"ताऊ मशरूम ने मेरी जिंदगी संवार दी" मिस समीरा टेढी

पहले के जमाने में गोरे होने का मतलब इतना ही होता था कि शादी ब्याह में आसानी होती थी, बिना किसी पंचायत के ब्याह हो जाता था. हमारे एक मित्र थे टुन्ना भिया, अब यों तो भिया बहुत गुणी और शरीफ़ थे पर काले इतने कि कोई भी लडकी शादी करने को तैयार नहीं हुई. आखिर एक जगह बात तय हुई और बारात लेकर पहुंच गये. पहले के जमाने में लडकी लडके का आपस में देखने दिखाने का जमाना तो था नहीं सो बात बन गई.  पर जब टुन्ना भिया घोडी पर सवार होकर तोरण पर पहुंचे तो लडकी की सहेली ने लडकी के कान में कहा कि लडका तो काले तव्वे की तरह काला ढुस्स है बस लडकी ने मना कर दिया और भिया की बारात बैरंग वापस आ गई. हमें भी बिना लड्डू खाये ही वापस आना पडा.

हमने तभी से तय कर लिया था कि इस कालेपन का इलाज जनकल्याण के लिये ढूंढना ही पडेगा और हमने सारे वेद शाश्त्र पढकर इसका इलाज ढूंंढ ही लिया. जी हां, ये एक मशरूम है जिसका सोमरस पीकर देवता इतने सुंदर, शक्तिशाली और गोरे चिट्टे हो गये. और अब तो आपको यकीन करना ही पडेगा, मोदी जी की धुर विरोधी कांग्रेस भी अब तो इसका समर्थन कर रही है. और तो और उधर भाजपाई कह रहे हैं कि राहुल बाबा भी इतने गोरे चिट्टे "ताऊ औष्धि फ़ार्म" का मशरूम खाकर ही हुये हैं और उनके गाल के डिंपल भी इन्हीं मशरूमों के सेवन से बने हैं.

आपको यकिन ना हो तो मिस समीरा टेढी को ही देख लिजीये. हमारे मशरूम सेवन से पहले एकदम काली कलूटी थी बिल्कुल  शुरूआती दिनों की फ़िल्म अभिनेत्री रेखा की तरह और आज देखिये दुनियां की सफ़लतम अभिनेत्री और माडल है.


मिस समीरा टेढी "ताऊ मशरूम" सेवन से पहले 

और अब नीचे की तस्वीर देखिये "ताऊ मशरूम" सेवन के चंद दिनों बाद ही गोरी होकर एक सफ़ल माडल और सफ़लतम अभिनेत्री बन गई. उन्हीं के शब्दों में "ताऊ मशरूम ने मेरी जिंदगी संवार दी" और सेवन के बाद आप भी ऐसा ही कहने को मजबूर हो जायेंगे.





जल्दी किजीये, ताऊ मशरूम की सप्लाई बहुत ही सीमित है. कहीं पछ्ताना ना पडे कि आपको उपलब्ध नहीं करवा सके. 

कीमत : 

गोरेपन वाली मशरूम :  80 हजार प्रति नग
गोरापन एवम डिंपल वाली मशरूम : 90 हजार प्रति नग

सेवन विधि : प्रतिदिन 5 मशरूम के सेवन से तीव्र गति से असर होता है.
 
 

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छेडछाड देवी ने ताऊ को साक्षात दर्शन दिये...



हमने बहुत सोचा कि आखिर इस छेडछाड का जन्म कहां हुआ होगा? बहुत दिमाग दौडाया तो देखा कि उदगम तो यहीं पर है……विषय में ही हैड मास्साब ने नंदलाल का हिंट दे रखा है…..राज को समझने के लिये हमने सोचना शुरू कर दिया कि नंदलाल आखिर पनघट पर ही क्यों छेडा छाडी को अंजाम दिया करते थे? छेडने के लिये तो और भी बहुत सारे ठिकाने रहे होंगे उनके पास..…फ़िर याद आया कि उस जमाने में फ़ेसबुक या कोई शोसल साईट्स तो थी नही कि नंदलाल सुरक्षित रूप से वहां छेडने का शौक पूरा कर लेते? आखिर छेडने के बादके परिणामों पर भी विचार करना पडता है. फ़ेसबुक पर छेड छाड करली तो ज्यादा से ज्यादा अनफ़्रेंड होते या ब्लाक कर दिये जाते. पर इस तरह सरेआम छेडछाड कर तो पिटने के सिवा कोई चारा ही नही है. 

