वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 6 (समापन)

वाराणसी अभ्यास शिविर भाग - 6 (समापन किश्त)

अब तक का विवरण आपने भाग -1,  भाग – 2,  भाग – 3भाग - 4 एवम भाग - 5 में पढा. अब इस यात्रा के समापन भाग की तरफ़ बढते हैं.

तय कार्यक्रम अनुसार आज संकट मोचन हनुमान जी के दर्शनार्थ, सुबह सुबह तैयार होकर मधु जी की गाडी से हम, वत्स जी, मधु जी और विक्की शर्मा जी, रवाना हो गये. मंदिर के बाहर बहुत सी प्रसाद की और फ़ूलों की दुकानें थी. सबने अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार हार फ़ूल और प्रसाद लिये पर हमने कुछ नहीं लिया. प्रसाद के नाम पर पेडे और बेसन के लड्डू थे जिनको चखकर विक्की शर्मा जी बोले कि यह तो निरी शक्कर है.... सो हमारी इच्छा नहीं हुई....  पर बनारस गये हो और प्रसाद लेकर घर नहीं लौटो तो घर में फ़जीते होने का डर था. सो हमने सोचा कि बाहर कि किसी दुकान से ढंग के पेडे ले लेंगे....

यहां काल भैरव मंदिर के उलट सब काम व्यवस्थित था. लाईन लगी थी और मास्क अनिवार्य था, मोबाईल फ़ोन भी नहीं ले जाने दे रहे थे..... जिन्हें हमने ड्राईवर साहब को सौंप दिया और आनंद पूर्वक हनुमान जी के दर्शन किये बिना किसी धक्का मुक्की के बहुत सुंदर दर्शन हुये. और लौटकर होटल आ गये जहां सभी साथी नीचे ही इंतजार करते मिले. हमने फ़टाफ़ट रूम में जाकर अपना सामान पैक किया और नीचे आ गये. 

जो महफ़िल 14 अगस्त से शुरू हुई थी अब उसकी समाप्ति का समय आ चुका था यानि 16 अगस्त की सुबह, जब सबको बिछुडना था. सुबह सुबह ही सब अपना सामान पैक करके नीचे हाल में ब्रेक फ़ास्ट के लिये इकठ्ठे हो ही चुके थे. शिविर में जो पाया और जो दिया, इसकी खुशी सबके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी. कहीं ना कहीं सभी को बिछुडने का गम भी था. 


  

पर प्रकृति का नियम है, कोई भी चीज स्थिर नहीं रहती. हम जीवन में खुशी के पलों में ठहर जाना चाहते हैं पर प्रकृति आपको उससे दूर ले जाती है. मनुष्य के वश में नहीं है वर्ना वो आज इतनी तरक्की नहीं करता बल्कि तालिबानों की तरह अब भी पाषाण युग में ही जी रहा होता. प्रकृति में ठहराव नहीं बल्कि एक बहाव होता है, यह बहाव सकारात्मक ही होता है बशर्ते हम आगे बढने की कोशीश करते रहें. शिविरार्थियों ने जो ज्ञान पाया है उसे मथते रहेंगे तो जीवन में एक दिव्य दृष्टि प्राप्त करने में निश्चित रूप में सफ़ल होंगे और आपकी यही सफ़लता हमारी और वत्स जी की गूरू दक्षिणा होगी. ईश्वर आपको जीवन में सफ़लता और सुगमता दे, यही शुभकामनाएं हैं.

यहां इस शिविर में मिसेज पारीक भी हमारे बीच रहीं, बहुत ही शालीन व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं उनसे ज्यादा बातचीत करने का समय नहीं मिला, इसका मलाल अवश्य रहेगा.

ब्रेकफ़ास्ट करते हुये माहोल कुछ वासंती सा लग रहा था, महिलाओं की ड्रेस से ऐसा ही लगा, वसंत हंसी खुशी और प्रकृति के रंग बिखेरने और उल्लास का पर्व होता है और यही उल्लास यहां बिखरा पडा था. सभी चाह रहे रहे थे कि वक्त कुछ देर और ठहर जाये. पर इंसान यहीं तो विवश है, काल अपनी गति से भागता जाता है, वो अपना पहिया कभी नहीं रूकने देता. उसे ठहरने का पता ही नहीं है. बस जो उसके साथ कदम से कदम मिला सके वो ही विजयी है और जिसे रूकना है वो रूके उसकी बला से, ये रूकने वाले फ़िर जीवन में रूके ही रहते हैं.

इतनी ही देर में 11 बज गये, हमें और वत्स जी को एयरपोर्ट ले जाने के लिये गाडी आ गई. तभी मधु जी बोली....  आपने गाडी काहे बुलवाई? हम आपको छोडते हुये निकल जाते..... अब हमें टेक्सी वाले को लौटाना अच्छा नहीं लगा.....  फ़िर भी मधु जी आपकी विनयशीलता और सहृदयता के हम हमेशा कायल रहेंगे.

कुछ लोगों की रवानगी का समय देर से था सो वो लोग वहीं होटल में रूक गये. हम और वत्स जी सबसे विदा लेकर एयरपोर्ट के लिये निकल लिये. हमारे पीछे पीछे ही मधु जी भी अपनी गाडी लेकर अपने गंतव्य के लिये रवाना हो गई.  

एयरपोर्ट का आधा रास्ता तय करने के बाद प्रसाद की याद आई, जो कि हमने अभी तक लिया ही नहीं था. एक बार हम और वत्स जी ज्वाला मुखी जी जाने का कह कर घर से निकले थे और यह तो हम दोनों को ही पता है कि कहां गये थे पर घरवालों के हिसाब से हम गोवा ही गये थे..... अब उनके शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है तो हम कैसे यकिन दिला सकते थे. उस टूर में भी यही गड्बड हुई थी कि प्रसाद लेना भूल गये थे तो हमने इंदौर एयरपोर्ट से घर के रास्ते में ही एक दुकान से प्रसाद के नाम पर पेडे ले लिये और बडी श्रद्धा भावना से श्रीमती जी को सौंप दिया कि सबको मोहल्ले में बंटवा दे यह ज्वालामुखी जी का प्रसाद है.

