सिगरेट के धुआँ से
छल्ले उडाना और फ़ेसबुकिया चिंतन करना दोनों ही एक कला की श्रेणी में आते हैं. सिगरेट
के धुआँ से छल्ले उडाना जैसे हर किसी सिगरेट खींचू के बस का नही है वैसे ही फ़ेसबुकिया
चिंतन करना भी हर किसी के वश का रोग नही हैं. दोनों ही कामों में महारत हासिल करनी
पडती है. शुरू में सिगरेट पीने की शुरूआत किसी ताऊ किस्म के प्राणी की सद संगति में
ही संभव है वर्ना तो पहला कश खींचते ही फ़ेफ़डे धुआँ से भरकर भरभराने लगते हैं. इस समय
में यदि ट्रेनर दोस्त ढंग का हो तो आपको दम लगाने का सही तरीका सिखाकर ट्रेंड कर देता
है और उसके बाद तो नाना प्रकार के प्रयोग करते हुये आप आडे टेढे मेढे या जैसे भी चाहें
उस तरह के छल्ले उडा सकते हैं.
इसी प्रकार फ़ेस बुक
की शुरूआत में भी आपको किसी एक गुरू घंटाल की जरूरत अवश्य पडती है. पहले तो फ़ेसबुक
के तकनीकी बटनों को समझने की जरूरत में यही प्राईमरी गुरू आपको मार्गदर्शन देंगे और
कुछ ही समय में आप खुद काम चलाऊ तकनीक सीख जायेंगे. आपके लिये सुझाव यह है कि इस तकनीकी
कार्य के लिये किसी युवा, जो तकनीक का माहिर खिलाडी हो उसको अपना गुरू बनायें जैसे
हमने ब्लागिंग में श्री आशीष खंडेलवाल को बनाया. अभी किसी साहित्यकार, गुरूघंटाल या
व्यंगकार टाईप बुद्धिजीवी को गुरू बनाने की जरूरत नहीं है. इसकी जरूरत बाद में पडेगी.
जब आप तकनीकी कार्य
में अर्द्ध कुशल हो जायें तब आप शुरू हो जायें और जो मन में आये वो पोस्ट करना शुरू
कर दें….. विषय की चिंता बिल्कुल नहीं करें कि कोई क्या कहेगा? यहां ज्यादातर आपके
जैसे ही हैं. इस पर भी आपके दिमाग के ताले बंद हों तो लिजीये हम आपको बता देते हैं
कि आपको करना क्या है?
सुबह उठते ही बिस्तर
पर बैठ जाये और प्रभु को याद करने की बजाये अपने मोबाईल के फ़ेस बुक एप्प को अपने दाहिनें
हाथ की तर्जनी अंगुली से ठोकें (ध्यान रहे किसी और अंगुली का प्रयोग नही करना है वर्ना
अनहोनी हो सकती है) और लिखें कि आपको आज गहरी नींद आयी या नही आई… सपने में क्या देखा?......बाथरूम
में टुथपेस्ट मिला कि चूहे उठा ले गये रात को….और कहीं गूगल से ढूंढ कर चूहे का फ़ोटो
सटा दिजीये….…नाश्ते में घर वाली ने आलू मूली परांठा दिया या लठ्ठ मारे…..और यदि ब्रह्मचर्य
धारी हैं तो किसी अच्छी सी नाश्ते पानी वाली जगह का फ़ोटो सटा दिजिये नाश्ता करते हुये….ये
ध्यान रहे कि फ़ोटो वोटो का जुगाड एडवांस में करके रखें, जिससे समय की बचत होगी. इसके
बाद कुछ बिना देखे….यानि देखना या पढना नहीं है…चालीस पचास दोस्तों की पोस्ट पर लाईक
के बटन को अवश्य ठोक बजा दें, कुछ पर वाह वाह..आह आहा टाईप कापी पेस्ट मार दे (भले
ही कोई गमी की पोस्ट ही क्यों ना हो), यह इस बात की गारंटी होगी कि आपकी लगाई गई पोस्ट
पर इतने लाईक प्रतिदान में यार लोग ठोक ही जायेंगे तो आपको आपकी पोस्ट सूनी मांग वाली
नहीं लगेगी जैसी कि आजकल ब्लागर वाली पोस्टे निरी विधवा की सूनी मांग जैसा फ़ील देती
हैं.
अब आप अगले कदम के
लिये तैयार हैं, इत्ते दिनों में आपको यह पता लग ही गया होगा कि आपके ग्रूप में कौन
कौन मठाधीष है….बस इन मठाधीष टाईप गुरूओं की कोई भी पोस्ट आपकी उपस्थिति से महरूम ना
रह जाये, सतत लगे रहें, चटके के अलावा वाह वाह गुरू……आह आह गुरू….जैसे कमेंट अवश्य
ठोकते रहें, कुछ ही समय बाद आप देखेंगे कि गुरू स्वयं आपके इन बाक्स में प्रकट हो जायेंगे
और आपको विधिवत अपना शिष्य कबूल करके आपको फ़ेसबुक का परम ज्ञान प्रदान करेंगे. आप स्वयं
धन्य महसूस करेंगे, आप देखेंगे कि कुछ ही समय
बाद आपकी गिनती भी मूर्धन्य फ़ेसगुरुओं में होने लगेगी और आप भी एक दिन अपने स्वतंत्र
मठ की घोषणा करने के काबिल हो जायेंगे.
अब एक बहुत ही जरूरी
डिस्क्लेमर टाईप का ज्ञान आपको और देदेते हैं, समझ लिजीये कि उपरोक्त खटकर्म करते हुये आप पक्के
लतियल फ़ेसबुकिये बन चुके होंगे. सिगरेट की लत और फ़ेसबुक की लत दोनों एक समान होते हैं.
जैसे सिगरेट पीने का लतियल हो चुका मानव जब भी सिगरेट की लत छोडना चाहता है तब वो यही
प्रण करता है कि बस अब ये आखिरी सिगरेट पीलूं फ़िर कभी नही पीऊंगा….थोडी बहुत देर तक
उसे अपना वादा याद रहता है उसके बाद कब उसके हाथ में सिगरेट आ जाती है और कब वो जलाकर
पीने लगता है इस बात का उसको कोई एहसास ही नही रहता….पांच साथ घूंट खींचने के बाद उसे
अपना वादा याद आता है तब वो सोचता है कि अब दस बारह रूपये की सिगरेट कौन खराब करे….इसको
पी लेता हूं फ़िर इसके बाद कभी नहीं पीऊंगा और वो “कभी नही” फ़िर कभी नही लौटता. इसी
तरह फ़ेसबुक के लतियल भी जब कभी इस लत से छुटकारा पाने की कसम खाते हैं तब एक आध दिन
बाद ही उनको अपनी कसम याद नही रहती और गाफ़िल हुये ही कब अपना मोबाईल उठाकर फ़ेसबुक पर
चटके ठोकना शुरू कर देते हैं यह पता ही नही चलता, तब फ़िर वही सिगरेटिया चिंतन, कि अब पांच दस चटके मार ही दिये हैं बाकी पर नहीं
मारूंगा तो फ़ला फ़्रेंड नाराज होगा तो आज तो चटके मार लेता हूं कल से नही मारूंगा.
ना आदमी सिगरेट छोड सकता है और ना ही फ़ेसबुकियाना……..।
हाँ ,ये बात तो है .
ReplyDelete