया तो
तेरी मदद वो सबसे पहले करेन्गे क्युंकी वो अपनी जात बिरादरी
के भी सैं ! सो तु जल्दी जा !

इब वो ताऊ किम्मै नाराज सा होता हुवा बोल्या-- अरे ओ ताऊ !
तु मुझे बेवकूफ़ क्युं बना रहा है ? ये हनुमान जी अपनी जात
बिरादरी के कैसे हो गये ?
मैं बोल्या-- अरे ताऊ नाराज क्युं कर होवै सै ? अरे भई लूगाई
तो खो गई थी रामजी की और पूंछ मै आग लगवा ली थी हनुमान जी नै !
अरे बावलीबूच ऐसा काम तो कोई ताऊ ही कर सकै सै !
तो इब बता हनुमान जी अपनी जात बिरादरी के हुये कि नहीं ?

बिल , वारेन और हम

"धन से मुझे ऊब हो गई है ! बीमार और भूखों को देख कर मेरा
मन दुखी हो जाता है "
ये शब्द करीब एक वर्ष पहले बिल गेट्स
ने कहे थे ! और इस व्यक्ति के लक्षण मुझे उसी समय से कुछ अच्छे नही
दिखाई दे रहे थे ! और इस व्यक्ति के बारे मे मैं हर खबर पर
नजर लगाए रखता था ! मुझे उन्ही दिनों लग गया था की एक और
सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा और राजकुमार राहुल को छोड कर
वन गमन कर सकता है ।


इतना आसान भी नही है अगर आपके पास तकरीबन सौ अरब डालर
हों और आप सैकिंडो के हिसाब से धन का उत्पादन कर रहे हों ।
ऐसे मे आपका लक्ष्य दौ सो अरब डालर की तरफ़ बढने का होगा !
इस उंचाई पर अचानक आप अपना सब कुछ बिमार , भुखों के लिए
छोड देने का फ़ैसला कर ले तो इसे क्या कहेंगे ? धनवान होना
कोई गुनाह नही है लेकिन राजा से फ़कीर बन जाने का फ़ैसला
कर लेना कोई आसान खेल नही है ! और आज तक के हमारे मानव
इतिहास मे कितने धनिक ऐसा कर पायें हैं ?


एक दिन बिल गेट्स अपनी पत्नी मेलिंडा के साथ उनके दोस्त
वारेन बफ़ेट के घर पहुंचते हैं और वारेन साहब के साथ किसी समारोह
मे शामिल होने चल पडते हैं ! समारोह स्थल पर पहुंचते ही, सैकडों
बच्चों ने जिनके कि हाथ मे माइक्रोसाफ़्ट का झ्न्डा लहरा रहा था ,
उन तीनों का स्वागत किया ! और वे तीनों, बच्चों से हाथ मिलाते हुये
आगे बढने लगे ! इतने मे वारेन बफ़ेट की तरफ़ देख कर एक काला
आठ नौ साल का बच्चा हंसने लगा ! कन्जूस वारेन को उसका हंसना कुछ
अटपटा लगा और वो उस बच्चे से पूछ बैठा की वो क्युं हन्स रहा है ?
बालक ने हंसते हुये ही जबाव दिया - क्योंकि मैं बहुत खुश हूं !
वारेन साहब को उस बच्चे के इन शब्दों ने जैसे आसमान से नीचे गिरा
दिया ! उसने कभी हंसना भी नही जाना ! वो तो सिर्फ़ पैसा कमाने की
मशीन भर बन गया था ! वहीं एक तरफ़ ले जाकर, वारेन ने बिल
से कहा - बिल मेरे पास करीब ३८ अरब डालर हैं इसमे से मैं
तुम्हारे फ़ाउन्डेशन को ३४ अरब डालर देता हूं !
इस जरा से बच्चे ने मेरी आंखे खोल दी हैं ! बल्कि
मुझे हंसना सिखा दिया है ! इसने मुझे मशीन से इन्सान बना दिया है ।
आज मैं हंसना सीख गया हूं अब तुम पूरी दुनियां के बच्चों को हंसाना ।


बिल ने कुछ भी जबाव नही दिया और तत्क्षण घोषणा कर दी - मैं
माइक्रोसाफ़्ट छोड रहा हूं ! दोनों पके हुये फ़ल थे यानि पिछले जन्मों
के तपस्वी रहे होंगे ! पल भर मे क्रान्ति घट गई ! हो गये दोनो बुद्ध !
बिल ने जो किया है सन्सार मे रहते हुये , उसकी मिसाल शायद ही
मिल पायेगी ! पुरी दुनियां को एक माइक्रोचिप लेकर जिसने एक
कटोरे मे बैठा दिया वो बिल जिस आखिरी दिन माइक्रोसाफ़्ट के आफ़िस
मे पहुंचा तो उसका पूरा स्टाफ़ रो रहा था और वो सब चाहते थे
कि बिल इस तरह से वैराग्य लेकर ना जायें ! पर भला किसी सिद्धार्थ
को राजमहल त्यागने से कोई चीज रोक पाई है ?


