कोरोना वायरस और दुनिया की अर्थ व्यवस्था

कोरोना वायरस का भय अब सारी दुनियां में व्याप्त होता जा रहा है. अभी तक तो चीन से अपने अपने लोगों को रेस्क्यू करने तक ही बात सीमित थी पर पिछले दो तीन दिन से दुनियां के शेयर बाजारों पर इसका असर दिखने लगा था. आज पिछले कई सालों की हद तोडते हुये शेयर बाजारों ने निवेशकों को कंगाल बनाने में कोई कसर नहीं छोडी.

अमेरिका के शेयर बाजारों की देखा देखी एशियन मार्केट भी नीचे की तरफ़ मुंह करके खुले थे. बाद में यूरोपियन मार्केट्स ने इस मंदी को ओर हवा दे दी.

हमारे शेयर बाजारों में भी इसका पूरा पूरा असर दिखा. NSE का NIFTY 3,71% की गिरावट के साथ यानि 431.55 point गिरकर 11201.80 पर बंद हुआ वहीं BSE  का SENSEX 1448.37 point यानि 3.645% गिरकर 38297.29 पर बंद हुआ.

आज कोई भी सेक्टर ऐसा नहीं था जहां तबाही का मंजर नहीं रहा हो.

कोरोना वायरस ऐसी तबाही ला सकता है यह ज्यादातर लोगों को नहीं लग रहा था. ज्यादातर लोग समझ रहे थे कि यह चीन का मामला है पर इसके व्यापक असर अभी देखने को मिलेंगे.

सरकार को इंपोर्ट ड्यूटी में दस से बारह प्रतिशत तक गिरावट आने का अंदेशा जताया जा रहा है वहीं GST क्लेक्शन में भी कमी का डर अब सताने लगा है. और यह होना भी है क्योंकि ज्यादातर कच्चे पक्के माल का इंपोर्ट चीन से होता है तो जब माल आयेगा ही नही तो इंपोर्ट ड्यूटी कहां से मिलेगी और माल बिकेगा नहीं तो GST कहां से मिलेगा?

दवा उद्द्योग का अधिकतर कच्चा माल चीन से आयात होता है तो ऐसे में दवाओं की उपलब्धता में कमी भी हो सकती है और दवाओं के दाम बढना तो तय ही है.

एसी फ़्रीज टीवी मोबाईल जैसे उद्द्योग के लिये भी कच्चे पक्के माल का अधिकतर आयात चीन से ही होता है तो इनकि कीमतों में इजाफ़ा होना तय दिखाई दे रहा है. कुल मिलाकर कोरोना वायरस उम्मीद से ज्यादा क्षति पहुंचाता लग रहा है.

मेडिकल क्षेत्र के अनुसार दुनिया की अधिकतर आबादी इसकी चपेट में आ सकती है और अभी इसके प्रतिरोधक टीके की कोई संभावना ही नहीं दिखाई देती और उपलब्ध दवाओं की प्रचुरता नही है. ऐसे में ईश्वर सबकी मदद करे और जल्द से जल्द इस कोरोना वायरस को समाप्त करने का कोई रास्ता मिले.

आ अब लौट चलें ब्लाग की ओर

प्यारे भतीजो और भतिजीयों, ताऊ की होली टाईप रामराम. आज सबसे पहले तो मैं सुश्री रेखा श्रीवास्तव जी द्वारा संपादित "ब्लागरों के अधूरे सपनों की कसक" पुस्तक के विमोचन पर उनको और इस कार्य में सभी सहयोगी जनों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूं. आशा करता हूं यह पुस्तक हिंदी ब्लागिंग के लिये मील का पत्थर साबित होगी. सुश्री रेखा जी ने बहुत ही स्नेह से मुझे इस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिये निमंत्रण दिया और मैंने आने के लिये टिकट्स भी बुक करवा लिये थे. पर ताऊ के साथ हमेशा ही कुछ ना कुछ गडबड हो ही जाती है जो इस बार भी होगई.  आपमें से अधिकतर साथियों को मालूम ही होगा कि ताऊ  शेयर ब्रोकिंग के व्यापार के जरिये ही ताई के लठ्ठ की मार सहन करता है.


और आज शेयर मार्केट में कोहराम मच गया है, BSE SENSEX 1510 प्वाईंट्स से ज्यादा लुढक चुका है और यह अभी कितना और लुढकेगा यह मालूम नहीं है. मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मैं वहां पहुंचकर आप सभी के दर्शन करूं, किंतु परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है.  पर ईश्वर ने चाहा तो भविष्य में ऐसा  सुयोग अवश्य मिलेगा. मेरी तरफ़ से इस कार्यक्रम और हिंदी ब्लागिंग के सुनहरे भविष्य की शुभकामनाएं.

