तेरी चोटी काट कर तेरे बाप के पास भिजवा दूंगी.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे क्यों बने हुये थे? उत्तर साफ़ है कि हस्तिनापुर जैसे विशाल साम्राज्य का संचालन करने के लिये कई बातों को अनदेखा करना पडता है. द्वापर में महाराज ताऊ अंधे बन कर राज्य चलाते थे. सिर्फ़ संजय की आंखों द्वारा ही देखते थे. जो कुछ संजय ने कह दिया वैसा ही आदेश कर डालते थे.

यूं लोग तो कहते हैं कि महाभारत का युद्ध श्री कॄष्ण की वजह से ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हार गये. पर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र कदाचित इस बात से इतफ़ाक नही रखते. महाभारत का युद्ध हारने के बाद, हार के कारणों पर जो जांच आयोग बैठाया गया था उसकी रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध हारने का कारण श्री कॄष्ण नही थे. युद्ध हारने के लिये स्पष्ट रूप से जांच आयोग ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र द्वारा १०१ पुत्र पैदा करने को कारण माना था. आयोग के निष्कर्ष में यह साफ़ साफ़ और बोल्ड अक्षरों में लिखा गया था कि १०१ पुत्रों को पैदा करने में महाराज ने अपनी ब्रह्मचर्य शक्ति गंवा दी जिसकी वजह से वो कमजोर होगये. हालांकि स्वयं महाराज इस बात पर यकीन नही रखते.


ताई गांधारी, ताऊ महाराज, युवराज दुर्योधन और पीछे युवरानी भानुमति चारा लेकर आते हुये


अभी अभी पिछले सप्ताह यही बात स्पष्ट हो गई जब अन्ना जी महाराज ने, कालू यादव महाराज द्वारा कठोर व्रत उपवास आंदोलन पालन पर आश्चर्य और संदेह, व्यक्त करने के, जवाब में कहा था कि "ब्रह्मचर्य की ताकत को दस बारह बच्चे पैदा करने वाले क्या जाने?

खैर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को तो युगों युगों के लिये हस्तिनापुर का राज्य संभालने के लिये वरदान मिला हुआ है. अब ये द्वापर तो है नही की महाराजी चलती रहेगी और जनता God save the king गाती रहेगी. अब जमाना प्रजातंत्र का है सो महाराज ने भी हस्तिनापुर का शासन संभालने की कला सीख ली है. द्वापर में महाराज अंधे ही थे पर कलयुग में वो अंधे के साथ साथ बहरे भी होगये हैं. मजाल जो किसी तोतले (जनता) की बात पर ध्यान देंवे? वो सिर्फ़ अपने कानून मंत्री की सलाह पर ही चलते हैं.

अबकी बार महाराज ने द्वापर जैसी भूल नही की बल्कि सिर्फ़ एक ही औलाद पैदा की यानि अपनी पूरी शक्ति शासन संभालने के लिये सुरक्षित रख ली और अन्ना जी महाराज द्वारा ब्रह्मचर्य शक्ति क्षीण करने के आरोप से भी बच गये.

एक रोज हमने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के अंदरूनी पारिवारीक जीवन में झांकने की कोशीश की और यह देखकर दंग रह गये कि द्वापर में सिर्फ़ ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे थे और ताई महारानी गांधारी ने पट्टी बांधी हुई थी. पर अब तो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे के साथ साथ बहरे, ताई भी बहरी, और घूंघट से आंखे बंद, ताऊ महाराज का सुपुत्र दुर्योधन, वो भी बहरा और मजे की बात ताऊ महाराज की पुत्र वधु भी बहरी.

हमे आश्चर्य हुआ कि इस प्रकार का राज परिवार है तो शासन किस तरह चलता होगा? पर हमने देखा कि शासन तो बडे आराम से चल रहा है....महाराज ठहरे अंधे बहरे...महारानी और राज परिवार नितांत बहरा...उनके कानों में अपनी मतलब की ही बात पहूंचती है जैसा उनके मन माफ़िक हो. तोतला (जनता) कभी कभी आकर राजमहल के सामने धरना आंदोलन कर जाता है वो अंधे और बहरे होने की वजह से महाराज तक पहुंचता ही नही.

मंत्रिमंडल में किदम्बरम, चपिल चिब्बल, चंबिका कोनी. कनीष किवारी, तनु किंघवी, शुभचिंतक चारा मंत्री कालू कादव, जैसे मूर्धन्य और ज्ञानी लोग भरे पडे थे सो हस्तिना पुर का राज चल रहा था. कभी कभी एक दो तोतले व्यक्ति शासन के खिलाफ़ सत्याग्रह किया करते थे... और जनता को भडकाया करते थे......उनमें से एक कामदेव बाबा को तो चपिल चिब्बल और चंबिका कोनी ने ही निपटा डाला था.... पर ये दूसरा तोतला कुछ भारी पड गया. असल में ताऊ महाराज की कोई गलती नही....वो तो महाराज की क्राईसिस मैनेजमैंट कमेटी ने कन्ना कजारे को भी बाबा कामदेव समझ लिया और यहीं गच्चा हो गया. असल में इस तोतले के पीछे हस्तिनापुर के सारे तोतले एक साथ सडकों पर आ गये... सडक पर, गांव में, गली में..जहां देखो वहीं पर तोतले ही तोतले इकठ्ठे हो गये... सो मजबूरी में ताऊ महाराज को इस तोतले की बाते माननी पडी. महाराज की चिंता को दूर करते हुये उनके सभी सलाहकारों ने प्रस्ताव पारित करके कमेटी के पास भेजा ही इस लिये है कि महाराज की वाहवाही हो जाये और प्रस्ताव लंबे समय तक यूंही पडा रहेगा...तब तक तोतले ठंडे पड जायेंगें.


आपको एक दिन का आंखों देखा हाल ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के राज परिवार का सुनाते हैं, जिससे आपको अंदाज हो जायेगा कि महाराज कैसे शासन चला रहे थे और उनके अंधे बहरे होने का क्या फ़ायदा था.

एक रोज सुबह सुबह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हुक्का गुडगुडा रहे थे कि उनको पुत्र दुर्योधन की आहट सुनाई दी. उन्होने उसे कहा, बेटा दुर्योधन, जरा मेरे लिये चाय तो बनवा ला.

अब दुर्योधन भी ठहरा बहरा, उसने समझा कि तातश्री उसे खेत जोतने का कह रहे होंगे? अब युवराज हैं जो समझ लिया सो समझ लिया, उनसे कोई सवाल तो पूछने से रहा. युवराज की द्वापर में भीम ने गदा मार कर जो जंघाये तोडी थी वो अभी तक ठीक तरह से जुडी नही थी. इसी कारण युवराज थोडा लंगडाते हुये चलते थे. और उसी महाभारत युद्ध में भीम की गदा के कुछ सशक्त प्रहार युवराज दुर्योधन के मुंह पर भी हुये थे जिसके फ़लस्वरूप युवराज का मुंह अभी तक भी बांका टेढा ही रह गया था. इन दिनों युवराज दुर्योधन तातश्री के पूरे आज्ञाकारी थे सो चुपचाप हल कांधे पर रखा और बैलों को हांकते हुये खेतों की तरफ़ निकल पडे.

रास्ते में एक जगह चोराहे पर श्री सतीश सक्सेना खडे थे युवराज दुर्योधन को वहां से गुजरते हुये देखा तो पूछने लगे कि रामलीला मैदान को कौन सी सडक जायेगी?

युवराज तो ठहरे बहरे....उन्होने सतीश सक्सेना के हावभाव से समझा कि ये मुझे बैल बेचने के लिये पूछ रहा है. सो
युवराज दुर्योधन ने नाराज होकर कहा - नही, मुझे बैल नही बेचने हैं.

सक्सेना जी बडे आश्चर्य चकित हुये और बोले - भाई, मुझे बैल नही खरीदने, मुझे तो रामलीला मैदान जाना है अन्ना के अनशन में, उसका रास्ता बता दो.