थोडी देर बाद जब डिब्बा खोला तो हमारी पोल पट्टी खुल गई क्योंकि डिब्बे पर इंदौर के हलवाई का नाम पता प्रिंटेड था, शायद इसीलिये बुजुर्गों ने कहा है कि कितनी ही चालाकी करलो....कभी ना कभी पकडे तो जायेंगे ही... अब हमारे साथ जो हुआ होगा वो तो आप भी समझ ही गये होंगे, क्योंकि आप भी बाल बच्चेदार हैं.  यह गलती हम दोहराना नहीं चाहते थे सो रास्ते में एक दुकान से प्रसाद लिया और अच्छी तरह चेक कर लिया कि इस पर वाराणसी का ही नाम पता लिखा हो.

थोडी देर बाद "लाल बहादुर शाश्त्री एयरपोर्ट" या बाबतपुर एयरपोर्ट सामने दिखाई देने लगा था. फ़टाफ़ट जाकर चेक इन किया और सिक्युरीटी चेक के बाद बोर्डिंग गेट नं 4  के सामने जाकर बैठ गये. एयरपोर्ट बहुत ही शानदार और आधुनिक सुविधाओं से युक्त बना हुआ है. आखिर हो भी क्यों ना? मोदी जी का कार्यक्षेत्र जो ठहरा.


तय समय पर बोर्डींग शुरू होगई और कुछ ही देर में टेक आफ़ भी हो गया. रास्ते में ऊपर का मौसम काफ़ी खराब था सो हिचकोले खाते हुये ही दिल्ली पहुंचे. फ़्लाईट स्मूथ नहीं रही, अलबता विस्तारा एयर लाईन के एयरक्राफ़्ट की सीटें आरामदायक थी और क्रू मेम्बर्स बहुत ही अच्छे व्यवहार वाले थे. वहां से सीधे हमने और वत्स जी ने डोमेस्टिक ट्रांसफ़र का रास्ता पकडा.....हमारी आगे की फ़्लाईट में सिर्फ़ 1 घंटे का ही अंतराल था. इंटरनल सीक्युरीटी चेक की लाईन बहुत लंबी थी सो हमे लगा कि आज फ़्लाईट छूट जायेगी. तभी विस्तारा का एक स्टाफ़ दिखा जो इस तरह की फ़्लाईट वालों की मदद के लिये तैनात रहते हैं, उसने हमें ले जाकर सबसे आगे खडा कर दिया.... वत्स जी के पास काफ़ी समय था, अगली फ़्लाईट पकडने का सो यहीं वत्स जी से विदाई ली और सिक्युरीटी चेक के बाद फ़टाफ़ट मानीटर पर देखा तो हमारा बोर्डिंग गेट नं. 62 था.... हमने माथा पीट लिया.... 27 नंबर गेट से शुरू होकर 62 तक पहुंचना था. वहां कहीं इलेक्ट्रिक वाहन भी नहीं दिखा लिहाजा चलती हुई सडक पर भी दौडते हुये आगे बढने लगे.

घर से बच्चों की पहले से ही फ़रमाईश थी कि गेट नं 41 के सामने KRISPY KREME का काऊंटर है वहां से DOUGHNUTS लेकर आना. अब बच्चों को कौन नाराज करे सो वहां से फ़टाफ़ट डोनट लिये और भागे. अंतत: हम आखिरी यात्री थे जिसका इंतजार हो रहा था यदि 5 मिनट लेट हो जाते तो बोर्डिंग गेट बंद हो चुका होता.

आखिर इस तरह इंदौर पहुंचे....



अब मधु जी का विशेष धन्यवाद करना चाहुंगा कि आपने बचा लिया.... आपने इतना खूबसूरत गिफ़्ट दिया कि श्रीमतीजी की तबियत खुश हो गई और उसने घोषणा कर दी कि अबकि गणेश चतुर्थी पर इन्हीं की स्थापना की जायेगी......बहुत शुक्रिया आपका.

अंत में आप सबका आभार और शुक्रिया कि आपने इस शिविर को यादगार और सुनहरा बना दिया. ईश्वर आप सबको अपने मनोरथ में सफ़लता दे.     


#हिन्दी_ब्लॉगिंग

वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 5

वाराणसी अभ्यास शिविर भाग -5

अब तक का विवरण आपने भाग -1,  भाग – 2,  भाग – 3 एवम भाग - 4 में पढा. अब आगे बढते हैं.

15 अगस्त को सभी तैयार होकर नीचे हाल में ब्रेकफ़ास्ट के लिये एकत्रित हुये. ब्रेकफ़ास्ट पर भी अनवरत विषय संबंधी चर्चा चलती रही. ब्रेकफ़ास्ट के बाद आईस्क्रीम का दौर चलता रहा और सभी प्रसन्नता पूर्वक चर्चा करते रहे. इसके बाद सबने अपने अपने हिसाब से काशी दर्शन का प्रोग्राम बना लिया. सब अपनी अपनी पसंद का प्रोग्राम बनाकर रवाना हो गये. हमने सभी को बता दिया था कि आज रात को डिनर के बाद सवाल पूछा जायेगा और सवाल की कुंडली ग्रूप में लगा दी कि कोई ग्रूप में जवाब नहीं देगा.



हमारा कोई प्रोग्राम नहीं था क्योंकि काशी में कोई भी मास्क नहीं लगाता पाया. हमने सोचा कि भीड भाड वाली जगह से बचने में ही भलाई है सो हम अपने कमरे में आराम करने चले गये.

अभी कुछ ही मिनट हुई होंगी कि वत्स जी का फ़ोन आ गया कि चलो काल भैरव जी के दर्शन करके आते हैं. हमने कहा कि आप हो आईये, हमने तो यहीं से हाथ जोड लिये. इस गर्मी में कौन अपनी कंचन काया को तकलीफ़ देगा? तो वत्स जी बोले.... कष्ट बिल्कुल नहीं होगा, आप चलो, मधुजी के पास गाडी और ड्राईवर दोनों हैं, यहां भी कमरे में क्या करेंगे? फ़टाफ़ट आ जाईये..... शायद मधु जी भी हमको कालभैरव जी के दर्शन करवाने ही कार से आई थी सो हम नीचे पहुंच गये.