इसी तारतम्य में अपने मन की बात कहता चलूं कि मुझे हिंदी भविष्य की एक सशक्त भाषा दिखाई पड रही है. और अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि अंग्रेजी को भी पछाड दे. युनिकोड आने के बाद हिंदी लेखन की सारी दिक्कतें दूर हो चुकी हैं और आज लाखों करोडों लोग कंप्यूटर व मोबाईल पर धडल्ले से हिंदी का उपयोग कर रहे हैं.

एक आम जन जो कि ब्लागर नही है वो भी आज नेट सर्फ़िंग कर रहा है. कारण की पहले नेट के खर्च बहुत ज्यादा थे आज रिलाय़ंस जियो ने इसको बहुत ही सस्ता करवा दिया है. इसी का परिणाम है कि आज हिंदी पढने वालों की संख्या अचानक बढ गयी है जो एक शुभ संकेत है.

यूट्यूब पर आज लाखों करोडों हिंदी के विडियो अपलोड भी हो रहे हैं और असंख्य मात्रा में उनको दर्शक भी मिल रहे हैं. शायद आपको यकिन नहीं होगा कि आपके द्वारा स्वयं के उपेक्षित ब्लाग भी लोगों द्वारा देखे पढे जा रहे हैं. आपमें से अधिकतर तो अपने ब्लाग्स का पासवर्ड भी भूल चुके होंगे. मेरा निवेदन है कि एक बार जाकर अपनी STATS को चेक करें कि आपके बिना लिखे भी आपके ब्लाग पर पाठकों की संख्या पहले से अधिक हो चुकी है.

जरा ताऊ डाट इन  taau.taau.in  के आंकडों पर गौर करियेगा. ताऊ डाट इन पर पहले जहां नित्य एक पोस्ट लिखी जाती थी. किंतु छोटे भाई के असामयिक निधन से उपजे नैराष्य ने अन्य क्षेत्रों  के साथ साथ ब्लागिंग से भी वितृष्णा पैदा कर दी, फ़लस्वरूप ब्लाग लेखन करीब करीब बंद सा ही हो गया.

2014  में 9 पोस्ट,  2015 में  1 पोस्ट,  2016 में 0 यानि कोई पोस्ट नहीं,  2017 में 36 पोस्ट,  2018 में 1 पोस्ट,  2019 में  0 यानि कुछ नहीं और 2020 में अब तक सिर्फ़ 5 और आज की मिलाकर कुल 6 पोस्ट लिखी गई हैं.

अब आईये STATS  पर नजर डालते हैं तो मुझे जहां तक याद है 2014 में कुल पाठक संख्यां 1 लाख से भी कम थी और आज की पाठक संख्या  करीब 7 लाख पहुंच चुकी है. और पिछले 6 माह से तो औसतन  प्रति माह 17 या 18 हजार पाठक प्रतिमाह तक नियमित है.

तो कहां से आ रहे हैं ये पाठक? इसका सीधा सा जवाब है कि हिंदी पढने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफ़ा हो रहा है. नये पाठक तैयार हो गये हैं जो हिंदी में पढना चाहते हैं. अभी तो यह संख्या कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इसमें अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज होगी.

मेरा आप सभी साथियों से निवेदन है कि नियमित लेखन करें, आप जिस विधा में भी लिखते हों. अब टिप्पणियों की उम्मीद में लेखन मत करिये. अब वो जमाना जा चुका है. कोई टिप्पणी आती है तो ठीक वर्ना एडसेंस भी हिंदी के लिये नगद धन रूपी टिप्पणियां देने को उधार बैठा है.

आप हिंदी की सेवा करना चाहें तो स्वागत और सेवा नहीं भी करना चाहें तो भगवान के लिये अपनी जेब की सेवा के लिये ही नियमित लेखन करें. काफ़ी लोग नियमित लिख भी रहे हैं आप भी लिखें.

फ़ेसबुक का मैं कोई महारथी नहीं हूं, और उसका आलोचक नहीं तो प्रशंसक भी नहीं हूं. फ़ेसबुक भी अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम है इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता. पर जिस स्तर की अभद्रता और औछापन वहां व्यापत है वह मन को खिन्न करता है. फ़ेसबुक पर आपके अकाऊंट पर ही आपका कोई कंट्रोल नहीं है. वहां कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा आपकी वाल पर कुछ भी गंदगी करने की छूट रखता है, आप कुछ नहीं कर सकते. सीधी सी बात है वहां कई लोग पंचायती झौठे सरीखे विचरण करते रहते हैं जिन पर लठ्ठों का भी असर नहीं होता.

