जून माह का पहला सप्ताह बीत गया । सप्ताह तो समय है ।
जो कहने को तो बीत जाता है, पर आज तक समय नही बीता ।
समय को बिताने वाले बीत गये । आज सुबह से ही जो समस्या
आ गयी वो बहुत ही पुरानी समस्या है । कहने को तो
हम लाख कहें कि लडकीयां भी लडकों की बराबरी पर
आ गयी पर ये दावे कितने सच हैं आप और हम अच्छी तरह
जानते हैं । आज भी समाज मे इतने कमीने और हराम खोर
बैठें हैं । जिन्होने कसम खा रखी है कि वो समाज को
इस बुराई से मुक्त नही होने देंगे । क्या बिना बेटियों के इन
कमीनों का अस्तित्व हो सकता था ? क्या आज भी
अगर सास (मदर-इन-ला) नही चाहे तो बहू पर अत्याचार हो
सकते हैं ? सास क्युं भूल जाती है कि वो भी कभी बहु थी ।
असल मे सबसे ज्यादा कसूर इन मामलों मे सास और
ननद का ही होता है और सारी जबाव देही भी इनकी ही
बनती है । अगर ये दोनो ठान ले की अब आगे से हमारे घर
मे ना तो स्टोव फ़टेगा और ना गैस सिलेन्डर ही फ़टेगा ।
और बहु को हम अपनी जैसी ही रखेंगे । तो मर्द जात की
इतनी ओकात नही है कि वो ओरत पर जुल्म कर सके ।
मैं यहां हर मां बहन से कहना चाहूगां कि - माता आप ठान लो
कि आज से आप ये अत्याचार नही होने देंगी । फ़िर क्या किसी की
मजाल है जो किसी बेटी की तरफ़ कोई आंख भी उठा ले ।
इस दिशा मे काफ़ी ढोल पिटे जाते रहे हैं । पर आज तक
कोई कमी नही आयी है । अखबारों के पन्ने रोज रंगे रहते हैं ।
पर तब तक कूछ नही होगा , जब तक स्वयं ओरत, ओरत की
मदद नही करेगी ।
ज्यादातर मामलों मे ये ही देखने मे आया है की लडके और
लडकी के बीच जो समस्या रहती है उसकी जड मे भी
सास ही रहती है । असल मे ये सास ही बेटे और पति को
बहु के खिलाफ़ उकसाती है । अब मर्द जात कब तक नही
उकसेगा । और वो ही सब हो जाता है जिसकी कल्पना
किसी को नही होती ।
असल मे कुछ मे तो इतनी कुंठाये घर कर जाती हैं कि
साफ़ लगता है कि इनके दिमाग मे कचरा भरा है ।
अभी कुछ समय पहले एक मित्र के यहां बातचीत चल रही
थी । वहीं पर उनकी लडकी के होने वाले सास और ससूर
भी बैठे थे । बरात , स्वागत समारोह आदि की तैयारियों
के सम्बन्ध में और आप जानते हो कि ताऊ को भी लोग
जबरन इन कामों मे शामिल कर लेते हैं , जबकि ताऊ को
आता जाता कुछ नही । ताऊ तो न्यु ही डांग पटेली करता
रहता है । खैर साब देखिए एक बानगी ..इस बैठक की ।
लडकी के सास ससुर ऐसे अकड कर बैठे हैं जैसे
वहां पर आ कर अह्सान कर रहे हों । लडकी वाले उनके आगे
पिछे घूम रहें है. यानी इस तरह की , बुढे बुढिया को
खांसी भी आ जाये तो वो हाथ आगे कर दें । खैर साब..
हम पहुंचे ... मित्र ने उनसे हमारा परिचय कराया..
हम भी बैठ गये.. उनके लिये माल ताल आता जा रहा था ।
साथ साथ हम भी खींचते जा रहे थे ।..
फ़िर सब प्रोग्राम बने कि किस तरह कहां क्या स्वागत होगा ?
