भरी दोपहर का समय ! ताऊ अपने खेत मे हल चला रहा था ! और मन ही मन परमात्मा को कोसता भी जावै था ! इतनी देर मे उधर से एक फ़कीर जैसा दिखने वाला आदमी निकलता है ! वो आकै ताउ के पास राम राम करकै पानी पिलवाने का कहता है ! ताउ उसे पानी पिलवाता है ! और दोनो पेड के निचे बैठ कर चिलम
पीते हुये बाते करने लगते है !
फ़कीर उससे पूछता है कि खेत मे कितना अनाज वगैरह हो जाता है ! घर मे कौन कौन हैं आदि आदि ...
ताऊ-- बाबा ये उपर वाला तो न्युं समझ ले कि मेरे से और मेरे बच्चो से दुश्मनी पर ही उतर आया सै ! हम सारे घर वाले दिन रात इन खेतों मे मेहनत मजदूरी करते है पर आप समझ लो कि सारी साल मे हम आधे समय भुखे ही सोते है !
फ़कीर को ताऊ बताता है कि उसके पास सिर्फ़ यही एक खेत है ! और इस एक खेत से पुरे परिवार का गुजारा नही हो पाता !
फ़कीर बोला-- ताऊ तुम एक काम करो कि इस खेत को बेच दो और यहां से पश्चिम दिशा मे चले जावो वहा पर तुमको इसके बदले मे सैकडों एकड जमीन मिल जायेगी ! और जमीन भी इससे कहीं ज्यादा उपजाउ मिलेगी ! ताऊ को इतना बता कर फ़कीर तो चला गया ! पर ताऊ परेशानी मे पड गया ! घर आया और सारी बात अपनी लूगाई को बताई !
ताऊ की लूगाई किम्मै समझदार थी सो उसने ताऊ को मना किया ! और बोली -- अपण तो रूखी सुखी खाकै इत ही आछे सैं ! हमनै अपनी यो बाप दादे की जमीन नही बेचणी , चाहे कुछ भी हो !
पीते हुये बाते करने लगते है !
फ़कीर उससे पूछता है कि खेत मे कितना अनाज वगैरह हो जाता है ! घर मे कौन कौन हैं आदि आदि ...
ताऊ-- बाबा ये उपर वाला तो न्युं समझ ले कि मेरे से और मेरे बच्चो से दुश्मनी पर ही उतर आया सै ! हम सारे घर वाले दिन रात इन खेतों मे मेहनत मजदूरी करते है पर आप समझ लो कि सारी साल मे हम आधे समय भुखे ही सोते है !
फ़कीर को ताऊ बताता है कि उसके पास सिर्फ़ यही एक खेत है ! और इस एक खेत से पुरे परिवार का गुजारा नही हो पाता !
फ़कीर बोला-- ताऊ तुम एक काम करो कि इस खेत को बेच दो और यहां से पश्चिम दिशा मे चले जावो वहा पर तुमको इसके बदले मे सैकडों एकड जमीन मिल जायेगी ! और जमीन भी इससे कहीं ज्यादा उपजाउ मिलेगी ! ताऊ को इतना बता कर फ़कीर तो चला गया ! पर ताऊ परेशानी मे पड गया ! घर आया और सारी बात अपनी लूगाई को बताई !
ताऊ की लूगाई किम्मै समझदार थी सो उसने ताऊ को मना किया ! और बोली -- अपण तो रूखी सुखी खाकै इत ही आछे सैं ! हमनै अपनी यो बाप दादे की जमीन नही बेचणी , चाहे कुछ भी हो !
पर ताऊ के मन मे तो उस फ़कीर के दिखाए सपने हिलोरे मार रहे थे ! उसके सीधे साधे मन मे उस फ़कीर ने जो लोभ का बीज बो दिया था, वो अब तक बहुत बडा पेड बन चुका था ! और आप तो जानते ही हो कि लोभ के आगे आदमी नै कुछ भी नही दिखाई देता ! आजकल भी कई लोग लोभ मे आकै अपने को लुटवा पिटवा बैठते हैं ये सब इसी ताऊ की जात के हैं !