आशा करता हूं आपको मेरी बात समझ में आई होगी और नहीं आई हो तो खेलते रहिये फ़ेसबुक...फ़ेसबुक.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

होली पर सियाचिन में ब्लागर सम्मेलन, योग एवम प्राकृतिक चिकित्सा शिविर

ब्लागिंग के माननिय नये, जूने-पुराने, घुटे घुटाये, डायनासोर एवम नान ब्लागर्स यानि फ़ेसबुकियों से ताऊ की होली टाईप रामराम. जैसा कि आप जानते हैं हमने 10 साल पहले सियाचिन में एक बहुत ही सफ़ल आयोजन किया था और सभी ब्लागर्स उससे लाभान्वित भी हुये थे. आप लोगों के बार बार अनुरोध पर इस साल यह आयोजन दुबारा आयोजित किया गया है.

                                                                   मिस समीरा टेढी                   

इस आयोजन के बारे में संपूर्ण विवरण जल्द ही आपकी सेवा में एक ब्लाग पोस्ट द्वारा दिया जायेगा. इस आयोजन में सीटे बहुत ही कम हैं अत: हम पर कोई पक्षपात का आरोप नही लगे कि ताऊ ने अपने अपनों को रेवडी बांट दी....इस आरोप से बचने के लिये इस शिविर के लिये पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है. आप सबसे निवेदन है कि मिस समीरा टेढी से अपने अपने पंजीकरण फ़ार्म प्राप्त करलें. मिस समीरा टेढी के बारे में आपको बताने की जरूरत नही है. शिविर में मिस समीरा टेढी आपको सटा खेलने की विधा के बारे में सारी गुप्त टेक्निक सिखायेंगी.

इस फ़ार्म की फ़ीस आपकी सुविधा और जेब का ध्यान रखते हुये रूपये 251/= मात्र रखी है जो कि नान रिटर्नेबल होगी. इन प्राप्त फ़ार्म्स में से लाटरी ड्रा निकाला जायेगा. लाटरी में जिन सदस्यों को नाम निकलेगा, उन्हीं को शिविर में आने दिया जायेगा.

फ़ार्म्स की डिमांड बहुत ज्यादा है. अभी तक एक लाट तो खत्म भी हो चुका है. आज ही दूसरा लाट प्रिंट होकर आया है अत: शीघ्रता करें. एक सदस्य एक से अधिक चाहे जितने फ़ार्म्स भी भर सकता है. उस पर कोई रोक टोक नहीं होगी. आप जितने अधिक फ़ार्म भरेंगे, आपका नाम निकलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.

                                                     डा. रामप्यारी कैट-स्केन स्पेशलिस्ट

जैसा कि आप जानते ही हैं कि सियाचिन में आक्सीजन की कमी रहती है अत: स्वास्थ्य चेक अप जरूरी है. स्वास्थ्य चेक अप सर्टीफ़िकेट दूसरी जगह का मान्य नहीं होगा. सिर्फ़ डा. रामप्यारी द्वारा दिया गया हैल्थ सर्टीफ़िकेट ही मान्य होगा. इसमें भी अनिवार्य तौर पर कैट-स्केन करवाना अनिवार्य होगा. आपके लिये हमने डा. रामप्यारी से स्पेशल कन्शेसनल पैकेज सिर्फ़ रूपया 7500/= मात्र तय किया है. बिना कैट-स्केन के स्वास्थ्य सर्टीफ़िकेट मान्य नहीं होगा. भीड से बचने के लिये आप एडवांस में कैट-स्केन करवा कर रख लेवें.

शिविर में ब्लागिंग के गुरू घंटालों के टिप्स, बाबाश्री ताऊ महाराज की दुर्लभ दवाएं और दुर्लभ साहित्य उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाया जायेगा. इस शिविर में भाग लेना एक अलौकिक अनुभव रहेगा.

बाकी की जानकारी के लिये अगली ब्लाग पोस्ट का इंतजार करें.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

ब्लागिंग को जिंदा करने के लिये "रायता फ़ैलाऊ समिति"

आज सुबह सुबह ही ब्लागिंग के पितामह, घुटे घुटाये ब्लागर अनूप शुक्ल जी “फ़ुरसतिया” द्वारा दिये गये ज्ञान स्वरूप इस आलेख की शुरूआत कर रहे हैं.