बिल तो जीते जी अमरता को प्राप्त संत हो गये हैं ! पर इस बुद्ध के
पद चिन्हो पर चलने के लिये क्या धन का त्याग जरुरी है ?
और अगर किसी के पास धन हो ही नही तो ? हम मे से बहुतों के
पास फ़टी जेब है तो क्या करे ? सवाल बडा मार्मिक है !
पर मेरे दोस्तो ! आप ये क्यों नही सोचते कि बिल के अरबों डालर
आपके चन्द रुपियों के सामने फ़ीके हैं अगर आपने उसी के भाव
से ५०० रुपिये भी किसी अनाथ गरीब की सेवा मे दिये हों ।
इन इक्कीसवीं सदी के बुद्धों से कुछ सीखना ही है तो ये मत सोचना
की आप धन का त्याग करके ही बुद्ध बन पायेंगे ! और सच तो ये है
कि बुद्ध बना नही जाता बल्कि कर्म करते करते आदमी कब बुद्ध शुद्ध
हो गया उसे ही नही मालूम चलता !


दोस्तों किसी प्रण की जरुरत नही है ! इस दुनिया को सुखी बनाने
के लिये धन से भी जरुरी बहुत समस्याएं हैं ! आज महिलाओं पर
इतने अत्याचार हो रहे हैं क्या हम किसी मा, बहन या बेटी की
मदद नही कर सकते ? किसी एक मासूम बेसहारा के जीवन यापन
या किसी बालिका की शिक्षा का बोझ हम नही उठा सकते ? हम जिस
क्षेत्र मे भी कार्यरत हैं उसी क्षेत्र की सहायता उनकॊ नही दे सकते ?
क्या हम साप्ताहिक रूप से एक दो घन्टे किसी संस्था को नही दे सकते ।
क्या हम जल सरंक्षण के उपाय़ नही अपना सकते ?
क्या हम ट्रेफ़िक के नियम पालन नही कर सकते ?
क्या हम पेड कटने से नही रोक सकते ?
हम ये सारे काम कर सकते हैं ! आइये हम अपनी अपनी काबलियत
के अनुसार कुछ ना कुछ करने की ठान ले ! दोस्तों धन कुबेरों
मे बिल, वारेन और नारायण मूर्ति तो सदियों मे होते हैं ! बाकी धन
कुबेरो से आप भली भांति परिचित हैं ! इनके या दुसरे के सहारे
अपनी इस प्यारी सी धरा को मत छोडिये ! समाज की सताई हुई बेसहारा
मजबूर बच्चियों को मत छोडिये । ये हम सबकी सामुहिक जिम्मेदारी है ।
सिर्फ़ बहस से कूछ नही होगा !
आपका कुछ समय ही इनको दिजिये
उसकी कीमत भी अरबों डालर से कम नही होगी ।
और कुछ नही तो इस धरती पर एक पेड ही लगा कर अपना योगदान
दे सकते हैं ! हम और कुछ ना कर सके तो किसी अच्छे काम
मे अपना समर्थन तो दे सकते हैं ! फ़िर देखिए ये धरती कैसे स्वर्ग
बनती चली जायेगी ! और आप खुद अपने मे ही परम शान्ति का
अनुभव कर पायेंगे ! आज के अशान्त माहोल मे हम सुखी होने का दिखावा
भले ही कर ले पर इतनी असन्गतियों के बीच हम सुखी नही हो
सकते ! आखिर हम सबका अस्तित्व तो एक ही है !

छोरी की शिकायत

गाडी चाल पडी हाय रे गाडी चाल पडी
गाडी चाल पडी , मरगे, गाडी चाल पडी
हो गाडी डाट जरा हाय गाडी डाट* जरा
हो गाडी डाट जरा हाय गाडी डाट जरा ॥


मेरे यार खडे खडे रोंवै गाडी डाट जरा
हाय रे गाडी डाट जरा रे गाडी डाट जरा
मेरे यार खडे खडे रोंवै गाडी डाट जरा
हाय गाडी डाट जरा ॥


हो लीलू मत रोवै हाय लीलू मत रोवै
हो लीलू मत रोवै हाय लीलू मत रोवै
मैं दस दन* भीतर आल्युं* हो लीलू मत रोवै
हाय रे लीलू मत रोवै रे लीलू मत रोवै
मैं दस दन* भीतर आल्युं* हो लीलू मत रोवै
हाय ओ लीलू मत रोवै ॥


हो कन्घा भूल्याई हाय मैं शीशा भूल्याई
हाय रे कन्घा भूल्याई हाय रे शीशा भूल्याई
यारां की सेज पै कन्घा शीशा भूल्याई
हाय रे कन्घा भूल्याई हाय रे शीशा भूल्याई ॥


हो डिबीया स्याही* की हाय डिबीया स्याही की
हो डिबीया स्याही* की हाय डिबीया स्याही की
छाज्जू के चौबारे मै भूल्याई डिबीया स्याही की
हाय रे डबीया स्याही की हाय रे डबीया स्याही की
छाज्जू के चौबारे मै भूल्याई डिबीया स्याही की
हाय डिबीया स्याही की ॥


हो चप्पल बाटा की हाय चप्पल बाटा की
हो चप्पल बाटा की हाय चप्पल बाटा की
पाले के घेर मै रहगी चप्पल बाटा की
हाय रे चप्पल बाटा की रे चप्पल बाटा की
पाले के घेर मै रहगी चप्पल बाटा की
हाय चप्पल बाटा की ॥


रे गोरी तेरे यार घणे* हाय रे गोरी तेरे यार घणे
रे गोरी तेरे यार घणे* हाय रे गोरी तेरे यार घणे
मेरा कोन्या* ढूंढ* बसावै रे गोरी तेरे यार घणे
हाय रे गोरी तेरे यार घणे ॥


हो पिया मैं तेरी सूं*हाय पिया मैं तेरि सूं
हो पिया मैं तेरी सूं*हाय पिया मैं तेरि सूं
मेरे सिन्गपरये भरतार* सिर्फ़ मैं तेरी सूं
हाय पिया मैं तेरी सूं
मेरे सिन्गपरये भरतार* सिर्फ़ मैं तेरी सूं
हाय पिया मैं तेरी सूं हां पिया मैं तेरी सुं ॥