दुर्योधन ने फ़िर समझा कि ये मुझे बैल बेचने के लिये ज्यादा कीमत देने की बोल रहा है. सो युवराज बोला - तुम जानते नही हो मैं कौन हुं? तुम दो टके के तोतले (जनता) होकर मेरे बैल खरीदोगे? यानि हस्तिनापुए के युवराज के बैल खरीदोगे? और ये कहते हुये वो सतीश सक्सेना को मारने के लिये दौडा जैसे बाबा कामदेव के पीछे दिल्ली पुलिस दौडी थी. अब सतीश सक्सेना भी क्या करते? अन्नागिरी करने घर से निकले थे सो चुपचाप युवराज दुर्योधन को प्रणाम करके शांत किया.

राजपुरूषों का यह खास गुण होता है कि कोई उनके सामने झुक जाये तो उसे कुछ और दें या ना दें पर उसे अभय दान अवश्य दे देते हैं. अब इन राजपुरूषों का ये तोतले क्या बिगाड लेंगे? कर लो, क्या कर लोगे? ये खानदानी अंधे तो थे ही अब प्रजातंत्र ने इनको ५ साल बहरे होने का लाईसेंस भी दे दिया. यानि द्वापर में महाराजी चलती थी सो अंधे बन कर शासन किया करते थे अब कलयुग में प्रजातंत्री चलती है सो बहरे होने की और सुविधा मिल गई.

युवराज दुर्योधन खेत में पहुंचकर हल जोतने लगे. हालांकि खेतों में फ़सल खडी थी उसी पर हल चला दिया क्योंकि तातश्री के आज्ञा कारी पुत्र जो बन गये थे अब कलयुग में. थोडी देर बाद उनके लिये कलेवा यानि ब्रेक फ़ास्ट लेकर युवरानी भानुमति आ गई.

लंच की पोटली सर से उतार कर उसने युवराज को आवाज लगाई. युवराज दुर्योधन बैल छोडकर वहां आ बैठे और लंच लेने लगे. युवराज बोले - भानुमति, प्रिये आज तुम्हारे हाथों से रोटी और सब्जी बडी स्वादिष्ट बनी है और छाछ का तो कहना ही क्या? बस मुक्का प्याज और ले आती तो मजा आ जाता.

अब युवरानी भानुमति भी इस जन्म में बहरी थी. और उसके बहरेपन का कारण कोई राजनैतिक नही था. वो तो द्वापर में किसी भी पचडे में नही थी. बस द्वापर में युवराज दुर्योधन द्वारा अपने प्रति किये गये उपेक्षापूर्ण और रूखे व्यवहार की वजह से बहरी हो गई थी.

भानुमति ने समझा कि ये मेरी लाई हुई रोटी और सब्जी की बुराई कर रहा है. अब युवरानी भी कोई द्वापर वाली सीधी साधी भानुमति नही है, अब वो गांगेय नरेश की सीधी साधी पुत्री ना होकर पक्की हरयाणवी चौधरी की बेटी की तरियां तेज तर्राट है. सो टका सा जवाब दिया - तन्नै खानी हों त खाले नही तो तेरी बेबे को बोल जाके, रोटी सब्जी उसने बनाई है मैने नही. अब दोनों बहरे, अपनी अपनी बके जा रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे अन्ना और उनकी टीम जन लोकपाल बनाने का कह रहे थे और चपिल चिब्बल और चंबिका ने अपनी मर्जी का सरकारी लोकपाल का मसौदा बना दिया था.

युवराज तो खा पीकर थोडी देर वहीं लेट कर सो गये, फ़िर उठकर राजमहल में चले गये. और जाकर तातश्री और माताश्री के पास बैठ गये. युवरानी भानु ने भैंसों के लिये चारा काटा और उस गठ्ठर को लेकर घर लौट चली.

भानुमति ने घर पहुंचकर ताई गांधारी को सुनाते हुये ऊंचे स्वर में कहा - ए बुढिया, टिक्कड ढंग से बनाया कर, तेरा छोरा खाने में घणै नखरे करता है और इब मेरे तैं उसके नखरे नही उठाये जाते हैं. यो द्वापर कोनी जो मैं चुपचाप सुण ल्यूंगी...इब परजातंतर है...समझ लिये...

ताई भी बहरी थी सो उसने समझा कि मैं जो गहने और नया घाघरा लुगडी पहने बैठी हूं, इसकी वजह से ये मुझे कुछ जली कटी सुना रही है सो तुरंत बोली - ये गहने जेवर तेरे बाप के यहां से आये हुये नही है, ये तो मुझे मेरे मायके गांधार से मिले हुये हैं... और यो लुगडा तो मेरा भाई शकुनी परसों राखी बंधाई म्ह दे के गया है.... ज्यादा जबान चलायेगी तो तेरी चोटी काट कर तेरे बाप के पास भिजवा दूंगी.

हे भगवान, ये क्या होगया है ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और उनके कुणबे को? इतने बडे हस्तिनापुर राज्य को क्या अंधा और बहरा होकर चलाया जा सकता है? उस तोतली जनता की आवाज बिना लठ्ठ खाये महाराज के कानों में कभी पहूंचेगी भी? क्या होगा उस प्रस्ताव का जो, स्टेंडिंग कमेटी के पास गया है? क्या ये अंधे बहरों का राज परिवार और मंत्रिमंडल उसे पास करके तोतलों (जनता) की बात सुनेगा या उसे ठंडे बस्ते में पटक कर यूं ही मजे मारता रहेगा?

ताऊ की यादों में : डाक्टर अमर कुमार

ऐसा कोई दिन नही जाता जब मुझे समीर जी की कोई मेल ना मिलती हो. कभी कभी सिर्फ़ दो शब्द, ना कोई औपचारिकता ना कोई लाग लपेट, अक्सर मैं भी ऐसी ही मेल करता हूं, वैसे ही जवाब भी. शायद दोनों तरफ़ से आदत सी हो गई है कि दिन भर में दो चार मेल इस तरह की हो ही जाती है. अन्य मेल चेक करते समय समीर जी की मेल कभी भी बीच में टपक सकती है. उस दिन भी अचानक एक मेल प्रकट हुई....मैने चेक किया यह सोचकर कि दो शब्द ही तो होंगे....पर जो पढा, वो पढना पूरी जिंदगी का सफ़र था....मेल में लिखा था ताऊ, अभी अति दुखद समाचार मिला कि डॉ अमर कुमार नहीं रहे. समीर

एक पल में वो इंसान निस्पॄह भाव से विदा हो गया जो मेरे लिये गुरू और गुरू भी कबीर की श्रेणी का था, कबीर का शिष्य होना सहज नही है, क्योंकि कबीर ने अपने शिष्यों से बिना लठ्ठ उठाये कभी बात ही नही की.

मेरे भौतिक एवम आध्यात्मिक जीवन में कबीर मेरे आदर्श रहे हैं, और यहां ब्लाग जगत में भी साक्षात कबीर मिल गये. डाक्टर साहब में पूरी क्षमता से कबीर हो जाने की क्षमता थी. वही मस्तमौला फ़क्कड स्वभाव, खरी खरी कहने की क्षमता, ना कोई अपना, ना पराया. सारा जग अपना. हंसता खिलखिलाता स्वभाव...मजाक करने की आदत....जोक्स के मेसेज करना....यानि अपनी संपूर्ण क्षमता से कबीर. निर्मल सादगी लिये......

जैसा कि सभी जानते और मानते भी हैं कि हिंदी ब्लाग जगत में सबके अपने अपने मठ हैं, कमेंट्स का लेन देन भी अपने अपने मठ की सीमाओं में ही होता है वहीं पर डाक्टर अमर कुमार जी का ना कोई मठ था ना कोई सीमाएं थी. जिस तरह कबीर हाथ में लठ्ठ लिये सच कहने के लिये प्रसिद्ध थे उसी तरह डाक्टर साहब ने कभी भी ये नही देखा कि वो किस की पोस्ट पर कमेंट कर रहे हैं? उनके लिये सिर्फ़ पोस्ट का कंटेंट ही अहम था. और इसी का फ़ल है कि उनकी यत्र तत्र सर्वत्र फ़ैली हुई टिप्पणियां आज दिखाई देती हैं.

डाक्टर अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुये मैं उनसे जुडी हुई यादों को यहां क्रम बद्ध पोस्टों में लिखने का प्रयास कर रहा हुं.