आप बहुत अच्छा पढने वाले हैं और आप बहुत अच्छे टिप्पणी कार हैं. जैसे कवियों को तालियां वैसे ही ब्लागरों को आपकी टिप्पणियां प्रोत्साहित करती हैं. आप ब्लाग पर आयें और टिप्पणी करके हमारा उत्साह वर्धन करें जिससे हम रायता बिखरें और आप मुफ़्त में रायता खाते रहें. तो अब कविता पाठ…सारी...सारी... अब आलेख की शुरूआत करते हैं….

अभी कल ही दिल्ली में समीरलाल जी, राजीव तनेजा जी, खुशदीप सहगल जी, वंदना गुप्ता जी, डा. दराल साहब व अन्य घुटे घुटाये ब्लागर्स ने ब्लागिंग को पुन: जिंदा करने के लिये गहन विचार विमर्श कोल्ड ड्रिंक की चुस्कियों के बीच किया. अब बताईये किसी में जान डालने के लिये कोल्ड ड्रिंक से काम चलता है क्या? बताओ मितरों, भाईयों और बहनों? अरे ब्लागिंग तो पहले ही ठंडी हुई पडी है और आप ऊपर से ठंडा पीये जा रहे हैं….ब्लागिंग को जिंदा ही करना है तो कुछ गर्म पीते…पिलाते. ताऊ जैसे कुछ रायता फ़ैलाऊओं को बुलाकर सलाह लेते. ब्लागरों, रायता बडे काम की चीज है….याद किजीये पुराने जमाने को जब सारी ब्लाग दुनियां में रायते की नदियां बहा करती थी और वो ब्लागिंग का स्वर्णिम काल कहलाया.

अभी परसों शिवरात्रि पर ताऊ उज्जैन चला गया था और वहां महानकाल का महा प्रसाद ले लिया, उसने ऐसा रंग दिखाया कि सर नीचे और पांव ऊपर हो गये. महा प्रसाद का नशा घर लौटने तक नहीं उतरा तो ताई ने बेहतरीन रायता फ़ैलाकर नशा उतारा. एक दम खट्टे दही से बूंदी और मिक्स फ़्रूट का रायता बनाया, उसमे अपना मेड-इन-जर्मन लठ्ठ भिगो भिगो कर जो ताऊ की पीठ पर बजाये तो एक दम से  नशा काफ़ूर हो गया.

तो सभी ब्लागर बंधुओं से निवेदन है कि ब्लागिंग का यदि जीर्णोदार करना है तो रायता फ़ैलाना ही एक मात्र ईलाज है. जितना रायता फ़ैलाओगे उतनी ही ब्लागिंग जीवित होती जायेगी. ब्लागिंग के स्वर्णिम काल में कितना रायता फ़ैला हुआ रहता था? कसम से हमने तो कभी उस जमाने में घर में रायता या सब्जी नहीं बनाई. उसी रायते से दोनों टाईम की रोटी खा लेते थे….आज कम से कम सौ डेढ सौ रूपये की सब्जियां खरीदनी पडती हैं…..

और हां यदि रायता फ़ैलाना ही हो तो ब्रांडेड यानि अमूल, ब्रिटानिया, मदर डेयरी या अन्य किसी के दूध दही से काम नहीं चलेगा बल्कि आपके लोकल मोहल्ले वाले का दही लेवें जो बिल्कुल सडा गला रखता हो तो यह ज्यादा असर कारक रहेगा. पैसे भी कम लगेंगे और रिजल्ट सटीक मिलेगा.

मेरी नेक सलाह है कि ब्लागिंग का जीर्णोद्धार करने को एक “रायता फ़ैलाऊ समिति” बनाई जाये और उसे यह काम सौंप दिया जाये. यदि कोई अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं हो तो ताऊ यह कुर्बानी दे सकता है बशर्ते कोषाध्य्क्ष का पद भी ताऊ को दे दिया जाये.
  

ताऊ की रायता फ़ैलाऊ क्षमता देखनी हो तो शाहीन बाग का रायता देखिये जिसमें बूंदी, मिक्स फ़्रूट और आलू सहित तमाम तरह के रायते बिखेरे गये हैं और जो आज तक नहीं सिमटा है और अब ताऊ अहमदाबाद में ट्रंप के आगमन के लिये रायता फ़ैलाने के ईवंट में जुटा है.