हाय रे गाडी चाल पडी रे गाडी चाल पडी
हाय रे गाडी चाल पडी रे गाडी चाल पडी
तेरे इकले* रहगे यार रे गाडी चाल पडी
हाय रे गाडी चाल पडी रे गाडी चाल पडी
हाय रे गाडी चाल पडी रे गाडी चाल पडी
हाय रे गाडी चाल पडी रे गाडी चाल पडी
हाय रे गाडी चाल पडी रे गाडी चाल पडी ॥


( कुछ मित्रों के फ़ोन आये हैं ! जिन्होने इस गाने को बहुत
पसन्द किया है ! कुछ ने टेक्शट के लिये आग्रह किया है
एवम कुछ ने थोडे से शब्दों का अर्थ जानने की इच्छा प्रकट
की है ! अत: इस गाने मे आये हरयानवी शब्दों का अर्थ
दे रहा हूं ! इससे आपका आनन्द द्विगुणित हो जायेगा !)


डाट = रोक, दन = दिन, आल्युं = वापस आजाउंगी,
स्याही = काजल, पाले = बेर की छोटी झाडी के पत्ते जो
मुख्यतया ऊंट को खिलाई जाती हैं , घेर = ढेर,
कोन्या = नहीं, ढूंढ = घर, सूं = हूं, भरतार = पति,
इकले = अकेले ।

ताई, छोरी और ट्रेफिक हवलदार

ताऊ का शहर के अस्पताल मे आपरेशन हुया था ! सो ताई
को शहर जाणा था ! सो ताई चढ ली शहर जाण आली बस मै !
बस मै घणी ठाडी भीड हो री थी ! बैठण की जगह कितै भी नही थी !
आगे आगे की सब सीटों पै कालेज जाण आले छोरे बैठे थे !
ताई को अनदेखी सी करके सारे छोरे सीटों पै जमे ही रहे !
कोई भी ना उठया ! ताई नै थोडी देर तो इन्तजार किया फिर
वहीं बस के बोनट पर बैठ गई !
थोडी देर बाद दो तीन कालेज जाण आली छोरियां अगले स्टाप
से बस मै चढी ! उन छोरीयां के चढते ही बैठे हुये लडकों ने
उनके लिये सीट खाली कर दी और अपनी सीटों पर उन छोरियों
को बैठा लिया और खुद खडे हो लिये ! ये देख कर ताई को
किम्मै छोह (गुस्सा) सा आगया ! ताई उन लडकों से तो किम्मै
ना बोली पर उन छोरियां तैं बोली - इतना इतराणै (गुरुर) क्युं
लाग री हो ? आज नही तै कल थमनै भी इसी बोनट पै आणा सै !


शहर पहुंच कै ताई बस तै उतर ली और अस्पताल की तरफ़ चाल
पडी ! रास्ते मै चोराहा पार करणा था सो ताई नै लाल पीली
लाइट का किम्मै बेरा था नही सो वो तो चाल पडी मूंह ठा के !
लाल लाइट मै चोराहा पार करते देख कै, ट्रेफ़िक होलदार सीटी
मारण लाग ग्या ! पर ताई तो सीधी ही चाली जावै थी ! फ़िर
दोड कै होलदार साब नै ताई को रोका !
और बोला- क्युं ताई मरण का सोच कै आई सै के ?
ताई- अरे बेटा मैं क्युं मरण लागी ! तैं ढंग सै नही बोल सकदा के ?
या तनै बात करण की तमीज नही सिखाई तेरे घर आला नै ?
होलदार-- ताई मैं इतनी देर तैं सीटी मारण लाग रया सूं अर तैं तो
रुकदी ही नही ?
ताई बोली-- अरे तेरी के अक्ल खराब हो राखी सै ?
इब मेरी या उम्र के तन्नै सीटी पर रुकण की दिखै सै ?
अपनै जमानै मै तो मै एक सीटी पर ही रुक जाया करै थी !
और छोह मै आके ताई नै होलदार के दो कान तले बजा दिये !

तन्नै क्युं कर बेरा पाटया के मन्नै बीडी पी थी ?

एक बार एक ताऊ अपनै छोरे के पास अपना ईलाज करानै
शहर चला गया ! वहां ताऊ का छोरा बडा सरकारी अफ़सर
था ! सरकारी गाडी बन्गला नौकर चाकर सब मिल राखे थे !
शहर मे उसके छोरे नै और उसकी बहू नै ताऊ की घणी सेवा करी !
और डाक्टर भी ताऊ के छोरे का पहचान का था सो उसनै ताऊ की
जान्च वान्च करके बताया की उसके प्रोस्टेट का आपरेसन करणा
पडैगा ! ताऊ को असपताल मै भर्ती करा दिया ! और सब जांच वांच
करकै डाक्टर बोल्या-- ताऊ थारा सुबह एक छोटा सा आपरेशन
कर देन्गे ! कोई चिन्ता मत करियो ! आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे !
और इब आप बीडी चिलम मत पीना !
ताऊ बोल्या -- ठिक सै भाई ! जैसी थम कहो !


