ताऊ आज ताई के हाथों पिटेगा या बचेगा?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की जान खतरे में डालकर किसी ने जबरदस्त साजिश करके बदला लेने की कोशीश की है. महाशरीफ़ और निहायत ही नेक इंसान, धर्मपूर्वक ब्लाग प्रजा पालक ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के साथ जिसने भी ऐसा किया है वो अच्छा नही किया. बुराई का बदला बुराई से ही मिलता है. पता नही किसने फ़ोनियाकर ताई महारानी गांधारी को शिकायत लगा दी कि ताऊ महाराज तुम्हें बुढिया कहते हैं....वगैरह..वगैरह....

अब ताई महारानी में इतनी अक्ल कहां कि वो महाराज ताऊ से शांतिपूर्वक पूछती कि असल बात क्या है? बस एक ही रट लगा दी कि अपनी लिखी चिठ्ठी वापस लो और क्लीन चिट दो...या लठ्ठ खाकर अपनी जान दो.......अब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की इतनी कूबत थोडे ही है कि महारानी का कोप भाजन बन कर अपना बुढापा खराब करलें सो महाराज ने तुरंत प्रेस बुलाकर ऐलान कर दिया कि मेरे कहने का मतलब ना तो महारानी के बुढापे से था और ना ही किसी मंत्री संत्री के भ्रष्टाचार से.

बात यहीं समाप्त भी नही हुई. ताई महारानी ने अपने को बुढिया कहा जाने को मन में गांठ की तरह बांध लिया और ताऊ की जान की दुश्मन बन गई. वैसे यह स्वभाविक भी है कि कोई भी महारानी आंटी तक कहाया जाना पसंद नही करती...फ़िर बुढिया कहा जाना तो सबसे बडी और गंदी गाली समान बात है. बस ताई ने उसी समय से ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को लठ्ठ मारने के बहाने ढूंढने शुरू कर दिये थे पर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र भी कोई ऐसे ही अंधे बहरे नही हुये हैं बल्कि द्वापर से ब्लागयुग तक की महाराजी तय की है सो बहुत संभल संभल कर कदम रख रहे थे.

आखिर कल सुबह ताई महारानी ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को सब्जियां लाने का कहा. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की क्या औकात जो मना करते, आज्ञाकारी महाराज की तरह चुपचाप बाजार की तरफ़ निकल लिये और जो तीन चीजे ताई ने मंगायी थी वो लेकर वापस आगये.

उन तीनों चीजों को देखते ही महारानी ताई की त्योंरियां आसमान पर चढ गयी और अपना लठ्ठ उठाकर महाराज की कुटाई करने के लिये तैयार होगयी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने आज्ञाकारी पति की तरह लठ्ठ खाने की बजाये आज लठ्ठ हाथ मे पकड कर रोक लिया और पूछा कि - ए मेरी बंदरिया महारानी, पहले मेरा कसूर बता, फ़िर तू लठ्ठ मार मार कर चाहे मेरी जान ही क्यों ना ले ले, मुझे कोई शिकवा ना रहेगा...पर कसूर बता.

ताई महारानी बोली - तुम द्वापर से आज तक बंदर के बंदर ही रहे, जरा भी अक्ल नही आयी? मैने तुमसे क्या मंगाया और तुम क्या लेकर आ गये? हे भगवान तुमने मेरी ही किस्मत में ये बुढऊ क्यों लिखा था जिससे फ़ूल मंगाया और कद्दू ले कर आया है?

दोनों में काफ़ी खिच खिच होती रही..आखिर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र सही सामान लाये या गलत...इसका फ़ैसला ब्लाग पुत्र-पुत्रियों पर ही छोड दिया गया. अब नीचे तीन चीजे हैं जो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र खरीद कर लाये हैं और ताई महारानी कह रही हैं कि ये वो चीजे नही हैं जो उन्होने लाने को कहा था, जबकी ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र का कहना है कि यही वो चीजे हैं जो उनसे लाने को कहा गया था.

अब आपको फ़ैसला करना है कि ऊपर चित्र में तीन कौन कौन सी चीजे हैं? अगर आपके जवाब ताऊ महाराज की लाई चीजों से मिल गये तो आज ताऊ लठ्ठ खाने से यानि पिटने से बच जायेगा और अगर आपके जवाब ताई महारानी के जवाबों से मिले तो ताऊ का क्या हाल होगा? यह उनके दुश्मनों की खुशी से ही पता चल जायेगा.

ताऊ आस्ट्रोलोजिक्ल आफ़िस की चेतावनी :-

१. अगर किसी पुरूष ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को पिटवाने के लिये जान बूझकर गलत जवाब दिया तो उनकी खुद की पिटाई उसकी पत्नि के हाथों से होगी और अगर स्त्री हैं तो आज उसकी पिटाई उसकी सास के हाथों होगी. और अगर कोई कुंआरा/कुंआरी है तो उपरोक्त फ़ल उनको शादी के बाद प्राप्त होंगे.

२. अगर कोई बिना जवाब दिये जायेगा तो भी उसे भी उपरोक्त फ़लों की प्राप्ति मासांत तक होकर रहेगी.

अत: इमानदारी पूर्वक जवाब दें और परेशानी से बचें.

ब्लागिंग में भी श्राप के डर से मजे लेने कम कर दिये हैं

ताऊ महाराज धॄतराष्ट राजभवन में चिंता मग्न बैठे हैं, ब्लाग पुत्र दुर्योधन और ब्लागपुत्री दु:शला की नाफ़रमानियां बढती ही जा रही थी. इधर उनके चहेते मंत्री आपस में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर तोतलों को एक और मौका दे रहे थे. ताऊ महाराज धॄतराष्ट की सरकार हिलने लगी थी. उधर ताई महारानी से भी कुछ विशेष सहयोग नही मिल रहा था...महारानी की तबियत बुढौती मे नासाज चल रही थी.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट जब भी परेशान होते थे तब भीष्म पितामह को याद कर लेते थे. आज भी पितामह और ताऊ महाराज धॄतराष्ट आपस में विचारमग्न थे. युवराज दुर्योधन को भीष्म पितामह समझा रहे थे कि वत्स दुर्योधन, दूसरों को अपमानित करना, बेनामी टिप्पणी करना यह अच्छी बात नही है. इससे ब्लागिंग का पतन होता है और अगर तुमने यही रवैया जारी रखा तो तुम्हारा ब्लाग पतन निश्चित है.

