महामहिम की फटकार


हरियाने का आदमी जब भी कुछ बोलता है तो ये लगता है की पत्थर मार रहा है ! पर ये हवा पानी का ही असर है ! हमारे महामहिम श्री बलराम जी झाखड साहब मोजुदा दौर के उन राजनीतिज्ञों में से हैं जो बहुत ही सुसंस्कृत और विद्वान् हैं ! और शायद ये कम ही लोगों को पता होगा की महामहिम संस्कृत के प्रकांड विद्वान् हैं ! इनके बोलने के अंदाज से आप ये मत समझ लेना की ये रूखे सूखे हैं ! इनके बराबरी का कोई राजनीतिज्ञ मुझे दिखाई नही देता जो इतना प्रकांड विद्वान् और सरल आदमी हो ! मैं तो इनके स्वभाव से बहुत पुराने जमाने से परिचित हूँ ! अपनी और से इन्होने नौकरशाही को सुधारने की बड़ी कोशिशें की हैं ! और इनका अंदाजे बयाँ देख कर आप भी दाद देंगे की आज भी कोई तो है, जो किसी से डरता नही ! और ऎसी बातें सिर्फ़ वही बोल सकता है जिसका ख़ुद का दामन पाक साफ़ हो !

कृपया
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और
हाँ , याद आया की एक बार हरियाने के मंत्री जी ने ये हुक्म निकाल दिया की सब सरकारी कर्मचारी जनता से बात करते समय कृपया शब्द का प्रयोग अवश्य करे ! और नम्रता से व्यवहार करे ! अब एक बस कंडक्टर की भाषा और नम्रता देखिये ! अगर ये नम्रता है तो .....?
बस मे ज्यादा भीड़ हो रही थी और कुछ सवारियां दरवाजे के बाहर लटक रही थी ! कंडक्टर नै आके जोर से आवाज लगाई -- कृपया भीतर नै आके मर ल्यो ! नही तो बाहर ही टपक के मर ल्योगे !

बिल गेट्स के पांच सूत्र


दुनियां के सबसे अमीर लेकिन अब सन्यस्त हो चुके बिल गेट्स के
दिये गये ५ स्वर्णिम सूत्र । आजमा कर देखिए , शायद घाटे में नही
रहेंगे । और क्या पता , इन फ़न्डों पर चलते हुये अगला नम्बर
आपका ही हॊ । लिजिये ...

१. अगर आप गड्बडियां करते हों तो उसके लिए अपने माता पिता
को दोष ना दे । अपनी गल्तियों का रोना रोने के बजाए उनसे
सीखने का प्रयास करें ।

२. आपके पैदा होने से पहले आपके माता पिता इतने नीरस नही थे,
जितने अब हैं । वे आपके जरूरी-गैर जरूरी खर्च उठाने, आपके कपडे
साफ़ करने और आपकी हर बात सुनने की वजह से ऐसे हो गये हैं ।

३. आपकी स्कूल मे हर चीज का निर्धारण भले ही पास फ़ेल से होता हो,
लेकिन जिन्दगी मे हर बार ऐसा नही होना जरूरी नही है ।

४. जिन्दगी की स्कूल में सेमेस्टर्स नही होते । इसमे आपको गर्मियों की
छुट्टियां नही मिलेंगी ।

५. अनाकर्षक व्यक्तियों के प्रति भी अच्छी राय रखें । हो सकता है आपको
ऐसे ही किसी व्यक्ति के लिये काम करना पडे ।

इन सूत्रों के लिये धन्यवाद बिल साहब !
और शुभकामनाएं आप जिन्दगी के इस दुसरे मिशन मे भी पहले
जितने ही कामयाब हो ! यही प्रार्थना है ।

फ़ील्ड मार्शल, बिल गेट्स और सेठ

शेयर बाज़ार ने तो पुरे सप्ताह ही उम्मीद के अनुसार सबको, चारों खाने चित ही रखा
जो बन्दर जैसे समझदार थे उन्होंने कमाई करी और ज्यादातर लोगों ने जूते ही खाए
ताऊ और बन्दर दोनों बैठे बात चीत कर रहे थे
बन्दर- - ताऊ इस सप्ताह आपने ताउनामा नही सुनाया ?
ताऊ-- हाँ यार बन्दर ! इस सप्ताह दो बड़ी घटनाएं या दुर्घटनाएं हो गई
बन्दर-- कौन कौन सी ? हमकों भी तो बताओ
ताऊ -- भई , पहली तो यो की अपने फील्ड मार्शल मानेक शा साब अब इस दुनिया में नही रहे
सो भई इस दुनिया सै जाना तो सबको है और हमारे मार्शल साब तो ऐसे ऐसे बड़े बड़े कारनामे करके गयें हैं, की वो इस दुनिया से भले चले गए हो पर उनकी याद कभी नही जायेगी
और उनके बनाए कीर्तिमान शायद ही कोई और तोड़ सके
बन्दर-- ताऊ कुछ विस्तार से बताओ ना !
ताऊ-- अबे बन्दर तू स्साले फोकट बक बक करके बात को लंबा खीच देता है थोड़ा अखबार भी पढ़ लिया कर सारे अखबार रंगे पड़े हैं फिल्ड मार्शल साब के कारनामों से और भई ये तो हमारे मिडीया और प्रेस को धन्यवाद है, जो इस भारत मां के सपूत के सम्मान में उन्होंने कोई कसर नही छोडी उनके बारे में पूरी की पूरी जानकारी मिडीया ने दी है इब तेरे जैसे कर्मठोक ना पढ़े तो कोई क्या कर लेगा ?
बन्दर-- ताऊ आप तो खाम खा: नाराज हो रहे हो , आप जानते हो की मैं बिना पढा लिखा हूँ
इसीलिए तो आप के पास टिका हूँ नही तो मैं भी किसी बड़ी कम्पनी का सी. ई. ओ. नही होता क्या ?ताऊ-- देख बे बन्दर ! मानेकशा साब नै दुसरे विश्व युद्ध से लेकर और १९७१ तक के सारे युद्ध लड़े और भई ऎसी फतह हासिल करी की, आज उनकी मिस्साल बन गई हैं भई यो किसी से नही डरता था न्यूँ समझ लेकी ग़लत बात पे एक बार इन्दीरा गांधी नै भी टका सा जबाव पकडा दिया था और भई बहादुर ऐसा की सही बात पे दुश्मन की भी तारीफ़ कर देवे था
बन्दर-- ताऊ और भी कुछ बताओ ना , इनके बारे मैं !
ताऊ-- देख बन्दर अगर तेरे को जानना ही है तो लिखना पढ़ना सिख ले इनकी यश गाथा तो मैं सारे जनम में भी पूरी नही सूना सकता बस तू इस बात से अंदाज लगा ले की १९७१ के युद्ध में कोई नब्बे हजार पाकिस्तानी सिपाहियां नै रेवड़ की तरह घेर के , बंदी बना के , उनको बाड़े में डाल दिया था , इस भारत मां के सपूत ने ऐसा वीर सिपाही था वो और भई शांत और शरीफ इतना के इराक़ की लड़ाई पर उनकी प्रतिक्रया पूछी तो उनके शब्द थे---मैं तो शांतिप्रिय आदमी हूँ , जंगो के बारे में कुछ भी नही जानता हे महानायक आपको सलाम !
बन्दर -- और दूसरी घटना क्या हुयी ताऊ ?
ताऊ -- भई बन्दर , दूसरी घटना म्हारे देश की नही सै, पर यो नक़ल म्हारे देश की ही सै
बन्दर-- पहेलियाँ मत बुझाओ ताऊ ! फ़िर मुझे दोष देते हो की बात को लम्बा खींचता हूँ
और आप ख़ुद किसी बात को बिना पेंच लड़ाए छोड़ते ही नही हो
ताऊ-- हाँ यार बन्दर , सारी उम्र हो गयी खैर .. मैं तने बता रहा था बिल गेट्स के बारे में
भई इन्होने अपनी सारी धनसम्पति छोड़ कर अब ये दूसरों की सेवा में अपना बाक़ी जीवन लगायेंगे
बन्दर-- ताऊ इसमे क्या बड़ी बात हो गई ? इनके पास माल है ये कुछ भी कर सकते हैं
ताऊ-- नही बे पागल के बच्चे ! तू बीच में मत बोल्या कर सारी बात का मजा किरकिरा कर देता है अरे इन्होने अपना सब कुछ छोड़ छाड़कर गरीबों की सेवा करने का व्रत लिया है और भई , अगर म्हारे देश मे , कोई इस तरह अपनी सम्पति का त्याग कर दे तो सीधा भगवान ही कहलावे था और इतनी बड़ी धन संपदा को छोड़ना कोई साधारण मानव के बूते की बात नही सै यो तो कोई महामानव ही कर सके है और पुराने जमाने में हमारे यहाँ भगवान महावीर और बुध्द ने भी ऐसा ही त्याग किया था हे महामानव बिल गेट्स आपको भी सलाम और शुभकामनाएं
और अब आज कल, अपने यहाँ पर तो पैसे वाले मरते दम तक दमडी भी छोड़ने को तैयार नही हैं।
अब हमारे छोटे छोटे किराने के दुकानदार , सब्जी-फल बेचने वाले और तमाम तरह के खेरची धंधा करने वालों को इन बड़े उद्योग पतियों ने बेरोजगार कर दिया है
बन्दर-- ज़रा खुल के बताओ ताऊ
ताऊ-- अरे इसमे खुल के और बंद हो के बताने वाली कौनसी बात सै
सारी दुनिया जाने सै की यो अम्बानी, बियानी और सारे मोटे मोटे सेठों ने कसम खा ली है की
हम इन छोटे मोटे धंधा करने वालों को बेरोजगार कर देंगे
और सड़क पे झाडू लगाने से लेके दूध, सब्जी , नमक सब कुछ ये ही बेचेंगे
बन्दर-- हाँ ताऊ ! पहले नमक एक रुपये का दस किलो बिकता था और अब दस रुपये का एक किलो ?ताऊ -- हाँ यार बन्दर ! इन बड़े लोगों का पेट भी बड़ा ही होता है ये ५ पैसे की चीज को ५० रुपये कीनही बेचें, तब तक इनके पेट ही नही भरते भई बन्दर एक बार न्यूँ हुया की एक सेठ मर गया और बड़ा डरते डरते मरा कारण की इसी तरह के घने पाप कर राखे थे उस सेठ ने भी सो यम् के दूत उसको डंडे सोटे मारते मारते नरक की तरफ़ ले जावे थे
फ़िर भई जिस जगह से एक रास्ता स्वर्ग की तरफ़ औए दूसरा रास्ता नरक की तरफ़ जाता है उसचोराहे पर ट्रेफिक जाम हो राख्या था
वहाँ पता चला की आज यमराज का हैप्पी बर्थ डे है सो इस खुशी के मोके पर यमराज ने ये घोषणा कर दीहै की आज जो भी मरके आयेगा , वो अपनी मरजी से स्वर्ग या नरक में जाने का चुनाव कर सकता है सो जाहिर सी बात सै की सब को स्वर्ग जाने की इच्छा हो रही थी क्यूँ की स्वर्ग में हर चीज इच्छा करते ही मिल जाती है, कुछ करना नही पङता यमराज सबसे हैप्पी बर्थ डे ..स्वीकार करते हुए पूछते जा रहे थे अब भई म्हारे देश के इस सेठ का भी नंबर आगया ..और इसको भी यमराज के सामने पेश किया गया
यमराज-- तुम्हारा नाम ?
सेठ-- अरब पति किरोडी मल !
यमराज -- कहाँ से आए हो ?
सेठ-- .. ..हिन्दुस्थान से !
यमराज-- कहाँ जाना चाहोगे ? स्वर्ग या नरक ?
सेठ -- यमराज जी बात ये है की, मैंने सूना है , स्वर्ग में सब चीज सिर्फ़ इच्छा करने से ही मिल जाती हैं तो मैं वहाँ जाकर क्या करूंगा ? मेरे को तो आप नरक ही भेज दो वहाँ पर मेरी दुकानदारी तो चलतीरहेगी और सेठ नरक की तरफ़ बढ़ लिया । सेठ तुझे धिक्कार है ।
बन्दर-- वाह ताऊ वाह ! !! क्या सही बात कही आपने ?
ताऊ-- हाँ भई बन्दर ! नरक के कीडे नरक में ही सुखी रहते हैं पर बन्दर ये मत सोच की हमारे यहाँ कुएं में ही भांग पड़ गई है भई यो तो थोड़े से लोग ही सें इस तरियां के ओछी बुद्धि के हमारे सामने आज भी ताजा उदाहरण है हमारे नारायण मूर्ती जी का आपको भी सलाम

