प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली अंक - 113 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही जवाब है गीगा बापू समाधि स्थान, सताधार, गुजरात
पहेली के विषय से संबंधित थोडी सी जानकारी मिस. रामप्यारी आपको दे रही है.
सोमनाथ दर्शन के उपरांत वेरावल में रात्रि विश्राम किया. अगले दिन सुबह राजकोट के लिये यात्रा शुरू करने से पहले आगे के रास्तों की जानकारी लेते समय होटल के मैनेजर से मालूम हुआ कि एक रास्ता यहां से गीर के जंगलों से होता हुआ राजकोट जाता है. और उसी जंगल में उसने हमें सत्ताधार के बारे में बताया. उसके निर्देशानुसार हमने कार उसी रास्ते पर आगे बढा दी. रास्ता भी ठीक ठाक सा ही था.
रास्ते में आवक जावक कम ही थी, गांव भी छोटे छोटे ही आ रहे थे. सुनसान रास्ता देखकर ताई ने वापस लौट चलने का कहा क्योंकि हमारी कार के अलावा हमको और कोई भी वाहन रास्ते में आता जाता नही मिल रहा था. पर सासन गीर के सरंक्षित जंगलों में एशियाई शेरों को देखने के रोमांच के चलते हमने ताई के मेड-इन-जर्मन की फ़िक्र भी नही की और आगे बढते रहे. थोडा आगे चलकर बेरियर पर इंट्री करवाने के बाद सरंक्षित क्षेत्र में दाखिल हुये. कच्चे पक्के टेढे मेढे रास्तों पर आगे बढते हुये जंगल में रहने वाले जनजाति के उंचे डील डोल के स्त्री पुरूष अपने बडे आकार के दुधारू (गाय भैंस) पशुओं के साथ चलते दिखे. कहीं नीलगाय, चीतल, हिरण, बंदर और बारहासिंहे भी दिखे पर वनराज के दर्शन कहीं नही हुये.
गीर के जंगलों में एशियाई शेर
सौराष्ट्र के दक्षिण-पश्चिम में जूनागढ, भावनगर और अमरेली जिलों मे करीबन 1400 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फ़ैले सासन गीर नेशनल पार्क में ही प्रसिद्ध एशियाई शेर पाए जाते हैं. यहां के अलावा एशियाई सिंह केवल दक्षिण अफ्रीका के घास के मैदानों और पथरीले इलाक़ों में ही पाये जाते हैं. गीर नेशनल पार्क का पथरीला और पहाडी क्षेत्र इन एशियाई शेरों का प्राकृतिक आवास है.
इस सुनसान जंगल के बीच से होते हुये हम सत्ताधार की तरफ़ बढ गये. बहुत ही अल्प आबादी और घनघोर जंगल में एक मंदिर नुमा जगह दूर से दिखाई देने लगी जिसके चारों तरफ़ हरियाली और पीछे एक नदी बह रही थी. हालांकि नदी में पानी बहुत कम था फ़िर भी इतने सुनसान और शेरों वाले इलाके में ऐसी जगह देखकर मन प्रफ़ुल्लित हो गया.
सताधार मुख्य मंदिर गेट, गुजरात
मंदिर के अंदर पहुंचे तो और बडा आश्चर्य इंतजार कर रहा था. कुछ व्यक्ति भोजन करने के लिये आग्रह कर रहे थे. हमारे हां ना कहने के पहले ही उन्होने हमें अंदर एक हाल में पहुंचा दिया जहां तीन चार सौ लोग पंगत में जीमने के लिये बैठे थे. बडी बडी पीतल की थालियां लगी हुई थी. हम तो जम गये. पर ताई अपनी आदत के अनुसार उनके रसोई घर में झांकने लगी. हमको भी उसका अनुसरण करना ही था. रसोई में एक छह सात फ़ुट व्यास का तव्वा चढा हुआ था जिसके चारों तरफ़ महिलाये रोटिया बेल कर उस पर डाल रही थी. पता करने पर ,मालूम हुआ कि ये वहां पहुंचने वाली श्रद्धालु महिलायें और पुरूष ही इस काम में हाथ बंटा रहे थे. ताई ने भी थोडी देर सेवा का आनंद लिया और हमने भी खडे रहकर बडे से चिमटे से दो चार रोटीयां सेंक कर अपनी सेवा समर्पित की.
सत्ताधार में बारहों महिना अखंड मुफ़्त भंडारा चलता है. वहां स्वादिष्ट भंडारे का आनंद लिया. एक और विशेष बात यह दिखी की अन्य जगह जहां पत्तल दोनो में भंडारा चलता है वहीं सत्ताधार में पीतल की बडी बडी थालियों मे भोजन परोसा जाता है. भोजन ग्रहण करने के बाद वहां पर सभी लोग अपनी थाली उठाकर उसे धोकर साफ़ करके यथा स्थान रख देते हैं. हमने भी अपनी थाली उठाकर धो कर रखने के बाद मंदिर में दर्शन के लिये गये.
