हमारे एक मित्र हैं और उनकी बिटिया की शादी के लिये वो लड़का देख रहे थे। एक दिन हमारे सामने जिक्र कर बैठे तो हमने अपने एक परिचित के लडके का नाम सुझा दिया। उन्होंने लड़का भी चुपके से देख लिया, सब मालूमात भी कर ली, तबसे वो हमारे पीछे पड़ गए कि ये रिश्ता करवा दीजिये, दोनों की जोड़ी भी बढ़िया जम रही है, पैसे वैसे की भी समस्या नहीं है, जैसा आप कहोगे वैसा ही कर देंगे।
हमने प्रोग्राम सेट कर दिया और लड़की देखने लड़का, उसकी माँ और बहन उसके घर चले गये।
लड़का भी बहुत खानदानी घर से था साथ ही ऊंचे ओहदे पर भी था लिहाजा खूब जमकर खातिरदारी की गई। यूं भी लड़की पक्ष आर्थिक रूप से अति सक्षम था।
अब लड़की की बहन का ध्यान लड़की की बाजू पर बंधी पट्टी पर गया, पट्टी कुछ कुछ कुर्ते की बाहों में छुपी हुई भी थी। लिहाजा लड़के की बहन को शक हुआ कि हो ना हो इसको कोई सफेद दाग होगा जिसे छुपाने की कोशिस की गई है।
लड़के की बहन ने अपनी माँ के कान में खुसुर पुसुर की और मां ने लड़की से पूछा - ये पट्टी क्यों लगा रखी है?
लड़की ने सीधेपन में बता दिया कि उसे यहाँ हल्की सी फुंसी हो गई है इसलिए पट्टी लगा रखी है।
अब तो माँ बेटी दोनों का शक और भी परवान चढ़ गया और दोनों ने अजीब सी दृष्टि लड़की पर डाली। अचानक...कोई और लड़की की तरफ से सफाई देता उसके पहले ही लड़की ने दोनों मां बेटी से नजर मिलाते हुए पूछा - खोलकर दिखाऊँ क्या?
मां बेटी दोनों ने नहीं नहीं कहते हुए चलने की परमिशन मांगी और चले गए।
फिर हमको फोन किया और सारा वाकया बताया। हमने कहा - कि लड़की को हम बचपन से जानते हैं उसको कोई दाग वाग नहीं है बड़ी सुंदर और सुशील लड़की है।
अब लड़की की माँ बोली - अरे ताऊ काहे की सुशील, बड़ी मुँहफट है, शादी के पहले ही बोलती है कि "खोल कर दिखाऊँ क्या" तो शादी के बाद क्या करेगी? हम तो यह रिश्ता नहीं करेंगे।
हमने लाख समझाया पर वो नहीं माने। अब इसमें कसूर किसका?
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मोदीजी को भगत ताऊ का खुला खत
आदरणीय मोदीजी रामराम
वर्तमान स्थितियों में आप अति व्यस्त होंगे फिर भी समय निकाल कर कृपया अविलम्ब गौर करें।
हाल यह है कि इतने दिनों से काम धंधे बन्द कर घर में बैठकर खाते हुए सब जमा पूंजी खत्म हो गयी है अब क्या करें?
आपने 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज जब घोषित किया तो मन प्रसन्न हो गया और यक़ीन मानिए उस रात बिना नींद की गोली खाये ही मस्त नींद आयी।
पर अगले दिन जब बहन निर्मला सीतारमण जी ने जलेबी सी उतारना शुरू की और 5 दिन तक उतारती ही रही तो समझ आगया की इन जलेबियों में चाशनी नहीं है।
पहली बात तो यह कि निर्मला जी पूरे 20 लाख करोड़ की जलेबी भी नहीं उतार पाई। यदि उनकी सारी जलेबियों का हिसाब भी जोड़ा जाए तो ये 13 या 13.5 लाख करोड़ की कीमत की ही बैठती हैं।
अब अगर RBI द्वारा पूर्व प्रदत्त लिक्विडिटी के 8 लाख करोड़ भी इसमें जोडलें तो यह आपके 20 की बजाय 21 या 21.5 लाख करोड़ का राहत पैकेज बन गया।
ताऊ कोई अर्थशास्त्र का ज्ञाता तो है नहीं, ताऊ है एकदम अंगूठा छाप, पर एक बीघा में कितना किलो बीज लगेगा यह अच्छी तरह जानता समझता है।
आपके राहत पैकेज से जनता अनुमान लगाए बैठी थी कि सबके खाते में 15/16 हजार रुपये अब आये ही समझो। पर आपके इस पैकेज का लॉलीपॉप मुझे कुछ इस तरह समझ आया है कि -
रिजर्व बैंक ने जो 8 लाख करोड़ की लिक्विडिटी लोन के लिए दी थी वह पैसा भी बाजार में आ नही पाया क्योंकि लोन कोई क्यों लेगा? काम धंधा है नहीं, फोकट लोन लेकर कोई कर्ज का बोझ क्यों बढ़ाएगा? ऊंच नींच होगई तो आप विजय माल्या बनने नहीं दोगे।
अब इस राहत पैकेज के 11 या 11.5 लाख करोड़ आपने MSMEs को लोन के लिए रखे हैं तो लोन का हाल आपको ऊपर बता ही चुका हूँ, इस तरह पैकेज तो यहां पूरा हो गया।
हाँ, आपने जेब से करीब 1.5 लाख करोड़ के आस पास मनरेगा, जनधन व महिलाओं के लिए नगद खर्च किया है उसके लिए आपका आभार। आपने मनरेगा बजट को 61 हजार करोड़ से 40 हजार करोड़ अतिरिक्त बढाया है उसके लिए भी आभार।
आपने जीडीपी के 10% का राहत पैकेज देने की घोषणा की थी जो कि सिर्फ 0.75% ही आपने दिया है।
पर इस 1.5 लाख करोड़ के सर्कुलेशन से तो अर्थव्यवस्था का पहिया नहीं दौड़ेगा। सर, अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए आपको नगदी माल जनता के हाथ में देना ही होगा। 1930 की अमेरिकी मंदी के समय भी वहां की सरकार ने खुले हाथों जनता को खर्चने के लिए डॉलर दिए थे और अर्थव्यवस्था को उबार लिया गया था।
अब आप कहेंगे कि पैसा क्या पेड़ पर लगता है जो जनता में बांट दूँ? कहाँ से लाऊं इतनी नगदी?
सर, पेड़ पर भी नहीं लगता, और आपकी जेब में भी नहीं है पर आप उधार ले सकते हैं या बजट घाटा बढ़ा बढ़ा सकते हैं, इन परिस्थितियों में ऐसा करने से कोई आफत नहीं आएगी, पर नगदी जनता को खर्चने के लिए व्यवस्था करें।
मां बाप अपने बच्चों को महंगी शिक्षा दिलाने के लिए उधार ले सकते हैं तो आप जनता की और अर्थव्यवस्था की भलाई के लिए उधार क्यों नहीं ले सकते? क्यों आप बजट घाटा नहीं बढ़ा सकते?
मेरी बातों पर ध्यान दिया जाए क्योंकि मुझे अब कल की चिंता में नींद आना बंद हो गई है। यदि राहत पैकेज का स्वरूप नहीं बदला गया तो मुझे कल बहुत ही भयानक दिख रहा है।
निवेदक
अंगूठा टेक ताऊ
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
वर्तमान स्थितियों में आप अति व्यस्त होंगे फिर भी समय निकाल कर कृपया अविलम्ब गौर करें।
हाल यह है कि इतने दिनों से काम धंधे बन्द कर घर में बैठकर खाते हुए सब जमा पूंजी खत्म हो गयी है अब क्या करें?
आपने 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज जब घोषित किया तो मन प्रसन्न हो गया और यक़ीन मानिए उस रात बिना नींद की गोली खाये ही मस्त नींद आयी।
पर अगले दिन जब बहन निर्मला सीतारमण जी ने जलेबी सी उतारना शुरू की और 5 दिन तक उतारती ही रही तो समझ आगया की इन जलेबियों में चाशनी नहीं है।
पहली बात तो यह कि निर्मला जी पूरे 20 लाख करोड़ की जलेबी भी नहीं उतार पाई। यदि उनकी सारी जलेबियों का हिसाब भी जोड़ा जाए तो ये 13 या 13.5 लाख करोड़ की कीमत की ही बैठती हैं।
अब अगर RBI द्वारा पूर्व प्रदत्त लिक्विडिटी के 8 लाख करोड़ भी इसमें जोडलें तो यह आपके 20 की बजाय 21 या 21.5 लाख करोड़ का राहत पैकेज बन गया।
ताऊ कोई अर्थशास्त्र का ज्ञाता तो है नहीं, ताऊ है एकदम अंगूठा छाप, पर एक बीघा में कितना किलो बीज लगेगा यह अच्छी तरह जानता समझता है।
आपके राहत पैकेज से जनता अनुमान लगाए बैठी थी कि सबके खाते में 15/16 हजार रुपये अब आये ही समझो। पर आपके इस पैकेज का लॉलीपॉप मुझे कुछ इस तरह समझ आया है कि -
रिजर्व बैंक ने जो 8 लाख करोड़ की लिक्विडिटी लोन के लिए दी थी वह पैसा भी बाजार में आ नही पाया क्योंकि लोन कोई क्यों लेगा? काम धंधा है नहीं, फोकट लोन लेकर कोई कर्ज का बोझ क्यों बढ़ाएगा? ऊंच नींच होगई तो आप विजय माल्या बनने नहीं दोगे।
अब इस राहत पैकेज के 11 या 11.5 लाख करोड़ आपने MSMEs को लोन के लिए रखे हैं तो लोन का हाल आपको ऊपर बता ही चुका हूँ, इस तरह पैकेज तो यहां पूरा हो गया।
हाँ, आपने जेब से करीब 1.5 लाख करोड़ के आस पास मनरेगा, जनधन व महिलाओं के लिए नगद खर्च किया है उसके लिए आपका आभार। आपने मनरेगा बजट को 61 हजार करोड़ से 40 हजार करोड़ अतिरिक्त बढाया है उसके लिए भी आभार।
आपने जीडीपी के 10% का राहत पैकेज देने की घोषणा की थी जो कि सिर्फ 0.75% ही आपने दिया है।
पर इस 1.5 लाख करोड़ के सर्कुलेशन से तो अर्थव्यवस्था का पहिया नहीं दौड़ेगा। सर, अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए आपको नगदी माल जनता के हाथ में देना ही होगा। 1930 की अमेरिकी मंदी के समय भी वहां की सरकार ने खुले हाथों जनता को खर्चने के लिए डॉलर दिए थे और अर्थव्यवस्था को उबार लिया गया था।
अब आप कहेंगे कि पैसा क्या पेड़ पर लगता है जो जनता में बांट दूँ? कहाँ से लाऊं इतनी नगदी?
सर, पेड़ पर भी नहीं लगता, और आपकी जेब में भी नहीं है पर आप उधार ले सकते हैं या बजट घाटा बढ़ा बढ़ा सकते हैं, इन परिस्थितियों में ऐसा करने से कोई आफत नहीं आएगी, पर नगदी जनता को खर्चने के लिए व्यवस्था करें।
मां बाप अपने बच्चों को महंगी शिक्षा दिलाने के लिए उधार ले सकते हैं तो आप जनता की और अर्थव्यवस्था की भलाई के लिए उधार क्यों नहीं ले सकते? क्यों आप बजट घाटा नहीं बढ़ा सकते?
मेरी बातों पर ध्यान दिया जाए क्योंकि मुझे अब कल की चिंता में नींद आना बंद हो गई है। यदि राहत पैकेज का स्वरूप नहीं बदला गया तो मुझे कल बहुत ही भयानक दिख रहा है।
निवेदक
अंगूठा टेक ताऊ
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
पटोला का असल मतलब क्या है?