घरवालों के लाख मना करने के बाद भी ताऊ नै अपना खेत ओने पोने दाम मे बेचकर रुपये अपनी अंटी मे करे और अपनी लुगाई बच्चों से यह कह कर निकल लिया की वो वहा जाकर जमीन खरीद लेगा और सब इन्तजाम करकै उनको भी ले जायेगा !
चलते चलते शाम हो गई पर उसको फ़कीर की बताई जैसी कोई जगह नही दिखी ! मन मे लाख तरह के विचार आने लग गये .... चोर डाकू आदि.. क्योंकि उसके पास तो सारी जन्मो की कमाई खीसे (जेब) मे रखी थी !
ये क्या किसी अम्बानी के साम्राज्य से कम हैसियत की थोडी थी ?
इतनी देर मे ताऊ को दूर कही किसी गांव का आभास हुआ ! और ताऊ उसी दिशा मे बढ गया ! उसने सोचा की आज की रात इसी गांव मे बिताकर कल आगे बढ जायेगा ! गांव मे पहुंच कर देखा की गांव के बहुत सारे लोग चबुतरे पर बैठे थे ! और गप्प्बाजी मे लगे थे ! ताऊ को लगा कि ये कहीं ठगों का गांव नही हो कारण की ताऊ की जेब मे ताऊ का सारा साम्राज्य रखा था अगर कहीं लुट पिट गया तो बाल बच्चों का क्या होगा ?
डरते डरते उन लोगों के बीच पहुंच कर राम राम श्याम श्याम करी ! वहां बैठे लोगों ने उसको चाय पानी के बाद हुक्का उक्का पिलवाया ! और अब ताऊ को विश्वास हो गया कि ये लोग ठग वग नही हैं तो उसने चैन की सांस लेकर उन लोगों से फ़कीर द्वारा बताई जगह के बारें में पूछा -- की भाई यह जगह कितनी दूर पडेगी ?
उनमे से जो उनका मुखिया जैसा दिखता था वो बोला -- अरे ताऊश्री, आप बिल्कुल सही जगह पहुंच गये हो ! ये ही वो जगह है जहां पर इतनी सस्ती जमीन मिलती है ! इतना सुनते ही ताऊ को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई हो ! वो झट से भाव पूछने लगा और किसके और कौन से खेत बिकाऊ हैं ? आदि आदि ॥ एक ही सांस मे पूछ बैठा !
वहां का मुखिया बोला--अरे ताऊ अब रात होने को आई है ! आप खा पीके आराम करो , सुबह आपको खेत भी दिखा देंगे और भाव भी बता देंगे ! पर ताऊ को तो कहां आराम था ? उसने फ़िर वही आग्रह दोहरा दिया ! ताऊ तो इस तरह बेसबरा हो रहा था जितने बेसबरे एल.एन.मित्तल साहब आरसेलर खरीदने मे और रतन टाटा साहब कोरस स्टील के सौदे मे भी नही हुये होंगे ! पर ताऊ के सौदे के सामने ये सौदे तो चवन्नी भी नही थे ! कहां बाप दादों की जमीन का बिक कर आया खानदानी पैसा? और कहां जनता के धन से आरसेलर कोरस स्टील खरीदने वाले मित्तल और टाटा? ताऊ के सामने ये कुछ भी नही.
इस पर गांव का मुखिया बोला-- ताऊ देखो.. इस पुरे गांव की जमीने बिकाऊ हैं, और आप पूरे गांव के खेतों का सौदा किसी से भी कर लो , सबको आपस मे मन्जूर है ! हम लोगों का मुख्य काम ये जमीने और खेत बेचने का ही है ! और हम बेचते अपनी शर्तों पर ही हैं !
ताऊ के पुछने पर मुखिया जी ने बताया कि यहां जो भी खेत खरीदने आता है उन सबके लिये एक ही भाव है !
दिन उगने से लेकर दिन छिपने तक जितनी जमीन का चक्कर काट लो वो जमीन खरीदने वाले की हो जाती है बदले मे आपकी जेब मे जितने पैसे हों वो हम गांव वाले ले लेते हैं ! हम सीधे साधे लोग हैं और सीधी साधी बात करते हैं ! बोलो हो मन्जूर तो कर लो सौदा !