अगले दिन ताऊ का आपरेशन हो गया ! इसके बाद एक दिन
तो ताऊ नै बिना चिलम बीडी कै निकाल दिया ! पर इब उसतैं रहा
नही जावै था ! चिलम की तलब घणी होण लागरी थी ! और ताऊ नै
वार्ड बाय़ वगैरह सब आजमा के देख लिये , पर बात बणी नही !
इब ताऊ स्टाफ़ को चकमा देके असपताल के सामनै की पान की
दुकान पर पहुंच के बीडी पीके आगया ! और बस घुमण का
बहाना मार के ताऊ बीडी पीके वापस अपने बिस्तर पर आजाया
करै था !


शाम को डाक्टर आया राउन्ड लेता हुआ ! और उसनै ताऊ को
लिटा कै उसकी पेशाब की जगह पट्टि वट्टी
बदलनै लग गया ! और ताऊ सै बात भी करता जावै था !
इब डाक्टर नै पूछी-- ताऊ बीडी सिगरेट तो नही पी थी ना !
ताऊ बोल्या-- क्युं भाइ डागदर साब ? उडे के धुंआ निकलण लागरया सै ?
तन्नै क्युं कर बेरा पाटया के मन्नै बीडी पी थी ?

टाल्सटाय का ताऊ


भरी दोपहर का समय !  ताऊ अपने खेत मे हल चला रहा था ! और मन ही मन परमात्मा को कोसता भी जावै था ! इतनी देर मे उधर से एक फ़कीर जैसा दिखने वाला आदमी निकलता है ! वो आकै ताउ के पास राम राम करकै पानी पिलवाने का कहता है ! ताउ उसे पानी पिलवाता है ! और दोनो पेड के निचे बैठ कर चिलम
पीते हुये बाते करने लगते है !

फ़कीर उससे पूछता है कि खेत मे कितना अनाज वगैरह हो जाता है ! घर मे कौन कौन हैं आदि आदि ...
ताऊ-- बाबा ये उपर वाला तो न्युं समझ ले कि मेरे से और मेरे बच्चो से दुश्मनी पर ही उतर आया सै ! हम सारे घर वाले दिन रात इन खेतों मे मेहनत मजदूरी  करते है पर आप समझ लो कि सारी साल मे हम आधे समय भुखे ही सोते है !

फ़कीर को ताऊ बताता है कि उसके पास सिर्फ़ यही एक खेत है ! और इस एक खेत से पुरे परिवार का गुजारा नही हो पाता !
फ़कीर बोला-- ताऊ तुम एक काम करो कि इस खेत को बेच दो और यहां से पश्चिम दिशा मे चले जावो वहा पर तुमको इसके बदले मे सैकडों एकड जमीन मिल जायेगी ! और जमीन भी इससे कहीं ज्यादा उपजाउ मिलेगी ! ताऊ को इतना बता कर फ़कीर तो चला गया ! पर ताऊ परेशानी मे पड गया ! घर आया और सारी बात अपनी लूगाई को बताई !

ताऊ की लूगाई किम्मै समझदार थी सो उसने ताऊ को मना किया ! और बोली -- अपण तो रूखी सुखी खाकै इत ही आछे सैं ! हमनै अपनी यो बाप दादे की जमीन नही बेचणी , चाहे कुछ भी हो !

पर ताऊ के मन मे तो उस फ़कीर के दिखाए सपने हिलोरे मार रहे थे ! उसके सीधे साधे मन मे उस फ़कीर ने जो लोभ का बीज बो दिया था, वो अब तक बहुत बडा पेड बन चुका था ! और आप तो जानते ही हो कि लोभ के आगे आदमी नै कुछ भी नही दिखाई देता ! आजकल भी कई लोग लोभ मे आकै अपने को लुटवा पिटवा बैठते हैं ये सब इसी ताऊ की जात के हैं !

घरवालों के लाख मना करने के बाद भी ताऊ नै अपना खेत ओने पोने दाम मे बेचकर रुपये अपनी अंटी मे करे और अपनी लुगाई बच्चों से यह कह कर निकल लिया की वो वहा जाकर जमीन खरीद लेगा और सब  इन्तजाम करकै उनको भी ले जायेगा !

चलते चलते शाम हो गई पर उसको फ़कीर की बताई जैसी कोई जगह नही दिखी ! मन मे लाख तरह के विचार आने लग गये .... चोर डाकू आदि.. क्योंकि उसके पास तो सारी जन्मो की कमाई खीसे (जेब) मे रखी थी !
ये क्या किसी अम्बानी के साम्राज्य से कम हैसियत की थोडी थी ?

इतनी देर मे ताऊ को दूर कही किसी गांव का आभास हुआ ! और ताऊ उसी दिशा मे बढ गया ! उसने सोचा की आज की रात इसी गांव मे बिताकर कल आगे बढ जायेगा ! गांव मे पहुंच कर देखा की गांव के बहुत सारे लोग चबुतरे पर बैठे थे ! और गप्प्बाजी मे लगे थे ! ताऊ को लगा कि ये कहीं ठगों का गांव नही हो कारण की ताऊ की जेब मे ताऊ का सारा साम्राज्य रखा था अगर कहीं लुट पिट गया तो बाल बच्चों का  क्या होगा ?

डरते डरते उन लोगों के बीच पहुंच कर राम राम श्याम श्याम करी ! वहां बैठे लोगों ने उसको चाय पानी के बाद हुक्का उक्का पिलवाया ! और अब ताऊ को विश्वास हो गया कि ये लोग ठग वग नही हैं तो उसने चैन की सांस लेकर उन लोगों से फ़कीर द्वारा बताई जगह के बारें में पूछा -- की भाई यह जगह कितनी दूर पडेगी ?