इस बात पर दुर्योधन उतेजित होकर बोला - पितामह, आप क्या चाहते हैं कि वो आकर मुझे गरियाते रहें? और मैं उनके तलुवे चाटता रहूं? नही पितामह नही, मैं ईंट का जवाब पत्थर से भी दूंगा और जरुरत लगी तो मानसिक ब्लेकमेल करके जनता का समर्थन भी हासिल करूंगा. मुझे लोगों का समर्थन और हमदर्दी हासिल करने की कला आ गई है, यह द्वापर नही है कि सारी हमदर्दी का टोकरा पांडव ही बटोर ले गये थे. अब मेरे साथ प्राक्सी सरवर भी है.

भीष्म पितामह बोले - वत्स, इस नीति पर हम भी कभी चले थे पर हमारा क्या हश्र हुआ? आज हम ब्लाग पोस्ट लिखने के काबिल ही नही रहे. अगर भूल से कभी कोई पोस्ट लिख भी दी तो कोई टिप्पणी को रोने वाला भी नही फ़टकता. हम दो चार जनों को मेल या फ़ोनिया कर बताते हैं तब जाकर कहीं दस पंद्रह टिप्पणी का इंतजाम होता है. हमने मठ में जितने चेले चमचे इकठ्ठे किये थे वो भी सब किनारा कर गये. हम आज अकेले सर शैया पर लेटे हैं. अत: वत्स तुम ऐसा मत करो.

पितामह की यह बात सुनकर ताऊ महाराज धॄतराष्ट ने पूछा - पर पितामह, आपको शर शैया पर लेटने की क्या आवश्यकता है? आप आराम से राजमहल में रहकर ब्लागिंग किजिये, यहां राजमहल में लेपटोप, हाईस्पीड नेट कनेक्शन, डेटाकार्ड और प्राक्सी सर्वर इत्यादि सभी कुछ तो उपलब्ध है. आप जिसकी चाहे उसकी खटिया खडी कर सकते हैं, हमारा दुर्योधन इन कामों में पारंगत हो चुका है....आप चाहे जिसे आपस में भिडवाकर बुढापे में घर बैठे मजे लूट सकते हैं.

पितामह बोले - नही वत्स धॄतराष्ट्र, अब और नही, हमने ब्लागिंग में लोगों को आपस में खूब लडाया भिडाया, खूब मजे लिये, पर अब और पाप की गठरी सर पर नही ले सकते. तुम जानते हो कि हम को शर शैया पर क्यों लेटना पडा है?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट - नही तात श्री, आप बताये.

पितामह बोले - वत्स धॄतराष्ट्र, हमने बचपन में एक भंवरा पकड लिया था और खेल खेल में उसके शरीर को शूलों से बींध दिया और उस दुष्ट भंवरे ने हमको श्राप दे दिया कि जावो, जिस तरह तुमने मेरा शरीर शूलों से बींध दिया है उसी प्रकार एक दिन तुम्हारा शरीर भी शूलों से बींधा जायेगा, तब तुम्हें पता चलेगा की शूलों से बींधे जाने की वेदना क्या होती है? आह वत्स धॄतराष्ट्र... सच में..बडी वेदना हो रही है...इसीलिये हमने ब्लागिंग में भी श्राप और शूलों से बींधे जाने के डर से मजे लेने कम कर दिये हैं...यानि बुरा करने से बुराई ही हाथ लगती है वत्स....पर क्या करें... ये ससुरी ब्लागिंग की आदत पूरी तरह छूटती भी तो नही है.

(क्रमश:)

दुनियां की सबसे श्रेष्ठ और खराब वस्तु क्या है?

मैं स्वयं काल यानि समय हुं. अक्सर लोग कहते हैं कि जब कुछ काम नही होता तब हम समय काटने के लिये ब्लागिंग करते हैं. पर उन मूर्खानंदों को यह समझ नही आता कि मुझ साक्षात काल यानि समय को कौन काट सकता है? ये तो मैं ही उन काटने वालों को काट डालता हुं. इस सॄष्टि के आदि से अभी ब्लागयुग तक की स्मॄतियां मुझमें समायी हुई है.

आज यूं ही एक घटना याद आरही है जो आपको सुनाना जरूरी समझता हूं. सभी ब्लागर बच्चों से गुजारिश है कि इसे अति श्रर्द्धा पूर्वक मन लगाकर सुने जिससे वो निश्चित ही कल्याण को प्राप्त हो सकेंगे.

द्वापर से ही अक्सर तोतलों (जनता) को ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की काबिलयत पर हमेशा शक रहा है. ज्यादातर लोग मानते हैं कि ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे, अक्षम और बेअक्ल हैं और शासन करने की क्षमता उनमें नही है, उन्होने जोडतोड करके हस्तिनापुर की कुर्सी हथिया ली थी जो आज तक छोडने के लिये तैयार नही है. और तो और महाभारत युद्ध से लेकर ब्लागयुद्ध एवम भ्रष्टाचार तक के लिये तोतले उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कोशीश करते है. जबकि यह सभी बाते गलत हैं.

गोल्ड मेडलिस्ट ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र


सच यह है कि ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र नितांत सज्जन, शरीफ़, ब्लाग प्रजापालक और कुशाग्र बुद्धि हैं. मैं आपको उस समय की एक घटना बताता हुं जब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अन्य राजकुमारों के साथ गुरूकुल में विध्याययन किया करते थे. आपको इस घटना से ही ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की बुद्धि की गहराई का पता चल जायेगा.