समाधि स्थल (पेड के पीछे), सत्ताधार
वहीं पता चला कि ये गीगा अप्पा/ गीगा बापू की समाधि है जहां श्रद्धालू अपनी आस्था व्यक्त करने पहुंचते हैं. यहां एक गौशाला भी इसी मंदिर के तहत चलाई जाती है जहां गायों की बेहतर तरीके से सेवा की जाती है. अगर आप चाहें तो गौशाला के लिये अपनी इच्छानुसार दान देकर रसीद प्राप्त कर सकते हैं.
सत्ताधार में इतना आनंद आया कि उस होटल मैनेजर को मन ही मन धन्यवाद देना नही भूले. यह जगह जूनागढ से ४५ किलोमीटर, राजकोट से १३५ किलोमीटर और अहमदाबाद से करीबन ३२० किलोमीटर है. जूनागढ वेरावल रेल्वे लाईन पर सत्ताधार रेल्वे स्टेशन भी है. जूनागढ से हर आधे घंटे में बस सर्विस उपलब्ध रहती हैं. नवंबर से मार्च का महिना यहां जाने के लिये उपयुक्त है क्योंकि यहां की गर्मी थोडी सख्त मिजाज है. तो इंतजार किस बात का? आप भी प्लान कर डालिये सत्ताधार घूमने का. अगर किस्मत साथ दे गई तो वनराज सिंह भी आपको दर्शन दे सकते हैं.
मुख्य मंदिर के अलावा शिव मंदिर, भूतबापा मंदिर, लक्ष्मण घाट और गौशाला यहां के मुख्य दर्शनीय स्थल हैं. हमारी अहमदाबाद, राजकोट, द्वारका, सोमनाथ, जूनागढ और वापस राजकोट होते हुये अहमदाबाद की यात्रा के दौरान हमने सत्ताधार में गीगा बप्पा की समाधि के दर्शन किये. (ताऊ के यात्रा वृतांत से)
आईये अब मिलते हैं आज के विजेताओं से :-
आज के प्रथम विजेता हैं श्री सुशील बाकलीवाल
श्री सुशील बाकलीवाल अंक 101
आईये अब बाकी विजेताओं से आपको मिलवाती हूं.
श्री दीपक तिवारी "साहब" अंक 100
इसके अलावा श्री रोनित सरकार जूनागढ और गीर के जंगलों तक तो पहुंच गये पर जगह का सही नाम नही बता पाये अत: उनका नाम विजेताओं में शामिल नही किया जा सकता.
अब उनसे रूबरू करवाती हुं जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया
श्रॊ नीरज बसलियाल
श्री स्मार्ट इंडियन
श्री काजल कुमार
श्री अभिषेक ओझा
डाँ. रूपचंद्र शाश्त्री "मयंक"
श्री राज भाटिया
श्री राकेश कुमार
श्री नरेश सिंह राठौड
सुश्री अंजू
श्री दर्शन लाल बवेजा
डा~म. अरूणा कपूर
श्री संजय @ मो सम कौन?
श्री गगन शर्मा कुछ अलग सा
श्री रोनित सरकार
श्री मकरंद
श्री वृक्षारोपण:एक कदम प्रकृति की ओर
सुश्री निर्मला कपिला
मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताऊजी डाट काम
रामप्यारे ट्वीट्स
पहेली के विषय से संबंधित थोडी सी जानकारी मिस. रामप्यारी आपको दे रही है.
सोमनाथ दर्शन के उपरांत वेरावल में रात्रि विश्राम किया. अगले दिन सुबह राजकोट के लिये यात्रा शुरू करने से पहले आगे के रास्तों की जानकारी लेते समय होटल के मैनेजर से मालूम हुआ कि एक रास्ता यहां से गीर के जंगलों से होता हुआ राजकोट जाता है. और उसी जंगल में उसने हमें सत्ताधार के बारे में बताया. उसके निर्देशानुसार हमने कार उसी रास्ते पर आगे बढा दी. रास्ता भी ठीक ठाक सा ही था.