पटोला शब्द कई मायनों में उपयोग होता है। आइये पहले इसके सार्थक रूप को जानते हैं।
आपमें से कुछ ने शायद पटोला साड़ी पहनी हो और हर महिला की इच्छा अवश्य रहती है कि वह एक बार यह साड़ी जरूर पहने। कुछ ऑन लाइन साइट्स पर भी आपने पटोला साड़ी चार पांच हजार की कीमत में बिकती अक्सर देखी होगी। पर यह ओरिजिनल नहीं है। बस नाम ही पटोला साड़ी है वहां।
पटोला एक सिल्क की साड़ी को कहते हैं जो मुख्यतया गुजरात के पाटन में तैयार की जाती है। 6/7 लोगों द्वारा एक साड़ी 6 से लेकर 12 महीनों में तैयार हो पाती है।
गुजरात के कुछ हिस्सों में शादी में दुल्हन द्वारा पहने जाने वाले जोड़े के लिए भी पटोला शब्द का उपयोग होता है।
कुछ देशों में इस साड़ी का एक्सपोर्ट भी होता है पर बनाने वाले कम हैं इसलिए बहुतायत में नहीं। इंदिरा जी, अमिताभ, राजीव गांधी और भी नामचीन लोग इसके मुरीद रहे हैं।
इसकी खासियत यही है कि इसे दोनों साईड से पहन सकते हैं। कीमत 2 लाख से शुरू होकर 8 लाख तक जाती है।
अब आप इस साड़ी का जलवा इसी से समझ लीजिए कि ताऊ ट्रम्प के साथ जब ताई मेलेनिया अहमदाबाद आई थी तब उनको यह साड़ी भेंट की गई थी और सुनने में आया है कि मोदीजी भी पटोले का साफा एक बार पहन चुके हैं।
पंजाब में "गुड्डी पटोला" कहा जाता था गुड़िया को जो कपड़ों की चिन्दियों से बनाकर बच्चियां उसे सिल्क के कपड़े से सजाकर खेला करती थी। अपनी गुड़िया की शादी में उसे पटोला सिल्क का जोड़ा पहनाया करती थी।
आजकल पटोला शब्द खूबसूरत लड़की के लिए प्रयुक्त होता है जो बहुत ही सजी-संवरी हो। जो बहुत ही आकर्षक परिधान में विशेष सुंदर दिखती है यानी पूरे टोल में एकेली ऐसी खूबसूरत हो। आपने इसी संदर्भ में यूट्यूब पर कई पंजाबी गाने भी सुने होंगे।
अब इसके नकारात्मक पहलू को जान लेते हैं। आजकल पटोला शब्द का उपयोग हरियाणा पंजाब में किसी भी खूबसूरत लड़की को टारगेट करने के लिए होता है या समझ लें कि लड़की की सुंदरता की तरफ अभद्र इशारा करने के लिए पटोला शब्द का प्रयोग किया जाता है।
पटोला शब्द आज एक स्लैंग के तौर पर प्रचलित हो गया है। पटोला शब्द पंजाबी फिल्मों तथा गानों में बहुतायत से उपयोग होता है परंतु मूल रूप से इसका अभिप्राय "गुड़िया को सजाने के लिए लड़कियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सिल्क के कपडे" से ही है जिसे पटोला कहा जाता है।
शोहदे किस्म के लड़के पटोला शब्द का उपयोग लड़कियों को छेड़ने के लिए करते हैं इसी वजह से पटोला जैसा ख़ूबसूरत शब्द नकारात्मक हो चला है। यह शब्द आजकल एक तरह से छेड़खानी का पर्याय बन गया है।
कोई भी पुरुष अपनी घरवाली या अंतरंग महिला मित्र के लिए प्रेम पूर्वक निजी क्षणों में इसे उपयोग करे तो गलत नही है पर सावधान इस शब्द का प्रयोग आम बोल चाल में लड़की/महिला की सुंदरता के कसीदे निकालने में किया जाता है तो यह छेड़खानी की श्रेणी में आ सकता है। वैसे निर्भर करता है कि सामने वाला इसे किस तरह से समझ पाता है। इसलिए ताऊ तो आपको यही सलाह देता है कि इस शब्द के प्रयोग के बचना चाहिए।
वैसे भी यह शब्द आजकल सम्भ्रान्त समाज में हेय माना जाने लगा है और भले परिवारों में यह पटोला गाने भी नहीं चलते हैं। वैसे युवाओं में आजकल यह शब्द और गाने ज्यादा पसंद किए जाते हैं। अब मर्जी है आपकी, ताऊ को जो समझाना था वह समझा दिया।
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपमें से कुछ ने शायद पटोला साड़ी पहनी हो और हर महिला की इच्छा अवश्य रहती है कि वह एक बार यह साड़ी जरूर पहने। कुछ ऑन लाइन साइट्स पर भी आपने पटोला साड़ी चार पांच हजार की कीमत में बिकती अक्सर देखी होगी। पर यह ओरिजिनल नहीं है। बस नाम ही पटोला साड़ी है वहां।
पटोला एक सिल्क की साड़ी को कहते हैं जो मुख्यतया गुजरात के पाटन में तैयार की जाती है। 6/7 लोगों द्वारा एक साड़ी 6 से लेकर 12 महीनों में तैयार हो पाती है।
गुजरात के कुछ हिस्सों में शादी में दुल्हन द्वारा पहने जाने वाले जोड़े के लिए भी पटोला शब्द का उपयोग होता है।
कुछ देशों में इस साड़ी का एक्सपोर्ट भी होता है पर बनाने वाले कम हैं इसलिए बहुतायत में नहीं। इंदिरा जी, अमिताभ, राजीव गांधी और भी नामचीन लोग इसके मुरीद रहे हैं।
इसकी खासियत यही है कि इसे दोनों साईड से पहन सकते हैं। कीमत 2 लाख से शुरू होकर 8 लाख तक जाती है।
अब आप इस साड़ी का जलवा इसी से समझ लीजिए कि ताऊ ट्रम्प के साथ जब ताई मेलेनिया अहमदाबाद आई थी तब उनको यह साड़ी भेंट की गई थी और सुनने में आया है कि मोदीजी भी पटोले का साफा एक बार पहन चुके हैं।
पंजाब में "गुड्डी पटोला" कहा जाता था गुड़िया को जो कपड़ों की चिन्दियों से बनाकर बच्चियां उसे सिल्क के कपड़े से सजाकर खेला करती थी। अपनी गुड़िया की शादी में उसे पटोला सिल्क का जोड़ा पहनाया करती थी।
आजकल पटोला शब्द खूबसूरत लड़की के लिए प्रयुक्त होता है जो बहुत ही सजी-संवरी हो। जो बहुत ही आकर्षक परिधान में विशेष सुंदर दिखती है यानी पूरे टोल में एकेली ऐसी खूबसूरत हो। आपने इसी संदर्भ में यूट्यूब पर कई पंजाबी गाने भी सुने होंगे।
अब इसके नकारात्मक पहलू को जान लेते हैं। आजकल पटोला शब्द का उपयोग हरियाणा पंजाब में किसी भी खूबसूरत लड़की को टारगेट करने के लिए होता है या समझ लें कि लड़की की सुंदरता की तरफ अभद्र इशारा करने के लिए पटोला शब्द का प्रयोग किया जाता है।
पटोला शब्द आज एक स्लैंग के तौर पर प्रचलित हो गया है। पटोला शब्द पंजाबी फिल्मों तथा गानों में बहुतायत से उपयोग होता है परंतु मूल रूप से इसका अभिप्राय "गुड़िया को सजाने के लिए लड़कियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सिल्क के कपडे" से ही है जिसे पटोला कहा जाता है।
शोहदे किस्म के लड़के पटोला शब्द का उपयोग लड़कियों को छेड़ने के लिए करते हैं इसी वजह से पटोला जैसा ख़ूबसूरत शब्द नकारात्मक हो चला है। यह शब्द आजकल एक तरह से छेड़खानी का पर्याय बन गया है।
कोई भी पुरुष अपनी घरवाली या अंतरंग महिला मित्र के लिए प्रेम पूर्वक निजी क्षणों में इसे उपयोग करे तो गलत नही है पर सावधान इस शब्द का प्रयोग आम बोल चाल में लड़की/महिला की सुंदरता के कसीदे निकालने में किया जाता है तो यह छेड़खानी की श्रेणी में आ सकता है। वैसे निर्भर करता है कि सामने वाला इसे किस तरह से समझ पाता है। इसलिए ताऊ तो आपको यही सलाह देता है कि इस शब्द के प्रयोग के बचना चाहिए।
वैसे भी यह शब्द आजकल सम्भ्रान्त समाज में हेय माना जाने लगा है और भले परिवारों में यह पटोला गाने भी नहीं चलते हैं। वैसे युवाओं में आजकल यह शब्द और गाने ज्यादा पसंद किए जाते हैं। अब मर्जी है आपकी, ताऊ को जो समझाना था वह समझा दिया।
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कोरोना लोक डाऊन और साबुन बनाने का शौक
लोक डाऊन के चलते सभी अपने घरों में बंद हो गये हैं और समय काटना मुश्किल हो गया है. सोशल मिडिया पर भी एक लिमिट के अंदर ही टाईम पास हो सकता है. कुछ लोग अपने पुराने काम निपटा रहे हैं कुछ लोग घर में आपस में ही भिट्टी भिडा रहे हैं जिसका जिक्र आपने सुना ही होगा कि घरेलू हिंसा के मामलों में शिकायते बढी हैं. हमारी समझ से यह खाली दिमाग का काम है.
यह एक सोप बार तकरीबन 1500 ग्राम का तैयार किया. आईये देखते हैं इसको कैसे बनाया?
जिन लोगों ने कुछ शौक पाल रखे हैं उनके लिये यह बढिया समय है. हमारे पास अब भी ज्यादा समय नहीं बचता क्योंकि मैं कैपीटल मार्केट से संबंध रखता हूं तो सोमवार से शुक्रवार शेयर बाजार चालू रहता है तो शाम के चार पांच तो आफ़िस में ही बज जाते है. मेरे लिये अच्छी बात यह है कि मेरा आफ़िस मेरे घर में ही ग्राऊंड फ़्लोर पर है और रेसीडेंस ऊपर है, सो कोई खिट खिट नहीं. अब शाम के 5 या 6 घंटे रोजना बचते हैं और हमेशा की तरह शनिवार रविवार तो है ही.
यूं तो हमारे बहुत सारे शौक हैं और उन्हीं में से एक है डिजाईनर साबुन बनाना. अब आप कहेंगे कि ये क्या बला है? घबराईये नहीं ये भी एक आर्ट है जिसकी कोई लिमिट नहीं है. जैसे एक पेंटर या चित्रकार अपनी कल्पना से कितनी ही पेंटिंग विभिन्न तरह की बना लेता है वैसे ही आप इस प्रोसेस से अनगिनत तरह के साबुन बना सकते हैं. इसमे मजे की बात यह है कि आप अपनी जरूरत के हिसाब से बना कर यूज कर सकते हैं, गिफ़्ट कर सकते हैं और बेच भी सकते हैं.
यूं तो हमारे बहुत सारे शौक हैं और उन्हीं में से एक है डिजाईनर साबुन बनाना. अब आप कहेंगे कि ये क्या बला है? घबराईये नहीं ये भी एक आर्ट है जिसकी कोई लिमिट नहीं है. जैसे एक पेंटर या चित्रकार अपनी कल्पना से कितनी ही पेंटिंग विभिन्न तरह की बना लेता है वैसे ही आप इस प्रोसेस से अनगिनत तरह के साबुन बना सकते हैं. इसमे मजे की बात यह है कि आप अपनी जरूरत के हिसाब से बना कर यूज कर सकते हैं, गिफ़्ट कर सकते हैं और बेच भी सकते हैं.
आजकल हैंड मेड साबुनों की डिमांड काफ़ी बढी है उसका कारण यह है कि ये कम नुक्सान देह हैं और ग्राहक अपनी जरूरत के हिसाब से आर्डर करता है. और उसी हिसाब से जो भी ग्राहक की डिमांड है, उस मुताबिक चीजे यूज करते हुये तैयार कर सकते हैं. इसमें आपने सही चीजे यूज की और परफ़ेक्शन बनाये रखा तो ग्राहक आपके पास बार बार लौट कर आयेगा ही.
अब ये समझ लिजीये कि साबुन किस प्रकार बनाये जाते हैं? आप जो बाजार से रेडीमेड साबुन खरीद कर लाते हैं अपने लिये, वह ब्रांड एक निश्चित वस्तुओं से तैयार होता है, आप उसमे रदोबदल नहीं कर सकते. मान लिजीये आप एक ब्रांड का प्रयोग करते हैं तो हो सकता है वह ब्रांड गर्मी में आपको अच्छा काम देता है पर सर्दी आते ही उसी ब्रांड से आपकी त्वचा शुष्क होने लगती है. अब फ़िर कोई नया साबुन ढूंढो या मोईश्चराईजर ढूंढो...इसी वजह से साबुन के इतने सारे ब्रांड आप बदल रहते हैं.
यह बाजार में बिकने वाले साबुन CP यानि कोल्ड प्रोसेस से बने होते हैं यानि कास्टिक सोडा और तेलों के मिश्रण से. इनको तैयार होने के बाद कम से कम 30/40 दिन saponification के लिये खुला रखना होता है, और जितने ज्यादा दिन इनका saponification होगा उतना ही कम नुक्सान देह होंगे. सिंपल भाषा में समझाऊं तो saponification से तात्पर्य यह है कि साबुन तैयार होने के बाद भी काष्टिक सोडा अपनी क्रिया करता रहता है जिसे पूरा होने में एक डेढ महिना लग जाता है.
अब जो हैंडमेड साबुन होते हैं ये hot process कहलाते हैं. इनमे आपको सोप बेस लेना होता है और उसको मेल्ट करके मन चाहे आकार में वापस शेप देना होता है. soap base कई तरह के आते हैं और आसानी से आपके लोकल मार्केट या आन लाईन साईट्स पर मिल जाते हैं. इनमे saponification की प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी होती है इसलिये ये त्वचा के लिये हानिकारक नहीं होते.
आईये अब मैंने कल जो फ़ेसबुक पर साबुन की तस्वीरें डाली थी उनको कैसे तैयार किया? इसकी पूरी जानकारी देता हूं. आपमें से कईयों ने इसके बारे में जिज्ञासा जाहिर की थी इसी वजह से यह पोस्ट लिख रहा हूं. और मेरे पास विडियों एडीटर का जुगाड हो गया तो जल्दी ही विडियो भी डाल दूंगा. फ़ेसबुक पर विस्तृत विवरण से नहीं समझाया जा सकता इसलिये ब्लागर पर यह पोस्ट लिख रहा हूं.
यह एक सोप बार तकरीबन 1500 ग्राम का तैयार किया. आईये देखते हैं इसको कैसे बनाया?