पर नंदलाल आखिर ठहरे नंदलाल….असुरक्षित रहने तक तो उन्होंने महाभारत का युद्ध भी नही होने दिया था फ़िर खाली छेडछाड में पिटकर अपनी इकन्नी करवा लेते तो फ़िर भगवान कैसे कहलाते? इसलिये हमने दिमाग पर ओर जोर आजामाईश के लिये दबाव बनाया तो दूध का दूध और पानी का पानी  हो गया कुछ ही देर में. समझ आ गया कि पनघट पर छेडना बेहद सुरक्षित था. गोपियों के सर पर पानी से भरी गगरी है... और वो एक नही,,बल्कि दो सर पर और एक बगल में दबाये हुये..... ऐसे में किसी ने छेड भी दिया तो वो उसके पीछे तो भाग नही सकती…… अब गगरी को सुरक्षित रखे या नंदलाल के दांत तोडे? जाहिर है कुंये से दुबारा पानी निकालने के बजाये छिड लेना ही उचित लगा होगा गोपियों को. नंदलाल यूं ही चौसठ कला निधान नहीं कहलाते, इस छेडछाड का प्रादुर्भाव भी उन्हीं की देन हैं.

जीवन में छेडछाड का उतना ही महत्व है जितना भोजन में नमक का. जीवन में यदि छेडछाड नहीं होती तो सोचिये जीवन कितना नीरस होता? आम आदमी की तो छोडिये पर जीवन में छेडछाड देवी नहीं होती तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा व्यंगकारों को सहना पडता. जो हमारी तरह जबरन सींग घुसेडने वाले हैं वो तो गुमशुम निराश से कहीं पडे होते पर जो मंजे मंजाये अनुभवी, यानि पत्थर में भी सींग घुसेडने में माहिर हैं, सोचिये उनका क्या होता? 

बिना तगडे पंचों के कोई श्रेष्ठ व्यंगकार नहीं माना जाता और सोचिये जब छेडछाड ही नही होती तो पंच कहां से आते? ये तो छप्पनिये के अकाल जैसी स्थिति होती. फ़िर ये चहुं ओर विद्द्यमान ठिलुए कहां से आते? रचना प्रकाशन पर आने वाले चेक कहां से आते? और तो और, इधर उधर सींग घुसेडने से सींगों कि जो ट्रिमिंग मुफ़्त में हो जाती है वो कहां से होती? फ़िर तो बालों की तरह सींगों को भी टाईम टाईम पर पैसे देकर कटवाने सैलून जाना पडता?

हमने सोच लिया कि अब हमको भी शौकिया की बजाये खांटी व्यंगकार बनना है सो तुरंत हमने दिया बत्ती लगाकर आसन ध्यान लगाया और छेडछाड देवी की आराधना शुरू करदी. और छेडछाड देवी तुरंत ही प्रकट होगई…हमें उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी छेडछाड माता के दर्शन हो जायेंगे…..पर देवी सामने प्रत्यक्ष खडी थी. उनका रूप देखकर कुछ समझ नहीं आया, कहीं से अति मनमोहक, कहीं से भद्दी…..कहीं से मोटी…कहीं से पतली कमनीया…..हमने सोचा जोश जोश में कहीं किसी गलत देवी की आराधना तो नहीं कर डाली? इस तरह डाक्टर के फ़ार्मुले की तरह तीखी, कडवी कहीं से मीठे स्वाद वाली ये देवी कौन हैं?

इतनी ही देर में माता बोली – मूर्ख, तेरे मन में संदेह होगया है पर मैं असली छेडछाड देवी ही हूं…..हमने डरते हुये पूछा – देवी ये आपका इंदौरी नमकीन की तरह मिक्स खट्टा मीठा स्वरूप देखकर गफ़लत में पड गये हैं….…वो कहने लगी – मेरे अंदर ही सारे स्वरूप विराजमान हैं….छेडछाड करने वाले की भावना अनूरूप ही  मैं दिखूंगी…..हम आश्चर्य चकित से थे….बात कुछ समझ नहीं आ रही थी. हमारे मन की बात जानकर देवी बोली – देख भक्त, जो जिस भावना से छेडछाड करता है मैं उसी अनुरूप दिखाई देती हूं और उसी अनुरूप परिणाम देती हूं…..और परमात्मा के अंश की तरह मैं  इस सृष्टि के कण कण में विद्द्यमान हूं….बिना मेरी उपस्थिति के जीवन पनप ही नही सकता, धर्म, समाज और राजनीती भी नहीं चल सकती….

