आखिरी विदाई
अब आखिरी विदाई लेलूं
शादी मंडप में वचन दिया था
दुख सुख मे साथ निभाने का
कभी ना बिछडने का जन्मों
कभी ना बिछडने का जन्मों
साथ कदम बढाने का
आज मुडकर देखा तो पाया
जीवन की पगडंडियों को
एक दुसरे का हाथ थामे
एक दुसरे का हाथ थामे
हमने हर वादा निभाया
अब जिंदगी की सांझ की बेला मे
कैसे विचारों से मन घिर आया
शादी मंडप मे खाई कसमें
लगता है एक सपना थी
वक्त दे रहा दस्तक
आओ तुम्हारे हाथों से
अपना हाथ छुडाकरआओ तुम्हारे हाथों से
अब आखिरी विदाई लेलूं
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
Nice Poem taau !!
ReplyDeleteReally A very strong though!
Thanks,
Pankaj
जिन्दगी की साझँ की बेला मे आखिरी विदाई किसी के साथ संगदिली होती है । वह लम्हाँ हाथ छोड कर नही हाथ पकड्ने का होता है।
ReplyDeleteवक्त दे रहा दस्तक
ReplyDeleteआओ तुम्हारे हाथों से
अपना हाथ छुडाकर
अब आखिरी विदाई लेलूं
बहुत भावुक अभिव्यक्त
regards
लगता है ताई की लाठियों की धमक कम हो गयी या सर फिर गया ताऊ का या मैं कविता समझ नहीं पाया
ReplyDeleteये तीनों ही स्थितिया ठीक नहीं
सीमाजी बहुत भावमय अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteये ताऊ जि कल तो हँसने हसाने की बातें कर रहे थे आज रुलाने पर आमदा हैं राम राम् इतनी भारी पोस्ट
अरे मै तो समझ कि ताई ने आज ईतने लठ्ठ मार दिये कि....
ReplyDeleteअरे ताऊजी ऐसी गम भरी बाते ना करो जी, अभी तो आपका साथ हुआ है अब इतनी जल्दी भी क्या है साथ छुडाने की?
ReplyDeleteअरे ताऊजी ऐसी गम भरी बाते ना करो जी, अभी तो आपका साथ हुआ है अब इतनी जल्दी भी क्या है साथ छुडाने की?
ReplyDeleteअरे ताऊजी ऐसी गम भरी बाते ना करो जी, अभी तो आपका साथ हुआ है अब इतनी जल्दी भी क्या है साथ छुडाने की?
ReplyDeleteबहुत गहन और मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत गहन भाव अभिव्यक्त किये हैं. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअपना हाथ छुडाकर
ReplyDeleteअब आखिरी विदाई लेलूं
bahut hi marmik hai taau aaj to.
अपना हाथ छुडाकर
ReplyDeleteअब आखिरी विदाई लेलूं
bahut hi marmik hai taau aaj to.
ताऊ कभी हंसाता है कभी रुलाता है. आखिर ये क्या करता है? पर आपकी आज की बात तो सच्ची है. ये दिन तो आना ही है.
ReplyDeleteताऊ कभी हंसाता है कभी रुलाता है. आखिर ये क्या करता है? पर आपकी आज की बात तो सच्ची है. ये दिन तो आना ही है.
ReplyDeleteइतनी भावुकता क्यों ताऊ जी ?
ReplyDeleteइतनी जल्दी क्या है
ReplyDeleteहाथ छुड़ाने की
मुंह मोड़ने की
नाता तोड़ने की।
आज जाने की जिद न करो...
ReplyDelete(पंक्तियाँ मेरी नहीं है - बता दिया ताकि सनद रहे)
वक्त दे रहा दस्तक
ReplyDeleteआओ तुम्हारे हाथों से
अपना हाथ छुडाकर
अब आखिरी विदाई ले लूं ।।
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति......
कविता सहज ही भावना की अभिव्यक्ति बन गयी है । अच्छी लगी यह रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.. आभार
ReplyDeleteभरी दुपहरी में साँज का नजारा दिखा कर डरा रहे हो!
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता.