1. सबसे पहले एक मोल्ड लिया. अब सबसे शुरूआती पर्त नीले रंग वाली (goat milk soap base +shea butter soap base+blue soap colour 2 or 3 drops) मेल्ट करके डाल दी. डालते ही इसमे हल्के झाग आते हैं जो फ़िनिश साबुन पर भी अच्छे नहीं लगते और इस तरह के कई बार में बनाने वाली पर्ते आपस में जुड जायें इसके लिये rubbing alcohol का स्प्रे तुरंत कर दिया.
2. अब जो सफ़ेद मोटी पर्त दिखाई दे रही है उसकी तैयारी करते हैं. इसमे आपको एक लाल रंग का हार्ट दिखाई दे रहा होगा. यह हार्ट शेप वाले मोल्ड में "हनी ग्लिसरीन सोप बेस" में रेड सोप कलर की कुछ बूंदे डालकर पहले ही तैयार कर रखा था. नीली पर्त पर इस हार्ट शेप वाले बार को रख दिया.
इसके बाद जो मोटी सफ़ेद पर्त दिख रही है उसके लिये (goat milk soap base+cocoa soap base+black berry essential oil सुगंध के लिये + vitamin E oil capsul के 7 कैपसूल) मेल्ट कर लिया.
यहां ध्यान रहे कि इसको नीली पर्त पर डालने के पहले नीली पर्त पर rubbing alcohol का अच्छे से स्प्रे करना है. यही rubbing alcohol इन पर्तों को जोडने का भी काम करेगा वर्ना कटिंग के समय सारी पर्ते अलग अलग हाथ में आ जायेंगी. सफ़ेद की पर्त मोल्ड में डालकर फ़िर rubbing alcohol का स्प्रे करके झाग खत्म कर दिये.
इसके बाद जो मोटी सफ़ेद पर्त दिख रही है उसके लिये (goat milk soap base+cocoa soap base+black berry essential oil सुगंध के लिये + vitamin E oil capsul के 7 कैपसूल) मेल्ट कर लिया.
यहां ध्यान रहे कि इसको नीली पर्त पर डालने के पहले नीली पर्त पर rubbing alcohol का अच्छे से स्प्रे करना है. यही rubbing alcohol इन पर्तों को जोडने का भी काम करेगा वर्ना कटिंग के समय सारी पर्ते अलग अलग हाथ में आ जायेंगी. सफ़ेद की पर्त मोल्ड में डालकर फ़िर rubbing alcohol का स्प्रे करके झाग खत्म कर दिये.
3. अब तीसरी पर्त के लिये यहां (goat milk soap base+purpal soap color+olive oil+black berry essential oil) को मेल्ट करके ऊपर बताये गये अनुसार rubbing alcohol का यूज करते हुये मोल्ड में डाल दिया.
4. अब इसमें आपको आखिरी हरी पर्त दिख रही होगी. इसमे ग्लिसरीन सोप बेस में हरा सोप कलर मिलाकर मेल्ट करके डाल दिया. और इस मोल्ड को रात भर छोड दिया. वैसे यह चार पांच घंटे में ही तैयार हो जाता है.
इसके बाद इसको चाकू से बराबर निशान लगाते हुये काट लिया. तो जो तैयार हुआ वो नीचे देखिये.
अब देखिये कितना सुंदर और एक रिच साबुन हमारे हाथ में आ गया. आज हमने कुछ और बनाये हैं जिनकी तस्वीर नीचे दे रहे हैं.
यह नीम की प्राकृतिक पत्तियों से बना है.
यह ओटमिल से बना है.
यह कुछ अलग अलग डिजाईन में बने हैं.
यह पिस्ता सोप है.
यह बच्चों के लिये फ़न बाल सोप
coffe soap for exfoliation purpose
super rich girl soap with sweet almond oil
तो, आज की कार्यशाला खत्म, कुछ पूछना हो तो कमेंट में पूछ सकते हैं. आपको बताकर ताऊ को प्रसन्नता होगी. यदि जुगाड जमा तो विडियो भी बनायेंगे. शेष अगली पोस्ट में.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
कोरोना काल और 1965 भारत पाक युद्ध का समय
मेरी इस बात को वो लोग ज्यादा अच्छी तरह समझ पाएंगे जो हमारे जैसे सख्त लोक डाऊन एरियाज में रह रहे हैं।
आज आटा समाप्त हो गया, 3 दिन पहले ही आर्डर लिखवाया था पर अभी तक नहीं आया, शायद शाम तक आ जायेगा। हमारे यहां आटा, दाल, चावल की सप्लाई प्रशासन करवा रहा है बस थोड़ी देर सवेर होती है जो स्थितियों को देखते हुए खराब नहीं कही जा सकती।
आज के हालात में अनायास ही 1965 कि याद आगई जब एक तरफ भारत पाकिस्तान युद्ध का बिगुल बजा हुआ था और दूसरी तरफ महा अकाल पड़ा था।
अमेरिका से PL480 के तहत गेंहू आता था जिसे गेंहूँ कहना भी गेंहूँ का अपमान ही माना जाना चाहिए। रंग ऐसा लाल की रोटी का रंग भी गहरा लाल ही होता था। आटे को लगाकर उसकी लोई को खींचो तो च्युंगम भी शरमा जाए। रोटी तोड़कर मुंह में डालकर चबाओ तो मुंह में ही घूमती रहे। और यह गेंहूँ भी गांव से 10 किलोमीटर दूर से सर पर रख कर लाना पड़ता था।
अभी भी याद है कि हमारे दिवंगत प्रधान मन्त्री स्व. लाल बहादुर शास्त्रीजी ने अनाज बचाने के लिए सभी को एक उपवास रखने की अपील की थी। ज्यादातर लोग सोमवार का उपवास रखते थे पर हम ठहरे ताऊ सो हमने मंगलवार को बजरंग बली का उपवास रखना शुरू कर दिया। हालांकि दस ग्यारह साल के बच्चे थे पर सभी में जज्बा था।
आज भी कोरोना काल में खासकर रेड जोन में रहने वालों से निवेदन है, जहां अभी नार्मल सप्लाई नहीं है, उन सभी से निवेदन है कि अपनी आवश्यकताएं कम करें, यहां आपके पैसे की कोई पूछ नही है वह जेब में ही रखा रह जायेगा। घर में जो भी उपलब्ध है उसी से काम चलाएं और घर में ही बने रहें। यह अंधकार भी छंट जाएगा।
हमारे यहां दूध की कोई दिक्कत नहीं है सो आज ब्रेकफास्ट में दही की लस्सी पी ली। और डिनर में आज खीर बनाकर खाई जाएगी। व्रत भी होगया और खीर भी शाम को मिल ही जाएगी।
दोस्तों, दुख और सुख दोनों अस्थाई हैं, यह तकलीफ का समय है ये भी बीत ही जायेगा। वैसे जिनके घर में छोटे बच्चे हैं उनकी तकलीफ समझी जा सकती है। पर याद रखिये यह तकलीफ 1965 से ज्यादा बड़ी नहीं है। जिन्होंने भी PL480 का गेंहूँ खाया है उनको तो यह पीड़ा कुछ भी नहीं लग रही होगी, थोड़ी बहुत तकलीफ बर्गर पिज़्ज़ा वाली पीढ़ी को अवश्य महसूस हो रही होगी।
घर में रहें, शांत रहे, घर में आपस में सर ना भिड़ाये। फेसबुक व ब्लाग पर भी हंसी मजाक को प्रमुखता दें, स्वस्थ चुहलबाजी आधी तकलीफ कम कर देती है।
प्रेम से रहेंगे तो आनन्द पूर्वक समय निकल जायेगा और सर टकराएंगे तो समय निकलना मुश्किल होगा। मर्जी आपकी, ताऊ का काम आपसे निवेदन करने का था सो कर दिया।
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आज आटा समाप्त हो गया, 3 दिन पहले ही आर्डर लिखवाया था पर अभी तक नहीं आया, शायद शाम तक आ जायेगा। हमारे यहां आटा, दाल, चावल की सप्लाई प्रशासन करवा रहा है बस थोड़ी देर सवेर होती है जो स्थितियों को देखते हुए खराब नहीं कही जा सकती।
आज के हालात में अनायास ही 1965 कि याद आगई जब एक तरफ भारत पाकिस्तान युद्ध का बिगुल बजा हुआ था और दूसरी तरफ महा अकाल पड़ा था।
अमेरिका से PL480 के तहत गेंहू आता था जिसे गेंहूँ कहना भी गेंहूँ का अपमान ही माना जाना चाहिए। रंग ऐसा लाल की रोटी का रंग भी गहरा लाल ही होता था। आटे को लगाकर उसकी लोई को खींचो तो च्युंगम भी शरमा जाए। रोटी तोड़कर मुंह में डालकर चबाओ तो मुंह में ही घूमती रहे। और यह गेंहूँ भी गांव से 10 किलोमीटर दूर से सर पर रख कर लाना पड़ता था।
अभी भी याद है कि हमारे दिवंगत प्रधान मन्त्री स्व. लाल बहादुर शास्त्रीजी ने अनाज बचाने के लिए सभी को एक उपवास रखने की अपील की थी। ज्यादातर लोग सोमवार का उपवास रखते थे पर हम ठहरे ताऊ सो हमने मंगलवार को बजरंग बली का उपवास रखना शुरू कर दिया। हालांकि दस ग्यारह साल के बच्चे थे पर सभी में जज्बा था।
आज भी कोरोना काल में खासकर रेड जोन में रहने वालों से निवेदन है, जहां अभी नार्मल सप्लाई नहीं है, उन सभी से निवेदन है कि अपनी आवश्यकताएं कम करें, यहां आपके पैसे की कोई पूछ नही है वह जेब में ही रखा रह जायेगा। घर में जो भी उपलब्ध है उसी से काम चलाएं और घर में ही बने रहें। यह अंधकार भी छंट जाएगा।
हमारे यहां दूध की कोई दिक्कत नहीं है सो आज ब्रेकफास्ट में दही की लस्सी पी ली। और डिनर में आज खीर बनाकर खाई जाएगी। व्रत भी होगया और खीर भी शाम को मिल ही जाएगी।
दोस्तों, दुख और सुख दोनों अस्थाई हैं, यह तकलीफ का समय है ये भी बीत ही जायेगा। वैसे जिनके घर में छोटे बच्चे हैं उनकी तकलीफ समझी जा सकती है। पर याद रखिये यह तकलीफ 1965 से ज्यादा बड़ी नहीं है। जिन्होंने भी PL480 का गेंहूँ खाया है उनको तो यह पीड़ा कुछ भी नहीं लग रही होगी, थोड़ी बहुत तकलीफ बर्गर पिज़्ज़ा वाली पीढ़ी को अवश्य महसूस हो रही होगी।
घर में रहें, शांत रहे, घर में आपस में सर ना भिड़ाये। फेसबुक व ब्लाग पर भी हंसी मजाक को प्रमुखता दें, स्वस्थ चुहलबाजी आधी तकलीफ कम कर देती है।
प्रेम से रहेंगे तो आनन्द पूर्वक समय निकल जायेगा और सर टकराएंगे तो समय निकलना मुश्किल होगा। मर्जी आपकी, ताऊ का काम आपसे निवेदन करने का था सो कर दिया।
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बाबाश्री ताऊ महाराज द्वारा "क रोना" का शर्तिया ग्यारंटेड ईलाज
भक्तजनो, ह्में मालूम है कि कोरोना काल में आपके कष्ट बहुत बढे हुये हैं. और बाबाश्री तो सदैव से आपके कष्टों का शमन करते आये हैं. इन दिनों काफ़ी भक्तों के समाचार आ रहे हैं कि वो कष्ट में हैं. आपमें से कई "क रोना" से पीडित हैं. कुछ भक्त पत्नियों से पीडित हैं मार खा खा कर मोटू पतलू वाले पतलू जैसी हालात में पहुंच गये हैं.
मोबाईल पर "क रोना" झाडा देते बाबाश्री
कुछ पति भी पत्नियों पर अत्याचार कर रहे हैं जिसकी वजह से पुलिस भी परेशान है. अब पुलिस लोक डाऊन को मैनेज करे या इन खूसट पतियों की खबर ले? चारों तरफ़ हालत बहुत ही नाजुक और दयनीय हैं.
आपको इन कष्टों से छुटकारा दिलाने के लिये बाबाश्री ताऊ महाराज ने अचूक उपाय खोज निकाले हैं. और कोरोना के लोक डाऊन को देखते हुये आपको बाबाश्री के पास आने की आवश्यकता भी नहीं है बल्कि मोबाईल पर ही आपका ग्यारंटेड इलाज उपलब्ध करवा दिया जायेगा.
इस ईलाज की न्यौछावर फ़ीस बहुत ही मामूली रखी है. आप यह न्यौछावर फ़ीस आन-लाईन "बाबाश्री ताऊ महाराज 420 अपर्माथिक ट्रस्ट" के अकाऊंट में ट्रांसफ़र करवाये और मिस समीरा टेडी (Finance Controller) से फ़ोन पर अपाईंटमैंट लेकर फ़ोन करें. आपको ईलाज उपलब्ध करवा दिया जायेगा.