हमारे मन के संदेह को भांपकर देवी बोली – बालक, मैं भगवान कृष्ण की इच्छा से पैदा हुई हूं, और उन्होंने मुझे इतनी शक्ति दी है कि मैं छेडछाड वाले की बुद्धि उसके भाग्य के अनुरूप कर देती हुं. किसी को मलाई खिलानी है तो उसे व्यंगकार के रूप में अच्छे हथौडे जैसे धारदार पंच सुझा देती हूं और किसी को जूते खिलाने हैं तो आशाराम की तरह उसकी बुद्धि से छिछोरपने वाली  छेडछाड करवा देती हूं….. अभी तुमने देखा ना….अंसारी साहब से कैसी छेडछाड करवाई? फ़ेसबुक पर कैसी छेडछाड करवाती हूं….इसी छेडछाड के स्तर से कोई कोई परम दोस्त बन जाते हैं और कोई कोई परम दुश्मन….  बालक अब तुम मेरे बहुत फ़ुटेज खा चुके हो….अब मेरा चलने का समय हो गया है……हमने बीच में टोका – देवी अभी मत जाईये, अभी हमारे बहुत से प्रश्न अनुतरित हैं…..

छेडछाड देवी ने हमें लगभग डांटते हुये कहा – तुम समझते क्यों नहीं हो? अभी मुझे जाकर किम जुंग ऊन से ट्रंप को छिडवाना है…..उधर शी जिन पिंग भी मेरा इंतजार कर रहा है…तुमको तो एक पोस्ट लिखनी है और मुझे सारा संसार संभालना है….यह कहकर छेडछाड देवी अंतर्ध्यान हो गई.
     

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नार्थ कोरिया अमेरिका सुलह वार्ता में पंच ताऊ

कल दुनियां के शेयर बाजारों में मंदी की बहार छाई रही। हड़कम्पियाने पर कारण पता चला कि ट्रम्प चच्चा ने सूमो पहलवान भतीजे जिसे दुनियां मोटू पहलवान या किम जोंग-उन के नाम से जानती है,  को झन्नाट चेतावनी जारी कर दी कि अब सुधर जाओ वरना तेरे घर में घुसकर तेरी ऐसी तैसी कर दूंगा।

अब भतीजा भी कोई कम नही है, पक्का ठस पहलवान ठहरा सो बोला - ओए चच्चा, अपनी औकात में रह वरना तू तो मेरे घर क्या खाके आएगा बल्कि मैं घर में बैठे बैठे ही तुझ पर परमाणु मिसाईल डाल दूँगा फिर तू रोने लायक भी नही बचेगा।

बात कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो जैसा कि सब युद्धों से पूर्व होता आया है, पहले शांति वार्ता अवश्य करवाई जाती है जैसा कि राम रावण युद्ध या महाभारत युद्ध के पहले करवाई गई थी। नियम मुताबिक किसी शांति दूत की तलाश की जाने लगी।

एक प्रस्ताव इस कार्य के लिए चीन का आया की मोटू पहलवान चीन का दोस्त है उसे वही समझा सकता है जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नार्थ कोरिया और पाकिस्तान तो चीन के ही बिगाड़े हुए हैं। चीन ने मोटू को कह रखा है कि तू अमेरिका को चमकाता रह और पाकिस्तान को भारत को चमकाने का जिम्मा दे रखा है अतः कोई तटस्थ को ढूंढा जाए।

सारी दुनिया पर नजर डालने के बाद आखिर पंचों की सहमति ताऊ के नाम पर बन गई। इन दोनों के मध्य सुलह करवाने के लिए ताऊ ने अथक प्रयत्न  करके ट्रम्प और किम मोटे को शांति वार्ता के लिए एक टेबल पर अपने दाएं बाएं बैठा लिया।

बहुत मशक्कत के बाद भी दोनों में से कोई टस से मस होने को तैयार नही हुआ। ट्रम्प ऐसे आंखे मिच मिचा रहा था जैसे आंखों से ही लेजर बम,  पहलवान पर डालकर उसे खत्म कर देगा और उधर किम पहलवान किसी घुटे हुए व्यंगकार के पंचों जैसा ताल ठोक कर चुनौती देरहा था। ताऊ परेशान होकर सोचने लगा कि ये दोनों तो मानने वाले हैं नही और अब दुनियां की तबाही पक्की समझो।