ताऊ और मास्टरनी जी

प्रोढ़ शिक्षा की शाम को क्लास पंचायत में लाग्या करै थी
और गाम के सब बूढे इस लिए पढ़ने जाया करे थे ।
क्योंकि वहाँ शकुन्तला मास्टरनी जी , बुजुर्गों को पढाया करै थी ।
मास्टरनी जी बिल्कुल आइसक्रीम के लिकडे (डंडी) जैसीसूखी किडी काट थी ।
अब वो गाम आली भाषा मै ताऊओं को कुछ इस तरियां पढाया करती --
ऐ फार अंगद,.... बी फॉर बांगड़,... सी फार ।
एक दिन जनरल नालेज की क्लास शकुन्तला बहनजी लेवै थी ।
उसने पूछ्या -- थम न्यूं बताओ की धरती क्यूँ घुमती है ?
सारे बूढे चुप हो लिए मास्टरनी जी नै फिर पूछा -- कोई बता सकता है ?
इब ताऊ लद्दा से चुप नही रहा गया ।
और वो बोल्या-- -- अरे छोरी,.... कुछ खाया पीया कर नही तो,.. तन्ने यो धरती न्यूं ही घुमती दिखेगी ।
इतनी देर में ही इन्सपेक्टर आ गया और उसने सवाल पूछने शुरू कर दिए ।
उसने ब्लेक बोर्ड पर अन्ग्रेज़ी का "डब्लू" लिखा और ताऊ लद्दा से पूछा -- ये क्या है ?
ताऊ लद्दा बहुत देर तो माथे पर जोर देता रहा ।
फ़िर बोल्या -- जी यो लागे तो "एम्" फार मुनियाँ की माँ ही सै ।
पर मुनियाँ की माँ की टांग उलटी हो गयी दीखें सै ।

स्वागत के प्रत्युतर मे दो शब्द

आज भडास पर यशवंत भाई नै म्हारे स्वागत मै बढै कसीदे
काढ राखे सैं । और भई क्युं ना काढै आखिर हम इस
लायक है ही । इब शरमा शरमी मै, मैं न्युं तो नही कहूंगा
के नही नही मैं इस लायक कहां ? पर भई ताऊ तो इस लायक सै
और सोलह आनै सै । किसी नै ऐतराज हो तो हुया करै ।
बल्कि हमनै तो यो लागै सै कि स्वागत किम्मै माडा (कमजोर) ही
हुया सै । बातां सै तो घणा ही स्वागत हुया पर भाई , जरा
ढोल ढमाकां की कमी सी रह गी सै । कोई बात ना यशवंत जी आगे
भी मोके आते ही रहेंगे ।
आगे आपने स्वागत भासण मै कह्या सै की - म्हारे भडासी बनने
से कूछ लोगां नै तकलीफ़ हो सकै सै । सो भाइ हम उनके
कहनै सै तो भडासी बने नही सैं । म्हारी मर्जी , हम भडासी
बनै या संडासी । और जब तक हम भडासी सैं तब तक
तो ठिक सै , उनका पीछा सिर्फ़ बातां धोरै ही छूट ज्यागा ।
और जै हम संडासी बण गे तो भाई उनको घणी तकलीफ़
खडी हो जावैगी । इब थम तो जाणो ही हो कि, संडासी किस काम
आवै सै ? भई वो ही .. जिसनै कुत्ते और बन्दर पकडने के लिये
उनके गले मै डाल्या करते हैं । तो भाइ जिसनै तकलीफ़ हो रही
हो , वो सोचले कि ताऊ की के इच्छा सै । सो सोच समझ कर
बात करैं तो ठिक रहवैगा ।
और भाई इब ताऊ कै जचगी तो जचगी .. कर ले जिसने
जो करना सै .. ताऊ तो बन गया भडासी । किसी नै ऐतराज हो तो
अपनी राधा नै खिलावै । पर ताऊ सै इस बारे मैं बात नही करै ।
ताऊ एक बार अपनै ऊंट नै लेके सडक कै बीचों बीच जावै था ।
पिछे सै एक छोरा अपनी नई नई कार लेके ताऊ कै पीछे
पीं... पीं... होर्न बजानै लग रया था । ताऊ नै किम्मै ध्यान दिया नही ।
सो उस छोरे नै कार की खिडकी मै से गरदन काढ के जोर से आवाज
लगाई-- ओ ताऊ तेरे कान फ़ूट गे क्या ? एक तरफ़ क्यूं नही
हटता, इतनी देर से होर्न बजानै लग रहा हूं ?
ताऊ-- अरे छोरे ! ताता (गर्म) क्युं हो रया सै ?
यो सडक के तेरे बाप की सै ?
वो छोरा भी किम्मै अकडू ही दिखै था । सो उसनै जबाव दिया कि--
हां यो सडक म्हारे बाप की ही सै ! बोल इब के कर लेगा ?
ताऊ बोल्या-- अरे तो , उस तेरे बाप नै कहता क्युं नही के,
तेरे खातर इसनै चोडी करवा दे..... ! ताऊ तो बीच मै ही चलेगा ।
सो भाइ किसी नै तकलीफ़ हो तो म्हारा जबाव पढ लियो ।
अच्छा भाइ इब म्हानै इजाजत देवो कूछ काम धन्धा भी करण दो ।
सप्ताह खत्म होनै तक कूछ कचरा दिमाग मै इक्क्ठा हो गया
तो फ़ेर थारै दिमाग मैं उंडेल देवांगे । तब तक थ्यावस (सब्र) राखो ।
राम राम ..

भूल्या ताऊ भेड खाई....

एक बार ताऊ घसीटा का ताई रामकोरी से घण्णा ठाडा झगडा
हो गया । इब मन्नै यो तो नी बेरा पाटया, के झगडा का कारण के था ?
पर हम जब उनके घर पहुंचे तो बात चीत नु होण लाग़ री थी ।
ताई-- तन्नै शरम नी आन्दी ? तू उत क्युं कर गया था ?
ताऊ-- मैं कित भी जावो , तन्नै के करणा सै ? तू तेरा काम कर ।
ताई-- अर तू पी पी के, मोटा सान्ड, कद्दू बरगा होता जारया सै ।
क्युं म्हारी जान का दुश्मन हो रया सै तू ?
ताऊ-- और तू तोरई, गिलकी बरगी हो रही सै ? किस काम की सै तू ?
अरे हम अगर कद्दू भी होरहे सैं तॊ शादी ब्याह मैं सब्जी
बणाण के काम तो आते हैं , पर तू तो उस काम की भी नही सै ।
असल मे ताऊ कूछ विजय माल्या साब वाली खींच खांच के
आया था । और ताई को यो नशा वशा करणा कती पसन्द ना था ।
और ताऊ था कूछ नशॆ मे बहका हुवा ।
इब ताऊ की बात सुणके ताई को घणा छोह (गुस्सा) आग्या, और
उसके सिर पे गोबर की परात थी सो वो ठाके ताऊ के उपर
दे मारी । और साब, इब ताऊ तो ठहरा ताऊ । और फ़िर म्हारे
सामने ताऊ की बेईज्जती हो गयी और वो भी ताई से ।
सो ताऊ नै भी घणा छोह खाके ताई के रैपटे (चांटे) धर दीये !
और दोनुं गुथ्थम गुथ्था हो के लड लिये ।
इब आप जाणते ही हो के यहां तक का किस्सा तो आपके हमारे
यानी सबके साथ रोज रोज होता ही रहता है । किसी के साथ कम
और किसी के साथ ज्यादा । यानी कभी मर्द पिट जाता है और
कभी औरत पिट जाती है ।
पर ताऊ के साथ आगे जो हुया उसकी उमीद ताऊ को नही थी ।
इब आप तो जाणते ही हो के म्हारे देश मैं औरतों को घणे
अधिकार मिल गये सैं । इब कोई बिल्कूल ही मूरख या पागल औरत हो तो
भले ही पिट ले । नही तो औरतों को इतने अधिकार सरकार
ने दे दिये हैं कि आज कल तो मर्द ओरतों से खोफ़ खाने लगे हैं ।
और भाई म्हारी तो सबनै यो ही सलाह है की ताऊ घसीटा आले
काम ना करीयो । नही तो आज के समय मे बडी मुश्किल हो
जायेगी । अब समझ लो कि पुराने जमाने चले गये । जब आप
ओरतों पर चाहे जैसे जुल्म करते थे । भाई लोगो सुधर जावो,
नही तो तुम्हारा हाल भी ताऊ घसीटा जैसा पुलिस आले कर देंगे,
फिर मत कहना की हमको पहले क्यूं नही चेताया ?
बख्त रहते ही सुधर जावो, इसी मे भल्ली सै । इब आगे सुणो,
कि ताऊ को पुलिस वालों नै किस तरह बन्दर बनाया ?
और ताई रामकोरी आज के जमाने को समझने वाली ओरत थी ।
वो ना तो खोटी बात खुद करती थी और ना ही किसी की गलत बात
बर्दाश्त करती थी । सो ताई नै सोच ली के आज ताऊ की
दारू उतार के ही रहेगी । क्योंकि ताऊ का यो रोज का धन्धा
हो रहा था । और मार पीट भी किम्मै ज्यादा सी ही करने लग गया था ।
सो ताई वहां से सीधी भाज ली, गाम के थाने में ।
और जाके ताऊ की रपट लिखा दी ।
थाणे से ३/४ पुलिस आले आके ताऊ नै ठा लेगे , और
लोक-अप मैं बंद कर दिया । थोडी देर बाद ताऊ से पूछताछ शुरू
हुई । और ताऊ नै ओंधा पटक के खूब डंडे मारे । ताऊ का नशा तो
पहले ही उतर चुका था , इब पुलिस की मार खा के चिल्लाण
लाग ग्या .. अजी साब जी .. छोड दो .. आगे तैं नही मारूंगा ।
और साब , जितना ही वो चिल्लावै, पुलिसिये उसको और
ज्यादा जोर तैं बजावैं । क्योंकि ताऊ नै ओरत पर हाथ उठाया था ।
और आज कल इसकी सजा घण्णी ज्यादा सै ।
इब उसने ठोक ठाक के सिपाही थक लिये, तो एक तरफ़ बैठ गये ।
ताऊ पडा पडा आं उं, आं ऊं करे जावै था ।
थोडी देर मे थानेदार आया और उसको ताऊ का किस्सा मालुम
पडा तो थानेदार को भी गुस्सा आ गया , और थानेदार बोला--
इसके गले मे टायर डालो , इसकी खबर तो इब मैं लेता हूं ।
और थानेदार नै डन्डा हवा मैं लहरा के ४/५ फ़ोड दिये , ताऊ
के उपर और पूछ्या -- क्यों और मारेगा.. अपनी लुगाई को ?
ताऊ बोल्या -- जी इब मनै आप छोड दो.. इब मै मारना तो
दूर , इसकी तरफ़ आंख भी नहीं ऊठाऊंगा .....।
थानेदार ने फ़िर ३/४ थप्पड धर के पूछा-- तू ने क्या समझ के
इस को पीटा था ? और फ़िर २/४ डंडे धर दिये ।
ताऊ रोता रोता बोल्या-- अजी.. थानेदार साब इब माफ़ भी कर दो । मैने तो
इसको अपनी घरवाली समझ के ही पीट दिया था , पर मनै के
बेरा था की यो सरकारी सै ? और थम सारे इसके भाई लगते हो ?
यो बेरा होता तो मैं इस थारी बहण पर, क्या अपने हाड कुटवाने
के लिये हाथ उठाता ? "भुल्या ताऊ भेड खाई, आगे खावै रामदुहाई ।

गाडिया लुहार ...