मर्ज का नाम न्यौछावर फ़ीस
1. "करो ना" झाडा रूपये 21,001/ मात्र
2. "करो ना" ऊपरी फ़ेंट बचाव रूपये 17,501/ मात्र
3. "करो ना" आपसी गृह क्लेश रूपये 25,001/= मात्र
4. "करो ना" पतिकूट यंत्र रूपये 27,501/ मात्र
5. "क रोना" पत्नी पीडा बचाव यंत्र रूपये 31,001/ मात्र
6. "क रोना" घर में मन लगाऊ झाडा रूपये 16,501/ मात्र
7. " क रोना" समस्त असाध्य बाधा पीडा यंत्र रूपये 38,501/ मात्र
हमारे सभी ईलाज जांचे हुये और शर्तिया ग्यारंटेड हैं. ईलाज करवाने वाले की जानकारी गुप्त रखी जाती है. ईलाज किसी कारणवश फ़ेल होने की स्थिति में आपका जमा रूपया वापस नहीं करने की हमारी पक्की ग्यारंटी रहेगी.
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मोबाईल पर "क रोना" झाडा देते बाबाश्री
कुछ पति भी पत्नियों पर अत्याचार कर रहे हैं जिसकी वजह से पुलिस भी परेशान है. अब पुलिस लोक डाऊन को मैनेज करे या इन खूसट पतियों की खबर ले? चारों तरफ़ हालत बहुत ही नाजुक और दयनीय हैं.
आपको इन कष्टों से छुटकारा दिलाने के लिये बाबाश्री ताऊ महाराज ने अचूक उपाय खोज निकाले हैं. और कोरोना के लोक डाऊन को देखते हुये आपको बाबाश्री के पास आने की आवश्यकता भी नहीं है बल्कि मोबाईल पर ही आपका ग्यारंटेड इलाज उपलब्ध करवा दिया जायेगा.
इस ईलाज की न्यौछावर फ़ीस बहुत ही मामूली रखी है. आप यह न्यौछावर फ़ीस आन-लाईन "बाबाश्री ताऊ महाराज 420 अपर्माथिक ट्रस्ट" के अकाऊंट में ट्रांसफ़र करवाये और मिस समीरा टेडी (Finance Controller) से फ़ोन पर अपाईंटमैंट लेकर फ़ोन करें. आपको ईलाज उपलब्ध करवा दिया जायेगा.
मर्ज का नाम न्यौछावर फ़ीस
1. "करो ना" झाडा रूपये 21,001/ मात्र
2. "करो ना" ऊपरी फ़ेंट बचाव रूपये 17,501/ मात्र
3. "करो ना" आपसी गृह क्लेश रूपये 25,001/= मात्र
4. "करो ना" पतिकूट यंत्र रूपये 27,501/ मात्र
5. "क रोना" पत्नी पीडा बचाव यंत्र रूपये 31,001/ मात्र
6. "क रोना" घर में मन लगाऊ झाडा रूपये 16,501/ मात्र
7. " क रोना" समस्त असाध्य बाधा पीडा यंत्र रूपये 38,501/ मात्र
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अरै सत्यानाशी कोरोना तू ताऊ के घर क्यूंकर आया?
जैसे ही कोरोना के चलते मोदीजी ने लोक डाऊन की घोषणा की, ताऊ की बांछे खिल गई। अब 3 सप्ताह का पूरा आराम, ना जल्दी उठना, ना आफिस जाना और ना ही घर का कोई सामान लेने बाजार जाना... वाह, यह आराम तो पृथ्वी पर शायद वर्तमान काल के मनुष्यों के अलावा किसी ने ही भोगा होगा अब तक।
ताऊ का दिल बाग बाग हो रहा था तभी ताई की आवाज आई - सुणै सै के?
ताई बोली - ईब कल तैं झाड़ू पौंछे वाली, रोटी बनाने वाली कोई नही आएगी।
ताई बोली - मुझे मालूम है तुम कितने भले हो। हम अपने अपने काम का बंटवारा कर लेते है।
ताऊ बोला यह भी ठीक है। बताओ मुझे क्या क्या करना है?
ताई बोली - सुबह उठते ही चाय बनाने का काम तुम्हारा और पीने का काम मेरा। फिर मंजन ब्रश करके योगा करने का काम मेरा तब तक झाड़ू बुहारी और पौंछा करने का काम तुम्हारा।
ताई काम का यह सब बंटवारा लठ्ठ पास में रखकर ही कर रही थी सो ताऊ चुपचाप हाँ में गर्दन हिलाते हुए बोला - ठीक है और कुछ?
ताई बोली - अभी तो सारे दिन के काम बाकी पड़े हैं...इसके बाद बाथरूम में नहाने का काम मेरा, फिर बाथरूम साफ करने और लत्ते (कपड़े) धोने का काम तुम्हारा।
नहा धोकर भगवान की दिया बत्ती करने का काम मेरा तब तक रोटी सब्जी बनाने का काम तुम्हारा.
इसके बाद खाना टेबल पर लगाने का काम तुम्हारा और खाने का काम मेरा.
खाना खाने के बाद आराम करने का काम मेरा तब तक झूंठे बर्तन भांडे साफ़ करने का काम तुम्हारा.
अब तक ताऊ समझ गया था कि मन गया उसका तो लोक डाऊन......
ताई गंगाराम (लठ्ठ) पर हाथ फ़िराते हुये बोली - दोपहर में टीवी देखने और आराम का काम मेरा और तब तक घर के गार्डन की सफ़ाई का काम तुम्हारा. फ़िर शाम को चाय नाश्ता बनाने का काम तुम्हारा और नाश्ता करने और चाय पीने का काम मेरा. इसी तरह रात को खाना बनाने का काम तुम्हारा और खाने का काम मेरा.
ताऊ का सारा उत्साह काफ़ूर हो चुका था. मन ही मन बोला - अरे मोदी जी....ये लोक डाऊन से तो अच्छा था कि ताऊ की घेट्टी (गला) ही दबा देता. इतने काम करके तो वैसे ही कोरोना हो जायेगा.
ताऊ सर पकड कर ताई के पास बैठने लगा तो ताई ने लठ्ठ फ़टकारते हुये कहा - "परै नै मर ले" (दूर होकर बैठ)....पता नहीं है क्या? मोदीजी ने कहा है कि कम से कम दो मीटर दूर होकर बैठना है...
ताऊ बोला - हो गया सब काम का बंटवारा या कुछ बाकी रह गया?
ताई लठ्ठ उठाते हुये बोली - ज्यादा बकबास मत कर, यह तो शुकर मना कि तुम्हारे हिस्से मैंने सब सीधे सरल काम ही रखे हैं. अब एक रात का काम बाकी बचा है, रात को लेटकर टीवी देखने का काम मेरा और मेरे सोने तक पांव दबाने का काम तुम्हारा.
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ताऊ टीवी द्वारा रंगारंग होली उत्सव 2020 की अग्रिम सूचना
प्रिय दर्शकों, आपको यह सूचित करते हुये हर्ष हो रहा है कि होली पर अबकि बार काफ़ी अरसे बाद ताऊ टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम होली उत्सव-2020 का आयोजन किया जा रहा है.
इस कार्यक्रम के उदघाटन समारोह में शिरकत करने के लिये प्रख्यात ब्लाग वीणा वादक पं. श्री अरविंद जी मिश्र महाराज ने सहर्ष अनुमति दे दी है.
पण्डित मिश्र जी महाराज राग झिंझोडी और राग कपार फोड़ी के विश्व के सिद्ध हस्त एकमेव कलाकार हैं। इसके अलावा पण्डितजी ने राग लठ्ठेश्वरी स्वयं ईजाद करके संगीत जगत में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। पण्डितजी ने हमें वादा किया है कि वो इस उत्सव में राग लठ्ठेश्वरी तीन ताल में सुनाएंगे। इस बंदिश के बोल होंगे "ताऊ काहे इतरावे...ताई आवत जात"
और भी स्वनाम धन्य कवि, वादक, गायक और नृत्यांगनाएं इस समारोह में शिरकत करेंगे. उनका सहमति पत्र प्राप्त होते ही हम आपको सूचित करते रहेंगे.
आप सभी का इस होली उत्सव-2020 में हार्दिक स्वागत है.
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इस कार्यक्रम के उदघाटन समारोह में शिरकत करने के लिये प्रख्यात ब्लाग वीणा वादक पं. श्री अरविंद जी मिश्र महाराज ने सहर्ष अनुमति दे दी है.
पण्डित मिश्र जी महाराज राग झिंझोडी और राग कपार फोड़ी के विश्व के सिद्ध हस्त एकमेव कलाकार हैं। इसके अलावा पण्डितजी ने राग लठ्ठेश्वरी स्वयं ईजाद करके संगीत जगत में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। पण्डितजी ने हमें वादा किया है कि वो इस उत्सव में राग लठ्ठेश्वरी तीन ताल में सुनाएंगे। इस बंदिश के बोल होंगे "ताऊ काहे इतरावे...ताई आवत जात"
और भी स्वनाम धन्य कवि, वादक, गायक और नृत्यांगनाएं इस समारोह में शिरकत करेंगे. उनका सहमति पत्र प्राप्त होते ही हम आपको सूचित करते रहेंगे.
आप सभी का इस होली उत्सव-2020 में हार्दिक स्वागत है.
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कोरोना वायरस और दुनिया की अर्थ व्यवस्था
कोरोना वायरस का भय अब सारी दुनियां में व्याप्त होता जा रहा है. अभी तक तो चीन से अपने अपने लोगों को रेस्क्यू करने तक ही बात सीमित थी पर पिछले दो तीन दिन से दुनियां के शेयर बाजारों पर इसका असर दिखने लगा था. आज पिछले कई सालों की हद तोडते हुये शेयर बाजारों ने निवेशकों को कंगाल बनाने में कोई कसर नहीं छोडी.
अमेरिका के शेयर बाजारों की देखा देखी एशियन मार्केट भी नीचे की तरफ़ मुंह करके खुले थे. बाद में यूरोपियन मार्केट्स ने इस मंदी को ओर हवा दे दी.
हमारे शेयर बाजारों में भी इसका पूरा पूरा असर दिखा. NSE का NIFTY 3,71% की गिरावट के साथ यानि 431.55 point गिरकर 11201.80 पर बंद हुआ वहीं BSE का SENSEX 1448.37 point यानि 3.645% गिरकर 38297.29 पर बंद हुआ.
आज कोई भी सेक्टर ऐसा नहीं था जहां तबाही का मंजर नहीं रहा हो.
कोरोना वायरस ऐसी तबाही ला सकता है यह ज्यादातर लोगों को नहीं लग रहा था. ज्यादातर लोग समझ रहे थे कि यह चीन का मामला है पर इसके व्यापक असर अभी देखने को मिलेंगे.
सरकार को इंपोर्ट ड्यूटी में दस से बारह प्रतिशत तक गिरावट आने का अंदेशा जताया जा रहा है वहीं GST क्लेक्शन में भी कमी का डर अब सताने लगा है. और यह होना भी है क्योंकि ज्यादातर कच्चे पक्के माल का इंपोर्ट चीन से होता है तो जब माल आयेगा ही नही तो इंपोर्ट ड्यूटी कहां से मिलेगी और माल बिकेगा नहीं तो GST कहां से मिलेगा?
दवा उद्द्योग का अधिकतर कच्चा माल चीन से आयात होता है तो ऐसे में दवाओं की उपलब्धता में कमी भी हो सकती है और दवाओं के दाम बढना तो तय ही है.
एसी फ़्रीज टीवी मोबाईल जैसे उद्द्योग के लिये भी कच्चे पक्के माल का अधिकतर आयात चीन से ही होता है तो इनकि कीमतों में इजाफ़ा होना तय दिखाई दे रहा है. कुल मिलाकर कोरोना वायरस उम्मीद से ज्यादा क्षति पहुंचाता लग रहा है.
मेडिकल क्षेत्र के अनुसार दुनिया की अधिकतर आबादी इसकी चपेट में आ सकती है और अभी इसके प्रतिरोधक टीके की कोई संभावना ही नहीं दिखाई देती और उपलब्ध दवाओं की प्रचुरता नही है. ऐसे में ईश्वर सबकी मदद करे और जल्द से जल्द इस कोरोना वायरस को समाप्त करने का कोई रास्ता मिले.
अमेरिका के शेयर बाजारों की देखा देखी एशियन मार्केट भी नीचे की तरफ़ मुंह करके खुले थे. बाद में यूरोपियन मार्केट्स ने इस मंदी को ओर हवा दे दी.
हमारे शेयर बाजारों में भी इसका पूरा पूरा असर दिखा. NSE का NIFTY 3,71% की गिरावट के साथ यानि 431.55 point गिरकर 11201.80 पर बंद हुआ वहीं BSE का SENSEX 1448.37 point यानि 3.645% गिरकर 38297.29 पर बंद हुआ.
आज कोई भी सेक्टर ऐसा नहीं था जहां तबाही का मंजर नहीं रहा हो.
कोरोना वायरस ऐसी तबाही ला सकता है यह ज्यादातर लोगों को नहीं लग रहा था. ज्यादातर लोग समझ रहे थे कि यह चीन का मामला है पर इसके व्यापक असर अभी देखने को मिलेंगे.
सरकार को इंपोर्ट ड्यूटी में दस से बारह प्रतिशत तक गिरावट आने का अंदेशा जताया जा रहा है वहीं GST क्लेक्शन में भी कमी का डर अब सताने लगा है. और यह होना भी है क्योंकि ज्यादातर कच्चे पक्के माल का इंपोर्ट चीन से होता है तो जब माल आयेगा ही नही तो इंपोर्ट ड्यूटी कहां से मिलेगी और माल बिकेगा नहीं तो GST कहां से मिलेगा?