अब ड्राईवर साहब ने गूगल बाबा के मैप पर काल भैरव जी की लोकेशन सेट की और चल पडे बनारस की फ़ेमस गलियों से होते हुये दर्शन करने के लिये. करीब आठ या नौ किलोमीटर चलने के बाद गूगल बाबा के हिसाब से गंतव्य आ गया पर वहां मंदिर छोडकर तो कोई चबूतरा भी नहीं था.... ये क्या हुआ? तभी वहां पास खडे एक सज्जन से पूछा कि काल भैरव जी का मंदिर किधर है? उसने हमारी तरफ़ ऐसे देखा जैसे कोई कपडे के बाजार में खडा होकर किराने की दुकान का पता पूछ रहा हो? वो बोले....  आप तो बिल्कुल ही उलटा न आ गये हैं....  आपको जाना उधर था और आ... इधर गये हैं. फ़िर उनके बताये हिसाब से हमने रास्ता पकडा. गूगल बाबा ने शायद बनारस में भांग शायद ज्यादा पी ली होगी क्योंकि उनका दिमाग काम नहीं कर पा रहा था तो रास्ता क्या दिखाते? फ़िर एक जगह एक सज्जन से रास्ता पूछा तो वो बोले.... आप सीधा जाकर बांये मुडकर सरपट गाडी दौडा दीजियेगा सीधे काल भैरव मंदिर पहुंच जाईयेगा....बनारसी भौकाल का असली आनंद आ रहा था. मन ही मन उनकी बात पर हंसे बिना नहीं रह सके.

खैर किसी तरह पूछते पाछते काल भैरव मंदिर यानि काशी के कोतवाल जी के पास पहुंच ही गये. अब संकरी सी तंग गली में कोई 400 मीटर पैदल चलने के बाद मंदिर में दर्शनों हेतु लाईन लगी थी सो बिना सोचे विचारे लाईन में लग गये. मास्क मुश्किल से 10 प्रतिशत लोगों ने पहना हुआ था, भीड आपस में गुत्थमगुत्था सी थी.... कोई पुलिस नहीं...कोई वालंटियर नहीं... संकरी गलियों से भीड आगे बढती रही और मजे की बात कि उसी लाईन के पास से जगह नहीं होते हुये भी लोग मोटर साईकिल निकाल रहे थे. कई मंदिरों का मुंह दिखाई दे रहा था जिनका अधिकतर हिस्सा लोगों ने अपने घर के अंदर दबा रखा था.

आखिर किसी तरह मंदिर के गेट तक पहुंचे और जबरदस्त भीड से सामना हुआ..... ऐसी भीड तो आजकल काबुल के एयरपोर्ट के बाहर ही दिखाई देती है. खैर साहब कुछ देर भीड में धक्के खाने के बाद कोतवाल साहब के दूर से दर्शन हुये. अंदर पुजारी जी बैठकर इत्मिनान से खैनी को मुंह में रखते नजर आये. दर्शन करके गलियों से घूमते हुये किसी तरह उस जगह आ पहूंचे जहां हम सभी ने अपनी चरण पादुकाएं उतारी थी.

हमको वाशरूम इस्तेमाल करना था सो दुकान वाले से पूछा..... वो बोला.... आप एक काम करिये, इंहां त कोई वाशरूम नहीं है....आप मेन रोड पर जाकर बांये घूम जाईयेगा, ऊहां आपको वाशरूम मिलेगा. सो हमने इन सभी को छोडकर अकेले ही दौड सी लगा दी. मेन रोड पर बांये भी घूम गये पर तसल्ली की जगह नहीं मिली. रोड पर बेतहाशा भीड....आटो वालों के मारे चलना मुश्किल....वहां फ़िर किसी से पूछा.... वो सज्जन बोले.... एक काम करिये....हमने मन में कहा....एक क्या अब तो दो भी करेंगे....बोला आप सीधे आगे जाईये, वहां आपको पोस्ट आफ़िस मिलेगा...ऊहां वाशरूम बना हुआ है....खैर हमने आखिर अपनी मंजिले मकसूद पा ही ली और वापस आकर गली के मुहाने पर खडे होकर बाकी सब का इंतजार करने लगे. थोडी देर बाद सभी आ गये तो वहां से होटल के लिये निकल गये और आकर सबसे पहले स्नान किया. फ़िर थोडा रेस्ट करके सबके साथ डिनर के लिये नीचे हाल में आ गये. 
14 अगस्त का ग्रूप फ़ोटो 





डिनर सभी ने विषय पर केंदित रहते हुये बातचीत में ही बिताया. हम और वत्स जी सभी के सवालों का जवाब देते रहे..... हम कुछ ज्यादा उचक कर जवाब दे रहे थे ताकि इनमें से आज रात के सवाल में कोई फ़ेल ना हो और सूत्र ध्यान में रखे. उधर वत्स जी तो यह मानकर ही चल रहे थे कि कल वाराणसी से सीधे गोवा ही चलना है पर हम भी दिन में भैरव जी से निवेदन कर आये थे.


   
आईस्क्रीम का मजा लेते हुये


डिनर के बाद सब हंसते मुस्कराते और परम संतुष्ट भाव से आईस्क्रीम को उदरस्थ करते रहे जब तक होटल वाले की आईस्क्रीम खत्म नही हो गई. इसके बाद तय हुआ कि ऊपर रूम में ही आज के सवाल का जवाब पूछा जायेगा. और कमरे में ही कुर्सियां लगवा दी गई. सभी वहां एकत्रित हो गये.

हमने एक एक से अलग अलग सवाल का जवाब पूछा और वत्स जी आश्चर्य चकित रह गये कि सभी का जवाब सही था. विशेषकर मधु जी ने जब कारावास शब्द को अपने जवाब में शामिल किया तो हम वत्स जी का मुंह देखें और वत्स जी हमारा..... हमने मुस्कराते हुये मन में ही कहा कि वत्स जी अब गोवा की आस छोडिये और सीधे लुधियाना पहुंचिये वहां बापू का आशिर्वाद इंतजार कर रहा है.

इसके बाद सब रात्रि विश्राम के लिये चले गये और सबके जाते ही वत्स जी ने बिना कहे ही प्रसन्नता पूर्वक हमें नगद 2100/- रूपये थमाये और बोले आज शर्त हारकर भी मैं बडा प्रसन्न हूं. हमने कहा कि औघडों से शर्त लगायेंगे तो हमेशा प्रसन्नता ही मिलेगी. फ़िर हम दोनों बहुत रात गये तक इसी पर विचार करते रहे कि कि हमने जो मिशन शुरू किया था वो कहां तक पहुंचा? आगे क्या करना है... इत्यादि...इत्यादि.