गुरूकुल में वार्षिक परीक्षाएं चल रही थी. गुरू सभी छात्रों से वायवा के प्रश्नों सहित उनसे प्रेक्टीकल भी करवा रहे थे.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की बारी आई तब गुरू ने उनसे पूछा : वत्स धॄतराष्ट्र, तुम जावो और अति शीघ्र दुनियां की सर्वश्रेष्ठ वस्तु लेकर आवो.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र तुरंत छात्रावास में अपने कमरे में गये और वहां से अपने डेस्कटोप का की बोर्ड उठाकर ले आये और उसे गुरू को देते हुये बोले - गुरूदेव यह लिजिये इस दुनियां की सर्वश्रेष्ठ चीज.....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के इतना कहते ही गुरू कुपित होगये और ताऊ महाराज को उल्टी सीधी आगे पीछे दो चार बेंत लगादी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने बेंत लगा अपना अगवाडा पिछवाडा सहलाया और चुपचाप सर झुका कर खडे रहे क्योंकि उस युग में आज की तरह छात्रों को शिक्षक की बेंते खाने पर विरोध का हक नही था.

इसके बाद गुरू ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को कहा - ठीक है धॄतराष्ट्र, तुम इस सवाल का जवाब लाने में तो असफ़ल रहे पर तुम्हारा यह साल खराब ना हो इसलिये मैं तुमको एक मौका और देना चाहता हुं. अब तुम दुनियां की कोई ऐसी वस्तु लावो जो सबसे बेकार और गंदी हो.

यह प्रश्न सुनकर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने वहां से वापस छात्रावास की तरफ़ दौड लगा दी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ताले तोडने और चोरी चकोरी करने में तो जन्मजात ही माहिर थे सो सीधे डाँ. दराल के कमरे की तरफ़ गये और उसका ताला तोडकर उनका की बोर्ड उठाया और लाकर गुरू के सामने रख दिया.

दूसरे सवाल के जवाब मे भी की बोर्ड देखकर गुरू भडक गये और बेंत उठाने लगे तभी वहां वायवा के लिये बैठे पितामह बोले - आचार्य, आप वत्स धॄतराष्ट्र को बेंत मारने के पहले उससे इस बात का कारण नही जानना चाहेंगे कि वो दोनों प्रश्नों के जवाब में की बोर्ड क्यों लेकर आया है? आचार्य गुरू को पितामह की यह सलाह पसंद आई और उन्होने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र से इसका कारण पूछा.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - गुरूदेव और पितामह आप दोनों को प्रणाम, असल में कंप्यूटर का यह की बोर्ड ही है जिससे ज्ञान, प्रकाश फ़ैलाने वाली, भाईचारा और सोहाद्र बढाने वाली पोस्ट और टिप्पणियां की जा सकती हैं इसलिये यह दुनियां की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है. और इसी की बोर्ड से गंदी, बदबूदार, गाली गलौच, किसी का दिल दुखाने वाली, कुंठित और लुंठित, परेशान करने वाली और दुश्मनी नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्ट और टिप्पणियां लिखी जा सकती हैं, इस वजह से यह दुनियां की सबसे गंदी और बेकार वस्तु भी है.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र का यह जवाब सुनकर आकाश से देवताओं ने भी फ़ूल बरसाये और गुरू ने उन्हें उस बैच का सबसे होनहार और मेधावी छात्र घोषित करके गोल्ड मेडल देते हुये आशीर्वाद दिया कि - वत्स धॄतराष्ट्र मैं तुमको वरदान देता हूं कि तुम अंधे होकर भी देखते रहोगे और बहरे होकर भी सुनते रहोगे.

इसके बाद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने पितामह के चरण छुये तो भीष्म पितामह ने भी आशीर्वाद दिया कि - वत्स धॄतराष्ट्र, तुमने मेरे कुल का नाम रोशन कर कर दिया, जावो मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूं कि तुम द्वापर से लेकर ब्लागयुग तक अखंड राज्य करोगे.

(क्रमश:)

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के चिरयुवा होने का राज.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने आज तक किसी को अपना साक्षात्कार नही दिया लेकिन मिस समीरा टेढी ने किसी तरह महाराज को साक्षात्कार के लिये राजी कर ही लिया और अपने साथ कैमरामैन रामप्यारे को लेकर राजमहल पहुंच गयी. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र पहले से ही तैयार बैठे थे अत: पहुंचते ही साक्षात्कार का सिलसिला शुरू होगया.

मिस समीरा टेढी - महाराज, मैं आपका शुक्रिया अदा करती हुं कि आपने हमारे चैनल को आपका प्रथम साक्षात्कार प्राप्त करने का सौभाग्य प्रदान किया. अब मैं आपसे सबसे पहले यह पूछना चाहुंगी कि आप द्वापर से लेकर अब ब्लागयुग तक भी वैसे के वैसे जवान बने हुये हैं, अंधे होकर भी देख लेते हैं? बहरे होकर भी सुन लेते हैं? आखिर इसका राज क्या है? क्या आप शिलाजीत का सेवन करते हैं?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, कैमरामैन रामप्यारे और साक्षात्कार लेती मिस समीरा टेढी


ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - देखिये समीरा जी, हम बंदर प्रजाति के हैं तो शिलाजीत के सेवन वाली कोई बात नही है बल्कि शिलाजीत खाना तो हमारे भोजन का अंग है. और आप जानती हैं कि शिलाजीत बहुत ही दुर्गम पहाडों की कंदराओं में पाई जाती है जहां हमारे अतिरिक्त और कोई नही पहूंच सकता. और इसके खाने से हमारा तन मन अति स्वस्थ और शांत चित बना रहता है और इसी की वजह से हम अपने ब्लाग मठ एवम सत्ता का संचालन शांति पूर्वक करते हैं. लेकिन इस शिलाजीत सेवन का हमारे चिरयुवा शरीर से कुछ लेना देना नही है.

मिस समीरा टेढी - पर महाराज दूसरे मठाधीष भी तो शिलाजीत का सेवन करते होंगे?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - नही नही समीरा जी, दूसरे मठाधीषों को असली शिलाजीत नही मिल पाता. असल में हम जब शिलाजीत खा रहे होते हैं तब कुछ जूठन नीचे गिर जाती है और उस जूठन को हमारे पीछे लगा शेर चाट लेता है और गुर्राकर अपने मठाधीश होने की घोषणा करने लगता है. जो असली शिलाजीत खाता है वो तो हमारी तरह हमेशा शांतचित रहता है, सिर्फ़ शेर और भेडिये ही गुर्राहट दिखाया करते हैं. असली शिलाजीत सेवन करने वाले मठाधीष को कभी गुस्सा आता ही नही है.

