यह सर्व विदित है कि ताऊ ने बहुत सारे काम धंधे किये पर किसी भी काम में सफ़लता उससे इतनी ही दूरी रखती थी जितनी रामप्यारे के सर से सींग. ताऊ ने चोरी, डकैती, लूट, बेईमानी जैसे सारे धंधे आजमा लिये थे पर कहीं ना कहीं पकडा जाकर कुछ समय कृष्ण जन्म स्थली में काट लिया करता था. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि ताऊ चोरी डकैती के मामलों में अपनी मर्जी से पकडा जाता था, क्योंकि चोरी डकैती में भी मेहनत करनी पडती थी जो ताऊ करना नहीं चाहता था, इसलिये जैसे ही लूट चोरी का कोई कांड करता, तुरंत पुलिस के मुखबिर से सौदा पटाता और पकडा जाता.
ताऊ का इसमें डबल फ़ायदा था. पहले तो मुखबिर से हिस्सा मिल जाता था और बाकी जितने दिन कृष्ण जनम स्थली में कटते वहां मुफ़्त की खाने पीने की जोगाड रहती. यहां तक की अब पुलिस भी तंग आ चुकी थी. पर ताऊ तो ठहरा ताऊ. आज छूटा...कल वही काम.....
लेकिन अब इस तरह से रोटी तोडना तब मुश्किल हो गया जब पुलिस ने आधुनिक संचार साधनों से अपने खोजबीन अभियान शुरू कर दिये और मुखबिरों को देने वाली धनराशि में कमी कर दी. अब मोबाईल की लोकेशन से ही ताऊ का पता लग जाता था तो मुखबिर को पैसे कौन दे? और ताऊ को सारी कमाई इसी काम से थी. बुरा हो इस सत्यानासी आधुनिक टेक्नोलोजी का......
ताऊ की भूखों मरने की नौबत आ गई तो उसने एक किराना की छोटी सी दुकान खोल ली. जैसे तैसे जिंदगी चल रही थी. इसी बीच खुदरा बाजार में
विदेशी व्यापारी (FDI in retail) आगये और ताऊ की जमी जमाई दूकान बैठने लगी. ताऊ धंधे बदलने में तो शुरू से ही माहिर था सो तुरंत किराने की दुकान बंद की और जो पैसे हाथ में थे उससे शहर के पोश इलाके में दूसरे काबिज भिखारी से भीख मांगने का धंधा खरीद लिया. ताऊ खुद छटा हुआ बदमाश तो था ही सो उसके डर से कोई दुसरा भिखारी उस इलाके में भी नही आ सकता था और ताऊ उस इलाके में अपना एकाधिकार जमा कर चांदी काटने लगा.
एक रोज ताऊ एक सेठ से भीख मांग रहा था...
दे दे...अपनी बीबी के नाम से दे दे सेठ...दो दिन से कुछ मुर्गा...अंगूरी नही चखी है सेठ...आज तू मुझे देगा तो तेरी बीबी तुझे शाम को अच्छा अच्छा खाना खिलायेगी....अगर तू मुझे पांच सौ का नोट देगा तो आज तुझे तेरी बीबी बेलन से नही मारेगी..तेरी हड्डी पसली सलामत रहेगी सेठ...दे दे सेठ दे दे..आज ताऊ को दे दे...बस एक पांच सौ के नोट में तेरी सब तकलीफ़ मिट जायेगी....नही देगा तो आज घर में घुसते ही तेरा स्वागत चिमटे बेलन से होगा....
तभी वहां से अनेकों हिंदी ब्लागर्स
गुजर रहे थे जो शायद किसी ब्लागर सम्मेलन में जा रहे थे. भिखारी की इस अजीबोगरीब भीख मांगने के अंदाज ने उनका ध्यान अपनी और खींचा. और वो आपस में बात करने लगे.
सतीश सक्सेना बोले - दराल साह्ब मुझे तो ये भिखारी नही बल्कि ताऊ लग रहा है.
डाक्टर दराल - बोले, यार सक्सेना जी अगर मेरी आंखे धोखा नहीं खा रही हैं तो ये ताऊ ही है.
तभी
समीरलाल बोले - ये पक्के से ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ही हैं...सौ टका वही है.....