दवा उद्द्योग का अधिकतर कच्चा माल चीन से आयात होता है तो ऐसे में दवाओं की उपलब्धता में कमी भी हो सकती है और दवाओं के दाम बढना तो तय ही है.
एसी फ़्रीज टीवी मोबाईल जैसे उद्द्योग के लिये भी कच्चे पक्के माल का अधिकतर आयात चीन से ही होता है तो इनकि कीमतों में इजाफ़ा होना तय दिखाई दे रहा है. कुल मिलाकर कोरोना वायरस उम्मीद से ज्यादा क्षति पहुंचाता लग रहा है.
मेडिकल क्षेत्र के अनुसार दुनिया की अधिकतर आबादी इसकी चपेट में आ सकती है और अभी इसके प्रतिरोधक टीके की कोई संभावना ही नहीं दिखाई देती और उपलब्ध दवाओं की प्रचुरता नही है. ऐसे में ईश्वर सबकी मदद करे और जल्द से जल्द इस कोरोना वायरस को समाप्त करने का कोई रास्ता मिले.
आ अब लौट चलें ब्लाग की ओर
प्यारे भतीजो और भतिजीयों, ताऊ की होली टाईप रामराम. आज सबसे पहले तो मैं सुश्री रेखा श्रीवास्तव जी द्वारा संपादित "ब्लागरों के अधूरे सपनों की कसक" पुस्तक के विमोचन पर उनको और इस कार्य में सभी सहयोगी जनों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूं. आशा करता हूं यह पुस्तक हिंदी ब्लागिंग के लिये मील का पत्थर साबित होगी. सुश्री रेखा जी ने बहुत ही स्नेह से मुझे इस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिये निमंत्रण दिया और मैंने आने के लिये टिकट्स भी बुक करवा लिये थे. पर ताऊ के साथ हमेशा ही कुछ ना कुछ गडबड हो ही जाती है जो इस बार भी होगई. आपमें से अधिकतर साथियों को मालूम ही होगा कि ताऊ शेयर ब्रोकिंग के व्यापार के जरिये ही ताई के लठ्ठ की मार सहन करता है.
और आज शेयर मार्केट में कोहराम मच गया है, BSE SENSEX 1510 प्वाईंट्स से ज्यादा लुढक चुका है और यह अभी कितना और लुढकेगा यह मालूम नहीं है. मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मैं वहां पहुंचकर आप सभी के दर्शन करूं, किंतु परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है. पर ईश्वर ने चाहा तो भविष्य में ऐसा सुयोग अवश्य मिलेगा. मेरी तरफ़ से इस कार्यक्रम और हिंदी ब्लागिंग के सुनहरे भविष्य की शुभकामनाएं.
इसी तारतम्य में अपने मन की बात कहता चलूं कि मुझे हिंदी भविष्य की एक सशक्त भाषा दिखाई पड रही है. और अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि अंग्रेजी को भी पछाड दे. युनिकोड आने के बाद हिंदी लेखन की सारी दिक्कतें दूर हो चुकी हैं और आज लाखों करोडों लोग कंप्यूटर व मोबाईल पर धडल्ले से हिंदी का उपयोग कर रहे हैं.
एक आम जन जो कि ब्लागर नही है वो भी आज नेट सर्फ़िंग कर रहा है. कारण की पहले नेट के खर्च बहुत ज्यादा थे आज रिलाय़ंस जियो ने इसको बहुत ही सस्ता करवा दिया है. इसी का परिणाम है कि आज हिंदी पढने वालों की संख्या अचानक बढ गयी है जो एक शुभ संकेत है.
यूट्यूब पर आज लाखों करोडों हिंदी के विडियो अपलोड भी हो रहे हैं और असंख्य मात्रा में उनको दर्शक भी मिल रहे हैं. शायद आपको यकिन नहीं होगा कि आपके द्वारा स्वयं के उपेक्षित ब्लाग भी लोगों द्वारा देखे पढे जा रहे हैं. आपमें से अधिकतर तो अपने ब्लाग्स का पासवर्ड भी भूल चुके होंगे. मेरा निवेदन है कि एक बार जाकर अपनी STATS को चेक करें कि आपके बिना लिखे भी आपके ब्लाग पर पाठकों की संख्या पहले से अधिक हो चुकी है.
जरा ताऊ डाट इन taau.taau.in के आंकडों पर गौर करियेगा. ताऊ डाट इन पर पहले जहां नित्य एक पोस्ट लिखी जाती थी. किंतु छोटे भाई के असामयिक निधन से उपजे नैराष्य ने अन्य क्षेत्रों के साथ साथ ब्लागिंग से भी वितृष्णा पैदा कर दी, फ़लस्वरूप ब्लाग लेखन करीब करीब बंद सा ही हो गया.
2014 में 9 पोस्ट, 2015 में 1 पोस्ट, 2016 में 0 यानि कोई पोस्ट नहीं, 2017 में 36 पोस्ट, 2018 में 1 पोस्ट, 2019 में 0 यानि कुछ नहीं और 2020 में अब तक सिर्फ़ 5 और आज की मिलाकर कुल 6 पोस्ट लिखी गई हैं.
अब आईये STATS पर नजर डालते हैं तो मुझे जहां तक याद है 2014 में कुल पाठक संख्यां 1 लाख से भी कम थी और आज की पाठक संख्या करीब 7 लाख पहुंच चुकी है. और पिछले 6 माह से तो औसतन प्रति माह 17 या 18 हजार पाठक प्रतिमाह तक नियमित है.
तो कहां से आ रहे हैं ये पाठक? इसका सीधा सा जवाब है कि हिंदी पढने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफ़ा हो रहा है. नये पाठक तैयार हो गये हैं जो हिंदी में पढना चाहते हैं. अभी तो यह संख्या कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इसमें अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज होगी.
मेरा आप सभी साथियों से निवेदन है कि नियमित लेखन करें, आप जिस विधा में भी लिखते हों. अब टिप्पणियों की उम्मीद में लेखन मत करिये. अब वो जमाना जा चुका है. कोई टिप्पणी आती है तो ठीक वर्ना एडसेंस भी हिंदी के लिये नगद धन रूपी टिप्पणियां देने को उधार बैठा है.
आप हिंदी की सेवा करना चाहें तो स्वागत और सेवा नहीं भी करना चाहें तो भगवान के लिये अपनी जेब की सेवा के लिये ही नियमित लेखन करें. काफ़ी लोग नियमित लिख भी रहे हैं आप भी लिखें.
फ़ेसबुक का मैं कोई महारथी नहीं हूं, और उसका आलोचक नहीं तो प्रशंसक भी नहीं हूं. फ़ेसबुक भी अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम है इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता. पर जिस स्तर की अभद्रता और औछापन वहां व्यापत है वह मन को खिन्न करता है. फ़ेसबुक पर आपके अकाऊंट पर ही आपका कोई कंट्रोल नहीं है. वहां कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा आपकी वाल पर कुछ भी गंदगी करने की छूट रखता है, आप कुछ नहीं कर सकते. सीधी सी बात है वहां कई लोग पंचायती झौठे सरीखे विचरण करते रहते हैं जिन पर लठ्ठों का भी असर नहीं होता.
आशा करता हूं आपको मेरी बात समझ में आई होगी और नहीं आई हो तो खेलते रहिये फ़ेसबुक...फ़ेसबुक.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
और आज शेयर मार्केट में कोहराम मच गया है, BSE SENSEX 1510 प्वाईंट्स से ज्यादा लुढक चुका है और यह अभी कितना और लुढकेगा यह मालूम नहीं है. मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मैं वहां पहुंचकर आप सभी के दर्शन करूं, किंतु परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है. पर ईश्वर ने चाहा तो भविष्य में ऐसा सुयोग अवश्य मिलेगा. मेरी तरफ़ से इस कार्यक्रम और हिंदी ब्लागिंग के सुनहरे भविष्य की शुभकामनाएं.
इसी तारतम्य में अपने मन की बात कहता चलूं कि मुझे हिंदी भविष्य की एक सशक्त भाषा दिखाई पड रही है. और अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि अंग्रेजी को भी पछाड दे. युनिकोड आने के बाद हिंदी लेखन की सारी दिक्कतें दूर हो चुकी हैं और आज लाखों करोडों लोग कंप्यूटर व मोबाईल पर धडल्ले से हिंदी का उपयोग कर रहे हैं.
एक आम जन जो कि ब्लागर नही है वो भी आज नेट सर्फ़िंग कर रहा है. कारण की पहले नेट के खर्च बहुत ज्यादा थे आज रिलाय़ंस जियो ने इसको बहुत ही सस्ता करवा दिया है. इसी का परिणाम है कि आज हिंदी पढने वालों की संख्या अचानक बढ गयी है जो एक शुभ संकेत है.
यूट्यूब पर आज लाखों करोडों हिंदी के विडियो अपलोड भी हो रहे हैं और असंख्य मात्रा में उनको दर्शक भी मिल रहे हैं. शायद आपको यकिन नहीं होगा कि आपके द्वारा स्वयं के उपेक्षित ब्लाग भी लोगों द्वारा देखे पढे जा रहे हैं. आपमें से अधिकतर तो अपने ब्लाग्स का पासवर्ड भी भूल चुके होंगे. मेरा निवेदन है कि एक बार जाकर अपनी STATS को चेक करें कि आपके बिना लिखे भी आपके ब्लाग पर पाठकों की संख्या पहले से अधिक हो चुकी है.
जरा ताऊ डाट इन taau.taau.in के आंकडों पर गौर करियेगा. ताऊ डाट इन पर पहले जहां नित्य एक पोस्ट लिखी जाती थी. किंतु छोटे भाई के असामयिक निधन से उपजे नैराष्य ने अन्य क्षेत्रों के साथ साथ ब्लागिंग से भी वितृष्णा पैदा कर दी, फ़लस्वरूप ब्लाग लेखन करीब करीब बंद सा ही हो गया.
2014 में 9 पोस्ट, 2015 में 1 पोस्ट, 2016 में 0 यानि कोई पोस्ट नहीं, 2017 में 36 पोस्ट, 2018 में 1 पोस्ट, 2019 में 0 यानि कुछ नहीं और 2020 में अब तक सिर्फ़ 5 और आज की मिलाकर कुल 6 पोस्ट लिखी गई हैं.
अब आईये STATS पर नजर डालते हैं तो मुझे जहां तक याद है 2014 में कुल पाठक संख्यां 1 लाख से भी कम थी और आज की पाठक संख्या करीब 7 लाख पहुंच चुकी है. और पिछले 6 माह से तो औसतन प्रति माह 17 या 18 हजार पाठक प्रतिमाह तक नियमित है.
तो कहां से आ रहे हैं ये पाठक? इसका सीधा सा जवाब है कि हिंदी पढने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफ़ा हो रहा है. नये पाठक तैयार हो गये हैं जो हिंदी में पढना चाहते हैं. अभी तो यह संख्या कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इसमें अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज होगी.
मेरा आप सभी साथियों से निवेदन है कि नियमित लेखन करें, आप जिस विधा में भी लिखते हों. अब टिप्पणियों की उम्मीद में लेखन मत करिये. अब वो जमाना जा चुका है. कोई टिप्पणी आती है तो ठीक वर्ना एडसेंस भी हिंदी के लिये नगद धन रूपी टिप्पणियां देने को उधार बैठा है.
आप हिंदी की सेवा करना चाहें तो स्वागत और सेवा नहीं भी करना चाहें तो भगवान के लिये अपनी जेब की सेवा के लिये ही नियमित लेखन करें. काफ़ी लोग नियमित लिख भी रहे हैं आप भी लिखें.
फ़ेसबुक का मैं कोई महारथी नहीं हूं, और उसका आलोचक नहीं तो प्रशंसक भी नहीं हूं. फ़ेसबुक भी अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम है इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता. पर जिस स्तर की अभद्रता और औछापन वहां व्यापत है वह मन को खिन्न करता है. फ़ेसबुक पर आपके अकाऊंट पर ही आपका कोई कंट्रोल नहीं है. वहां कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा आपकी वाल पर कुछ भी गंदगी करने की छूट रखता है, आप कुछ नहीं कर सकते. सीधी सी बात है वहां कई लोग पंचायती झौठे सरीखे विचरण करते रहते हैं जिन पर लठ्ठों का भी असर नहीं होता.
आशा करता हूं आपको मेरी बात समझ में आई होगी और नहीं आई हो तो खेलते रहिये फ़ेसबुक...फ़ेसबुक.
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होली पर सियाचिन में ब्लागर सम्मेलन, योग एवम प्राकृतिक चिकित्सा शिविर
ब्लागिंग के माननिय नये, जूने-पुराने, घुटे घुटाये, डायनासोर एवम नान ब्लागर्स यानि फ़ेसबुकियों से ताऊ की होली टाईप रामराम. जैसा कि आप जानते हैं हमने 10 साल पहले सियाचिन में एक बहुत ही सफ़ल आयोजन किया था और सभी ब्लागर्स उससे लाभान्वित भी हुये थे. आप लोगों के बार बार अनुरोध पर इस साल यह आयोजन दुबारा आयोजित किया गया है.