ह्रदय स्पर्शी रचना .............. अनंत प्यार को समर्पित कविता दिल के बहुत ही करीब से गुज़र जाती है ..........
ReplyDelete"वक्त दे रहा दस्तक
ReplyDeleteआओ तुम्हारे हाथों से
अपना हाथ छुडाकर
अब आखिरी विदाई लेलूं"
कविता पढ़कर मन भावुक
हो उठा।
भाव-प्रणव कविता के लिए,
बहुत-बहुत बधाई।
बहुत गहरे भाव हैं. अंदर तक छू गई यह रचना.
ReplyDeletebahut marmik
ReplyDeletebahut hi sundar kawita
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteमन अवसाद से भर आया। विरह-मिलन, कस्में-वादे, यौवन-वृद्वावस्था सब मानो विदाई के क्षण में विलुप्त होने लगते हैं, बस सच्चे स्नेह के क्षण ही स्मृति में रह जाती है।
ReplyDeleteबात बहुत मार्मिक है, लेकिन सीमा जी से क्षमा याचना सहित इतना कहना चाहता हूँ कि इतने अच्छे विषय पर कविता बहुत सपाट हो गई है। सीमा जी इस पर कुछ और श्रम करें तो यह कालजयी रचना हो सकती है।
ReplyDeleteमिलन के साथ बिछोह भी सिक्के के दूसरे पहलू की तरह साथ ही रहता है.
ReplyDeleteजब भी मिलन का अहसास गहराता है जुदाई का उतना ही डर लगता है..
जीवन की सांझ में यह भाव और भी अधिक मुखर होते हैं..भावप्रधान रचना.
अरे ताऊ क्या हुआ सब कुछ ठीक तो कहीं रामप्यारी रूठ के तो नहीं चली गई .
ReplyDeleteabhi n jao chhod kar ki dil abhi bhara nahi
ReplyDeleteअवसाद की सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही भावुक अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteवक्त दे रहा दस्तक
ReplyDeleteआओ तुम्हारे हाथों से
अपना हाथ छुडाकर
अब आखिरी विदाई लेलूं
आभार सुश्री सीमा गुप्ताजी का दर्द से भरी बात के लिए। मार्मिक- हृदयस्पर्स।
......................
अरे भाई ! ताऊजी कहा गायब हो गए आज मुम्बई टाईगर ने कुछ तो छाप डाला है ताऊ के नाम!
नमस्कार!
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
एग्रीगेटर में लगा,कि माइकल जैकसन की विदाई पर पोस्ट होगी. बहरहाल, एक और सुंदर कविता पढ़ने के क्षणों के लिए आभार.
ReplyDelete"न जाओ सैय्या छुडा के बैय्याँ, कसम तुम्हारी, मै रो पडूँगी" .यह अचानक हमारे दिमाग में आ गया था इस लिए लिख दिया. सुन्दर रचना. बड़ी पीडा दायक.
ReplyDeletehow sad :-(
ReplyDeleteअरे ताऊ, क्यूँ रुलाना चाहते हैं आप ??
ReplyDeleteताऊ का मस्त मौला स्वाभाव ही तो बहुत लोगो को प्रेरणा देता है ...ऐसी भावुकता तो रुला देती है !!
ReplyDeleteसंवेदनशील अभिव्यक्ति ताऊ जी !!!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में आने पर हमेशा ऐक मुसकुराहट साथ हो लेती है ..
आज इतनी भावुकता :(
राम राम !!
बहुत मार्मिक है ये...
ReplyDeleteसीमा जी बहुत दर्द भर दिया आपने अपनी रचना में...
और इसमें एहसास भी नजर आता है जिस अहसास से होकर हर इंसान गुजरता है...
मीत
पसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया
ReplyDeleteदिल को छू गयी भाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हिन्दू धर्म और पुनर्जन्म के सिद्धान्त में आस्था रहे तो यह अवसाद नहीं घेरेगा!
ReplyDeletesir
ReplyDeleteapki poem ne to aankhen nam kar di ... itni gahri abhivyakti itne saral shabdo me kah di aap ne ..
Aabhar
Vijay
Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html