अनुराग शर्मा बोले - बिल्कुल ताऊ ही है...वो पीछे देखिये...रामप्यारे भी खडा है....तभी
काजल कुमार बोले -ओ यारों...कुछ फ़र्क ही नही है....ये तो वही ताऊ है जो
मेरा इंटर्व्यु लेने भी आया था......और
अरविंद मिश्रा बोले - अरे हां यार ये तो पक्का वही ताऊ है जो मेरा इंटर्व्यू लेने आया था और मैने नही दिया था....जब सबको ये पक्का हो गया कि ये ताऊ ही है तो सारे ताऊ के पास आगये...ताऊ ने अंजान बनते हुये अपने रटे हुये अंदाज में
दे दे...अपनी बीबी के नाम से दे दे सेठ ...की बांग लगाई.
सक्सेना जी बोले -ताऊ अब समझ में आया कि तू दो साल से ब्लाग जगत से गायब होकर ये काम कर रहा है? ये क्या नाटक लगा रखा है? तेरे को और कोई धंधा नही सूझा क्या? जो ये भीख मांगना शुरू कर दिया? तुझे शर्म नहीं आती...तेरी ब्लागरी की दुकान अच्छी भली चल रही थी....वहां से गायब होकर ये काम कर रहा है?
ताऊ बोला - सक्सेना साहब, बात तो आपकी सही है. पर ब्लागरी की दुकान से टके (रूपये) नही मिलते और बिना टके सब बेकार है. आपने
महाकवि ताऊनाथ हरयाणवी का ये वचन तो सुना ही होगा....
टका धर्म: टका कर्म: टका ही परमं तपं
यस्य ज्ञान टका नास्ति हा: टका टक टकायते
अर्थात
टका ही धर्म, टका ही कर्म, टका ही परम तप है !
टका रूपी ज्ञान नही है, तो कुछ भी नही है ! सिर्फ़ टकाटक देखते रहो !
सक्सेना जी बोले - चल ताऊ, तेरी ये बात मान भी लें तो तुझे सिर्फ़ ये भीख मांगने वाला काम ही मिला था? कुछ तो शर्म करना चाहिये. ये कहते हुये उन्होनें बाकी सब ब्लागर्स से विचार विमर्श करके ताऊ को 15 हजार रूपये दिये और कहा कि आयंदा भीख मत मांगना. ताऊ ने वादा किया और वो सारे ब्लागर सम्मेलन में चले गये.
जैसे ही वो गये
ताऊ वो रूपये घर रख कर आगया और अपना वो ही धंधा ..
दे दे...अपनी बीबी के नाम से दे दे सेठ... शुरू कर दिया. शाम को सारे ब्लागर्स उसी रास्ते ब्लागर सम्मेलन से वापस लौटे रहे थे तब देखा कि ताऊ,
दे दे...अपनी बीबी के नाम से दे दे सेठ...की आवाज लगा कर फ़िर भीख मांग रहा है.
सक्सेना जी को बडा गुस्सा आया और ताऊ को फ़टकारने लगे.
तब ताऊ बोला - अरे सक्सेना साहब नाराज क्यों हो रहे हो? मेरी किराना दुकान तो विदेशी स्टोरों ने उठवा दी. दूसरा कोई भी धंधा करूंगा तो उसकी भी कोई गारंटी नही कि ये विदेशी उस धंधे में नही आयेंगे?
क्योंकि संसद में हमारी सरकार और विपक्षी दल तो नूरा कुश्ती यानी मैच फ़िक्सिंग जैसी बहस करवाकर किसी भी धंधे का लायसेंस विदेशियों को दे सकती है. इसीलिये
मैने ये धंधा सोच समझकर चुना है. मुझे लगता है कि जल्दी से कोई विदेशी कंपनी भीख मांगने के धंधे में नही उतरेगी. और इस धंधे में कोई कंपीटीशन नही रहेगा.
सक्सेना जी की बोलती बंद हो गई और वो ताऊ का मुंह देखते रह गये...और ताऊ ने अपने ही अंदाज में बांग लगानी शुरू कर दी
...दे दे...अपनी बीबी के नाम से दे दे सेठ...दो दिन से कुछ मुर्गा...अंगूरी नही चखी है सेठ...