मिस समीरा टेढी - तो महाराज इसका मतलब यह हुआ कि ये जो ब्लाग जगत में उठा पटक चलती है इसके पीछे वो शेर और भेडिये टाईप मठाधीष नही बल्कि शांत चित और स्थिर बुद्धि वाले आप ही जिम्मेदार हैं?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - अब समीरा जी अपने मुंह से मैं क्या कहूं? आप स्वयं ही अंदाज लगा लिजिये. हमारे खिलाफ़ तोतलों द्वारा इतने रोकपाल आंदोलन हुये, हमने कभी पलटकर जवाब भी दिया क्या? अरे जब हमने तोतलों (जनता) को जवाब नहीं दिया तो ये मठाधीष कहां लगते हैं? अब आपका आज का समय समाप्त होने को है...बस आप एक प्रश्न और पूछ सकती हैं...इसके बाद समय समाप्त...हमें अन्य ब्लाग कार्य भी निपटाने हैं.

मिस समीरा टेढी - महाराज मेरा अंतिम सवाल यह है कि जब आप अपने चिरयुवा होने का राज शिलाजीत को भी नही बताते तो आखिर वह कौन सी चीज हैं जिसके सेवन से आप द्वापर से अभी तक तंदुरूस्त बने हुये हैं और सारे सत्ता सुत्र अपने हाथ में रखे हुये हैं?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - समीरा जी, वैसे तो हम यह राज खोलना नही चाहते क्योंकि इस राज के खुलने से हमारे विरोधी मठाधीष भी चिरयुवा हो जायेंगे, फ़िर भी हम आपसे अति प्रसन्न हैं सो बता ही देते हैं कि हम सप्ताह में दो बार ताऊ परांठे का सेवन करते हैं जिससे हमको किसी तरह के रोग नही होते, ना ही कभी घुटने दुखते हैं और ना ही कभी शारीरिक या मानसिक थकान होती है.

मिस समीरा टेढी - महाराज आप ये क्या मजाक कर रहे हैं? भला परांठा सेवन से कोई तंदूरूस्त रह सकता है? उल्टे डाक्टर लोग तो परांठा सेवन के लिये मना करते हैं.....आप असल बात छिपा रहे हैं महाराज.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - नही समीरा जी, हम झूंठ तो कभी बोलते ही नही हैं, अगर झूंठ बोलते होते तो द्वापर के महाभारत में हमारी हार क्यूं होती? असल में ताऊ परांठा हमारे राजवैद्य के द्वारा इजाद किये गये नुस्खे का परिणाम है जिसके सेवन से हर कोई जवान और स्वस्थ रह सकता है. अब आप पूछ ही रही हैं तो हम ताऊ परांठा बनाने की विधी आपको बताये देते हैं, अगर हमारी प्यारी प्रजा चाहे तो अवश्य सेवन कर ले.

मिस समीरा टेढी - महाराज अवश्य बताईये, यह प्रजा पर आपका बडा उपकार होगा, आजकल रोग बीमारियों का इलाज भी बडा महंगा हो गया है.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - आप लिख लिजिये समीरा जी.....जो भी मानव ताऊ परांठे का सेवन सप्ताह में दो बार करेगा वो आजीवन स्वस्थ और तंदूरूस्त रहेगा, उसे कब्ज, घुटने का दर्द, वायु विकार, चेहरे पर झुर्रियां नही व्याप्त होंगी. और सबसे बडी बात ब्लागिंग में उसकी मठाधीशी जाने का कोई भय नही रहेगा.

सबसे पहले सामग्री नोट किजिये.

१. गेहुं का आटा २ कटोरी
२. तेल मोयन के लिये २ चम्मच
३. मेथी दाना पाऊडर २ चम्म्च
४. अजवाईन पाऊडर २ चम्मच
५. काला नमक १ चम्मच
६. हींग पाऊडर १/२ चम्मच
७. हल्दी पाऊडर १/२ चम्मच
८. अलसी पाऊडर १ चम्मच
९.सफ़ेद नमक स्वादानुसार
१० प्याज १ बडा साईज का
११. शिमला मिर्च १ बडा साईज का
१२. हरी मिर्च ५/६, लहसुन की ५/६ कलियां, अदरक एक बडा टुकडा.
१३. हरा धनिया १ गड्डी बारीक कटा हुआ

ताऊ परांठा बनाने की विधि :-

आटे में मोयन वाला तेल, मेथीदाना पाऊडर, अजवाईन पाऊडर, काला नमक, सफ़ेद नमक, हींग पाऊडर, हल्दी डालकर मिला लिजिये. प्याज, शिमला मिर्च को कद्दूकस करके आटे में मिला लिजिये. हरी मिर्च, लहसुन और अदरक को मिक्सर में पीस कर आटे में मिला लिजिये. और अंत में हरे धनिये की गड्डी के बारीक कटे सारे पत्ते आटे मे डालकर उसे गूंध लिजिये. सारी सामग्री मिलने के बाद गूंधने के लिये पानी कम ही लगेगा. अब इस तैयार आटे के परांठे मंदी आंच पर सेंक लिजिये. यह आपका कुरकुरा ताऊ परांठा तैयार हो गया अब इसे गर्मा गर्म ही दही, रायता या सब्जी जिससे भी चाहे खा लिजिये.

यह नाश्ते का नाश्ता और सौ रोगों की एक दवा, और प्रोटीन का यह अथाह भंडार है. बोलो ताऊ परांठे की जय!

मिस समीरा टेढी - महाराज आपकी बडी कॄपा जो आपने इस ब्लागयुग में इतनी उत्तम विधि जन कल्याण के लिये बताई.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र - समीरा जी आप तो हमें शर्मिंदा कर रही हैं, हम तो जन कल्याण के लिये ही अवतरित हुये हैं वो तो कुछ मठाधीशों ने हमें बदनाम कर रखा है.

(शेष साक्षात्कार अगली किस्तों में.....)

"तनु वेड्स मनु" बनाम "मेरे ब्रदर की दुल्हन" और ताऊ

पिछले अंक में आपने पढा था जब ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और पितामह के बीच बाते हो रही थी तभी युवराज दुर्योधन ने उनके परम प्रिय सखा कर्ण के साथ राज दरबार में प्रवेश किया था और यह उदघोष किया था कि अब मेरे हाथ में गदा नही बल्कि की-बोर्ड और हाईस्पीड नेट कनेक्शन है और प्राक्सी सर्वर भी.......