अब ये पोस्ट बडी हो गई है. 16 अगस्त के विवरण के साथ ही अगली पोस्ट में इस यात्रा का समापन कर देंगे.

क्रमश: 

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 4

वाराणसी अभ्यास शिविर भाग -4

अब तक का विवरण आपने भाग -1 भाग – 2 एवम भाग – 3 में पढा. अब आगे बढते हैं.

अब समय आ गया था सर्टीफ़िकेट वितरण का. वत्स जी अभी भी असमंजस में थे,  बोले….. बिना परीक्षा ही आप रिजल्ट देने की बात कर रहे हैं? यदि इनमें से किसी ने सही जवाब नहीं दिया तो? हमने कहा आप काहे चिंता करते हैं? हम हैं ना….. वो बोले इसका क्या मतलब? यानि आप पहले से ही जवाब बता देंगे? हमने कहा…. नहीं नहीं…..हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे. हमने तो अपनी औघड दृश्टि से सब कुछ पहले ही देख लिया है आप तो शुरू करो…. वत्स जी बोले…. शर्त लगा लो….आज आपकी सारी औघड गिरी रखी रह जायेगी…. सारे सही जवाब नहीं दे पायेंगे. हमने कहा शर्त लगालो….वो बोले… आप कोई शरारत मत करना. हमने कहा पहली बात तो ये कि हम कभी शरारत करते नहीं और ये अलग बात है कि हमारी शरारतें कभी पकडी नहीं जा सकती. फ़िर भी हम कोई शरारत करें और पकडे जाये तो अगली गोवा ट्रिप का सारा खर्चा हम उठायेंगे और यदि सबने सही जवाब दे दिया तो आप हमें सिर्फ़ इक्कीस सौ… रूपये देंगे. इस शर्त पर वत्स जी तैयार हो गए…. पर बोले यदि मैं शर्त जीत गया तो इसी महिने गोवा चलना पडेगा. हमने कहा इसी महिने क्यों? यही वाराणसी से सीधे चलेंगे… तब सर्टीफ़िकेट वितरण शुरू हुआ. 

अब सबसे पहले श्री बी.एन. शर्मा रतनगढ से, जिनको श्री वत्स जी ने सम्मानित किया. आप ज्योतिष के साथ साथ रामायण के भी प्रकांड विद्वान हैं, बहुत बहुत शुभकामनाएं. 


नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. श्री बी. एन. शर्मा
  

इसके बाद श्री वी.एस. पारीक जयपुर से, जिन्होंने दोनों के हाथों सम्मान ग्रहण किया. आप अपने क्षेत्र में जाना माना नाम हैं, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. वी. एस. पारीक


फ़िर सुश्री मधु झा पटना से.... जिन्होनें दोनों के हाथों अलग अलग सम्मान प्राप्त किया. आप अपने क्षेत्र में तो महारत रखती ही हैं, इसके अलावा आप हंसमुख, विनयशील और दानशील भी हैं, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. सुश्री मधु झा
  



नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. सुश्री मधु झा


इसके बाद सुश्री श्वेता पांडेय प्रयागराज से,  जिन्होने हमारे हाथों सम्मान प्राप्त किया. आप ज्योतिष के क्षेत्र में एक चमकता हुआ नाम है, बहुत बहुत शुभकामनाएं. 

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. कु. श्वेता पांडेय



फ़िर आये श्री आशुतोष जी शर्मा  फिरोजाबाद से.... जिन्हें हमने सम्मानित किया. आप इस क्षेत्र में एक स्थापित नाम बन चुके हैं, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. आशुतोष शर्मा



इसके बाद श्री राजेंद्र कुमार जी शर्मा जिनको हम दोनों के द्वारा सम्मानित किया गया. आप गंगानगर के रहने वाले हैं और वकालात और ज्योतिष के क्षेत्र में एक जाना माना नाम है. बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. राजेंद्र कुमार शर्मा



अब सुश्री संगीता राय पटना से...जिनको हमने और वत्स जी ने सम्मानित किया. आप इस क्षेत्र की महारथी हैं और एक स्थापित नाम हैं, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. सुश्री संगीता राय

 

अब श्री राकेश शर्मा, बल्लभगढ से, जिन्हें हमने और वत्स जी ने सम्मानित किया. आप अपने क्षेत्र में एक स्थापित नाम हैं

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. राकेश शर्मा


इसके बाद श्री निधिष सारस्वत बल्लभ गढ से, जिन्हें हम दोनों ने सम्मानित किया. आप ज्योतिष में स्थापित नाम हैं और आपकी याददाश्त विलक्षण है. आपके ही नाम का मैंने पिछली पोस्ट में जिक्र किया था, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. निधीष सारस्वत


और अब श्री सुरेश शर्मा, बल्लभ गढ से जिन्हें वत्स जी और हमने सम्मानित किया. आप सरल और मृदु स्वभाव के इस क्षेत्र में जाना माना नाम हैं, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

नक्षत्र ज्योतिष विशारद पं. सुरेश शर्मा



इसके बाद पं. राजेंद्र कुमार जी शर्मा ने  वत्स जी और हमको को शाल औढाकर सम्मानित करके अपनी कृतज्ञता व्यक्त की.

वत्स जी का सम्मान करते हुये श्री राजेंद्र शर्मा जी



मुदगल जी का सम्मान करते हुये श्री राजेंद्र शर्मा जी


इसके बाद सुश्री मधु झा ने हमें और  वत्स जी को उपहार  देकर अपनी कृतज्ञता जाहिर की.

सुश्री मधु झा, वत्स जी को उपहार देते हुये 



सुश्री मधु झा,  हमको उपहार देते हुये


इसके बाद फ़ोटो खिंचाई गई..... पर हमें सिर्फ़ एक निम्न फ़ोटो उस समय की प्राप्त हुई जिसे लगा रहे हैं.