ध्यान रहे कि रायता फ़ैलाना इतना आसान नहीं है. हर काम के हिसाब से अलग अलग प्रकार का दही और वस्तुएं काम में ली जाती है. आप तो बस बूंदी, आलू और फ़्रुट रायता ही जानते हॊंगे. पर मर्ज के अनुसार लौकी, कद्दू, करेला, बथुआ, गोभी, वेज, नानवेज इत्यादि कई प्रकार के रायते काम में लिये जाते हैं. और ताऊ ने रायता फ़ैलाने में पी.एच.डी. की हुई है. 
सभी ब्लागर्स से निवेदन है कि "रायता फ़ैलाऊ समिति" के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष पद के लिये ताऊ को ही वोट करें.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

माता बखेडा वाली, ताऊ और मरी हुई भैंस

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. चारों तरफ़ युद्ध के बाद का भयावह सन्नाटा...दूर दूर तक सुनसान....गिद्ध कौव्वों के आकाश में मंडराते झुंड.....अधिकतर जवान युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे.

थके मायूस महाराज धृतराष्ट्र भी अपने भतीजों यानि पांडवों के साथ रहने चले गये थे. उनके दिल का दर्द तो सिर्फ़ समझा ही जा सकता है. हम आपको यहां कोई महाभारत की कहानी सुनाने नहीं आये हैं. कहानी दो अन्य पात्रों की है जो ठीक उसी समय की है. तो सुनिये.....

एक तो थी "माताश्री बखेडा वाली" जिनकी उम्र उस समय भी 780 साल की थी और आज भी उतनी ही है. गरीबों का दुख दर्द दूर करना, उनकी सहायता करना और अपने व्यापार में लीन रहना ही उनकी दिनचर्या का मुख्य हिस्सा था. गरीबों के लिये महाराज धृतराष्ट्र से भी उलझ लेती थी. उन्होंने द्रौपदी चीरहरण के समय महाराज धृतराष्ट्र...पितामह भीष्म...विदूर जी सबकी बखिया उधेड कर बहुत बडा बखेडा खडा कर दिया था....वो तो कृष्ण भगवान वहां आगये दौपदी की लाज बचाने वर्ना तो माता बखेडा वाली ने दुर्योधन, दुशासन और विकर्ण के शीश ही कलम कर दिये होते. वैसे कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि "माता बखेडा वाली" चाहती तो कृष्ण के आने के पहले ही   द्रौपदी की रक्षा कर चुकी होती पर उन्हें तो कृष्ण को यह सम्मान दिलाना था...खैर जो भी हो.....माता बखेडा वाली की जय.....

उनकी इसी वीरता की वजह से भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि "सत्य के पक्ष में आपने अन्याय का विरोध किया, इसी से प्रसन्न होकर मैं आपको वरदान देता हूं कि आप कलयुग में "माता बखेडा वाली" के नाम से पूरे सोशल मीडिया में सर्वत्र पूज्यनीय रहेंगी और इस पृथ्वी के रहने तक आपकी उम्र जो अभी है वही 780 साल की ही रहेगी.   युद्धकाल के बाद जीवन यापन के लिये उन्होंने  साहुकारी का धंधा चालू रखा था जो कि पहले भी करती थी.

अब हमारी कहानी का दूसरा पात्र है ताऊ महाराज...जिनसे आप भली भांति परिचित ही होंगे.....जो नये पाठक हैं उनको कम शब्दों में ही बता देते हैं कि ताऊ महाराज में छूट भलाई सारे गुण कूट कूट कर शुरू से ही भरे थे. ताऊ महाराज उस समय में भी चोरी, डकैती, ठगी, बेईमानी... उठाईगिरी के ही धंधे किया करते थे.... उनको ना पहले कुछ और काम आता था और ना कुछ अब आता है...

महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था....दोनों पक्षों की तरफ़ से सैनिकों की भर्ती चालू थी. ताऊ महाराज भी कौरवों के सेनापति की पकड में आ गये और कौरव दल में जबरदस्ती भर्ती कर लिये गये.... ताऊ ने सोचा फ़ंस गये अब तो...युद्ध के नाम से ही ताऊ कांप रहा था....एक दिन मौका देखकर भाग निकला और जाकर जंगल में छुप गया....पूरे 18 दिन के बाद वापस लौटा जब युद्ध समाप्त हो गया था......

अब ताऊ क्या करे? किसको लूटे..किसको ठगे...किसके यहां डकैती डाले? कोई बचा ही नहीं था.....तो ताऊ ने गुजर बसर करने को एक भैंस पाल ली और अपना गुजारा करने लगा.