ताऊ को कहां चैन था ? रात को ही खूंटी गडवा ली , यानी जिस जगह से भागना था ! सुबह क्यों समय खराब करना? कही देर हो जाये !
अब मुखिया बोला-- ताऊ हम सुबह आये या नही आये , आप पर हमको पूरा यकीन है , कारण ग्राहक तो भगवान होता है, आप तो यहां से दोडना शुरु करना जितने खेतों का चक्कर लगा आवोगे वो सारे आपके
हो जायेंगे ! पर ध्यान रहे दिन डुबने से पहले लोट आना नही तो आपके पैसे हजम हो जायेंगे ! ताऊ मन ही मन बोल्या -- अरे मुखिया तू आज किसी ताऊ के चाल्हे चडया सै ! आज देख ताऊ तेरा पूरा गांव ही डकार लेगा !
इस पर गांव का मुखिया बोला-- ताऊ देखो.. इस पुरे गांव की जमीने बिकाऊ हैं, और आप पूरे गांव के खेतों का सौदा किसी से भी कर लो , सबको आपस मे मन्जूर है ! हम लोगों का मुख्य काम ये जमीने और खेत बेचने का ही है ! और हम बेचते अपनी शर्तों पर ही हैं !
ताऊ के पुछने पर मुखिया जी ने बताया कि यहां जो भी खेत खरीदने आता है उन सबके लिये एक ही भाव है !
दिन उगने से लेकर दिन छिपने तक जितनी जमीन का चक्कर काट लो वो जमीन खरीदने वाले की हो जाती है बदले मे आपकी जेब मे जितने पैसे हों वो हम गांव वाले ले लेते हैं ! हम सीधे साधे लोग हैं और सीधी साधी बात करते हैं ! बोलो हो मन्जूर तो कर लो सौदा !
ताऊ को कहां चैन था ? रात को ही खूंटी गडवा ली , यानी जिस जगह से भागना था ! सुबह क्यों समय खराब करना? कही देर हो जाये !
अब मुखिया बोला-- ताऊ हम सुबह आये या नही आये , आप पर हमको पूरा यकीन है , कारण ग्राहक तो भगवान होता है, आप तो यहां से दोडना शुरु करना जितने खेतों का चक्कर लगा आवोगे वो सारे आपके
हो जायेंगे ! पर ध्यान रहे दिन डुबने से पहले लोट आना नही तो आपके पैसे हजम हो जायेंगे ! ताऊ मन ही मन बोल्या -- अरे मुखिया तू आज किसी ताऊ के चाल्हे चडया सै ! आज देख ताऊ तेरा पूरा गांव ही डकार लेगा !
आखिर ताऊ ने तीन बजे के आसपास वापसी शुरू की ! भूखा प्यासा बेतहासा वापस दोड रहा है ! सही भी है अब तो सारी उम्र बैठ कर ही खाना है , इतनी सारी जमीन का मालिक जो बन जायेगा ! ताऊ बिल्कुल सरपट दोडे जा रहा था ! आखिर जीवन मरण का जो सवाल है !
उधर गांव वाले चबुतरे पर मजे से ताश पत्ती खेल रहे हैं और हुक्का चिलम पी रहे हैं ! इस बात से बेखबर की एक हरयानवी ताऊ आज उनकी सारी जमीनों पर कब्जा कर लेने वाला है ! बडे बेफ़िकर .. उनको मालूम है उनकी जमीन आज तक कोई नही खरीद पाया तो इस ताऊ की तो ओकात ही क्या ?
दिन बस डुबने को है और ताऊ कहीं दूर तक भी गांव वालों को आता हुआ दिखाई नही दे रहा है ! सारे गांव वाले उस खूंटी के पास जमा हो चुके हैं ! इतनी देर मे ताऊ लस्त पस्त सा आता हुआ दिखाई देने लगा है ! जैसे उसमे जान ही नही हो ! फ़िर भी पुरी ताकत झोंक रखी है उस खूंटी तक पहुंचने के लिये ! गांव वाले उसका उत्साह वर्धन करते हैं उनको मालूम है ये नही पहुंचेगा ! ये तो क्या आज तक कोई वापस नही पहुंच पाया इस खूंटी तक !