हम, मधु जी और वत्स जी

इसके बाद भी बहुत कुछ हुआ जिसकी रिपोर्टिंग अगले भाग में की जायेगी. पर एक बात है कि सभी परम संतोष में दिखे. यहां यह हाल था कि लेने वाले को लग रहा था कि मैंने बहुत कुछ पा लिया है पर देने वालों को लग रहा था कि हम बहुत कम दे पाये हैं. ज्ञान अथाह है जो खोजता रहता है वो पाता रहता है. संतोष की बात है कि लेने और देने वाले दोनों ही संतुष्ट थे. इसके बाद डिनर करके सब रात्रि विश्राम को चले गये. पर हमारी तो परीक्षा अभी बाकी थी कि वत्स जी से शर्त हारेंगे या जीतेंगे? यह सब अगले भाग में.

क्रमश:





#हिन्दी_ब्लॉगिंग

वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 3

वाराणसी अभ्यास शिविर भाग -3

भाग - 1 एवम भाग - 2 लिंक पर क्लिक करके पढें.

शाम की मिटिंग के लिये सब कान्फ़्रेंस हाल में जुटना शुरू हो गये थे. पर कहते हैं ना कुछ लोगों की दुआएं काम बना देती हैं और कुछ नाशुक्रे लोगों की अंदरूनी बद-दुआएं विघ्न भी पैदा कर देती हैं. हुआ यूं कि कान्फ़्रेंस के लिये सब कुर्सी टेबल और पोडियम लग चुके थे और बस बैनर लगना बाकी रह गया था. होटल वाले लडके बैनर लगा रहे थे पर वो चिपक नहीं रहा था. दायें से लगाते तो बांये से उखड जाता और बांये लगाते तो दांये से उखड जाता….. अजीब सी उलझन थी…. गुस्सा भी आ रहा था कि ये किसने गरूड पुराण बांच दिया जो जरा से काम में भी विघ्न आ रहा था.


हम, वत्स जी, बी. एन. शर्मा जी, आशुतोश जी, पारीक जी आदि सभी बेबस से खडे देख रहे थे तभी राजेंद्र जी शर्मा की अगुआई में ग्रूप के कुछ लोगों ने कमान अपने हाथ में ले ली. युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया क्योंकि समय समाप्त होता जा रहा था. आखिर राजेंद्र जी के कुशल संचालन में इस बद्दुआ आफ़त पर काबू पा लिया गया. 


तभी मधु जी बोली…. इसके आगे खडे होकर फ़ोटो खिंचवा कर देखते हैं तो उनकी सलाह पर हमने और वत्स जी ने मधु जी के साथ फ़ोटो खिंचावाई.


पर जैसे ही हम फ़ोटो खिंचवाकर हटे कि दूसरे भी खिचवा कर आजमा लेवें क्योंकि हमे संदेह हो चला था कि किसी दिलजले ने तगडी बद्दुआ लगाई है या कोई जादू टोना किया है…… पर ये क्या…? हम तीनों के हटते ही बैनर भाई साहब धडाम से पूरे के पूरे नीचे आ गिरे….. सबकी हंसी भी निकल गई पर हमने खिसियानी हंसी हंसते हुये कहा….. भई इस बैनर पर बहुत भारी वजनदार पंडित विराजमान है सो उनका वजन सहन नहीं कर पा रहा है…. सारे पंडित धडाम से गिर गये.

आखिर बैनर भाई साहब को किसी तरह रस्सियों के सहारे लटकाया गया. आखिर इतने धुरंधर पंडितों का वजन सेलो टेप तो सहन नहीं कर सकता था सो रस्सियों का सहारा लिया गया. तभी हमने वत्स जी को कहा कि महाराज आपके बैनर पर तो किसी ने गरूड पुराण बांच दिया है और ये यहां टिकने वाला नहीं है. वत्स जी बोले… फ़िर अब क्या करना? हमने कहा… आप एक काम करिये कि जब तक ये बैनर यहां टिका है तब तक सबको सर्टीफ़ेकेट इस बैनर को हाजिर नाजिर मानकर बांट दिजीये…… यह सुनते ही वत्स जी बोले…. ऐसे कैसे होगा? ना इन लोगों से कोई सवाल पूछा और ना ही कोई परीक्षा ली…. और आप कह रहे हैं कि सर्टीफ़िकेट बांट दिजीये… ? ये भी कोई बात हुई भला….. फ़िर दो तरह के सर्टीफ़िकेट भी तो इसी लिये लाये थे ना कि यदि सही जवाब देंगे तो “नक्षत्र ज्योतिष विशारद” का सर्टीफ़िकेट दे देंगे और सही जवाब नहीं दिया तो “ज्योतिष अभ्यास शिविर सहभागिता” में भाग लिया, वाला दे देंगे. अब बिना परीक्षा ही आप इन्हें कौन सा सर्टीफ़िकेट देंगे?


हमने कहा…  आपकी बात तो सोलह आने सच है पर आप जरा इन विद्वानों के ज्ञान का वजन तो देखिये कि ये बैनर भी इन्हें नहीं संभाल पा रहा है तो फ़िर ये कितने ज्ञानवान होंगे? आप तो इनको “विशारद” वाला ही दे दीजिये…. ये सब पास होंगे, यह हमारी गारंटी है. थोडे सोच विचार के बाद वत्स जी तैयार हो गये. इस तरह सत्र की कारवाई आगे बढी…. तब तक बैनर भाई साहब भी रस्सियों के सहारे झूल रहे थे पर पता नहीं कब दगा दे जायें…? इसका भरोसा नहीं था.  

दो पांच मिनट इंतजार करके देखा कि बैनर भाईसाहब वजन सहन कर पाते हैं या नहीं? पर जब वो पांच मिनट टिक गये तो यकिन हो गया कि अब नहीं गिरेंगे तब हम और वत्स जी भी विराजमान हो गये. बाकी सभी ने भी अपना अपना स्थान ग्रहण कर लिया.



शायद आप नहीं जानते पर वत्स जी जानते हैं कि यदि माईक दिख जाये तो फ़िर हमारा स्थान कुर्सी पर नहीं बल्कि माईक के पीछे होता है सो हम पोडियम के पीछे खडे हो गये पर ये क्या? वहां माईक वाईक तो कुछ था नहीं सो जोर से बोलना ही पडेगा. तब हमने वत्स जी को कहा कि इस तरह बिना माईक तो इतना सारा बोलने में हमारे गले की बारह तो क्या तेरह बज जायेगी…. अभी आप ही बोल लीजिये हम कल बोल लेंगे….. वत्स जी बोले…. आप शुरू किजीये, बीच बीच में आपके गले को रेस्ट दिलवा देंगे…. कुछ सवालों के जवाब हम दे देंगे तब तक आप गले को आराम करवा लिजीयेगा. तब हमने अपने गले को विश्वास दिलाया कि चल शुरू हो जा… भगवान सब भली करेंगे. 