मुझे याद आ रही है उस टेलीफ़ोन काल की, जो मेरा उनका प्रथम टेलिफ़ोनिक संवाद था. शायद वो रविवार का दिन था...छुट्टी का दिन...समय तकरीबन दोपहर बाद ...तीन बजे के आसपास का....

लंच के बाद साप्ताहिक नींद पूरी करने का समय.....नींद की खुमारी आना शुरू हो चुकी थी.

अचानक फ़ोन की घंटी बजी.....इच्छा हुई कि फ़ोन काट दूं.....फ़िर पता नही क्या हुआ कि फ़ोन उठा लिया.

हैल्लो ...हां जी कौन बोल रहे हैं?

उधर से अंजानी सी आवाज आई... कौन बोल रहे हैं?

मैने कहा - फ़ोन आपने लगाया है...फ़िर आपको मालूम होगा कि आपने किसको लगाया है? बोलिये क्या काम है?

उधर से आवाज आई - जनाब मैं धार (इंदौर के पास का एक शहर) पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर बोल रहा हूं.

अब पुलिस इंस्पेक्टर का नाम सुन कर तो अच्छे अच्छे हेकडी भूल जाते हैं फ़िर ताऊ क्या चीज है? हमने कहा - आदेश किजिये सर.

उधर से आवाज आई - आदेश का क्या काम? आपके नाम का गिरफ़्तारी वारंट है मेरे पास....

अब हम जो आराम से पलंग पर पसरे थे, तुरंत अटेंशन की मुद्रा में बैठ गये और बोले - सर आपको कोई गलतफ़हमी हुई है...मेरे नाम से गिरफ़तारी वारंट का क्या काम? जरूर आपसे कोई भूल हुई है....

उधर से आवाज आई - आपका नाम .....(ताऊ नही कहकर हमारा असली नाम पुकारा) है?

मैने कहा - हां हुजूर, नाम तो ये मेरा ही है.

आपका फ़ोन नंबर ****3654** है?

मैने कहा - जी नंबर तो यही है.

हां तो फ़िर आपके खिलाफ़ मेरे पास नान बेलेबल वारंट है....

अब इतने वार्तालाप के पश्चात ये तो समझ आ गया कि आदमी ये इंटरेस्टिंग है....पर पुलिस का क्या काम? फ़िर जिस नंबर से फ़ोन आया था उसे देखा तो यह पक्का होगया कि ये नंबर मध्य प्रदेश का तो नही है... और ये फ़ोन करने वाला आदमी बहुत ही नजदीक का परिचित है, पर आवाज सुनी हुई नही लग रही है. अंतत: हमने कहा कि आपके पास जब नान बेलेबल वारंट ही है तो आकर गिरफ़्तार कर लिजिये....

बस हमारे इतना कहते ही उधर से हंसते हुये आवाज आई - ओये ताऊ, तेरे को कितने दिन से ढूंढ रहा था तू आज पकड में आया.....

ये शब्द सुनते ही अनायास मेरे मुंह से निकला - अरे गुरू जी प्रणाम.... धन्य भाग जो आज आपसे बात हो रही है....

फ़िर उधर से आवाज आई - कौन गुरूजी? किसका गुरू जी?

मैने कहा - डाक्टर साहब अब हम भी ऐंवई ताऊ नही हैं, आप डाक्टर अमर कुमार जी हैं....

उधर से आवाज आई - वाह ताऊ वाह.... तेरे से यही उम्मीद थी, मान गया तेरे को......

इसके बाद करीब डेढ घंटे बात हुई. घर परिवार की... बच्चों की...कलकता में रहने वाले उन परिचितों की जो बातों बातों में उनके और मेरे दोनों के परिचय में निकल आये....तमाम दुनियां जहान की बातों मे कब इतना समय बीत गया पता ही नही चला.....

(शेष अगले भागों में)

ये ताऊ गिरी है या अन्ना गिरी?

आजकल पूरे देश में अन्ना गिरी चल रही है या कहें कि पूरा भारत अन्ना मय हो गया है. अन्ना की सारी कोशीशें सरकारी भ्रष्टाचार से जनता को राहत दिलाने की हैं पर एक तरफ़ निजी कंपनियां भी ग्राहकों को परेशान करने और उनका शोषण करने में पीछे नही हैं. ऐसी ही एक कंपनी से ताऊ भी तंग आ गया और आखिर अपनी ताऊ गिरी दिखा ही दी.

ताऊ को टेलीफ़ोन का अनाप शनाप बिल मिला और परेशान सा कल दोपहर ताऊ एयरटेल टेलीफ़ोन कंपनी के आफ़िस में पहुंचा . वहां उसने अपनी समस्या के बारे में बातचीत करनी चाही परंतु जैसा कि इस कंपनी का रवैया है, ताऊ को टरकाने के चक्कर में हीले हवाले देने लगे.

ताउ ने अपनी समस्या के हल के लिये बहुत मिन्नते की पर कंपनी के कर्मचारियों ने ताऊ को बेवकूफ़ समझते हुये कोई भाव नही दिया और वहां का कर्मचारी बोला - आप बाद में आना अभी सरवर डाऊन है.

अब ताऊ को क्या पता कि सरवर का अप और डाऊन क्या होता है? ताऊ परेशान तो था ही, यह सुनकर उसको और जोरदार गुस्सा आगया और उसका हाथ सीधा अपने लठ्ठ पर गया. परंतु आजकल अन्ना के प्रभाव से ताऊ का भी थोडा हॄदय परिवर्तन हो चुका है सो ताऊ बडी शांति से अपने गुस्से पर काबू रखते हुये वहां से बाहर निकल आया, दो मिनट अन्ना का स्मरण किया और फ़िर उसने कंपनी के आफ़िस का शटर नीचे गिरा कर उस पर बाहर से ताला लगा दिया और सीधे अपने घर आगया.

अंदर बैठे कर्मचारी जो अब तक ताऊ के मजे ले रहे थे, वो अब घबरा गये. शटर ठोंकने लगे, पर ताऊ तो ताले की चाबी जेब में डालकर अपने घर जा चुका था सो थक हार कर कंपनी के कर्मचारियों ने पुलिस को मदद के लिये फ़ोन किया, बडी देर बाद पुलिस ने आकर बाहर से ताला तोडकर कर्मचारियों को बाहर निकाला.

मजे की बात यह कि टेलीफ़ोन कंपनी वाले ताऊ के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखाने को भी तैयार नही हुये. मैनेजर ने पुलिस को कहा कि - आप तो जाईये, यह हमारे और ताऊ के बीच आपस का मामला है, हम स्वयं निपट लेंगे.

ताऊ ने अच्छा किया? या बुरा किया? आपकी क्या राय है?



यह पूरी खबर पढने के लिये इमेज पर चटका लगाकर पढ लिजिये.

अगर लामप्याले और मिस समीला टेढी के कहने पर चले तो....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र राजमहल के तलघर में बने अपने गुप्त कक्ष में चिंता मग्न बैठे हुये हैं. पास ही मिस समीरा टेढी गमजदा बैठी हुई है. दोनों के चेहरे पिटे हुये से लग रहे हैं. जब से वो तोतला व्यक्ति राजमहल के बाहर से ऊलजलूल बक कर गया है, तब से ही ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र मानसिक रूप से अस्थिर से हो गये हैं. पिछले दो दिनों के ताजा हालात जानकर महाराज और भी चिंतित हो गये हैं. वैसे ताऊ महाराज कर भी क्या सकते हैं? शायद वो तो महाभारत काल में भी नाम के महाराज थे और आज भी कोई फ़र्क नही हैं. महाराज ताऊ की रोनी सूरत से अच्छे अच्छे धोखा खा जाते हैं.

चिंता मग्न ताऊ महाराज, बेशर्म रामप्यारे एवम गमजदा मिस समीरा टेढी


हमेशा अपने बडे बडे दांत फ़ाडने वाला, लंबे कानों को इतराकर हमेशा ऊंचे रखने वाला और आंखों को ऊंची नीची नचा कर बात करने वाला रामप्यारे भी अपनी गर्दन झुकाये झेंपते हुये खंबे की आड में बैठ गया है, पूरे माहोल में एक सन्नाटा सा छाया हुआ है.