दोनों पक्ष पहलवानों की तरह अखाड़े में डटे थे, इधर ताऊ की बुद्धि तेजी से सोचने का काम कर रही थी। अचानक  उन दोनों को ताल ठोकते देखकर ताऊ के दिमाग में आइडिया कौंधा और ताऊ बोला - देखो भाई पहलवानों, तुम अपनी झक और दादागिरी जमाने के चक्कर में क्यों इस दुनिया को मिटाने पर तुले हो? तुम एक काम करो कि आपस में फ्री स्टाइल कुश्ती लडलो, जो कुश्ती जीत जाएगा, यह दुनियां उसी की दादागिरी स्वीकार कर लेगी और परमाणु तबाही से भी बच जाएगी।

ताऊ का प्रस्ताव दोनों ने मान लिया और दोनों अखाड़े में कूद पड़े। कुश्ती शुरू करने के लिए...रेफरी ताऊ ने व्हिसल बजाई....दोनों अखाड़े में ऐसे गोल गोल घूमने लगे जैसे कुत्तों की पूंछ के नीचे पेट्रोल लगा फाया रख दिया गया हो....तभी किम ने फुंफकारते हुए ट्रम्प की तरफ किसी सधे हुए व्यंगकार के जैसा पंच मारने के लिए दौड़ लगादी, ऐसा लगा कि इस पंच से अब ट्रम्प का बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन है....तभी पुराने चावल ट्रम्प ने ना केवल पंच बचाया बल्कि मोटू के सीने पर एक घुटे हुए व्यंगकार के पंच जैसा मुक्का जमा दिया…........ ये लो...ये क्या क्या हुआ? हमारी नींद ताई के लठ्ठ से खुली जो लठ मारते हुए बोले जा रही थी कि सबेरे के साढ़े आठ बज गए....आफिस कौन जाएगा?

ये ताई का लठ्ठ भी हमारे उन सपनों को चकनाचूर कर देता है जिनमें हम कोई अंतरराष्ट्रीय महत्व का काम करके नोबल शांति पुरस्कार पाने का जुगाड़  कर रहे होते हैं।

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आज रायता दिवस है यारो...अफ़वाह की कोशीश मुकम्मल की जाये..



आज संटू भिया के कबाडखाने में उनको फ़्रेंडशिप बैंड बांधने पहुंचे ही थे कि सामने एक अनिंध्य सुंदरी को बैठे पाया. उसे देखते ही हमारे मन में संटू भिया के प्रति, आज मित्रता दिवस होने के बावजूद भी अमित्रता दिवस वाली फ़ीलींग आने लगी…..हमारे सामने ही बैठी सुंदरी ने शायद हमारे मन के भावों को पढ लिया था….वो कहने लगी – ज्यादा उल्टा सीधा दिमाग मत दौडावो, तुम जो सोच रहे हो वैसा कुछ नही है. उसके कहने के ढंग में एक बेबाकी और सच्चाई सी लगी हमको सो हमने उससे परिचय पूछ लिया.

वो कहने लगी – मेरा नाम है कुमारी अफ़वाह “विश्व”…….नाम सुनते ही हमने बीच में टोक कर पूछ लिया कि ये कैसा नाम है? और ये “विश्व” कोई तखल्लुस है या आप कौन जाति से संबंध रखती हैं देवी?

वो बोली – मैं ना किसी जात से संबंध रखती हूं और ना किसी धर्म से, पूरा विश्व ही मेरा घर और धर्म है इसलिये मेरा तखल्लुस है “विश्व”, मैं सर्व संसार व्यापी हुं. मैं तो सिर्फ़ मठाधीषों का एक शस्त्र हूं…चाहे धर्म हो या राजनीति… आज तक धरती पर मुझ से ज्यादा सुंदर नाम और काम किसी का नही है… पर ना जाने किस मनहूस ने मेरी जैसी अफ़वाह सुंदरी को बदनाम करके रख दिया…..हमने कहा – देवी जी, आप परम सुंदरी हैं इसमे तो कोई शक शुबहा…किसी को हो ही नहीं सकता पर आपके काम कैसे सुंदर हो सकते हैं? आप जैसी सुंदरी को तो अपना नाम बदल लेना चाहिये…..

हमारे मुंह से नाम बदलने की बात सुनते ही वो घायल शेरनी की तरह गुर्राई…हम डर कर भागने वाले ही थे कि वो बोली – चुपचाप बैठो और खबरदार जो भागने की कोशीश की तो…मेरी गति प्रकाश की गति से भी तेज है, तुम मुझसे बचकर नही जा सकते. तुम कहते हो मैं अपना नाम बदल लूं…क्यों बदल लूं? पर तुम मनुष्य लोग हो ही नाशुक्रे, गुड खाकर गुलगलों से परहेज का नाटक करने वाले. यदि मैं ना रहूं तो तुम्हारा धर्म, समाज और मठाधिषी भी नहीं चलेंगे और सरकारें तो चाहे कहीं की भी हों वो तो मेरे बिना चल ही नहीं सकती……उसकी आंखे आवेश में लाल लाल दिखने लगी थी….अंदर से हम डर चुके थे पर ऊपर से सामान्य दिखने की कोशीश करते हुये बोले – देवी जी आपकी बात कूछ समझ में नही आई, आप तो धर्म समाज, सरकार और मठाधीशी का नुक्सान ही करती हैं जैसे अभी आशाराम बापू….और उनके जैसे कई बापूओं का कर दिया?