हमने काशी के कोतवाल भरव जी और गुरूओं के गुरू भोलेनाथ विश्वनाथ जी का स्मरण वंदन करते हुये बोलना शुरू किया. सभी विद्वान इतनी तन्मयता से सुन रहे थे कि बस दो मिनट में ही लय बंध गई. हमने बडे बडे विद्वानों और बडी भीड में भी बोला है पर इतनी तन्मयता और जिज्ञासु भाव से सुनने वाले श्रोता नहीं मिले.



हमने विषय की शुरूआत प्राथमिक स्तर से की थी और शनै शनै अंत तक पहुंचाया, जिन्होंने भी इस स्पीच को ध्यान से सुना होगा और भविष्य में अम्ल में लायेंगे वो शायद ही कभी अटकेंगे वर्ना तो उसमे सब कुछ बता दिया गया था. बीच बीच में कुछ जिज्ञासुओं के सवाल आते रहे उनका भी निराकरण किया गया. अब तक हमको बिना माईक बोलते हुये डेढ घंटा से ऊपर हो चुका था सो हमने वत्स जी को इशारा किया कि महाराज अब अगले कुछ सवाल आप ले लिजिये, हम थोडा गले को विश्राम दे लेते हैं.



अब जिज्ञासुओं के सवालों का निराकरण वत्स जी ने करना शुरू किया तब तक हमने गले को विश्राम दिया. एक बात साफ़ नजर आई कि इतने गंभीर किस्म के जिज्ञासु पहली बार मिले थे. बहुत ही तन्मयता से सुन भी रहे थे और जिज्ञासा भी प्रकट कर रहे थे. ऐसे ही जिज्ञासुओं को कुछ बताने में भी आनंद आता है.


इसके बाद हमने फ़िर मोर्चा संभाल लिया और सभी लोग गंभीरता पूर्वक सुनते रहे. जो कुछ बोला गया उसे यहां दोहराने की आवश्यकता नहीं है.


अब तक काफ़ी समय हो चुका था पर लोग उत्साहपूर्वक ध्यान से सुन भी रहे थे और कागज पेन लेकर नोट करने में लगे थे. हमको यह कागज पर नोट करना थोडा अखरा सो हमने बिना परवाह किये अपनी अमूल्य सलाह भी दे डाली कि आप जो यह कागज पर नोट करते हैं यह बात कागज पर ही रह जाती है. आप एक कान से सुनते है वह बात दूसरे कान से होकर कागज पर चली जाती है, वो बात आपके दिमाग में टिकेगी नहीं. आप आजमाकर देखलें, आप ध्यानपूर्वक सुने तो वो बात हमेशा के लिये आपके दिमाग में घुस जायेगी फ़िर उसे याद करने की जरूरत ही नहीं पडेगी. और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें इन्हीं श्रोताओं में श्री निधीष जी सारस्वत के रूप में मिला जो कागज पेन विहीन होकर सुन रहे थे और बाद में यह सिद्ध भी हुआ कि उनको शत प्रतिशत भाषण में बताई गई बातें याद थी. सो भविष्य में इस सलाह का अनुसरण किजीये,



समय काफ़ी हो चुका था और वत्स जी से सर्टीफ़िकेट वितरण भी करवाना था. क्या पता कब उनका मूड बदल जाये? सभी के आग्रह पर श्रोताओं की एक फ़ोटो खींचने का आग्रह हुआ सो श्री आशुतोष जी ने सबकी फ़ोटो खींची जिसमे बांये से श्री निधीश जी, श्री राकेश जी, श्री राजेंद्र शर्मा जी, श्री बी.एन. शर्मा जी उनके पीछे श्री सुरेश शर्मा जी, श्री वी.एस. पारीक जी, कु. श्वेता पांडेय जी, सुश्री संगीता राय जी और सुश्री मधु झा जी बैठे हुये दिखाई दे रहे हैं.

यह पोस्ट काफ़ी लंबी हो रही है. इसके बाद का कार्यक्रम अगली पोस्ट में बतायेंगे कि किस तरह वत्स जी से सर्टीफ़िकेट दिलवाये गये बिना परीक्षा के ही और किस तरह जीवन में पहली बार रिजल्ट के बाद परीक्षा ली गई.

क्रमश:


#हिन्दी_ब्लॉगिंग

वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 2

वाराणसी अभ्यास शिविर भाग - 2

भाग - 1 यहां पढें.

अगले दिन यानि 14 अगस्त को सुबह सुबह उठकर बनारस के घाटों को निहारने की ख्वाहिश थी सो उठकर हाथ मुंह धोये और प्लान यह बना कि वहीं घाट पर गंगा स्नान भी कर लेंगे और अपने परम प्रिय अस्सी घाट पर नाश्ता पानी करते हुये बनारसी भौकाल का आनंद उठायेंगे. बाहर निकल कर पता चला कि सारे घाट डूबे हुये हैं और पानी सडक तक आ चुका है. तो यह प्रोग्राम कैन्सिल कर दिया. हम और वत्स जी सीधे पहुंच गये पहलवान लस्सी वाले के यहा. ईमानदारी से कहूँ तो वहां बनारसी कचोरी में वो मजा नहीं आया, जितनी कि तारीफ सुनी थी। इससे ज्यादा मजेदार और स्वादिष्ट तो मथुरा की बेड़मी पूरी और झोल वाली आलू की सब्जी थी.