और कहां क्या क्या होगा ? अमुमन सब ऐसा ही नजारा
सब जगह होता है । फ़िर सब कुछ नक्की हो गया और अन्त मे
बुढिया (लडकी की सास) बोली :- देखो साब और तो सब ठिक
है पर बस स्वागत ऐसा होना चाहिये की ये लगे कि
हम लडके वाले हैं । अब बोलो लाखों का हिसाबदारा तो
सारे प्रोग्रामों का बनवा दिया और अभी लडका वाले जैसे लगने
की कसर ही बाकी रह गयी । ताऊ की इच्छा तो हुयी कि
इस बुढिया तै पूछने कि -- भई तु के अमेरिका आले बुश ताऊ
की बहन हो राखी सै और लडकी आले के ईथोपिया से
आये हुये सैं । ताऊ नै गुस्सा सा आ लिया । पर
मोके की नजाकत समझते हुये ताऊ चुप हो लिया ।
उन लोगों के जाने के बाद ताऊ नै अपने मित्र को आगाह
भी किया था कि भाई इब भी सोच लिये । ताऊ नै तो
ये दोनु ही घन्नै ऊत दिखैं सै । फ़िर बाद मै कहवगा कि ताऊ तन्नै
चेताया क्युं नही ? और इस मामले मे भी बाद मे जा कर भोत
ज्यादा परेशानी आयी थी । और आज तक भी कुछ ठिक नही सै ।
ताउ आज घन्नै दार्शनिक मूड मे सै ।इस लिये यो पुराना
किस्सा सुनाने लग गया । और इस किस्से को विस्तार मे
हम फ़िर कभी बतायेंगे ।
आज का बिल्कूल ताजा किस्सा ये है जिस की वजह से हमारा
नियमित पोस्ट भी रुक गया और सारा समय इसी मे निकल गया ।
और आपको मालूम है की इन कामों के लिये ताऊ सब कुछ छोड
छाड के तैयार रहता है । ताऊ से किसी बेटी का दुख दर्द
नही देखा जाता । पोस्ट तो सप्ताह अन्त की जगह सप्ताह शुरु
के टाइटिल से सप्ताह के बीच मे निकाल देंगे ।
म्हारे एक नजदीकी मित्र नै अपनी सुथरी सी
बेटी की सगाई अभी ४-५ महिने पहले ही अच्छा पढा लिखा
लडका और खानदान देख कर करी थी।
और भई कोइ ३० या ४० मुसटन्डे तो सगाई करान खातिर
बाहर गाम से आये थे । अच्छा माल पानी खींच खूंच के
वापस चले गये । और भई माल तो ( दाल-बाफ़ले ) ताउ नै भी
खींच्या था । बहुत आनन्द पूर्वक सब कार्य
क्रम सम्पन्न हुवा था । सभी खूश थे ।
अब इसमे कोइ परेशानी वाली बात नही थी । लडके - लडकी
ने आपस मे फोन बाजी शुरु कर दी । आज कल ये तो अमूमन
होता ही है । पर इस लडके ने लडकी को फोन पे कूछ
इस तरह परेशान करना शुरु किया कि लडकी को कुछ
समझ ही नही आ रहा था । लडका इस तरह लडकी पर हावी
होता जा रहा था कि पूछो मत । हर आधा घंटा मे फोन, और
लडकी बाथरूम मे भी हो और फोन उसकी मां उठाले
तो फ़िर साब समझ लो कि लडकी की शामत आ गयी ।
तुम लोगों को तमीज नही है ? तुम्हारा फोन तुम्हारी मां
ने कैसे उठा लिया ? बेचारी लडकी क्या बोले ?
लडकी को बोला- तुमको नोकरी करनी चाहिये । तुम को
खाना बनाने मे भी माहिर होना चाहिये । और कुछ इस तरह की
कमीनी बाते कर कर के लडके ने इस लडकी को
इतना टेंशन मे डाल दिया कि सगाई के बाद लडकी
का तो बुरा हाल हो गया । सचमुच लडकी सूख के कांटा
होने लग गयी । आप ये समझ लो की लडके से फोन पे
पिछा छुटने के बाद ५ मिनट तो सर को थाम के बैठ जाती थी ।
ये क्या सम्बन्ध पैदा हो रहें हैं ?