वो बोली – तुम ज्यादा शरीफ़ तो बनों मत, इन बापूओं को बनाया किसने? मैंने ही बनाया ना, इनके बारे में उल्टी सीधी महानता की अफ़वाहें फ़ैलाकर? मैं नहीं होती तो ये मठाधीष भी नहीं होते. जहां तक राजनीती की बात है तो कोई भी चुनाव मेरी सहायता के बिना नही जीता जा सकता. अब तुमको उदाहरण देकर गिनवाऊं क्या? अब हमको उसकी बातों पर यकिन हो चला था सो हमने उसकी हां में हां मिलाते हुये कहा – हां देवी, क्षमा करियेगा, हमने आपके योगदान को इस एंगल से कभी सोचा ही नहीं था. आप तो आज की सृष्टि में परम आवश्यक तत्व हैं, आपतो सदैव अग्र पूज्यनीय हैं…सच में आपके बिना आज की तारीख में ना धर्म चलाया जा सकता है और ना ही राजनीती की जा सकती है. इसीलिये आजकल चीन में भी सता परिवर्तन के चलते डोकलाम में भी आपका ही नाम हाईलाईट हो रहा है?

वो बोली – तुम रहने दो ये बातें तुम्हारी समझ में नही आयेंगी. तुम साधारण मनुष्य हो और साधारण ही रहो और आज रायता दिवस है, उसे मनाकर ही खुश रहो तो बढिया है.

उसकी बात सुनकर हमने आंखे चौडी करते हुये पूछा – देवी आप ये क्या कह रही हैं? आज तो मित्रता दिवस है और आप इसे रायता दिवस बता रही हैं? उसने बडी अदा से कातिल मुस्कान होंठो पर लाते हुये कहा – अरे ताऊ तुम जन्मजात ताऊ हो और ताऊ ही रहोगे. भले आदमी, मैंने मित्रता दिवस का सामान बेचने वालों से सुपारी लेकर रायता दिवस को मित्रता दिवस होने की अफ़वाह फ़ैलाई थी और तुम जैसे भोले भाले प्राणी भी इसके चक्कर में आकर निकल लिये फ़्रेण्डशिप बैंड खरीद्ने माल की तरफ़? मूर्ख आदमी, जरा सोच, मित्रता का भी कोई एक दिन निर्धारित हो सकता है क्या? अरे मित्रता है तो बारहों महिने है…मित्रता क्या कोई एक दिन के लिये हो सकती है?

उसकी बातों में दम तो था सो हमने पूछा – देवी, मित्रता दिवस की हकीकत तो समझ आगई पर आप कुछ रायता दिवस की बात कर रही थी? वो क्या है?

वो बोली – असल में आज रायता दिवस है यानि मित्रों को उनकी कमिया और खामियां बताकर उन्हें दूर करवाने का दिन, जिससे मित्रता भले ही समाप्त हो जाये पर मित्र अवश्य बचा रहेगा. बारहों महिने मित्रता रहने से उसमें उसी तरह कीडे पड जाते हैं जैसे ज्यादा मीठे में पडते हैं. आज के दिन तो मित्रों की पोल खोलने का दिन है, उनके जो भी दबे छुपे राज हैं उनको सार्वजनिक करने का दिन है. किसी का कहीं चक्कर चल रहा है तो आज उसके स्पाऊज को खबर करके उनके घर में रायता फ़ैलवाने का दिन है… और ये काम सावधानी से करना…ध्यान रहे कि मेरा काटा पानी भी नही मांगता…. अब जावो और जाकर रायता फ़ैलाओ….और यह कहते हुये वो ऊठकर जाने के लिये खडी होगई.

हमने पूछा – देवी जी, जरा राजनीती के धुरंधरों के बारे में भी कुछ बता जाती? वो चलते चलते बोली – तुम मुझे आदमी कुछ अच्छे लगे सो तुमको इन मोदी, शाह, केजरी, राहुल, लालू, नीतीश से लेकर पुतिन, ट्रंप और शी जिन पिंग… सबके बारे में एक दिन अवश्य बताऊंगी, अभी मुझे देर हो रही है एक बडी अफ़वाह फ़ैलाने की सुपारी लेने जाने का समय होगया है….और यह कहते कहते वह गेट से बाहर होगई.