युवराज दुर्योधन, अंगराज कर्ण, ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, पितामह और मिस समीरा टेढी


युवराज दुर्योधन की बातों से महाराज अति चिंतित हो गये और बडे खिन्न मन से मिस समीरा टेढी की तरफ़ देखते हुये आज का दरबार बर्खास्त करने के लिये इशारा किया.

आज के राज दरबार की बर्खास्तगी की बात सुनकर युवराज दुर्योधन ने प्रसन्न हो कर कहा - तातश्री, आपको मैं काफ़ी समय से परेशानी में देख रहा हूं. पहले तो तोतलों द्वारा रोकपाल बिल के चक्कर में आपकी नींद और खाना पीना हराम हो रहा था, अब ये पितामह ने आपके लिये नई मुसीबत खडी करके रखदी. ऐसे में आपको थोडा मनोरंजन का ख्याल रखना चाहिये जिससे आपका दिमाग शांत बना रहे. एक बडी अच्छी फ़िल्म आई है और उसके पास भी आये हुये हैं, चलिये आपको वही फ़िल्म दिखा लाता हूं. आप चाहे तो समीरा आंटी को भी लिये चलिये. और पितामह चाहें तो उनको भी ले चलिये.

पितामह का मूड तो युवराज दुर्योधन की शक्ल देखते ही खराब हो जाता था, क्योंकि हाई स्पीड नेट कनेक्शन और प्राक्सी सर्वर के सहारे दुर्योधन ने पितामह की ऐसी तैसी कर रखी थी, बेचारे पितामह अपना ब्लाग बोरिया कितनी बार इधर उधर घसीटते फ़िरते थे उसके मारे. सो पितामह ने तो बहाना बना कर मना कर दिया कि आज वो सब ब्लागर्स को जय हो, बहुत अच्छे, खुश रहो, अरे ये तो हमारी फ़ला पोस्ट मे था...जैसी टिप्पणियां करते हुये अपनी चुनिंदा पोस्टों के लिंक छोडने का काम करेंगे. मिस समीरा टेढी ने अपनी नये कार्य कि जिम्मेदारियों को निभाने के लिये समयाभाव का कहकर मना कर दिया.

मिस समीरा टेढी और पितामह की बात सुनने के बाद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - वत्स, दुर्योधन तुम्हारी बात हमे बडी रूचिकर लग रही है. अब समीरा जी भी साथ चलेंगी तो पीछे से हस्तिनापुर की देखभाल कौन करेगा? आजकल तोतलों का भरोसा नही कि तीन घंटे की हमारी अनुपस्थिति में भी क्या गुल खिला डाले? और पितामह तो हमारे साथ जायेंगे नही, उनको अपनी टिप्पणीबाजी में ही आनंद आता है सो उन्हें भी टिप्पणियों द्वारा पंगे बाजी का शौक पूरा करने दो.

और हां फ़िल्म कोई अच्छी सी होनी चाहिये जैसी तुमने पिछली बार दिखाई थी. वो क्या नाम था उसका...हां याद आया "तनु वेड्स मनु" बस वैसी ही फ़िल्म हो तो निकल चलते हैं.

युवराज दुर्योधन बोले - तातश्री, "मेरे ब्रदर की दुल्हन" बिल्कुल "तनु वेड्स मनु" जैसी ही है..बल्कि स्टारकास्ट और बैनर भी बहुत बडा है. आप चलिये आपका दिमाग फ़्रेश हो जायेगा.

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - अरे वाह वत्स दुर्योधन, तुम हमारा कितना ख्याल रखते हो? यानि आज फ़िर से कनपुरिया डांस देखने का मौका मिलेगा? और एक बात हमारे दिमाग में आ रही हैं कि हम भी इस फ़िल्म की समीक्षा लिख कर एक पोस्ट निकाल लेंगे, अब कोई अरविंद मिश्रजी का ही ठेका थोडे ही है कि फ़िल्म देखी और समीक्षा के नाम पर एक पोस्ट निकाल ली?

युवराज दुर्योधन और अंगराज कर्ण अपने साथ ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को लेकर मल्टीपलेक्स में पहुंच गये. अब ज्यों ज्यों फ़िल्म आगे बढती गयी वैसे वैसे ताऊ महाराज धृतराष्ट्र का दिमाग आऊट आफ़ कंट्रोल होने लग गया. उन्होनें फ़िल्म बीच में छोडकर ही राजमहल लौटने का फ़ैसला किया परंतु युवराज और कर्ण...बस थोडी देर और तातश्री...थोडी देर और तात श्री...कहते हुये पूरी फ़िल्म ताऊ महाराज धृतराष्ट्र को दिखा ही डाली.

अब पूरी फ़िल्म देखने के बाद ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने युवराज दुर्योधन को डांटते हुये - वत्स तुमको द्वापर में भी अक्ल इस्तेमाल करने की आदत नही थी और अब इस ब्लागयुग में भी नही है. और अंगराज कर्ण तुम भी सिर्फ़ धनुष (की बोर्ड) उठाने के अलावा दुनियादारी की समझ नही रखते. तीन घंटे खराब करवा डाले.

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र की डांट सुनकर युवराज तमकते हुये बोले - तात श्री, इसमे हमारा क्या कसूर? देश के एक बहुत बडे अखबार में हमने समीक्षा पढी थी कि "मेरे ब्रदर की दुल्हन" इतनी बडी और शानदार फ़िल्म है कि तनु वेड्स मनु को भी काफ़ी पीछे छोड देगी.

इस बात को सुनकर ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और भी क्रोधित होते हुये बोले - युवराज दुर्योधन, जरा अखबार की मजबूरी समझा करो, क्या पता वो खुद ही इस फ़िल्म के नफ़े नुक्सान में पार्टनर हो? जरा अक्ल लगाया करो वत्स. अब तुम्हें हस्तिनापुर की सत्ता संभालनी है. हम कब तक बैठे रहेंगे? अरे हम जिस तरह बहरे होकर भी सुन लेते हैं और अंधे होकर भी देख लेते हैं? उसी तरह का गुण प्राप्त करो वत्स, तभी इस हस्तिनापुर राज्य की बागडोर संभाल पावोगे. जरा अच्छे और बुरे में भेद करना सीखो. सिर्फ़ बैनर का और स्टार कास्ट का नाम बडा होने से ही फ़िल्म अच्छी नही हो जाती वत्स.