अब लस्सी की बारी थी। मिट्टी के कुल्हड़ में लस्सी और ऊपर से मलाई और रबडी की टापिंग देखकर मन ललचा गया, उम्मीदे जवान हो गई. कुल्हड़ को मुंह के पास लाये तो सौंधी मिट्टी की खुशबू से दिल दिमाग ताजा हो गया. हालांकि रबड़ी और मलाई के स्वाद तक सब ठीक था पर दही में हल्की खटास ने वत्स जी का मूड खराब कर दिया, बोले यार पंजाब जैसी नहीं है. ज्यादा अच्छी तो हमें भी नहीं लगी सो हमने कहा ये पंजाब नहीं है यू पी है, हो सकता है यहां ऐसा ही चलता होगा सो दोनों ने लस्सी को उदरस्थ कर लिया. फिर मुंह का जायका ठीक करने के लिए वहीं पास में मिट्टी के कुल्हड़ में चाय सुड़की तब जाकर चैन आया. फिर वापस होटल पहुंचकर नहा धोकर तैयार हो गये. तब तक विद्वान साथियों का आना शुरू हो चुका था.

जैसा कि पहले भाग में बताया था श्रीमती मधु झा जी तो 13 अगस्त को ही पधार चुकी थी. श्री बी. एन. शर्मा जी, श्री व श्रीमती वी. एस. पारीक जी, आशुतोष शर्मा जी, श्री सुरेश शर्मा जी, श्री राकेश शर्मा जी, श्रीमती संगीता राय जी और कु. श्वेता पांडेय जी भी आ चुके थे. श्री निधीष सारस्वत जी जिनके आने की कन्फ़रमेशन नहीं थी, वो भी पधार गये तो आनंद दूना हो गया, बस मलाल रहा तो श्री सोहन वेदपाठी जी के नहीं आने का. सबने उनको बहुत ही मिस किया.

 


सबसे मिलकर बहुत ही सुखद लगा, सभी लोग पूर्व परिचित ही लगे. सभी के विनयी स्वभाव और विद्वता ने मन मोह लिया. सब लोग तैयार होकर दोपहर बाद हाल में इकठ्ठा हुये.





वहां लंच करते हुये सभी ने बिना झिझक अपने अपनी जिज्ञासाएं रखीं जिनका जवाब वत्स जी ने बहुत ही सरल और आसान शब्दों में देने की कोशीश की जो सभी को समझ भी आये. फ़िर भी विद्वानों की सभा में किसका मन भरता है? सो लंच खत्म करके भी बहुत सा समय हाल में भी चर्चा करते करते बीता. सभी ने बहुत ही तन्मयता से अपने सवालों का उत्तर सुना और शाम को 4 बजे आज के सत्र के लिये यहीं मिलने का तय करते हुये सब अपने अपने रूम में चले गये.

क्रमश:


#हिन्दी_ब्लॉगिंग

वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 1

वाराणसी अभ्यास शिविर [यात्रा भाग -1]

कहते हैं जिस इंसान को भटकने की आदत लग जाये वो एक जगह टिक कर नहीं रह सकता. जबसे कोरोना महामारी शुरू हुई है तबसे तो ताऊ जैसों की लगी पडी है. घर में तो जैसे पांव जलते हैं और यही हाल “वत्स” जी का है. अभी चार पांच महिनें पहले ही दोनों गोवा जाकर आये थे उसके बाद राजस्थान की ट्रिप हो गई थी. फ़िर लोक डाऊन टू शुरू हो गया….तबसे घर में कैद होकर रह गये.

लोक डाऊन टू का असर कुछ कम होने लगा तो वत्स जी बोले, ताऊ चल, गोवा निकलते हैं….मैंने कहा अभी कोरोना चल रहा है कहीं उसने पकड लिया तो क्या होगा? वो बोले…ताऊ कोरोना तेरा क्या कर लेगा? वो तो खुद तुमसे दूर भागता है और सोचता है….कि कहीं ताऊ ने मुझे पकड लिया तो क्या होगा?

हमने कहा…. बात तो आपकी सही है पर ताई जाने नहीं देगी…. बिना बात लठ्ठ खाने पड जायेंगे… अभी कुछ दिन रूकिये. पर वत्स जी नहीं माने और बोले… ताऊ मुझे नहीं पता… तुम लठ्ठ खावो या कुछ और… मैं टिकट करवा रहा हूं अब घर में दम घुट गया है. अब हम क्या कहते… हमें तो लठ्ठ खाने की आदत हो चली है सो तैयार हो गये.

फ़िर अचानक कुछ भक्तगणों की सहमति पर वत्स जी ने गोवा की जगह वाराणसी का प्रोग्राम बना लिया और बोले श्रावण का महीना है, ताई मना नहीं कर पायेगी भोलेनाथ के दर्शन के नाम पर… और मुझे भी बापू की गालियों से प्रोटेक्ट शील्ड मिल जायेगी. इस तरह 14 अगस्त से 16 अगस्त का प्रोग्राम बन गया.

ताई को पहले से बताने का मतलब की जाने के दिन तक रोज लठ्ठ खावो सो बताने का तो कोई सवाल ही नहीं था….ताऊ भले ही कहीं मंदिर दर्शन के लिये भी शहर से बाहर जाये पर ताई को लगता है कि गोवा गया, और यही हाल वत्स जी का है….वत्स जी के शहर से बाहर निकलते ही बापू को पक्का शक हो जाता है कि गोवा गया….फ़िर जो पंजाबी शब्दों में आशीर्वाद की बौछार होती है वो कल्पनातीत है.

पर ना तो वत्स जी को इस पंजाबी आशीर्वाद से फ़र्क पडता है और ना ही ताऊ को. ताऊ को तो आप सब जानते ही हैं कि जब तक रोजाना दो चार लठ्ठ नहीं पडें तब तक रोटी हज्म नहीं होती.

आखिर वाराणसी जाने का दिन आ ही गया और ताऊ ने बताया…. सुनते ही ताई का दिमाग सातवें आसमान पर…. पास पडा लठ्ठ उठाया और फ़टकारते हुये बोली… तुमको शरम भी आती है या नहीं? लोग कोरोना के मारे घर से नहीं निकलते और तुम चले गोवा….. बीच में ही ताऊ बोला… गोवा कहां जा रहा हूं… मैं तो भोलेनाथ के दर्शन करने  वाराणसी जा रहा हूं…… बस यह सुनते ही ताई ने दो चार लठ्ठ और मारे फ़िर बोली….. अब झूंठ भी बोलने लगे? वाराणसी का बहाना बना रहे हो और जाना तुमको गोवा है. खैर जाने के दो चार घंटे पहले ही बताया था सो किसी तरह यह भूकंपमयी समय भी निकल गया और हम अपना बैग उठाकर सीधे एयरपोर्ट पहुंच गये.