मिस टेढी और रामप्यारे को ये अंदाज तक नही था कि बाजी इस तरह हाथ से फ़िसल जायेगी? ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र महाभारत काल में युद्ध हारने के बाद का समय याद करके अपने अंतर्मन में हिल उठे थे. महाराज को अभी यहां का राजकाज संभाले हुये कुछ ही समय तो हुआ था... अब वो रामप्यारे और मिस समीरा टेढी के मजबूत कंधों पर राजकाज का बोझ डालकर चैन की बंशी बजाने लगे थे वर्ना तो महाराज का जीवन हमेशा ही झंझावातों से घिरा हुआ ही रहा है.

रामप्यारे ने महाराज को गमगीन देखकर बोलना शुरू किया : हे हस्तिनापुर सम्राट , ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र आपकी जय हो! महाराज आप चिंता क्यों करते हैं? अभी भी बाजी हाथ से नही गई है. मेरे रहते आप चिंता ना करें, आप मुझ पर यकीन करें, मेरे कानून ज्ञान का भरोसा करें....मैं इस संकट से आपको निकाल ही लूंगा....आप थोडा धैर्य धरिये.....

रामप्यारे को बीच में ही टोकते हुये मिस समीरा टेढी बोली - रामप्यारे जी, आप का कानून भगवान जाने कब काम आयेगा? आपने ही मुझे भी उलटी सीधी पट्टी पढाकर अपने साथ सवाल जवाब में बिठा लिया, और मैं भी कर्मजली..जनमजली आपकी बातों में आकर जनता से उल्टा सीधा कह बैठी...आपको पता है सारे हस्तिनापुर की जनता सडकों पर उतर आयी है...जनता को अब रोकपाल बिल से कम कुछ भी मंजूर नही है. और आप अब भी कानून की दुहाई दे रहे हैं..?

रामप्यारे ने मिस टेढी की बातें सुनकर अपनी गर्दन फ़र्श में घुसेड ली और अपने खुरों से फ़र्श को कुरेदने लगा.....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र कुछ बोलना ही चाहते थे कि इतने में ही राजमहल के बाहर से उसी तोतले व्यक्ति की जोर जोर से आवाज आने लगी....वो बोले जा रहा था....अले ताऊ महालाज...तुम कुछ तो शलम कलो...तुम्हारी राज करने की ख्वाहिश ने महाभारत तलवा डाला था जबकि तुम जानते हो कि तुममें हस्तिनापुर के महाराज बनने की औकात नही थी और अब भी तुम्हारी इसी राज करने की इच्छा ने सारे हस्तिनापुर की जनता का जीवन नर्क बना डाला है....ताऊ महालाज अब भी सुधल जावो और जनता के हक जनता को सौंप दो...अगर लामप्याले और मिस समीला टेढी के कहने पर चले तो इनका तो कुछ नही बिगडेगा...हस्तिनापुर के महाराज होने नाते अब भी इतिहास तुमको माफ़ नही तलेगा.

तोतले की बात सुनकर रामप्यारे और मिस समीरा टेढी का चेहरा तमतमा गया अगर उनका बस चलता तो उस तोतले की अभी अर्थी उठवा देते और ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अब तक तो बुढ्ढे और अंधे होने का नाटक करते आये थे अब शायद बहरे होने का भी नाटक करने लगे? इतनी झन्नाटेदार आवाजे, जो पूरे हस्तिनापुर में गूंज रही हैं, वो उन्हें सुनाई क्यों नही देती? शायद ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे के साथ साथ सच में ही बहरे भी होगये हैं.....

अंधे ताऊ महालाज धॄतराष्ट्र....तानून मंत्री लामप्याले...और मिस समीला टेढी...?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अपने राजमहल में अपने राज्य के नियम निर्माण मंत्री रामप्यारे और अपनी खास सलाहकार मिस समीरा टेढी के साथ गंभीर चिंतन की मुद्रा में बैठे हैं.

ताऊ महाराज : रामप्यारे, ये क्या हो रहा है? हम तो सीधे साधे स्पष्ट रूप से अंधे महाराज हैं जो इस हस्तिनापुर राज्य की बागडोर मजबूरी में ढो रहे हैं. तुम जानते हो कि हम इस राज्य के असली हकदार नही है, बल्कि हम किसी दूसरे की प्रतिक्षा में इस हस्तिनापुर के महाराज बने हुये हैं. आखिर हम कब तक प्रतिक्षा करें?

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, अपने नियम-निर्माण प्रमुख रामप्यारे
एवम आल-इन-वन मंत्री मिस समीरा टेढी के साथ मंत्रणा करते हुये


हमेशा की तरह अपने बडे बडे दांत दिखाता हुआ रामप्यारे बोला : ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र, मेरे रहते आप क्यूं चिंता करते हैं? मैं हूं ना आपका नियम निर्माण मंत्री, सबको कुछ नियम कानून के पेंच निकालते हुये निपटा दूंगा.

ताऊ महाराज बोले : पर रामप्यारे, अब तो ये कन्ना कजारे जैसे लोग सीधे मुझे ही ललकारने लगे हैं? अनशन की धमकी देने लगे हैं और तो और ८० साल का बुढ्ढा कहकर मेरी औकात तक बताने की हिम्मत कर रहे हैं... ये कोई अच्छी बात है क्या? जब मैने आंख और कान बंद करके तुमको और समीरा जी को सारे हस्तिनापुर की अप्रत्य्क्ष जिम्मेदारी सौंप रखी है तो ये सीधे मुझे पत्र क्यों लिख रहे हैं? क्या वो जानते नही कि हम मजबूर और अंधे महाराज हैं?

रामप्यारे बोला : महाराज आप व्यर्थ चिंतित हो रहे हैं...राजकाज थोडी सख्ती से चलाना पडता है. कोई भी ऐरा गैरा आयेगा और वो कहेगा कि ऐसा ऐसा कानून बनाओ...तो क्या हम बना देंगे? बोलिये...

ताऊ महाराज : बात तो तुम्हारी सही है पर ना जाने हमें एक अज्ञात सा भय सता रहा है...हमें कुछ अनहोनी सी दिखाई देने लगी है. हम पत्र का जवाब क्या दें?

रामप्यारे : महाराज आप कि छवि तो एक दम साफ़ और इमानदार महाराज की है और आप स्वयं झूंठ बोल रहे हैं..जब आपकी आंखे ही नही हैं आप अंधे हैं तो आपको अनहोनी दिखाई कैसे देने लग गई? महाराज आप तो साफ़ कह दिजिये कि इन छोटे मोटे कामों के लिये हमारे राज्य के पुलिस प्रधान से बात करें...मुझे इतने बडे राज्य की जिम्मेदारी उठानी पडती हैं....इन कामों के लिये मुझे फ़ुरसत नही है.

ताऊ महाराज : वाह रामप्यारे वाह, ये तुमने सही कहा, तुम वाकई हमारे नियम निर्माण मंत्री बनने के सर्वथा काबिल हो.

इसी बीच काफ़ी देर से चुपचाप बैठी हुई मिस समीरा टेढी बोली : ताऊ महाराज, मैं रामप्यारे जी की बात से बिल्कुल सहमत हूं. और मैं चाहती हुं कि अब मैं और रामप्यारे जी बाहर जाकर जनता को आपकी और कानून की राय से अवगत करा दें.

राजमहल के बाहर जनता हुजूम बनाकर कुछ जानने को आतुर खडी थी. बाहर निकल कर मिस समीरा टेढी ने बोलना शुरू किया :- प्यारी जनता जनार्दन, आप ही फ़ैसला करें कि ये मुठ्ठी भर लोग, आपके प्यारे और आदरणीय ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को बुढ्ढा कहने लगे हैं और सरकार के कामकाज में बाधा डालने की कोशीश में लगे हैं. आप जानते हैं कि आपके महाराज ताऊ एक नेक इमानदार और सर्वप्रिय सम्राट हैं. अब महाराज हर ऐरे गैरे से तो बात नही कर सकते ....अगर कोई कानून वानून बनाने की जरूरत है भी तो महाराज और उनकी मंत्री परिषद बनायेगी...जनता को कानून बनाने से क्या लेना देना?