अब अंगराज कर्ण बोले - महाराज श्री, आपकी बात सही है. द्वापर से लेकर इस ब्लागयुग में अकेले सिर्फ़ आप ही हैं जो अंधे होते हुये भी पूरी बारीकी से फ़िल्म देख सकते हैं और बहरे होते हुये भी पूरी तरह से संगीत को बारीकी से सुन सकते हैं. महाराज आपको इन दोनों फ़िल्मों में क्या अच्छा बुरा लगा? जरा वह भी बताने की कॄपा करें.

तनु वेड्स मनु का कनपुरिया डांस, देखते ही तबियत बाग बाग हो जायेगी!


ताऊ महाराज धृतराष्ट्र बोले - वाह अंगराज कर्ण वाह, यह आपने बहुत बढिया सवाल किया है. तनु वेड्स मनु में पटकथा इतनी चुस्त और सादगी लिये हुये है कि फ़िल्म देखते हुये हम पूरी तरह से उसमे खो गये. एक एक फ़्रेम कसा हुआ लगता है. और पूरा संगीत इतना लाजवाब है कि इन कई वर्षों में ऐसा गीत संगीत फ़िल्मों में देखने सुनने को नही मिला. इसका संगीत सुनते हुये एक दूसरी ही दुनियां में पहूंच जाते हैं खासकर रंगरेज मेरे...वाले गीत मे... और कंगना राणाऊत की पहली बार कोई फ़िल्म देखी और हम तो उसकी अदाकारी के कायल होगये... यानि तनुजा त्रिवेदी के रोल में तो वो लाजवाब रही... उस के द्वारा किया हुआ कनपुरिया डांस तो कमाल का था. हमारे राजमहल की नर्तकी भी ऐसा डांस नही कर सकती. इसीलिये यह फ़िल्म हमने कई बार देखी.

युवराज ने पूछा - तातश्री, और क्या विशेषता रही इस फ़िल्म की?

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - वत्स, इस फ़िल्म में हमें जिम्मी शेरगिल की एक्टिंग बहुते लाजवाब लगी और उसी की जुबानी एक और बात का पता चला कि शादी का जोडा तो लखनऊ से ही खरीदना चाहिये, कानपुर में तो सिर्फ़ चमडा ही मिलता है. बस पूरी फ़िल्म लाजवाब है.

कर्ण बोला - महाराज श्री आपको "मेरे ब्रदर की दुल्हन" में क्या खास बात लगी?

"मेरे ब्रदर की दुल्हन" भव्य सेट्स के साथ बोरियत


ताऊ महाराज धृतराष्ट्र - अंगराज, यह सारी फ़िल्म हर मामले में बकवास है. इस पूरी फ़िल्म में तनु वेड्स मनु की भौंडी नकल मारने की कोशीश की गई है, लचर संगीत, भव्य सेट्स और सारे तामझाम के बावजूद भी यह बकवास है. इतने बडे बैनर को इस तरह की नकल करने की क्या जरूरत आ पडी? शायद इस बैनर की अब तक की सबसे बकवास फ़िल्म है. नकल मारने में भी अक्ल नही लगाई गई है.

हां इस फ़िल्म में एक रेपिड फ़ायर विडियो कांफ़्रेंसिंग का सीन है जो कटरीना कैफ़ उसके होने वाले दुल्हे से पूछती है. वैसे तो अभी तक देखने सुनने में नही आया पर अगर भविष्य में ऐसा हुआ कि कोई लडकी ब्लागर किसी लडके ब्लागर से इस तरह के रेपिड फ़ायर के सवाल शादी के पहले करे तो वो कुछ यों होंगे.

लडकी ब्लागर : बेनामी टिप्पणी या नाम सहित?

लडका ब्लागर : बेनामी टिप्पणी.

लडकी ब्लागर : मौज लेना या पोस्ट निकालना

लडका ब्लागर : दोनों.

लडकी ब्लागर : टांग खिंचाई या तथ्यात्मक?

लडका ब्लागर : खांटी टांग खिंचाई.

लडकी ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी या निष्पक्ष?

लडका ब्लागर : गुटबाजी/मठाधीषी

लडकी ब्लागर : ज्यादा टिप्पणियां महिला ब्लागर की पोस्ट पर या पुरूष ब्लागर की पोस्ट पर?

लडका ब्लागर : डार्लिंग अब बस भी करो, तुम जानती तो हो....फ़िर सब कुछ साफ़ साफ़ ही क्यूं पूछ रही हो?

लडकी ब्लागर : ओह डार्लिंग...आई लव यू...चलो हम शादी कर ही लेते है....इतने विचारों का साम्य आखिर और कहां मिलेगा?

आखिर ये ब्लाग भारत कब तक चलेगी तातश्री?

राज दरबार में ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बहुत उदास बैठे हैं. पास में उतेजित से पितामह और आशीर्वाद देने की मुद्रा में शांत चित गुरू द्रोणाचार्य बैठे हैं. मिस समीरा टेढी कुछ जरूरी बातों पर महाराज से विचार विमर्श के लिये कमर पर हाथ टिकाये मटकती सी चली आ रही हैं. समूचे दरबार में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा है.

आखिर सन्नाटे को तोडते हुये ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बोले - पितामह आप ही बताईये कि आखिर ये सब हमारी ही किस्मत में क्यों लिखा है? द्वापर से अभी ब्लागयुग तक हम कभी चैन से नही जी पाये, अभी हम मुश्किल से तोतलों के आंदोलन से उबरे थे, उसमे भी हमारी किरकिरी हुई थी और अब ये आपने नया सर दर्द खडा कर दिया... ...आखिर पितामह आप समझते क्यूं नही कि अब द्वापर नही है जहां आप जगत पितामह बने हुये थे, अब ये ब्लागयुग है...इसमे सब अपने अपने पितामह है..कोई आपको पितामह मानने को तैयार नही होगा.