लडका तो समझ रहा है की सारी अक्ल उसी मे है ।
कितना कमीना लडका है और कितने हराम जादे उसके
घर वाले हैं । ये इसी तरह के लोग सारा मनो विग्यान
समझते हैं । और अपराध मनो विग्यान की थ्योरी अनुसार ही
ये लोग योजना बना के शिकार फ़ंसाते हैं ।
उनको मालूम है कि आज भी इस तबके
के लोग सगाई टुटने को अच्छा नही मानते और
सगाई के बाद से ही लडकी को इतना तंग करो,
कि सगाई छूटने के डर से लडकी भी अपने बाप
पर दबाव बनाये और ज्यादा से ज्यादा दहेज लावे ।
इस तरह के लोग जान बूझकर सगाई और शादी मे काफ़ी
फ़ासला रखते हैं । ताकि शादी तक जितना ज्यादा से ज्यादा हो
सके माल खींच सके । और इस मामले भी ऐसा ही था ।
पहले तो मध्यस्थों द्वारा परिचय हो गया । फिर साब
इन्होने सगाई के लिये आने मे दो बार सगाई स्थल की
बुकिंग रद्द करवायी । बिचारे लडकी के बाप को तो लम्बा
फ़टका वहीं दे दिया । असल मे इस तरह के लोग सामने वाले
को परखते हैं कि सामने वाला कितना दुध दे सकता है ?
अब पाठ्को आपको एक सच्चा वाकिया सुनाते हैं । जो हमारे
एक मित्र के साथ घटा । ये मित्र अपना असेसमेंट करवाने एक
आफ़िसर के आफ़िस मे गये थे । अफ़सर ने सब कुछ देख दाख
लिया । उसमे कुछ मिल्या कोनी । इसका मतलब ये नही है
कि हमारे दोस्त बिल्कुल दुध के धोये ही हैं और सरकारी कर
वगैरह इमानदारी से भरते होंगे । तो आप गलत समझ रहे हैं ।
असल मे ये मित्र भी पुरे घुटे हुये महादेव हैं । इनका परिचय
हम फ़िर कभी आपको करायेंगे । अभी तो इनके असेसमेंट
की बात हो रही थी ।...
असल मे बात ये थी कि जिस तरह का ये काम था उसमें
कर चोरी की कोई गुन्जाईश ही नही थी । और इस तरह के
मामलों मे अफ़सरॊं को सिर्फ़ नजराना ही मिलना होता है ।
और इस महंगाई के जमाने मे कोरे नजराने से काम चलता नही ।
आखिर अफ़सर भी समाज मे ही रहता है और महंगाई का
बोझ उस पे भी पडता है । सो अफ़सर भी आज कल पूरी
मेहनत करते हैं कि कागजों मे कुछ मिल जाय और धारा
राग दरबारी लग जाय, फ़िर सामने वाला तगडा माल दे सकता है ।
तो साब अब अफ़सर ने हमारे मित्र को तंग करना शुरु
किया .. कभी बोले ये कागज .. कभी वो दिखावो....
मित्र भी मन ही मन गालियां देते सब कुछ सहन कर रहे थे ।
यानि मित्र भी पूरी तरह पक चुके थे ।
हमारे मित्र का ताल्लुक यों भी सीधे चंबल से है ।
सो अपनी वाली पे आ जाये तो बन्दूक से कम पर बात
नही करते । भले ही चाहे जितना नुक्शान उठाना पडे !
तो साब अब अफ़सर ने मित्र को बोला- फ़लां फ़लां तारीख
के जावक के चिठ्ठे दिखाईये ।
मित्र :- साब अभी तो दिखाये थे ।
अफ़सर :- नही मुझकॊ फ़िर से देखना है ।
मित्र ने परेशान हो के कागज आगे बढा दिया ।
अफ़सर :- मुझे वहां से दिखायी नही दे रहा है आप
इधर मेरी बगल मे आ के दिखायें ।
साब हमारे मित्र तो पक पका कर उधार हो ही चुके थे ,
सो जोर से चिल्ला कर बोले :- तुम्हारे बाप का नोकर हूं क्या ?
आपने मुझको समझ क्या रखा है ? क्या चोर समझ रखा है ?
और मैं क्युं उठ कर तुमको कागज दिखाऊं ? अपने चपरासी
को बुला कर देख लो !
अब अफ़सर बोला :- अरे रे सेठ जी बैठो .. बैठो आप
तो खाम्खाह नाराज होने लग गये । असल मे ये तो हमारा
तरीका है जिस से हम सामने वाले की सच झूठ पकड सके ।
मित्र बोले :- साब ये कौनसा तरीका है ?
अफ़सर :- देखो .. आपने कभी लडकी छेडी है ?