जनता में से एक आवाज आई....पर जनता की जरूरत के हिसाब से रोकपाल कानून बनने चाहिये...

उस व्यक्ति को डपटते हुये मिस टेढी ने बोलना शुरू किया - अच्छा तो अब तुम कानून बनाना सिखाओगे हमें? अरे मूर्ख...जनता, कानून तो हमारे कानून के ज्ञानी रामप्यारे जी बनावायेंगे...और जो रोकपाल बिल जनता के हक में है वो वाला रोकपाल कानून रामप्यारे जी ने बनाकर महाराज और मंत्री परिषद के सदस्यों के सामने पटक दिया है.

इसी बीच रामप्यारे जी बोले - प्यारी जनता, आप चिंता मत करिये और इन बेफ़ालतू लोगों के बहकावे में मत आईये, आपको इनसे कुछ मिलने वाला नही है.....और ये कन्ना कजारे और करविंद बेजरीवाल जैसे लोग टीवी कैमरों की नजर में आकर अपनी पहचान बनाने की कोशीश कर रहे हैं, इसके अलावा कुछ नही. आप भ्रमित ना हों और अपना विश्वास और भरोसा ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और उनकी मंत्री परिषद में बनाये रखिये.

इस के बाद मिस समीरा टेढी बोली :- और आप लोग एक बात अच्छी तरह समझ लिजिये कि हमारे कानून के अनुसार अगर किसी ने हमारे महाराज ताऊ को बुढ्ढा कहा या अनशन करने की कोशीश भी की तो उनपर कानून के मुताबिक ब्लाग पुलिस की कठोर कार्यवाही की जायेगी. अब आप चुपचाप अपने अपने घर निकल लो और कानून को अपना काम करने दो.

जनता में से एक तोतला बोलने वाला व्यक्ति उठ कर जोर से चिल्लाकर पूछने लगा : अले तोई मुझे ये तो बताओ कि इस हस्तिनापुर राज्य को चला तौन रहा है? अंधे ताऊ महालाज धॄतराष्ट्र....तानून मंत्री लामप्याले...या मिस समीला टेढी...? इस राज्य का तोई मालिक भी है या सब अपने अपने तलीके से जनता का खून चूसते लहोगे?

इस तोतले की बात पर मुंह बिचकाते हुये रामप्यारे और मिस समीरा टेढी अंदर राजमहल में जाकर महाराज को सब जानकारी देने लगे. और रामप्यारे ने महाराज ताऊ को आश्वस्त किया कि वो चैन से सोयें, कल सुबह तक मैं कानून के दायरे में सबको अंदर जेल में डलवा दूंगा...आपका कहीं नाम भी नही आयेगा...सब कुछ सरकारी कानूनों के अंतर्गत होगा....

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र : पर क्या ऐसा हो पायेगा कि सब कुछ कानून के अंतर्गत निपट जायेगा?

रामप्यारे बोला - अरे महाराज, आप मुझे जानते नही हैं क्या? अभी थोडे समय पहले मैने और समीरा जी ने काका कामदेव का क्या हाल किया था? आप बेफ़िक्र हो जाईये...

इस पर महाराज ताऊ धृतराष्ट्र अंधे होने के बावजूद भी आसमान में देखते हुये कल के बारे में सोचते नजर आये.



ये है ताऊ के जीवन का असली राज

ताऊ आज भी कुछेक लोगों के लिये रहस्य ही बना हुआ है. ताऊ कौन है? क्या है उसका नाम गाम, पता? शायद कुछ लोग जानते हैं और कुछ जो सब कुछ जानने का दावा करते हैं वो कुछ भी नही जानते. अक्सर लोग यह भी जानना चाहते हैं कि ताऊ, तुम ताऊ कैसे बने? ताऊ जवाब देता हैं कि भाई हमारे जीवन में जब से ताई का आगमन हुआ है उसके बाद ही हम ताऊ बने वर्ना आदमी बडे काम के थे. लोग इस जवाब को उटपटांग सा मानते हैं और समझते हैं कि ताऊ का दिमाग सटका हुआ है. लोगों की रामप्यारी के बारे में भी जिज्ञासा रहती है कि ये क्या वाकई बिल्ली है? कहां से आई...इत्यादि इत्यादि...?

आज हम सब बातों का खुलासा कर ही देते हैं, पर इसके लिये आपको थोडा पीछे चलना होगा. बात उन दिनों की है जब बाबा ताऊआनंद, गुरू समीरानंद के साथ मां नर्मदा के तट पर स्थित अपने बंदरकूदनी योगाश्रम में बैठकर ब्लाग तपस्या किया करते थे.

बंदरकूदनी आश्रम में तपस्या करते हुये गुरू चेले


दोनों गुरू चेले ऐसी ब्रहम चर्चा किया करते थे जैसे ब्लाग मठाधीष अपने चेले चपाटों से किया करते हैं कि कैसे कहां टिप्पणी करना है? किसको टिप्पणी नही देना है, कब कहां किसकी टांग खींचना है? किसकी खटिया के नीचे आग लगाना है? कहां पर मामा मारीच को भेजना है?, कहां पर सुर्पणखां की ड्यूटी लगानी है? कहां ब्लाग सम्मेलन करवाना है? और उस सम्मेलन में किसको बुलाना है? किसको किराया भत्ता देना है? किसको खो करना है? खो करना....मतलब किसको आने से रोक देना है, किसका स्ट्रिंग आपरेशन करवाना है.....किसकी चर्चा में ऐसी तैसी करनी है? इस प्रकार उच्च्कोटि की ब्लाग ब्रह्म साधना दोनों गुरू चेले किया करते थे और सदैव इस शाश्त्र चर्चा में लीन रहा करते थे. गुरू ने एक महा ग्रंथ भी इस विषय में अपने हाथ से लिख रखा था.

समय ऐसे ही गुजरता जा रहा था कि एक दिन अकस्मात गुरू समीरानंद बोले - वत्स ताऊनाथ, हम और अधिक ज्ञान प्राप्ति और घनघोर तपस्या के लिये इसी समय पाताल लोक प्रस्थान करना चाहते हैं.

चेला ताऊनाथ बोला - गुरूदेव हम भी आपके साथ ही चलूंगा.

गुरू समीरानंद बोले - वत्स, मूर्खता मत करो, यहां बंदरकूदनी पर हमने अपना मठ बडी मुश्किल से खडा किया है, तुम यहां इसकी देखभाल करो, हम कनाडे (पाताल लोक) जाकर वहां एक नया मठ खडा करेंगे, हमने सुना है वहां डालर बरसते हैं.....हम समय आने पर वापस यहीं बंदरकूदनी आश्रम पर लौटेंगे. अब ये बंदरकूदनी आश्रम तुम्हारे हवाले करके हम कनाडे के लिये प्रस्थान करते हैं और महा ग्रंथ शाश्त्र का पूरा ध्यान रखना, ये शाश्त्र बडा कीमती है, कहीं खराब ना हो जाये. और गुरू समीरानंद वहां से रवाना होगये.

इसके बाद बाबा ताऊनाथ बंदरकूदनी आश्रम के मठाधीष बनकर ब्लाग ब्रह्मचर्चा की बीन बजाने लगे. एक दिन बाबा ताऊनंद ने देखा कि कुछ चूहे आश्रम में घुस आये हैं और शाश्त्र की पवित्र किताब को कुतर गये हैं. अब बाबा ताऊनाथ का ध्यान ब्लाग ब्रह्म चर्चा में कम और शाश्त्र की देखभाल में ज्यादा लगने लगा.

आखिर एक दिन आश्रम के परम भक्त सतीश सक्सेना ने सलाह दी की ताऊ महाराज, आप एक बिल्ली पाल लिजिये, वो चूहे खा जायेगी और आपको शाश्त्र की चिंता नही करनी पडेगी, आप आराम से ब्लाग ब्रह्म चर्चा में लीन रह सकेंगे. और उन्होने ताऊ को एक बिल्ली भेंट कर दी, जिसे आप रामप्यारी के नाम से जानते हैं.