यह चित्र २५ साल पहले मेरे गाँव
मे लिया गया था ।






ताऊ और बन्दर

हमेशा की तरह ये सप्ताह भी बीत गया ।
यह कोई नई बात नही हुई..! हम चाहे समझे या
ना समझे .. समय तो बीतता ही जायेगा । पर इस सप्ताह
जो नई बात हुई वो ये की ताऊ का एक पुराना बन्दर
घूम फ़िर के और दुखी होके वापस ताऊ के पास
ही आ गया ।
उस समय ताऊ बैठा, हुक्का गुडगुडा रहा था कि
पुराना बन्दर हाजिर हो गया । ताऊ नै कुछ ज्यादा भाव
उसको नही दिये , तो बन्दर बोला-- ताऊ अब मैं आपको
छोडकर कही नही जाऊंगा , मुझे भी फिर से साथ रख लो ।
और खीर मे से थोडा बहुत स्वाद चखा देना । ज्यादा
भी नही चाहिये । और मैं तो आपका पुराना सेवक हूं ।
अब आगे से मैं तो आपके साथ ही खेल दिखांऊगा ।
ताऊ भी सब समझै था की यो पुराने अड्डे नै अंगूठा
दिखा आया सै और अब वापस ताऊ के पास आया है ।
इतने दिन बन्दर भटक भटका के आया था सो वो भी
ताऊ को अपना अनुभव बतानै लग गया । और ताऊ से कूछ
ऐसे सवाल पूछने लग गया , जिस से ताऊ की चमचा गिरी
भी हो जाये और बन्दर का काम भी बन जाये ।
बन्दर-- ताऊ महंगाई बहुत बढ गई ?
ताऊ-- इब ये तो बढनै की चीज़ है.. तू क्युं पगला रहा है ?
तेरे को मालूम होना चाहिये की जितनी महंगाई बढेगी, उतना
ही देश का रूतबा बढैगा ।
बन्दर-- पर ताऊ गरीबों का क्या होगा ? बिचारे भूखे मर ज्यान्गे !
ताऊ-- अबे बावलीबूच .. पागल पन की बात मत कर , तेरे पेट मै
गरीबों का दर्द अच्छा नही लगता । मनै मालूम सै की
तेरे खम्बे वम्भे के भाव भी बढै गे दिखै सैं ?
बन्दर-- हां ताऊ वो तो थारी बात सही सै । पर फिर भी..
ताऊ बीच मे बात काट कर बोल्या---
देख रे बन्दर तू मेरा दिमाग तो खराब कर मत । यो रोना
धोना छोड और काम की बात बता ।
बन्दर-- ताऊ सुनने मे आया है कि मान्सून बिल्कुल
समय पर आ रहा है ?
ताऊ-- हां भई बन्दर .. सुना तो हमने भी है । पर
ताऊ को तो आसार अच्छे नही दिखैं सैं ।
बन्दर -- क्यों ताऊ क्यों ? मानसून तो बता रहे हैं कि
एक दो दिन मैं हमारे शहर मे पहुंच्ग जायेगा !
ताऊ -- अबे पागल कही के .. आज तक कभी मॊसम की
भविश्य वानी सही हुई है ? देख बे बन्दर तू भी समझ ले,
और ये बात तेरे भी काम आयेगी .. कभी भी मोसम और
छोकरी का भरोसा मत करना , नही तो बहुत पछतायेगा ।
बन्दर-- ताऊ बन्दरी का तो कर सकते हैं ना ?
ताऊ-- अबे ऊत कहीं के ? छोकरी और बन्दरी मै के कोई
फ़र्क होवै सै ? पर मेरे को मालूम है कि तू उस बन्दरीया से
पिटैगा जरूर । मेरा क्या लेगा .. खा जुते ..
बन्दर ने खुद की पोल खुलते देखकर बात पलटने की गरज से पूछा ।
ताऊ.. अब मार्केट पर आपका के ध्य़ान है ?
ताऊ-- देख भई बन्दर , मार्केट की हालत तो इन फ़िरंगियों
नै गरीब की जॊरु जैसी कर राखी सै । अब बता ये कोइ बात
हुई कि खराब करजे वरजे का अमेरिका का झन्झट मे
हमारे मारकेट की बारा बजा दी । मुझको तो इसमे भी कोई
साजिश दिखै सै । और इसकी उच्च स्तरीय जांच बैठानी
चाहिये ।
बन्दर-- क्यों ताऊ .. अब मारकेट मै काम कम हो गया तो
ये मांग आप इस लिये तो नही कर रहे हो कि खुद
को ही इस जांच कमेटी का चेयरमेन बनवा के मजे लेने लगो ?
ताऊ-- अबे ऊल्लू के पठ्ठे .. अगर कमेटी बनेगी तो ताऊ
के अलावा और कौन ऐसी जांच कर सकता है ?
और फ़िर तू क्यों पूछ रहा है ?
बन्दर -- ताऊ .. तब थोडा सा मेरा भी ख्याल रखना ।
ताऊ -- अबे चुप बन्दर कहीं के .. ! पहले बनने तो दे ।
बन्दर -- ताऊ एक राजनेता का बयान आया है कि आर्थिक
हालत बहुत खराब है और सरकार, सटोरियों और ब्रोकरों
के हाथ मे खेल रही है ?
ताऊ -- देख भई बन्दर , बात ये है की ये बयान जिसने
दिया है उसी के एक साथी ने ये वर्तमान सरकार बनते
समय भी एक बयान दिया था और उस बयान का असर यो
हुया था कि मारकेट नै तुरन्त दो कुल्लाबाती खाई थी ।
बन्दर-- ताऊ ये कुल्लाबाती क्या होती है ? और खाने मे कैसी होती है ?
ताऊ -- देख बे बन्दर , तेरे को ताऊ के साथ रहना है
तो हरयानवी सीखनी पडैगी । और सुन बीच बीच मे
टर टराया मत कर । पहले पुरी बात सुन लिया कर ।
बन्दर-- ताऊ ठिक है , अब आगे से ध्यान रखुंगा ।
ताऊ-- और उस समय बाजार तीसरी कुल्लाबाती यानी उल्टा
फ़्रीज होनै सै बच गया था । पर यार बन्दर , इस कामरेड की
बात मैं कुछ दम तो ताऊ नै दिखै सै ।
बन्दर-- ताउ अब आगे क्या होगा ?
ताऊ का दिमाग अब सटक चुका था सो बोल्या--
यार बन्दर तू ये बता कि तू यहां खेल वेल दिखाण आया
सै या म्हारा दिमाग का दही बनानै आया सै ?
तू क्यूं अच्छे भले वीक एन्ड का सत्यानाश करने पर
तुला हुवा है । कुछ और ढन्ग ढांग की बात कर । रहने दे
यो मारकेट वारकेट की बात । यो फ़िर सोमवार नै
करना ही सै ।
बन्दर समझ गया कि अब ताऊ का दिमाग ठिक नही दिख रहा
है सो बन्दर भी पूरा घाघ था , झट से जाकै ताऊ के
लिये गरमा गरम चाय लाया और चिलम सुलगा कै
ताऊ कै हाथ मै पकडाते हुये पूछने लगा--
ताऊ सुना है आप परसों मदारी खाने मे गये थे ?
ताऊ-- हां भई बन्दर, गया तो था पर मदारी वहां मिल्या
कोनी । बूझने पर पता लगा की मदारी अपने गांव गया है ।
और भई, एक नई बात ये की मदारी का मदारी खाना
छोटा हो गया ।
बन्दर-- ताऊ ठिक से बतावो .. समझ नही आया कि मदारी का
मदारी खाना छोटा हो गया ?इसका क्या मतलब ?
ताऊ -- अरे उल्लू की दूम ..जहां से मदारी खेल दिखाता
है वो मदारी खाना और क्या । अब अगर तू अपने गले मै
रस्सी डलवा लेगा तो तेरा ही कसूर होगा ना । तो मदारी
ने अपनी राजी से मदारी खाना छोटा करवा लिया तो इसमे
तू और हम क्या करेंगे ? पर ये ठीक नही हुवा ।
बन्दर-- ताऊ आप क्युं इतने दुखी होते हो ? इसमे गलत और सही
क्या होता है । वो तो मैने भी देखा है बल्कि अब
तो वहां पर दो दो की जगह हो गयी ।
अब ताऊ गुस्से मे बोला-- अबे तू तो बन्दर की ओलाद है
स्साले बन्दर ही रहेगा । तेरे को कूछ आता जाता तो है नही !
तेरे को मालूम है की नहीं ? ये वास्तु के हिसाब से एक दम
गलत हो गया है ।
बन्दर -- पर ताऊ .. आप के पेट मे क्यों बल पड रहे हैं ?
और इस से आपको क्या फ़र्क पडेगा ?
बन्दर की बात सुनते ही ताऊ ने मारने के लिये अपना लठ
उठाया वैसे ही बन्दर तेजी से पास के पेड पर चड गया और
अपनी खींसे निपोरने लगा ।
ताऊ -- अबे स्साले हराम खोर बन्दर... तेरे को शरम नही
आती ? जिसकी थाली मे खाता है उसी मे छेद करता है ?
पर तेरे को क्या ? तु तो पहले भी मुझे छोडकर चला
गया था , अब फ़िर आ गया । पर मैं तेरी तरह नही हूं ।
अरे बेवकूफ़ जरा सोच की अगर मदारी खाना ही कमजोर
पड गया तो क्या तो नंगी न्हायेगी और क्या निचोडेगी ?
तो उसके साथ साथ हमारी भी किस्मत लगी है कि नही ?
बन्दर-- तो ताऊ ये बात तो सही है आपकी । पर आपने
मदारी को मना क्युं नही किया ?
ताऊ की दुखती पर बन्दर ने हाथ रख दिया ।
ताऊ-- यार बन्दर .. अब इस पर बात नही करेंगे । कारण कि
यो मदारी किम्मै सलाह सूद तो अपने से करै कोनी ।
पुराने मदारी की बात और थी ।
बन्दर-- ताऊ आजकल मदारी खाने मे जयसवाल साब नही
दिखते । और आपके पास भी नही दिखते ?
ताऊ-- देख बे बन्दर .. अब तू ताऊ का दिमाग तो खराब करे मत ।
मनै बेरा है कि तू जानता बूझता मेरे मजे लेण लग रहा है,
इतनी देर से । तेरे को अच्छी तरह से पता है कि
जयसवाल साब कहां है , अब मेरे से ज्यादा होंशियारी तो
कर मत और निकल ले अपने अड्डे पर । अब मेरे को तो
जाणा है फ़िल्लम देखने ।
ताऊ कोनसी फ़िल्म जा रहे हो .. मैं भी चलूं क्या ?
ताऊ -- क्यों क्या मेरे छोरे की बरात जा रही सै जो तन्नै ले चलूं ।
मैं तो तिवारी जी कै साथ जा रहा हूं " मेरे बाप पहले आप"
देखने । इतनी देर मे तिवारीजी
(वो ही अपने हमेशा सस्पेन्ड रहने वाले इंसपेक्टर साब)
आ गये और बोले यार ताऊ एक बात बतावो ।
बन्दर-- अरे यार तिवारी साब अब पूछ ही रहे हो तो एक क्या
दस बीस पूछ लो । तिवारी साब ने पुलिसिया अंदाज मे
बन्दर को घूरते हुये देखा और बोले-- ताऊ , मेरे को सोने के बाद नींद
नही आती और भर पेट खा लेने के बाद भूख नही लगती ?
रजाई ओढ्ने के बाद ठंड नही लगती ? और दारू पीने
के बाद तलब नही लगती ? क्या इलाज करूं ?
ताऊ के दिमाग का बन्दर पहले ही दही जमा चुका था । सो ताऊ बोला--
तिवारी साब चलॊ अभी तो फ़िल्म देख आते हैं । फ़िर शाम
को आप जब टनाटन हो जाओगे तब आपको डा. शुक्ला से दवाई
दिलवा देंगे । आप चिंता मत करो ।
उठते उठते ताउ खन्डेलवाल का फोन आ गया ।
ताऊ जल्दी मे था सो पूछा.. और क्या कर रहे हो ?
उधर से आवाज आयी-- ताऊ नाश्ता कर रहा हूं ।
ताऊ-- ये नाश्ते का कोनसा समय है । ये तो लंच का समय
हो गया । उधर से आवाज आयी-- ताऊ क्या करें ? घरवाली
रहम करके भीख की तरह
डाल गई है नाश्ते की प्लेट । इसी से काम चला
रहा हूं । देखो लंच मिलेगा या नही..
उधर से और भी कूछ बोलने की आवाज आरही थी पर
ताऊ को फ़िल्म देखने जाना था सो ताऊ बाद मे बात
करने का बोल कर निकल लिया । और बन्दर सोमवार को आने
का वादा करके चला गया ।

हम नही सुधरेंगे ..

यह चित्र रात्री ९ :३० पर, रेसीडेंसी एरिया मे लिया गया ।
मोटर-साइकिल वाला अपने
दोस्त ( या दुश्मन् ) को
हाथपकड कर ले जाता हुवा !
ये दोस्ती हम नही तोडेगे !
तोड़ेंगे दम , मगर तेरा हाथ ना छोडेंगे !

आई लव यू थ्री ..!

ताऊ लद्दा को भैंस चराते चराते अग्रेंजी बोलने का शौक
चढ गया । और ताऊ को ठीक से हिन्दी भी नही
बोलनी आवै थी । पर क्या हो सकता है ? ताऊ कै दिमाग
मे आ गयी, तो आ गयी । बहुत दिन तो घर पर ही
प्रेक्टिस करता रहा, पर बात बणी नही । और ताऊ नै
ये पक्का इरादा कर लिया कि अग्रेंजी बोलना सीख के रहेगा ।
ताऊ बडा उदास हो रहा था । फ़िर किसी ने उसको बताया कि
पडोस के मोहल्ले मे एक मास्टरनी जी अग्रेंजी की क्लास
लेती है और बहुत जल्दी अग्रेंजी सिखा देती है । सो मेरा मट्टा,
ताऊ तो मास्टरनी के पास पहुंच लिया । और फ़ीस भी जमा करा दी ।
दो तीन महिने मे ताऊ थोडी बहुत अन्ग्रेजी की ऐसी तैसी करने
लग गया । इब एक दिन ताउ लद्दा के घर उसकी रिश्ते की
साली आयी हुयी थी । ताऊ क्लास से शाम को घर आया, और
अपनी साली पर अग्रेंजी का रौब झाडने के लिये बोला -
आइ लव यू ...रज्जो ।
साली भी पढी लिखी थी और अपने जीजा पर जान भी
छिडकती थी, सो जवाब मे बोली - जीजा, आइ लव यू टू..!
ताऊ लद्दा भी कहां चुप रहनै वाला था ? ताऊ बोल्या --
आइ लव यू थ्री ......!

ताऊ नै कुटवाया सेठ !