मित्र : - अरे मेरे बाप , मेरे खान दान मे किसी ने ऐसा
काम नही किया फ़िर मैं क्यों करूगा ? और क्या इस केश मे
तुझे माल नही मिलने वाला तो इस तरह मुझसे , लडकी-बाजी
कबूल करवा कर मेरी घर वाली से पिट्वायेगा ?
साब तुम्हारे हाथ जोडे , पांव पडे .. मेरा पिछा छोड दो ।
जो तुमको नजराना शुकराना लेना हो .. आदेश करॊ ।
अफ़सर बोला :- नही नही आप गलत समझ रहे हैं । मेरा ऐसा कोई
इरादा नही है । असल मे जैसे लडकी छेडने वाले धीरे धीरे
आगे बढते हैं.. अगर लडकी ने शह देना शुरु किया तो
सामने वाला और आगे बढ जाता है । और ये होता है कि
अगर लडकी को मन्जूर होगा तो वो आगे आगे छूट देती
जायेगी । और अगर वो राजी नही हुई तो पहले ही दफ़ा
मे सामने वाले की इक्कन्नी कर देगी । इसी तरह अगर सामने वाली
पार्टी मे कुछ खोट या कर चोर हुवा तो वो हर बात मानता
चला जायेगा । और इसी के अनुसार मैने ये आखिरी
अश्त्र तुम पर चलाया था कि कुछ खोट हुवा तो
तुम चापलूसी करने के लिये उठ कर चपरासी गिरी भी
कर लोगे ।
अब हमारे मित्र के समझ आया कि यह अफ़सर लोग कैसे
वहीं पर नजर डालते हैं जहां पर लोचे होते हैं ।
हम बात कर रहे थे इन समाज के दुश्मनों की ।
खैर साब आखिर परेशान हो के लडकी ने आपने बाप को
सारी बातें बतायी । बाप ने अपने घर के बुजुर्गों से विचार विमर्श
किया कि अब क्या करना है । और यंहा फ़िर वोही चाल बाजी
सामने आयी , जब लडकी के बाप ने बताया कि अभी तक करीब
५ पेटी वो दे चुका है । अब हमने पूछा कि भई -- ये क्युं दे दी ?
शादी की तारीख दिसम्बर मे है फ़िर आप बिना बात अभी गरमी
मे ही क्युं बरस गये ? तो साब वो बोले : - अभी पिछ्ले
महीने ही हमको वहां बुलवाया था ! तो क्या करते ?
सब काम धन्धे छोड छाड के गये थे । वहां बोले साब
दिसम्बर मे शादी करनी है तो मेरिज हाल ,घोडी बाजा, और
होटल वोटल सब बुक करनी पडेगी सो हमने उस
काम के लिये रुपिये उनको देदिये कि, ये लोग यहां के
लोकल हैं । हम परदेसी हैं । इस लिये दिये थे
कि ये सब बुकिंग वगैरह फ़ायदे से कर देंगे ।
दोस्तों सारा घर उन सज्जन का परेशान है कि लोगो
को क्या मुंह दिखायें ? लडकी की सगाई कैसे टुट गई ?
सबको क्या जबाव देंगे ?
ताऊ नै तो उनको बिन मांगी राय दे दी की ,
कि इन कमीनों को चार तो जुते मारो और इनकी पुलिस
मे रिपोर्ट करवाओ .. नही तो ये दुसरी किसी बच्ची को
परेशान करेंगे । और भई तेरे पिस्से (रुपिये) तो वापस मिलण
आले दीखैं कोनी । अगर ये वापस देण आले ही होते तो
लेते ही क्युं ? कुछ की राय मे रिश्ता बचाने की भी कोशीश
करने की बात आयी । सो भई हम तो बोल आये की अगर
बच्ची को खुश देखना चाहते हो तो इनको गोली मारो ।
नही तो फ़िर कोई गैस सिलेन्डर या स्टोव फ़टेगा और
उसके जिम्मेदार तुम ही होगे । देखो आगे क्या होता है ?
पाठको , आपसे निवेदन है कि इस मामले पर अपने विचार जरुर
रखें । ये एक ऐसी बुराई धीरे धीरे पैदा हो चुकी है की
समय रहते इसका इलाज नही हुवा तो ये सबकॊ ले
डुबेगी । चुप बैठना भी अपराध को बढावा देना है ।
ताऊ का दिमाग आज बिल्कुल ही चोपट है सो आज के सारे पोस्ट
एक दो दिन बाद ही डाले जायेंगे ।