यहां तक भी ठीक था, पर अब रामप्यारी के लिये दूध की जरूरत पडने लगी, महाराज ताऊ और भी परेशान रहने लगे, तभी आश्रम के महा परम भक्त डाक्टर टी.सी. दराल ने सलाह दे डाली - अरे बाबा ताऊ महाराज, इसमै कुण सी बडी बात सै? नु करो कि रामप्यारी के लिये एक झौठडी (भैंस) आश्रम में बांध लो, बस रामप्यारी हमेशा दूध पिया करेगी और चूहों से महा ग्रंथ शाश्त्र की रखवाली करती रहेगी, बाबा ताऊनाथ को ये फ़ड्डा बहुत पसंद आया. दराल साहब ने आश्रम में एक ताजा ब्याई हुयी झौठडी काटडे के साथ में भिजवादी.

अभी तक तो शाश्त्र, चूहे और रामप्यारी की ही चिंता करनी पडती थी अब नई मुसीबत खडी हो गई...झौठडी को भी चारा पानी देने की जिम्मेदारी बढ गई....साथ में काटडा भी परेशान करने लगा...ताऊ महाराज परेशान....परेशान बैठे थे कि इतनी ही देर मे आश्रम के परम भक्त राज भाटिया पधारे.

बाबा ताऊ महाराज ने सारी समस्या बतायी. भाटिया जी बोले - महाराज ताऊ श्री मेरे पास एक बिल्कुल शानदार आईडिया है. आप उस आईडिये पर चलो, फ़िर देखो कि सब काम कैसे अपने आप हो जायेंगे, आपको ना रामप्यारी को दूध देना पडेगा और ना झौठडी और काटडे को संभालने का झंझट करना पडेगा, सब काम अपने आप हो जायेंगे.

बाबा ताऊ आनंद बोले - हे भक्त अब जल्दी से वो आईडिया बतावो, हम बहुत परेशान हैं. ईश्वर तुम्हारा कल्याण करेगा...

राज भाटिया बोले - महाराज ताऊ, आप एक काम करिये शादी कर लिजिये, शादी करते ही सब काम काज घर वाली करेगी और आप नित्य ब्लाग ब्रह्म शाश्त्र की चर्चा, टिप्पणी करते रहियेगा. और मैने एक बढिया लडकी देख रखी है उससे आपकी शादी करवाने का जिम्मा मेरा.

राज भाटिया की ये बात महाराज ताऊनाथ को अति प्रिय लगी और इस तरह शादी के बाद ताई का आगमन हो गया. शादी के समय राज भाटिया ने चार मेड इन जर्मन लठ्ठ ताई को भेंट स्वरूप दे दिये.

अब कहां का महा ग्रंथ शाश्त्र और कहां की चर्चा.... बाबा ताऊ आनंद सब कुछ भूल भाल गये और दुनिया दारी में समा गये.

कुछ समय बाद गुरू समीरानंद बंदरकूदनी आश्रम पधारे तो वहां आश्रम की जगह घर गॄहस्थी बसी हुई थी और ताऊ के सर पर ताई दे दनादन लठ्ठ मार रही थी. ताऊ आगे..आगे और ताई लठ्ठ लिये पीछे...पीछे भागी जा रही थी. गुरू समीरा नंद ने चेले ताऊ की और देख कर इशारे से पूछा कि ये क्या हो रहा है?

ताऊ महाराज बोले - गुरू देव यह सब तुम्हारे शाश्त्र की देखभाल की वजह से हुआ है और इन परम भक्तों यानि सतीश सक्सेना, डाक्टर दराल और राज भाटिया की बातों में आकर ही मैं इस दुर्गति तक पहूंचा हूं.

गुरू समीरानंद बोले - ताऊ चिंता मत कर, मैं भी पाताल लोक जाकर इस में फ़ंस गया हूं. खैर.... एक से भले दो ....अब बाबागिरी अगले जन्म में करेंगे, इस जन्म में तो ब्लागरी से ही काम चलाना पडेगा..

(क्रमश:)

क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?

परसों भरी दोपहर की बात
अकस्मात कनाट प्लेस पर
एक क्युट सी छोरी ने ताऊ को रोका
ताऊ को पहचानने मे हो गया धोखा !
ताऊ-सुलभ लज्जा से नजर झुकाए
ताऊ वहां से चुपचाप गुजर गये

बस इत्ती सी बात पर
उस क्यूटनी के बाल
मारे गुस्से के बिखर गये

क्यूटनी पहले तो जोर जोर से चीखी
फ़िर बिफ़र कर चिल्लाने लगी-
आसपास के जवान लोगो, जल्दी आवो
इस शरीफ़जादे ताऊ से मुझको बचाओ

मैं पलकों मे अवध की शाम
होठों पर बनारस की सुबह
जुल्फ़ों मे शबे-मालवा
और चेहरे पर बंगाल का जादू रखती हूं
फ़िर भी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?

ताऊ बोल्यो अरे छोरी
जो तू समझ री सै वा बात कोनी
मैं तो जन्म को आंधलो धृतराष्ट सूं
तू मन्नै दीखी कोनी

क्यूटनी सी वा छोरी बोली
रे ताऊ तू आंधला बणकै
झूंठ बोलकै
घणै मजे ले रया सै
यदि तू सच म्ह ही आंधला सै
तो रिश्वत के नोटों की गड्डियां
किस तरियां गिणरया सै?

ताऊ बोल्यो रे छोरी
बात तो तू सांची कहवै सै
पर रिश्वत के नोट गिणकर
उनको स्विस बैंकों म्ह जमा करवाकर
मन्नै आनंद घणा आवै सै

रे बावली छोरी सुण
मन्नै तेरी अवध की शाम,
बनारस की सुबह,
शबे-मालवो
और बंगाल को जादू
रिश्वत का नोटां कै सामणै
बेकार नजर आवै सैं

और बावली छोरी जरा सोच
तेरे मेरे बीच
किम्मै उंच नीच हो जाती
तो ताई लठ्ठ लेकै
के थारै बाप के पास जाती ?

और सबसे बडी बात भी सुणले
मैं आंधलो धॄतराष्ट्र कोनी
या पोल भी तो खुल जाती

ब्लाग संसद में सवाल और ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज के जवाब

ब्लाग संसद के चुनाव हो गये और ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की अगुवाई में सरकार नें जनहित में काम काज शुरू कर दिया. अब सरकार कितने ही जनहित के काम करे पर विपक्ष का काम होता है सिर्फ़ विरोध के लिये विरोध करना. इसका मतलब यह नही है कि विरोधी कुछ घाटे में रहता है या उनके काम नही होते. मलाई और रस दोनों ही खींचते हैं. पर जनता को यह तसल्ली रहे कि कोई उनकी तरफ़ से भी ब्लाग संसद में आवाज उठा रहा है, सिर्फ़ इसलिये ब्लाग संसद में नौटंकी करनी पडती है, बाकी तो वही होता है जो मंजूरे ताऊ होता है.

पिछले दिनों ऐसे ही ब्लाग संसद में विरोधी सदस्य, “ ब्लाग महंगाई और गरीब ब्लाग जनता को टिप्पणियों की कमी के सवाल पर” कुछ ज्यादा ही जोश में आ कर शोरगुल और नारेबाजी करने लगे थे जिनको ब्लाग अध्यक्षा मिस समीरा टेढी ने बडी मुश्किल से अंगुली उठा उठा कर चुप कराया था.

शोरगुल करते सदस्यों को चुप कराती अध्यक्ष महोदया


और अंतत: इस मामले का पटाक्षेप तब हुआ था जब ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज ने विरोधियों को याद दिलाया कि – भाईयों ये मत भूलो, हम सब एक ही हमाम में नहा रहे हैं, अब क्या फ़र्क पडता है कि चड्डी पहने या नंगे होकर नहाये, कम से कम नाटक तो कपडे पहनकर नहाने का करो, हमाम के बाहर भले ही जमकर नंगाई करते रहो.