ताऊ नत्थू एक दिन घुमता घामता युं ही सेठ किरोडी मल
के दफ़्तर मे , अपनै मोबाइल पर बात करता हुवा
चल्या गया । इब आप तो जाणते ही हो के
सेठ ताऊ की बडी इज्जत करया करता । सो उसनै
ताऊ की बडी आवभगत करी और ताऊ को चा चू पिलायी ।
हालचाल पूछे ।
इब ताऊ और सेठ, दोन्यु सेठ किरोडी
के एयर कन्डीशन केबीन मै बैठे बात करण लाग रे थे ।
बात बात मै सेठ नै बताया की आज कल उसके आफ़िस
के कर्मचारी ढंग सै काम नही करते ।
और कोई भी काम पूरा नही करते हैं । और रोज आज का काम
कल पर टाल देते हैं । तो ताऊ बोल्या - देख भई सेठ मनै तो
साफ़ साफ़ यो दीखै सै की तेरे कर्मचारीयां नै कोई मोटीवेट करण
आला नही सै । इस वजह से वो ठिक से काम नही करते ।
सेठ किरोडी को भी ताऊ की बात कुछ कुछ जचती सी लगी ।
सेठ-- ताऊ , इब ये बताओ की इनको कैसे मोटीवेट करया जावै ?
ताऊ बोल्या - अरे किरोडी सेठ, मेरे यार इसमै कुण सी बडी
बात सै । मै जब एम.बी.ए. मै पडया करता था , तब एक
चेप्टर उसमै एक कबीरदास नाम के साधु का हुया करता था ।
भई था तो लालू की तरियों बिना पढ्या लिख्या हि । पर जिस
तरियों लालू नै हमारी रेल्वे को नफ़े मै खडा कर दिया ।
उसी तरियों यो साधू बाबा के फ़ार्मुले भी कारगर सै ।
तू भी आजमा ले ।
सेठ- ताऊ ठिक से बतावो ।
ताऊ - भई आफ़िस मै हर कर्मचारी की टेबल के सामनै एक एक
तख्ती पर ये लिख के टंगवा दो , फ़िर देखो कैसे सारे के सारे
आज का काम आज ही करनै लग जायेंगे ।
अब सेठ नै यो दोहा लिखा कै तख्ती सबके सामनै टगंवा दी ।
"काल करे सो आज कर , आज करे सो अब "
पल मे प्रलय होयेगी, बहुरी करेगो कब "

इब ताऊ को भी ये जानने की बडी इच्छा थी की उस
तख्ती का कैसा असर हुवा ? तो वो भी सेठ किरोडी के
दफ़्तर मै पहुंच गया ।
वहां जाकै देख्या तो दंग रह गया । वहां सेठ किरोडी तो
सारा टूटा फ़ूटा , जगह जगह पट्टी बांधे बैठा था । और आफ़ीस
मै खुशी की जगह गमगीन सा माहॊल दिख्या ।
उधर सेठ नै जैसे ही ताऊ नत्थू को आते देख्या, तो
सेठ तो ताऊ के नाम के रूक्के मारकर बुरी तरह दहाड
मार के रोनै लाग गया !
सेठ- अर ताऊ मन्नै तेरा के बिगाडया था ?
ताऊ- अर सेठ , जरा दम ले भई हमनै भी बता के बात हो गयी ?
और तु म्हारे नाम सै रोण क्युं लागरया सै ? इसी के बात होगयी ?
इब सेठ बोल्या - ताउ थम तो तख्ती लगवा के चले गये ।
पिछे सै भोत घन्ना रासा हो गया ।
दुसरे दिन आफ़िस खोल्या तो देखा कि तिजोरी पूरी
खाली सै और उसमे एक परची पडी सै .. उसमे केशियर नै
लिख राख्या था - सेठ जी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
मैं इतने दिनों से हिम्मत नही कर पा रहा था । आज आपके लिखे
दोहे से बडी हिम्मत आ गयी , और इतने दिनों से जो काम
मैं रोज टाल रहा था , वो आज ही पूरा कर के जा रहा हूं ।
जैसी की आपको भी थोडी सी भनक होगी की , आपकी
सेकेटरी कन्चन से मैं बहुत प्यार करता हूं । और आज ही
उसको लेकर मैं ये शहर छोडकर जा रहा हूं । इतने दिनॊं
आपकी सेवा करी है, और फ़िर कन्चन की देखभाल भी
करनी पडेगी , सो तिजोरी का सारा माल मैं ले जा रहा हूं ।
इब ताउ बोल्या - भई यो तो गजब हो गया सेठ जी, पर
ये तो बतावो के थम जगह जगह से फ़ूटे क्यों पडे हो ?
सेठ किरोडी बोल्या - ताउ मैं उस कमीने खजांची की चिठी
पढ ही रहा था की इतनी ही देर मै मेरा आफ़िस का चपरासी
लठ ले के आ गया .. और सटा सट मेरे उपर बजा दिये ।
और वो जालिम तब तक मुझको कूटता रहा जब तक मैं
निचे गिर नही पडा । और न्यु बोलता जावै था कि
सेठ तुने मुझे भोत परेशान करा । ना तो कभी मुझे
छुट्टी देता था और गधे की तरह मुझसे काम लेता था ।
मैं मन ही मन तुझे रोज गालियां बकता था । और ऐसी इच्छा होती
थी कि तेरे हाथ पांव तोड डालूं , पर डर के मारे रोज, कल
पर टाल देता था । आज तख्ती पढ कर इच्छा हुयी की
रोज क्या कल पर टालना । सो मैं अपनी ये इच्छा आज ही पुरी
कर रहा हूं । और उसने म्हारा यो हाल करके धर दिया ।
(इब ताऊ की सलाह मानने का यो ही अन्जाम हुया करै सै
थमनै अगर शक हो तो थम भी ताऊ सै सलाह ले के देख ल्यो !)

कुछ कमीने लोग ..