उनमे से जो उनका मुखिया जैसा दिखता था वो बोला -- अरे ताऊश्री, आप बिल्कुल सही जगह पहुंच गये हो ! ये ही वो जगह है जहां पर इतनी सस्ती जमीन मिलती है ! इतना सुनते ही ताऊ को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई हो ! वो झट से भाव पूछने लगा और किसके और कौन से खेत बिकाऊ हैं ? आदि आदि ॥ एक ही सांस मे पूछ बैठा !

वहां का मुखिया बोला--अरे ताऊ अब रात होने को आई है ! आप खा पीके आराम करो , सुबह आपको खेत भी दिखा देंगे और भाव भी बता देंगे ! पर ताऊ को तो कहां आराम था ? उसने फ़िर वही आग्रह दोहरा दिया ! ताऊ तो इस तरह बेसबरा हो रहा था जितने बेसबरे एल.एन.मित्तल साहब आरसेलर खरीदने मे और रतन टाटा साहब कोरस स्टील के सौदे मे भी नही हुये होंगे ! पर ताऊ के सौदे के सामने ये सौदे तो चवन्नी भी नही थे ! कहां बाप दादों की जमीन का बिक कर आया खानदानी  पैसा? और कहां जनता के धन से आरसेलर कोरस स्टील खरीदने वाले मित्तल और टाटा? ताऊ के सामने ये कुछ भी नही.

इस पर गांव का मुखिया बोला-- ताऊ देखो.. इस पुरे गांव की जमीने बिकाऊ हैं, और आप पूरे गांव के खेतों का सौदा किसी से भी कर लो , सबको आपस मे मन्जूर है ! हम लोगों का मुख्य काम ये जमीने और खेत बेचने का ही है ! और हम बेचते अपनी शर्तों पर ही हैं !

ताऊ के पुछने पर मुखिया जी ने बताया कि यहां जो भी खेत खरीदने आता है उन सबके लिये एक ही भाव है !
दिन उगने से लेकर दिन छिपने तक जितनी जमीन का चक्कर काट लो वो जमीन खरीदने वाले की हो जाती है बदले मे आपकी जेब मे जितने पैसे हों वो हम गांव वाले ले लेते हैं ! हम सीधे साधे लोग हैं और सीधी साधी बात करते हैं ! बोलो हो मन्जूर तो कर लो सौदा !

ताऊ को कहां चैन था ? रात को ही खूंटी गडवा ली , यानी जिस जगह से भागना था ! सुबह क्यों समय खराब करना? कही  देर हो जाये !

अब मुखिया बोला-- ताऊ हम सुबह आये या नही आये , आप पर हमको पूरा यकीन है , कारण ग्राहक तो भगवान होता है, आप तो यहां से दोडना शुरु करना जितने खेतों का चक्कर लगा आवोगे वो सारे आपके
हो जायेंगे ! पर ध्यान रहे दिन डुबने से पहले लोट आना नही तो आपके पैसे हजम हो जायेंगे ! ताऊ मन ही मन बोल्या -- अरे मुखिया तू आज किसी ताऊ के चाल्हे चडया सै ! आज देख ताऊ तेरा पूरा गांव ही डकार लेगा !


गांव वाले तो उसको सोने का कह कर चले गये पर ताऊ की आंखॊ मे नींद कहां ? किसी तरह दिन उगा और ताऊ तो पहली किरण फ़ूटने के साथ ही दोडना शुरू हो गया और दोपहर होते होते तो गांव से बहुत दूर निकल गया ! फ़िर सोचा अब पलट लेना चाहिये क्यों की शर्त के अनुसार दिन डुबने के पहले वापस खूंटी पर पहुंचना था ! फ़िर सामने ही एक बडा तालाब दिख गया , ताउ ने सोचा इसको भी अपनी हद मे कर लो , जिससे आगे सिचाई मे दिक्कत नही हो ! और ताऊ को कभी गन्ने के, कभी केशर के और कभी सब्जियों के खेत का लालच आगे बढाता रहा ! 

आखिर ताऊ ने तीन बजे के आसपास वापसी शुरू की ! भूखा प्यासा बेतहासा वापस दोड रहा है ! सही भी है अब तो सारी उम्र बैठ कर ही खाना है , इतनी सारी जमीन का मालिक जो बन जायेगा ! ताऊ बिल्कुल सरपट दोडे जा रहा था ! आखिर जीवन मरण का जो सवाल है !
उधर गांव वाले चबुतरे पर मजे से  ताश पत्ती खेल रहे हैं और हुक्का चिलम पी रहे हैं ! इस बात से बेखबर की एक हरयानवी ताऊ आज उनकी सारी जमीनों पर  कब्जा कर लेने वाला है ! बडे बेफ़िकर .. उनको मालूम है उनकी जमीन आज तक कोई नही खरीद पाया तो इस ताऊ की तो ओकात ही क्या ?

दिन बस डुबने को है और ताऊ कहीं दूर तक भी गांव वालों को आता हुआ दिखाई नही दे रहा है ! सारे गांव वाले उस खूंटी के पास जमा हो चुके हैं ! इतनी देर मे ताऊ लस्त पस्त सा आता हुआ दिखाई देने लगा है ! जैसे उसमे जान ही नही हो ! फ़िर भी पुरी ताकत झोंक रखी है उस खूंटी तक पहुंचने के लिये ! गांव वाले उसका उत्साह वर्धन करते हैं उनको मालूम है ये नही पहुंचेगा ! ये तो क्या आज तक कोई वापस  नही पहुंच पाया इस खूंटी तक  !

