हमने बहुत सोचा कि
आखिर इस छेडछाड का जन्म कहां हुआ होगा? बहुत दिमाग दौडाया तो देखा कि उदगम तो यहीं
पर है……विषय में ही हैड मास्साब ने नंदलाल का हिंट दे रखा है…..राज को समझने के लिये हमने सोचना शुरू कर दिया कि नंदलाल आखिर पनघट पर ही क्यों छेडा छाडी को अंजाम दिया
करते थे? छेडने के लिये तो और भी बहुत सारे ठिकाने रहे होंगे उनके पास..…फ़िर याद आया
कि उस जमाने में फ़ेसबुक या कोई शोसल साईट्स तो थी नही कि नंदलाल सुरक्षित रूप से वहां
छेडने का शौक पूरा कर लेते? आखिर छेडने के बादके परिणामों पर भी विचार करना पडता है.
फ़ेसबुक पर छेड छाड करली तो ज्यादा से ज्यादा अनफ़्रेंड होते या ब्लाक कर दिये जाते. पर
इस तरह सरेआम छेडछाड कर तो पिटने के सिवा कोई चारा ही नही है.
पर नंदलाल आखिर ठहरे नंदलाल….असुरक्षित रहने तक तो
उन्होंने महाभारत का युद्ध भी नही होने दिया था फ़िर खाली छेडछाड में पिटकर अपनी इकन्नी
करवा लेते तो फ़िर भगवान कैसे कहलाते? इसलिये हमने दिमाग पर ओर जोर आजामाईश के लिये दबाव बनाया
तो दूध का दूध और पानी का पानी हो गया कुछ ही देर में. समझ आ गया कि पनघट पर छेडना
बेहद सुरक्षित था. गोपियों के सर पर पानी से भरी गगरी है... और वो एक नही,,बल्कि दो सर पर और एक बगल में दबाये हुये..... ऐसे में किसी ने छेड
भी दिया तो वो उसके पीछे तो भाग नही सकती…… अब गगरी को सुरक्षित रखे या नंदलाल के दांत
तोडे? जाहिर है कुंये से दुबारा पानी निकालने के बजाये छिड लेना ही उचित लगा होगा
गोपियों को. नंदलाल यूं ही चौसठ कला निधान नहीं कहलाते, इस छेडछाड का प्रादुर्भाव भी
उन्हीं की देन हैं.
जीवन में छेडछाड का
उतना ही महत्व है जितना भोजन में नमक का. जीवन में यदि छेडछाड नहीं होती तो सोचिये
जीवन कितना नीरस होता? आम आदमी की तो छोडिये पर जीवन में छेडछाड देवी नहीं होती तो
इसका सबसे ज्यादा खामियाजा व्यंगकारों को सहना पडता. जो हमारी तरह जबरन सींग घुसेडने
वाले हैं वो तो गुमशुम निराश से कहीं पडे होते पर जो मंजे मंजाये अनुभवी, यानि पत्थर
में भी सींग घुसेडने में माहिर हैं, सोचिये उनका क्या होता?
बिना तगडे पंचों के
कोई श्रेष्ठ व्यंगकार नहीं माना जाता और सोचिये जब छेडछाड ही नही होती तो पंच कहां
से आते? ये तो छप्पनिये के अकाल जैसी स्थिति होती. फ़िर ये चहुं ओर विद्द्यमान ठिलुए
कहां से आते? रचना प्रकाशन पर आने वाले चेक कहां से आते? और तो और, इधर
उधर सींग घुसेडने से सींगों कि जो ट्रिमिंग मुफ़्त में हो जाती है वो कहां से होती? फ़िर तो बालों
की तरह सींगों को भी टाईम टाईम पर पैसे देकर कटवाने सैलून जाना पडता?
हमने सोच लिया कि अब
हमको भी शौकिया की बजाये खांटी व्यंगकार बनना है सो तुरंत हमने दिया बत्ती लगाकर आसन
ध्यान लगाया और छेडछाड देवी की आराधना शुरू करदी. और छेडछाड देवी तुरंत ही प्रकट होगई…हमें
उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी छेडछाड माता के दर्शन हो जायेंगे…..पर देवी सामने प्रत्यक्ष
खडी थी. उनका रूप देखकर कुछ समझ नहीं आया, कहीं से अति मनमोहक, कहीं से भद्दी…..कहीं
से मोटी…कहीं से पतली कमनीया…..हमने सोचा जोश जोश में कहीं किसी गलत देवी की आराधना
तो नहीं कर डाली? इस तरह डाक्टर के फ़ार्मुले की तरह तीखी, कडवी कहीं से मीठे स्वाद
वाली ये देवी कौन हैं?