जून माह का पहला सप्ताह बीत गया । सप्ताह तो समय है ।
जो कहने को तो बीत जाता है, पर आज तक समय नही बीता ।
समय को बिताने वाले बीत गये । आज सुबह से ही जो समस्या
आ गयी वो बहुत ही पुरानी समस्या है । कहने को तो
हम लाख कहें कि लडकीयां भी लडकों की बराबरी पर
आ गयी पर ये दावे कितने सच हैं आप और हम अच्छी तरह
जानते हैं । आज भी समाज मे इतने कमीने और हराम खोर
बैठें हैं । जिन्होने कसम खा रखी है कि वो समाज को
इस बुराई से मुक्त नही होने देंगे । क्या बिना बेटियों के इन
कमीनों का अस्तित्व हो सकता था ? क्या आज भी
अगर सास (मदर-इन-ला) नही चाहे तो बहू पर अत्याचार हो
सकते हैं ? सास क्युं भूल जाती है कि वो भी कभी बहु थी ।
असल मे सबसे ज्यादा कसूर इन मामलों मे सास और
ननद का ही होता है और सारी जबाव देही भी इनकी ही
बनती है । अगर ये दोनो ठान ले की अब आगे से हमारे घर
मे ना तो स्टोव फ़टेगा और ना गैस सिलेन्डर ही फ़टेगा ।
और बहु को हम अपनी जैसी ही रखेंगे । तो मर्द जात की
इतनी ओकात नही है कि वो ओरत पर जुल्म कर सके ।
मैं यहां हर मां बहन से कहना चाहूगां कि - माता आप ठान लो
कि आज से आप ये अत्याचार नही होने देंगी । फ़िर क्या किसी की
मजाल है जो किसी बेटी की तरफ़ कोई आंख भी उठा ले ।
इस दिशा मे काफ़ी ढोल पिटे जाते रहे हैं । पर आज तक
कोई कमी नही आयी है । अखबारों के पन्ने रोज रंगे रहते हैं ।
पर तब तक कूछ नही होगा , जब तक स्वयं ओरत, ओरत की
मदद नही करेगी ।
ज्यादातर मामलों मे ये ही देखने मे आया है की लडके और
लडकी के बीच जो समस्या रहती है उसकी जड मे भी
सास ही रहती है । असल मे ये सास ही बेटे और पति को
बहु के खिलाफ़ उकसाती है । अब मर्द जात कब तक नही
उकसेगा । और वो ही सब हो जाता है जिसकी कल्पना
किसी को नही होती ।
असल मे कुछ मे तो इतनी कुंठाये घर कर जाती हैं कि
साफ़ लगता है कि इनके दिमाग मे कचरा भरा है ।
अभी कुछ समय पहले एक मित्र के यहां बातचीत चल रही
थी । वहीं पर उनकी लडकी के होने वाले सास और ससूर
भी बैठे थे । बरात , स्वागत समारोह आदि की तैयारियों
के सम्बन्ध में और आप जानते हो कि ताऊ को भी लोग
जबरन इन कामों मे शामिल कर लेते हैं , जबकि ताऊ को
आता जाता कुछ नही । ताऊ तो न्यु ही डांग पटेली करता
रहता है । खैर साब देखिए एक बानगी ..इस बैठक की ।
लडकी के सास ससुर ऐसे अकड कर बैठे हैं जैसे
वहां पर आ कर अह्सान कर रहे हों । लडकी वाले उनके आगे
पिछे घूम रहें है. यानी इस तरह की , बुढे बुढिया को
खांसी भी आ जाये तो वो हाथ आगे कर दें । खैर साब..
हम पहुंचे ... मित्र ने उनसे हमारा परिचय कराया..
हम भी बैठ गये.. उनके लिये माल ताल आता जा रहा था ।
साथ साथ हम भी खींचते जा रहे थे ।..
फ़िर सब प्रोग्राम बने कि किस तरह कहां क्या स्वागत होगा ?
और कहां क्या क्या होगा ? अमुमन सब ऐसा ही नजारा
सब जगह होता है । फ़िर सब कुछ नक्की हो गया और अन्त मे
बुढिया (लडकी की सास) बोली :- देखो साब और तो सब ठिक
है पर बस स्वागत ऐसा होना चाहिये की ये लगे कि
हम लडके वाले हैं । अब बोलो लाखों का हिसाबदारा तो
सारे प्रोग्रामों का बनवा दिया और अभी लडका वाले जैसे लगने
की कसर ही बाकी रह गयी । ताऊ की इच्छा तो हुयी कि
इस बुढिया तै पूछने कि -- भई तु के अमेरिका आले बुश ताऊ
की बहन हो राखी सै और लडकी आले के ईथोपिया से
आये हुये सैं । ताऊ नै गुस्सा सा आ लिया । पर
मोके की नजाकत समझते हुये ताऊ चुप हो लिया ।
उन लोगों के जाने के बाद ताऊ नै अपने मित्र को आगाह
भी किया था कि भाई इब भी सोच लिये । ताऊ नै तो
ये दोनु ही घन्नै ऊत दिखैं सै । फ़िर बाद मै कहवगा कि ताऊ तन्नै
चेताया क्युं नही ? और इस मामले मे भी बाद मे जा कर भोत
ज्यादा परेशानी आयी थी । और आज तक भी कुछ ठिक नही सै ।
ताउ आज घन्नै दार्शनिक मूड मे सै ।इस लिये यो पुराना
किस्सा सुनाने लग गया । और इस किस्से को विस्तार मे
हम फ़िर कभी बतायेंगे ।
आज का बिल्कूल ताजा किस्सा ये है जिस की वजह से हमारा
नियमित पोस्ट भी रुक गया और सारा समय इसी मे निकल गया ।
और आपको मालूम है की इन कामों के लिये ताऊ सब कुछ छोड
छाड के तैयार रहता है । ताऊ से किसी बेटी का दुख दर्द
नही देखा जाता । पोस्ट तो सप्ताह अन्त की जगह सप्ताह शुरु
के टाइटिल से सप्ताह के बीच मे निकाल देंगे ।
म्हारे एक नजदीकी मित्र नै अपनी सुथरी सी
बेटी की सगाई अभी ४-५ महिने पहले ही अच्छा पढा लिखा
लडका और खानदान देख कर करी थी।
और भई कोइ ३० या ४० मुसटन्डे तो सगाई करान खातिर
बाहर गाम से आये थे । अच्छा माल पानी खींच खूंच के
वापस चले गये । और भई माल तो ( दाल-बाफ़ले ) ताउ नै भी
खींच्या था । बहुत आनन्द पूर्वक सब कार्य
क्रम सम्पन्न हुवा था । सभी खूश थे ।
अब इसमे कोइ परेशानी वाली बात नही थी । लडके - लडकी
ने आपस मे फोन बाजी शुरु कर दी । आज कल ये तो अमूमन
होता ही है । पर इस लडके ने लडकी को फोन पे कूछ
इस तरह परेशान करना शुरु किया कि लडकी को कुछ
समझ ही नही आ रहा था । लडका इस तरह लडकी पर हावी
होता जा रहा था कि पूछो मत । हर आधा घंटा मे फोन, और
लडकी बाथरूम मे भी हो और फोन उसकी मां उठाले
तो फ़िर साब समझ लो कि लडकी की शामत आ गयी ।
तुम लोगों को तमीज नही है ? तुम्हारा फोन तुम्हारी मां
ने कैसे उठा लिया ? बेचारी लडकी क्या बोले ?
लडकी को बोला- तुमको नोकरी करनी चाहिये । तुम को
खाना बनाने मे भी माहिर होना चाहिये । और कुछ इस तरह की
कमीनी बाते कर कर के लडके ने इस लडकी को
इतना टेंशन मे डाल दिया कि सगाई के बाद लडकी
का तो बुरा हाल हो गया । सचमुच लडकी सूख के कांटा
होने लग गयी । आप ये समझ लो की लडके से फोन पे
पिछा छुटने के बाद ५ मिनट तो सर को थाम के बैठ जाती थी ।
ये क्या सम्बन्ध पैदा हो रहें हैं ?
लडका तो समझ रहा है की सारी अक्ल उसी मे है ।
कितना कमीना लडका है और कितने हराम जादे उसके
घर वाले हैं । ये इसी तरह के लोग सारा मनो विग्यान
समझते हैं । और अपराध मनो विग्यान की थ्योरी अनुसार ही
ये लोग योजना बना के शिकार फ़ंसाते हैं ।
उनको मालूम है कि आज भी इस तबके
के लोग सगाई टुटने को अच्छा नही मानते और
सगाई के बाद से ही लडकी को इतना तंग करो,
कि सगाई छूटने के डर से लडकी भी अपने बाप
पर दबाव बनाये और ज्यादा से ज्यादा दहेज लावे ।
इस तरह के लोग जान बूझकर सगाई और शादी मे काफ़ी
फ़ासला रखते हैं । ताकि शादी तक जितना ज्यादा से ज्यादा हो
सके माल खींच सके । और इस मामले भी ऐसा ही था ।
पहले तो मध्यस्थों द्वारा परिचय हो गया । फिर साब
इन्होने सगाई के लिये आने मे दो बार सगाई स्थल की
बुकिंग रद्द करवायी । बिचारे लडकी के बाप को तो लम्बा
फ़टका वहीं दे दिया । असल मे इस तरह के लोग सामने वाले
को परखते हैं कि सामने वाला कितना दुध दे सकता है ?
अब पाठ्को आपको एक सच्चा वाकिया सुनाते हैं । जो हमारे
एक मित्र के साथ घटा । ये मित्र अपना असेसमेंट करवाने एक
आफ़िसर के आफ़िस मे गये थे । अफ़सर ने सब कुछ देख दाख
लिया । उसमे कुछ मिल्या कोनी । इसका मतलब ये नही है
कि हमारे दोस्त बिल्कुल दुध के धोये ही हैं और सरकारी कर
वगैरह इमानदारी से भरते होंगे । तो आप गलत समझ रहे हैं ।
असल मे ये मित्र भी पुरे घुटे हुये महादेव हैं । इनका परिचय
हम फ़िर कभी आपको करायेंगे । अभी तो इनके असेसमेंट
की बात हो रही थी ।...
असल मे बात ये थी कि जिस तरह का ये काम था उसमें
कर चोरी की कोई गुन्जाईश ही नही थी । और इस तरह के
मामलों मे अफ़सरॊं को सिर्फ़ नजराना ही मिलना होता है ।
और इस महंगाई के जमाने मे कोरे नजराने से काम चलता नही ।
आखिर अफ़सर भी समाज मे ही रहता है और महंगाई का
बोझ उस पे भी पडता है । सो अफ़सर भी आज कल पूरी
मेहनत करते हैं कि कागजों मे कुछ मिल जाय और धारा
राग दरबारी लग जाय, फ़िर सामने वाला तगडा माल दे सकता है ।
तो साब अब अफ़सर ने हमारे मित्र को तंग करना शुरु
किया .. कभी बोले ये कागज .. कभी वो दिखावो....
मित्र भी मन ही मन गालियां देते सब कुछ सहन कर रहे थे ।
यानि मित्र भी पूरी तरह पक चुके थे ।
हमारे मित्र का ताल्लुक यों भी सीधे चंबल से है ।
सो अपनी वाली पे आ जाये तो बन्दूक से कम पर बात
नही करते । भले ही चाहे जितना नुक्शान उठाना पडे !
तो साब अब अफ़सर ने मित्र को बोला- फ़लां फ़लां तारीख
के जावक के चिठ्ठे दिखाईये ।
मित्र :- साब अभी तो दिखाये थे ।
अफ़सर :- नही मुझकॊ फ़िर से देखना है ।
मित्र ने परेशान हो के कागज आगे बढा दिया ।
अफ़सर :- मुझे वहां से दिखायी नही दे रहा है आप
इधर मेरी बगल मे आ के दिखायें ।
साब हमारे मित्र तो पक पका कर उधार हो ही चुके थे ,
सो जोर से चिल्ला कर बोले :- तुम्हारे बाप का नोकर हूं क्या ?
आपने मुझको समझ क्या रखा है ? क्या चोर समझ रखा है ?
और मैं क्युं उठ कर तुमको कागज दिखाऊं ? अपने चपरासी
को बुला कर देख लो !
अब अफ़सर बोला :- अरे रे सेठ जी बैठो .. बैठो आप
तो खाम्खाह नाराज होने लग गये । असल मे ये तो हमारा
तरीका है जिस से हम सामने वाले की सच झूठ पकड सके ।
मित्र बोले :- साब ये कौनसा तरीका है ?
अफ़सर :- देखो .. आपने कभी लडकी छेडी है ?
मित्र : - अरे मेरे बाप , मेरे खान दान मे किसी ने ऐसा
काम नही किया फ़िर मैं क्यों करूगा ? और क्या इस केश मे
तुझे माल नही मिलने वाला तो इस तरह मुझसे , लडकी-बाजी
कबूल करवा कर मेरी घर वाली से पिट्वायेगा ?
साब तुम्हारे हाथ जोडे , पांव पडे .. मेरा पिछा छोड दो ।
जो तुमको नजराना शुकराना लेना हो .. आदेश करॊ ।
अफ़सर बोला :- नही नही आप गलत समझ रहे हैं । मेरा ऐसा कोई
इरादा नही है । असल मे जैसे लडकी छेडने वाले धीरे धीरे
आगे बढते हैं.. अगर लडकी ने शह देना शुरु किया तो
सामने वाला और आगे बढ जाता है । और ये होता है कि
अगर लडकी को मन्जूर होगा तो वो आगे आगे छूट देती
जायेगी । और अगर वो राजी नही हुई तो पहले ही दफ़ा
मे सामने वाले की इक्कन्नी कर देगी । इसी तरह अगर सामने वाली
पार्टी मे कुछ खोट या कर चोर हुवा तो वो हर बात मानता
चला जायेगा । और इसी के अनुसार मैने ये आखिरी
अश्त्र तुम पर चलाया था कि कुछ खोट हुवा तो
तुम चापलूसी करने के लिये उठ कर चपरासी गिरी भी
कर लोगे ।
अब हमारे मित्र के समझ आया कि यह अफ़सर लोग कैसे
वहीं पर नजर डालते हैं जहां पर लोचे होते हैं ।
हम बात कर रहे थे इन समाज के दुश्मनों की ।
खैर साब आखिर परेशान हो के लडकी ने आपने बाप को
सारी बातें बतायी । बाप ने अपने घर के बुजुर्गों से विचार विमर्श
किया कि अब क्या करना है । और यंहा फ़िर वोही चाल बाजी
सामने आयी , जब लडकी के बाप ने बताया कि अभी तक करीब
५ पेटी वो दे चुका है । अब हमने पूछा कि भई -- ये क्युं दे दी ?
शादी की तारीख दिसम्बर मे है फ़िर आप बिना बात अभी गरमी
मे ही क्युं बरस गये ? तो साब वो बोले : - अभी पिछ्ले
महीने ही हमको वहां बुलवाया था ! तो क्या करते ?
सब काम धन्धे छोड छाड के गये थे । वहां बोले साब
दिसम्बर मे शादी करनी है तो मेरिज हाल ,घोडी बाजा, और
होटल वोटल सब बुक करनी पडेगी सो हमने उस
काम के लिये रुपिये उनको देदिये कि, ये लोग यहां के
लोकल हैं । हम परदेसी हैं । इस लिये दिये थे
कि ये सब बुकिंग वगैरह फ़ायदे से कर देंगे ।
दोस्तों सारा घर उन सज्जन का परेशान है कि लोगो
को क्या मुंह दिखायें ? लडकी की सगाई कैसे टुट गई ?
सबको क्या जबाव देंगे ?
ताऊ नै तो उनको बिन मांगी राय दे दी की ,
कि इन कमीनों को चार तो जुते मारो और इनकी पुलिस
मे रिपोर्ट करवाओ .. नही तो ये दुसरी किसी बच्ची को
परेशान करेंगे । और भई तेरे पिस्से (रुपिये) तो वापस मिलण
आले दीखैं कोनी । अगर ये वापस देण आले ही होते तो
लेते ही क्युं ? कुछ की राय मे रिश्ता बचाने की भी कोशीश
करने की बात आयी । सो भई हम तो बोल आये की अगर
बच्ची को खुश देखना चाहते हो तो इनको गोली मारो ।
नही तो फ़िर कोई गैस सिलेन्डर या स्टोव फ़टेगा और
उसके जिम्मेदार तुम ही होगे । देखो आगे क्या होता है ?
पाठको , आपसे निवेदन है कि इस मामले पर अपने विचार जरुर
रखें । ये एक ऐसी बुराई धीरे धीरे पैदा हो चुकी है की
समय रहते इसका इलाज नही हुवा तो ये सबकॊ ले
डुबेगी । चुप बैठना भी अपराध को बढावा देना है ।
ताऊ का दिमाग आज बिल्कुल ही चोपट है सो आज के सारे पोस्ट
एक दो दिन बाद ही डाले जायेंगे ।

कुछ करो मंत्री जी !


अब मुद्रा स्फ़ीति कि दर खत्म हुये सप्ताह मे ८.२४ हो गयी ।
और वित मन्त्री जी जनता से सहयोग की अपील कर रहे हैं ।
तो साब आप को हमारा पूरा सहयोग है । हम तो आपकी प्रजा हैं ।
आपको सहयोग नही करकै के म्हानै थारै जुतै खानै सै ?
वित मन्त्री जी थम अगर हम पब्लिक सै बात कर रहे हो तो
जरा देखो किस तरीयां मंहगाई मूंह फ़ाडनै लाग रही सै ।
थम कुछ करते क्यूं कोनी ? के थारै बस मै नही सै यो बात ।
अब पेट्रोल के दाम बढनै के बाद तो यो और बढैगी ।
जरा आकडे देखो :-
जनवरी माह शुरुआत मे : ३.५० %
फ़रवरी माह शुरुआत मे : ४.११ %
१ मार्च : ५।११ %
८ मार्च : ५।९२ %
१५ मार्च : ८।०२ %
२९ मार्च : ७।७५ %
१९ अप्रेल : ७।५७ %
३ मई : ७।८३ %
१७ मई : ८।१० %
२४ मई : ८।२४ %

और जैसा की सब समझदार लोग बोल रहे हैं कि तैल की
कीमतों मे बढोतरी के बाद ये आकंडा १०.० % के पार जा सकता है ।
कैसे जियेगा आदमी ? है कोई जवाब ?
किसी भी नेता या धन्ना सेठ का कोई शोक कम नही होगा ।
गरीब पिसता आया है और पिस जायेगा ।
ये नतीजा है ग्लोबलाइजेशन का ।
इससे गरीब जनता ने क्या कमा लिया ?
इससे सिर्फ़ अमीर और अमीर हो गये । और गरीब जनता को
उसका फ़ायदा तो कुछ नही मिला ।
बल्कि नुक्सान मे दो रोटी से और गया ।
कुछ करो मन्त्री जी !