ताऊ की आंखों के आगे अन्धेरा छा रहा है , हलक सुख चुका है, दिन डुबने मे है और टांगे जबाव दे चुकी हैं थोडी दूरी शेष.. पर लगता है जैसे ये भी मीलों की दूरी बच गई है ! ताऊ उस खूंटी से दस बारह फ़ुट दूर..... ,  जमीन पर गिर गया है ! अब उठने की भी ताकत नही है ! जैसे जिन्दगी के वन डे मैच की आखिरी बाल...!

गांव वालों ने आवाज लगाई .. उठो ताऊ .. उठो .. सिर्फ़ दस फ़िट बचे हैं ...! ताऊ के प्राण गले मे अटक चुके हैं... फ़िर भी घिसटने की कोशीश.... और दो तीन फ़िट तक घिसटने मे कामयाब .... और अचानक ताऊ की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और उसके प्राण पखेरू उड गये ! खूंटी और ताऊ के बीच सिर्फ़ उतनी ही दूरी शेष बची थी
जितनी एक कब्र को चाहिये यानी छ: या सात फ़ुट ... और यही शायद टाल्सटाय साहब का सन्देश था !

आज अचानक बचपन मे पढी हुई इस कहानी की याद आ गई ! क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? और सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है ! वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत कही हम बहुत पीछे छोड आये हैं....??

भई थारी थम जाणों , पर ताऊ तो इब ताऊगिरी छोड छाड कै शराफ़त सैं
मस्ती मैं जीण कै चक्कर मैं सै ! इब ताऊ तो ताऊ गिरी ना करैगा ! 

तन्नै देखण आले आ रहे सैं !



एक बार एक बिल्कुल काला भुसन्ड गाडिया लुहार और उसके
जैसी ही उसकी लुहारी दोनुं को ही शहर जाणा था !
और भाई कोइ मेलै ठैलै की वजह से उनको बस मै जगह
मिली कोनी ! बस अड्डे से बाहर निकल के दोनुं रेल्वे टेसन
पर पहुन्चगे ! और लुहार नै दो टिकट ले के लुहारी को
पकडा दिये ! लुहारी नै टिकट लेकै अपनै कुरते की गोज (जेब) मे
रख लिये ! और टेसन पर दोनुं रेल आण का इन्तजार करण लाग गे !


थोडी देर बाद ट्रेन आगयी ! और भई रेल के डिब्बे मे हो
राखी थी घणी ठाडी भीड ! फ़िर भी किसी तरियों दोनुं लुहार
और उसकी लुहारी धक्कमपेल करकै नै डिब्बे मै चढ तो लिये
पर लुहार चढा एक दरवाजे से और उसकी लुहारी अटक गयी
दुसरे दरवाजे मे ! थोडी देर बाद दोनुआं नै अलग अलग और
एक दुसरे से थोडी दूर दूर सीट मिल गई और दोनुं न्यारे न्यारे
बैठ गये !


थोडी देर बाद मै टिकट चेकर आ गया ! लुहारी नै उसकॊ
दोनुं टिकट दिखा दिये ! इब टिकट चेकर लुहारी तैं बोल्या --
दुसरी सवारी कुण सी सै ? उसकी शक्ल दिखा !
इब लुहारी नै जोर सै रुक्का मारया और बोली-- ओ लुहार ! जरा खडा
होके नै अपनी शक्ल दिखा दिईये ! तन्नै देखण आले आ रहे सैं !

ताऊ और सेठ का ब्याह


बात या सै तो थोडी पुराणी, पर सै घणी मजेदार !
म्हारे गाम मै ताउ रूडाराम भरी जवानी मै ही रन्डवा हो गया !
और उसके कुछ दिनों बाद ही उसके दोस्त किराने की दुकान आले
गुल्लाराम सेठ की सेठानी को भी यमराज जी ठा ले गये !

तो भाइ दोन्युं दोस्त भरी जवानी मै ही रन्डापा काटण लाग रे थे !
और उनके ब्याह शादी का किम्मै जोगाड नही बैठ रहा था !
और दोन्युं ही घणी कोशीश करण लागरे थे !
थोडे दिन बाद सेठ के ब्याह का जोगाड बैठ गया और उसका
ब्याह हो गया !
ताऊ बडा निराश हो लिया और सेठ के पास पहुंचा !
ताउ-- भई तेरा ब्याह क्युंकर हो गया ? थमनै जितने उपाय करे थे
वो सब तो हमनै भी कर राखे थे !
सेठ-- भई ताऊ ! मैं थमनै बताना भूल गया था ! मेरे को किसी
नै बताया था कि देवी की बली की मन्नत मानने से ब्याह हो जावै सै !
तो मन्नै माताजी के मन्दिर मै एक बकरे की बलि चढाण की मन्नत
ली थी सो म्हारा ब्याह तो , मन्नत के १५ दिन बाद ही हो गया !

इब ताऊ नै सोच्या कि यो बणिये का, सुसरा चुप चाप बली का
काम इक्कल्ला ही कर आया और खुद का ब्याह करा लिया !
तो ताउ नै किम्मै छोह सा आ गया और ताऊ नै सोच्या की
इस बणीयें के नै बकरे की बली देवी कै मन्दिर मै चढाई सै !
आपां तो शिवजी के मन्दिर मै झोठे (MALE BUFFALO) की बली
कि मन्नत मान लेते हैं तो अपणा ब्याह तो सात दिन मै ही हो ज्यागा !
और साहब ताऊ तो फ़टाफ़ट झोठे की बली का करार शिवजी धोरे
कर आया ! और ब्याह होण की बाट देखण लाग गया !