इतनी ही देर में माता
बोली – मूर्ख, तेरे मन में संदेह होगया है पर मैं असली छेडछाड देवी ही हूं…..हमने डरते
हुये पूछा – देवी ये आपका इंदौरी नमकीन की तरह मिक्स खट्टा मीठा स्वरूप देखकर गफ़लत
में पड गये हैं….…वो कहने लगी – मेरे अंदर ही सारे स्वरूप विराजमान हैं….छेडछाड करने
वाले की भावना अनूरूप ही मैं दिखूंगी…..हम
आश्चर्य चकित से थे….बात कुछ समझ नहीं आ रही थी. हमारे मन की बात जानकर देवी बोली –
देख भक्त, जो जिस भावना से छेडछाड करता है मैं उसी अनुरूप दिखाई देती हूं और उसी अनुरूप परिणाम देती हूं…..और परमात्मा
के अंश की तरह मैं इस सृष्टि के कण कण में विद्द्यमान हूं….बिना मेरी उपस्थिति के जीवन
पनप ही नही सकता, धर्म, समाज और राजनीती भी नहीं चल सकती….
हमारे मन के संदेह
को भांपकर देवी बोली – बालक, मैं भगवान कृष्ण की इच्छा से पैदा हुई हूं, और उन्होंने
मुझे इतनी शक्ति दी है कि मैं छेडछाड वाले की बुद्धि उसके भाग्य के अनुरूप कर देती
हुं. किसी को मलाई खिलानी है तो उसे व्यंगकार के रूप में अच्छे हथौडे जैसे धारदार पंच
सुझा देती हूं और किसी को जूते खिलाने हैं तो आशाराम की तरह उसकी बुद्धि से छिछोरपने
वाली छेडछाड करवा देती हूं….. अभी तुमने देखा
ना….अंसारी साहब से कैसी छेडछाड करवाई? फ़ेसबुक पर कैसी छेडछाड करवाती हूं….इसी छेडछाड
के स्तर से कोई कोई परम दोस्त बन जाते हैं और कोई कोई परम दुश्मन…. बालक अब तुम मेरे बहुत फ़ुटेज खा चुके हो….अब मेरा
चलने का समय हो गया है……हमने बीच में टोका – देवी अभी मत जाईये, अभी हमारे बहुत से
प्रश्न अनुतरित हैं…..
छेडछाड देवी ने हमें
लगभग डांटते हुये कहा – तुम समझते क्यों नहीं हो? अभी मुझे जाकर किम जुंग ऊन से ट्रंप
को छिडवाना है…..उधर शी जिन पिंग भी मेरा इंतजार कर रहा है…तुमको तो एक पोस्ट लिखनी
है और मुझे सारा संसार संभालना है….यह कहकर छेडछाड देवी अंतर्ध्यान हो गई.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जय माता दी !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डॉ॰ विक्रम साराभाई की ९८ वीं जयंती “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteनमन छेड़छाड़ देवी को
ReplyDeleteसादर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
हा हा ... कहाँ से कहाँ पहुँच गयी ये छेड़ छाड़ भी ... कहीं ज्यादा ही न हो जाये कहीं ... अपने तृम्पू क तो पकड़ के रखना ...
ReplyDeleteआपके लेख ने मुस्कुराहट ला दी चेहरे पर .महंगाई के जमाने ये कम ही मिलती है .
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख
ReplyDeleteAd.sunilkumar
ReplyDeleteछेड़छाड़ देवी हा हा ...
ReplyDeleteनमस्कार व्यवस्थापक जी,
ReplyDeleteआपके द्वारा दी जा रही जानकारी मेरे लिए बहुत बहुमूल्य है , इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ।
आपकी जानकारी या न्यूज़ निपक्ष और अर्थपूर्ण रहती है। जिससे मैं आपकी ख़बरों को नियमित पढ़ता हूँ।
आदरणीय
https://www.news24ghante.com/