दोपहर करीब 3 बजे के आसपास वाराणसी के एयरपोर्ट पर थे. वहां से सरवेश्वरी होटल, लंका जाने का साधन तलाशा तो प्रीपेड टेक्सी वालों ने 800 रुपये मांगे. हमने कुछ मोल भाव करना चाहा तो ठेठ बनारसी अंदाज का जवाब मिला…. सुनिये…. जाना है तो आठ सौ रूपये दीजिये, हम रसीद बना देते हैं वर्ना कोई और साधन खोज लीजिये. हमने पूछा और कौनसा साधन है… तो मुंह में दबाये पान की पीक गटक कर वो बोला….. ऊ सब हमें नाहीं मालूम…. बाहर जाकर खोज ना लिजीये…. बनारसी भौकाल से यह पहला सामना था.

हम अपना सा मुंह लिये विचार करने लगे तभी बेटे का फ़ोन आ गया कि पहुंच गये या नहीं. बेटे ने कहा मैं ऊबर टेक्सी बुक करवा देता हूं… हम सोच ही रहे थे कि ये चेन्नई में बैठ कर बनारस में कैसे टेक्सी बुक करवायेगा? इतनी देर में वो बोला टेक्सी बुक कर दी है…. ये टेक्सी नम्बर है, अभी फ़ोन आता होगा और पेमेंट कर दिया है 592 रूपये…. आप कहीं डबल मत कर देना. हमारा तो दिमाग ही चक्कर खाने लगा कि टेक्सी भी बुक हो गई, पेमेंट भी हो गया…. कहीं बेटा मजाक तो नहीं कर रहा? इतनी देर में टेक्सी वाले का फ़ोन आ गया….. कि सर मैं अराईवल गेट के सामने ही खडा हूं… आप आ जाईये.

हम बाहर निकले कि उसने हमारा बैग लिया और गाडी में रख कर हमें बैठा कर रवाना हो गया. करीब 30 किलोमीटर की दूरी थी सो करीब 1 घंटा लग गया. टेक्सी वाला भला बंदा था हमें शहर के बारे में बताते हुये आया. बोला सर, ये सब फ़्लाई ओवर मोदी जी की मेहरवानी से बने हैं…. और ये वाला वही फ़लाई ओवर है जो निर्माण के दौरान गिर गया था…. यह BHU परिसर है….. ये इधर संकट मोचक हनुमान जी का मंदिर पडेगा… आपके होटल के पास ही पहलवान लस्सी वाला है… वहां कचोरी और लस्सी जरूर पीना…..इत्यादि इत्यादि….

आखिर हम होटल पहुंच गये और हमने उससे कहा कि भाई तुम भले आदमी लगते हो… हमको 16 तारीख को यहीं से उठाकर एयरपोर्ट पर पटक देना…. वो बोला सर आ जाऊंगा….. आपकी टिकट मुझे व्हाटसएप्प पर भेज दिजीये… मैं सही टाईम पर आ जाऊंगा…. आप बेफ़िक्र रहिये…. और वो चला गया.

होटल बाहर से देखने में बढिया लग रहा था, करीब सात आठ मंजिल ऊंचा, हम दाखिल हुये तो रिसेप्शन काऊंटर पर एक आदमी पान या खै्नी मुंह में दबाये बैठा था. हमने कहा कि हमारी बुकिंग है और हमें कमरा दे दीजिये. वो पान दबाये हुये ही क्या गें..गें..बोल रहा था वो समझ नहीं आया और गर्मी के मारे बुरा हाल था. उस भले आदमी ने एक वाल फ़ैन सिर्फ़ अपनी तरफ़ लगा रखा था बाकी पूरे हाल में आषाढ की दुपहरिया जैसा हाल था. गर्मी के मारे प्राण निकलने को थे. शायद पांच सात मिनट हमारे पेशेंस का इम्तहान लेने के बाद उस भले आदमी को तरस आया होगा सो वो जाकर पान थूक कर आया और बोला…. देखिये जी, मैनेजर साहब अभी अभी खाना खाने गये हैं, उनके आने के बाद ही कुछ होगा…. अरे आप खडे क्यों हैं? उंहां सोफ़ा पर बैठिये ना…. हम बोले भाई बहुत गर्मी है…. कोई पंखा वंखा ही चला दो….. वो बोला इंहा तो ये एक ही फ़ैनवा है…. हम उसका मंतव्य समझ गये और काऊंटर पर कुछ ऐसी पोजीशन बनाकर खडे हो गये कि उसके ना चाहते हुये भी उसके फ़ैनवा की थोडी सी हवा झटक सकें.

करीब आधा घंटे तक काऊंटर पर खडे खडे सोना बाथ लेने के बाद हमें मैनेजर साहब के दर्शन नसीब हुये. मैनेजर साहब ने आते ही हमारी बुकिंग रसीदें देखी और उनका बनारसी भौकाल शुरू हो गया. बोले आप लोग ये आन लाईन बुकिंग काहे करवाते हैं? इतना कम दाम पर तो हम सब ये फ़ेसेलिटी पिरोवाईड नहीं ना कर पायेंगे…. काहे से कि हमको नुक्सान ना हो जाता है.

हम बोले… मैनेजर साहब आप फ़िलहाल तो हमको एक ठो एसी रूमवा दे दिजिये…. काहे से कि हमारा मगजवा भी बहुते गर्म हो गया है. रही आपकी फ़ेसेलिटी की बात तो बुकिंग करवाने वाले वत्स जी भी आ ही रहे हैं…. वो सब बाते आप उनसे कर लिजीयेगा. इतनी ही देर में राजेंद्र शर्मा जी पहुंच गये… उनकी कोई एडवांस बुकिंग थी नहीं, सो काफ़ी झकझक के बाद उनकी व्यवस्था हुई. फ़िर वत्स जी और विक्की शर्मा जी भी पधार गये. उसके बाद सब व्यवस्थाएं उस रोज के लिये सेट की गई. और अंत में मधु जी भी पधारी. फ़िर सब अपने अपने रूम में सेट हो गये. इस तरह 13 अगस्त मनाया गया.

क्रमश:


#हिन्दी_ब्लॉगिंग