अफ़वाह सुंदरी से मिलकर हमको एक अपराध बोध सा होने लगा और बरबस किसी शायर की कभी पढी हुई  ये पंक्तियां जेहन में ताजा हो आई...

संभल संभल के बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं
पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं
कदम कदम पे' मुझे टोकता है दिल ऐसे
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं 
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गठबंधन टूटा रे हाय..बरेली के बाजार में......

कई दिनों से लिखने का मूड ही नहीं हो रहा है, कुछ लिखने बैठो तो कोई ना कोई काम आ टपकता है और कुछ काम ना टपके तो ताई का लठ्ठ  सर पर सवार रहता है. ऐसे में लिखने का स्विच आफ़ मोड में  ही रहता है. इसी मूड के चलते  हैड मास्साब के आदेश का पालन करने के लिये व्यंग में भी कहीं सींग घुसेडने की इच्छा नहीं हो रही है. व्यंग लिखना कोई आसान काम नही है. व्यंग लिखते हुये सींग घुसेडने पडते हैं और ये सींग भी कोई ऐसे वैसे नही होने चाहिये. व्यंग के लिये बछडे जैसे सींग होने चाहिये जो होते भी हैं और नही भी होते और हम ठहरे बुढ्ढे बैल...अब बुढ्ढे बैल के सींग किसी को ज्यादा घुसेडियादो तो फ़ोकट में फ़ौजदारी में फ़ंसने का अलग लफ़डा....और मास्साब ने भी विषय दे दिया "गठबंधन".....अब ऐसे कठिन विषय पर कहां अपने बुढ्ढे सींग घुसेडें ? लालू कंपनी को घुसेड दो तो वो नाराज....पता नहीं कब वो जड से हमारी सत्ता को उखाड फ़ेंके? और दूसरे पक्ष को तो आप सींग घुसडने की सोच ही नही सकते. उनकी अभी तक पुरानी अदावत ही चल रही हैं, बेचारे अहमक पटेल के पीछे पडे हैं.....इसलिये हमने तय कर लिया कि "गठबंधन" में सींग नहीं घुसेडेंगे.....तो बस नहीं घुसेडेंगे.
कहावत प्रसिद्ध है कि चोर चोरी से जाये पर हेराफ़ेरी से ना जाये....सो लिखना नहीं हो रहा तो सोचा कुछ पढा ही जाये, इसी इच्छा के चलते ब्लाग पोस्ट पढने वाली आवारागी में निकल पडे. आजकल कुछ लोग नियमित से लिखने लगे हैं सो इस आवारगी में भी काफ़ी मसाला मिल जाता है. घूमते घामते हम पहुंच गये सदाबहार ब्लागर काजल कुमार जी के ब्लाग पर और इधर उधर नजर दौडाते हुये  हमारी नजर पडी "बरेली के बाज़ार में चुटि‍या कटी रे"  ....वाले कार्टून पर....बस गठबंधन और चुटियाबंधन का सारा माजरा समझ में आगया. यदि अपनी मर्जी से ही कोई बंधन तोडना हो तो किसी दूसरे को क्या दोष दिया जाये?
असल में गठबंधन तोडने के लिये नीतीश बाबू ने जैसे माहोल बनाया, अपने को पाक साफ़ दिखाया, अपने भविष्य को समझा तो उन्हें लग गया कि इस लठबंधन में बने रहने के बजाये चाय कंपनी में चाय बनाना ही स्वर्णिम भविष्य का द्वार है सो उन्होंने लालू जी को धोबीपाट दे मारा और चाय की केतली को सिगडी पर चढा दिया.  लालू जी इस धोबीपाट के लिये शायद पूरी तरह तैयार नहीं थे सो वो सन्निपात के रोगी की तरह गठबंधन धर्म वाले राग की महफ़िल, तीन ताल में, मिडिया पर सजा बैठे, एक प्रबुद्ध महात्मा की तरह जनता को गठबंधन माहात्म्य सुनाते रहे.
लालू जी और नीतीश जी दोनों के,  लठबंधन धर्म के प्रवचनों को सुनकर महिलाओं को अपने चुटियाबंधन से निजात पाने का एक अचूक फ़ार्मुला मिल गया. असल में ये चोटी कटुआ कोई  है ही नही बल्कि ये तो नितीश जी की तरह,  स्वयं महिलाओं ने चुटिया से आजादी पाने का नायाब फ़ार्मुला खोज लिया है. अब जिनको भी इससे मुक्ति पाकर बाब कट हेयर स्टाईल रखनी है, वो चोटी कटुआ का नाम लगा रही हैं और अपनी दिली इच्छा पूरी कर रही हैं.
लालू नीतीश के गठबंधन को तोडने का सारा दोष सरकार पर आ रहा है और इसी तरह चोटी कटुआ से बचाने का दबाव भी सरकार पर आ रहा है. अब बताईये इसमे सरकार क्या करे? लालू नीतीश ने अपना गठबंधन भी खुद तोडा और महिलाएं भी अपना चुटिया बंधन खुद ही तोड रही हैं तो सरकार को दोष क्यों? यदि कोई चोटी कटुआ होता तो जरूर किसी ना किसी पुरूष पर भी अवश्य हाथ आजमाता. चोटी कटुआ के पास महिला पुरूष में भेदभाव करने का कोई उपाय भी नही है. अंधेरे में सोया पुरूष है या महिला....ये उसे कैसे मालूम पडेगा?
फ़िलहाल अपना लिखने का कोई मूड है ही नही सो गठबंधन टूटे या चुटिया बंधन टूटे, हमे इससे क्या? हमारी रक्षक तो माता बखेडा वाली है. जब भी संकट आता है उसका सवा पांच आने का परसाद बोल देते हैं और पनौती टल जाती है.
  