मिस समीरा टेढी
इस आयोजन के बारे में संपूर्ण विवरण जल्द ही आपकी सेवा में एक ब्लाग पोस्ट द्वारा दिया जायेगा. इस आयोजन में सीटे बहुत ही कम हैं अत: हम पर कोई पक्षपात का आरोप नही लगे कि ताऊ ने अपने अपनों को रेवडी बांट दी....इस आरोप से बचने के लिये इस शिविर के लिये पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है. आप सबसे निवेदन है कि मिस समीरा टेढी से अपने अपने पंजीकरण फ़ार्म प्राप्त करलें. मिस समीरा टेढी के बारे में आपको बताने की जरूरत नही है. शिविर में मिस समीरा टेढी आपको सटा खेलने की विधा के बारे में सारी गुप्त टेक्निक सिखायेंगी.
इस फ़ार्म की फ़ीस आपकी सुविधा और जेब का ध्यान रखते हुये रूपये 251/= मात्र रखी है जो कि नान रिटर्नेबल होगी. इन प्राप्त फ़ार्म्स में से लाटरी ड्रा निकाला जायेगा. लाटरी में जिन सदस्यों को नाम निकलेगा, उन्हीं को शिविर में आने दिया जायेगा.
फ़ार्म्स की डिमांड बहुत ज्यादा है. अभी तक एक लाट तो खत्म भी हो चुका है. आज ही दूसरा लाट प्रिंट होकर आया है अत: शीघ्रता करें. एक सदस्य एक से अधिक चाहे जितने फ़ार्म्स भी भर सकता है. उस पर कोई रोक टोक नहीं होगी. आप जितने अधिक फ़ार्म भरेंगे, आपका नाम निकलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.
डा. रामप्यारी कैट-स्केन स्पेशलिस्ट
जैसा कि आप जानते ही हैं कि सियाचिन में आक्सीजन की कमी रहती है अत: स्वास्थ्य चेक अप जरूरी है. स्वास्थ्य चेक अप सर्टीफ़िकेट दूसरी जगह का मान्य नहीं होगा. सिर्फ़ डा. रामप्यारी द्वारा दिया गया हैल्थ सर्टीफ़िकेट ही मान्य होगा. इसमें भी अनिवार्य तौर पर कैट-स्केन करवाना अनिवार्य होगा. आपके लिये हमने डा. रामप्यारी से स्पेशल कन्शेसनल पैकेज सिर्फ़ रूपया 7500/= मात्र तय किया है. बिना कैट-स्केन के स्वास्थ्य सर्टीफ़िकेट मान्य नहीं होगा. भीड से बचने के लिये आप एडवांस में कैट-स्केन करवा कर रख लेवें.
शिविर में ब्लागिंग के गुरू घंटालों के टिप्स, बाबाश्री ताऊ महाराज की दुर्लभ दवाएं और दुर्लभ साहित्य उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाया जायेगा. इस शिविर में भाग लेना एक अलौकिक अनुभव रहेगा.
बाकी की जानकारी के लिये अगली ब्लाग पोस्ट का इंतजार करें.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मिस समीरा टेढी
इस आयोजन के बारे में संपूर्ण विवरण जल्द ही आपकी सेवा में एक ब्लाग पोस्ट द्वारा दिया जायेगा. इस आयोजन में सीटे बहुत ही कम हैं अत: हम पर कोई पक्षपात का आरोप नही लगे कि ताऊ ने अपने अपनों को रेवडी बांट दी....इस आरोप से बचने के लिये इस शिविर के लिये पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है. आप सबसे निवेदन है कि मिस समीरा टेढी से अपने अपने पंजीकरण फ़ार्म प्राप्त करलें. मिस समीरा टेढी के बारे में आपको बताने की जरूरत नही है. शिविर में मिस समीरा टेढी आपको सटा खेलने की विधा के बारे में सारी गुप्त टेक्निक सिखायेंगी.
इस फ़ार्म की फ़ीस आपकी सुविधा और जेब का ध्यान रखते हुये रूपये 251/= मात्र रखी है जो कि नान रिटर्नेबल होगी. इन प्राप्त फ़ार्म्स में से लाटरी ड्रा निकाला जायेगा. लाटरी में जिन सदस्यों को नाम निकलेगा, उन्हीं को शिविर में आने दिया जायेगा.
फ़ार्म्स की डिमांड बहुत ज्यादा है. अभी तक एक लाट तो खत्म भी हो चुका है. आज ही दूसरा लाट प्रिंट होकर आया है अत: शीघ्रता करें. एक सदस्य एक से अधिक चाहे जितने फ़ार्म्स भी भर सकता है. उस पर कोई रोक टोक नहीं होगी. आप जितने अधिक फ़ार्म भरेंगे, आपका नाम निकलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.
डा. रामप्यारी कैट-स्केन स्पेशलिस्ट
जैसा कि आप जानते ही हैं कि सियाचिन में आक्सीजन की कमी रहती है अत: स्वास्थ्य चेक अप जरूरी है. स्वास्थ्य चेक अप सर्टीफ़िकेट दूसरी जगह का मान्य नहीं होगा. सिर्फ़ डा. रामप्यारी द्वारा दिया गया हैल्थ सर्टीफ़िकेट ही मान्य होगा. इसमें भी अनिवार्य तौर पर कैट-स्केन करवाना अनिवार्य होगा. आपके लिये हमने डा. रामप्यारी से स्पेशल कन्शेसनल पैकेज सिर्फ़ रूपया 7500/= मात्र तय किया है. बिना कैट-स्केन के स्वास्थ्य सर्टीफ़िकेट मान्य नहीं होगा. भीड से बचने के लिये आप एडवांस में कैट-स्केन करवा कर रख लेवें.
शिविर में ब्लागिंग के गुरू घंटालों के टिप्स, बाबाश्री ताऊ महाराज की दुर्लभ दवाएं और दुर्लभ साहित्य उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाया जायेगा. इस शिविर में भाग लेना एक अलौकिक अनुभव रहेगा.
बाकी की जानकारी के लिये अगली ब्लाग पोस्ट का इंतजार करें.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
ब्लागिंग को जिंदा करने के लिये "रायता फ़ैलाऊ समिति"
आज सुबह सुबह ही ब्लागिंग के पितामह, घुटे घुटाये ब्लागर अनूप शुक्ल जी “फ़ुरसतिया” द्वारा दिये गये ज्ञान स्वरूप इस आलेख की शुरूआत कर रहे हैं.
आप बहुत अच्छा पढने वाले हैं और आप बहुत अच्छे टिप्पणी कार हैं. जैसे कवियों को तालियां वैसे ही ब्लागरों को आपकी टिप्पणियां प्रोत्साहित करती हैं. आप ब्लाग पर आयें और टिप्पणी करके हमारा उत्साह वर्धन
करें जिससे हम रायता बिखरें और आप मुफ़्त में रायता खाते रहें. तो अब कविता पाठ…सारी...सारी... अब आलेख की शुरूआत करते हैं….
अभी कल ही दिल्ली में
समीरलाल जी, राजीव तनेजा जी, खुशदीप सहगल जी, वंदना गुप्ता जी, डा. दराल साहब व अन्य
घुटे घुटाये ब्लागर्स ने ब्लागिंग को पुन: जिंदा करने के लिये गहन विचार विमर्श कोल्ड
ड्रिंक की चुस्कियों के बीच किया. अब बताईये किसी में जान डालने के लिये कोल्ड ड्रिंक
से काम चलता है क्या? बताओ मितरों, भाईयों और बहनों? अरे ब्लागिंग तो पहले ही ठंडी हुई पडी
है और आप ऊपर से ठंडा पीये जा रहे हैं….ब्लागिंग को जिंदा ही करना है तो कुछ गर्म पीते…पिलाते.
ताऊ जैसे कुछ रायता फ़ैलाऊओं को बुलाकर सलाह लेते. ब्लागरों, रायता बडे काम की चीज है….याद
किजीये पुराने जमाने को जब सारी ब्लाग दुनियां में रायते की नदियां बहा करती थी और
वो ब्लागिंग का स्वर्णिम काल कहलाया.
अभी परसों शिवरात्रि
पर ताऊ उज्जैन चला गया था और वहां महानकाल का महा प्रसाद ले लिया, उसने ऐसा रंग दिखाया
कि सर नीचे और पांव ऊपर हो गये. महा प्रसाद का नशा घर लौटने तक नहीं उतरा तो ताई ने
बेहतरीन रायता फ़ैलाकर नशा उतारा. एक दम खट्टे दही से बूंदी और मिक्स फ़्रूट का रायता बनाया, उसमे अपना
मेड-इन-जर्मन लठ्ठ भिगो भिगो कर जो ताऊ की पीठ पर बजाये तो एक दम से नशा काफ़ूर हो गया.
तो सभी ब्लागर बंधुओं
से निवेदन है कि ब्लागिंग का यदि जीर्णोदार करना है तो रायता फ़ैलाना ही एक मात्र ईलाज है.
जितना रायता फ़ैलाओगे उतनी ही ब्लागिंग जीवित होती जायेगी. ब्लागिंग के स्वर्णिम काल
में कितना रायता फ़ैला हुआ रहता था? कसम से हमने तो कभी उस जमाने में घर में रायता या
सब्जी नहीं बनाई. उसी रायते से दोनों टाईम की रोटी खा लेते थे….आज कम से कम सौ डेढ
सौ रूपये की सब्जियां खरीदनी पडती हैं…..
और हां यदि रायता फ़ैलाना
ही हो तो ब्रांडेड यानि अमूल, ब्रिटानिया, मदर डेयरी या अन्य किसी के दूध दही से काम
नहीं चलेगा बल्कि आपके लोकल मोहल्ले वाले का दही लेवें जो बिल्कुल सडा गला रखता हो
तो यह ज्यादा असर कारक रहेगा. पैसे भी कम लगेंगे और रिजल्ट सटीक मिलेगा.
मेरी नेक सलाह है कि ब्लागिंग
का जीर्णोद्धार करने को एक “रायता फ़ैलाऊ समिति” बनाई जाये और उसे यह काम सौंप दिया
जाये. यदि कोई अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं हो तो ताऊ यह कुर्बानी दे सकता है बशर्ते
कोषाध्य्क्ष का पद भी ताऊ को दे दिया जाये.
ताऊ की रायता फ़ैलाऊ
क्षमता देखनी हो तो शाहीन बाग का रायता देखिये जिसमें बूंदी, मिक्स फ़्रूट और आलू सहित तमाम तरह के रायते बिखेरे गये हैं और जो आज तक नहीं सिमटा है और अब ताऊ अहमदाबाद
में ट्रंप के आगमन के लिये रायता फ़ैलाने के ईवंट में जुटा है.
ध्यान रहे कि रायता फ़ैलाना इतना आसान नहीं है. हर काम के हिसाब से अलग अलग प्रकार का दही और वस्तुएं काम में ली जाती है. आप तो बस बूंदी, आलू और फ़्रुट रायता ही जानते हॊंगे. पर मर्ज के अनुसार लौकी, कद्दू, करेला, बथुआ, गोभी, वेज, नानवेज इत्यादि कई प्रकार के रायते काम में लिये जाते हैं. और ताऊ ने रायता फ़ैलाने में पी.एच.डी. की हुई है.
सभी ब्लागर्स से निवेदन है कि "रायता फ़ैलाऊ समिति" के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष पद के लिये ताऊ को ही वोट करें.
सभी ब्लागर्स से निवेदन है कि "रायता फ़ैलाऊ समिति" के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष पद के लिये ताऊ को ही वोट करें.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
माता बखेडा वाली, ताऊ और मरी हुई भैंस
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. चारों तरफ़ युद्ध के बाद का भयावह सन्नाटा...दूर दूर तक सुनसान....गिद्ध कौव्वों के आकाश में मंडराते झुंड.....अधिकतर जवान युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे.
थके मायूस महाराज धृतराष्ट्र भी अपने भतीजों यानि पांडवों के साथ रहने चले गये थे. उनके दिल का दर्द तो सिर्फ़ समझा ही जा सकता है. हम आपको यहां कोई महाभारत की कहानी सुनाने नहीं आये हैं. कहानी दो अन्य पात्रों की है जो ठीक उसी समय की है. तो सुनिये.....
एक तो थी "माताश्री बखेडा वाली" जिनकी उम्र उस समय भी 780 साल की थी और आज भी उतनी ही है. गरीबों का दुख दर्द दूर करना, उनकी सहायता करना और अपने व्यापार में लीन रहना ही उनकी दिनचर्या का मुख्य हिस्सा था. गरीबों के लिये महाराज धृतराष्ट्र से भी उलझ लेती थी. उन्होंने द्रौपदी चीरहरण के समय महाराज धृतराष्ट्र...पितामह भीष्म...विदूर जी सबकी बखिया उधेड कर बहुत बडा बखेडा खडा कर दिया था....वो तो कृष्ण भगवान वहां आगये दौपदी की लाज बचाने वर्ना तो माता बखेडा वाली ने दुर्योधन, दुशासन और विकर्ण के शीश ही कलम कर दिये होते. वैसे कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि "माता बखेडा वाली" चाहती तो कृष्ण के आने के पहले ही द्रौपदी की रक्षा कर चुकी होती पर उन्हें तो कृष्ण को यह सम्मान दिलाना था...खैर जो भी हो.....माता बखेडा वाली की जय.....