ताऊ की आंखों के आगे अन्धेरा छा रहा है , हलक सुख चुका है, दिन डुबने मे है और टांगे जबाव दे चुकी हैं थोडी दूरी शेष.. पर लगता है जैसे ये भी मीलों की दूरी बच गई है ! ताऊ उस खूंटी से दस बारह फ़ुट दूर..... , जमीन पर गिर गया है ! अब उठने की भी ताकत नही है ! जैसे जिन्दगी के वन डे मैच की आखिरी बाल...!
गांव वालों ने आवाज लगाई .. उठो ताऊ .. उठो .. सिर्फ़ दस फ़िट बचे हैं ...! ताऊ के प्राण गले मे अटक चुके हैं... फ़िर भी घिसटने की कोशीश.... और दो तीन फ़िट तक घिसटने मे कामयाब .... और अचानक ताऊ की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और उसके प्राण पखेरू उड गये ! खूंटी और ताऊ के बीच सिर्फ़ उतनी ही दूरी शेष बची थी
जितनी एक कब्र को चाहिये यानी छ: या सात फ़ुट ... और यही शायद टाल्सटाय साहब का सन्देश था !
आज अचानक बचपन मे पढी हुई इस कहानी की याद आ गई ! क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? और सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है ! वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत कही हम बहुत पीछे छोड आये हैं....??
भई थारी थम जाणों , पर ताऊ तो इब ताऊगिरी छोड छाड कै शराफ़त सैं
मस्ती मैं जीण कै चक्कर मैं सै ! इब ताऊ तो ताऊ गिरी ना करैगा !
उधर गांव वाले चबुतरे पर मजे से ताश पत्ती खेल रहे हैं और हुक्का चिलम पी रहे हैं ! इस बात से बेखबर की एक हरयानवी ताऊ आज उनकी सारी जमीनों पर कब्जा कर लेने वाला है ! बडे बेफ़िकर .. उनको मालूम है उनकी जमीन आज तक कोई नही खरीद पाया तो इस ताऊ की तो ओकात ही क्या ?
दिन बस डुबने को है और ताऊ कहीं दूर तक भी गांव वालों को आता हुआ दिखाई नही दे रहा है ! सारे गांव वाले उस खूंटी के पास जमा हो चुके हैं ! इतनी देर मे ताऊ लस्त पस्त सा आता हुआ दिखाई देने लगा है ! जैसे उसमे जान ही नही हो ! फ़िर भी पुरी ताकत झोंक रखी है उस खूंटी तक पहुंचने के लिये ! गांव वाले उसका उत्साह वर्धन करते हैं उनको मालूम है ये नही पहुंचेगा ! ये तो क्या आज तक कोई वापस नही पहुंच पाया इस खूंटी तक !
ताऊ की आंखों के आगे अन्धेरा छा रहा है , हलक सुख चुका है, दिन डुबने मे है और टांगे जबाव दे चुकी हैं थोडी दूरी शेष.. पर लगता है जैसे ये भी मीलों की दूरी बच गई है ! ताऊ उस खूंटी से दस बारह फ़ुट दूर..... , जमीन पर गिर गया है ! अब उठने की भी ताकत नही है ! जैसे जिन्दगी के वन डे मैच की आखिरी बाल...!
गांव वालों ने आवाज लगाई .. उठो ताऊ .. उठो .. सिर्फ़ दस फ़िट बचे हैं ...! ताऊ के प्राण गले मे अटक चुके हैं... फ़िर भी घिसटने की कोशीश.... और दो तीन फ़िट तक घिसटने मे कामयाब .... और अचानक ताऊ की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और उसके प्राण पखेरू उड गये ! खूंटी और ताऊ के बीच सिर्फ़ उतनी ही दूरी शेष बची थी
जितनी एक कब्र को चाहिये यानी छ: या सात फ़ुट ... और यही शायद टाल्सटाय साहब का सन्देश था !
आज अचानक बचपन मे पढी हुई इस कहानी की याद आ गई ! क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? और सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है ! वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत कही हम बहुत पीछे छोड आये हैं....??
भई थारी थम जाणों , पर ताऊ तो इब ताऊगिरी छोड छाड कै शराफ़त सैं
मस्ती मैं जीण कै चक्कर मैं सै ! इब ताऊ तो ताऊ गिरी ना करैगा !