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मोदी जी के नाम ताऊ का खुला खत

मोदी जी के नाम ताऊ का खुला खत
आदरणीय मोदीजी,
आज Rakesh Kumar Jain जी ने निम्न सवाल उठाया है। मैं पहले ही निवेदन कर देता हूँ कि यदि इस सवाल को लेकर कोई सजा हो तो जैन साहब को ही देना क्योंकि सवाल मेरा नही, उनका है, मैं तो पहले ही भगतों की गिनती में हूँ।😊

सभी लोगों ने गिन कर 500/- और 1000/- के पुराने नोट बैंको में जमा कराऐ, सभी बैंको ने गिन कर रुपये लिये ! सभी जमा नोटों की संख्या समेत रोज रिपोर्ट रिजर्व बैंक को दी ! बैंको ने गिन कर नोट चैस्ट में जमा कराऐ ! चैस्टों ने गिन कर रुपया लिया ! चैस्टों ने गिन कर रूपया रिजर्व बैंक में जमा कराया ! रिजर्व बैंक ने गिन कर रूपये लिऐ ! सभी बैंक कमप्यूटराइज हैं ! रोज हिसाब मिलाते हैं ! एक एक नोट का हिसाब है ! फिर भी सरकार नो महीने में भी बता नहीं पा रही है कि 500  और 1000/- के नोटों के रूप में कुल कितने रुपये जमा हुऐ हैं !

और सरकार चाहती है कि व्यापारी महीने में तीन बार अपना हिसाब और स्टॉक फिगर दे ! कैसी विडंबना है ? 🤔

अब बताइये आपका क्या कहना है? व्यापारी अपने काम धंधे में मन लगाए या सारा समय आपके टेक्स का हिसाब किताब ही करता रहे?

बहुत से व्यापारी अपने व्यापार और बही खातों का संचालन अकेले ही करते हैं, वो अकाउंटेंट रखना अफोर्ड नही कर सकते।

ताऊ का एक विनम्र सुझाव है कि आप हर व्यापारी के यहां आपका एक एक कर्मचारी नियुक्त करदें, जो दिन भर की खरीद बिक्री का हिसाब करता रहे और रोज शाम को ही आपके टेक्स का पैसा लेकर रसीद देकर चला जाये।

आपके उत्तर की प्रतीक्षा में
#ताऊ
#मोदीजी
#हिन्दी_ब्लागिंग

जिधर देखो उधर बाढ ही बाढ....



संटू भिया के कबाडखाने में मित्र मंडली जमी हुई थी पोहे जलेबी के नाश्ते वाले साप्ताहिक कार्यक्रम में, पर संटू भिया परेशान नजर आरहे थे. उनसे पूछने पर पता चला कि वो बरसात नही आने से परेशान हो रहे हैं. सारे जमाने में बाढ आई हुई है और हमारे यहां बाढ तो छोडिये वर्षा के नाम पर सरकारी नलों से टपकते पानी की तरह इंद्र देवता बरस रहे हैं…यानि इंद्र देव भी अबकि बार सरकारी तरीके से जल प्रदाय कर रहे हैं. अभी तक शहर के तालाब भी पूरे नही भर पाये हैं. यह तो शहर वासियों का इंद्र देव की तरफ़ से घोर अपमान है….वाह रे इंद्र भगवान, सबको लड्डू और हमको फ़ीकी बूंदी भी नही? पर अब इंद्र देव का क्या, उन्होंने कोई शोले फ़िल्म के जय वीरू की तरह, ठाकुर से गब्बर को मारने की सुपारी तो  ली नही है कि बरसना ही पडेगा और बाढ भी लानी ही पडेगी.

