ताऊ महाराज रावण को गुस्सा क्यों आता है?

दर्शकों,  ताऊ टी.वी. के चीफ़ रिपोर्टर रामप्यारे का  झटकेदार नमस्कार कबूल किजिये. अभी चार दिन पहले ही ताऊ महाराज रावण ने एक प्रेस कांफ़्रंस बुलायी थी जिसमें पत्रकारों ने इतने उल्टे सीधे सवाल किये कि ताऊ दशानन महाराज बुरी तरह तैश में आगये.  महाराज रावण को इतना गुस्सा आया कि उसके सामने कलमान कुर्शीद को आया गुस्सा कुछ भी नही था. जहां कुर्शीद साहब ने गुस्से में आपा खो दिया वहीं पर महाराज दशानन गुस्से को अंदर ही अंदर पी गये और अपनी बात को किसी तरह रख कर वहां से चले गये.




कल दशहरे को रात साढे आठ बजे हमने ताऊ स्टूडियो में ही रावण दहन का कार्यक्रम रखा था. रावण दहन करके मुंह मीठा कर  के लौट ही रहा था कि एक अंधेरे गलियारे में  अचानक महाराज रावण प्रकट हो गये और मुझे गर्दन से पकड कर उठा लिया. मेरी चारों टांगे हवा में लटकी हुई थी. डर के मारे मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो रही थी... अभी दो मिनट पहले तो महाराज का अंतिम क्रियाकर्म किया था और ये अभी कहां से आ गये?

मेरी दुविधा देखते हुये महाराज दशानन ने जोर से अट्टहास करते हुये कहा - अरे रामप्यारे...तू क्या समझता है कि मैं तुम्हारे मार देने से मर जाऊंगा? अरे बेवकूफ़ों...ये क्यों नही समझते कि मेरी नाभि में अभी भी अमृत भरा है...मैं हमेशा अमर हूं...मैं कभी नही मरूंगा...तुम चाहे जितनी बार मुझे मार दो पर मैं जिंदा ही रहूंगा.

मैंने डरते हुये कहा - महाराज लंकेश की जय हो....महाराज आप मुझे जमीन पर उतार दें नहीं तो मेरी गर्दन टूट जायेगी....

लंकेश ने मुझे जमीन पर उतार दिया और मुझसे पूछा - रामप्यारे, ये बता कि तुझे कभी दुख हुआ है? कभी असह्य वेदना हुई है?

मैने कहा - हे लंकापति, मुझे सबसे बडी वेदना अभी कुछ ही समय पहले हुई थी जब मेरा तबादला दूसरे शहर में हो गया...मेरा घर और प्यारा शहर छूट गया. ... वो सकोरे से सुडक सुडक कर पीने   वाली सुबह सबेरे की  चाय भी छूट गई.....नई  जगह एडजस्ट होने में पसीना आ गया...वो बहुत गहन वेदना का समय था मेरे लिये...

मेरे इतना कहते ही महाराज दशानन भडक गये और बोले - अरे मूर्ख...जब तुझे सकोरे वाली चाय और शहर छूटने से इतनी पीडा हो रही है तो हमारी पीडा भी सोच....मुझे लोग किस तरह बदनाम करते हैं?  हर साल मुझे बारूद के ढेर पर सर से पांव तक जला डालते हैं? अरे...इतनी बुरी तरह तो मैने हनुमान को भी नही जलवाया था... बस प्रेम पूर्वक  उसकी पूंछ में जरा सी आग ही छुआयी  थी.....

मैंने  दादा दशानन का गुस्सा देखकर गर्दन हिलाते रहने में ही भलाई समझी. मन में सोच रहा था कि यहां महाराज दशानन से एक दो सवाल पूछ लूं तो एक अच्छी खासी ब्रेकिंग न्यूज बन जायेगी...पर यह सोच कर चुप लगा गया कि अभी महाराज गुस्से में हैं... कुछ उल्टा सीधा पूछने में आ गया  तो महाराज रावण को मेरी गर्दन मरोडने में यहां  कितनी देर लगेगी?

मैं कुछ बोलता इसके पहले ही महाराज दशानन तैश में बोलने लगे - रामप्यारे...भले ही मेरे दस सर हों पर मैं दोमुहीं बात नही करता. गठबंधन के नेता मंत्रियों की तरह नही कि सत्ता सुख भोगने के लिये अंदर कुछ बोलूं और बाहर कुछ और....मैं तो दशग्रीव  होते हुये भी डंके की चोट एक ही बात बोलकर उस पर कायम रहता हूं... क्या मेरे दामाद ने...कभी कोई कांड किया? क्या मेरे किसी मंत्री संत्री ने टू..जी..थ्री...जी किया?  किसी कोल का गेट खोला...?  क्या मेरे किसी मंत्री या रिश्तेदार ने कोई एन.जी.ओ. बना कर मलाई चाटी?.... क्या मेरे किसी मंत्री ने कोई कांडा  कांड किया?.... नहीं ना..? फ़िर भी तुम उन्हें जलाने के बजाए  हर साल मुझे  जलाते हो?

मैंने डरते हुये कहा - जी महाराज, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं अगर आप अपनी बात पर अडिग नही होकर प्रभु राम की शरण हो लेते  तो आज आप भी सत्ता सुख भोग रहे होते. आप तो बिल्कुल अटल और बात के धनी हैं....

मेरी बात सुनकर दादा लंकेश फ़िर तमतामये और बोले - अरे मूर्ख...मैं जानता हूं तू सीता की बात कर रहा है. पर ये बता कि मैने तो सिर्फ़ एक बार पराई स्त्री का उसकी इच्छा के विरूद्ध अपहरण किया...और उसे पूरे मान सम्मान और इज्जत  मर्यादा के साथ रखा,  इसके बाद भी तुम लोग हर साल मुझे जलाते हो? अरे आज कितनी अबलाओं पर सामुहिक ज्यादती हो रही है? किस  तरह उनकी इज्जत से खिलवाड किया जा रहा है? और तो और तुम्हारे नेताओं को यह कहते हुये  भी शर्म नही आती कि बलात्कार करवाने लडकियां खुद लडकों के साथ अपनी राजी मर्जी से जाती हैं? इस पर भी तुम मुझे जलाते हो? उन्हें क्यों नही जलाते? 

मेरी गर्दन   श्रद्धा पूर्वक महाराज दशानन के सामने झुक गई  और चुपचाप यह सोचते हुये घर  की तरफ़ चल पडा कि क्या ताऊ लंकेश वाकई सच नही बोल रहे हैं? क्या आज चारों तरफ़ रावण ही रावण नही पैदा हो गये हैं? एक लंकेश को जलाने से क्या होगा?