पापा और बिटिया


कोमल कली सी बेटी , पापा के आगंन मे चहकी ।
बनके सबकी लाडली , पुरे घर उपवन मे महकी ।


लाडों से पली, सबकी दुलारी बिटिया स्कूल चली ।
देख कर उस चिडिया को, मन अति आनंदित होता था ।


छोटी सी बेटी, उसके छोटे छोटे हाथ, पापा को दुलराते ।
जैसे कोइ मां अपने बेटे को दुलराती है ।


पापा उसकी छॊटी सी गोद मे सर रख कर खो जाते ।
ऐसा सुखद एहसास सिर्फ़ मा की गोद मे ही होता है ।


पापा बेटी साथ साथ, सुबह घर से स्कूल के लिये जाते ।
दोपहर मे पापा बेटी को स्कूल से लेकर घर आते ।


फ़िर दोनों साथ साथ, खाना खा कर थोडी देर सो जाते ।
कभी बेटी मां बनकर पापा को सुलाती, कभी पापा उसे सुलाते ।


फ़िर उठकर पापा आफ़ीस जाते, बिटीया फ़िर दादी बूआ मां ।
इन सबका प्यार लेती और मानों उनपर एहसान करती ।


शाम को पापा के लोटते ही उन पर लद लेती ।
बहुत मस्ती करती पापा से , और कुश्ती तक लड लेती ।


जीत तो बिटिया कि तय थी , क्योंकी ये तो पापा बेटी मे ।
तय शुदा नूरा कुश्ती होती थी । जीत के बाद बेटी ताली बजाती ।


कभी बेटी मेहरबान होती , तो पापा को भी झूंठ मूंठ मे ।
बोलती ॥ पापा अबकी बार तुम जीतना , मैं हारूंगी ।


ऐसा कभी हुवा है , कभी अपनी बहादुर बेटी से कोई पापा जीता है ।
पापा फ़िर जान बूझकर हार जाते, बेटी कहती क्या पापा ? फिर हार गये ।

मदारी, जमूरा और परेशान बन्दर



देखते ही देखते यह सप्ताह भी बीत गया
और मई माह की एक्सपायरी भी हो गई और मजा किम्मै
आया कोनी ।
पुराने मदारियों और बन्दरों को मालूम है कि एक्सपायरी
पै कैसी जोरदार फ़सल कटती थी ।
आजकल तो मालूम ही नही पडता की आज एक्सपायरी है।
बडी मायूसी चारों तरफ़ छाई हुई है ।
नये मदारियों और नये बन्दरों को तो भविश्य
की चिन्ता भी थोडी थोडी सताती सी दिख रही है ।
जमूरों की अभी तक तो चान्दी है । सुना है कई जमूरों ने तो
मदारी बदल लिये हैं ।और कुछ शायद बदल लेंगे ।
ताउ का एक बान्दर तो घुटने से टेकता दिख रहा है ।
देख भाई - तु सै नया बान्दर, तन्नै थोडे से
दिन हुये सैं इस धन्धे मै ।
तन्नै बेरा ना है की ठन्डी करके खावैगा तो ज्यादा मजा आवैगा ।
पुराने मदारियों और बन्दरों को इस खेल का पता है,
इससे भी बदतर हालत देख चुके है ।
यो तो किम्मै ही खराब हालत ना सै ।
नये जमूरों मे ये ही खराब बात है की
जरा सी तेजी होते ही अपने आपको सरकारी समझने लग जाते हैं ।
और लोगों से इस तरह व्यवहार करने लग जाते हैं
जैसे लोगों की किस्मत की चाबी उनके ही पास है ।
और तो और मदारी को भी ये जमूरे आन्ख दिखाने लग जाते हैं।
थम जानते ही हो के मैं किस जमूरे की बात कर रहा हूं ।
यो जमूरा घन्ना पुराना ना सै ।
साल छ महीने हुये सैं इसने यहां इस खेल मे आये हुये
और यो मदारी समझने लग गया अपने आपको ।
इसने बेरा कोनी के बन्दरों से पन्गा नही लिया करते क्यूंकि
बन्दरों के पास काट खाने के दान्त भी होवै सैं ।
जो असली मदारी हैं वो तो कहीं से भी मदारी-पना नही दिखाते ,
अल्बत्ता जरुरत पडने पर अन्दर ही अन्दर खेल जनता को दिखा देते हैं ।
तो भाइ ठीक सै.. जिस दिन यो जमूरा ताउ कै चाले चढ
गया उस दिन इसनै मजा आ ज्यागा । इबी तो इसने नाच कूद लेनै दो ।
कल शाम को ही कपूर साब का फोन आया था, आपने वीक एन्ड पोस्ट का
पूछा तो भाइ थारे खातिर कल जल्दी की कोशीश करी थी
पर ये समझ लो की जल्दी जल्दी मे ७ / ८ घन्टे का काम खराब हो गया ।
सो भाइ ये सारे पोस्ट ही लेट हो रहे हैं। खैर....।
फिर थमनै पूछ्या के यो मारकेट चलेगा या नही, तो यार थम बावलेपन
की बात ना करया करो !
जै ताउ नै यो बेरा होता तो ताउ रोज रोज क्यूं दुकान लगाता ?
एक ही दिन मै के. जी. एन. वालो की
तरह फ़सल काट के घर नही बैठ जाता ?
खैर जब पूछ ही लिया सै.. तो भाइ म्हारा एक घण्णा ढाडा
दोस्त सै पाहवा जी , भाई वो तो आज बावली बावली बात
करण लाग रया था ? किस्सी पन्डत वन्डत के चाले चढ रहा दिखै सै..
एक कोई पन्डत बतावै था.. और वो उल्टे सीधे सरकीट वरकीट
की बात करै था.. भाइ यो पन्डत हर महिने सरकिट लगाने की भविश्यवानी कर दे सै...
एक बार गलती से इसकी बात सही हो गयी थी... उसके बाद इसने आदत सी पडगी सै...
इस तरियां की भविश्य वाणीयां की .. किस्सी दिन यो खुद तो मरैगा ही मरैगा...
ये पक्का समझ ले क्यूकिं क्लाइन्ट तो अब मरनै खातिर बचे कोनी सै ।
और भाई मजे की बात ये की बाकायदा अखबारों मे विग्यापन भी देता है ।
पर भाइ मन्नै लाग सै की असली जड तो तेल की कीमत की है।
दुनियां के सारे देश पेट्रोलियम के २५ से ४० % भाव बढा चुके सैं ।
इब म्हारे देश मै भी हो हल्ला माच रया सै.. सो कब तक नी बढायेन्गे ?
भाइ ताउ नै तो यो कोइ आछे लछ्छन ना दीखै सै..
आगे जो होगा देखेन्गे , और कोई उपाय भी नी दिख रया सै ।
खरचे पानी किस तरह चलेन्गे ये चिन्ता सतान लागरी सै..
क्योन्कि खरचे बढ गे सै किम्मै ज्यादा ही ,
सो अगर ताउ लद्दाराम और ताउ खद्दाराम के जिसे हाल हो गये तो बडी मुश्किल पड ज्यागी ।
हुवा यो था की भई पिछली तेजी शुरु होने के बख्त ही
ताउ लद्दा और ताउ खद्दा की मुलाकात जयसवाल साब तै होगी थी
और जयसवाल साब नै दोनु ताउआं के घण्णे मोटे पिस्से (रुपिया) बाज़ार मे
लगवा दिये थे । और ताउआं के घण्णा मोटा फ़ायदा हुवा था ।
सो दोनु ही ताउ मजे लेने लग गये थे जिन्दगी के...
खेत वेत पे जाणा दिया छोड.. और सारे दिन मार्केट मै बैठे रहते...
नु समझ लो की अपने आपको चेम्पियन समझ्ने लग गये..
लम्बे लम्बे दांव पासे लगाने लग गये थे..
जयसवाल जी ने भी समझाने की भतेरी कोशिश करी पर ताउ नी माने।
और भाइ जब मन्दी शुरु हुयी तो दोनु ताउआं का सब कुछ स्वाहा होग्या ।
नु समझ ले कि ताउ इकन्नी इक्न्नी के मोहताज हो गये ।
ताउ पहले देशी ठेके पे पिया करते थे ।
पिस्से आते ही विजय माल्या साब वाली बिलायती खिन्चनै लग गे थे ।
और इब या हालत हो री सै की नीम और टीकर आली देशी भी
मिल ज्या तो भोत सै । इब भई हुया यो की दोनु ताउआं नै
रेवाडी जाना था और जेब मे धेला कोडी था नी,
सो दोनु बिचार करण लाग गे कि किस तरियां करया जाये..
जाना भी जरुरी था । सो रुपये का जोगाड बैठाने का विचार करण लग गये ।
तो दोनु तय करके रुपिये पिस्से उधार लेण खातिर हरीश गर्ग धोरे पहुन्च लिये..
अब थम पूछोगे की यो गर्ग साब कुण आग्या
तो भई इस गर्ग साब नै शुक्ला जी आछी तरियों जाणते हैं ।
शुक्लाजी नै पहले भी एक ताउ की जमानत गर्ग साब धोरे दे दी थी,
और इब वो ताउ पिस्से देवै कोनी सो शुक्लाजी भी के करै ।
इब गर्ग साब को तो थम जानते ही हो की रुपिये उधार देने वास्ते
कभी मना करे कोनी पर बिना पक्के जमानतदार के देवे भी कोनी ।
और ताउआं की जमानत देवै कोण ? किसका खोटा बख्त आया सै ।
जो ताउआं की जमानत देने की सोच भी ले !
गर्ग साब बोल्या :- ताउ न्यु करो पिस्से रुपये तो थम चाहे जितने लेलो
और चाहे तो वापस भी ना करियो पर जमानत शुक्लाजी की दिलवा दो ।
इब गर्ग साब नै ताउआं सै पिन्ड छुडान का
इससे बढिया तरीका नी मिल सकता था ।
पहली बात तो ये की शुक्लाजी अभी यहां रहते कोनी
और अगर ताउ फोन वोन पे जोगाड कर भी ले तो
शुक्लाजी इब कम से कम ताउआं की जमानत तो देने आला नही सै ।
क्यून्की एक ताउ नै पहले ही घी घाल राख्या सै शुक्लाजी की आन्ख्या मै । ।
सो भई ताउआं का जोगाड जम्या कोनी.
ताउ लद्दा बोल्या - एक काम कर हम दोनुं सायकिल से रेवाडी चालान्गे ।
ताउ खद्दा के यो बात कती एक बार मे ही जच गी।
इब दोनु घर मे से एक पुरानी सायकल ठा ल्याये और लद लिये उस पे ।
पिछे की सीट उस पे थी नही सो ताउ खद्दा डन्डे पे बैठा था,
और ताउ लद्दा पैडल मारता जा रहा था ।
गाम से बाहर निकले ही होन्गे की सामने से ताई ग्यारसी जा रही थी ।
ताई नै देख कै दोनु ताउ कुछ उट्पटान्ग मजाक करने का सोच ही रहे थे,
की ताउ लद्दा का बेलेन्स बिगड गया और सायकल पिछे से
ताई ग्यारसी कै दे मारी !
इब ताई नै आग्या छोह और बोली- अर थम बुढे डान्गर होलिये
थमने शरम नी आती ... कम से कम घन्टी तो मारनी चाहिये थी ?
इब ताउ खद्दाराम बोल्या- अर भाभी पूरी सायकल ही दे मारी
और तू घन्टी मारनै की बात करै सै ?
ताइ होगी नाराज़ और हाथ मे उसके था गन्डाशा सानी काटने का ,
वो ही लेके मारने दोड पडी. पर ताउ भी कम ना थे-
वो उनकी पूजा पाठ कर पाती ,
उसके पहले ही सायकल छोड के और भाज लिये बस अड्डे कि तरफ़......
इब दोनु जणे बतला कर बस मे चढ लिये। बस मे भीड घनी हो रही थी ।
ताउ लद्दाराम तो आगे के दरवाजे से चढ लिया
और ताउ खद्दाराम पाछे के दरवाजे से चढ लिया ।
कन्डकटर आया - ताउ टिकट ? ताउ खद्दा से पूछ्या..
ताउ खद्दा - रे कलन्डर .. भई न्यु समझ लिये कि कोइ गाम की छोरी जावै थी.
(हरयाने मे जिस गाम की बस होवे ,
उस ही गाम की कोई छोरी जावै तो उस तै किराया भाडा ना लिया करते)
कन्डक्टर नै कही- चल ठिक सै ताउ , तु भी के याद करैगा...
थोडी देर मे कन्डक्टर टिकट काटता अगले दरवाजे मे ताउ लद्दाराम के धोरे पहुन्चग्या
बोला- ताउ टिकट.. टिकट ?
ताउ लद्दराम नै पूछी- रे कलेन्डर साब पीछे नै एक ताउ था नै,
उसने टिकट ली के ?
कन्डक्टर बोल्या-- नही ली उसनै ..
ताउ लद्दा नै पूछी-- के बोल्या वो ?
कन्डक्टर बोल्या- उस ताउ नै कही के....
.. नु समझ लियो के कोइ गाम कि छोरी जावै थी !
इब ताउ लद्दाराम बोल्या-- र डाकी तो न्यु भी समझ ले ना
की वो छोरी के साथ उसका बटेऊ भी जावै था !
तो इस तरियां करके फिर पहुन्च गये दोनु ताउ रेवाडी ।
दोनुआं नै भूख लाग री थी जबरदस्त ।
पर गोज (जेब) धोरे इकन्नी भी थी नही ।
सामने ही एक हलवायी कडछी घौटने लाग रा था खाली ।
ताउआ नै सोची के इसनै मामा बना बनुके नाश्ता पानी का इन्तेजाम करान्गे,
पर भई यो भी रेवाडी बस अड्डॆ का हलवायी था ।
यो दिन भर ताउआं नै ही बणाया करता था ।
ताउ लद्दा नै पूछी... रे .. डाकी के बनाने लाग रया सै ?
हलवायी नै जबाब दिया- बावलीबूच (बेवकूफ़) बनाउ सूं !
जबाव सुन के दोनु ताउ समझ गये की यहां दाल गलने आली नही सै ।
दोनु ताउआं की साथ बाद मे क्या क्या हुया यो आगले सप्ताह पढ लियो...
और यदि ताउआं नै इस ताउ सै पहले सम्पर्क किया तो आप
ब्लोग देखते रहना, आपको ताउओं की खबर दे देन्गे ।
वैसे यो सम्भावना पूरी पूरी दीख रही सै कि ताउ हिमान्शु जी से
सम्पर्क जरुर करेन्गे । क्योन्कि आज भी ताउआं नै यो भरोसा सै कि
वो उनकी इस हालत मे मदद जरुर करेन्गे ।
और भई इस सप्ताह हमारे खनडेलवाल जी का कोइ समाचार नही सै..
पिछले सप्ताह तो यो ताउ (खन्डेलवाल साब) भी मदारी
और जमूरों पे भोत भडक रहा था ।
देख भई ताउ खन्डेलवाल साब तू एक बात समझ ले ।
तो तु भी सुखी और सारे सुखी । वो ये सै .....
नाचै कूदै बान्दरी और खीर मदारी खाय...
अपने को तो एक आधा चावल का दाना ही भोत सै...
और जै ज्यादा खीर चाहिये तो बाज़ार मै इबी घने मदारी घूम रहे हैं ।
डलवा ले रस्सी किस्सी नये मदारी से गले मै..
पर भई इस ताउ नै लगता है कि इस बार बान्दर भागेन्गे जरुर !
अच्छा भाइ तो इस हफ़्ते की राम राम ...
और कल से काम धन्धे पर लगना सै..
आगले हफ़्ते फ़िर मिलान्गे॥