उनकी इसी वीरता की वजह से भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि "सत्य के पक्ष में आपने अन्याय का विरोध किया, इसी से प्रसन्न होकर मैं आपको वरदान देता हूं कि आप कलयुग में "माता बखेडा वाली" के नाम से पूरे सोशल मीडिया में सर्वत्र पूज्यनीय रहेंगी और इस पृथ्वी के रहने तक आपकी उम्र जो अभी है वही 780 साल की ही रहेगी. युद्धकाल के बाद जीवन यापन के लिये उन्होंने साहुकारी का धंधा चालू रखा था जो कि पहले भी करती थी.
अब हमारी कहानी का दूसरा पात्र है ताऊ महाराज...जिनसे आप भली भांति परिचित ही होंगे.....जो नये पाठक हैं उनको कम शब्दों में ही बता देते हैं कि ताऊ महाराज में छूट भलाई सारे गुण कूट कूट कर शुरू से ही भरे थे. ताऊ महाराज उस समय में भी चोरी, डकैती, ठगी, बेईमानी... उठाईगिरी के ही धंधे किया करते थे.... उनको ना पहले कुछ और काम आता था और ना कुछ अब आता है...
महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था....दोनों पक्षों की तरफ़ से सैनिकों की भर्ती चालू थी. ताऊ महाराज भी कौरवों के सेनापति की पकड में आ गये और कौरव दल में जबरदस्ती भर्ती कर लिये गये.... ताऊ ने सोचा फ़ंस गये अब तो...युद्ध के नाम से ही ताऊ कांप रहा था....एक दिन मौका देखकर भाग निकला और जाकर जंगल में छुप गया....पूरे 18 दिन के बाद वापस लौटा जब युद्ध समाप्त हो गया था......
अब ताऊ क्या करे? किसको लूटे..किसको ठगे...किसके यहां डकैती डाले? कोई बचा ही नहीं था.....तो ताऊ ने गुजर बसर करने को एक भैंस पाल ली और अपना गुजारा करने लगा.
यूं ही काफ़ी समय बीत चला था. अब एक दिन हुआ यूं कि ताऊ की भैंस मर गई, ताऊ को काटो तो खून नहीं. अब ताऊ क्या करे? कैसे पेट पाले? पर ताऊ तो ताऊ .....ताऊ को पुराने शौक फ़िर याद आये....ताऊ ने सोचा अब इस मरी हुई भैंस के पैसे वसूल कर लिये जायें तो काम चल सकता है. ताऊ ने चारों तरफ़ नजर दौडाई पर ऐसा कोई सख्श नहीं नजर में आया जिसको इस मरी हुई भैंस की टोपी पहनाई जा सके....अचानक ताऊ को माताश्री बखेडा वाली का ध्यान आया तो खुशी से उछल पडा.
ताऊ माता बखेडा वाली को दादीश्री कहकर बुलाता था क्योंकि दोनों की उम्र में 300 साल का फ़र्क था. ताऊ उनके पास पहुंचा और बोला - दादीश्री राम राम....
माता बखेडा वाली ने सोचा आज ये ताऊ मेरे पास क्या लेने आया है? फ़िर भी बोली - रामराम ताऊ रामराम...बता क्या हाल चाल है? कैसे आना हुआ?
ताऊ बोला - दादीश्री मुझे मेरी भैंस एक हजार रूपये में बेचना है...भैंस तो ज्यादा की है पर मुझे रूपये की जरूरत है इसलिये एक हजार में दे दूंगा.
माता बखेडा वाली भी कम नहीं थी...पूरी साहुकार व्यापारी थी और बिजनेस में किसी तरह का कोई कंप्रोमाईज पसंद नहीं करती थी...आप कह सकते हैं कि पूरी कडक व्यापारी थी. बोली - अच्छा...तेरी वो मरगिल्ली सी भैंस के कौन देगा एक हजार? तुझ पर दया करके तेरी भैंस के 500 रूपया दे सकती हूं.... लेना हो तो ले वर्ना अपना रास्ता नाप.....मुझे बहुत काम है और माता अपने हिसाब किताब में लग गई.
ताऊ ने सोचा....आसामी तो फ़ंस गई...फ़िर भी उदास सा मुंह बनाकर बोला - ठीक है...मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठा रही हो आप....लावो दे दो पांच सौ ही...और भैंस मेरे घर पर पडी मिलेगी....बुलवा लेना.....
माता बखेडा वाली हिसाब किताब में व्यस्त थी सो यह नहीं सुना कि भैंस पडी है....ताऊ को पांच सौ रूपये दे दिये और ताऊ ने रूपये अपने खीसे में डाले और गांव छोडकर यह जा...वो जा...होगया.
ताऊ को डर था कि बखेडा वाली माता उसे छोडने वाली नहीं है सो काफ़ी समय तक तो वापस लौटा ही नहीं....फ़िर एक दिन चुपचाप अपने घर लौट आया...आखिर कब तक बाहर रहता. ताऊ को रोज डर लगता था कि आज माता बखेडा वाली आई कि कल आई. जब माता आई ही नहीं तो ताऊ खुद उनके पास पहुंच गया और प्रणाम करके बैठ गया.....माता बखेडा वाली ने ताऊ का काफ़ी आदर सत्कार किया और मरी हुई भैंस का कोई जिक्र ही नहीं किया तो ताऊ आश्चर्य में पड गया और पूछ बैठा...
तब माता बखेडा वाली बोली - ताऊ, तुम तो मरी भैंस मेरे गले बांध गये थे पर मुझे तो उससे काफ़ी मुनाफ़ा हुआ. अब ताऊ के चौंकने की बारी थी....पूछ बैठा - दादीश्री....मरी भैंस से फ़ायदा...?
माता बखेडा वाली बोली - ताऊ तुम बेईमानी ठगी से कमाते हो और हम व्यापारी हैं, अक्ल से कमाते हैं......जब तुम मरी भैंस बेचकर भाग गये तो मुझे मालूम था कि तुमको भागने के बाद पकडना ऐसा ही है जैसे गधे के सर से सींग पकडना....मैंने एक एक रूपये के लाटरी टिकट निकाल दिये और ईनाम में भैंस रख दी. कुल दस हजार रूपयों से ज्यादा के टिकट बिके. एक आदमी को भैंस ईनाम में निकल गयी. मैने उसको तुम्हारी मरी भैंस ईनाम में दे दी....वो बोला - यह तो मरी हुई भैंस है...मैं इसका क्या करूंगा...मुझे तो जिंदा मुर्रा भैंस चाहिये.
मैंने कहा - ज्यादा चकर बकर नहीं.....लेना हो तो ले वर्ना तूने जो एक रूपया का टिकट खरीदा था वो एक रूपया वापस पकड....और निकल ले....वो अपना एक रूपया लेकर वापस चला गया....इस तरह पूरे दस हजार से ज्यादा का मुनाफ़ा तेरी मरी हुई भैंस दे गई.....
ताऊ भौंचक्का सा हुआ दादीश्री के मुंह की तरफ़ देखता रह गया.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
थके मायूस महाराज धृतराष्ट्र भी अपने भतीजों यानि पांडवों के साथ रहने चले गये थे. उनके दिल का दर्द तो सिर्फ़ समझा ही जा सकता है. हम आपको यहां कोई महाभारत की कहानी सुनाने नहीं आये हैं. कहानी दो अन्य पात्रों की है जो ठीक उसी समय की है. तो सुनिये.....
एक तो थी "माताश्री बखेडा वाली" जिनकी उम्र उस समय भी 780 साल की थी और आज भी उतनी ही है. गरीबों का दुख दर्द दूर करना, उनकी सहायता करना और अपने व्यापार में लीन रहना ही उनकी दिनचर्या का मुख्य हिस्सा था. गरीबों के लिये महाराज धृतराष्ट्र से भी उलझ लेती थी. उन्होंने द्रौपदी चीरहरण के समय महाराज धृतराष्ट्र...पितामह भीष्म...विदूर जी सबकी बखिया उधेड कर बहुत बडा बखेडा खडा कर दिया था....वो तो कृष्ण भगवान वहां आगये दौपदी की लाज बचाने वर्ना तो माता बखेडा वाली ने दुर्योधन, दुशासन और विकर्ण के शीश ही कलम कर दिये होते. वैसे कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि "माता बखेडा वाली" चाहती तो कृष्ण के आने के पहले ही द्रौपदी की रक्षा कर चुकी होती पर उन्हें तो कृष्ण को यह सम्मान दिलाना था...खैर जो भी हो.....माता बखेडा वाली की जय.....
उनकी इसी वीरता की वजह से भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि "सत्य के पक्ष में आपने अन्याय का विरोध किया, इसी से प्रसन्न होकर मैं आपको वरदान देता हूं कि आप कलयुग में "माता बखेडा वाली" के नाम से पूरे सोशल मीडिया में सर्वत्र पूज्यनीय रहेंगी और इस पृथ्वी के रहने तक आपकी उम्र जो अभी है वही 780 साल की ही रहेगी. युद्धकाल के बाद जीवन यापन के लिये उन्होंने साहुकारी का धंधा चालू रखा था जो कि पहले भी करती थी.
अब हमारी कहानी का दूसरा पात्र है ताऊ महाराज...जिनसे आप भली भांति परिचित ही होंगे.....जो नये पाठक हैं उनको कम शब्दों में ही बता देते हैं कि ताऊ महाराज में छूट भलाई सारे गुण कूट कूट कर शुरू से ही भरे थे. ताऊ महाराज उस समय में भी चोरी, डकैती, ठगी, बेईमानी... उठाईगिरी के ही धंधे किया करते थे.... उनको ना पहले कुछ और काम आता था और ना कुछ अब आता है...
महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था....दोनों पक्षों की तरफ़ से सैनिकों की भर्ती चालू थी. ताऊ महाराज भी कौरवों के सेनापति की पकड में आ गये और कौरव दल में जबरदस्ती भर्ती कर लिये गये.... ताऊ ने सोचा फ़ंस गये अब तो...युद्ध के नाम से ही ताऊ कांप रहा था....एक दिन मौका देखकर भाग निकला और जाकर जंगल में छुप गया....पूरे 18 दिन के बाद वापस लौटा जब युद्ध समाप्त हो गया था......
अब ताऊ क्या करे? किसको लूटे..किसको ठगे...किसके यहां डकैती डाले? कोई बचा ही नहीं था.....तो ताऊ ने गुजर बसर करने को एक भैंस पाल ली और अपना गुजारा करने लगा.
यूं ही काफ़ी समय बीत चला था. अब एक दिन हुआ यूं कि ताऊ की भैंस मर गई, ताऊ को काटो तो खून नहीं. अब ताऊ क्या करे? कैसे पेट पाले? पर ताऊ तो ताऊ .....ताऊ को पुराने शौक फ़िर याद आये....ताऊ ने सोचा अब इस मरी हुई भैंस के पैसे वसूल कर लिये जायें तो काम चल सकता है. ताऊ ने चारों तरफ़ नजर दौडाई पर ऐसा कोई सख्श नहीं नजर में आया जिसको इस मरी हुई भैंस की टोपी पहनाई जा सके....अचानक ताऊ को माताश्री बखेडा वाली का ध्यान आया तो खुशी से उछल पडा.
ताऊ माता बखेडा वाली को दादीश्री कहकर बुलाता था क्योंकि दोनों की उम्र में 300 साल का फ़र्क था. ताऊ उनके पास पहुंचा और बोला - दादीश्री राम राम....
माता बखेडा वाली ने सोचा आज ये ताऊ मेरे पास क्या लेने आया है? फ़िर भी बोली - रामराम ताऊ रामराम...बता क्या हाल चाल है? कैसे आना हुआ?
ताऊ बोला - दादीश्री मुझे मेरी भैंस एक हजार रूपये में बेचना है...भैंस तो ज्यादा की है पर मुझे रूपये की जरूरत है इसलिये एक हजार में दे दूंगा.
माता बखेडा वाली भी कम नहीं थी...पूरी साहुकार व्यापारी थी और बिजनेस में किसी तरह का कोई कंप्रोमाईज पसंद नहीं करती थी...आप कह सकते हैं कि पूरी कडक व्यापारी थी. बोली - अच्छा...तेरी वो मरगिल्ली सी भैंस के कौन देगा एक हजार? तुझ पर दया करके तेरी भैंस के 500 रूपया दे सकती हूं.... लेना हो तो ले वर्ना अपना रास्ता नाप.....मुझे बहुत काम है और माता अपने हिसाब किताब में लग गई.
ताऊ ने सोचा....आसामी तो फ़ंस गई...फ़िर भी उदास सा मुंह बनाकर बोला - ठीक है...मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठा रही हो आप....लावो दे दो पांच सौ ही...और भैंस मेरे घर पर पडी मिलेगी....बुलवा लेना.....
माता बखेडा वाली हिसाब किताब में व्यस्त थी सो यह नहीं सुना कि भैंस पडी है....ताऊ को पांच सौ रूपये दे दिये और ताऊ ने रूपये अपने खीसे में डाले और गांव छोडकर यह जा...वो जा...होगया.
ताऊ को डर था कि बखेडा वाली माता उसे छोडने वाली नहीं है सो काफ़ी समय तक तो वापस लौटा ही नहीं....फ़िर एक दिन चुपचाप अपने घर लौट आया...आखिर कब तक बाहर रहता. ताऊ को रोज डर लगता था कि आज माता बखेडा वाली आई कि कल आई. जब माता आई ही नहीं तो ताऊ खुद उनके पास पहुंच गया और प्रणाम करके बैठ गया.....माता बखेडा वाली ने ताऊ का काफ़ी आदर सत्कार किया और मरी हुई भैंस का कोई जिक्र ही नहीं किया तो ताऊ आश्चर्य में पड गया और पूछ बैठा...
