आज संटू भिया के कबाडखाने
में उनको फ़्रेंडशिप बैंड बांधने पहुंचे ही थे कि सामने एक अनिंध्य सुंदरी को बैठे पाया.
उसे देखते ही हमारे मन में संटू भिया के प्रति, आज मित्रता दिवस होने के बावजूद भी
अमित्रता दिवस वाली फ़ीलींग आने लगी…..हमारे सामने ही बैठी सुंदरी ने शायद हमारे मन
के भावों को पढ लिया था….वो कहने लगी – ज्यादा उल्टा सीधा दिमाग मत दौडावो, तुम जो
सोच रहे हो वैसा कुछ नही है. उसके कहने के ढंग में एक बेबाकी और सच्चाई सी लगी हमको
सो हमने उससे परिचय पूछ लिया.
वो कहने लगी – मेरा
नाम है कुमारी अफ़वाह “विश्व”…….नाम सुनते ही हमने बीच में टोक कर पूछ लिया कि ये कैसा
नाम है? और ये “विश्व” कोई तखल्लुस है या आप कौन जाति से संबंध रखती हैं देवी?
वो बोली – मैं ना किसी
जात से संबंध रखती हूं और ना किसी धर्म से, पूरा विश्व ही मेरा घर और धर्म है इसलिये
मेरा तखल्लुस है “विश्व”, मैं सर्व संसार व्यापी हुं. मैं तो सिर्फ़ मठाधीषों का एक
शस्त्र हूं…चाहे धर्म हो या राजनीति… आज तक धरती पर मुझ से ज्यादा सुंदर नाम और काम
किसी का नही है… पर ना जाने किस मनहूस ने मेरी जैसी अफ़वाह सुंदरी को बदनाम करके रख
दिया…..हमने कहा – देवी जी, आप परम सुंदरी हैं इसमे तो कोई शक शुबहा…किसी को हो ही
नहीं सकता पर आपके काम कैसे सुंदर हो सकते हैं? आप जैसी सुंदरी को तो अपना नाम बदल
लेना चाहिये…..
हमारे मुंह से नाम
बदलने की बात सुनते ही वो घायल शेरनी की तरह गुर्राई…हम डर कर भागने वाले ही थे कि
वो बोली – चुपचाप बैठो और खबरदार जो भागने की कोशीश की तो…मेरी गति प्रकाश की गति से
भी तेज है, तुम मुझसे बचकर नही जा सकते. तुम कहते हो मैं अपना नाम बदल लूं…क्यों बदल
लूं? पर तुम मनुष्य लोग हो ही नाशुक्रे, गुड खाकर गुलगलों से परहेज का नाटक करने वाले.
यदि मैं ना रहूं तो तुम्हारा धर्म, समाज और मठाधिषी भी नहीं चलेंगे और सरकारें तो चाहे
कहीं की भी हों वो तो मेरे बिना चल ही नहीं सकती……उसकी आंखे आवेश में लाल लाल दिखने
लगी थी….अंदर से हम डर चुके थे पर ऊपर से सामान्य दिखने की कोशीश करते हुये बोले –
देवी जी आपकी बात कूछ समझ में नही आई, आप तो धर्म समाज, सरकार और मठाधीशी का नुक्सान
ही करती हैं जैसे अभी आशाराम बापू….और उनके जैसे कई बापूओं का कर दिया?
वो बोली – तुम ज्यादा
शरीफ़ तो बनों मत, इन बापूओं को बनाया किसने? मैंने ही बनाया ना, इनके बारे में उल्टी
सीधी महानता की अफ़वाहें फ़ैलाकर? मैं नहीं होती तो ये मठाधीष भी नहीं होते. जहां तक
राजनीती की बात है तो कोई भी चुनाव मेरी सहायता के बिना नही जीता जा सकता. अब तुमको उदाहरण
देकर गिनवाऊं क्या? अब हमको उसकी बातों पर यकिन हो चला था सो हमने उसकी हां में हां
मिलाते हुये कहा – हां देवी, क्षमा करियेगा, हमने आपके योगदान को इस एंगल से कभी सोचा
ही नहीं था. आप तो आज की सृष्टि में परम आवश्यक तत्व हैं, आपतो सदैव अग्र पूज्यनीय
हैं…सच में आपके बिना आज की तारीख में ना धर्म चलाया जा सकता है और ना ही राजनीती की
जा सकती है. इसीलिये आजकल चीन में भी सता परिवर्तन के चलते डोकलाम में भी आपका ही नाम हाईलाईट हो
रहा है?