यूं ही काफ़ी समय बीत चला था. अब एक दिन हुआ यूं कि ताऊ की भैंस मर गई, ताऊ को काटो तो खून नहीं. अब ताऊ क्या करे? कैसे पेट पाले? पर ताऊ तो ताऊ .....ताऊ को पुराने शौक फ़िर याद आये....ताऊ ने सोचा अब इस मरी हुई भैंस के पैसे वसूल कर लिये जायें तो काम चल सकता है. ताऊ ने चारों तरफ़ नजर दौडाई पर ऐसा कोई सख्श नहीं नजर में आया जिसको इस मरी हुई भैंस की टोपी पहनाई जा सके....अचानक ताऊ को माताश्री बखेडा वाली का ध्यान आया तो खुशी से उछल पडा.

ताऊ  माता बखेडा वाली को दादीश्री कहकर बुलाता था क्योंकि दोनों की उम्र में 300 साल का फ़र्क था. ताऊ उनके  पास पहुंचा और बोला - दादीश्री राम राम....
माता बखेडा वाली ने सोचा आज ये ताऊ मेरे पास क्या लेने आया है? फ़िर भी बोली - रामराम ताऊ रामराम...बता क्या हाल चाल है? कैसे आना हुआ?

ताऊ बोला - दादीश्री मुझे मेरी भैंस एक हजार रूपये में बेचना है...भैंस तो ज्यादा की है पर मुझे रूपये की जरूरत है इसलिये एक हजार में दे दूंगा.
माता बखेडा वाली भी कम नहीं थी...पूरी साहुकार व्यापारी थी और बिजनेस में किसी तरह का कोई कंप्रोमाईज पसंद नहीं करती थी...आप कह सकते हैं कि पूरी कडक व्यापारी थी. बोली - अच्छा...तेरी वो मरगिल्ली सी भैंस के कौन देगा एक हजार?  तुझ पर दया करके तेरी भैंस के 500  रूपया दे सकती हूं.... लेना हो तो ले वर्ना अपना रास्ता नाप.....मुझे बहुत काम है और माता अपने हिसाब किताब में लग गई.

ताऊ ने सोचा....आसामी तो फ़ंस गई...फ़िर भी उदास सा मुंह बनाकर बोला - ठीक है...मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठा रही हो आप....लावो दे दो पांच सौ ही...और भैंस मेरे घर पर पडी मिलेगी....बुलवा लेना.....

माता बखेडा वाली हिसाब किताब में व्यस्त थी सो यह नहीं सुना कि भैंस पडी है....ताऊ को पांच सौ रूपये दे दिये और ताऊ ने रूपये अपने खीसे में डाले और गांव छोडकर यह जा...वो जा...होगया.

ताऊ को डर था कि बखेडा वाली माता उसे छोडने वाली नहीं है सो काफ़ी समय तक तो वापस लौटा ही नहीं....फ़िर एक दिन चुपचाप अपने घर लौट आया...आखिर कब तक बाहर रहता. ताऊ को रोज डर लगता था कि आज माता बखेडा वाली आई कि कल आई. जब माता आई ही नहीं तो ताऊ खुद उनके पास पहुंच गया और प्रणाम करके बैठ गया.....माता बखेडा वाली ने ताऊ का काफ़ी आदर सत्कार किया और मरी हुई भैंस का कोई जिक्र ही नहीं किया तो ताऊ आश्चर्य में पड गया और पूछ बैठा...

तब माता बखेडा वाली बोली - ताऊ, तुम तो मरी भैंस मेरे गले बांध गये थे पर मुझे तो उससे काफ़ी मुनाफ़ा हुआ. अब ताऊ के चौंकने की बारी थी....पूछ बैठा - दादीश्री....मरी भैंस से फ़ायदा...?

माता बखेडा वाली बोली - ताऊ तुम बेईमानी ठगी से कमाते हो और हम व्यापारी हैं, अक्ल से कमाते हैं......जब तुम मरी भैंस बेचकर भाग गये तो मुझे मालूम था कि तुमको भागने के बाद पकडना ऐसा ही है जैसे गधे के सर से सींग पकडना....मैंने एक एक रूपये के लाटरी टिकट निकाल दिये और ईनाम में भैंस रख दी. कुल दस हजार रूपयों से ज्यादा के टिकट बिके. एक आदमी को भैंस ईनाम में निकल गयी. मैने उसको तुम्हारी मरी भैंस ईनाम में   दे दी....वो बोला - यह तो मरी हुई भैंस है...मैं इसका क्या करूंगा...मुझे तो जिंदा मुर्रा भैंस चाहिये.