मदारी और बन्दर

बन्दर बडी अकड मे चश्मा वश्मा लगाके. और शूट वूट पहन कर,
छाता ले के बडे तैश मे मदारी के केबिन मे घुस गया ।
मदारी अपने फोन पे किसी से बतिया रहा था । इस तरह अचानक
बन्दर को घुसते हुये देखा तो बोला-
आ भई बन्दर आ ! भई घनै दिन मे दिख्या ! कहां का
सैर सपाटा कर आये ?
बन्दर -- सैर सपाटा काहे का ! खाने के ठिकाने नही,
पर तुम्हारी तो मस्ती है । बन्दर मरे या जिये ।
मदारी ने सोचा- बन्दर कुछ नाराज सा है.. चलो इसको बीडी
वीडी पिला पिलूकर चलता करते हैं !
मदारी - क्युं भई बन्दर बीडी पिवैगा ?
बन्दर - ना जी ना ? थारी बीडी थमनै मुबारक !
मदारी - के बात सै, भई बन्दर आज तो
तू बडा उखडा उखडा सा दिखै सै ?
बन्दर - थानै मालूम सै की मैं सिर्फ़ डनहिल किन्ग साईज
सिगरेट ही पीता हूं । फ़िर बीडी के लिये
पूछ्ने का मतलब ? और वो भी थारै केबिन
मै आगये तो !
मदारी ने देखा कि आज बन्दर का मूड खराब
दिख रहा है सो तुरन्त सिगरेट निकाल कर बन्दर
के सामने पेश की और पास ही एक जमुरा
बैठा था, उससे कहा... जमुरे !
जमुरा - हुक्म मेरे आका ?
मदारी - जमुरे जरा बन्दर के लिये नाश्ता तो बुलवावो !
इतने मे बन्दर बोला नही नही मुझे नही करना
तुम्हारा नाश्ता पानी । मैं तो जा रहा हूं ।
मदारी को लगा आज कुछ गड बड है । सो
बोला - अरे यार बैठो भी बन्दर साब ।
बन्दर - अच्छा तो हम साब कब से हो गये ? हम जिये
या मरे तुमको उससे क्या ? आज तक भी कभी पूछा कि
यार बन्दर भाई, तुम जिन्दा हो या मर गये ?
बन्दर जिये या मरे ! आपने कभी पूछा ? कभी नही ।
आप की बात छोड भी दूं, तब भी तुम्हारे जमुरे भी
मेरी नही सुनते । मैं दिन भर धूप में तमाशा दिखाता हूं ।
पर तुम्हारे जमुरे मेरा फोन भी नही उठाते ।
और तो और मुझको लिमिट भी नही देते ।फ़िर मैं
खेल किस तरह दिखाऊं ? जितनी लिमिट मिलती है उतने खेल
से कुछ कमाई होती नही । मतलब ये कि हमको तो पागल
समझ रखा है । तुम्हारे जमुरे चाहे जब माल काट देते हैं ।
ठीक है मैं तो जा रहा हूं ।
ये भी साली कोई तमीज हुयी ?
बन्दर पुरी तरह तैश मे आ चुका था ।
मदारी - अरे भई ! । कहां चल दिये बन्दर साब ?
बन्दर - मैं तो जा रहा हूं, नया मदारी खोजने ।
खोजने क्या , पुराने जमुरे ने ही मदारी की दूकान खोली है
मैं तो अब उसके साथ ही खेल दिखाऊंगा

मदारी भी खेला खाया था । इसके जैसे कई बन्दर पाल के
छोड चुका था । और इससे भी बडे बन्दर तो क्या लन्गूर उसने
अब भी पाल रखे थे । सो बिल्कुल शातिर अन्दाज में बोला-
अरे यार बन्दर साब आप तो बिल्कुल ही नाराज हो गये ।
ऐसी मदारी बदलने वाली कौन सी बात हो गयी ?
बन्दर : - क्युं आपने कभी मेरे राशन पानी का इन्तजाम किया ?
कभी व्हिस्की सोढा के लिये पूछा कि इस महिने
तुमने खाया पीया या नही । दो महिने तो पिये होगये ।
तुमसे अच्छा तो पुराना मदारी ही था जो महीने के राशन पानी
और खम्बे का इन्तजाम बिना कहे ही कर देता था । अब उसकी
कीमत मालूम पड रही है । उसके यहां रहते तो मैने उसकी कद्र
कभी की नही । अब मालूम पडा है की वो ही ठीक था ।
और हमारे साथ का एक ताउ बन्दर सही ही कहता है कि
नाचै कुदै बान्दरी और खीर मदारी खाय । तो अब ऐसा नही चलेगा ।
खीर मे से एक दो कटोरी नही तो आठ दस चम्मच हमको भी
देनी चाहिये । पर तुमको तो पुरी खीर का भगोना ही पीने की
आदत पड गयी है । अपने को ये बिल्कुल ही मन्जूर नही है ।
बन्दर अब तक काफ़ी तैश मे आ चुका था ।
बीच मे मदारी ने टोका.... अरे बन्दर भाई सुनो तो ..
पर बन्दर सुनने को तैय्यार ही नही हो रहा था ।
फ़िर आगे बोल पडा.. बोल तो क्या पडा .. बस फ़ट ही पडा ।
बोला- और तुम्हारे जमुरॊं से कहो कि मेरा फोन उठाये और मेरी रस्सी
जो तुमने ५ फ़ीट की कर रखी है उसको खेल दिखाते समय कम से
कम २० फ़ीट की करवावो । और दारु पानी का इन्तजाम समय से करवावो ।
बन्दर एक सांस मे ही ये सारी बातें कह गया ।
मदारी भी घुटा हुवा था-- ठन्डे छींटे मारते हुये बोला-
अरे यार बन्दर भाई आपके लिये तो मेरी जान हाजिर है ।
जहां तक आपकी रस्सी का सवाल है तो आप खातिरी रखॊ..
कल से ही खेल दिखाते समय आपकी रस्सी मैं ही थामुंगा ।
और २० फ़ीट तो क्या आपकॊ रस्सी मे जितनी छूट (लिमिट)
चाहिये उतनी मैं दूंगा । और जहां तक दारु पानी और खर्चे
का सवाल है तो मुझे आप थोडा सा समय दो मैं ऊपर मेरे
बाजीगर (बास) से बात करके करवाने की पक्की समझो ।
आप चिन्ता मत करो । आप तो पब्लिक को बढिया खेल
दिखाते रहो । बाकी मै सम्भाल लूगा ।
बन्दर भी अब थोडा ठन्ढा पड चुका था । बन्दर ने भी सोचा चलो
घुडकी का कुछ तो असर होगा । और सोचा की ये मदारी
यों ही छोडने वाला भी नही है अगर इसने ५ फ़ीट की रस्सी
को छोडने के बजाये और घुटने के पास बांध लिया तो
और दम घुट जायेगा । सो बन्दर भी खींसे निपोरता हुवा मदारी
के केबिन से निकल लिया और मदारी ने अपने जमुरे से
विचार विमर्श शुरु कर दिया ।
पाठको आपको इसके बाद का हाल चाल भी समय समय पर
हम बताते रहेंगे ।

स्कूल के सुनहरे दिन भाग-3

भाग-1 एवम  भाग-2  अब आगे पढिये....

अब तक आपने पढा कि कैसे गणित वाले मास्टर जी ने रामजीडे को पहले ही दिन कूट दिया और सब के मन मे दहशत भर दी. असल मे उस समय का हिसाब ही यही था कि बच्चों को जितना मारोगे, वो उतना ही होनहार और तेज याददास्त वाला बालक बनेगा.

शायद इसीलिये उस जमाने मे मास्साब लोगों को  खुली छूट थी, कि घर वाली से झगड कर स्कूल आवो और
पराये छोरों को कूट पीट कर अपना गुस्सा ठन्डा कर लो.  क्योंकि घर वाली तो जो आज के जमाने मे है वो ही उस जमाने मे थी.  यानि   कुम्हार अपनी  कुम्हारी से तो कुछ कह नही सकता था  और जाकर गधे की धुनाई करता था.... आज भी उतना ही खरा है.

असल मे रामजीडे को तो कुटना ही था.... क्यों कि हमारा सरदार तो वो ही था.  अगर सरदार को ही काबू कर लिया तो फ़िर बाकी तो काबू मे आ ही जायेंगे.  इसी रणनीति के तहत रामजीडे की जमकर  कुटाई हुयी थी. मास्टरजी को भी ये उम्मीद नही थी की पहले ही दिन हाथी को मारने का मौका मिल जायेगा.  पर रामजी लाल लंगडा नाम ही क्या ?...जो ऐसे  गुल नही खिलाये तो !

असल मे रामजीडा सब रत्नो मे उम्र मे काफ़ी बडा था. मुझे अच्छी तरह से याद है कि वो हमारे साथ प्राईमरी मे आया था. शायद वो तीसरी या चोथी क्लास की बात है.  हमारे स्कूल की टीम को जिताने के लिये इस लंगडे के भारी भरकम डीलडोल को देखते हुये इसकी उम्र कम लिखवा  कर इसे  हमारी क्लास मे भर्ती कर दिया गया था.

पर समस्या तो ये आ गयी की  बच्चनसिंह जी मास्साब  की लूगाई तो इनके साथ नही रहती थी वो रहती गांव में और मास्साब यहां स्कूल में अकेले रहते थे. और लंगडे रामजीडे ने मास्टरजी के गांव मे उनकी घर वाली
को ऐसा समाचार भिजवाया था की मास्टर जी को अब तक पता नही होगा की ये खेल रामजीडे का किया हुआ  था.  जीते जी तो मास्टर साब औरों पर ही शक शुबहा करते रहे , पर आज दशकों बाद गुमनाम नाम से मैं इस बात का खुलासा कर रहा हूं.

भाई रामजीडे तेरी दी हुयी कसम आज तोड रहा हूं.  क्यों की ना तो दशकों से तू मिला और मास्टर साब का तो सवाल ही नही.  पर ये बोझ अब उठाया नही जाता. और यार अब तो मास्टर जी परलोक जा चुके होंगे.  डर तो मास्साब की  आत्मा से ही लगता है. वो आज तक उस सवाल का जबाब नही ढुंढ पाये होंगे.  उनकी आत्मा भी स्वर्ग या नरक मे इसी का जवाब ढूंढ रही होगी.  और अगर अभी तक जिन्दा हैं तो वो  अब हम तक  पहुंच नहीं  पायेंगे.

कभी कभी तो इच्छा होती है कि उनको मास्साब को खोजकर   असलियत बता दी जाय जिससे वो शांतिपूर्वक  ये दुनियां छोड सकेंगे...वर्ना अगले जन्म में तो उनको पता चल ही जायेगा और एक नई कुटाई पिटाई की श्रंखला शुरू हो जायेगी.

पर मास्साब की  दहशत अब भी मन मे इतनी है कि उनके सामने जाना तो दूर, उनके  नाम से ही कपं कपीं छुट जाती है.  और ये भी पक्का है की अगर मास्टर साब को इस लोक मे या परलोक मे इसका खुलासा हो गया तो वो अगले सात जन्म तो हमसे बदला लेने के लिये ही पैदा होंगे.... ये सोच सोच के ही रुह कांप जाती है कि  क्यों ये मुर्ताख की. पुरे स्कूल समय मे पिटते रहे और अब ये जन्मों जन्मों का बैर मोल ले लिया.  अरे रामजीडे  हम सब ने तेरा क्या बिगाडा था?

इस वाकिये के पहले मैं हमारे नो रत्नों से आपका परिचय करवा दूं तो आपको आगे सहुलियत रहेगी । क्यों कि आगे आगे कहानी उलझती ही जायेगी. क्योंकी इस कहानी के पात्र बढते ही जायेंगे. असल में  अभी जितने पात्र इन्ट्री लेन्गे, उससे कम बाहर जायेंगे.

नौ रत्नों मे रामजीडे के बाद नम्बर आता था रामजीलाल बहरे का. और एक तीसरा रामजीलाल भी था । हमारी क्लास मे ये तीन रामजी लाल थे. शायद उस जमाने में रामजीलाल काफ़ी पापुलर नाम रहा होगा जैसे आजकल बबली डबली...चुन्नू..मुन्नू.....

इनमे ये तीसरा जो था यही  प्रथम था... मतलब रामजीलाल (प्रथम), रामजीलाल (द्वितीय), रामजीलाल (ततीय)... क्यो की तीनों ही एक जमींदार जाति से थे.  तो हाजिरी लेते समय भी  ऐसे ही पुकारे जाते थे.  पर हम लोगों ने अपनी सुविधा के लिये पहला रामजीलाल जिसे हम सिर्फ़ रामजीलाल कहते थे.