वो बोली – तुम रहने
दो ये बातें तुम्हारी समझ में नही आयेंगी. तुम साधारण मनुष्य हो और साधारण ही रहो और
आज रायता दिवस है, उसे मनाकर ही खुश रहो तो बढिया है.
उसकी बात सुनकर हमने
आंखे चौडी करते हुये पूछा – देवी आप ये क्या कह रही हैं? आज तो मित्रता दिवस है और
आप इसे रायता दिवस बता रही हैं? उसने बडी अदा से कातिल मुस्कान होंठो पर लाते हुये
कहा – अरे ताऊ तुम जन्मजात ताऊ हो और ताऊ ही रहोगे. भले आदमी, मैंने मित्रता दिवस का
सामान बेचने वालों से सुपारी लेकर रायता दिवस को मित्रता दिवस होने की अफ़वाह फ़ैलाई
थी और तुम जैसे भोले भाले प्राणी भी इसके चक्कर में आकर निकल लिये फ़्रेण्डशिप बैंड
खरीद्ने माल की तरफ़? मूर्ख आदमी, जरा सोच, मित्रता का भी कोई एक दिन निर्धारित हो सकता
है क्या? अरे मित्रता है तो बारहों महिने है…मित्रता क्या कोई एक दिन के लिये हो सकती
है?
उसकी बातों में दम
तो था सो हमने पूछा – देवी, मित्रता दिवस की हकीकत तो समझ आगई पर आप कुछ रायता दिवस
की बात कर रही थी? वो क्या है?
वो बोली – असल में
आज रायता दिवस है यानि मित्रों को उनकी कमिया और खामियां बताकर उन्हें दूर करवाने का दिन, जिससे मित्रता भले ही समाप्त हो जाये पर मित्र अवश्य बचा रहेगा. बारहों महिने मित्रता रहने से उसमें उसी तरह कीडे
पड जाते हैं जैसे ज्यादा मीठे में पडते हैं. आज के दिन तो मित्रों की पोल खोलने का
दिन है, उनके जो भी दबे छुपे राज हैं उनको सार्वजनिक करने का दिन है. किसी का कहीं
चक्कर चल रहा है तो आज उसके स्पाऊज को खबर करके उनके घर में रायता फ़ैलवाने का दिन है…
और ये काम सावधानी से करना…ध्यान रहे कि मेरा काटा पानी भी नही मांगता…. अब जावो और
जाकर रायता फ़ैलाओ….और यह कहते हुये वो ऊठकर जाने के लिये खडी होगई.
हमने पूछा – देवी जी,
जरा राजनीती के धुरंधरों के बारे में भी कुछ बता जाती? वो चलते चलते बोली – तुम मुझे
आदमी कुछ अच्छे लगे सो तुमको इन मोदी, शाह, केजरी, राहुल, लालू, नीतीश से लेकर पुतिन, ट्रंप और शी
जिन पिंग… सबके बारे में एक दिन अवश्य बताऊंगी, अभी मुझे देर हो रही है एक बडी अफ़वाह
फ़ैलाने की सुपारी लेने जाने का समय होगया है….और यह कहते कहते वह गेट से बाहर होगई.
अफ़वाह सुंदरी से मिलकर हमको एक अपराध बोध सा होने लगा और बरबस किसी शायर की कभी पढी हुई ये पंक्तियां जेहन में ताजा हो आई...
संभल संभल के बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं
पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं
कदम कदम पे' मुझे टोकता है दिल ऐसे
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं
#हिन्दी_ब्लॉगिंग