महाराज धॄतराष्ट्र, ब्लाग पितामह, मिस समीरा टेढी और गुरू द्रोण


पितामह बोले - पर वत्स धृतराष्ट्र, जब तुम द्वापर से लेकर आज तक महाराज बने हुये हो तो मेरे को पितामह मानने में क्या दिक्कत है? अरे इस ब्लाग युग का सुत्रपात तक हमने किया है तो हम ब्लाग पितामह हुये कि नही? वत्स, तुम ये मान लो कि हमें पितामह कहाये बिना नींद नही आती. अब हम क्या करें? हमको हर किसी के फ़टे में टांग फ़ंसाने की द्वापर से ही आदत पडी हुई है...अब हमारी द्वापर वाली शान तो नही रही पर तुम्हारे इन ब्लाग पुत्र पुत्रियों को समझावो कि हमें वही पितामह वाला सम्मान दिया करें और हमारी टिप्पणियों को महत्व दें....

पितामह की बात काटते हुये मिस समीरा टेढी बोली - पर पितामह आप भी ना .....अब क्या कहूं? आप अपने आप को समझते तो ब्लाग पितामह हैं पर बाते बिल्कुल बचकानी चिरकुटई टाईप करते हैं तो आपको कौन ब्लाग पितामह मानेगा? आखिर आपका आचरण भी तो वैसा ही होना चाहिये ना?

इतनी देर से खामोश बैठे गुरू द्रोणाचार्य ने उचकते हुये मिस समीरा टेढी का समर्थन करते हुये बोलना शुरू किया - पितामह आप ये क्यूं नही समझते कि अब ब्लागयुग में राजशाही नही लोक शाही चलती है. और आप अपने आपको अब भी ब्लागयुग का पुरोधा समझते हैं...ये भूल मत किजिये पितामह वर्ना आप पितामह तो दूर बल्कि पुत्रमह भी नही रहेंगे. इस ब्लागयुग में सब एक से बढकर एक हैं...जरा युग की नजाकत समझिये और ये रोना धोना बंद करके खुद कुछ ढंग की ब्लागिंग किजिये...फ़ोकट खेमेबाजी करके कब तक आप पितामह बने रहेंगे?

ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने गुरू द्रोणाचार्य की बातों से प्रसन्नता प्रकट करते हुये कहा - पितामह मुझे तो गुरू द्रोण की बाते बडी प्रीतिकर लगी. आप इनका कहा मानिये और फ़ालतू की टिप्पणियां करके अपने को पितामह कहलवाने के बजाये स्वयं कुछ स्वस्थ लेखन किजिये जिससे आपको लोग सच में पितामह समझ सकें.....और...

महाराज ताऊ धृतराष्ट्र कुछ और बोल पाते कि इतने में ही युवराज दुर्योधन अपने परम मित्र कर्ण के साथ राज दरबार में प्रवेश करते हुये चिल्लाये...ये क्या हो रहा है तातश्री? आखिर ये ब्लाग भारत कब तक चलेगी तातश्री? द्वापर में हम भले ही हार गये होंगे पर अब ये ब्लाग युग है इसमे हमको कौन हरायेगा? अब मेरे हाथ में गदा नही बल्कि की-बोर्ड और हाईस्पीड नेट कनेक्शन है और प्राक्सी सर्वर भी.......

(क्रमश:)

क्या है ताऊ महाराज के अंधे होने का राज?

पिछले भाग में आपने पढा था कि किस तरह ब्रह्मचारी सन्यासी ताऊ महाराज को बिल्ली पालने के जुर्म की वजह से इस संसार सागर में उतरना पडा. ताऊ और ताई दोनों ही काफ़ी खूबसूरत थे. जिन्होने ताऊ महारज धॄतराष्ट्र और ताई गांधारी को उस जमाने में देखा है, वो जानते हैं कि कितना खूबसूरत, आकर्षक और आदर्श जोडा हुआ करता था. लोग उनकी मिसाले दिया करते थे. फ़िर अचानक क्या हुआ? किसकी नजर लग गई कि ताऊ और ताई का यह जोडा एक बंदर और बंदरिया की शक्ल में बदल गया?

हुआ यूं कि शादी के कुछ दिन तक तो गाय भैंस बिल्ली सब पलती रही, दोनों जमकर जिंदगी की ब्लागिंग करते रहे, बडे हंसी खुशी में दिन कटते रहे. पर खाली खूबसूरती के दम पर कब तक गॄहस्थ की गाडी चलनी थी? गॄहस्थी चलाने के लिये काम धंधा, रूपया पैसा चाहिये. ताऊ के पास काम धंधे के नाम पर बाबा गिरी थी, अब शादी कर ली तो बाबा गिरी से आने वाला चढावा भी बंद हो गया. थक हार कर ताऊ ने छोटी मोटी चोरी लूट...डकैतियां डालना शुरू कर दिया. इन धंधो का जब ताई को पता चला तो उसने सुबह शाम मेड-इन-जर्मन से ताऊ की आरती उतारनी शुरू कर दी. ताऊ पर डबल मार पड रही थी. चोरी डकैती में पकडा जाये तो पुलिस का डंडा पडता और पुलिस से किसी तरह बच भी जाये तो ताई का लठ्ठ पडता. यानि इधर कुआं उधर खाई.... आखिर कितने दिन बेचारा ताऊ ये जुल्म सहन करता?

घोडा कूदनी आश्रम पर तपस्यारत ताऊ महाराज


आखिर ताऊ मूल रूप से तपस्वी बाबा तो था ही, उसने मन ही मन ताई को सबक सिखाने का फ़ैसला कर लिया और तपस्या करने के लिये घोडाकूदनी आश्रम चला गया. वहां ताऊ महाराज ने जमकर तपस्या शुरू कर दी. जल्द ही देवता प्रसन्न हो गया और ताऊ के सामने, हाथ में हुक्का लिये हुये प्रकट हो गया. देवता ने ताऊ को वरदान मांगने के लिये कहा.

ताऊ ने एक आंख खोलकर देखा कि देवता के हाथ में हुक्का है तो उसकी इच्छा भी हुक्का पीने की हो गई. ताऊ ने देवता से कहा कि मुझे तो वरदान में आप ये हुक्का ही दे दिजिये.