माहोल को चिंताजनक देखकर रमलू भिया चाय वाले ने कहा – यार संटू भिया क्यों परेशान हो रहे हो? ना बरसे पानी तो मत बरसने दो, अपने यहां तो नर्मदा माई की किरपा है जो बारहों महिने पानी तो पिला ही देगी. इस बात पर भिया भडक उठे – रमलू तू अपनी काली जबान को लगाम देकर रखा कर, अरे बरसात नही होगी और बाढ नही आयेगी तो अपना जलवा कहां से दिखेगा?
अब ये जलवे वाली बात सुनकर हमारे चौंकने की बारी थी सो हमने प्रश्नसूचक चक्षुओं से संटू भिया की तरफ़ देखा तो वो बोले – अमा यार तुम तो कुछ समझते ही नही हो…अरे जब बाढ आती है हर साल तो हम निचली बस्तियों में अपने पठ्ठों की टीम को लेकर जाते हैं और वहां से गरीब लोगों को निकालकर सरकारी स्कूल और धर्मशालाओं में पहुंचाते हैं…..फ़िर उनके खाने पीने के भंडारे का इंतजाम करवाते हैं…और सबसे ज्यादा मजा तो तब आता हैगा जब अगले दिन हमारा फ़ोटों और खबर सब अखबारों में छ्पती हैगी..….कसम से हमारा सीना गर्व से तन जाता है और पुण्य मिलता है वो अलग से. पर इस बार लगता है इंद्र भगवान हमको पुण्य नही कमाने देगा और ना ही अखबार में फ़ोटो छपने देगा.

हमने कहा – इतना क्यों परेशान हो रहे हो? अखबार छोडो…हम तो तुम्हें टीवी में छा जाने की स्कीम बता सकते हैं? अब संटू भिया की प्रश्नसूचक निगाहे हमारे थोबडे की तरफ़ थी सो हमने जरा रूककर थोडा भाव खाते हुये कहा – देखो भिया यदि बाढ का इतना ही शौक है तो कुछ मुकेश भिया की तरह करो. देखो उन्होने मोबाईल की बाढ ला दी की नही? पहले इंटरनेट की बाढ लाये थे तब सब अखबार और टीवी में उनकी ही बाढ थी, उनकी इस बाढ में सारी टेलीकाम कंपनिया बह गई की नही? और आज फ़ोकट के फ़ोन की बाढ ला दी, जिसमे बडी बडी मोबाईल बनाने वाली कंपनियां बहती क्या तैरती नजर आयेंगी आपको. तुम भी कुछ बडा करने की सोचो….

संटू भिया ने जलेबी का एक टुकडा मुंह में रखते हुये कहा – अमा यार तुमतो ऐसे बात कर रिये हो जैसे हम सर सेठ हुकुम चंद जी वारिश हैंगे. भिया हमारे पास तो ये एक कबाड खाना है और इसे भी लुटा देंगे तो भी किसी टीवी या अखबार वाले के कानों पर जूं नही रेंगेंगी और सबसे बडी बात तो ये कि फ़िर हम बच्चों को पालेंगे कैसे?
 
हमने कहा संटू भिया आप बस अपने बच्चे ही पालिये….ये बाढ वाढ के सपने छोडिये. अरे बाढ तो आजकल चीन और पाकिस्तान के खिलाफ़ बयान देने वाले वीर बहादुरों की आई हुई है. ये वीर बहादुर अपने बयानो की बाढ से अब की अब दोनों से सर फ़ुट्टोवल करा सकते हैं. जिधर टीवी पर देखो बस यही बाढ लाते रहते हैं.  आजकल चीन के साथ डोकलाम मुद्दे पर बाढ आई हुई है, कुछ दिन पहले जीएसटी की बाढ आई हुई थी. कल किसी और की बाढ ले आयेंगे. तुमको टीवी और अखबार में छ्पने का शौक है तो हमारे शहर में बाढ लाकर पुण्य कमाने की बजाये जाकर किसी राजनैतिक पाटी के प्रवक्ता बन जावो और रोज जमकर बाढ लावो…हमारे शहर को तो बख्शो भिया.

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