इब न्युं हुया की किस्मत सै ताऊ के ब्याह का जोगाड भी बैठ गया !
इब ताऊ नै भी शिवजी तैं करे हुये बली के करार की फ़िकर सी
होण लाग गी ! झोठे का जोगाड किम्मै बैठया कोनी !
एक दिन ताऊ की नजर गाम के झोठे पे पडगी सो ले गया पकड के
और ताऊ नै गाम के झोठे को रस्से से बांध लिया,
और शिव मन्दिर मै जाकै उसके रस्से को शिव जी की पिन्डी सै
बांध दिया और बोल्या--हे शिव जी महाराज , या रही थारी बली !
चाहे इसनै मार के खा ले, चाहे इसनै जिन्दे नै खा ले !
चाहे पका के खाले चाहे कच्चे नै खा ले ! जैसी तेरी मर्जी !
और अपनै घर पे आ गया !


इब झोठे नै खुन्टे तै बन्धने की आदत तो थी नही सो थोडी देर
तो खडा रहा फ़िर एक दो जोरदार झटके मारे सो शिवजी की पिन्डी
उखड गई और उसनै पांवो मै टकराता सा झोठा चाल पडय़ा
गाम की तरफ़ !
जब वो शिव लिंग झोठे के पैरों मे लगा तो वो डर गया और भाज
लिया और भाजता भाजता माताजी कै मन्दिर कै सामनै से जावै था !
तो माताजी शिव जी के तरफ़ देख कै मुस्कराई और बोली --
शिव जी महाराज यो के हुया ? आज थम झोठे के पैरों मे लौट
लगाण लाग रे हो !
शिव जी रुक्का सा मार के बोले-- घणी मत ना मुस्करावै , तन्नै बणीये का
ब्याह कराया था किसी ताऊ का ब्याह करा के देख, तन्नै बेरा पाट ज्यागा !

एक गधे की दुःख भरी दास्ताँ



आप लोग न्युं मत समझना कि मैं आपको ऐसे ही कोइ कहानी सुना रह्या सूं ! भाई थम इब कोई बालक थोडे ही हो ! या कहानी सै बिल्कूल सांचीं, तो भाइ सुनो !


एक था गधा ! और भाइ वो था एक धोबी का गधा ! इब आप पूछोगे कि भाइ यो कुणसे जमाने की बात सै ? आज कल ना तो धोबी रहे और ना उनके पास गधे ! इब जो धोबी थे उन्होने लान्ड्री खोल ली और गधे की जगह स्कूटर ले लिये !

बिल्कूल भाई थारी बात भी कती सांची सै ! पर यार ये तो सोचो की सारे कूओं में ही भांग थोडे पडगी सै ? अरे भाई थोडे बहुत परम्परावादी धोबी भी सैं और उतने ही परम्परा वादी उनके गधे भी सैं ! और भाइ यकिन ना हो तो आजाना ताउ के धौरै (पास) ! आपको मिलवा देंगे , इस ज्ञानी धोबी और उसके गधे चन्दू से !

यो दोन्युं बडे मजे मे थे ! रोज सुबह धोबी अपने गधे पर कपडे लाद के और छोरियां के कालेज कै सामने से होता हुया कपडे धोनै जलेबी घाट जाया करता और वो जब तक अपने कपडे धोता तब तक चन्दू गधा नदी किनारे की हरी हरी घास खाया करता ! और फ़िर समय बचता तो ठन्ढी छांव मे लोट पोट हो लिया करता ! इतना सुथरा और गबरू गधा था की , आप पूछो ही मत !

कभी इसका मूड आजाया करता था तो नेकी राम की रागनी भी बडे उंचे सुर मे गा लिया करै था ! और भाइ बडा सुथरा गाया करै था !पर भाइ पता नही यो गधा कुण सी जात का था कि इतना सुन्दर और जवान होने के बावजूद भी इसने कभी किसी पराई गधी पर बुरी नजर नही डाली ! और ना ही कभी किसी गधी पर लाइन मारनै की सोची !

वहां पर दुसरे धोबियों और कुम्हारों की सुन्दर सुन्दर और जवान गधियां भी आया करै थी पर चन्दू ने कभी उनकी तरफ़ नजर उठा कर भी नही देखा ! हालांकि ये और बात है कि चन्दू को रिझाने के लिये उन गधियों ने बहुत सारी कोशिशें की जो सब बेकार गई ! यहां तक कि उन पुरातन पन्थी गधियों ने टाइट जीन्स और लांडी कुर्ती भी पहनना शुरू कर दिया
पर वो चन्दू का दिल नही जीत सकी !

और साहब आप ये समझ ल्यो कि चन्दू गधा लन्च करता हुवा यानि घास चरता हुवा इन गधियों के बीच मे चला जाता तो भी उन सुन्दर और जवान गधियों के मालिकों को कोई ऐतराज नही होता , बल्कि कोइ कोइ तो अपनी गधी का जिम्मा भी चन्दू गधे को दे देता कि कहीं कोइ दुसरा गधा उनकी जवान गधी को बहला फ़ुसला कर भगा ना ले जावै !
इतना शरीफ़ और लायक था चन्दू !

इधर कुछ दिनों तैं ग्यानी धोबी नै देख्या कि आज कल कालेज कै पास आकै गधा थोडा धीरे हो जाता था ! और कालेज कै सामनै आली दुकान पै आके तो एकदम रुक ही जाया करै था ! असल मै चंदू गधे को एक सुन्दर, जवान और चटक मटक सी कालेज की छोरी धोरै प्यार हो गया था !