देवता बोला - ए ताऊ, तू इस हुक्के का क्या करेगा? ये कोई साधारण हुक्का नही है. तू इसे छोड और कोई दूसरा वरदान मांगले.

पर ताऊ तो ताऊ ठहरा, अड गया कि देना हो तो ये हुक्का ही दे दो वर्ना फ़िर से तपस्या शुरू करता हूं...हुक्का तो ले कर ही रहुंगा, तुम देवता हो, तुमको हुक्के का क्या काम? ये हम जैसे ताऊओं के काम की चीज है.

देवता ने ताऊ को समझाते हुये कहा - भक्त ये कोई साधारण हुक्का नही है. तुम खाम्ख्वाह इससे परेशानी में पड जाओगे. पर ताऊ नही माना. थक हार कर देवता ने वो हुक्का ताऊ को दे दिया.

ताऊ ने फ़टाफ़ट हुक्के में तंबाकू डालकर अंगारे डाले और पहला कश ही खींच कर धुंआ बाहर छोडा था कि उस धुंआ से एक बडा सा विशालकाय जिन्न पैदा होगया और हाथ जोड कर बोला - ए मेरे मालिक ताऊ, हुक्म करिये...खादिम को किस लिये याद किया है? मैं आपके तीन हुक्म बजा लाने के लिये आपकी सेवा में हाजिर हुं.... पर ये बात ध्यान में रखियेगा कि आप जो भी मांगेगे उतना ही आपकी पत्नि को स्वत: ही मिल जायगा. अब मुझे जल्दी आदेश दिजिये...एक बार मैं प्रकट हुआ तो बिना काम पुरा किये नही जाऊंगा और आपने मुझे काम नही दिया तो आपकी खैर नही...जल्दी मेरे आका...जल्दी...अब मेरे हाथ में खुजली शुरू हो गई है.....और जिन्न ने ताऊ के हाथ से लठ्ठ ले लिया.

जिन्न का ये रूप देखकर ताऊ को तो मन चाही मुराद मिल गई. उसने सोचा कि ताई अपनी सुंदरता पर बहुत इतराती है, अब देखता हूं कैसे इतरायेगी? ताऊ ने तुरंत कहा कि - ए मेरे हुक्के तू फ़टाफ़ट मेरा चेहरा बिगाड कर काले बंदर के जैसा कर दे. देखते देखते ताऊ वर्तमान बंदर के चेहरे वाला होगया. और उधर ताई का चेहरा भी काली बंदरिया जैसा होगया.

इसके बाद ताऊ ने सोचा कि ताई अपनी आंखों पर भी बहुत घमंड करती है...आज उनका भी काम तमाम कर देता हुं...ताऊ तुरंत बोला - ए मेरे हुक्के, तू मेरी दोनों आंखें फ़ोड दे....ताऊ के इतना कहते ही जिन्न ने ताऊ की दोनों आंखे फ़ोड डाली और हमेशा के लिये ताऊ को महाराज धॄतराष्ट्र बना डाला. उधर ताई भी अंधी हो गई.

ताऊ को इतने से भी संतोष नही हुआ. क्योंकि ताई के मारे हुये लठ्ठों से उसकी पीठ के अलावा आत्मा भी घायल हो चुकी थी. तुरंत फ़िर बोला - ए मेरे हुक्के, जल्दी से मेरे दोनों कान भी फ़ोड डाल...मुझे बहरा भी कर दे. इतना कहते ही जिन्न ने तुरंत ताऊ को बहरा बना डाला.

और यही राज है कि महाराज ताऊ हमेशा के लिये अंधे और बहरे होकर निष्पक्ष हस्तिनापुर का राज्य संभाल रहे हैं, उन्हे कुछ अन्याय दिखाइ ही नही देता. और हस्तिनापुर की प्रजा का दुर्भाग्य देखिये कि किस तरह निजी लडाई के चलते उनको अंधे और बहरों के शासन में रहना पड रहा है. यानि करनी धरणी ताऊ और ताई की...नतीजा भोग रही है प्रजा...कोई रोकने वाला नही ..कोई टोकने वाला नही.

जब शासनाध्यक्ष अंधा हो जाये तब उसकी अर्धांगिनी की ये जिम्मेदारी हो जाती है कि राज्य शासन की बागडोर संभालने में महाराज की सहायता करे. पर विधि का विधान देखिये कि ताऊ के हुक्के वाले जिन्न ने अपने वचनानुसार ताई को भी अंधी और बहरी बना डाला था....... ताई इसी शर्म के बारे कि लोग क्या कहेंगे कि हस्तिनापुर की महारानी अंधी और बहरी है? उसने हमेशा के लिये आंखों पर पट्टी बांध ली. और नतीजा यह हुआ कि राज दरबारियों को जो थोडा बहुत भ्रम था वह भी दूर होगया कि अब उन्हें कौन देखेगा? और अंधे बहरों को अंधे बहरे ही पैदा होने की संभावना होती है सो हस्तिनापुर का दुर्भाग्य देखिये कि राजकुमार दुर्योधन जन्म से ही अंधे और बहरे पैदा हुये.....हाय विधाता...बडा निर्दयी है तू तो...

अब कौन रोकने टोकने वाला है? धीरे धीरे महाराज और महारानी के अंधे बहरे होने की बात हस्तिनापुर के राज दरबारियों और मंत्रियों को लग गई...उन्होने देख लिया कि जब महाराज और महारानी ही अंधे और बहरे हैं तो हमको कौन रोकेगा? जम के लूट लो..शायद अगले जन्म में ये मौका मिले ना मिले. दुर्भाग्य कि इन राज दरबारियों के हाथों हस्तिनापुर के तोतले अनाथों की तरह यूं ही लुटते पिटते रहेंगे...महाराज ताऊ धॄतराष्ट्र के मंत्री संत्री किसी तोतले से डरते नही हैं...किसी की इनक्मटेक्स की जांच करवा देते हैं...किसी की सीडी की जांच...किसी की कुछ .. किसी की कुछ... झूंठे मामलों मे फ़ंसाकर उनका ध्यान मूल मुद्दों से हटाने में माहिर हैं..

(क्रमश:)