तब माता बखेडा वाली बोली - ताऊ, तुम तो मरी भैंस मेरे गले बांध गये थे पर मुझे तो उससे काफ़ी मुनाफ़ा हुआ. अब ताऊ के चौंकने की बारी थी....पूछ बैठा - दादीश्री....मरी भैंस से फ़ायदा...?
माता बखेडा वाली बोली - ताऊ तुम बेईमानी ठगी से कमाते हो और हम व्यापारी हैं, अक्ल से कमाते हैं......जब तुम मरी भैंस बेचकर भाग गये तो मुझे मालूम था कि तुमको भागने के बाद पकडना ऐसा ही है जैसे गधे के सर से सींग पकडना....मैंने एक एक रूपये के लाटरी टिकट निकाल दिये और ईनाम में भैंस रख दी. कुल दस हजार रूपयों से ज्यादा के टिकट बिके. एक आदमी को भैंस ईनाम में निकल गयी. मैने उसको तुम्हारी मरी भैंस ईनाम में दे दी....वो बोला - यह तो मरी हुई भैंस है...मैं इसका क्या करूंगा...मुझे तो जिंदा मुर्रा भैंस चाहिये.
मैंने कहा - ज्यादा चकर बकर नहीं.....लेना हो तो ले वर्ना तूने जो एक रूपया का टिकट खरीदा था वो एक रूपया वापस पकड....और निकल ले....वो अपना एक रूपया लेकर वापस चला गया....इस तरह पूरे दस हजार से ज्यादा का मुनाफ़ा तेरी मरी हुई भैंस दे गई.....
ताऊ भौंचक्का सा हुआ दादीश्री के मुंह की तरफ़ देखता रह गया.
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मेहनत के दम पर अपनी किस्मत संवार सकते हैं.
एक 15/16 साल का लडका रोज दोपहर बाद सर पर सब्जी की टोकरी रखे आवाज लगाता घर के सामने से गुजरता. उस पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर जब कभी सब्जी घर में नहीं होती तो पत्नि उसको रोक कर सब्जी खरीद लेती थी. उसकी सब्जियां बहुत ताजी होती थी अत: बाद में वह नियमित सब्जी देने लगा.
एक दिन गर्मी बहुत अधिक थी वो लडका पानी पीने अंदर आ गया. मैने देखा वो पसीने में तर था पर उसकी आंखों में चमक थी और थकान का कोई नामोनिशान उसकी शक्ल पर नहीं था. मैंने उससे नाम पूछा तो वह बोला – बाबूजी मेरा नाम शंकर है.
मैने उसके बारे में और जानकारी ली तो पता चला कि वह नजदीक के ही गांव का रहने वाला है और उसके पिता नहीं है. घर में मां और एक छोटी बहन है. वह गांव के ही स्कूल में 8वीं कक्षा में पढता है. कुल 3 बीघा जमीन है जिस पर वो सब्जियां उगाते हैं. पहले सारी सब्जियां मंडी के दलालों के मार्फ़त बेच देते थे जिससे सिर्फ़ लागत ही निकल पाती थी.
फ़िर उसने बताया कि साल भर से वह स्कूल से लौटकर खेत की सब्जियां लाकर यहां शहर की एक दो कालोनियों में बेच देता है जिससे उसे अच्छी आमदनी हो जाती है. गांव से शहर तक बस टेंपो से आने जाने में उसका काफ़ी समय बर्बाद हो जाता था तो मैने उससे कहा कि वह एक साईकिल लेले तो काफ़ी समय और मेहनत बचेगी. मेरे यहां बेटे की एक साईकिल रखी थी जो अब किसी काम में नहीं आ रही थी. मैने वो साईकिल उसे दे दी. साईकिल पाकर वह बहुत खुश था, ऐसा लगता था जैसे कोई कार उसने पा ली हो. अब वो पहले से भी ज्यादा मेहनत से काम करने लगा.
उसकी सब्जियों की क्वालिटी काफ़ी बढिया और ताजी होती थी तो उसके ग्राहक भी नियमित बन गये थे. ऐसे ही तकरीबन दो तीन साल बीत गये. शंकर अब काफ़ी हठ्ठा कठ्ठा और कद काठीदार हो चला था. एक दिन वो आया और बोला बाबूजी मुझे एक मोटर साईकिल दिलवा दिजीये. मैने कहा – शंकर, मोटर साईकिल तो काफ़ी महंगी आयेगी. वो बोला बाबूजी आपके यहां यह जो मोटर साईकिल रखी रहती है यह किसकी है? तो मेरे ध्यान में आया कि मेरे बेटे की मोटर साईकिल काफ़ी समय से यूं ही रखी है. बेटा बाहर रहता है और अब वो मोटर साईकिल चलाता भी नहीं है. मैंने पत्नी से बात की और उसको हां कर दी. वो बोला मैं कल आकर ले जाऊंगा.
अगले दिन वो आया और बोला बाबूजी मैंने ये 25 हजार रूपये जोडे हैं आज तक, और मेरे हाथ में 25 हजार रूपये रख दिये. अब मैं क्या कहता? हालांकि मोटर साईकिल का बाजार मूल्य पैंतीस छत्तीस हजार का रहा होगा पर उसकी काम करने की लग्न और मदद करने के लिये मैंने उसे दे दी.
उसने मोटर साईकिल को सब्जी के हिसाब से तैयार करवाया और सब्जियां बेचने का अपना दायरा और बढा लिया.
इसी बीच उसकी मां और बहन ने घर में दो तीन भैंसे पाल ली थी जिनका दूध थोक व्यापारी को दे दिया जाता था और उसमें कोई ज्यादा मुनाफ़ा नहीं होता था. मोटर साईकिल आने के बाद शंकर ने थोक व्यापारी को दूध देना बंद कर दिया और खुद ही घर घर जाकर दूध बांटना शुरु कर दिया. उसने समय के साथ पडौसियों का दूध भी लेकर बांटना शुरू कर दिया.
जो भी बचत होती थी उसको संभालकर जमा करता गया. बाद में उसने शहर में ही दूध डेयरी की दूकान खोल ली. मेहनत ईमानदारी और शुद्धता के बल पर दूकान चल निकली. आज शंकर दूध व्यवसायियों में प्रतिष्ठित नाम है.
इसे कहते हैं “मेहनत के दम पर अपनी किस्मत संवारना”. कोई भी मनुष्य लग्न और ईमानदारी के बल पर आगे बढ सकता है. और ऐसे मेहनती लोगों को अपने आप रास्ता भी दिखाने वाले मिल ही जाते हैं, बस मेहनत और लग्न में कमी नहीं रहनी चाहिये.
"बगल में लौटा मुंह में पान, बनकर रहेंगे बर्बादिस्तान"
पता नहीं अबकि बार सर्दी का मौसम कौन से मुहुर्त में शुरू हुआ था कि इस बार सर्दी जाने का नाम ही नहीं ले रही. कब तक तीन चार किलो कपडों का वजन ढोते रहो.
हमने रामप्यारे से पूछा कि भाई अबकि बार तो सर्दी निपटा कर ही छोडेगी क्या? अब रामप्यारे ने जो जवाब दिया वो आश्चर्य चकित करने वाला था. वो बोला - ताऊ, तुम तो लगता है सठिया गये हो...अरे सर्दी है कहां?
उसके द्वारा हमारे लिये सठियाना, संबोधन हमे नागवार गुजरा अत: हमने उसकी तरफ़ आंखे तरेर कर कहा - अबे गधे, ज्यादा मत उछल..कहीं ठंड में पिटा गया तो सारी दुल्लतियां झाडना भूल जायेगा.
वो बोला - ताऊ, जरा रजाई से बाहर निकल कर देखो...तुम तो उल्लू की तरह घर में दुबके रहते हो. अरे देखो..दिल्ली के शाहीन बाग में कितनी गर्मी है? दिल्ली का चुनाव तक गर्मा गया है. कसम से मैं तो रोज वहां चला जाता हूं और वहां इतनी गर्मी मिलती है कि अबकि बार मैंने स्वेटर मफ़लर वगरैह कुछ भी नहीं खरीदा. बस मजे ही मजे हैं.... चलो आज मेरे साथ तुम भी चलो...सारी ठंड नहीं भाग जाये तो मेरा नाम रामप्यारे नहीं.
हमने कहा - ये शाहीन बाग तुम्हें ही मुबारक हो, हम तो यहीं अच्छे..... वो बोला फ़िर ताऊ एक काम करो जरा ईरान अमेरिकी पंगों के बारे में पढा करो....वहां तो इतनी गर्मी है कि तुम बर्फ़ के पानी से नहाने लग जावो तो भी गर्मी नहीं मिटेगी.
हम रामप्यारे का मुंह ताकते जा रहे थे कि यह बक क्या रहा है? हमने कहा तू पागल हुआ है क्या? बेवकूफ़ आदमी, ईरान अमेरिका कितनी दूर हैं? भला वहां के बारे में पढकर गर्मी कैसे आयेगी?
वो बोला - वहां परमाणु बम फ़ोडने की बाते हो रही हैं तो सोचो कितनी गर्मी होगी? जरा महसूस करके देखो.....
हमने कहा - परमाणु बम तो पडौस में पाकिस्तान भी रोज फ़ोडने की धमकियां देता है और वो तो कहता है कि पाव आध सेर छंटाक दो छटांक के बम भी फ़ोड देगा....उससे ही गर्मी नहीं आ रही तो वहां से कैसे आयेगी?
वो बोला - ताऊ, अब ये पक्का तय हो गया कि तुम पक्के सठिया गये हो. कम से कम इतना तो समझो कि उसके पास परमाणु की जगह फ़ुस्सी बम है जो कभी गर्मी नहीं देगा. वो तो खाली पीली चमकाने का काम करते हैं. पाकिस्तान का तो नारा हि यही है कि "बगल में लौटा मुंह में पान, बनकर रहेंगे बर्बादिस्तान". उनकी अर्थ व्यवस्था देखो, जनता का हाल देखो....वो क्या बम फ़ोडेंगे?
हम रामप्यारे का मुंह देखते रह गये और लगा कि उसकी बातों से थोडी बहुत तो गर्मी आने लगी है.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
हमने रामप्यारे से पूछा कि भाई अबकि बार तो सर्दी निपटा कर ही छोडेगी क्या? अब रामप्यारे ने जो जवाब दिया वो आश्चर्य चकित करने वाला था. वो बोला - ताऊ, तुम तो लगता है सठिया गये हो...अरे सर्दी है कहां?
उसके द्वारा हमारे लिये सठियाना, संबोधन हमे नागवार गुजरा अत: हमने उसकी तरफ़ आंखे तरेर कर कहा - अबे गधे, ज्यादा मत उछल..कहीं ठंड में पिटा गया तो सारी दुल्लतियां झाडना भूल जायेगा.
वो बोला - ताऊ, जरा रजाई से बाहर निकल कर देखो...तुम तो उल्लू की तरह घर में दुबके रहते हो. अरे देखो..दिल्ली के शाहीन बाग में कितनी गर्मी है? दिल्ली का चुनाव तक गर्मा गया है. कसम से मैं तो रोज वहां चला जाता हूं और वहां इतनी गर्मी मिलती है कि अबकि बार मैंने स्वेटर मफ़लर वगरैह कुछ भी नहीं खरीदा. बस मजे ही मजे हैं.... चलो आज मेरे साथ तुम भी चलो...सारी ठंड नहीं भाग जाये तो मेरा नाम रामप्यारे नहीं.
हमने कहा - ये शाहीन बाग तुम्हें ही मुबारक हो, हम तो यहीं अच्छे..... वो बोला फ़िर ताऊ एक काम करो जरा ईरान अमेरिकी पंगों के बारे में पढा करो....वहां तो इतनी गर्मी है कि तुम बर्फ़ के पानी से नहाने लग जावो तो भी गर्मी नहीं मिटेगी.
हम रामप्यारे का मुंह ताकते जा रहे थे कि यह बक क्या रहा है? हमने कहा तू पागल हुआ है क्या? बेवकूफ़ आदमी, ईरान अमेरिका कितनी दूर हैं? भला वहां के बारे में पढकर गर्मी कैसे आयेगी?
वो बोला - वहां परमाणु बम फ़ोडने की बाते हो रही हैं तो सोचो कितनी गर्मी होगी? जरा महसूस करके देखो.....
हमने कहा - परमाणु बम तो पडौस में पाकिस्तान भी रोज फ़ोडने की धमकियां देता है और वो तो कहता है कि पाव आध सेर छंटाक दो छटांक के बम भी फ़ोड देगा....उससे ही गर्मी नहीं आ रही तो वहां से कैसे आयेगी?
वो बोला - ताऊ, अब ये पक्का तय हो गया कि तुम पक्के सठिया गये हो. कम से कम इतना तो समझो कि उसके पास परमाणु की जगह फ़ुस्सी बम है जो कभी गर्मी नहीं देगा. वो तो खाली पीली चमकाने का काम करते हैं. पाकिस्तान का तो नारा हि यही है कि "बगल में लौटा मुंह में पान, बनकर रहेंगे बर्बादिस्तान". उनकी अर्थ व्यवस्था देखो, जनता का हाल देखो....वो क्या बम फ़ोडेंगे?
हम रामप्यारे का मुंह देखते रह गये और लगा कि उसकी बातों से थोडी बहुत तो गर्मी आने लगी है.
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