मैंने कहा - ज्यादा चकर बकर नहीं.....लेना हो तो ले वर्ना तूने जो एक रूपया का टिकट खरीदा था वो एक रूपया वापस पकड....और निकल ले....वो अपना एक रूपया लेकर वापस चला गया....इस तरह पूरे दस हजार से ज्यादा का मुनाफ़ा तेरी मरी हुई भैंस दे गई.....

ताऊ भौंचक्का सा हुआ दादीश्री के मुंह की तरफ़ देखता रह गया.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

मेहनत के दम पर अपनी किस्मत संवार सकते हैं.

एक 15/16 साल का लडका रोज दोपहर बाद सर पर सब्जी की टोकरी रखे आवाज लगाता घर के सामने से गुजरता. उस पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर जब कभी सब्जी घर में नहीं होती तो पत्नि उसको रोक कर सब्जी खरीद लेती थी. उसकी सब्जियां बहुत ताजी होती थी अत: बाद में वह नियमित सब्जी देने लगा.

एक दिन गर्मी बहुत अधिक थी वो लडका पानी पीने अंदर आ गया. मैने देखा वो पसीने में तर था पर उसकी आंखों में चमक थी और थकान का कोई नामोनिशान उसकी शक्ल पर नहीं था. मैंने उससे नाम पूछा तो वह बोला – बाबूजी मेरा नाम शंकर है. 

मैने उसके बारे में और जानकारी ली तो पता चला कि वह नजदीक के ही गांव का रहने वाला है और उसके पिता नहीं है. घर में मां और एक छोटी बहन है. वह गांव के ही स्कूल में 8वीं कक्षा में पढता है. कुल 3 बीघा जमीन है जिस पर वो सब्जियां उगाते हैं. पहले सारी सब्जियां मंडी के दलालों के मार्फ़त बेच देते थे जिससे सिर्फ़ लागत ही निकल पाती थी.

फ़िर उसने बताया कि साल भर से वह स्कूल से लौटकर खेत की सब्जियां लाकर यहां शहर की एक दो कालोनियों में बेच देता है जिससे उसे अच्छी आमदनी हो जाती है. गांव से शहर तक बस टेंपो से आने जाने में उसका काफ़ी समय बर्बाद हो जाता था तो मैने उससे कहा कि वह एक साईकिल लेले तो काफ़ी समय और मेहनत बचेगी. मेरे यहां बेटे की एक साईकिल रखी थी जो अब किसी काम में नहीं आ रही थी. मैने वो साईकिल उसे दे दी. साईकिल पाकर वह बहुत खुश था, ऐसा लगता था जैसे कोई कार उसने पा ली हो. अब वो पहले से भी ज्यादा मेहनत से काम करने लगा.

उसकी सब्जियों की क्वालिटी काफ़ी बढिया और ताजी होती थी तो उसके ग्राहक भी नियमित बन गये थे. ऐसे ही तकरीबन दो तीन साल बीत गये. शंकर अब काफ़ी हठ्ठा कठ्ठा और कद काठीदार हो चला था. एक दिन वो आया और बोला बाबूजी मुझे एक मोटर साईकिल दिलवा दिजीये. मैने कहा – शंकर, मोटर साईकिल तो काफ़ी महंगी आयेगी. वो बोला बाबूजी आपके यहां यह जो मोटर साईकिल रखी रहती है यह किसकी है? तो मेरे ध्यान में आया कि मेरे बेटे की मोटर साईकिल काफ़ी समय से यूं ही रखी है. बेटा बाहर रहता है और अब वो मोटर साईकिल चलाता भी नहीं है. मैंने पत्नी से बात की और उसको हां कर दी. वो बोला मैं कल आकर ले जाऊंगा.

अगले दिन वो आया और बोला बाबूजी मैंने ये 25 हजार रूपये जोडे हैं आज तक, और मेरे हाथ में 25 हजार रूपये रख दिये. अब मैं क्या कहता? हालांकि मोटर साईकिल का बाजार मूल्य पैंतीस छत्तीस हजार का रहा होगा पर उसकी काम करने की लग्न और मदद करने के लिये मैंने उसे दे दी.
उसने मोटर साईकिल को सब्जी के हिसाब से तैयार करवाया और सब्जियां बेचने का अपना दायरा और बढा लिया.