अचानक सभी ब्लाग संसद के सदस्य आदरपूर्वक खडे होगये, मालूम पडा कि स्वयंभू ब्लाग संसद अध्यक्षा मिस समीरा टेढी ब्लाग संसद में पधार चुकी हैं और आसन ग्रहण कर रही हैं. आसन ग्रहण करते ही उन्होने हथौडा उठाया और उसे टेबल पर ठौकते हुये आज की ब्लाग संसद में सवाल जवाब का सिलसिला शुरू करने का आर्डर दे दिया.

सवाल नंबर १ :-

Blogger ajit gupta said...

    उस गड्ढे में से कितने गुणा होकर नए नेता उगे? ये कम नहीं होने के हैं।

जवाब ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज द्वारा :-

माननिया स्वयंभू अध्यक्ष महोदया समीरा जी, माननिया सदस्या द्वारा पूछे गये प्रश्न का जवाब बच्चा बच्चा जानता है, मैं इसका जवाब देना उचित नही समझता, फ़िर भी नाटक नौटंकी के लिये जवाब दे ही देता हूं. उस गड्डे में जितने नेताओं को दफ़नाया गया था उससे अति उत्तम किस्म की कंपोस्ट खाद तैयार हुई, वो खाद मैंने अपने खेतों में डाल दी, फ़िर इतनी जोरदार फ़सल आई कि मैं क्या बताऊं? उस फ़सल को खा खा कर ताऊ जैसा मेहनती, ईमानदार इंसान, धीरे धीरे चोरी, बेईमानी, ठगी, लूट, डकैती जैसे धंधे करने लगा, महोदया यह उस खाद द्वारा उपजी फ़सल के अन्न का ही असर था कि मेरी बुद्धि अत्यंत कुटिल होगई और आज मैं ब्लागिस्तान के सर्वोच्च पद पर उसी की बदौलत पहुंच पाया हूं, उसी फ़सल से मैने अपनी पार्टी बनाई, और मेरी पार्टी के सदस्य उसे ही खा खा कर भ्रष्टाचार और लूट के विश्व रिकार्ड बना रहे हैं.

प्रश्न के दूसरे हिस्से में पूछा गया है कि ये कम नही होने के? माननिया महोदया, मैने पूरे ब्लागिस्तान की जमीन में वही बीज डाल दिये हैं, तो कम होने का सवाल ही नही उठता, भ्रष्टाचार, बेईमानी, महंगाई, गरीबी इन सबको हम बढाने में कोई कोर कसर नही छोडेंगे.


सवाल नं. २ :-

Blogger anshumala said...

जवाब ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज द्वारा :-

माननिया स्वयंभू अध्यक्ष महोदया समीरा जी, माननिया सदस्या द्वारा पूछा गया प्रश्न कम, सुझाव ज्यादा है. इस सुझाव को मंजूर करते हुये मैं सुचित करना चाहुंगा कि ना सिर्फ़ कल के दिन बल्कि सभी सदस्यों को मय परिवार, उम्र भर की अवधि के लिये, भरपेट मलाईदार दूध के सेवन के लिये, हर ब्लाग संसद के सदस्य को मात्र अढाई करोड रूपया प्रति वर्ष सरकारी खजाने से दिये जाने का प्रस्ताव रखता हूं.

ब्लाग प्रधान ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के उक्त प्रस्ताव को उपस्थित सदस्यों ने एक साथ मेजे थपथपाकर ध्वनि मत से स्वीकार कर लिया. और इसके बाद स्वयंभू अध्यक्ष महोदया मिस समीरा टेढी ने प्रश्नोतर काल समाप्ति की घोषणा कर दी.

इब सीधे खूंटै पै पढो

इब सिर्फ़ खूंटै पै पढो :-

बात उन दिनों की है जब ताऊ ब्लाग प्रेसिडेंट भी नही बना था, यानि राजनीति भी नही करता था, और चोरी डकैती बेइमानी के काम काज भी शुरू नही किये थे. उन दिनों में ताऊ सिर्फ़ इमानदारी से खेतों मे मेहनत करके अपनी रोजी रोटी किसी तरह चलाया करता था. सुबह जल्दी उठकर अपना ऊंट और हल लेकर जंगल में अपने खेत जोतने निकल जाया करता था.
ताऊ अपने ऊंट से खेत में हल जोतते हुये


एक दिन ताऊ अपने खेत में हल चला रहा था कि एक बहुत ही जोरदार आवाज आई. ताऊ ने अपणै दीदे (आंखें) ठाये और ताऊ के दीदे फ़ाटे के फ़ाटे ही रह गये. ताऊ ने देखा कि पास की सडक से एक बस बेकाबू होकर नीचे पचास साठ गहरे गड्डे मे गिरी पडी थी और चीख पुकार मची हुई थी. ताऊ हल छोडकर फ़टाफ़ट वहां पहुंच गया.

वहां जाकर ताऊ ने देखा कि लोग मरे अधमरे और घायल पडे थे. चिल्ला पुकार मची थी.

ताऊ ने पूछा कि भाई तुम कौन लोग हो तो एक गंभीर घायल ने बताया कि वो सारे के सारे नेता हैं और देश की गरीबी दूर करने के उपायों पर चर्चा करने के लिये संरक्षित वन क्षेत्र के जंगल में जा रहे थे, जहां देश की गरीबी और महंगाई कम करने के उपाय सोचने के बाद शिकार खेलने का प्रोग्राम था.

नेता नाम सुनते ही ताऊ का खून उछाले मारने लगा. सभी नेता गंभीर घायल पडे थे, और ताऊ से सहायता और शहर में खबर करने की प्रार्थना करने लगे.

ताऊ ने उनको आश्वासन दिया कि चिंता मत करो, इस जंगल में मेरे अलावा और कोई डाक्टर नही मिलेगा, मैं तुम्हारा परमानेंट इलाज करूंगा. ताऊ ने इत्मिनान से एक अच्छा बडा सा गडढा खोदा और उन सब नेताओं को उस गड्डे में दफ़ना दिया. इसके बाद नहा धोकर अपने काम मे लग गया.

कुछ दिनों बाद नेताओं की खोज खबर शुरु हुई तो पुलिस वाले उनको ढूंढते ढूंढते ताऊ के पास आ पहुंचे.

पुलिस वाले ताऊ से पूछने लगे कि ये तुम्हारे खेत के पास जो एक्सीडेंट हुई बस पडी है इसमे देश के होनहार स्थापित विस्थापित सभी किस्म के नेता थे जो देश की गरीबी और महंगाई दूर करने के लिये मिटींग करने जा रहे थे, वो सब कहां हैं? आखिर वो कहां गये?

ताऊ उन दिनों सच बोला करता था सो वो बोला : हुजुर मैने उन सबको पास में ही गड्ढा खोदकर इज्जत पूर्वक दफ़ना दिया है.

पुलिस वालों ने पूछा : क्या वो सारे के सारे एक्सीडेंट मे मर गये थे?

ताऊ बोला : अजी थाणेदार साहब, इसका तो मुझे पक्का पता नही पर उनमें से दो चार नेता बोल रहे थे कि वो मरे नही हैं, जिंदा है, पर आप तो जानते ही हो कि ये नेता लोग कितनी झूंठ बोलते हैं? मैं तो इन नेताओं की बात का कभी भी यकीन नही करता, इसलिये सारे के सारे नेताओं को दफ़ना डाला.

"ब्लागर भाईचारा बढाओ पार्टी" आनन फ़ानन मे आयोजित की गई

जिस तरह से पूरी दुनिया, एक देश, एक प्रांत, एक जिले और शहर की इकाई अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता होती है उसी तरह ब्लाग जगत भी अपने आप में एक पूरा संसार है. यहां भी वही सब अच्छाईयां बुराईयां, राग द्वेष, गुटबाजी, राजनीति,  प्रेम सौहाद्र दिखाई देता है. अभी पिछले समय ही अनेक ब्लाग मठ्ठों, माफ़ किजिये...मठ्ठों नही... मठों का भी जिकर सुनने में आया था, जो कि सही भी लगता है.  और गहराई से देखता हुं तो लगता है कि यह ब्लागजगत भी अपने आप में एक संपूर्ण संसार है.