इब गधा तो था ही सो चढ गया इस नव योवना कै चालै ! और आज कल बडा रोमान्टिक मूड मै रह्या करता और घर से गठरी लादनै के पहले बाल बनाके, दाढी कटिंग सब तरिके से करकै निकल्या करै था ! इब धीरे धीरे इन दोनुआं का इश्क परवान चढनै लग गया ! कभी छोरी इसके तरफ़ देखकै मुसकरा देवे, कभी बाल झटक कै अपनी अदा दिखावै
और कभी मुस्करा के गर्दन को बडी अदा से घुमा ले !

और चंदू गधा भी कभी आंख का कोना दबा कर और कभी कोइ प्रेमगीत गुन गुना कर जबाव देता था ! और साहब "हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने" इसी गाने को चन्दू गधा गुन गुनाया करै था !

आप न्युं समझ ल्यो की इब से पहले भी इस हसींन जवान कन्या ने कई गधों को अपने इश्क के जाल मैं उलझाया था और इबकै बारी आगी सै इस चिकनै और कर्म जले चन्दू गधे की जो इतनी सुन्दर और सुशील गधियों को छोडकर इस सर्राटा आफ़त के लपेटे मे आ लिया !

इब धीरे धीरे बात यहां तक आ गई कि दोन्युं डेटिंग भी करनै लग गये ! धोबी जब तक कपडे धोता तब तक चन्दू गधा फ़ुर्र हो लेता और वो जवान छोरी भी तडी मारके कालेज से गायब ! कभी माल मै जाकै सिनेमा तो कभी काफ़ी शाप
पर ! और साहब ये समझ लो कि चन्दू तो २४ घन्टे इसी परी के ख्वाबों और ख्यालों में डूबा रहने लग गया ! उस इश्क के अन्धे को ये भी नही दिखाई दिया कि उन दोनु को खुले आम लप्पे झप्पे करते देख कै दुसरे गधे भी उस कन्या पर डोरे डालनै लग गये हैं !

कुछ समय बाद चन्दू को लगा की वो कन्या उससे कुछ ढंग से बात नही करती थी ! और उससे कूछ उखडी उखडी सी
रहण लाग री थी ! इब चन्दू ठहरा सीधा बांका नौजवान और उपर से गधा , सो वो क्या जाने इन अजाबों के चाल्हे !
और इस सीधे सादे गधे को क्या मालूम था कि वो बला तो अपना टाइम पास कर रही थी ! वर्ना तो उसके सामने क्या चन्दू और क्या चन्दू की ओकात ! अपनी जात से बाहर जाकै प्यार करने के यो ही अन्जाम हुया करै सैं ! गधा होकै आदम जाद तैं प्यार करनै चला था !...... गधा कहीं का....... ! हमनै तो सुण राख्या था कि गधे ही
दुल्लत्ती मारया करै सैं पर भाई इस बला नै तो चन्दू गधे को वो दुल्लत्ती मारी कि यो चन्दू ओंधे मूंह कुलांट खा गया !

वाह रे चन्दू गधे की किस्मत ! असल में हुया यो की इब उस छोरी का दिल चन्दू से ऊब गया था और वो एक सेठ के गधे से फ़ंस गई थी ! ये सेठ का गधा भी क्या गधा ? बल्कि गधे के नाम पर कलंक ! पर चुंकि सेठ का गधा था तो था ! आप और हम इसमे क्या कर लेंगे ? इसिलिये तो कहते हैं "जिसका सेठ मेहरवान उसका गधा पहलवान" ! बिल्कुळ मोटा काला भुसन्ड और दो जवान बच्चों का बाप !
पर आया जाया करै था मर्सडीज कार मे और घने दिनों तैं डोरे फ़ेंक राखे थे इस छोरी पै ! इब कहां ज्ञानी धोबी का गधा चन्दू और कहां सेठ किरोडीमल का गधा ? चन्दू पैदल छाप और ये मर्सडिज बेन्ज मै चलने वाला गधा ! सो छोरी को तो फ़सना ही था ! फ़ंस ली !

क्यों की फ़ंसना और फ़साना ही तो उसके प्रिय शगल थे ! और इसकै नखरै उठानै मैं इस मोटे गधे ने कोइ कमी भी नही
छोड राखी थी ! चन्दू की तो इस सेठ के गधे के सामने ओकात हि क्या ?

इब चन्दु सडक के बीचों बीच गाता जावै था
" वो तेरे प्यार का गम इक बहाना था सनम"
ताऊ उधर तैं निकल रह्या था ! गधे नै यो गाना गाते सुन के बोल्या --
अबे सुसरी के ! बेवकूफ़ गधे के बच्चे ! इब क्युं देवदास बण रह्या सै ? तेरे को पहले सोचना चाहिये था कि इन बलाओं से तेरे जैसे साधारण गधे को इश्क नही करना चाहिये ! इनसे तो कोई बडे सेठ का गधा ही इश्क कर सकै सै ! फ़िर वो भले ही दो जवान बच्चों का बाप हो ! या काला मोटा और उम्रदराज हो ? आखिर धन माया ही तो सब कुछ है इस जमाने में ! अरे उल्लू के पठ्ठे... ये कोइ लैला मजनूं वाला जमाना नही सै ! अबे गधेराम ये इक्कसवीं सदी है ! इसमे तो धन माया के पीछे भाइ भाइ , बाप बेटे यहां तक की मियां बीबी भी एक दुसरे की कब्र खोद देवैं सै ! तु भले कितना ही सुथरा और शरीफ़ गधा हो ! है तो तू आखिर धोबी का ही गधा !

और ये सुन कर चन्दू , चुपचाप, हारे जुआरी जैसा कपडे की गठरी लादे जलेबी घाट की और बढ लिया !