इसी बीच उसकी मां और बहन ने घर में दो तीन भैंसे पाल ली थी जिनका दूध थोक व्यापारी को दे दिया जाता था और उसमें कोई ज्यादा मुनाफ़ा नहीं होता था. मोटर साईकिल आने के बाद शंकर ने थोक व्यापारी को दूध देना बंद कर दिया और खुद ही घर घर जाकर दूध बांटना शुरु कर दिया. उसने समय के साथ पडौसियों का दूध भी लेकर बांटना शुरू कर दिया.
जो भी बचत होती थी उसको संभालकर जमा करता गया. बाद में उसने शहर में ही दूध डेयरी की दूकान खोल ली. मेहनत ईमानदारी और शुद्धता के बल पर दूकान चल निकली. आज शंकर दूध व्यवसायियों में प्रतिष्ठित नाम है.

इसे कहते हैं “मेहनत के दम पर अपनी किस्मत संवारना”. कोई भी मनुष्य लग्न और ईमानदारी के बल पर आगे बढ सकता है. और ऐसे मेहनती लोगों को अपने आप रास्ता भी दिखाने वाले मिल ही जाते हैं, बस मेहनत और लग्न में कमी नहीं रहनी चाहिये.  


#हिन्दी_ब्लॉगिंग

"बगल में लौटा मुंह में पान, बनकर रहेंगे बर्बादिस्तान"

पता नहीं अबकि बार सर्दी का मौसम कौन से मुहुर्त में शुरू हुआ था कि इस बार सर्दी जाने का नाम ही नहीं ले रही. कब तक तीन चार किलो कपडों का वजन ढोते रहो.

हमने रामप्यारे से पूछा कि भाई अबकि बार तो सर्दी निपटा कर ही छोडेगी क्या? अब रामप्यारे ने जो जवाब दिया वो आश्चर्य चकित करने वाला था. वो बोला - ताऊ, तुम तो लगता है सठिया गये हो...अरे सर्दी है कहां?

उसके द्वारा हमारे लिये सठियाना, संबोधन हमे नागवार गुजरा अत: हमने उसकी तरफ़ आंखे तरेर कर कहा - अबे गधे, ज्यादा मत उछल..कहीं ठंड में पिटा गया तो सारी दुल्लतियां झाडना भूल जायेगा.

वो बोला - ताऊ, जरा रजाई से बाहर निकल कर देखो...तुम तो उल्लू की तरह घर में दुबके रहते हो. अरे देखो..दिल्ली के शाहीन बाग में कितनी गर्मी है? दिल्ली का चुनाव तक गर्मा गया है. कसम से मैं तो रोज वहां चला जाता हूं और वहां इतनी गर्मी मिलती है कि अबकि बार मैंने स्वेटर मफ़लर वगरैह कुछ भी नहीं खरीदा. बस मजे ही मजे हैं.... चलो आज मेरे साथ तुम भी चलो...सारी ठंड नहीं भाग जाये तो मेरा नाम रामप्यारे नहीं.

हमने कहा - ये शाहीन बाग तुम्हें ही मुबारक हो, हम तो यहीं अच्छे..... वो बोला फ़िर ताऊ एक काम करो जरा ईरान अमेरिकी पंगों के बारे में पढा करो....वहां तो इतनी गर्मी है कि तुम बर्फ़ के पानी से नहाने लग जावो तो भी गर्मी नहीं मिटेगी.

हम रामप्यारे का मुंह ताकते जा रहे थे कि यह बक क्या रहा है? हमने कहा तू पागल हुआ है क्या?   बेवकूफ़ आदमी, ईरान अमेरिका कितनी दूर हैं?  भला वहां के बारे में पढकर गर्मी कैसे आयेगी?

वो बोला - वहां परमाणु बम फ़ोडने की बाते हो रही हैं तो सोचो कितनी गर्मी होगी? जरा महसूस करके देखो.....

हमने कहा - परमाणु बम तो पडौस में पाकिस्तान भी रोज फ़ोडने की धमकियां देता है और वो तो कहता है कि पाव आध सेर छंटाक दो छटांक के बम भी फ़ोड देगा....उससे ही गर्मी नहीं आ रही तो वहां से कैसे आयेगी?

वो बोला - ताऊ, अब ये पक्का तय हो गया कि तुम पक्के सठिया गये हो. कम से कम इतना तो समझो कि उसके पास परमाणु की जगह फ़ुस्सी बम है जो कभी गर्मी नहीं देगा. वो तो खाली पीली चमकाने का काम करते हैं.  पाकिस्तान का तो नारा हि यही है कि "बगल में लौटा मुंह में पान, बनकर रहेंगे बर्बादिस्तान".  उनकी अर्थ व्यवस्था देखो, जनता का हाल देखो....वो क्या बम फ़ोडेंगे?

हम रामप्यारे का मुंह देखते रह गये और लगा कि उसकी बातों से थोडी बहुत तो गर्मी आने लगी है.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग