ताऊ और पहलवान

एक था पहलवान । जिम जाने का शौकीन था। एक बार गाम से उसका ताऊ भी उसके पास शहर आया हुया था।
वो सुबह उठके जिम जाने लाग्या तौ ताऊ ने बूझ्या :- कित जा रया से ।
पहलवान :- जिम जा रया सूं।
ताऊ :-भाई यो जिम के हो सै

पहलवान :- ताऊ यो अंगरेजी अखाडा हो सै...वरजिश करण का ।
ताऊ :- अरै, वर्जिश करण की बी कोए जगहां हो सै ? आपणे बगड़ मैं-ऐं क्यूं ना कर लेता ?
पहलवान -ताऊ, जिम में बड्डी-बड्डी मशीन लाग रही सैं वर्जिश करण की ।
ताऊ - अरै पहलवान, कसरत तन्नैं करणी सै अक उन मशीनां नैं ?

पोथी पुराणम्

अध्यातम का नाम आते ही एक तसवीर सामने आती है, गम्भीर , और बुढे आदमी ओरतों द्वारा परमात्मा को याद करने का काम्। यानि मरते हुये लोगों द्वारा डर के मारे परलोक सुधारने का काम्। और मजे की बात तो ये की इनको ये भी पता नहीं की मरने के बाद ये किसके पास जायेंगे ईश्वर या शैतान । एक बार ऐसा हुवा की पलटु गंभीर रूप से बीमार पड गया । उसकी बीबी अशरफी और बच्चों को यकीन हो गया की इसका अंत समय आ गया है. सो उन्होने आसपडोस के लोगो को और रिश्तेदारों को भी बुलवा लीया. उसकी खाट के चारों तरफ भीड़ हो रही थी. पंडितजी को भी बुला लिया. पंडितजी ने आते ही गाय के गोबर से जमीन लिपवा कर पलटु को खटिया से निचे उतरवा दीया. और पलटु को गीता के श्लोक सुनाना शुरु कर दिया। फीर पंडितजी ने पलटु से कहा -- देख भाइ पलटु अब तेरा ये आखिरी समय है॥सो तुने जीवन मे जो भी गुनाह किये हों उन सबकी माफी परमात्मा से मांग ले॥ अंत समय की पुकार परमात्मा अवश्य सुनते है. पलटुराम को सिर्फ बीमारी की वजह से थोडी कमजोरी थी इस वजह से बोल नही पा रहा था. सो घरवालों को लगा की मरने वाला है इस कारन उसकी मरने की तैयारी कर ली थी. पर जब पंडीतजी ने उसे परमात्मा से माफी माँगने का कहा तो उससे रहा नही गया. जोर लगा के बोला... अरर पंडीत् तु मेरे को बता की मरने के बाद यदि ईश्वर की जगह शैतान के राज मे पहुंच गया तो क्या होगा. भई मैं तो दोनों मे से किसी से भी दुशमनी नही ले सकता ॥ ईश्वर के पास गये तो उसकी जय जय और शैतान के राज मे गये तो उसकी जय जय्. अपन तो रिस्क नही लेते. पलटुराम तो सीधा सादा देहाती आदमी है वो ही रिस्क लेने को तैयार नही है. और तुम पुरी रिस्क उठा रहे हो. हमारे तथाकथित बाबा महात्माओ ने धर्म को मजाक बना दीया हैबल्कि कहना चाहिये कि धर्म को भय रुपी प्रोडक्ट मे बदल दिया है. ऐसा लगता है कि ये सारे बाबा महात्मा IIM से फ़र्स्ट क्लास MBA पास आउट है. सब कुछ manage कर रहे हैं कभी कभी हाई रिस्क ( लड़कियों वगैरह की) हो जाती है. उस वक्त तो इनकी रिस्क मैनेजमेंट क्षमता देखने लायक होती है, जैसे की बडे बडे कार्पोरेट घरानो या सरकार मे संकट के समय manage कीया जाता है. ये इसी भय रुपी प्रोडक्ट को बेचकर माल बना रहे है. सुनने मे आया है की इन का काफी सारा माल ब्याज पर भी चलता है. धन्य हो धर्म के ठेकेदारो की। आप किसी भी चैनल पर देख लिजिये ये बाबा हर जगह अपनी दुकान चलाते मिल जायेंगे. और दिखावा ऐसा करते हैं की ये ज्योतिश , गंडे, ताविज या यंत्र वैगरह तो सिर्फ जनता की भलाइ के लिये देते है. वर्ना तो ये पहुंचे हुये सिद्ध है। उदाहरण के लिये एक बाबा को एक दिन सुनने का मोका या कहे सोभाग्य मिला. चैनल सर्च करते करते हाथ रुक गया. बाबा का उपदेश चालु था. ओशो के एक प्रवचन को यो का यों दोहरा रहे थे .. मुझे तुरत उस प्रवचन का स्मरण हो आया . तो मैं भी बाबा की आगे की कारगुजारी सुनने के लिये देखता रहा. बाबा ज्ञान झाडने के बाद असली मकसद पर आ गये और अंत मे कहा ... मुझे ये सब तुमको जगाने के लिये कहना पड रहा है. ये ज्योतिश वगैरह तो बहाना मात्र है. इसके माध्यम से मैं तुमको जगाने आया हू. फिर बाबा ने ओशो स्टाइल मे हि कहा... आज इतना हि.... या शेष कल ..... बाबाजी के विलुप्त होते ही बडा सा विज्ञापन चालू हुवा. जिसमे बाबा ने जन्म पत्री देखने का 3100 रु. कोइ एक प्रश्न पूछने के 1100 रु. दो जन्म्पत्री दिखाने पर एक मुफ्त्. यानि दो पर एक फ्री. लगता है ये बाबा लोग परमात्मा के लिये लोगो को कम जगाते है. खुद की जेब भरने के लिये ज्यादा। ये कोइ सिद्ध बाबा नही है. इनकी सिद्धि सिर्फ इतनी है की ये रात को ओशो के किसी प्रवचन का घोटा मार लेते है. और अगले दिन जस का तस बोल देते है. कोइ कोइ बाबा तो अकल से इतने पैदल है की ओशो की कापी टु कापी बिना मिलाये ही जनता के मगज पर दे मारते है. और कोइ कोइ थोडे स्मार्ट है जो नाम, स्थान और पात्र बदल कर मिला मिला कर देते है। अब इन बाबाओ की दुकान भी जनता ही चलवाती है. जनता जान बूझकर पागल रहना चाहती है, क्योंकि समझदार होने से काम करना पड़ेगा और जब बाबाओ के गंडे तावीज और पूजा पाठ से काम चल जाये तो जान बूझकर पागल बने रहने मे ही फायदा है। और चुंकी ये खुद का पाला हुवा भ्रम है तो ये दुसरे से दूर भी नही होगा. अब तुम्हारी तक्लीफे इन बाबाओ से दूर ना हो तो भगवान भी है ही दोषारोपण करने के लीये. एक सुविधा है इस बात के लिये, भगवान भी. अगर तुम खुद जिम्मेदारी लेते हो तो असफलता के लिये किसे जिम्मेदार ठहरावोगे। मलूकदासजी कह गये हैं " अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम्, दास मलूका कह गये, सबके दाता राम्।" एक बार सारी रात पलटु को ये ही सपना आता रहा की वो मर गया है. और उसकी सुबह आंख खुली तो उसको लगा की वो तो मर चुका है. और वो तो बिल्कुल भी हिले डुले भी नही. पडा रहा बिस्तर पर्... उसकी बीबी अशरफी काफी देर से आवाज लगा रही थी जब पलटु नहि उठा तो आ गयी बेलन लेकर्. यहाँ आकर देखा तो एक बार तो घबडा ही गयी। पर काफी दबंग महिला थी. सो धीरज रखते हुये पूछा ... के बात है ? पल्टु तो बिल्कुल सांस सी रोक के पडा रहा। अशरफी ने नब्ज टटोली और सब कुछ ठीक ठाक पाकर बेलन दिखाती हुयी बोली -- अरे नाश पीट्टे .. सत्यानाशी इब तो उठ ज्या.. सुरज देवता सर पे आ गया ... जंगल भी जाना सै ... लकडी लेने... फीर बेलन मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि पल्टु खटिया से कूद लीया। और बोल्या- ठहर ज्या, ठहर ज्या...जरा मेरी भी सुन ले. बात ये है की रात को मुझे सपना आया था कि मैं तो मर लिया. इब तु बता कि मैं कैसे उठूं ? अब तो अशरफी को और भी गुस्सा आ गया और हाथ पकड के दो चार बेलन पल्टु के चिपका दिये... और चिख कर बोली - अबे अकल के पैदल .. इस तरह नही मरते ..जब मौत आयेगी तो तेरे हाथ पाँव ठंडे पड जायेंगे । और पल्टु की इस मूर्खता पर अशरफी की हंसी भी छूट गयी. फीर उसको पुचकारते सी बोली --- इब नु कर .. तु रोटी कलेवा कर ले और जंगल चला जा.. लकडी ले के आवगा तब आज की रोटी बनेगी। उसको पुचकारना भी जरुरी था नही तो बच्चे भुखे मरते... पल्टु का क्या ? जंगल की बजाये और कहीं निकल ले और पांच दिन नहि आवे। ... वैसे इस जोडी का भी कोइ मेल नही था. पल्टु बिचारा 45 या ज्यादा से ज्यादा 48 किलो का सिंकीया पहलवान और अशरफी 70 या 75 कीलो की हट्टी कट्टी मजबूत कद काठी की औरत पल्टु की इच्छा तो जंगल जाने की नही थी पर अशरफी का बेलन अब भी उसके हाथ मे देखकर और मन मार कर जल्दी जल्दी डर के मारे आधे अधुरे कपडे पहन कर्, नंगे पाँव अपने गधे को लेकर चल पडा। सर्दियो के दिन थे. रास्ते मे बरसात होने गयी और पल्टु ज्यादा भीज गया. और उसको सर्दी सी भी लगने लग गयी. सो पल्टु ने एक पेड से गधे को बांध दिया और खुद भी एक पेड के निचे पड गया. थोडी देर मे उसको और सर्दी लगने लग गयी . पलटु ने अपने हाथ पाँव टटोले .. दोनो ही ठंडे हो रहे थे. उसको अशरफी की बात आयी की मरने पर हाथ पान्व ठंडे पड जाते है. सो अब उसको पक्का यकीन हो गया की अब वो सच मुच मर गया है। थोडी देर बाद उसने गधे की तरफ देखा तो एक शेर गधे की तरफ धीरे धीरे बढ़ रह था. इतनी देर मे शेर गधे के पास पहुंच चुका था. और उसकी गरदन पकडने की कोशिश कर रहा था. और गधे राम उससे बचने के लिये दुल्लत्ती झाड रहे थे. पल्टु बोला - भई क्या करे ... हम तो मर चुके हैं अगर जिंदा होते तो इस शेर की ये मजाल की हमारे गधे की तरफ आंख भी उठा ले........... अब पल्टु ने ये मरने का भ्रम पाल लीया ... इसमे उसकी सुविधा है. जिंदा हो तो शेर से लडना पडे... ऐसे ही हम भी अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से भ्रम पाल के बैठ जाते है. क्योंकी ये हमारे लिये आसान हैं. अगर अशरफी के जैसे कोइ हमको बेलन दिखा कर भ्रम दूर भी करे तो हम उससे दूर भाग लेते है. बाबाओ के दिखाये भय से हम डरते हैं. और गुनाह की माफी की बात करते है। अगर ईश्वर दंढ ही देने वाला है, तो वो फीर ईश्वर ना होकर जेलर हो गया। नही ये बिल्कुल नही चलेगा परमात्मा से डरो मत, वो तुम्हारा अभिन्न साथी है। बाबा बुल्लेशाह ने कहा कि ... रब यानि खुदा को भी क्या पाना है. ये तो ऐसा ही है कि इधर से उठा कर उधर रखना है। और ग्रंथों मे तो परमात्मा को रस रुप बताया है. परमात्मा तो पीने जैसा है. अभी ईधर एक हिंदी फिल्म jab we met का गीत .. जिसके एक अंतरे मे गीतकार लिखता है. माही मेरा शर्वत वर्गा , जी करे गट गट पी ला. यकीन मानिये यही परम तत्व है। फिल्म मे चाहे जिस संदर्भ मे लिया गया हो. और मुझे ऐसा लगता है कि ये अंतरा भी बाबा बुल्लेशाह कि किसी काफी का ही होगा. ऐसी सुंदर रचना बुल्लेशाह के अलावा परमात्मा की याद मे कौन गा सकता है. और स्वयं बाबा बुल्लेशाह के जागरण की घटना भी ऐसी ही क्षण मात्र मे घटती है। एक बार ऐसा हुवा कि पल्टु की बीबी अशरफी कुछ ज्यादा ही बीमार पड गयी. जब ये लगा की अब बचना मुश्किल है तो मुझे भी बुलाया .. मै भी वहीं परथा. अशरफी ने पल्टु से कहा कि देख पल्टु तू मेरे मरने के बाद मेरे कपड़े तेरी दुसरी बीबी को मत देना , मुझे मालूम है कि तु दुसरी शादी करे बगैर तो रहेगा नही पर मेरी इतनी सी बात तु जरूर मान लेना। अब पल्टु बोला- तु भी कैसी बाते करती है ... ? तुझे मालूम है मै तुझसे कितना प्यार करता हू. मै तेरे बाद जान देदुंगा पर दुसरी शादी हरगिज नही करुंगा. और पल्टु ने कनखियों से मेरी तरफ देखा. क्योंकि एक बार मैने पल्टु को उसकी महिला मित्र अनारो के साथ पार्क मे पकड़ लिया था और उसने मेरे बहुत हाथ पैर जोडे थे कि मै ये सब अशरफी को ना बताऊँ. क्योंकी मैं भी उसी मोह्हल्ले मे रहता था। मुझे आश्चर्य हुवा पल्टु के इस तरह झूंठ बोलने पर्. पल्टु वैसे तो मन ही मन खुस था की चलो इस खुसट औरत से पल्ला छूट रहा है.. पर अंत समय मे इसका दिल क्यू दुखाया जाये. सो मेरी तरफ मुँह पर उंगली रख कर चुप रहने का आग्रह करता हुवा .. उदास स्वर मे बोला -- नही..... नही मेरा यकीन करो मैं दुसरी शादी नही करुंगा ये मेरा वादा है तुमसे ....और फीर अनारो को तुम्हारे कपड़े भी कहाँ आयेंगे। ? कितना ही छुपाओ दिल कि बात आखिर जुबान पर आ ही जाती है. नही .... पल्टु मत बनो.. बाहर भीतर से एक जैसे रहो... परमात्मा की शराब तुम पर बरसने लगेगी. और जिस घडी परमात्मा की मदिरा तुमने पी ली... फिर इसका नशा नही उतरेगा.... विजय माल्या की दारु और बियर का नशा रात करो सुबह उतर जाता है. पर परमात्मा की शराब का नशा चढ्ता देर से है पर एक बार चढ गया फीर नही उतरता . पी के तो देखो.... शेष फिर कभी................. .

पेट्रोल का सस्ता विकल्प

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स्कूल के सुनहरे दिन भाग्-2

भाग -1    अब आगे....

इंटरवेल होते ही हमने तडी मारने का प्रोग्राम बना लिया.  इंटरवेल हुवा वैसे ही अपने २ बसते झोले उठाकर निकलने का जुगाड़ करने लगे.  पर पता नहीं , संयोग से या जान बूझकर हमारी कक्षा के दरवाजे से लग कर हमारे इंग्लिश के मास्टर साब स्व-नाम धन्य श्री अमरनाथ जी शर्मा खड़े होकर किसी से बात कर रहे थे.  वो इस तरह खड़े थे की अगर हम झोला लेकर निकलते तो उनकी नज़र हम पर पड़ ही जाती और वो फ़िर जो हमारी पूजा पाठ करते , उसकी इच्छा नही थी.  सो मन मार कर बैठ गए.  और घर से लाई घंटी (प्याज) और रोटी झोले मे से निकाल कर वहीं कक्षा मे ही बैठ कर खा ली.  कलेजा धक् धक् कर रहा था. जैसे बकरा कसाई का इंतज़ार करता है वैसे ही नए मास्टर जी का इंतज़ार करने लगे.  इस कक्षा के हमारे गाँव के हम 9 छोरे थे और नौ रत्न के नाम से पूरे स्कूल में प्रसिद्ध थे जैसे बादशाह अकबर के नौ-रत्न थे यानि हर फ़न के माहिर.

खैर साहब इंटरवेल खत्म हुवा और नये मास्टर जी कक्षा मे प्रकट हुये. गंगाराम (डंडा) हाथ मे पकड़े हुये पहला ही सवाल किया- तुम मे से नौ रत्न कौन कौन से  हैं?...., अपनी 2 जगह पर खड़े हो जाये.  मुगलिया शैली मे फर्मान जारी हुवा.  अब जिल्ले इलाही के सामने सिवाय खडे होने के चारा ही क्या था?  स्कूल मे तो हम उनका कुछ बिगाड नही सकते थे.  और बाहर हमने कोइ कसर कभी छोड़ी नही जो मास्टर जी को आज तक मालूम नही होगा की हमने उनसे बदला लेने के लिये क्या 2 गुल खिलाये?  ये सब आप आगे जाकर पड़ेगे.

हम नौ के नौ रत्न  सबसे पीछे की लाइन मे इक्कठे ही बैठते थे. मन मार कर खडे हो गये. ( अब समझ आया की इंग्लिश वाले मास्टर जी क्यों हमारा रास्ता रोक के खड़े थे ?)  अंग्रेजी वाले मास्टर जी से भी हमारा पुराना हिसाब किताब था. हम उनके काबू मे  आते नही थे तो उन्होंने  नये मास्टर साब को  सिखा पढाकर यानि हमारे  सारे गुणगान पहले ही बखान कर दिये थे.  अंग्रेजी वाले मास्टर जी के साथ के कार नामे भी आप आगे आगे पढ़ पायेंगे.

आते ही मास्साब ऊंचे लहजे में बोले - हां  तो तुम अपना 2 नाम बतावो.  हमने अपने 2 नाम बता दिये.  मास्टर जी जयपुरिया लहजे मे कुछ 2 हरयाणवी मिक्स हिंदी बोलते  थे.  फिर वो  बोले - देखो भइ .. तुम्हारी करतुते मुझको मालूम पड गयी हैं . तुम आज से सुधर जावो वरना तुम्हारी खैर नही ... ...चलो अब बैठ जावो.  अब 15 मिनिट ही पीरियड मे शेष बचे है हम कल से पढाई शुरु करेंगे.

हमने सोचा चलो इस आफत से पीछा छूटा.. इतने मे हमारा नौ रत्न साथी रामजी लाल लंगडॉ बुद बुदाया ... सुसरे कल कोई आयेगा तब तो पढायेगा... और शायद एक दो गाली भी  दी... मास्टरजी बोले ... कौन बोला ..... सब खामोश्.... अचानक मास्टर जी बोले अभी 15 मिनिट बचे हैं तुमको एक महा भारत की कहानी सुनाता हूँ.

मास्टर जी की इस कहानी ने हमारे सबसे बड़े नौ रत्न राम जी लाल लंगडा जिसको हम प्यार से रामजीडा  कहते थे.  की दुसरी टाँग भी तुड़वाने मे कोई कसर नही रखी.

मास्टरजी बोले  --- हाँ तो ये कहानी महाभारत से है. धीरे से रामजीडा बुद बुदाया..... पहले ही दिन महा भारत कर रहा है आगे आगे और के के करेगा?

मास्टरजी फ़िर बोले ... कौन बोला .. कोई बोला क्या ? ... कक्षा मे सन्नाटा ..............हाँ तो ये कहानी कंस और कृष्ण की है. जब कंस को मालूम पड़ा की उसको मारने के लिये उसकी बहन देवकी के गर्भ से
संतान पैदा होगी तो उसने बहन और बहनोई को जेल मे डाल दीया.

इधर हम सारे ही पक चुके थे पर रामजीडा कुछ ज्यादा ही पका हुवा था... धीरे से बुद बुदाया... तो तेरे बाप का क्या ले लिया ... डाल दिया तो डाल देने दे ... तु भी तेरे घर जा और हमने भी जाने दे. असल मे रामजीडे को चिलम पीने की तलब लग रही थी. इस करके उसका माथा ही काम नही कर रहा था.

मास्टर साब तेज आवाज मे चीखे ... ये कौन बद तमीज बोल रहा है. यो मेरी लास्ट वॉर्निंग है... इबकै आवाज आयी तो मेरे से बुरा कोई नही होगा.  हाँ तो देवकी के पहला बालक हुवा और कंस ने उसको जहर दिलवा कर मार डाला. ... फ़िर दुसरा बालक पैदा हुवा उसको पहाडी से फिकवा कर मरवा दीया..... फिर तीसरा ................ इसी बीच  रामजीलाल लंगडे ने सवाल पूछने की मुद्रा में  हाथ खडा कर दीया..... ...... रामजीलाल लंगडा--- जीईईई वूऊऊओ ...... मास्टर साब थोडा नाराज होके बोले... पूछो कुछ पूछना है तो.....

रामजीडे की तो हड्डियाँ कुल् बुला रही थी कुटने के लिये.... रामजीडा बोला- मास्टर जी .. एक बात बतावो के जब कंस को ये मालूम था की उसकी बहन से होने वाला बच्चा ही उसे मारेगा तो उसको अपने बहन और बहनोई को अलग अलग जेल मे बंद करना चाहिये था ना?.... उनको एक जगह क्युं रखा... अलग 2 जगह रखता तो ना बच्चे पैदा होते और ना यो खून खराबा होता.... और हम भी अपने घर जा के चिलम पी के कुऐ पे काम करते होते..... खुद भी दुखी हो लिया और जमाने को भी  दुखी कर दिया.

इस बात का असली मतलब समझ मे आते ही मास्साब  तो लाल पीला हो लिये बोले.. तुम अभी जड मे से भी नीकले नही हो और ऐसी 2 गंदी 2 बाते करते तुमको शरम नही आती ? और इसी बात पर मास्टर साब ने रामजिडे को खूब मारा... दो डंडे टूट गये और मास्टर जी भी हांपने लग गये तब कहीं जाकर रामजिडे की कुटायी बंद हुयी. सारी कक्षा के छात्र अंदर ही अंदर कांप रहे थे. रामजीडे ने इस बार की कुटाई का बहुत दुख और अफसोस किया और आगे जाकर मास्टर जी की छाती पे कैसे 2 मूंग दले ये सब आप आगे के अंको मे क्रमशः पढेंगे.....

शेष अगले भाग में .....






स्कूल के सुनहरे दिन भाग-1

बात उन दिनों की है जब हम 8 वीं कक्षा के होनहार विद्यार्थी हुवा करते थे। उन दिनों मे 5 वीं तक तो स्कूल
हमारे गाँव मे ही था. उसके बाद गाँव से  12 - 13  किलोमीटर दूर हाई स्कूल मे जाया करते थे. 25 -30 गांवों
के बीच एक मात्र हाई स्कूल था। एक एक क्लास के 6-6 या 7-7 सेक्शन हुवा करते थे.

अब सरदी गरमी और बरसात मे नंगे पाँव 12/13 किलोमीटर जाना और आना , इसके बाद हम क्या पढते लिखते होंगे और ये कितना दुष्कर कार्य था ये आप अंदाजा ही लगा सकते हैं. बस आप यूं समझ लीजिये की घरवालों और मास्टरों के डर से स्कूल चले जाते थे। वरना ये कोई मनोरंजक तो था नही.  पर वो कहते हैं ना की जिसके भी साथ ज्यादा रहो , उससे भी प्यार हो जाता है.  तो साहब यु समझ लिजिये कि हमको भी इन हालातों से प्यार हो गया और हम लोगो की शैतानियां बढ्ती ही चली गयी.

हुक्का, बीड़ी, चिलम पीना और ताश - चौपड खेलना और बेहतरीन गालियां बकना ये सब प्रिय शगल बन चुके थे. हमारे गाँव से सौ सवा सौ लड़के (लड़कियाँ नहीं, एक मात्र लडकी हमारे स्कूल मे इस घटना के दो साल बाद आयी थी. इसका जिकर आगे बाद मे आयेगा. ) कक्षा 6 ठी से 10 वीं तक की कक्षाओं के लिये भेड बकरियों के  रेवड की तरह निकलता था. जैसे टिड्डी दल रास्ते मे सब साफ करता चलता है वैसे ही ये लड़कों का टोल खेत खलिहानो को रोंदता हुवा चलता था. इसी वजह से कई बार किसानो से आपस मे सर फुट्टोवल भी अक्सर होती ही रहती थी. ये फुल टाइम काम था. पढने लिखने से कोई ज्यादा मतलब नहीं था. उन दिनों जमीदारो के छोरो का तो पढने का मतलब था शादी ब्याह होने मे आसानी रहती और वो भी पट्ठे जिस क्लास मे भी शादी हो लेती उससे अगली मे नही आते. और बामन बनियो के लड़के आठ्वी दसवीं पढ के कहीं नोकरी पे लग जाते. उस समय का कुल जमा अर्थ शास्त्र यही हुवा करता था.

तो साहब यूं तो सारे ही लडके छटे हुए थे.  पर ये किस्सा हमारी 8 वीं कक्षा का है.  उस सेक्शन के 50/55 लड़कों
मे हम एक ही गाँव के 9 लडके थे.  सारे के सारे अक्खड और छंटे हुये. इच्छा हुयी तो स्कूल पहुंचे नहीं तो बीच रास्ते, नदी किनारे, खोकरे की बंद पडी खदानों के टूटे फुटे खंडहरो मे बैठ कर ताश पत्ती खेलते , भूख लगने पर , घर से कपड़े मे बाँध कर लायी ठंडी रोटी और घंटी (प्याज) खाके पानी पी लेते. और शाम को दुसरे लड़के जब स्कूल से लौटते तब उनके साथ वापस घर हो लेते.

कोइ भी लडका एक दूसरे की इस बारे में  घर या स्कूल मे  चुगली नही करता था. एक अघोषित सा  समझौता सब लड़कों मे था. लडॉई झगड़े की हालत मे भी ये नियम नही टूटा. क्योंकि  चोर चोर मोसेरे भाई . कुछ इसी तरह की दिनचर्या 6 ठी और 7 वीं कक्षा तक तो आराम से चली. पर समस्या 8 वीं कक्षा के शुरु मे ही हो गयी.

जुलाई मे ही हमारे गणित के नये मास्टर जी श्री श्री बचन सिंह जी राजपूत ( अगर अब भी जिंदा हों तो उनसे क्षमा याचना सहित और अगर जन्नत नशीं हो चुके हों तो भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. उनकी आत्मा की शांति मांगना इस लिये भी जरूरी है कि कहीं उनकी आत्मा को मेरे पते का पता चल गया तो मेरी फिर कुटायी शुरु कर देंगे . उनके गंगाराम (डंडा) की दहशत अभी तक मेरे मन मे समायी हुयी है. और प्रिय पाठ्को उनके डर के मारे ही मेरा असली नाम पता मैं यहाँ नहीं दे रहा हूँ . वरना आप यकीन रखिये कि  मैं भी एक शरीफ और सामाजिक आदमी हू. मुझे इस तरह गुमनाम रहने की कोइ जरुरत ही नही. अब मास्टर साहब मुझे इतने लडको को छोड कर, मरने के बाद भी क्यों ढुंढते  होंगे?  ऐसा मैने  कौनसा उनकी  आँखों मे काजल पाड दिया?  ये सब किस्सा आगे सिलसिलेवार आयेगा. ) ट्रांसफर होकर आये.

इसके साथ ही साथ उनके पिछले स्कूल , जहाँ से वो ट्रांसफ़र होकर  आये थे, वहाँ से उनकी यश गाथा भी आ गयी. रिपोर्ट ये आई की मास्टर साब बहुत कड़क और सख्त किस्म के इंसान है और कुटायी पिटाई करने के खासे शौकीन..इतने की स्कूल मे पढने वाले खातियों (carpenter) के छोरों से हर हफ्ते दो तीन डंडे मंगवाया करते थे. और डंडे का नामकरण उन्होने गंगाराम किया हुवा था. पुरी स्कूल मे दो ही चीजें आगे जाकर famous हुयी.... एक मास्टरजी का गंगाराम और दुसरा उनका वोह 7 दिन मूवी के नीलू फूले छाप नाडा . खैर साब ...

पहले दिन प्रार्थना स्थल पर उनकी झलक देखी. जो आज भी याद है. वो कहते हैं ना की पहली नजर का प्यार याद रहता है वैसे ही वो उनकी झलक आज तक याद है....और रहेगी भी क्योंकी इस सख्स ने जितनी हमारी कुटाइ पिटाई करी है उसका दसवां हिस्सा भी हमारे वालिद साब ने और कुल जमा इतना ही और सारी दुनियां ने मिलकर हमारी पूजा पाठ की होगी. यानि ये कई जन्मों  तक भुलने की चीज नही.

करीब साढे पांच फूट का कद्...... , गेहुंवा रंग....... , गोल चेहरा......., उस पर मोटी फ्रेम का चश्मा......, अंडे की जात घुटी हुयी चिकनी खोपड़ी........., नीली कमीज और इसके नीचे सफेद पायजामा....... , नाडॉ ऐसे लटक रहा था जैसे वोह 7 दिन हिंदी फिल्म के नीलू फूले का नाडा .... और पैरों मे राजस्थानी देशी जूतियां.... .कुल मिला कर इस सखशियत से डर तो नहीं लगा पर अच्छा भी नही लगा. पर उनके पिछले स्कूल के सुने हुये कारनामे याद कर करके सभी छात्र ऐसे मह्सूस कर रहे थे जैसे वो जेल मे कैदी हैं और ये नया खडूस जेलर आ गया है.

अब तो एक ही उम्मीद की किरण थी की हमारी गणित की कक्षा इन मास्टरजी को न मिले, फिर हमको क्या फर्क पड़ना है ? मन ही मन बहुत गणेश जी.. हनुमान जी को याद किया , इक्कनी का हनुमान जी का प्रसाद बोला इससे ज्यादा की औकात नही थी. पर तुलसीदास जी ने कहा है ना की जब खराब समय आ जाता है तो कोइ साथ नही देता यानि ऊंट पर बैठे मनुष्य को भी कुता काट खाता है  तो इक्कनी के लिये हनुमान जी क्यों तकलीफ उठाते?... उनका कौन सा बडा नुकसान हो रहा था. इक्कनी का प्रसाद चढा की नही चढा, उनको क्या फर्क पड़ना था.

आखिर वही हुआ...हनुमान जी ने हमारा इकन्नी के प्रसाद का सौदा ठुकरा दिया और  हमारी कक्षा को गणित पढाने का जिम्मा इन्हीं मास्टर साहब को  ही मिला. कुल 8 पीरियड लगते थे. पहले 4 पीरियड के बाद इंटरवेल् और उसके बाद 5 वां पीरियड गणित का.


शेष अगले भाग-2  में .....

चाय वाला छोकरा

चाय वाला बारीक छोकरा,
चाय की केतली और कप लेकर ।
हमेशा लहराता हूवा
सेठ की फैक्ट्री मे दाखील होता।

सबसे हँसी मजाक करता,
और चाय पिला जाता।
फैक्ट्री मालीक ने भी उसको ,
काफी मुंह लगा रखा था।

एक दिन ऐसा हुवा की,
चाय पिला कर बारीक ।
कूलर के सामने बैठकर,
ठंडी हवा खा रहा था।

वो इस फैक्ट्री मे,
चाय जल्दी से जल्दी ले आता था।
ताकि कप खाली होने तक ,
कूलर की हवा खा सके।

थोड़ी देर मे फैक्ट्री मालिक आया ,
गरमी से मूड थोडा उखडा था।
शायद बाहर या घर से ,
लड़ भिड़ कर आया था।

बारीक ने सेठ के ,
आते ही ।
चहक कर पूछा,
सेठ , तमी आवी गया।

सेठ ने आव देखा न ताव ,
एक झन्नाटेदार झापड रसीद कीया।
और बोला हाँ हूँ (मै) आवी गयो ,
सूं (क्या) करवानो छे .

यही हश्र होता है ,
अमीर और गरीब की बेतक्लुफी का ।
सही कहा है , सेठ के अगाडी
और घोड़े के पिछाडी नहीं होना.



ताई धाफली और कालेज का छोरा

एक बार ताई धाफली घन्ना सारा सामान लेकर बस मे चढ़ गयी । और गोदी मे छोटा सा बालक भी ठा राख्या था। बस मे भीड़ बहुत ज्यादा हो रही थी। और ताई धाफली ने सीट मीली कोनी। एक सीधा सा कॉलेज का छोरा भी खड़ा था , ताई के पास ही। ताई उस तैं बोली बेटा मेरा यो झोला पकड़ ले जरा, छोरे ने पकड़ लिया । थोड़ी देर बाद दूसरा फ़िर तीसरा , इस तरियों ताई ने उस बिचारे छोरे को पुरा लाद दिया। और गोदी का बालक भी उसी को पकड़ा दिया । इब ताई को सीट मिल गयी। इब ताई उस छोरे तैं बोली ...बेटा तू तो भोत सुथरा बालक से तेरा नाम के से ? छोरा बोल्या - मेरा नाम से खूंटी, और कुछ टांगना सै तो टांग ले ।

ताऊ घसीटा राम और डॉक्टर सुन्डाराम

हाँ तो निगुडकर साहेब आपका फ़ोन आया बताया.  आपने ताऊ घसीटे के हालचाल पूछे बताये और आपको  कोई खाना-वाना बनाण की रेसिपी ताऊ से चाहिए थी.  मैनें ताऊ घसीटे को आपके फ़ोन के बारे में बताया.

ताऊ ने हाल-चाल जानने के लिए आपको घणा धन्यवाद दिया है.  ताऊ के साथ यो हुआ की ........ 3/४ दिन पहले ताऊ घसीटा राम को खांसी जुकाम होग्या था. अर ..ताऊ के खीसे (जेब) मे धेला कोडी था नही, सो ताऊ डॉक्टर सुन्डाराम धोरे पहुँच लिया. 

उत जाके ताऊ बोल्या ..रे ..डाकडर साहेब ज़रा मेरी नब्ज देख ...मेरे के बेमारी होरी स?
डॉक्टर सुन्डाराम पहले से ही ताऊ घसीटे तैं घबराया करता ....वो बोल्या - ताऊ न्यू करिये ...१५ रुपिये का दूध ...अर २० रुपिये के छुहारे (खारक) सामने की चाय कि दूकान पे अच्छी तरीयाँ उबाल के अर... उकुडू बैठ के फूंक मार के पी लिए....

ताऊ घसीटा बोल्या - डाकडर साहेब ४० रुपिये देदे मने ...१५ रु दूध के ,...२० रु छुहारे के अर ५ रु चा आले के. डॉक्टर बोल्या - ताऊ फेर तेरे पास के स ...?
ताऊ घसीटा बोल्या - भई अपने धोरे तो उकुडू अर... फूंक स...

अर ... भई निगुडकर साहेब आपकी रेसिपी के लिए ताऊ घसीटा बोलरया है कि ....थोडा सा ईंतजार करो ताऊ नई डिश बना रहा है जिसका नाम स ... दिमाग का दही बनाना ... थम भी बोल उठोगे - सेठ तमी आवी गया ...इसके बाद क्या हुवा ...चाय वाले छोरे की क्या दुर्गति हुयी? यह निगुडकर साहेब ही बता सकते हैं  या फ़िर ताऊ की जुकाम ठीक होने पर ताऊ ही बताएगा ।

ताऊ घसीटा राम और गुल्ला सेठ

ताऊ घसीटा राम एक बार गुल्ला सेठ की दूकान मे चल्यागा । जाके बोल्या - ओ सेठ एक माचिस की डिबिया दीये । ताऊ घसीटे से गुल्ला सेठ थोडा डरता था। उसने जाट को परभावित करण खातर उसको लाइटर पकड़ा दीया। इब ताऊ घसीटे न घंना छोह (गुस्सा) ठा लिया .... अर्र उसने बनिये के २ कनपटी पर बजा दिए । अर्र ताऊ बोल्या - बावली बूच इस गेल्याँ कान क्यूं कर साफ करूंगा।
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पाँच छुट्टी इक्कठी

हम जिस गाम के स्कूल मै पढ्या करते थे, वो स्कूल
बिल्कूल ही शमशान घाट के पास था । सो जब भी कोई
गाम का बुढा ठेरा मर जाया करता तो मास्टर जी
म्हारी छूट्टी कर दिया करते और भई म्हारी हो लेती मौज !

एक दिन इसी तरियों एक बुढा मर लिया और म्हारी हो ली छूट्टी !
हम सारे बालक वापस घर जा रहे थे । रास्ते मे एक चबुतरे
पर ५ कती फ़ूस बुढ्ढे बैठे थे । उनको देख कै म्हारा साथी
रामजीलाल लंगडा बोल्या - भाइ ५ छूट्टी तो यो इकट्ठी
इत ही बैठी सैं .......!

Exams:-

Exams are like GIRL FRIENDS।
Too Many Questions।
Difficult to Understand।
More Explanation is Needed।
Result is always FAIL!!!

भरतू नाई और सरदार जी

एक बै एक खुले बाला आला सरदार ट्रेन मे बैठया जा रह्या था....... . ट्रेन हरियाने से होकर जान लाग री थी........ और भरतू नाई भी उसके पास ही बैठया था........ थोडी देर मे सरदारजी को नींद आन लागगी ....... उसने भरतू नाई को बीस रुपिये दीये और बोल्या ... ओये मेरा टेसन करनाल आये तो उठा देना.......... भर्तू बोल्या जी सरदार जी थमने म ठा दूँगा ... चिंता मतने करो ... सरदार जी सो ग्ये. थोड़ी देर बाद भरतू नाई के नाई आली आन लाग गी ,..... उसने सोच्या इस सरदार जी ने मुझको 20 रुपिये सिर्फ उठाने के लिये हि थोड़ी दिये होंगे. सरदार जी की थोड़ी सेवा भी कर देनी चहिये . ............. भरतू ने अपने झोल्ले मे ते उस्तरा निकाल्या और सरदार जी के खोपड़ी के खुल्ले बाल कती सफाचट कर दिये ........... और उसके बाद सरदारजी की दाडी मूंछ भी कती साफ कर दिये .......... इब सरदार अंडा की जात लागन लागरया.............. करनाल आते ही नाई ने उसको ठा दीया .............. घर पहुंच के सरदार जी ने ख़ुद को शीशे (आईने) मे देख्या तो गाली दे के बोल्या ...... उस ससुरे नाई की ....साले ने रुपीये तो मेरे से ले लिये और उठा कीसी और को दिया.

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शेयर बाज़ार की महिमा

शेयर बाज़ार के लिए ये सप्ताह भी बहुत ही कमजोर रहा । इन्वेस्टर और दलाल दोनों ही मायूस है । पर सही में देखा जाए तो इस सप्ताह शेयर बाज़ार का नया इतिहास बना दीखता है। एक अहमदाबाद की कंपनी के भाव री-लिस्टिंग सौ रुपिये से शुरू होकर पचपन हज़ार तक सिर्फ़ घंटे दो घंटे में पहुँच गए । अब कोई इंदौर वाले अहमदाबाद वालों से कम पड़ रहे हैं क्या ? अगले ही दिन एक इंदौर की कंपनी के भाव सिर्फ़ ८० पैसे से शुरू हो कर ८०० रुपिये तक पहुँच गए। आपको क्या लगता है बिना ग्रोथ के ही शेयर इतना बढ़ सकता है क्या ? और यह देश के लिए गौरव की बात है।और यह सिद्ध होता है की हम कितने कुशल और मेहनती हैं। इन दोनों ही कंपनी के मालिकों और आपरेटरों को अम्बानी बन्धुवों से भी बड़े उद्योगपती का दरजा दिया जाना चाहिए । हमारे देश के लिए कितना बड़ा योगदान इन्होने किया है। सारा विश्व मंदी की मार झेल रहा है और भारतीय कंपनियों के शेयर इतने जोर से उछाले मार रहे हैं। लोग फोकट ही मंदी मंदी चिल्ला रहें हैं । इतनी तेजी घंटे दो घंटे मे किसी ने देखी है क्या ? आप को कमाई ही करनी थी तो इनके शेयर खरीदते ..... तुरंत मालामाल हो जाते. सही कहा है बुजुर्गों ने की हमेशा समझदार लोगो की संगत करनी चाहिये . पर निगुडकर साहेब की कोई सुने तब तो. अरे हमने नही सुनी आज तक तो और कोई क्या सुनेगा.

खैर जब निगुड्कर साहेब की बात निकली है तो आपको बता दू की निगुड्कर साहेब का वातानुकूलन यंत्र बीमार चल रहा है। और मैने मेकेनिक भेज दीया है। निगुड्कर साहेब अगर ठंडी हवा आने लगे तो हमको भी याद कर लेना । आपको ऐसे ऐसे फारमुले बतायेंगे की हमको याद रखोगे। इस हफ्ते की खास खबर ये रही की जायसवाल साहेब यहाँ हमारा साथ छोड्कर उडीसा के लिये उड़ान भर रहे हैं. भगवान बचाए ओडीसा और बिहार वालों को.... शुकलाजी देखना जरा ...... आप खुद ही समझदार है. और सर जी आपके क्या हालचाल हैं.आप यहाँ से छुटकारा पा के ये मत समझना की हमसे छुटकारा हो गया है . अब भी five स्टार नरक का ठेका हमारे ही पास है सो हमारे भी हालचाल पता करते रहना । वरना ऊपर तो अपना ही राज रहेगा. खैर ...... really I miss you. ----

आज और ज्यादा लिखने का मूड नही बन रहा है । पर कपूर साहेब और पंडीत जी के लिए एक हरयानावी

डोज तो देना ही पडेगा । थम चिंता मत करियो । ताऊ पे भरोसा रखियो । थमने डोज थोड़ी देर म मिल ज्यागा ।

अच्छा भाई तो इब राम राम । कल फिर मिलागे .

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सप्ताह अन्त की गप-शप

जीवन की आपा-धापी मे हम इस हद तक डूब चुके हैं की हम अपना अस्तित्व ही भूल चुके हैं. हसना और खिलखिलाना तो दूर की बात ..... जागो और देखो तुम स्वयं ही परमात्मा हो.... आनंद हो....परम सत्य हो..... सिर्फ अपने आपको महसूस करके तो देखो ....... दुखी होना तुम्हारा भ्रम है...... और सूखी होना तुम्हारा स्वभाव है.... अधिकार है....चिंता मत करो ......

आज रविवार और कल सोमवार की छुट्टी का आनंद लो.... मंगलवार को फिर वही रामदयाल और वही गधेडी........कपूर साहेब किसी के शेयर आक्शन करवायेंगे ...... और पंडितजी किसी को पे आउट करवायेंगे ....... तख्तानीजी किसी को लिमिट देंगे किसी को नहीं........... और मुद्‍गल साहेब किसी की ऐसी तैसी करेंगे और कराएँगे ............... जोसेफ साहेब तो अगले हफ्ते भी भिलाई में ही आनंद लेंगे........ .........

और अब तो माथुर साहेब भी लोगों के बर्तन भांडे बिकवाने निकल पड़े है.... हम और जायसवाल साहेब ही कम पड रहे थे क्या ? पर क्या करें कोई समझता ही नहीं...... घोर कलयुग का जमाना है.......... ये आधा बैक ऑफिस पोस्ट है ... पसंद आय तो लिखे.

हाँ तो भाई कपूर साहेब और पंडितजी थम दोनु ही म्हारे इस ताऊ क्लब के प्राइमरी मेम्बर्स हो... थम दोनु को तो extra dose चाहिये ही चाहीये .... थमने इस हफ्ते का dose मिल ग्या होगा अर्र जै कसर रह्गी सै तो यो ले हरियाणवी ताऊ का extra dose..... हफ्ते भर थम दोनू राजी र-वोगे(rawoge). और चोखी तरीया हफ्ते भर काम करते र-वोगे( rawoge) तो सुनो ...................

एक बै ताइ रामकोरी बीमार हो ली अर्र ताऊ न कोइ ढंग का डॉक्टर दीख्या नहीं सो ताऊ ताई न लेके एक झोल्ला छाप डॉक्टर धोरे पहुंच लिया और उस डॉक्टर झटके न कुछ समझ आया नी सो उसने ठाके एक इंजेक्शन और उसमें 20 मिलि. petroll भर के ताई क वो ठोक दिया..

इब के हुया के ताइ तो उत ते भाज ली.... ताउ गेले लाग् रा पर ताई रुकदी ए नए.... तै ताउ चिल्लाया ...... अर्र छोरों जर्रा भाज के थारी ताइ न डाटो वो इंजेक्शन लगने के बाद रुक्क ही न रही....

इब छोरे ताइ के पाछै लाग लीये .... अर्र घनी देर बाद ताइ न लेके वापस ताउ धोरे आके बोले .... ले ताउ संभाल इब ताइ न .. यो पुरे 30 किलो मीटर दूर जाके डटी सै .........

ताउ सोच मे पड़ ग्या अर फेर बोल्या - अर भइ बालकों , देखो इब थम्हारी ताइ न्यु त बूढ़ी होली सै .... इसका chasis भी बिखर लिया... पर ये average इब बी घणा सूथरा देवे सै.... जरा सा पेट्रोल उस डॉक्टर इसमें डाल्या था भइ...... घणा तगड़ा average सै थारी ताइ का तो ...................... 20 मिलि. मे 30 किलो मीटर...................... ---------------------------------------------------------