रास्ते में आवक जावक कम ही थी, गांव भी छोटे छोटे ही आ रहे थे. सुनसान रास्ता देखकर ताई ने वापस लौट चलने का कहा क्योंकि हमारी कार के अलावा हमको और कोई भी वाहन रास्ते में आता जाता नही मिल रहा था. पर सासन गीर के सरंक्षित जंगलों में एशियाई शेरों को देखने के रोमांच के चलते हमने ताई के मेड-इन-जर्मन की फ़िक्र भी नही की और आगे बढते रहे. थोडा आगे चलकर बेरियर पर इंट्री करवाने के बाद सरंक्षित क्षेत्र में दाखिल हुये. कच्चे पक्के टेढे मेढे रास्तों पर आगे बढते हुये जंगल में रहने वाले जनजाति के उंचे डील डोल के स्त्री पुरूष अपने बडे आकार के दुधारू (गाय भैंस) पशुओं के साथ चलते दिखे. कहीं नीलगाय, चीतल, हिरण, बंदर और बारहासिंहे भी दिखे पर वनराज के दर्शन कहीं नही हुये.
सौराष्ट्र के दक्षिण-पश्चिम में जूनागढ, भावनगर और अमरेली जिलों मे करीबन 1400 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फ़ैले सासन गीर नेशनल पार्क में ही प्रसिद्ध एशियाई शेर पाए जाते हैं. यहां के अलावा एशियाई सिंह केवल दक्षिण अफ्रीका के घास के मैदानों और पथरीले इलाक़ों में ही पाये जाते हैं. गीर नेशनल पार्क का पथरीला और पहाडी क्षेत्र इन एशियाई शेरों का प्राकृतिक आवास है.
इस सुनसान जंगल के बीच से होते हुये हम सत्ताधार की तरफ़ बढ गये. बहुत ही अल्प आबादी और घनघोर जंगल में एक मंदिर नुमा जगह दूर से दिखाई देने लगी जिसके चारों तरफ़ हरियाली और पीछे एक नदी बह रही थी. हालांकि नदी में पानी बहुत कम था फ़िर भी इतने सुनसान और शेरों वाले इलाके में ऐसी जगह देखकर मन प्रफ़ुल्लित हो गया.
मंदिर के अंदर पहुंचे तो और बडा आश्चर्य इंतजार कर रहा था. कुछ व्यक्ति भोजन करने के लिये आग्रह कर रहे थे. हमारे हां ना कहने के पहले ही उन्होने हमें अंदर एक हाल में पहुंचा दिया जहां तीन चार सौ लोग पंगत में जीमने के लिये बैठे थे. बडी बडी पीतल की थालियां लगी हुई थी. हम तो जम गये. पर ताई अपनी आदत के अनुसार उनके रसोई घर में झांकने लगी. हमको भी उसका अनुसरण करना ही था. रसोई में एक छह सात फ़ुट व्यास का तव्वा चढा हुआ था जिसके चारों तरफ़ महिलाये रोटिया बेल कर उस पर डाल रही थी. पता करने पर ,मालूम हुआ कि ये वहां पहुंचने वाली श्रद्धालु महिलायें और पुरूष ही इस काम में हाथ बंटा रहे थे. ताई ने भी थोडी देर सेवा का आनंद लिया और हमने भी खडे रहकर बडे से चिमटे से दो चार रोटीयां सेंक कर अपनी सेवा समर्पित की.
सत्ताधार में बारहों महिना अखंड मुफ़्त भंडारा चलता है. वहां स्वादिष्ट भंडारे का आनंद लिया. एक और विशेष बात यह दिखी की अन्य जगह जहां पत्तल दोनो में भंडारा चलता है वहीं सत्ताधार में पीतल की बडी बडी थालियों मे भोजन परोसा जाता है. भोजन ग्रहण करने के बाद वहां पर सभी लोग अपनी थाली उठाकर उसे धोकर साफ़ करके यथा स्थान रख देते हैं. हमने भी अपनी थाली उठाकर धो कर रखने के बाद मंदिर में दर्शन के लिये गये.
वहीं पता चला कि ये गीगा अप्पा/ गीगा बापू की समाधि है जहां श्रद्धालू अपनी आस्था व्यक्त करने पहुंचते हैं. यहां एक गौशाला भी इसी मंदिर के तहत चलाई जाती है जहां गायों की बेहतर तरीके से सेवा की जाती है. अगर आप चाहें तो गौशाला के लिये अपनी इच्छानुसार दान देकर रसीद प्राप्त कर सकते हैं.
सत्ताधार में इतना आनंद आया कि उस होटल मैनेजर को मन ही मन धन्यवाद देना नही भूले. यह जगह जूनागढ से ४५ किलोमीटर, राजकोट से १३५ किलोमीटर और अहमदाबाद से करीबन ३२० किलोमीटर है. जूनागढ वेरावल रेल्वे लाईन पर सत्ताधार रेल्वे स्टेशन भी है. जूनागढ से हर आधे घंटे में बस सर्विस उपलब्ध रहती हैं. नवंबर से मार्च का महिना यहां जाने के लिये उपयुक्त है क्योंकि यहां की गर्मी थोडी सख्त मिजाज है. तो इंतजार किस बात का? आप भी प्लान कर डालिये सत्ताधार घूमने का. अगर किस्मत साथ दे गई तो वनराज सिंह भी आपको दर्शन दे सकते हैं.