ईस कहानी को याद दिलाने का धन्यवाद...बचपन में पढी थी, एक बार फिर वक्त का पहिया जैसे पीछे घूम गया है।
ReplyDeleteकितनी ज्ञानवर्धक और शिक्षाप्रद कहानी की आपने याद दिला दी ! शायद इंसान कही खो चुका है ! आपने टाल्सटाय का नाम शीर्षक मे ही दे दिया तो तुरंत दिमाग मे ये कहानी घुम गई ! मेरी प्रिय
ReplyDeleteकहानी ! पर मैं सच बोलु तो भूल चुकी थी ! आप मजाक बाजी करते करते इतनी गम्भीर चोट कर गये ! शायद इसीलिये आप ताउ हो ?
दिल से शुक्रिया !
आप ताउ हो या क्या हो ?
ReplyDeleteआज कल की गम्भीरतम सच्चाई है !
शायद हम इसी उधेडबुन मे लग चुके है !
मैने ये कहानी पहले बार पढी है ! पर मेरे
उपर सौ % सही बैठती है ! हा मै मंजूर करता हू कि मैं टाल्सटाय का ताउ बनने की तरफ बढ रहा हूँ ! शायद मुझे वापस लोटने की सोच लेना चाहिये ! ज्यदातर इंसान मेरे जैसे ही हो चुके हैं !
आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
रामपुरिया साब हम तो समझै थे आप कोरी हरयानवी की गप्प बाजी ही करो हो पर आपनै तो हरयानवी भाषा मे टाल्सटाय को भी ल्याकर
ReplyDeleteखडा कर दिया सै ! अपनी भाषा मै टाल्स्टाय नै पढ कर घणा मजा आ ग्या ! ताउ थारी लम्बी उम्र हो और इसी तरह हरयानवी मे लिखते रहो !
धन्यवाद
बिना अर्थ सब व्यर्थ बंधु,मान रहा इनसान
ReplyDeleteपैसा ही अब हो गया,सचमुच में भगवान
सचमुच में भगवान,झूठ सब रिश्ते-नाते
ताऊ हम नाचीज,बात यह समझ न पाते
जगदीश त्रिपाठी
vaakai aapane aadami ki aukaat yaad dilwa di . bahut dhanyavaad hai aapako .
ReplyDeleteताउ हम तो अपनी औकात मे ही रहते हैं पर आप जानो आज कल के खर्चे भी लगे पडे हैं ! सो थोडी बहुत उछल कूद तो करनी ही पडै है ! फिर भी म्हारी औकात याद दिलाने के लिये धन्यवाद ! और हम याद भी राखांगे !
ReplyDeleteआगे तै ज्यादा उछल कूद नही करांगे !
very good post! keep up the good work!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक एवं शिक्षाप्रद..आभार!!
ReplyDeleteवाकई यही वर्तमान जीवन की हकीकत है !
ReplyDeleteटाल्सटाय का बहुत उम्दा रत्न आपने सामने रख दिया है !
इसके लिये आपको कोटिश्: धन्यवाद !
Bachpan ki padhi huyee kahaani yaad dila di aapne
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर और ज्ञानप्रद कहानी है !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !
टाल्सटाय का ताउ -- बढिया नामकरण किया है आपने | आखिर टालसटाय भी हरयाणा वालों के चक्कर मे आ ही गया |भगवान बचाए उसको | पर लिखा आपने सुंदर !! बधाई !
ReplyDeleteबहुत ही शिक्षाप्रद कहानी सुना दी भाई जी अपने. इस लालच ने तो हमेश ही बडा गर्क किया है खासकर हमारे देश का. हर सामंत ख़ुद राजा बनने के लालच में अपनी कबर खोदता रहा. और आज भी घर-घर में झगडा मचा हुआ है. ताऊ तो चला गया - ताई नै छोड़ गया भूखा मरने को.
ReplyDeleteभाई साहब, आप आए राजभोग खाने और निराश चले गए - घना दुःख हुआ. फ़िर आईये आपको शिरवल (सातारा) की भजिया खिलाते हैं इस बार.