जब यह पूर्ण संसार है तो जाहिर सी बात है कि यहां भी सरकार होती है और चूंकी हम एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के आदि हैं तो चुनाव भी होंगे और यहां सारी जद्दोजहद सत्ता हथियाने की है. पिछले दिनों ब्लागिस्तान में चुनाव थे और मठाधिषों को एक पल की भी फ़ुरसत नही थी, तमाम फ़ुरसतिया लोगों को चुनाव की वजह से काम धंधा मिला हुआ था.  सभी इस जोगाड में लगे थे कि किसी तरह  जनता से वोट हथियाकर चुनाव जीता जाये और बाद में जोडतोड से सरकार  तो बना ही ली जायेगी.

लेकिन सबसे ज्यादा झटका इस बार ताऊ को लगा. क्योंकि ताऊ को किसी भी मठाधीष अखाडे ने अपने अखाडे का टिकट ही नही दिया. और दुनियां जानती है कि  किसी अखाडे के बैनर बिना टिप्पणियां तक नही मिलती तो वोट मिलने का तो सवाल ही नही उठता. ताऊ बेचारा परेशान...घूम रहा था...इस खोटे समय में एक रामप्यारे ही उसका सलाहकार हुआ करता था जो आजकल किसी अखबार में कालम लिखने लगा था...वाकई ताऊ को इतना परेशान कभी नही देखा गया कि वो चुनाव  अखाडे के टिकट के लिये तरस गया.

रात को ताऊ किसी तरह सो गया और फ़िर सोते सोते  अचानक उठ बैठा. एक आईडिया घुस आया उसकी शातिर खोपडी में.  सुबह उठकर ब्लाग चुनाव आफ़िस में जाकर निर्दलीय उम्मीदवार का नामांकन फ़ार्म भर आया. और अपने चुनाव प्रचार में जुट गया. दूसरे प्रतिद्वंद्वी अपने इंमानदारी और शराफ़त भाईचारे का राग अलापते और ताऊ ने अपना एक भाषण रट लिया और हर जगह वही भाषण दिन रात झाडने लग गया.
बहणों और भाईयों, आप जानते हैं कि ताऊ एक ठग और लुटेरा इंसान है, और आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं...तो आप मुझे  वोट क्यों दें? और  मैं आपकी बात से सहमत हूं...आप मुझे बिल्कुल वोट मत दिजियेगा...पर आपसे एक बात कहना चाहुंगा कि ताऊ नें तो दस बीस हजार की डकैती डाली होगी लेकिन बाकी के मठाधीषों ने तो पू्रे देश का माल हजम करके बाहर के बैंकों में पहूंचा दिया है, अरे ताऊ ने तो जो भी किया वो आपके लिये किया...देश के बाहर कुछ नही लेगया बल्कि ब्लाग जगत का माल ब्लाग जगत में ही रख छोडा है...और मैं आपसे वादा करता हुं कि अगर  मैं चुनाव जीत गया तो इस ब्लागजगत में  एक सख्त रोकपाल बिल लागू करूंगा कि कोई भी गंदगी, भ्रष्टाचार करना  इस ब्लागिस्तान में संभव नही होगा और सारे ब्लागर चैन की बंशी बजाया करेंगे. आपको जो समझ आये वैसा ही करें पर रोकपाल बिल की बात ध्यान रखें.


ताऊ के उक्त भाषण का जनता पर काफ़ी असर हुआ और निर्दलीय होने के बावजूद भारी बहुमत से चुनाव जीत गया. अब ताऊ को दिखने लगी ब्लाग प्रेसीडेंट की कुर्सी और जनता उम्मीद कर रही थी रोकपाल बिल के लागू होने की. इधर स्पष्ट बहुमत किसी भी मठाधीष के अखाडे को नही मिला था, सब जोड तोड में लगे थे. सब तरह की संभावनाएं टटोली जा रही थी....ऐसे ऐसे ब्लागर मठाधीष एक दूसरे से गुपचुप मुलाकाते कर रहे थे जो एक दूसरे को फ़ूटी आंख नही सुहाते ...ये समझे कि जैसे ताऊ............से मिल रहा हो....

खैर सब जोड तोड के बाद दो  गुट बन गये....थोडे बहुत जोगाड से कोई सा भी गुट सरकार बना सकता था. दोनों गुटो में  समस्या यह आ रही थी की ब्लाग प्रेसीडेंट कौन बने? और किसके कितने मंत्री हों? बडी मुश्किल की घडी थी. ताऊ अपने लठ्ठ को लिये ब्लाग प्रेसीडेंट बनने की जोगाड में लगा था. और ताऊ के द्वारा चुनाव में जनता को रोकपाल बिल के वादे की वजह से कोई सा भी गुट ताऊ को घास नही डाल रहा था.

ताऊ के  कमरसिंह ने पहले गुट के कुछ सदस्यों को मंत्री और भारी संख्या में टिप्पणीयों का लालच देकर ताऊ की तरफ़ तोड लिया, फ़िर भी ब्लाग सरकार बनाने लायक बहुमत नही बना. ताऊ के कमर सिंह ने जी जान लडा दी पर अब  भी दस वोट कम पड रहे थे. और सामने बचे गुट में महान मक्कार और भ्रष्टाचार के पुतले ही बचे थे, जिनके विदेशी बैंक खाते और घोटालों में नाम थे. रोकपाल की वजह से वो ताऊ के कट्टर दुश्मन थे. पर ताऊ ने हार नही मानी. एक रोज ताऊ के कमरसिंह ने ताऊ की और उनकी मुलाकात की व्यवस्था करा ही दी.

एक "ब्लागर भाईचारा बढाओ पार्टी" आनन फ़ानन मे आयोजित की गई. वहां एक से बढकर एक जानी दुश्मन भी हाथ में माकटेल काकटेल के गिलास थामे नजर आये. और फ़िर ताऊ ने अपना भाषण देना शुरू किया :- प्यारे ब्लागर साथियों, आपने इस ब्लागर भाईचारा बढाओ पार्टी मे शरीक होकर ब्लाग जगत की बडी सेवा की है. आप मेरी रोकपाल बिल वाली बात को ज्यादा दिल से ना लगाये. वो तो चुनाव जीतने के लिये कुछ भी कहना पडता है. पर हम तो आपस में ब्लाग भाई हैं, एक दूसरे को नुक्सान थोडे ही पहुंचायेगे, हम ब्लाग हित में मिलजुलकर जनता को लूटेंगे, आपको मेरी ब्लाग सरकार में लूट की खुली छूट होगी. मैं आंखे बंद करके रहुंगा, आप बिल्कुल निश्चिंत रहें, आप सब अपने अपने मठ की ताकत जनता  को लूटकर बढाते रहें, मैं कुछ नही बोलूंगा.

ताऊ के मुंह से ऐसी बात सुनकर सबके चेहरे खिल उठे. एक भ्रष्टाचार के मामले में फ़ंसे और ताऊ के घनघोर विरोधी सदस्य ने सवाल पूछा - पर ताऊ हम जैसों को कैसे बचाओगे? हम तुमको क्यों वोट दें? तुम हमारे विरोधी हो..कहीं हमे जेल में डाल दोगे तो?

ताऊ बोला - भाई तू चिंता मत कर, मैं रोकपाल बिल की खानापूर्ति के पहले एक ऐसा बिल लाऊंगा कि नेताओं और भ्रष्टाचारियों को सिर्फ़ एयरकंडीशंड जेल में  ही रखा जायेगा. उनको पेशी पर ले जाने के लिये बी.एम.डबल्यु या उससे ऊंचे दरजे  की कारे ही इस्तेमाल की जायेंगी. सारे मुकदमे इस तरह चलवाऊंगा कि तुम्हारे जीते जी उनका फ़ैसला ही नही आयेगा. सरकार की साख बचाने और जनता को दिखाने के  लिये तुम जैसों को दो चार महिने एयरकंडीशंड जेल में   बिताने होंगे और वो भी तुम नही रहना चाहो तो तुम्हारी जगह जेल में तुम्हारा  डुप्लीकेट रह जायेगा, तुम जमानत होने तक चुपचाप विदेश में मस्ती करके चले आना. ताऊ की यह बात सुनते ही सारे भ्रष्टाचारियों ने एक स्वर से ताऊ को जयजयकार करते हुये अपना नेता चुन लिया.