मुख्य मंदिर के अलावा शिव मंदिर, भूतबापा मंदिर, लक्ष्मण घाट और गौशाला यहां के मुख्य दर्शनीय स्थल हैं. हमारी अहमदाबाद, राजकोट, द्वारका, सोमनाथ, जूनागढ और वापस राजकोट होते हुये अहमदाबाद की यात्रा के दौरान हमने सत्ताधार में गीगा बप्पा की समाधि के दर्शन किये. (ताऊ के यात्रा वृतांत से)
आईये अब मिलते हैं आज के विजेताओं से :-
आईये अब बाकी विजेताओं से आपको मिलवाती हूं.
श्री दीपक तिवारी "साहब" अंक 100
इसके अलावा श्री रोनित सरकार जूनागढ और गीर के जंगलों तक तो पहुंच गये पर जगह का सही नाम नही बता पाये अत: उनका नाम विजेताओं में शामिल नही किया जा सकता.
अब उनसे रूबरू करवाती हुं जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया
श्रॊ नीरज बसलियाल
श्री स्मार्ट इंडियन
श्री काजल कुमार
श्री अभिषेक ओझा
डाँ. रूपचंद्र शाश्त्री "मयंक"
श्री राज भाटिया
श्री राकेश कुमार
श्री नरेश सिंह राठौड
सुश्री अंजू
श्री दर्शन लाल बवेजा
डा~म. अरूणा कपूर
श्री संजय @ मो सम कौन?
श्री गगन शर्मा कुछ अलग सा
श्री रोनित सरकार
श्री मकरंद
श्री वृक्षारोपण:एक कदम प्रकृति की ओर
सुश्री निर्मला कपिला
सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार प्रकट करते हुये रामप्यारी अब आपसे विदा चाहेगी. अगली पहेली के जवाब की पोस्ट में मंगलवार सुबह 4:44 AM पर आपसे फ़िर मुलाकात के वादे के साथ, तब तक के लिये जयराम जी की.
ताऊ पहेली के इस अंक का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और रामप्यारी ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार 1:00 AM से 11:00 PM के मध्य कभी भी आपसे फ़िर मुलाकात होगी तब तक के लिये नमस्कार.
मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताऊजी डाट काम
रामप्यारे ट्वीट्स
सुशील बाकलीवाल को बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteबढ़िया प्रश्न, रोचक जानकारी । सुशील जी को बहुत-बहुत बधाई। वे अवश्य वहाँ गये होंगे। पढ़कर ऐसे पवित्र स्थल को देखने की इच्छा हो रही है।
ReplyDeleteदोनों विजेताओं को ढेरों बधाइयांण्
ReplyDeleteसुशील बाकलीवाल को बधाई!
ReplyDeleteसुशील बाकलीवाल जी व अन्य विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeletesattadhar ji ke karke darsan,man ho gaya magan magan
ReplyDeletejo Taushree ki niskapat seva karen,wo shri Susheel Bakaliwal ji vijeta bane.
Hamaari taushree ko aur aur Shri Shusheel ji ko dher si bandhai.
जब गुजरात गयी थी तो सोमनाथ भी गए और वारावल भी देखा ,गीर के जंगलों में भी वनराज की तलाश में भटकते रहे पर सिर्फ वनराज के पंजों के ही दर्शन हुए.
ReplyDeleteताऊ आप भाग्यशाली रहे कि आपको सत्त्ताधार देखने को मिला और इस कारण से हम सब को भी इतनी रोचक जानकारी मिली.इस साल अक्टूबर में राजकोट जाना है तो सत्ताधार जरूर जाउंगी .
इतनी रोचक जानकारी के लिए आभार .
सुशील जी को बहुत बहुत बधाई .
अरे वाह... इस बार तो लगता है कि मेरे गुजरात आते-जाते रहने के कारण और ब्लाग-स्पाट के ब्लाग्स की तालाबंदी के दौर में मेरी लाटरी लग गई । धन्यवाद ताऊजी आपको और बधाई मुझ सहित दूसरे विजेताओं को. पुनः आभार सहित...
ReplyDeleteसुशील बाकलीवाल को बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteबधाई हो, वेरावल का क्षेत्र घूमा हुआ है।
ReplyDeleteसुशील बाकलीवाल जी व अन्य विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteregards
सुशील बाकलीवाल जी को बहुत-बहुत बधाई |
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