जिस रामजीलाल का पीछे आप जिकर पढ आये हैं यानि रामजीडा और अब जिस रामजीलाल बहरे का आप किस्सा पढेंगे वो उसको हम लोग बुलाते थे  रमजू बहरा.. जी... ये बहरा कोई जाति नही है , ये वाकई कान से बहरा था.... शायद इसे कम सुनायी पडता था.  फ़ालतु की बात इसे कभी नही सुनायी देती थी. पर मतलब की बात सारी सुन लेता था.  जैसे आप इससे पूछो कि रमजु तेरे पास बीडी है क्या ?
तो ये कुछ भी रिएक्ट नही करेगा.. यानि पक्का बहरा !

और आप इससे पूछो --रमजु हुक्का पीवैगा ? सट से जवाब आवेगा .. ल्या भई एक दो घूंट खींच ल्यान्गे.
तो साब ये है हमारा रमजु बहरा... अगर आपने इसको बहरा समझ के धीरे से भी इसे  गाली दे दी तो ये इतनी जोर का झापड मारेगा की तीन दिन गाल लाल रहेंगे.

चौथा था एक सागर मल नाई.. यानि सागरिया... पढने मे तेज और इतना तेज के नौंवी तक क्लास मे पहला स्थान और करीब करीब हर साल क्लास का मानीटर पर इसनै भी नौ रत्नों का कभी  साथ नही छोडा.. जब आगे जाके दसवीं मे सारे रत्न फ़ेल हुये तो ये  भी फ़र्स्ट डिविजन फ़ैल हुआ था...यानि दोस्त मंडली का पक्का धर्म निभाया था.  इसका बापु कहा करता था की इसनै मैं इन्दिरा गांधी की जड मे बैठाउंगा और वो ही बात  सही भी  हुयी क्योंकि  ये  आजकल दिल्ली मे ही रहता है. यह वो समय था जब लालबहादुर शास्त्री जी के देहावसान के बाद राजनीति में इंदिरा गांधी का दखल और प्रभाव दोनों ही बढ चुके थे.

पांचवां सुरजमल यानि सुरज्या.. कोई विशेष बात नही , शान्त आत्मा पर अशान्ती पैदा करने मे माहिर.

छ्ठा लालचन्द यानि लालिया ढोल ... पूरी नौटंकी...यानि टाइम पास ... स्कूल से तडी के बाद मनोरंजन का ठेका या  जिम्मा इसी के पास था. यो बैरी पूरा का पूरा भांड ही था.

सातवां मूलचन्द गुज्जर... सीधा साधा छह फ़ुटा ....कोई ऐब नही पर नो रत्नों के पूरे असर मे आके बिगड गया.  और आगे जाके... दस साल तक विधायक भी  रहा.

आठंवा बोदुराम ... नाम से ही बोदु.. इसको हम बोदिया कहते थे...ये उमर मे सबसे बडा ... पढने मे कमजोर ... पूरा बैल....अक्ल से इसका ताल्लुक शायद पडा ही नही था.

और भई पाठको नौवां मै.. माफ़ करना मै अपना नाम पता हर्गिज नही बताउंगा. पहले तो एक बार फ़िर भी बता देता पर मास्टर साहब की आत्मा की शान्ति के लिये जो राज मेरे सीने मे दफ़न था, वो खोल रहा हूं इस लिये मैं इतनी बडी रिस्क तो नही ही लूंगा... चाहे आप राजी रहे चाहे आप नाराज हो जायें.

अगर आप को मेरा परिचय अन्य रत्नों जैसा ही चाहिये तो आपको मैं वो मास्टर साब की लूगाई वाली बात नही बताउंगा.... और इसके बिना इस कहानी मे आनंद नही आयेगा सो आप सोच लो और मुझे बता दो की आपको मेरा परिचय चाहिये या रामजीडे ने मास्टर साब के साथ ऐसा क्या और कैसे किया की मास्टर साब को पूरी उम्र भर भी पता नहीं चला.  मैं आपके मनोरंजन के लिये अपनी जान जोखिम मे डालने को तैयार नही हूं.   या तो राज पूछ लो या मेरा परिचय ।

शेष अगले भाग मे ...

ताऊ लद्दा - खद्दा और हिमांशु जी


ताउ लद्दा और ताउ खद्दा दोनु भुखे प्यासे रेवाडी मे घुम रहे थे ।
उन्होने वहां से हिमान्शु जी को फोन किया की ... आपका भटिन्डा यहां
से पास है कुछ मदद करवावो । भुखे प्यासे हैं ।
हिमान्शु जी : भई मैं तो उडीसा मै हूं ।
आप लोग एक काम करो , वहां रेवाडी मे कुछ काम धन्धा शुरु कर दो ।
(हिमान्शु जी ने पीछा छुडाने को कह दिया)
इब ताउ तो ठहरे ताउ ही... होगे शुरु..
दोनु ताउ भुखे प्यासे तो थे ।
रेलवे स्टेशन के बाहर खडे हो के चिल्लाण लाग गे..
एक कि दो ...एक कि दो ...ले लो !
किस्सी नै ज्यादा ध्यान नी दिया !
ताउ चिल्लाते ही रहे .. एक की दो !
ताउ गरमी से परेशान हो लिये..
मन ही मन हिमान्शु जी को गालियां देते रहे ।
एक की दो .. एक की दो.... !
इतनै मै गुल्ला सेठ वहां आ गया..
दोनु ताउ... एक की दो ..एक की दो .. लेलो.
गुल्ला सेठ-- भई.... क्या बेच रहे हो एक की दो ?
ताउ छोह खाके बोले - ... ड. . पर दो लात ? बोल लेगा ???????

पोकरा और पतासी

ताउ कुरडा राम अपने धोरे ताई शारली न लेके बद्रीनाथ केदारनाथ की तीर्थ यात्रा पर निकल लीया और बाद का प्रोग्राम ऐसा था की वहाँ से ताई कोशिमला और मनाली भी घुमा देगा पर वो कहते है ना की किस्मत आगे आगे चलती है शारली ताई की किस्मत मेशिमला घुमना नही लिख्या था तो नहीं लीख्या था पहले भी एक बार कश्मीर कि ट्रिप उसकी पोकरा की वजह से केंसिल हो गयी थी और अबकी बार भी पोकरा क माथे ही यो ठीकरा फूट्या. जब ताउ और ताई चले गे तो पाछे न घर मे रहगे उनका छोरा पोकरा और उसकी बहु पतासी . अब यो हुया की पोकरा की तो हो गयी मौज् ना तो पट्ठा खेत कुवे पे जावै और ना ही कोइ काम धाम करे सुबह उठकर रोटी कलेवा करके इधर उधर हांड फीर के आज्या , और घी रोटे खांड के साथ पाड्के सारी दुपहरी खुंटी तान के सोवै
घन्ने दिनो बाद इक्कल्ले आजादी से रहने का मोका मिला था नही तो ताउ फत्ते उसको ढीला नही छोड्ड्या करता ताउ भी डाकी पोकरा के सारे गुण जाणता था सो पोकरा ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया और ताउ के पीछे सै खूब आवारागर्दी करी पतासी भोत सुथरी और समझदार थी, और घणी सोवनी थी न्युं समझ लो की साडे पाच फुट की दुबली पतली गोरी गट लूगाई थी. हेमा मालन भी उसके सामने फीकी लागै...... !पर नई नई ब्याह के आयी थी सो पोकरा उसकी भी कुछ सुनै कोनी था
पोकरा गाम के लुंगाडो के साथ देर रात तक आवारागर्दी करके लौटता था सो उसको पतासी नै कह दिया था की तु बाहर से ताला लगाके और चाबी साथ ले जाया कर, मेरी नींद ना खराब करया कर् मै दिन भर सारा घर काखेतां का और ढोर ढंगरा का काम करते करते थक लेती हू सो डुप्लीकेट चाबी पोकरा अपने साथ ही ले जाया करता था एक दिन पोकरा को गाम के कुछ बिगडैल छोरों नै देशी हरयाणवी टीकर और नीम आली दारु (विजय माल्या वाली नही) कुछ ज्यादा ही पिलवा दी और इस बावलीबूच पोकरे को दारु आरु पिनै का कुछ इल्म नही था, वो तो यारो के साथ शेखी शेखी मै पीग्या इतनी ज्यादा पर इस सत्यानाशी को भी उस वक़्त मालूम नही था की ये इतनी महंगी पडने आली सै.क्यूंकी हमने सुबह ही इसका चौथा चंद्रमा देख कै भविष्यवाणी कर दी थी कि आज का इसका दिन घन्ना टेढ़ा सै और राजी खुशी नही निकलेगा और यो डाकी पोकरा किस्सी बीरबानी धोरे पिटैगा जरूर्..और हमारी अच्छा काम वाली भविष्यवाणी तो कम ही सहीबैठती है पर कुटने पिटने आली तो बिलकुल सौ प्रतिशतगारंटेड सही होती हैं भरोशा ना आता हो तो एक बार आजमा के देखो गलत निकले तो थारे पिस्से वापस देर रात पोकरा टुन्न हो के घर आया घर आके दरवाजा ठोकने लगा, फीर याद आया कि चाबी तो उसी की जेब मे है सो कोशीश करने लगा पर चाबी ताले कै छेद मै घुस नही पा रही थी क्योंकी नशे की लहर मे हाथ पांव हाल रहे थे पताशी उपर चोबारे के बाहर आकर देख रही थी फिर बोली जी आप कवो तो मै पिछे की तरफ से आके दरवाजा खोलूं के ?पोकरा बोला - ना ना ... ताला तो मै खोल ल्युंगा पर यो पुरा दरवाजा हिलै सै, तु आके जरा दरवाजे नै पकड़ लिये पतासी समझ गयी की यो डाकी किम्मै गड़बड़ जरूर करकै आया सै और कुछ अंदर ही अंदर डर भी गयी, पर नई नई थी सो ज्यादा कुछ बोल भी नही सकती थी ! उसने इतने कम दिनो मे हि समझ लीया था कि यो उसका भरतार पोकरा ताइ शारली का ही बिगाड्योडा बांदर सै और ताउ तो ताइ कै आगे कुछ बोलदा ही नही सै वो तो ताइ कि हाँ मे हाँ मिलाया करै बस बाहर ही ताउ बन्या करै, घर मे तो बिल्कुल ताइ का बांदर बण कै रह सै इधर पोकरा को दारू कुछ ज्यादा ही चढ चुकी थी और आप तो जानते ही होंगे की जबभवानी सर पे सवार होती है तो आदमी को जोश तो आ ही जाता है और एक बात पे ध्यान देना कि जब हिंदुस्तानी आदमी को दारु चढ्ती है तो उसकीपक्की निशानी ये है की सबसे पहले वो अंग्रेजी बोलना शुरु कर देता है चाहे आती हो या ना आती हो और पोकरा भी कस्बे की स्कूल तै 11 वी फेल था सो थोडी बहुत अंगरेजी की ऐसी तैसी करना तो सीख ही गया था पतासी बोली .. जी रोटी खा ल्यो पोकरा... मै नही खांदा ........ रोटी वोटी ... ! पोकरे नै फिर पूछी --- पर who... you ..... ? .. हू.... यू .... .. घण्णी देर होगी उसनै हू यू ..हू यू ..करते !सीधी साधी पतासी कुछ समझी नहि ... अब थोड़ी झाल मार के बोली ..अर पोकरा के बोल रह्या सै तु , मेरी समझ मे कुछ नी आंदा है... जरा अपनी हरयानवी मे बोल सुथरेपन सै ... के हू हू यू यू करता है गादडे की तरियो ?हफ्ते भर से पोकरा की बद्तमीजी सहन करते करते वो भी थोडी तैश मे आ चुकी थी और यों भी 70 किले जमीन के मालिक चोधरी छाज्जूराम की इकलोती बेटी थी अगर वो अपनी आली पे आ ज्यावे तो पोकरे की तो क्या उसकी सात पीढ़ी की दारु तार दे और यो भी चौधरी छाज्जुराम के बरोबरी मै ताउ फत्ते कही नही लगता था पर उसके छोरे पोकरे की शादी पतासी धोरै किण करणो सै हुयी यो एक अलगही किस्सा सै जो आपनै हम फिर सही समय पर बतावांगे !
(क्रमशः)

बनिया और जाट का

गाम के छोरे स्कूल जावै थे
रास्ते मै एक बणिए और जाट के छोरे का झगडा हो गया ।
दोनु गुथ्थ्म गुथ्था हो लिये । बणिए के छोरे का दावं कुछ इस्सा बैठया कै
वो जाट आले छोरे नै नीचे पटक के और उसके उपर बैठ गया
और उसने कूटता भी जावै और रोता भी जावै था....
तभी उधर सै ताउ फत्ते निकल्या...
ताउ : रे छोरे बणिए के ! तु इस जाट के छोरे नै छेत्तन भी लागरया सै ।
और फिर तै रोता भी जावै सै ? क्यूं कर ?
बणिए का बोल्या : ताउ जब यो उठेगा तब के होवैगा ?